दुख की रैना बीत चुकी है, आई बसंती भोर।
तुम संग बांधी साजन मैंने अमर प्रेम की डोर।
सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया बसंत ऋतुराज आया।
खेतों में फूली है सरसों, हरियाली चहुं ओर।
काली कोयल कूक रही है, मचा रही है शोर ।
सजन मधु मास आया , रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया,बसंत ऋतुराज आया।
नव किसलय से फूटी लाली, चूनर केसर ओढ़।
महक उठी है डाली डाली,मलय बहे चहुं ओर।
सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया, बसंत ऋतुराज आया।
वीणा पाणी अतुलित निधियां,लूटा रहीं चहुं ओर।
दिनकर स्वर्णिम पुंजों से अब दे रहा स्वप्निल भोर।
सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया, बसंत ऋतुराज आया।
✍️ रेखा रानी, विजय नगर,गजरौला, जनपद अमरोहा।
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