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रविवार, 5 अप्रैल 2020
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में अपनी रचना साझा करते हैं । बीते रविवार 29 मार्च 2020 को आयोजित 195 वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में प्रस्तुत की गईं मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों सर्वश्री राजीव प्रखर, रवि प्रकाश, डॉ प्रीति हुंकार, अभिषेक रुहेला , डॉ पूनम बंसल , ओंकार सिंह विवेक , डॉ ममता सिंह , श्री कृष्ण शुक्ल , अमितोष शर्मा, मनोरमा शर्मा , राशिद मुरादाबादी , मरगूब हुसैन , जितेंद्र कमल आनंद , इंदु रानी , नृपेंद्र शर्मा सागर, प्रीति चौधरी , डॉ मीना नकवी , डॉ प्रेमवती उपाध्याय, अनुराग रुहेला , अशोक विश्नोई , मुजाहिद चौधरी , अतुल कुमार शर्मा , वीरेंद्र सिंह बृजवासी, ओंकार सिंह ओंकार, मीनाक्षी ठाकुर, संतोष कुमार शुक्ला , आदर्श भटनागर, अखिलेश वर्मा, रश्मि प्रभाकर, डॉ रीता सिंह , शचीन्द्र भटनागर, बलबीर सिंह , राशि सिंह, डॉ मक्खन मुरादाबादी, अरविंद शर्मा आनन्द ,डॉ पुनीत कुमार, हेमा तिवारी भट्ट और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं----
शनिवार, 4 अप्रैल 2020
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष राजेंद्र मोहन शर्मा श्रृंग के पांच गीत --- ये गीत उनके गीत संग्रह 'मैंने कब ये गीत लिखे हैं' से लिए गए हैं । उनका यह संग्रह लगभग 13 साल पूर्व श्रेष्ठ प्रकाशन लाइनपार मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस संग्रह में उनके सन 1960 के बाद के चुने हुए 57 गीत हैं । संग्रह की भूमिका लिखी है योगेंद्र वर्मा व्योम ने---
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी, जनपद संभल (वर्तमान में अलीगढ़ निवासी) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय की एक ग़ज़ल-- यह ग़ज़ल लगभग 42 साल पहले चन्दौसी से सन् 1978 में प्रकाशित स्मारिका विनायक के नवम अंक में छपी थी । यह स्मारिका प्रतिवर्ष मेला गणेश चतुर्थी के अवसर पर प्रकाशित होती है। इस स्मारिका के प्रधान संपादक रामबाबू अड़ियल थे जबकि संपादक रामअवतार गर्ग और कैलाश बिहारी मिश्र थे ।
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा स्थित गुरुकुल कन्या महाविद्यालय चोटीपुरा की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना -- प्रभु इस जगत से कोरोना हटा दो, कोई रोए ना ऐसा शुभ दिन दिखा दो । इसे लिखा है महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ सुमेधा ने... क्लिक कीजिए 👇👇👇👇👇👇👇👇
:::::::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ दीपक अग्रवाल
एडिटर सन शाइन न्यूज
37 ए ,अमरोहा ग्रीन कालोनी
जोया रोड ,अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर -9837912393
37 ए ,अमरोहा ग्रीन कालोनी
जोया रोड ,अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर -9837912393
मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी) डॉ कुंअर बेचैन का एक गीत --- यह गीत लिया गया है लगभग 53 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' से । यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में प्रकाशित हुआ था। श्री शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने
मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार के मुक्तक -- ये मुक्तक लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।
गुरुवार, 2 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र के दो गीत -- ये गीत लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी ) डॉ कुंअर बेचैन के दो गीत और परिचय । ये गीत वर्ष 1964 में प्रकाशित मुरादाबाद जनपद के कवियों के साझा काव्य संकलन "तीर और तरंग" में प्रकाशित हुए थे। संभवत: ये उनके पहले गीत होंगे जो किसी साझा संकलन में प्रकाशित हुए होंगे। यह संकलन हिन्दी साहित्य निकेतन संभल द्वारा गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्त के संपादन में प्रकाशित हुआ था। भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने.....
::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ---नेकलेस
लॉकडाउन को समाप्त हुए आज ग्यारहवाँ दिन था । दीपक ने अपनी सर्राफे की दुकान हमेशा की तरह खोली तथा काउंटर साफ करने के बाद गद्दी पर बैठ गया। बाजार में सन्नाटा था । पिछले दस दिन से यही चल रहा था कि दीपक आकर दुकान खोलता था, गद्दी पर बैठता था और फिर शाम को खाली हाथ घर वापस लौट जाता था। बिक्री के नाम पर बोहनी तक नहीं होती थी ।
ग्यारहवें दिन भी दीपक उदास बैठा था। सोच रहा था कि शायद आज भी कोई ग्राहक न आए ,लेकिन तभी सामने से नई कॉलोनी वाली मिसेज शर्मा दुकान पर चढ़ीं। उन्हें देखकर दीपक की आँखों में चमक आ गई । लॉकडाउन से थोड़े दिन पहले ही तो मिसेज शर्मा दुकान पर आकर एक सोने का नेकलेस पसंद करके गई थीं। कीमत बयालीस हजार रुपए बैठी थी । नेकलेस उन्हें पसंद आ रहा था लेकिन इतने पैसे की गुंजाइश नहीं थी । अतः "बाद में कभी आऊंगी "-कह कर चली गई थीं। आज जब आईं तो दीपक को लगा कि शायद आज कुछ बिक्री हो जाए ।
"बैठिए मिसेज शर्मा ! क्या नेकलेस.." दीपक का इतना कहना ही था कि मिसेज शर्मा ने कहा " हाँ! नेकलेस के बारे में ही आई हूँ।"
सुनकर दीपक खुशी से उछल पड़ा। वाह ! आज का दिन तो बहुत अच्छा रहा। लेकिन यह खुशी मुश्किल से आधा मिनट ही टिकी होगी क्योंकि मिसेज शर्मा ने अपने पर्स में से एक पुराना टूटा- फूटा नेकलेस निकाला और कहा " लालाजी ! आप से ही तीन- चार साल पहले खरीदा था । अब बेचने की नौबत आ गई..." कहते हुए मिसेज शर्मा की आँखें भर आई थीं।
दीपक से भी कुछ और नहीं पूछा गया। उसने नेकलेस तोला और हिसाब लगाकर मिसेज शर्मा को बता दिया " नेकलेस छत्तीस हजार रुपए का बैठ रहा है । आप कहें तो रुपए दे दूँ?"
" हाँ! रुपए दे दीजिए । इसी लिए तो लाई हूँ।"
तिजोरी से रुपए निकालकर दीपक ने मिसेज शर्मा को दे दिए । मिसेज शर्मा रुपए ले कर चली गईं। उनके जाने के बाद दीपक ने नेकलेस को तिजोरी में रखने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने नेकलेस को अपनी कमीज की जेब में रख लिया और बुदबुदाकर स्वयं से कहने लगा "मुझे भी तो घर-खर्च चलाने के लिए नेकलेस गलाना ही पड़ेगा ।"-उसकी आंखें भी यह बुदबुदाते हुए भर आई थीं।
*** रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश
*मोबाइल 99976 15451*
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी--- लॉक डाउन
"ये लीजिये,चाय पी लीजिये,"मीनू ने अखबार पढ़ते हुए सुमित के आगे पड़ी टेबल पर चाय रखते हुए कहा ।सुमित ने मुस्कुराते हुऐ ,"शुक्रिया जनाब" कहा तो मीनू हौले से हँसते हुऐ बोली,"ओहो..क्या बात है ..!आजकल बड़े शुक्रिया अदा करने लगे हो।" "हाँ...बस यूँ ही..आज मन किया कि तुम्हें शक्रिया बोलूँ..!वाहहह!!चाय तो बड़ी अच्छी बनी है..।"सुमित ने चाय पीते हुऐ कहा तो मीनू भी हँसते हुऐ बोली,"हार्दिक आभार आपका जी...."फिर दोनो ही जोर से हँस पड़े।"मीनू रसोई में जाकर नाश्ता बनाने लगी। सुमित को अपने अस्पताल जाने की तैयारी करते देख चिंतित स्वर में बोली,"सुनो अपना ध्यान रखना,कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है,अस्पताल में पता नहीं कैसे कैसे मरीज आते होंगे।""ओके बाबा"मैं अपना पूरा ध्यान रखूँगा,पर तुम और बच्चे घर के भीतर ही रहना,इस महामारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिला है।घर में रहना ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।" "जानती हूँ..।...इसलिये तुम्हारे जाते ही घर में ताला लगा देती हूँ..चलो अब नाश्ता करो...देर हो रही है.।"मीनू ने कहा।
पिछले सात आठ दिन से सुमित के पूरे घर का माहौल ही बदला हुआ सा लग रहा था ।वैसे तो कोरोना के देश में फैलने के कारण मन मस्तिष्क में एक तनाव सा बना हुआ तो था, पर लगता था कि घर में कुछ नयापन सा है।वैसे तो घर में कोई कमी न थी,पर ऐसा माहौल भी पहले कभी न बना था।बात बात पर बच्चों पर झुंझलाने वाली मीनू न जाने कितने समय बाद बच्चों के इतने करीब थी।बच्चे भी खुश थे कि उन्हें माँ के दुलार के साथ प्रतिदिन कुछ नया व्यंजन भी खाने को मिल रहा था। छत पर रखे गमले जो कभी पानी को भी तरस जाया करते थे ,आज मौसमी फूलों से लद गये हैं।जिस स्टोर रुम में कोई सामान न मिलता था,वहाँ भी एक सुघड़ता दिखने लगी थी ।घर के दर्पण जिन्हें वो बदलने की सोच रहे थे,सब चमचमा रहे थे। पूरा घर अनुशासित और व्यवस्थित नज़र आने लगा था ।जिन रुमालों और मौजौं को अथक प्रयास से भी वह कभी ढूँढ न पाता था,वो करीने से उसकी अलमारी में रखे मिलने लगे थे।जो बच्चे हमेशा ऊलूल जुलूल कार्टून देखते थे,वो भी अब दूरदर्शन पर उसी बेसब्री से रामायण के आने की प्रतीक्षा करने लगे थे,जैसे कभी वह अपने बचपन में पूरे परिवार के साथ रामायण देखने की प्रतीक्षा करता था।अभी तक उसे यही लगता था कि आजकल के बच्चे कलयुगी हो गये हैं,और धार्मिकता और भारतीय संस्कृति से विमुख हो गये हैं।पर उन्हें भगवान राम के दुख में दुखी तथा उनके शौर्य पर रोमांचित होते देख,अपना बचपन याद आ गया था।सोच रहा था कि बच्चे नहीं बदले,हम लोगों ने ही कभी सही प्रयास नहीं किया। मीनू एक शिक्षिका थी और घर व बाहर दोनो को अच्छे से निभाने की कोशिश करती थी।सुमित एक सरकारी अस्पताल में डाक्टर था।नौकरी के चक्कर में दोनो चाहते हुए भी कभी अपने परिवार व बच्चों को समय नहीं दे पाये थे।मीनू को गर्मियों व सर्दियों की छुट्टियाँ ज्यादा गरमी और ज्यादा ठंड के कारण कुछ विशेष अच्छी न लगती थीं। हमेशा झुंझलायी रहने वाली मीनू को अब एक अरसे के बाद अपने घर को सँवारने,बच्चों और पति पर अपना स्नेह और प्रेम उडेलने का अवसर मिला था। घर परिवार को एक साथ खिलखिलाता देख नाश्ता करता हुआ सुमित मन ही मन मुस्कुरा उठा और धीरे से बड़बड़ाया, "लाक डाउन इतना भी बुरा नहीं है।"
***मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार नवाज अनवर खान की कहानी ---बदला
चिंटू सड़क पर टहल रहा था तभी अचानक एक तेज़ रफ़्तार कार ने उसे ज़ोरदार टक्कर मार दी। चिंटू लहूलुहान होकर गिर पड़ा और सड़क पर तड़पने लगा। उसके ऊपर से सैकड़ों वाहन गुज़र गये उसे कोई बचाने नहीं आया। करीब 15 मिनट तड़पने के बाद चिंटू ने दम तोड़ दिया।
चिंटू की मौत की ख़बर सुनकर उसके परिवार में कोहराम मच गया क्योंकि दो महीने पहले ही उसके छोटे भाई मिंटू की मौत भी एक तेज़ रफ़्तार बस के नीचे आने से हो गयी थी। जैसे-तैसे चिंटू का अंतिम संस्कार कर दिया गया लेकिन अब उसका परिवार और सब्र नहीं कर सकता था चिंटू के पापा सरपंच शेरा से मिलने उनके घर गए शेरा ने चिंटू की मौत पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।
"आखिर कब तक हमारे बच्चे ऐसे ही मरते रहेंगे कुछ तो करना होगा सरपंच साहब" चिंटू के पापा ने कहा और बहुत देर की वार्तालाप के बाद एक सभा का आयोजन करने का निर्णय लिया गया और शेरा ने गांव में एक सभा करने की घोषणा कर दी। सभा हुई, जिसमें दूर दराज़ के गांवों से आये कुत्तों ने अपनी आपसी रंजिशें भुलाते हुए इस सभा में भाग लिया।
चिंटू के पापा माइक पर आये और उन्होंने बोलना शुरू किया- आख़िर कब तक वफ़ादारी दिखाएंगे हम लोग, कब तक चिंटू और मिंटू की तरह ऐसे अपनों को खोतें रहेंगे, ऐसे चुपचाप बैठकर अपनों की मौतें कब तक देखें, कब तक... अगर हमने अब कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो हमारे अपने ऐसे ही हमें छोड़कर जाते रहेंगे आज मिंटू, कल चिंटू, फिर कोई और....हमारी जाति ही खत्म न हो जाये मुझे तो अब यह डर भी सता रहा है। क्या कुछ नहीं करते हम इंसानों के लिए रात-रात भर जागते हैं कि कहीं इनके घरों में कोई बाहरी न घुस जाये फिर भी इनके बच्चे हम पर ईंटे मारते हैं, इन्हें गुस्सा आता है तो कभी भी डंडा मार देते हैं। अभी पीछे चिंटू की माँ को तेज़ का ज़ुकाम था वो दवाई के लिए भटक रही थी अचानक एक इंसानी बच्चे ने उसपर पानी डाल दिया क्या यह अन्याय नहीं है, क्या ज़ुकाम इनको ही होता है, क्या हम लोग बस इनके अत्याचार सहने के लिए बने हैं?
चिंटू के पापा भावुक हो गए और मंच पर ही रो पड़े, खुद सरपंच शेरा ने आकर उन्हें संभाला और ज़मीन पर बिठाया।
शेरा ने माइक सँभालते हुए कहा- अब वक्त आ गया है हम लोग अपनी आपसी रंजिशें भुला दें और अपने परिवारों की हिफाज़त के लिए कुछ बड़ा कदम उठाएं। शेरा ने आगे कहा कि अगर किसी के पास कोई सुझाव है तो वह माइक पर आकर सबको बताये।
कुछ गांव के कुत्तों का कहना था कि इंसान जहां कहीं भी दिखे उसको लपककर काट लो और उसका इतना मांस नोंच लो की वह मर जाये। लेकिन शेरा ने कहा कि हम भी अगर इंसानों की तरह ही बेगुनाहों की जान लेंगे तो उनमें और हम में क्या फ़र्क रह जायेगा।
कुछ कुत्तों ने इंसानी घरों में घुसकर लूटपाट करने की सलाह दी। वह कह रहे थे की इंसानों के घर में जो भी रखा हो उसे मुँह में दबाकर ले आओ चाहे वह खाने का न भी हो, अगर खाने का न हो तो उसको सड़क पर व्यर्थ कर दो और इंसानों का खूब नुकसान करो।
हालांकि कुछ बूढ़े कुत्ते यह भी कह रहे थे की हमें खुद ही अपने बच्चों का ख्याल रखना चाहिए, उन्हें सड़क तक जाने ही न दो जो कोई इंसान उन्हें रौंदकर चला जाये।
बहुत सारे कुत्तों ने अपने-अपने सुझाव दिए लेकिन सरपंच शेरा कोई ऐसी तकनीक की खोज कर रहे थे जिससे इंसानी क़ौम को साफ-साफ पता चल जाये की अब कुत्ते खामोश नहीं बैठेंगे और वह उनसे बदला ले रहे हैं। सरपंच शेरा की मंशा थी की हम ज़्यादा आतंक भी न मचाएं और इंसानों को सबक भी सिखा दिया जाये। वह दूरदर्शी थे उन्हें पता था कि अगर कुत्ते इस प्रकार के किर्याकलाप करेंगे जो सुझाव दिए गए हैं तो इंसानों को गुस्सा भी आएगा और कुत्तों पर होने वाले अत्याचार और ज़्यादा बढ़ जाएंगे।
अंततः शेरा ने एक नई तकनीक खोज ली और देखते ही देखते हज़ारों की तादाद में कुत्ते शांतिपूर्वक सड़कों पर उतर आये। सारे मुख्य मार्गों को कुत्तों ने अपने कब्ज़े में ले लिया। भौं-भौं की आवाज़ें आसमान को छूने लगीं। कुत्तों के सड़कों पर उतर आने से सारा ट्रैफिक जाम हो गया। पुलिस अफसरों ने कुत्तों को सड़कों से भगाने की खूब कोशिश की लेकिन जैसे ही कोई पुलिस वाला कुत्तों के करीब आता, बहुत सारे कुत्ते उससे लिपट जाते और काट लेते तो पुलिस वालों की हिम्मत भी नहीं हो रही थी की वह उनके नज़दीक जाएँ। वह गोली भी नहीं चला सकते थे क्योंकि हज़ारो कुत्तों की भीड़ में सबको तो मारा नहीं जा सकता था।
पुलिस कमिश्नर ने फौरन कुत्तों की भाषा समझने और कुत्तों को उनकी भाषा में ही समझाने वाली टीम को बुला लिया। वह टीम पूरी तैयारी के साथ आई उन अफसरों के कपड़ों पर कुत्ते नहीं काट सकते थे।
जैसे ही उनका अधिकारी कुत्तों की तरफ बढ़ा कुत्ते भी उसे काटने के लिए दौड़े लेकिन वह काट नहीं पाए। बार बार कई कुत्ते काटने का प्रयास कर रहे थे लेकिन काट नहीं पा रहे थे।
यह देखकर शेरा समझ गया कि यह कोई इंसानी अधिकारी है और उसने सारे कुत्तों को एक किनारे होने का आदेश दिया।
अब सारे कुत्ते सड़क के किनारे हो गए और गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए बीच में सिर्फ़ उस टीम के अधिकारी, सरपंच शेरा और चिंटू-मिंटू के मम्मी-पापा थे।
उन्होंने भौंक-भौंककर और रो-रोकर अपनी बात कहना शुरू की और चिंटू-मिंटू की मौत के बारे में अधिकारी को सारी बात बताई। अधिकारी ने उनकी समस्या सुनकर उनकी भाषा में समझाना शुरू किया और इंसानी कानूनों में सुधार होने की बात कही और शेरा व बाकी सारे कुत्तों को उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया और उनसे सड़क से हट जाने की विनती की। शेरा के आदेश पर सब कुत्ते अपने-अपने गांवों को लौट गए। फिर कभी किसी इंसानी वाहन ने किसी कुत्ते को नहीं कुचला अगर कोई कुत्ता सामने आ भी जाता तो वाहन चालक एकदम ब्रेक लगा लेते और कुत्तों को भी मरने से बचाने की पूरी कोशिश ऐसे ही करते जैसे इंसानों को बचाने की किया करते थे।
***नवाज़ अनवर ख़ान
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निकट प्रेम वंडर लैंड
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उत्तर प्रदेश, भारत
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