गुरुवार, 20 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर राजीव सक्सेना का आलेख ...बाल मन के चितेरे : 'दिग्गज' मुरादाबादी । यह आलेख श्री दिग्गज जी के जीवन काल में सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2006 में प्रकाशित मेरी कृति ’समय की रेत पर’ में प्रकाशित हुआ है।



बाल मन के चितेरे : 'दिग्गज' मुरादाबादी

मुख्य धारा के प्रसिद्ध कवि डा० हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है कि अच्छा बाल साहित्य वह रच सकेगा जो बच्चा बन सके यानी बाल मन में प्रविष्ट हो सके। बाल साहित्य की इस कसौटी पर जो बाल कवि खरे उतरते है वे हैं 'दिग्गज' मुरादाबादी ।
'दिग्गज' जी को न केवल बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ है बल्कि उनके मनोजगत या कल्पना जगत में भी गहरी पैठ है। वयस्क होने के बावजूद स्वयं 'दिग्गज' जी के भीतर  बालपन अभी विद्यमान है।उनके भीतर का यह बालपन या बालक जब सक्रिय होता है तभी किसी अन्त: प्रेरणा के वशीभूत हो उनका बाल कवि वाला व्यक्तित्व भी सक्रिय हो जाता है। दरअसल, 'दिग्गज' मुरादाबादी स्वयं को बालकवि सिद्ध करने के लिए नहीं बल्कि बच्चों के कल्पना जगत में झांकने की कौतूहलता के कारण बालगीत या कविताएं रचने के लिए विवश होते हैं।
    5 जनवरी सन् 1930 को जिला बुलन्दशहर की तहसील अनूपशहर में जन्मे 'दिग्गज' मुरादाबादी का वास्तविक नाम प्रकाशचन्द्र सक्सेना है। उनके पिता मुन्शी रामचन्द्र सहाय सक्सेना एक रियासत के दीवान थे। 'दिग्गज' जी ने काव्य शास्त्र का ज्ञान अपने समय के प्रसिद्ध शायर अब्र हसन गुन्नौरी से प्राप्त किया। 'दिग्गज' जी की उर्दू साहित्य पर भी गहरी पकड़ है और उन्होंने बाल कविताओं के अलावा बहुत से गीत, नज्म और गज़लें भी लिखी है। आध्यात्मिक रूझान के कारण दिग्गज जी ने 'सीता का अन्तर्द्वन्द' और 'करवा चौथ' शीर्षक से काव्य प्रबन्धों की रचना भी की है।
    बाल कविताएं रचने की प्रेरणा 'दिग्गज' जी को प्रसिद्ध बाल कवि निरंकार देव 'सेवक' से प्राप्त हुई। यद्यपि सेवक जी से साक्षात्कार होने के पहले ही 'दिग्गज' जी बाल काव्य के क्षेत्र में निष्णात हो चुके थे तथा एक बाल कवि के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके थे। तथापि 'सेवक' जी का सान्निध्य प्राप्त होने पर 'दिग्गज' जी को उनसे बाल काव्य की अनेक बारीकियां समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सरसता, प्रवाहमयता और विलक्षण शब्द चयन के कारण 'दिग्गज' जी अपने समकालीन बाल कवियों से ही नहीं बल्कि अपने पूर्ववर्ती कवियों से भी श्रेष्ठतर जान पड़ते है तथापि वे विनम्रता पूर्वक अपने को निरंकार देव 'सेवक' का शिष्य स्वीकार करते है।

निरंकार 'देव' सेवक ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'बालगीत साहित्य' (इतिहास एवं समीक्षा) में 'दिग्गज' मुरादाबादी का उल्लेख बड़े आदर के साथ किया है 'सेवक' जी का यह ग्रन्थ आज बालगीत साहित्य के प्रामाणिक शोध ग्रन्थ के रूप में समादृत है और ऐसे ग्रन्थ में उल्लेख मात्र भी सचमुच किसी बाल कवि के लिए गौरव का विषय है। 'सेवक' जी ने 'दिग्गज' जी की बाल कविता 'दीवाली' का उल्लेख विशेष रूप से अपनी पुस्तक में किया है।

"लो फिर से दीवाली आई,
साथ अनेकों खुशियां लाई ।
खीलें और बताशे लाई,
बढ़िया खेल तमाशे लाई ।
छूट रही हैं आतिशबाजी,
सब प्रसन्न है सब है राजी ।
घर बाहर की हुई सफाई,
कहीं रंगाई कहीं पुताई ।
हर घर में पकवान बनें हैं,
बड़े बड़े सामान बने है ।
आज कहीं भी नही अंधेरा,
हुआ रात में दिन का फेरा ।
दीवाली की रात सुहानी,
है सारी रातों की रानी ।

'दिग्गज' जी की शब्दों और छंद पर गहरी पकड़ होने के कारण ही 'सेवक' जी ने यह टिप्पणी की है कि 'दिग्गज' जी को छंद में कहने की आदत सी बन गयी है। 'दिग्गज' जी की निर्विवाद काव्य प्रतिभा को सिद्ध करने के लिए यह टिप्पणी पर्याप्त है। सरल और छंदबद्ध होने के कारण उनकी बाल कविताओं / गीतों में अद्भुत गेयता है और बच्चे उन्हें सहज ही गुनगुना सकते है।

"दिग्गज' जी की बाल कविताएं बाल मनोभावों और संवेदना की अभिव्यक्ति साथ-साथ चित्रात्मकता की दृष्टि से भी अद्भुत है। दरअसल 'दिग्गज' जी बच्चों के मनोजगत से एक ऐसा अन्तवैयक्तिक तादात्म्य स्थापित करने में सफल रहते है कि उनकी बाल कविताएं / बालगीत, भाषा एवं शिल्प के स्तर पर भी अनोखे जान पड़ते है। 'दिग्गज' जी की बाल कविताओं में भाषा विषय के अनुरूप स्वयं को गढ़ती हुई चलती है। बालपन से उनका यह विलक्षण तादात्म्य या विशिष्ट भाषा शैली ही उन्हें समकालीन बाल कवियों से पृथक एक पहचान प्रदान करती है। विज्ञापन शैली में लिखी उनकी लोकप्रिय और लम्बी बालकविता "सरकस' की निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य है
ये तो थे जलथल के प्राणी,
आगे है इस तरह कहानी।
दस हाथी, बाईस घोड़े हैं।
सत्रह बाघों के जोड़े है।
पन्द्रह ऊँट, रीछ है ग्यारह,
बबर शेर हैं पूरे बारह ।
शुतरमुर्ग है अफ्रीका का
अड़ियल गैडा अमरीका का ।
कंगारू, जिराफ, जेबरा ।
मगरमच्छ, घड़ियाल कोबरा ।

'दिग्गज' जी ने बाल कवियों के परम्परागत और प्रिय विषयों के अलावा सोच के स्तर पर मौलिक एवं आधुनिक विषयों पर केन्द्रित बाल
कविताओं की रचना भी की है। उनकी कविता 'तारे' सचमुच बालकवि 'दिग्गज' के आधुनिक दृष्टिकोण का परिचय हमें कराती है।
ये असंख्य टिमटिमा रहे जो ।
तारे नभमण्डल में ।
ये धरती से भी विशाल हैं।
निज स्वरूप निज बल में।
किन्तु आज तक की खोजों में।
जीवन कहीं न पाया।
यह सुख यह अनुभव केवल ।
अपने हिस्से में आया।

'दिग्गज' जी ने छोटी बड़ी दो सौ से भी अधिक बाल कविताओं / बालगीतों की रचना की है। इनमें से अनेक का प्रकाशन बच्चों की प्रसिद्ध 'नंदन', 'बाल भारती' 'पराग' और 'सुमन सौरभ' सरीखी पत्रिकाओं में हो चुका है। बाल साहित्य में उनका स्थान हेंस क्रिश्चियन एंडरसन, इनिड ब्लाइटन या आर्कादी गाइदार जैसा भले ही न हो लेकिन वे हिन्दी के अप्रतिम बाल कवि तो है ही।


✍️ राजीव सक्सेना
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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