गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी--- लॉक डाउन



"ये लीजिये,चाय पी लीजिये,"मीनू ने अखबार पढ़ते हुए सुमित के आगे पड़ी टेबल पर चाय रखते हुए कहा ।सुमित ने मुस्कुराते हुऐ ,"शुक्रिया जनाब" कहा तो मीनू हौले से हँसते हुऐ बोली,"ओहो..क्या बात है ..!आजकल बड़े शुक्रिया अदा करने लगे हो।" "हाँ...बस यूँ ही..आज मन किया कि तुम्हें शक्रिया  बोलूँ..!वाहहह!!चाय तो बड़ी अच्छी बनी है..।"सुमित ने चाय पीते हुऐ कहा तो मीनू भी हँसते हुऐ बोली,"हार्दिक आभार आपका जी...."फिर दोनो ही जोर से हँस पड़े।"मीनू रसोई में जाकर नाश्ता बनाने लगी। सुमित को अपने अस्पताल जाने की तैयारी करते देख चिंतित स्वर में बोली,"सुनो अपना ध्यान रखना,कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है,अस्पताल में पता नहीं कैसे कैसे मरीज आते होंगे।""ओके बाबा"मैं अपना पूरा ध्यान रखूँगा,पर तुम और बच्चे घर के भीतर ही रहना,इस महामारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिला है।घर में रहना ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।" "जानती हूँ..।...इसलिये तुम्हारे जाते ही घर में ताला लगा देती हूँ..चलो अब नाश्ता करो...देर हो रही है.।"मीनू ने कहा।
पिछले सात आठ दिन से सुमित  के  पूरे घर का माहौल ही बदला हुआ  सा लग रहा था ।वैसे तो  कोरोना के देश में फैलने के  कारण मन मस्तिष्क में एक   तनाव सा बना हुआ  तो था, पर लगता था कि घर में कुछ नयापन सा है।वैसे तो घर में कोई कमी न थी,पर ऐसा माहौल भी पहले कभी न बना था।बात बात पर बच्चों पर झुंझलाने वाली मीनू न जाने कितने समय बाद बच्चों के इतने करीब थी।बच्चे भी खुश थे कि उन्हें माँ के दुलार के साथ प्रतिदिन कुछ नया व्यंजन भी खाने को  मिल रहा था। छत पर रखे गमले जो कभी पानी को भी तरस जाया करते थे ,आज मौसमी फूलों से लद गये हैं।जिस स्टोर रुम में कोई सामान न मिलता था,वहाँ भी एक सुघड़ता दिखने लगी थी ।घर के दर्पण जिन्हें वो बदलने की सोच रहे थे,सब चमचमा रहे थे।  पूरा घर अनुशासित और व्यवस्थित नज़र आने लगा था ।जिन रुमालों  और मौजौं को अथक प्रयास से भी वह कभी ढूँढ न पाता था,वो करीने से उसकी अलमारी में रखे मिलने लगे थे।जो बच्चे हमेशा ऊलूल जुलूल कार्टून देखते थे,वो भी अब दूरदर्शन पर उसी बेसब्री से रामायण के आने की प्रतीक्षा करने लगे थे,जैसे कभी वह अपने बचपन में पूरे परिवार के साथ रामायण देखने की प्रतीक्षा करता था।अभी तक उसे यही लगता था कि आजकल के बच्चे कलयुगी हो गये हैं,और धार्मिकता और भारतीय संस्कृति से विमुख हो गये हैं।पर उन्हें भगवान राम के दुख में दुखी तथा उनके शौर्य पर रोमांचित होते देख,अपना बचपन याद आ गया था।सोच रहा था कि बच्चे नहीं बदले,हम लोगों ने ही कभी सही प्रयास नहीं किया। मीनू एक शिक्षिका थी और घर व बाहर दोनो को अच्छे से निभाने की कोशिश करती थी।सुमित एक सरकारी अस्पताल में डाक्टर था।नौकरी के चक्कर में दोनो चाहते हुए भी कभी अपने परिवार व बच्चों को समय नहीं दे पाये थे।मीनू को गर्मियों व सर्दियों की छुट्टियाँ ज्यादा गरमी और ज्यादा ठंड के कारण कुछ विशेष अच्छी न लगती थीं। हमेशा झुंझलायी रहने वाली मीनू को अब एक अरसे के बाद अपने घर को सँवारने,बच्चों और पति पर अपना स्नेह और प्रेम उडेलने का अवसर मिला था। घर परिवार को एक साथ खिलखिलाता देख नाश्ता करता हुआ  सुमित मन ही मन मुस्कुरा उठा और धीरे से बड़बड़ाया, "लाक डाउन इतना भी बुरा नहीं है।"

‌***मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
‌मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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