सांझ ढले..." जब चोंच में दाना लिए चिड़िया वापस लौटी ,तब इधर से उधर बेचैन हो उठी । उसका घोंसला उजड़ चुका था, क्योंकि जिस वृक्ष पर उसका आशियाना था, उसे काट कर मनुष्य अपनी सवारी में लाद लिया था।.... पता नहीं छोटे छोटे ची- ची करते हुए.... भूखे बच्चे अपनी मां को कहां तलाश रहे होंगे।...... अरे ,ओ क्रूर मानव! तुझे ,क्या मिला हम पंछियों का बसेरा उजाड़ कर।
✍️ रेखा रानी, विजय नगर , गजरौला, जनपद अमरोहा
ब
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें