सोमवार, 1 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शचीन्द्र भटनागर के 75 मुक्तक------- ये मुक्तक उन के मुक्तक संग्रह "अखंडित अस्मिता" से लिए गए हैं । उनका यह संग्रह हिंदी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ था।H

















:::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘कैफ़ मैमोरियल सोसाइटी’ के तत्वावधान में नौ फरवरी 2014 को साहित्यकार डॉ मीना नकवी के छठे ग़ज़ल-संग्रह ‘जागती आँखें’ का लोकार्पण

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘कैफ़ मैमोरियल सोसाइटी’ के तत्वावधान में नगर निगम के सभागार में  नौ फरवरी 2014 को लोकार्पण-समारोह का आयोजन हुआ जिसमें सुप्रसिद्ध शायरा डा.मीना नक़वी के छठे ग़ज़ल-संग्रह ‘जागती आँखें’ का लोकार्पण मुरादाबाद के पूर्व मेयर डा. एस.टी.हसन, मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी म.प्र. की उप निदेशक श्रीमती नुसरत मेंहदी, डा. हसन अहमद निज़ामी, शायरा श्रीमती अलीना इतरत रिज़वी और संस्था के अध्यक्ष श्री अनवर कैफ़ी द्वारा किया गया। 

     नात-ए-पाक से आरंभ हुए लोकार्पण-समारोह में हिंदी और उर्दू के महानगर मुरादाबाद और बाहर से आए अनेक साहित्यकार- सर्वश्री गगन भारती, नासिर मंसूरी, योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, अशोक विश्नोई, विवेक निर्मल, जाहिद टांडवी, डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’, योगेन्द्रपाल सिंह विश्नोई, शबाब मैनाठेरी, उदय ‘अस्त’, विकास मुरादाबादी, राजीव सक्सेना, डा. जेबा नाज़, डा. जगदीप कुमार, शहाब मुरादाबादी आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन मशहूर शायर डा. मुज़ाहिद फराज़ ने किया।





रविवार, 31 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी रवि प्रकाश द्वारा रामपुर के पत्रकार स्मृति शेष महेंद्र प्रसाद गुप्त की आत्मकथा कृति "मेरी पत्रकारिता के 60 वर्ष" की समीक्षा ----

       अगर श्री कमर रजा हैदरी "नवोदित" का महेंद्र जी से आग्रह नहीं होता तो महेंद्र जी न तो आत्मकथा लिखते और न पुस्तक रूप में उसका प्रकाशन हो पाता । यद्यपि सहकारी युग के लगभग 50 वर्ष के प्रकाशन काल में महेंद्र जी का लेखन हर अंक में सुरक्षित है लेकिन फिर भी अखबार तो अखबार होता है । उसमें जो लिखा होता है ,वह बिखर जाता है और पुस्तक में सारी चीजें सिमटकर एक साथ आ जाती हैं ।
      "मेरी पत्रकारिता के साठ वर्ष "184 पृष्ठ की एक ऐसी पुस्तक है ,जिसमें महेंद्र जी के ईमानदारी से भरे हुए ,त्याग और तपस्या से चमकते हुए जीवन का एक ऐसा ब्यौरा है, जो इतिहास में किसी- किसी के हिस्से में आता है ।
       महेंद्र जी का जन्म 23 अगस्त 1931 को रामपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ तथा मृत्यु 1 जनवरी 2019 को हुई। इस तरह लगभग 88 वर्ष का उनका जीवन उन उदार मूल्यों से प्रेरित रहा जो आज के समाज में न केवल दुर्लभ बल्कि लगभग असंभव ही कहे जा सकते हैं।
         1953 में  वह हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स के साथ संवाददाता के रूप में जुड़ गए और उसके बाद अंग्रेजी के अनेक समाचार पत्रों का उन्होंने संवाददाता के रूप में प्रतिनिधित्व किया। अंग्रेजी संवाद समिति पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) के संवाददाता का उनका दायित्व अंत तक रहा और लगभग 50 वर्ष से अधिक समय तक उन्होंने निरंतरता के साथ इसे निभाया। वह नेशनल हेराल्ड ,टाइम्स ऑफ इंडिया, पायनियर तथा नार्दन इंडिया पत्रिका के संवाददाता रहे । 15 अगस्त 1959 को उन्होंने ऐतिहासिक रूप से रामपुर से *सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक )* का प्रकाशन आरंभ किया और कुछ ही समय में इसे भारत के महत्वपूर्ण साहित्यिक और वैचारिक पत्र के रूप में स्थापित कर दिया ।छह अथवा चार पृष्ठ का यह  हिंदी साप्ताहिक 10 इंच × 15 इंच आकार के खुरदुरे अखबारी कागज पर छपता था । पत्र ने वैचारिक और साहित्यिक पत्रकारिता के एक नए दौर का आरंभ किया तथा कुछ ही वर्षों में रामपुर के छोटे से शहर से निकलकर इसने एक राष्ट्रीय छवि निर्मित कर ली। पत्रकारिता तथा साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन महेंद्र जी का मिशन था । उनका जीवन इसी ध्येय के लिए समर्पित था। प्रकाशन अच्छे ढंग से होता रहे , इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सहकारी युग प्रिंटिंग प्रेस का शुभारंभ 28 अगस्त 1960 को किया और इस तरह लिखना, पढ़ना और छापना महेंद्र जी की आजीविका का साधन भी बनने लगा। प्रिंटिंग प्रेस में उन्होंने न केवल सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक) का प्रकाशन किया बल्कि व्यापार के स्तर पर भी सब प्रकार की छपाइयों के द्वारा अपने परिवार का पालन पोषण किया। व्यापार में उन्होंने ईमानदारी को सर्वोपरि महत्व दिया। प्रिंटिंग प्रेस के झूठे बिल बनवा कर सरकारी दफ्तरों से अधिक पैसे ले लेने का भ्रष्ट आचरण आजादी के बाद आम होने लगा था। महेंद्र जी ने इस मार्ग को स्वीकार नहीं किया ।उन्होंने कमाया कम, लेकिन जितना कमाया उससे उनका खर्च भी चलता रहा तथा स्वाभिमान से उनका सिर भी हमेशा ऊँचा रहा ।
       1945 में जब उनकी आयु लगभग 14 वर्ष की रही होगी, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए । रामपुर में चंद्रसेन की धर्मशाला में संघ की शाखा लग रही थी। "भारत माता की जय" सुनकर बालक महेंद्र धर्मशाला के अंदर चले गए और उन्हें अपनी भावनाओं के अनुरूप एक संगठन मिल गया। वह  उसमें काम करते रहे । फिर जब 1948 में संघ के स्वयंसेवकों को गिरफ्तार करने का कार्य हुआ , तब हँसते-हँसते महेंद्र जी भी जेल गए। जेल में उनके प्रेरणा स्रोत आचार्य बृहस्पति थे, जो बाद में संगीत क्षेत्र में भारत की महान हस्ती बने । इसके अलावा संघ के प्रचारक श्री महेंद्र कुलश्रेष्ठ थे, जिन्होंने बाद में रामपुर से हिंदी के पहले साप्ताहिक "ज्योति"  के संपादक का कार्यभार ग्रहण किया था। जेल में महेंद्र जी को कुर्सी बुनने का कार्य सिखाया गया तथा दो कुर्सी रोजाना बुनने का दायित्व उन पर था ।1947 में उन्होंने वृंदावन में संघ के एक माह का प्रशिक्षण, शिविर में प्राप्त किया । इसमें भी उनके गुरु आचार्य कैलाश चंद्र देव बृहस्पति उनके साथ थे ।(प्रष्ठ 19 , 20 , 22 तथा 26 )
        पत्रकारिता में महेंद्र जी के व्यापक प्रभामंडल के कारण राजनीतिक दल तथा व्यक्ति उनका लाभ उठाने के लिए उत्सुक रहते थे। किसी भी प्रकार से प्रलोभन देकर उनकी लेखनी को अपने पक्ष में कर लेना उनकी इच्छा रहती थी ।लेकिन महेंद्र जी इस रास्ते से हमेशा अलग रहे । प्रलोभन दिए जाने के अनेक अवसर उनके सामने आए, लेकिन बहुत दृढ़तापूर्वक उन्होंने उन्हें अस्वीकार कर दिया। उन्होंने न तो संवाददाता के तौर पर अखबारों को भेजी जाने वाली रिपोर्ट में अपने हस्ताक्षर बेचे और न ही चिकनी मेजों पर फिसलती हुई नोटों की गड्डी पकड़ने की कला उन्हें आई। ( प्रष्ठ 44 से पृष्ठ 54)
        पत्रकारिता के साथ-साथ महेंद्र जी का एक बड़ा योगदान रामपुर में *ज्ञान मंदिर* *पुस्तकालय* की गतिविधियों को सेवा भाव से संचालित करना भी रहा है। इसके लिए उनका एक बड़ा योगदान यह रहा कि मिस्टन गंज  के चौराहे पर वर्तमान में पुस्तकालय जिस जमीन पर बना हुआ है ,वह जमीन उन्होंने अपने प्रभाव से ज्ञान मंदिर के नाम कराई थी। उस समय *रामपुर के जिलाधिकारी श्री शिवराम सिंह* थे। उन्होंने महेंद्र जी से कहा कि आवंटन की संस्तुति शासन को भेजने से पहले मैं चाहता हूँ ,यह संपत्ति तुम्हारे नाम अलाट करने के लिए शासन से प्रयास पूर्वक आग्रह करूँ। महेंद्र जी ने उनसे कहा कि ज्ञान मंदिर को यह भवन देकर आप मुझ पर उपकार करें। इस पर कलेक्टर ने समझाया कि लोग तुम्हारी इस त्यागी प्रवृत्ति को आने वाले समय में बिल्कुल भूल जाएँगे । लिहाजा मेरा परामर्श मानकर अपने नाम से आवंटन का प्रार्थना पत्र दे दो । लेकिन महेंद्र जी नहीं माने और उन्होंने वह संपत्ति प्रयत्न पूर्वक ज्ञान मंदिर के नाम ही कराई ।(पृष्ठ 55 तथा 56 )
      पत्रकार के नाते महेंद्र जी की अविस्मरणीय मुलाकातें  सर्व श्री अटल बिहारी वाजपेई ,चेन्ना रेड्डी,एस.निजलिंगप्पा, देवराज अर्स, नारायण दत्त तिवारी, चंद्रभानु गुप्त तथा बाबू जगजीवन राम आदि के साथ रहीं। उन्होंने शास्त्रीय संगीत गायिका नयना देवी तथा नृत्यांगना उमा शर्मा के साक्षात्कार भी लिए। प्रसिद्ध पार्श्व गायक मुकेश से भी आपने साक्षात्कार लिया ।
          साहित्य जगत के शीर्ष स्तंभ सर्वश्री डॉ लक्ष्मीनारायण लाल ,विष्णु प्रभाकर, उमाकांत मालवीय आदि का  प्रशंसा - प्रसाद आपको प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध क्रांतिकारी मन्मथ नाथ गुप्त से आप की निकटता थी । समाजवादी नेता तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल के प्रेरणादायक संस्मरण आपने पुस्तक में लिखें हैं।  सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक) के प्रकाशन के लंबे दौर में आपकी निकटता कविवर सर्व श्री गोपाल दास नीरज ,भारत भूषण  डा.बृजेंद्र अवस्थी, डॉ उर्मिलेश ,डा.मोहदत्त साथी ,गोपी वल्लभ सहाय आदि अनेकानेक कवि सम्मेलन के मंचों के लोकप्रिय कवियों से हो गई थी।( पृष्ठ 84 )
       यह आपके ही व्यक्तित्व का प्रभाव था कि 1986 में आपने इन पंक्तियों के लेखक की पुस्तक " रामपुर के रत्न" के विमोचन के लिए प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर को रामपुर आमंत्रित किया और विष्णु प्रभाकर जी दिल्ली से रामपुर केवल "रामपुर के रत्न" पुस्तक का लोकार्पण करने के लिए पधारे। (प्रष्ठ 78-81)
     आत्मकथा का एक अध्याय  रामपुर के  तमाम जिलाधिकारियों के  संस्मरण  प्रस्तुत करने से संबंधित है । इसमें  उन जिलाधिकारियों को  जिस रूप में महेंद्र जी ने देखा परखा  और उनका आकलन किया , उसका सुंदर रेखाचित्र  शब्दों से  खींचकर उपस्थित कर दिया है । इससे उच्च प्रशासनिक क्षेत्रों में महेंद्र जी को मिलने वाले महत्व तथा आदर - सम्मान का भी पता चलता है
            कुल मिलाकर महेंद्र जी का जीवन सात्विक विचारों की ऊष्मा से संचालित था। कलम उनके लिए जीवन की साधना का प्रतीक बन गई थी ।समाज में जिन कुछ गिने-चुने लोगों को सच्चाई और ईमानदारी जिंदगी की सबसे बड़ी पूँजी नजर आती है, महेंद्र जी ऐसे अपवाद स्वरूप व्यक्तियों में से थे । उनकी आत्मकथा पढ़ने योग्य है।
 




** कृति   : मेरी पत्रकारिता के साठ वर्ष
**लेखक  : महेंद्र प्रसाद गुप्त
**प्रकाशक : उत्तरा बुक्स  बी-4/  310सी,               केशवपुरम ,दिल्ली  110035
**प्रथम संस्करण 2016
**कुल प्रष्ठ 184 **मूल्य ₹395
**समीक्षक: रवि प्रकाश
  बाजार सर्राफा
 रामपुर (उत्तर प्रदेश)
 मोबाइल फोन नंबर 99 97 61 545 1

मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी की दो कविताएं-----" घोड़ी ने दूल्हे को सूंघा" और "पुल चटक गया"


मुरादाबाद के साहित्यकार उदय अस्त की पन्द्रह ग़ज़लें---- ये ग़ज़लें उनके ग़ज़ल संग्रह "बुनियादों का कर्ज" से ली गई हैं। उनका यह ग़ज़ल संग्रह विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2014 में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में उनकी 112 गजलें हैं ।

















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डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता ----लॉक डाउन में पिसतीं महिलाएं


🎤✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 30 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दिग्गज मुरादाबादी की बाल कविताएं ---- ये कविताएं ली गई हैं राजीव सक्सेना की कृति " समय की रेत पर" से ।उनकी यह कृति सागर तरंग प्रकाशन द्वारा वर्ष 2006 में प्रकाशित हुई थी ।



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डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता "अंक" की दस ग़ज़लें और उन पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा ----


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक ग्रुप  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' माध्यम से 28/29 मई 2020 को ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा की गई जिसमें 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत युवा साहित्यकार अंकित गुप्ता "अंक"  की गजलों पर स्थानीय साहित्यकारों ने  विचारों का आदान प्रदान किया। सबसे पहले अंकित गुप्ता "अंक" द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं
*(1)*
किसी को इश्क़ में हासिल हुआ है क्या
मगर इसके बिना जग में रखा है क्या

हक़ीक़त में तुम्हें पाना है नामुमकिन
तो सपने देखना भी अब ख़ता है क्या

हर इक शै में तो तुम भी हो नहीं सकते
मुझे इस बात का धोखा हुआ है क्या

सवेरे से बहुत बेजान सी है धूप
उदासी आपकी इसको पता है क्या

बहुत मुद्दत से ख़ुद को ढूँढता हूँ मैं
तुम्हें मुझसा कहीं कोई मिला है क्या

मिरे बारे में दुनिया कुछ कहे लेकिन
मिरा अच्छा-बुरा तुमसे छुपा है क्या

तनावों के हैं दिन, तन्हाइयों की रात
नई तहज़ीब में इसके सिवा है क्या

*(2)*
फूल,  ख़ुशबू, तितलियाँ,  बादे-सबा कुछ भी नहीं
आपके बिन ज़िंदगी में अब बचा कुछ भी नहीं

कर लिया ऐसे मुक़य्यद ख़ुद को उसके प्यार में
सोचकर उसको मुझे अब सोचना कुछ भी नहीं

मौत आए तो ज़रा आज़ादियों की रह खुले
ज़िंदगी तो क़ैदख़ाने के सिवा कुछ भी नहीं

आपके जाने से दिल का गाँव वीरां हो गया
यों जला कुछ भी नहीं लेकिन बचा कुछ भी नहीं

इक हवा ज़ुल्फ़े-परीशां आपकी सुलझा गई
आप धोखे में हैं मैंने तो किया कुछ भी नहीं

आँख बंद करता हूँ तो दिखती नहीं नाकामियाँ
जाग जाने से बड़ी अब बददुआ कुछ भी नहीं

*(3)*
ये  जो  तुझसे  दूर  हूँ  मैं
थोड़ा-सा  मजबूर  हूँ  मैं

सुब्ह, ज़रा-सा सब्र तो कर
ख़ाब में उनके चूर हूँ मैं

तेरी नज़र में कुछ न सही
अपनी नज़र में तूर हूँ मैं

बज़्मे-रक़ीब में मेरा ज़िक्र
क्या इतना मशहूर हूँ मैं

मैं हालात का  मारा  हूँ
तुमको लगा मग़रूर हूँ मैं

रोज़ मिलूँ नींदों के पार
फिर तुझसे कब दूर हूँ मैं

अंदर आँसू का सैलाब
बाहर से मसरूर हूँ मैं

*(4)*
यूँ भी सफ़र का लुत्फ़ उठाया जा सकता है
हर मंज़िल को राह बनाया जा सकता है

तुमसे दिल का रोग लगाया जा सकता है
मन को ऐसे भी बहलाया जा सकता है

आओ, बैठें, बात करें, रिश्ते सुलझाएँ
चुप्पी से बस बैर बढ़ाया जा सकता है

माना हमसे खुलकर मिलना है अब मुश्किल
पलकोंं के उस पार तो आया जा सकता है

देखूँ हूँ जब तुमको अकसर सोचूँ हूँ मैं
क्या ऐसा गौहर भी बनाया जा सकता है

फिर से ये अरमां जागे हैं तुमसे मिलकर
फिर से कोई ख़ाब सजाया जा सकता है

जब हम ही आधी कोशिश करके हारे तो
क़िस्मत पर क्या दोष लगाया जा सकता है

*(5)*
मेरा बिगड़ा हुआ हर काम बना करता है
कोई तो है जो मेरे हक़ में दुआ करता है

झिड़कियाँ बाप की और माँ का दुलारा करना
ये वो सरमाया है जो कुछ को मिला करता है

मुझे तन्हाइयों की धूप का डर कुछ भी नहीं
तेरी यादों का शजर साथ चला करता है

कब टिकता है बुरा वक़्त ज़ियादा दिन तक
सूखे पेड़ों को कोई फिर से हरा करता है

ये तो है अश्क छुपाने का तरीक़ा वर्ना
कौन इस दौरे-परेशां में हँसा करता है

ज़िंदगी किसके चले जाने से रूकती है यहाँ
हर एक  रात ये बाज़ार सजा करता है

*(6)*
उन्हें हर बात मेरी भा रही है
ख़ुदाई नेअमतें बरसा रही है

वो अब जो देखता है मुस्कुरा कर
मुझे उम्मीद बँधती जा रही है

भरे बाज़ार के इन क़हक़हों में
'ख़मोशी उँगलियाँ चटख़ा रही है'

दिखे हुब्बुल-वतन पर भी सियासत
ये 'आज़ादी' कहाँ ले जा रही है

चला है ज़िक्र महफ़िल में मेरा और
तेरे चेहरे पे' रंगत आ रही है

तुझे नफ़रत है मुझसे मान तो लूँ
तेरी सूरत तुझे झुठला रही है

मैं वो हिन्दोस्तां हूँ ठीक से देख
रवादारी मेरा विरसा रही है

ज़रा पेचीदगी रख शख़्सियत में
ये आसानी मुझे उलझा रही है

*(7)*
दुख से यारी कर लो तुम
जीवन भारी कर लो तुम

मर्द से आगे वो निकली
फ़तवे जारी कर लो तुम

मन है चंचल, भटकेगा
पहरेदारी  कर लो तुम

सच से, वफ़ा से तुमको क्या
'दुनियादारी' कर  लो  तुम

होगा जल्द हिसाबे-ज़ुल्म
बस तैयारी कर लो तुम

'अंक' लगाके प्यार का रोग
रातें भारी कर लो तुम

*(8)*
रूह की तह को छुए,  दिल की ज़ुबां तक पहुँचे
ऐसा कोई तो हो जो दर्दे-निहां तक पहुँचे

बस ज़रा वक़्त ही में सुब्ह हुई जाती है
पंछी धूप के पैरों के निशां तक पहुँचे

मैं तो बैठा हूँ मज़ारों पे' वफ़ा की अब तक
ज़रा अपनी भी कहो आप कहाँ तक पहुँचे

तेरे जीवन में ख़ुदा इतनी मसर्रत भर दे
कभी उसमें न मेरी आहो-फ़ुग़ां  तक पहुँचे

अहले उल्फ़त तो इशारों को समझ लेते हैं
क्या ज़रूरी है जो दिल में है ज़ुबां तक पहुँचे

हमने भर दी है बहरहाल मुहब्बत में उड़ां
देखिए नन्हा परिन्दा ये कहाँ तक पहुँचे

सोचती रहती है हर दौर की ग़ज़लों की शुआअ
किस तरह 'मीर' के उस ऊँचे मकां तक पहुँचे

*(9)*
ख़ुद ही को इस तरह से सज़ा दे रहा हूँ मैं
दुश्मन को ज़िंदगी की दुआ  दे रहा हूँ मैं

अबकी न होगी चूक मेरे क़त्ल में कोई
क़ातिल को फिर से घर का पता दे रहा हूँ मैं

मिलने की चाह में तुम्हें रुसवाई का है डर
आओ के आफ़ताब बुझा दे रहा हूँ मैं

यादों की गर्द ओढ़ के राहों में इश्क़ की
तुझ संग बीते पल को सदा दे रहा हूँ मैं

पहलूए- मौत जिस्म ज़रा चैन से रहे
लो, ज़िंदगी की छाँव बिछा दे रहा हूँ मैं

तेरी अना की रात मिटाने के वास्ते
फिर-फिर वफ़ा के दीप जला दे रहा हूँ मैं

*(10)*
ज़रा ज़िंदगी का नज़रिया बदलिए
कभी तो किताबों से बाहर निकलिए

मज़ा लीजिए ज़िंदगी का मुसलसल
अना भूलकर बारिशों में टहलिए

मोहब्बत की राहें बड़ी आत्शी  हैं
सँभलिए, सँभलिए, सँभलिए, सँभलिए

ये दिल आपका शर्तिया होगा रौशन
कभी शम्अ की सम्त इक बार जलिए

रिवायत की बेड़ी न रस्मों के बंधन
मैं पगली पवन हूँ मेरे साथ चलिए

यहाँ अब भी रुककर अदब का चलन है
दयारे-ग़ज़ल से ठहर कर निकलिए

जवानी की रुत तो सँभलने की रुत है
ये किसने कहा है इसी में फिसलिए।
      अंकित की इन ग़ज़लों पर विचार व्यक्त करते हुए प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "अंकित ने गीत, दोहे, ग़ज़लें आदि सभी रूपों में लिखा है। उनमें अपने समकाल की आहटों को बुनने की कोशिश की है।"
     विख्यात व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "अंक की ग़ज़लों में कथ्य मज़बूत है। अंक में रचनात्मकता भरी हुई है तथा क्षमताओं की भी कोई कमी नहीं है"।
     वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि "अंकित की ग़ज़लों में कहने का सलीका भी है और कहन के साथ प्रकृति से मनुष्य का भावात्मक रिश्ता जोड़ने की सफल कोशिश भी है।"
      मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि "अंकित ने कम उम्र में ही साहित्य के बड़े कैनवास पर शब्दों के मनभावन रंगों से ग़ज़ल के इंद्रधनुषी चित्र अंकित किए हैं"।
      वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि "अंकित के कथ्य में जहां नयापन है वहीं उनका शिल्प भी काफी मजबूत है"।
      नवगीत कवि योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि "यहां प्रस्तुत अंकित की ग़ज़लें परंपरागत मिज़ाज की ग़ज़लें हैं। उनकी ग़ज़लों में इश्क़ और महबूब की बात बहुत सलीक़े से कही गई है।"
     वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "प्रस्तुत ग़ज़लों से ऐसा लगता है कि अंकित गुप्ता अंक स्वयं को एक ग़ज़लकार के रूप में स्थापित करना चाहते हैं"।
      युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि "प्रतीकों बिंबो उपमानों को नए तरीके से प्रस्तुत करना अंकित की वह खूबी है जो बड़े शायरों में भी ढलती उम्र में ही दिखाई देनी शुरू होती है"।
     युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "अंकित गुप्ता अंक की ग़ज़लें कहीं न कहीं अंतर्मन को स्पर्श अवश्य करती हैं और उनका उत्कृष्ट व्यक्तित्व उनकी रचनाओं में भी झलकता है।"
    युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि "अंकित में असीमित इमकानात मौजूद हैं खासकर इसलिए क्योंकि वह एक बढ़िया लर्नर और बहुत संजीदा क़ारी हैं"।
    युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि "अंकित जी की ग़ज़लों में कहन प्रभावी है। कई शेर स्तरीय हैं और लगता है कि अंकित जी के कदम सही राह पर हैं"।
    युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि "यहां प्रेषित सभी ग़ज़लें अंकित जी के अध्ययन को प्रमाणित करती हैं। कुल मिलाकर अंकित अंक एक संभावनाशील और प्रेरक रचनाकार हैं"।
     ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "नौजवान शायर होने के बावजूद अंकित का इश्क़ बड़ा ठहराव लिए हुए है। यह उसकी शख्सियत का हिस्सा है। वो जिंदगी और शायरी दोनों में बहुत शालीन है।"

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✍️  ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मोबाइल- 8755681225

मुरादाबाद के साहित्यकार सतीश फिगार की 11 गजलें ----- यह गजलें उनके काव्य संग्रह "कसक" से ली गई है । यह संग्रह वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ था ।













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डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
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