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शुक्रवार, 12 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---व्यवहार गणित


दूर से आवाज़ आई ...........ताज़ी - ताज़ी सब्जियां लेलो,, बैंगन लेलो, टमाटर लेलो, हरा धनिया लेलो, बींस ले लो...  गेट खोलकर महिला ने देखा ,...कि एक नौ दस वर्ष का  प्यारा सा बच्चा सब्जी बेच रहा है । शिक्षिका होने के नाते  सब्जी खरीदते हुए महिला ने नसीहत देनी शुरू कर दी...  "तुम्हें बाल मजदूरी नहीं करनी चाहिए ,तुम्हें तो पढ़ना चाहिए "।

बच्चे ने बड़ा ही   सुलझा हुआ उत्तर दिया" मैम जी हिसाब- किताब सीख रहा हूं ।"

सचमुच.... अब महिला सोच रही थी कि  यही है इसका व्यवहार  गणित।

✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला 

गुरुवार, 4 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---उजड़ा बसेरा

  


सांझ ढले..."  जब चोंच में दाना लिए  चिड़िया वापस लौटी ,तब इधर से उधर बेचैन हो उठी । उसका घोंसला उजड़ चुका था, क्योंकि जिस वृक्ष पर उसका आशियाना था, उसे काट कर मनुष्य अपनी सवारी में लाद लिया था।.... पता नहीं छोटे छोटे ची- ची करते हुए.... भूखे  बच्चे अपनी मां को कहां तलाश रहे होंगे।...... अरे ,ओ क्रूर मानव! तुझे ,क्या मिला हम पंछियों  का बसेरा उजाड़ कर।  

✍️ रेखा रानी, विजय नगर , गजरौला, जनपद अमरोहा


शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा)की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ----दूरी


कोविड ही-19 के चलते  सरकार द्वारा तो शारीरिक  रूप से दूरी बनाने वाली बात कही गई थी , किंतु सामाजिक दूरी आज इतनी बढ़ गई थी, कि पड़ोस वाले घर में मौत हो जाने पर चीख पुकार सुनते हुए भी सीमा घर की सीढ़ियों पर  खड़ी होकर कह रही थी ,कि "यार डिनर पर कहां चलोगे ?.. "और जब मैं डांस करूं तो मेरी पसंद का सॉन्ग  ही बजाना।" 

रेखा रानी, विजयनगर, गजरौला, जनपद अमरोहा

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी का गीत ----सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया। धरा पर स्वर्ण बिखराया बसंत ऋतुराज आया।


दुख की रैना बीत चुकी है, आई बसंती भोर।

तुम संग बांधी साजन मैंने अमर प्रेम की डोर।

सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।

धरा पर स्वर्ण बिखराया बसंत ऋतुराज आया।

 

खेतों में फूली है सरसों, हरियाली चहुं ओर।

 काली कोयल कूक रही है, मचा रही है शोर ।

 सजन मधु मास आया , रंगीला फाग लाया।

 धरा पर स्वर्ण बिखराया,बसंत ऋतुराज आया।

 

नव किसलय से फूटी लाली, चूनर केसर ओढ़।

 महक उठी है डाली डाली,मलय बहे चहुं ओर।

  सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।

  धरा पर स्वर्ण बिखराया, बसंत ऋतुराज आया।

  

वीणा पाणी अतुलित निधियां,लूटा रहीं चहुं ओर।

 दिनकर स्वर्णिम पुंजों से  अब दे रहा स्वप्निल भोर।

  सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।

  धरा पर स्वर्ण बिखराया, बसंत ऋतुराज आया।

  

✍️ रेखा रानी, विजय नगर,गजरौला, जनपद अमरोहा।





शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी की रचना ----हम नव वर्ष में आए हैं


 जीत का यह जश्न देख ख्वाब मुस्कुराए हैं

टूटी सी उम्मीदो ने फ़िर दिए जलाए हैं।

कर्म की इन बस्तियों में गांव फिर  बसाए हैं।

    फिर से मेरी आंखों ने नव स्वप्न  सजाए है

 फिर से मेरे चित्त में यह भाव उभर आए हैं।

 फिर  से इन परिंदों ने पंख नए  पाए हैं।

 गाते -गाते गीत नए आसमां पर आए हैं।

 गुजार कर हसीन वर्ष नव वर्ष में आए हैं।

  हम नव वर्ष में आए हैं।

  सर्द रात है ज़रा ,है बड़ी कठिन डगर।

  सहमी सी है हर दिशा, सहमे -सहमे हैं सज़र।

  मुस्कुराती धीमे-धीमे उस सुबह पर मेरी नजर।

  खूबसूरत  आंखों ने चित्र  वो सजाए हैं।

टूटी सी उम्मीदो ने फिर दिए जलाए हैं।

 कर्म की इन बस्तियों में गांव फिर बसाए हैं।

 गुजार कर हसीन वर्ष नव वर्ष में आए हैं।

  हम नव वर्ष में आए हैं।

 यूं तो और एक वर्ष जिंदगी का कम हुआ।

 पर मेरे तजुर्बे में एक वर्ष और जुड़ा।

 बीते पूरे वर्ष का हर समां हसीन था।

 विषाद युक्त क्षण भी मुझको वहां मिला है सीख का।

 कुछ जुड़ी हैं खट्टी- मीठी यादें हार जीत का।

 रेखा गुन - गुना रही है फिर  गीत अपनी जीत का।

 जीत का यह जश्न देख ख्वाब मुस्कुराए हैं।

✍️ रेखा रानी, गजरौला

मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का गीत ---- हम लिख ना सके तकदीर को ......

   


करते तो रहे प्रयास मगर , 

    हम लिख ना सके तकदीर को।

     जो छुपी है कल के गर्त में ,

     उस धुंधली सी तस्वीर को।

     हर सुबह मेरे दरवाजे पर, 

     आशाओं की प्यारी धूप खिली।

      किंतु जैसे ही सांझ हुई ,

      उम्मीद की  मेरी सांझ ढली।

      हर दिन की ढलती सांझ के,

       उस बिखरे हुए अबीर को।

       करते तो रहे  प्रयास मगर ,

       हम लिख न सके तकदीर को।

       चाहा था  विधाता बन जाऊं

       पर बन न  सकी  इंसान भी।

       सोचा था भविष्य पढ़ लूंगी,

       पर न पढ़ न सकी वर्तमान भी।

       सोचा था कि खुद ही लिख डालूं 

       उस अनजानी तकदीर को।

       जो छुपी है कल के गर्त में, 

       उस धुंधली सी तस्वीर को।

      सोचा हर आंसू पी जाऊं 

      दे पाऊं  खुशी मैं जग भर  को।

      जग भर की खुशी रही दूर,

      हाय दे पाई  न खुशियां इस घर को।

      रेखा इन जख्मी सांसो पर,

      इस जंग लगी जंजीर को।

       हम लिख ना सके तकदीर को।

✍️ रेखा रानी, विजयनगर ,गजरौला, जनपद -अमरोहा

शनिवार, 28 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का एकांकी "श्रमिक पलायन"


(चेहरे पर परेशानी का भाव लिए  किशोर आता है और  माथा पकड़ कर जमीन पर बैठ जाता है)  

सूत्रधार :  अरे सब इधर तो आओ, जरा देखो तो यहां क्या हो रहा है ? यह किशोर कैसा अनमना सा माथा पकड़ कर बैठ गया है? यह चुप क्यों है ? .....कुछ बोलता क्यों नहीं ?

अरे काका- काकी सब दौड़े आओ,

मिलकर सारे किशोर को समझाओ।

रामू - अरे, किशोर भाई कुछ तो बोलो काहे हैरान परेशान हो? क्या तुमको कोरोना का डर सता रहा है? काहे चिंता करते हो? यह कोरोना बड़े लोगों को ही होता है ,हम जैसे मजदूरों को कुछ नहीं होता।

किशोर - अरे बबुआ, चिंता की तो  बात है , सुना है मालिक कारखाना बंद करने वाले हैं , जब कारखाना बंद हो जाएगा तो खाओगे क्या? बीवी बच्चे क्या खाएंगे? कौन जिंदा रहेगा ?.....और देखो मेरी मुन्नी को तो कितना तेज बुखार है?

किशोर की पत्नी सुखिया  - अरे, आप तो मुन्नी की दवाई लेने गए थे, परंतु यह कैसी खबर ले आये

। अब, मुन्नी का बुखार कैसे उतरेगा?

किशोर - घबरा मत सुखिया, तू धीरज रख मैं सब संभाल लूंगा।

(तभी इमरजेंसी बेल बजती है 

सायरन के साथ)

सब शांत होकर सुनने लगते हैं।

सुनो ! ....सुनो  !!.....सुनो !!!...

खोली के सभी लोगों ध्यान से सुनो 

कोविड-19 के मरीजों की संख्या बहुत बढ़ चुकी है।

तुम सभी लोगों को अभी फौरन खोली  खाली करनी होगी। यह कारखाना बंद हो गया है।

( यह सुनते ही खोली में अफरा-तफरी मच जाती है।)

सूत्रधार- देखिए  बस्ती में कैसा अफरा-तफरी का माहौल है। अभी सारे लोग कैसे अपने गांव को वापस होंगे।  उनके पास न तो कोई सवारी का साधन है ना कुछ खाने की सामग्री और ना ही सामग्री खरीदने के लिए पैसे) किशोर - (दुःखी होकर)

मना किया था कि गांव नहीं छोड़ते।

महानगरों से नाता नहीं जोड़ते।

पर तुमने मेरी एक न मानी।

 दिखलाई अपनी मनमानी।

किसी की खाट बुनता था।

किसी की छान चढ़ाता था।

अपनी कहता था ,

औरों की सुनता था।

गांव की दावतों  में 

गर्व से पत्तल सजाता था।

दुखी मन से सुखिया गठरी में सामान समेटकर बुखार में तपती मुन्नी को लेकर चल दिया सपनों को मसल कर गांव की ओर। वि

सूत्रधार- गांवों  में रहो,

 शिक्षित बनो ।

सभी अपने गांव को

 विकसित करो।

(धीरे धीरे पर्दा गिरता है)

✍️  रेखा रानी 

प्रधानाध्यापिका , एकीकृत विद्यालय- गजरौला 

जनपद- अमरोहा।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का गीत----आज शरद की रात ओ प्रियतम आ जाना


आज शरद की रात ओ प्रियतम आ जाना ।

सूने मन के निधिवन में सजीले मोहन

श्याम तू रास रचा जाना।।

जाने कबसे ए मोहन नीरस सी पड़ी है वेणु,

गुमसुम सी हो गई है तेरी अब श्यामा धेनु।

वही कदंब,की डाल तू तान सुना जाना।

जाने कब से यह विरहन मिलने की बाट निहारे।

जन्मों जन्मोंं की प्यासी और मन पर प्रीत संवारे।

एक झलक बस एक बूंद नैनों से श्याम पिला जाना।

आज शरद की धवल चांदनी तेरी बाट निहारे।

नखत गगन के व्याकुल होकर लुका छिपी खेलें सारे।

श्याम निभाने रीत प्रीत की भोर से पहले आ जाना।c

मुझ जोगन ने तेरे प्यार में लोक लाज विसराई है।

तन मन तेरे प्यार में डूबा प्रीत अनोखी पाई है । ।

रेखा जोगन हुई स्याम की आज दरस दिखला जाना। आज.........

✍️रेखा रानी, गजरौला