रविवार, 6 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के दस नवगीत


(1)

मुड़ गये जो रास्ते चुपचाप 

जंगल की तरफ ।


ले गये वे एक जीवित भीड़ 

दलदल की तरफ ।


आहटें होने लगीं सब 

चीख में तब्दील

 है टंगी सारे घरों में 

दर्द की कन्दील


मुड़ गया इतिहास फिर 

बीते हुये कल की तरफ ।


हैं खड़े कुछ लोग उस 

अंधे कुंये के पास 

रोज जिससे है निकलती

 एक फूली लाश


फैंक देते हैं उठाकर जिसे 

हलचल की तरफ ।


(2)

एक अराजक संशय में 

घिरे हुये हैं सब 

रंगों से, ध्वनियों से भरे हुये लोग । 


भरी-भरी आंखों से 

पेड़ को निहारते 

बार-बार रिश्तों का 

नाम ले पुकारते


आंधी में 

पत्तों से 

झरे हुए लोग ।


संवेदनशून्य हुई 

खाली आकृतियां 

आसपास घूम रहीं 

काली आकृतियाँ


बैठे हैं 

चिड़ियौ से

डरे हुए लोग ।


(3)


अक्सर हम

तनहा होते हैं जब 

एक प्रश्न बार-बार 

खुद को दुहराता है। 


पंजों में दाब कर 

हवा उड़ती 

जली हुई चमड़ी की गन्ध 

रोक नहीं पाते हैं उसे 

इत्र में डूबे 

रूमालों वाले ये 

अनगिन प्रतिबन्ध


कौन हमें 

चूल्हे की आंच में 

जिन्दा खरगोश सा पकाता है ।


अपनी ही 

आन्तरिक हिफाजत में 

हो जाते हैं हम सब कैद 

लट्ठे के थान सा 

धुला हुआ 

लगता आकाश यह सफेद


तेज आँच में 

सारी हड्डियाँ तड़कती हैं 

कौन इस तरह हमको

भीड़ में बजाता है ।


(4)


कुछ नहीं है, 

बाँझ सी यह हवा 

बैठी डाल पर टांगें हिलाती है।


एक कोई बात थी 

जो अभी कौवे के गले से 

फूट कर निकली 

कर रही है वह तभी से 

पत्तियों के कान में 

बारीक सी चुगली


पंख खोले धूप में कब से 

एक गौरैया नहाती है ।


बोलते कुछ भी नहीं है 

ताल के तट पर 

पड़े घोंघे 

न जाने किन खूंटियों के 

आसरे

पेड़ है : आकाश में

लटके हुए चोंगे 


एक मछली डूब कर गहरे 

फिर सतह पर लौट आती है।


(5)

मेरे भीतर एक अभंग 

जगाता है कोई


बतियाता है 

हल्के सुर में 

उठती जैसे 

ध्वनि नूपुर में 

मेरे अंग-अंग में बैठा 

गाता है कोई


अब अनहद का 

स्वर हूं केवल 

लगता स्वर ही 

स्वर हूं केवल 

स्वर के कपड़े लाकर मुझे 

पिन्हाता है कोई।


(6)


आसपास 

जंगली हवाएँ हैं,

 मैं हूँ।

पोर-पोर 

जलती समिधाएँ हैं 

मैं हूँ।


आड़े-तिरछे 

लगाव 

बनते आते 

स्वभाव 

सिर धुनतीं 

होठ की ऋचाएँ हैं

 मैं हूँ।


अगले घुटने 

मोड़े 

झाग उगलते 

घोड़े 

जबड़ों में 

कसती वल्गाएँ हैं 

मैं हूँ।


(7)

हम पसरती आग में 

जलते शहर हैं।


एक बिल्ली 

रात भर चक्कर 

लगाती है 

और दहशत 

जिस्म सारा 

नोच जाती है 


हम झुलसते हुए 

वारूदी सुरंगों के 

सफर हैं।


कल उगेंगे 

फूल बनकर हम 

जमीनों में, 

सोच को 

तब्दील करते 

फिर यकीनों में


आज तो 

ज्वालामुखी पर 

थरथराते हुए घर हैं।


(8)


घर न रह गए 

अब, घर जैसे 

जीवन के हरियालेपन पर 

उग आए हों 

बंजर जैसे।


रिश्तों की 

कोमल रचनाएँ 

हमको अधिक 

उदास बनाएँ


दादी वाली 

किस्सागोई 

शापग्रस्त है 

पत्थर जैसे।


बाहर हँसते 

भीतर रोते 

नींद उचटती 

सोते-सोते 


शब्द बने परिवार 

टूटकर 

बिखर रहे हैं 

अक्षर जैसे।


कोने-कोने 

लहू-लहू है 

जलते चमड़े की 

बदबू है


संज्ञाएँ उड़ रहीं

 हवा में 

चिड़ियों के 

टूटे पर जैसे।


(9)

खुद से खुद की 

बतियाहट 

हम, लगता भूल गए।


डूब गए हैं 

हम सब इतने 

दृश्य कथाओं में 

स्वर कोई भी 

बचा नहीं है 

शेष, हवाओं में 


भीतर के जल की 

आहट

 हम, लगता भूल गए।


रिश्तों वाली 

पारदर्शिता लगे 

कबंधों-सी 

शामें लगती हैं 

थकान से टूटे 

कंधों-सी


संवादों की 

गरमाहट 

हम, लगता भूल गए।


(10)


इस रेतीले मौसम में 

धारदार कोई तो हो


सिर से पाँवों तक 

नहला दे 

मूर्छित विश्वासों वाले पठार 

ढक जायें 

आकर हाथों से 

सहला दे 

पातहीन डालों की भीड़ में 

हरसिंगार कोई तो हो


उलझे बालों में 

कंघी जैसा 

फँसा रहे 

तार-तार सुलझाने तक 

खिंचा रहे 

क्षितिजों पर 

इन्द्रधनुष 

अगली ऋतु आने तक 

अपने में अपने को 

ढूँढता बार-बार

कोई तो हो। 


:::::प्रस्तुति::::;

 डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822


मुरादाबाद

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी का गीत ..दर्द के मन्त्र बाँचे!

 क्लिक कीजिए

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 

ऊँघती सी याद की दहलीज पर टिक शाम,

 दर्द के मन्त्र बाँचे!


क्योँ अचानक नेह ने करवट बदल कर।

तोड़ डालीं वर्जनायें सब मचल कर।।

 सुप्त मन के अतल में  विस्मृत हुआ सा नाम,

  दर्द के मन्त्र बाँचे!


भावनाओं ने भुला दीं वंचनायें।

कामना विधि से करे कुछ मंत्रणायें।

आस ऐसी बावरी है छोड़ कर हर काम,

 दर्द के मन्त्र बाँचे!


है उदित विश्वास का नूतन सवेरा।

क्योँ इसे घेरे कुशंका का अंधेरा।।

क्यों व्यथा गहरी बनाये फिर हृदय को धाम,

दर्द के मन्त्र बाँचे!


🎤✍️ डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ......जमाना बदल गया

 


हरप्रसाद जी अपने पुत्र को कुछ इस प्रकार समझा रहे थे "बेटा! तुम बेकार ही ब्रांडेड जूतों का शोरूम या रेडीमेड कपड़ों का शोरूम खोलने की जिद पर अड़े हुए हो। मेरी तो यही राय है कि इंटर कॉलेज खोलकर मान्यता ले लो। इस समय सबसे अच्छा मुनाफे का काम यही है।"

         " पिताजी! मेरी शिक्षा क्षेत्र में कोई रुचि नहीं है। वैसे भी मैंने रो-झींककर इंटर पास किया है। इंटर कॉलेज खोलते हुए क्या अच्छा लगेगा ?"-पुत्र रमेश ने बुझे हुए मन से अपने पिताजी को जवाब दिया ।

              " बेटा इसमें अच्छा-बुरा लगने की क्या बात है ? अध्यापक बनने के लिए योग्यता जरूरी है लेकिन विद्यालय खोलने के लिए किसी कानून में न्यूनतम योग्यता कहॉं लिखी हुई है? इंटर पास कर लिया, अच्छी बात है।फेल होकर भी खोल लेते तो कौन रोकने वाला था ? बात बिजनेस की है। मेरी बात को समझो। इंटर कॉलेज खोलने से ज्यादा मुनाफेदार काम दूसरा कोई नहीं है ।"

          लेकिन पिताजी! जूतों का शोरूम भी तो अच्छा रहेगा ?"- रमेश हार नहीं मान रहा था। वास्तव में उसकी दिलचस्पी स्कूल खोलने-चलाने में नहीं थी। पढ़ाई से हमेशा चार कोस दूर भागता रहा था। अब पढ़ने-पढ़ाने के झमेले में वह भला क्यों पड़ने लगा।

        " देखो बेटा! शोरूम खोलने के लिए तुम्हें मेन रोड पर बढ़िया-सी दुकान खरीदनी पड़ेगी। खर्च बहुत बड़ा होगा। ब्रांडेड कोई भी दुकान खोलो ! जूतों की, कपड़ों की, ज्वेलरी की, महंगे आइटम, दुकान में रखे हुए सामान की कीमत; यह सब धनराशि का जुगाड़ करना काफी मुश्किल बैठेगा। फिर यह भी है कि बिजनेस चले न चले। दूसरी तरफ इंटर कॉलेज खोलने के लिए हमारे पास जमीन ही जमीन है। उसी में से एक छोटी-सी जमीन पर खोल दिया जाएगा। जितने कमरे बनवाने जरूरी होंगे, बनवा लेंगे। धंधा चल निकलेगा तो काम को बढ़ाते रहेंगे।"- हर प्रसाद जी ने अपने पुत्र को योजना के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए तो रमेश को भी इंटर कॉलेज खोलने की योजना में दिलचस्पी होने लगी।

            " एक बात है पिताजी ! मैंने तो पढ़ा था कि विद्या दान का विषय है, व्यापार का नहीं है?"

                   पुत्र के मुख से यह बात सुनकर हरप्रसाद जी गंभीर हो गए। बोले " यह सब किताबों की बातें हैं। जो तुमने इंटर तक पढ़ा, उसे भूल जाओ। अब दुनिया को साक्षात देखो। विद्या दान का विषय नहीं है। विद्या पैसा कमाने या धंधे का विषय है। चारों तरफ मुंह उठा कर देखो ! इससे अच्छा बिजनेस कोई नहीं है। फिर इस क्षेत्र में कोई रोक-टोक भी तो नहीं है । जितनी चाहे फीस लो, जैसे चाहे खर्च करो।"

       " लेकिन सरकार का हस्तक्षेप भी तो कुछ होता होगा ?"

               - पुत्र के मुंह से सुनकर हरप्रसाद जी इस बार गंभीर नहीं हुए बल्कि खिलखिला कर हंसने लगे। उनकी हॅंसी में अट्टहास था। भयावहता और वीभत्सता थी। कहने लगे -"पचास-बावन साल से तो हम देख रहे हैं। धड़ाधड़ इंटर कॉलेज तो क्या डिग्री कालेज तक पैसा कमाने के लिए खुल रहे हैं। सरकार ने रत्ती-भर उन पर कोई नियंत्रण नहीं बिठाया।"

                 पिता की बातें सुनकर पुत्र आनंदित होकर बोला "जब पचास साल से इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज पैसा कमाने के लिए ही खुल रहे हैं और सरकार उनकी तरफ टेढ़ी आंख करके देखने का साहस नहीं कर पा रही है तो इससे अच्छा बिजनेस और क्या हो सकता है ? ठीक है पिताजी! आप अपनी जमीन के एक हिस्से पर इंटर कॉलेज खोलने की शुरुआत कीजिए । सचमुच आजादी के बाद के पिचहत्तर वर्षों में जमाना बदल गया"।

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सराफा

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 2 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर की ग़ज़ल .... घर के बाहर तो बस ताले लग जाते हैं ....

 क्लिक कीजिए

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 



मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर की ग़ज़ल ..... भला कौन नजर आ गया है ...

 क्लिक कीजिए

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम का गीत .... तनिक कड़वाहट आंखों से आंचल तक आए

 क्लिक कीजिए

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम का गीत ... किंतु पावन हूं

 क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️



सोमवार, 31 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता अंक के सात दोहे....


हिन्दी-उर्दू में चले, अगर अदब की बात

 प्रेमचन्द के नाम से,  ही होगी शुरुआत ।।1।।


परियों-जिन्नों से किया, कहानियों को मुक्त 

प्रेमचन्द ने सब रचा,निज अनुभव से युक्त ।।2।।


जो रचकर 'सोज़े-वतन', छेड़ दिया संग्राम

अंग्रेज़ों के भाल पर, बल पड़ गए तमाम ।।3।। 


इस समाज का हूबहू, गए चित्र वे खींच

अब भी 'होरी' मर रहे, घोर अभावों बीच ।।4।।


'होरी', 'घीसू', 'निर्मला', ये जो रचे चरित्र  

 इस समाज का वास्तविक, प्रस्तुत करते चित्र ।।5।। 


बापू जब आगे बढ़े, लेकर क्रांति-मशाल

खड़े हुए संग्राम में,  प्रेमचन्द तत्काल ।।6।।


प्रेमचन्द की ज़िन्दगी,  बीती बीच अभाव 

उनका मगर समाज पर,  गहरा पड़ा प्रभाव ।।7।।

✍️अंकित गुप्ता 'अंक'

सूर्यनगर, निकट कृष्णा पब्लिक इंटर कॉलिज, 

लाइनपार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नंबर- 9759526650


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से गाजियाबाद के नवगीतकार जगदीश पंकज के सम्मान में रविवार 30 जुलाई 2023 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस सोसाइटी, काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में गाजियाबाद के नवगीतकार जगदीश पंकज के मुरादाबाद आगमन पर 30 जुलाई, 2023 रविवार को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें श्री जगदीश पंकज जी को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र तथा श्रीफल भेंटकर "हस्ताक्षर नवगीत साधक सम्मान" से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्य कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी तथा विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम रहे।          काव्य गोष्ठी का शुभारंभ चर्चित दोहाकार श्री राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ।  यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा-

 "नापती आकाश सारा पंख फैलाए, 

किन्तु धरती से अलग उड़कर कहाँ जाए, 

सोचकर यह घोंसले में लौट आती है। 

एक चिड़िया, धड़कनों में चहचहाती है।"

 विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया- 

"नए सृजन पर असमंजस में,

 तुलसी सूर कबीरा। 

गान आज का गाने में सुन, 

दुखी हो उठी मीरा।

 देख निराला भी कह उठते, 

नव की नई शकल हो। 

कोशिश है खरपतवारों की, 

मटियामेट फ़सल हो।" 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने सुनाया- 

"भाव से मन को लुभाता है, 

दुसह पीड़ाएं जगाता है। 

विरह की देता व्यथा फिर भी, 

प्यार सुख का जन्मदाता है।"

 सम्मानित नवगीतकार के जगदीश पंकज ने सुनाया- 

"हंँसो स्वयं पर हंँसो कि हम सब जिंदा है। 

अपने-अपने सच को सभी संभाल रहे।" 

कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की- 

"आज व्याकुल धरती ने 

पुकारा बादलों को।

 मेरी शिराओं की तरह 

बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।"

कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की- 

"बीत गए कितने ही वर्ष ,

हाथों में लिए डिग्रियां, 

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां, 

आवेदन पत्र अब 

लगते तेज कटारों से।" 

 कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने दोहे प्रस्तुत किये- 

"शहरों के हर स्वप्न पर, कैसे करें यक़ीन। 

उम्मीदों के गाँव हैं, जब तक सुविधाहीन। 

चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र।

 फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।" 

शायर  ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की- 

"घर के बाहर तो बस ताले लग जाते हैं, 

घर में लेकिन कितने जाले लग जाते हैं। 

उस चेहरे को छू लेता हूं रात में जब भी,

हाथों में दिन भर के उजाले लग जाते हैं।"  

राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए- 

"नीम तुम्हारी छांव में, आकर बरसों बाद। 

फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद। 

जलते-जलते आस के, देकर रंग अनेक। 

दीपक-माला कर गई, रजनी का अभिषेक।" 

कवि  राहुल शर्मा ने मुक्तक सुनाया-

 "चंद लम्हों की मुलाकात बुरी होती है। 

गर जियादा हो तो बरसात बुरी होती है। 

हर किसी को ये समझ लेते है अपने जैसा। 

अच्छे लोगों में यही बात बुरी होती है।" 

युवा कवि  प्रत्यक्ष देव त्यागी ने सुनाया- 

"परवान चढ़ेगी मोहब्बत, चार दिन के लिए।

 पूरी होगी ज़रूरत, चार दिन के लिए। 

हाथ पकड़कर बैठना, आंखों में आंखे डाल कर। 

फिर नाराज़ होगी किस्मत, चार दिन के लिए।"

 प्राप्ति गुप्ता ने भी एक कविता सुनाई। डॉ जगदीप भटनागर, शिखा रस्तोगी, माधुरी सिंह एवं अक्षरा ने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। समीर तिवारी द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।























::::::प्रस्तुति::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक- 

संस्था 'हस्ताक्षर'

मुरादाबाद

मोबाइल-9412805981

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ माधुरी सिंह की कविता ....चक्रव्यूह

 क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 



गुरुवार, 27 जुलाई 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से यश भारती माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन शनिवार 22 जुलाई 2023 को पावस-गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन एवं उनकी रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर पावस-गोष्ठी, संगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंटकर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देहरादून निवासी देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया।

   कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं- लिपिका सक्सेना, संस्कृति, प्राप्ति गुप्ता, सिमरन, आदया एवं तबला वादक लकी वर्मा द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- "बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे/सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे।" और- "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे/जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे।"

     पावस गोष्ठी में यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा- 

"आज गीत गाने का मन है, 

अपने को पाने का मन है।

अपनी चर्चा है फूलों में, 

जीना चाह रहा शूलों में, 

मौसम पर छाने का मन है।" 

सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने गीत प्रस्तुत किया- 

"प्यास हरे कोई घन बरसे,

 तुम बरसो या सावन बरसे, 

एक सहज विश्वास संजोकर, 

चातक ने व्रत ठान लिया है, 

अब चाहे नभ से स्वाती की,

 बूँद गिरे या पाहन बरसे।" 

विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया- 

"उन गीतों में मिला महकता, 

इस माटी का चंदन, 

जिनका अपना ध्येय रहा है, 

सौंधी गंधों का वंदन।"

   वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' ने सुनाया-

 "राह कांँटों भरी थी सहल हो गई, 

चाह मेरी कुटी से महल हो गई,

 मैं झिझकता रहा बात कैसे करूं, 

आज उनकी तरफ़ से पहल हो गई।"

 मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज ने ग़ज़ल पेश की- 

"ज़िंदगी तेरे अगर क़र्ज़ चुकाने पड़ जाएं, 

अच्छे-अच्छों को यहां होश गंवाने पड़ जाएं, 

साफ़गोई है किसी अच्छे तअल्लुक़ की शर्त,

 वादे ऐसे भी न हों जो कि पुराने पड़ जाएं।"   

कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-

 "आज व्याकुल धरती ने 

पुकारा बादलों को। 

मेरी शिराओं की तरह 

बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।" 

      वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने सुनाया- 

"बारिश में सड़कें हुई हैं गड्‌ढों से युक्त। 

जाम लग रहे हर जगह वाहन सरकें सुस्त।

हरियाली फैला रही चहुंदिसि ही आनंद।

 बूँदों से हर खेत में, महक उठे है छंद।

      कवि वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने गीत सुनाया- 

"मुँह पर गिरकर बूँदों ने बतलाया है, 

देखो कैसे सावन घिरकर आया है। 

बौछारों से तन-मन ठंडा करने को,

डाल-डाल झूलों का मौसम आया है।" 

 कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने सुनाया- 

"कभी गरजते कभी बरसते,

रंग जमाते हैं बादल। 

सदियों से इस तृषित धरा का,

द्वार सजाते हैं बादल।" 

         कवि समीर तिवारी ने सुनाया-

 "बदल गया है गगन सारा,सितारों ने कहा।

 बदल गया है चमन हमसे बहारों ने कहा। 

वैसे मुर्दे है वही सिर्फ अर्थियां बदली। 

फ़क़ीर ने पास में आकर इशारों से कहा।"

कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की- 

"नहीं गूंजते हैं घरों में अब, 

सावन के गीत 

खत्म हो गई है अब, 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत

 नहीं होता अब हास परिहास, 

दिखता नहीं कहीं सावन का उल्लास।"

कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने पावस दोहे प्रस्तुत किये- 

"भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन।

अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन।

पल भर बारिश से मिली, शहरों को सौगात। 

चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात।"

" शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-

 "हमारे शहर में बादल घिरे हैं, तुम्हारे शहर में क्या हो रहा है। 

वो आंखें ऐसी भी प्यारी नहीं हैं,न जाने यह हमें क्या हो रहा है।" 

 दोहाकार राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए- 

"मीठी कजरी-भोजली, बल खाती बौछार। 

तीनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।

 मानुष मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।

 जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।" 

कवि मनोज मनु ने गीत सुनाया-

 "रिमझिम बरखा आई, झूम रे मन मतवाले,

 काले काले बदरा घिर-घिर के आते हैं, 

अंजुरी में भर-भर के बूंद-बूंद लाते हैं,

 बूंद -बूंद भर देती खाली मन के प्याले, "

 प्रो ममता सिंह ने सुनाया- 

"मोरे जियरा में आग लगाय गयी रे, सावन की बदरिया।

 मोहिं सजना की याद दिलाय गयी रे, सावन की बदरिया।

 जब जब मौसम ले अंगडाई और चले बैरिनि पुरवाई। 

मोरी धानी चुनरिया उड़ाय गयी रे सावन की बदरिया।" 

    हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया-

 "बोया था रवि बीज मैंने, 

रात्रि की कोमल मृदा में, 

तम गहन ऊर्जा में ढलकर, 

अंकुरा देखो दिवस बन।" 

काशीपुर निवासी डॉ ऋचा पाठक ने सुनाया- 

"एक बदरिया आँखों में ही सूख गयी ज्यों न दिया। 

पकी फ़सल कैसे ढोये, अब सोचे हारा हरिया। 

बामन ने ये साल तो पर कै भला बताये रे।"

मयंक शर्मा ने सुनाया- 

"प्रिय ने कुंतल में बँधी खोली ऐसे डोर। 

मानो सावन की घटा घिर आई चहुँओर। 

बूँदों के तो घर गई एक रंग की धूप। 

लेकर निकली द्वार से इंद्रधनुष का रूप।"

संतोष रानी गुप्ता, माधुरी सिंह, डी पी सिंह एवं इं० उमाकांत गुप्त ने पावस के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई। 
























































गुरुवार, 20 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दिग्गज मुरादाबादी के संदर्भ में ए टी ज़ाकिर का संस्मरणात्मक आलेख..... "आ, लौट के आजा मेरे मीत "


शायद वर्ष 1972 था या 1973, उन दिनों मैं मुजफ्फरनगर से स्टेट बैंक की अपनी नौकरी छोड़ के मुरादाबाद  लौट चुका था और शायद "साईको" उपन्यास के अनुवाद की तैयारी में व्यस्त था।  परंतु , साहित्यिक गोष्ठियों व सम्मेलनों में गाहे-बगाहे जाता रहता था। एक शाम हमारे साहित्यिक मित्र और मेरे वरिष्ठ कवि डा विनोद गुप्त जी के निवास, सब्जी मंडी पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन था। मैं भी आमंत्रित था। वहीं लम्बे चौड़े गोरे से चश्मा लगाये एक नवीन साहित्यकार से मेरा परिचय हुआ। उन्होंने अपना नाम प्रकाश चन्द्र सक्सेना ’दिग्गज’ बतलाया। वे सफेद पाजामें– कुर्ते में बड़े प्रभावशाली लग रहे थे, और काफी हंसमुख भी थे।

बोले, "अरे, जाकिर साहब, मैंने आपका बहुत नाम सुन रखा है। आज आपसे मिल कर तबियत खुश हो गयी, मेरी।"

मैं हंसा, " श्रीमन तबियत तो मेरी भी खुश क्या डबल खुश हो गयी आपसे मिल के !"

वे बोले, "मतलब, डबल खुश कैसे ? " मैंने समझाया, " सादर प्रणाम ! श्रीमन मेरे श्वसुर महोदय का भी यही नाम है, श्री प्रकाश चन्द्र सक्सेना ! उपस्थित सभी लोग हँसने लगे।

 ‌‌यही थी मेरी 'दिग्गज जी' से पहली मुलाकात की बानगी !

 ‌उन्होंने बड़े ऊंचे स्तर की उर्दू नज़्में में सुनाई ।

बस, उस शाम के बाद उनका बारादरी स्थित मेरे निवास पर आना-जाना होने लगा और हम अक्सर मिलने लगे।

 जब मिलते थे, तो सुनना-सुनाना भी हो जाता था। पर उस समय तक वो शायर

 " दिग्गज' थे, "दिग्गज मुरादाबादी 'नहीं! और सिर्फ उर्दू में कलम चलाया करते थे। एक शाम को अपने साथ एक अन्य वरिष्ठ साहित्यकार को मेरे घर ले आये, परिचय कराया श्री बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी'! प्रवासी जी उच्च कोटि के कवि थे और तहसीली स्कूल में अध्यापन कार्य करते थे। वह" मैढ़ बालक" नामक एक बाल पत्रिका का संचालन भी करते थे। 

 अब हमारी काव्य गोष्ठियों में दिग्गज जी प्रवासी जी के साथ ही आने लगे। दिग्गज जी बहुत उच्च कोटि को नज़्मकार थे और मंच को जीत लेने वाली अनेक नज़्में कह चुके थे। मुझे उनका कलाम बहुत पसंद आता था और हम दोनों एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। उन्ही दिनों मुझे पता चला कि दिग्गज जी, मुरादाबाद कचहरी में अर्जी नवीस का काम करते थे।

शायद, एक बार मैं किसी काम से कचहरी के पोस्ट आफिस गया तो, कचहरी में जाकर उनके बस्ते पर बैठ कर  एक प्याला चाय भी पी आया। वहीं बातचीत में उनसे पता चला कि वे कटघर में पचपेड़ा नामक स्थान पर रहते थे। इसके बाद तो साहित्यक गोष्ठियों में वे हुल्लड़ मुरादाबादी, ललित मोहन भारद्वाज, पुष्पेन्द्र वर्णवाल, डा० विनोद गुप्ता, ओम प्रकाश गुप्ता, प्रवासी जी, कौशल शलभ और मक्खन जी के साथ मुझे मिल ही जाते थे। वैसे, उन्होंने बहुत कुछ कहा था, कहते ही रहते थे मगर उनकी एक नज़्म "झांसे वाली रानी" बहुत प्रसिद्ध हुई थी, मुझे भी पसंद थी। उसकी प्रारंभ की कुछ  पंक्तियां मुझे आज 52-53 वर्षों के बाद भी याद है?

सरल,सौम्य आकृति, मगर कुछ थोड़ी सी अभिमानी है ,

है प्रयाग से प्यार, कि जिससे इसकी जुड़ी कहानी है। 

सब लोगों,कुल अखबारों में खबर यही छपवानी है, 

कि एक थी झांसी वाली,पर यह झांसे वाली रानी है।

सैकुलर नारों की सारी शेखी  चकनाचूर हुयी, 

बाईस वर्षों में भी तुमसे नहीं गरीबी दूर हुयी। 

कुछ भी तुमसे हो न सका, पर इतनी बात ज़रूर हुयी, 

कि भूखी-नंगी भारत माता दूर-दूर मशहूर हुयी ।

 इस पर भी तू अपने मन में फूली नहीं समानी है। 

 एक थी झाँसी वाली पर ये झांसे वाली रानी है । (रचना काल 1969)

इसी प्रकार उनकी एक और नज़्म थी.. " मेहतर की बेटी ", उसे भी वो बड़े चाव से पढ़ते थे।

असल में उन दिनों कविता ' लुहार की लली' काफ़ी प्रसिद्धि पा रही थी, उसी से प्रभावित होकर दिग्गज जी ने यह कविता या नज़्म जो कुछ भी यह थी उसे लिखा। 

 प्रोफेसर एन० एल० मोयात्रा के घर पर होने वाली मासिक हिन्दी-उर्दू की गंगा-जमनी काव्य गोष्ठी " बज़्मे मसीह" में दिग्गज जी हमेशा भाग लेते थे और खूब सराहे जाते थे।

परन्तु, इस सारे समय में वे जो डायरी अपने साथ लाते थे, उसमें  जो कुछ भी उनकी हस्तलिपि में होता था, वो सब उर्दू में ही होता था।

  इन कुछ महीनों के  साथ के बाद मेरा उनसे ही क्या मुरादाबाद से ही साथ छूट गया, जब मैं मुरादाबाद से प्रस्थान कर गया। पर उन्हें और उनके साहित्य और अपनत्व को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा । इसी लिये चाहता हूं, वो एक बार फिर हमारे बीच लौट आएं और अपने  क़लाम से हमें नवाज़ें !


✍️ ए टी ज़ाकिर 

 फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर,पंचवटी,पार्श्वनाथ कालोनी, ताजनगरी फेस 2, फतेहाबाद रोड, आगरा -282 001  मोबाइल फ़ोन नंबर 9760613902, 847 695 4471

 मेल- atzakir@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर राजीव सक्सेना का आलेख ...बाल मन के चितेरे : 'दिग्गज' मुरादाबादी । यह आलेख श्री दिग्गज जी के जीवन काल में सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2006 में प्रकाशित मेरी कृति ’समय की रेत पर’ में प्रकाशित हुआ है।



बाल मन के चितेरे : 'दिग्गज' मुरादाबादी

मुख्य धारा के प्रसिद्ध कवि डा० हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है कि अच्छा बाल साहित्य वह रच सकेगा जो बच्चा बन सके यानी बाल मन में प्रविष्ट हो सके। बाल साहित्य की इस कसौटी पर जो बाल कवि खरे उतरते है वे हैं 'दिग्गज' मुरादाबादी ।
'दिग्गज' जी को न केवल बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ है बल्कि उनके मनोजगत या कल्पना जगत में भी गहरी पैठ है। वयस्क होने के बावजूद स्वयं 'दिग्गज' जी के भीतर  बालपन अभी विद्यमान है।उनके भीतर का यह बालपन या बालक जब सक्रिय होता है तभी किसी अन्त: प्रेरणा के वशीभूत हो उनका बाल कवि वाला व्यक्तित्व भी सक्रिय हो जाता है। दरअसल, 'दिग्गज' मुरादाबादी स्वयं को बालकवि सिद्ध करने के लिए नहीं बल्कि बच्चों के कल्पना जगत में झांकने की कौतूहलता के कारण बालगीत या कविताएं रचने के लिए विवश होते हैं।
    5 जनवरी सन् 1930 को जिला बुलन्दशहर की तहसील अनूपशहर में जन्मे 'दिग्गज' मुरादाबादी का वास्तविक नाम प्रकाशचन्द्र सक्सेना है। उनके पिता मुन्शी रामचन्द्र सहाय सक्सेना एक रियासत के दीवान थे। 'दिग्गज' जी ने काव्य शास्त्र का ज्ञान अपने समय के प्रसिद्ध शायर अब्र हसन गुन्नौरी से प्राप्त किया। 'दिग्गज' जी की उर्दू साहित्य पर भी गहरी पकड़ है और उन्होंने बाल कविताओं के अलावा बहुत से गीत, नज्म और गज़लें भी लिखी है। आध्यात्मिक रूझान के कारण दिग्गज जी ने 'सीता का अन्तर्द्वन्द' और 'करवा चौथ' शीर्षक से काव्य प्रबन्धों की रचना भी की है।
    बाल कविताएं रचने की प्रेरणा 'दिग्गज' जी को प्रसिद्ध बाल कवि निरंकार देव 'सेवक' से प्राप्त हुई। यद्यपि सेवक जी से साक्षात्कार होने के पहले ही 'दिग्गज' जी बाल काव्य के क्षेत्र में निष्णात हो चुके थे तथा एक बाल कवि के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके थे। तथापि 'सेवक' जी का सान्निध्य प्राप्त होने पर 'दिग्गज' जी को उनसे बाल काव्य की अनेक बारीकियां समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सरसता, प्रवाहमयता और विलक्षण शब्द चयन के कारण 'दिग्गज' जी अपने समकालीन बाल कवियों से ही नहीं बल्कि अपने पूर्ववर्ती कवियों से भी श्रेष्ठतर जान पड़ते है तथापि वे विनम्रता पूर्वक अपने को निरंकार देव 'सेवक' का शिष्य स्वीकार करते है।

निरंकार 'देव' सेवक ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'बालगीत साहित्य' (इतिहास एवं समीक्षा) में 'दिग्गज' मुरादाबादी का उल्लेख बड़े आदर के साथ किया है 'सेवक' जी का यह ग्रन्थ आज बालगीत साहित्य के प्रामाणिक शोध ग्रन्थ के रूप में समादृत है और ऐसे ग्रन्थ में उल्लेख मात्र भी सचमुच किसी बाल कवि के लिए गौरव का विषय है। 'सेवक' जी ने 'दिग्गज' जी की बाल कविता 'दीवाली' का उल्लेख विशेष रूप से अपनी पुस्तक में किया है।

"लो फिर से दीवाली आई,
साथ अनेकों खुशियां लाई ।
खीलें और बताशे लाई,
बढ़िया खेल तमाशे लाई ।
छूट रही हैं आतिशबाजी,
सब प्रसन्न है सब है राजी ।
घर बाहर की हुई सफाई,
कहीं रंगाई कहीं पुताई ।
हर घर में पकवान बनें हैं,
बड़े बड़े सामान बने है ।
आज कहीं भी नही अंधेरा,
हुआ रात में दिन का फेरा ।
दीवाली की रात सुहानी,
है सारी रातों की रानी ।

'दिग्गज' जी की शब्दों और छंद पर गहरी पकड़ होने के कारण ही 'सेवक' जी ने यह टिप्पणी की है कि 'दिग्गज' जी को छंद में कहने की आदत सी बन गयी है। 'दिग्गज' जी की निर्विवाद काव्य प्रतिभा को सिद्ध करने के लिए यह टिप्पणी पर्याप्त है। सरल और छंदबद्ध होने के कारण उनकी बाल कविताओं / गीतों में अद्भुत गेयता है और बच्चे उन्हें सहज ही गुनगुना सकते है।

"दिग्गज' जी की बाल कविताएं बाल मनोभावों और संवेदना की अभिव्यक्ति साथ-साथ चित्रात्मकता की दृष्टि से भी अद्भुत है। दरअसल 'दिग्गज' जी बच्चों के मनोजगत से एक ऐसा अन्तवैयक्तिक तादात्म्य स्थापित करने में सफल रहते है कि उनकी बाल कविताएं / बालगीत, भाषा एवं शिल्प के स्तर पर भी अनोखे जान पड़ते है। 'दिग्गज' जी की बाल कविताओं में भाषा विषय के अनुरूप स्वयं को गढ़ती हुई चलती है। बालपन से उनका यह विलक्षण तादात्म्य या विशिष्ट भाषा शैली ही उन्हें समकालीन बाल कवियों से पृथक एक पहचान प्रदान करती है। विज्ञापन शैली में लिखी उनकी लोकप्रिय और लम्बी बालकविता "सरकस' की निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य है
ये तो थे जलथल के प्राणी,
आगे है इस तरह कहानी।
दस हाथी, बाईस घोड़े हैं।
सत्रह बाघों के जोड़े है।
पन्द्रह ऊँट, रीछ है ग्यारह,
बबर शेर हैं पूरे बारह ।
शुतरमुर्ग है अफ्रीका का
अड़ियल गैडा अमरीका का ।
कंगारू, जिराफ, जेबरा ।
मगरमच्छ, घड़ियाल कोबरा ।

'दिग्गज' जी ने बाल कवियों के परम्परागत और प्रिय विषयों के अलावा सोच के स्तर पर मौलिक एवं आधुनिक विषयों पर केन्द्रित बाल
कविताओं की रचना भी की है। उनकी कविता 'तारे' सचमुच बालकवि 'दिग्गज' के आधुनिक दृष्टिकोण का परिचय हमें कराती है।
ये असंख्य टिमटिमा रहे जो ।
तारे नभमण्डल में ।
ये धरती से भी विशाल हैं।
निज स्वरूप निज बल में।
किन्तु आज तक की खोजों में।
जीवन कहीं न पाया।
यह सुख यह अनुभव केवल ।
अपने हिस्से में आया।

'दिग्गज' जी ने छोटी बड़ी दो सौ से भी अधिक बाल कविताओं / बालगीतों की रचना की है। इनमें से अनेक का प्रकाशन बच्चों की प्रसिद्ध 'नंदन', 'बाल भारती' 'पराग' और 'सुमन सौरभ' सरीखी पत्रिकाओं में हो चुका है। बाल साहित्य में उनका स्थान हेंस क्रिश्चियन एंडरसन, इनिड ब्लाइटन या आर्कादी गाइदार जैसा भले ही न हो लेकिन वे हिन्दी के अप्रतिम बाल कवि तो है ही।


✍️ राजीव सक्सेना
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 19 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी की काव्य कृति ....सीता का अंतर्द्वंद्व । उनकी यह कृति वर्ष 2001 में प्रज्ञा प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुई है। इसका संपादन किया है डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने तथा भूमिका लिखी है डॉ रामानंद शर्मा ने ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 

https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:554fc2e8-ef57-3d76-8b4b-f6d31a5d2c8c 

:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822