मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन एवं उनकी रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर पावस-गोष्ठी, संगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंटकर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देहरादून निवासी देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं- लिपिका सक्सेना, संस्कृति, प्राप्ति गुप्ता, सिमरन, आदया एवं तबला वादक लकी वर्मा द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- "बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे/सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे।" और- "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे/जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे।"
पावस गोष्ठी में यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा-
"आज गीत गाने का मन है,
अपने को पाने का मन है।
अपनी चर्चा है फूलों में,
जीना चाह रहा शूलों में,
मौसम पर छाने का मन है।"
सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने गीत प्रस्तुत किया-
"प्यास हरे कोई घन बरसे,
तुम बरसो या सावन बरसे,
एक सहज विश्वास संजोकर,
चातक ने व्रत ठान लिया है,
अब चाहे नभ से स्वाती की,
बूँद गिरे या पाहन बरसे।"
विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया-
"उन गीतों में मिला महकता,
इस माटी का चंदन,
जिनका अपना ध्येय रहा है,
सौंधी गंधों का वंदन।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' ने सुनाया-
"राह कांँटों भरी थी सहल हो गई,
चाह मेरी कुटी से महल हो गई,
मैं झिझकता रहा बात कैसे करूं,
आज उनकी तरफ़ से पहल हो गई।"
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज ने ग़ज़ल पेश की-
"ज़िंदगी तेरे अगर क़र्ज़ चुकाने पड़ जाएं,
अच्छे-अच्छों को यहां होश गंवाने पड़ जाएं,
साफ़गोई है किसी अच्छे तअल्लुक़ की शर्त,
वादे ऐसे भी न हों जो कि पुराने पड़ जाएं।"
कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-
"आज व्याकुल धरती ने
पुकारा बादलों को।
मेरी शिराओं की तरह
बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।"
वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने सुनाया-
"बारिश में सड़कें हुई हैं गड्ढों से युक्त।
जाम लग रहे हर जगह वाहन सरकें सुस्त।
हरियाली फैला रही चहुंदिसि ही आनंद।
बूँदों से हर खेत में, महक उठे है छंद।
कवि वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने गीत सुनाया-
"मुँह पर गिरकर बूँदों ने बतलाया है,
देखो कैसे सावन घिरकर आया है।
बौछारों से तन-मन ठंडा करने को,
डाल-डाल झूलों का मौसम आया है।"
कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने सुनाया-
"कभी गरजते कभी बरसते,
रंग जमाते हैं बादल।
सदियों से इस तृषित धरा का,
द्वार सजाते हैं बादल।"
कवि समीर तिवारी ने सुनाया-
"बदल गया है गगन सारा,सितारों ने कहा।
बदल गया है चमन हमसे बहारों ने कहा।
वैसे मुर्दे है वही सिर्फ अर्थियां बदली।
फ़क़ीर ने पास में आकर इशारों से कहा।"
कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-
"नहीं गूंजते हैं घरों में अब,
सावन के गीत
खत्म हो गई है अब,
झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत
नहीं होता अब हास परिहास,
दिखता नहीं कहीं सावन का उल्लास।"
कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने पावस दोहे प्रस्तुत किये-
"भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन।
अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन।
पल भर बारिश से मिली, शहरों को सौगात।
चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात।"
" शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"हमारे शहर में बादल घिरे हैं, तुम्हारे शहर में क्या हो रहा है।
वो आंखें ऐसी भी प्यारी नहीं हैं,न जाने यह हमें क्या हो रहा है।"
दोहाकार राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए-
"मीठी कजरी-भोजली, बल खाती बौछार।
तीनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।
मानुष मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।"
कवि मनोज मनु ने गीत सुनाया-
"रिमझिम बरखा आई, झूम रे मन मतवाले,
काले काले बदरा घिर-घिर के आते हैं,
अंजुरी में भर-भर के बूंद-बूंद लाते हैं,
बूंद -बूंद भर देती खाली मन के प्याले, "
प्रो ममता सिंह ने सुनाया-
"मोरे जियरा में आग लगाय गयी रे, सावन की बदरिया।
मोहिं सजना की याद दिलाय गयी रे, सावन की बदरिया।
जब जब मौसम ले अंगडाई और चले बैरिनि पुरवाई।
मोरी धानी चुनरिया उड़ाय गयी रे सावन की बदरिया।"
हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया-
"बोया था रवि बीज मैंने,
रात्रि की कोमल मृदा में,
तम गहन ऊर्जा में ढलकर,
अंकुरा देखो दिवस बन।"
काशीपुर निवासी डॉ ऋचा पाठक ने सुनाया-
"एक बदरिया आँखों में ही सूख गयी ज्यों न दिया।
पकी फ़सल कैसे ढोये, अब सोचे हारा हरिया।
बामन ने ये साल तो पर कै भला बताये रे।"
मयंक शर्मा ने सुनाया-
"प्रिय ने कुंतल में बँधी खोली ऐसे डोर।
मानो सावन की घटा घिर आई चहुँओर।
बूँदों के तो घर गई एक रंग की धूप।
लेकर निकली द्वार से इंद्रधनुष का रूप।"
संतोष रानी गुप्ता, माधुरी सिंह, डी पी सिंह एवं इं० उमाकांत गुप्त ने पावस के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई।
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