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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार जयमोहन की दो कविताएं ----- ये ली गई हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।
गुरुवार, 9 जुलाई 2020
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) के गीतकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी की जयंती 8 जुलाई पर 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा दो दिवसीय ऑन लाइन साहित्यिक आयोजन
वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 8 व 9 जुलाई 2020 को प्रख्यात गीतकार रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एंव कृतित्व पर ऑन लाइन चर्चा की गई। क्लब द्वारा मुरादाबाद के दिवंगत साहित्यकारों को उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर याद किया जाता है । 8 जुलाई को स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की जयंती थी ।
सबसे पहले ग्रुप के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रामावतार त्यागी के शुरुआती जीवन, उनके जीवन संघर्षों और साहित्यिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया और उनके प्रतिनिधि गीत पटल पर रखे। बताया कि उनका पहला काव्य संग्रह वर्ष 1953 में 'नया खून' नाम से प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात 'आठवां स्वर' ,(1958) 'मैं दिल्ली हूं'( 1959), 'सपने महक उठे'( 1965), 'गुलाब और बबूल'( 1973), ' गाता हुआ दर्द'( 1982), ' लहू के चंद कतरे'( 1984), 'गीत बोलते हैं'(1986) काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। वर्ष 1954 में उनका उपन्यास 'समाधान' प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में उनकी कृति 'चरित्रहीन के पत्र' पाठकों के समक्ष आई ।
उनकी रचनाधर्मिता पर चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "रामवतार त्यागी हिंदी खड़ीबोली के ऐसे रचनाकार हैं जो काव्यत्व के धरातल पर अपने समकालीन बहुत से लोक विश्रुत कवियों से बहूत आगे थे। जमीदराना ठसक और विद्रोह का स्वर उनके निजी व्यक्तित्व के साथ साथ उनकी कविता में भी देखी जा सकती है ।उनके गीतों में भी नवगीत के आरंभिक लक्षणों की पहचान की जा सकती है"।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि रामावतार त्यागी कवि नहीं बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत की चेतना के सोए हुए भावों में पुनर्जागरण का शंख फूंकने वाले मनीषी हैं।"
मशहूर शायरा डाॅ मीना नक़वी ने कहा कि "रामावतार त्यागी जी के गीतों में जनभावना के साथ साथ मन की कोमल संवेदनाओं की स्पर्श करने कीभी अद्भुत क्षमता है। भावों की कोमलता मन को छूती है।"
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि "डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत रामावतार त्यागी जी के गीतों को आज पढ़ कर ऐसा लगा जैसे अनेक प्रकार के दुख द्वंद में भी दूसरों के सुख की परवाह करने वाला मन त्यागी जीके पास था।"
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि "रामावतार त्यागी जी स्वाभिमानी रचनाकार थे और यह बात उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट झलकती है।"
जनवादी कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि " रामवतार त्यागी जी की रचनाएं साहित्य की महत्वपूर्ण विरासत है।उन्होंने गीतों की परम्परागत धारा को मोड़ने का कार्य किया है।"
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि " मुरादाबाद लिट्रेरी ग्रुप में डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत सामग्री पढ़ कर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मिट्टी से कैसे कैसे अनमोल हीरे वाबस्ता रहे हैं।"
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि "हमें गर्व होता है कि ऐसे महान गीतकार ने हमारे जिले से जन्म लिया। मुरादाबाद के साहित्य के इंसाइकोक्लोपीडिया डॉ मनोज रस्तोगी ने उनका जीवन परिचय एवं गीत प्रस्तुत करके हम पर उपकार किया है ।
युवा शायर राहुल शर्मा ने उनकी रचनाधर्मिता पर कहा कि "त्यागी जी हिंदी साहित्य समाज की अनुपम धरोहर के साथ साथ मुरादाबाद की ऐसी धरोहर हैं जहाँ दर्द भी आकर शरण प्राप्त करता है"।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "यह परिस्थितियों की विडंबना ही कही जायेगी कि, वर्तमान पीढ़ी अभी तक रामावतार त्यागी के महान रचना कर्म से उतनी परिचित नहीं हो सकी थी जितना उसे होना चाहिये था।" उनकी रचनाएं कालजयी हैं ।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि " वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रामावतार त्यागी की रचनाओं से हमें परिचित कराया । वह बधाई के पात्र हैं। ऐसे गुणी और सरस गीतकार पर तो बहुत रिसर्च की ज़रूरत है।"
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि "वे निस्संदेह एक स्वाभिमानी और स्पष्टवादी रचनाकार थे, जिसे चाटुकारिता कतई पसंद नहीं थी।"
युवा कवि मयंक शर्मा ने विचार व्यक्त हुए कहा कि "काव्य लेखन रामावतार त्यागी जी का नैसर्गिक गुण था। जीवन में संघर्ष करते हुए भी उनकी लेखनी कभी अवरुद्ध नहीं हुई।"
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि "स्मृतिशेष रामावतार त्यागी जी की रचनाओं में विद्रोही तेवर, राष्ट्रवाद की भावना, जनजागरण, दार्शनिकता व कहीं कहीं कल्पनाओं का समावेश भी मिलता है।"
समीक्षक डॉ अज़ीमुल हसन ने कहा कि " रामवतार त्यागी ने पूरे देश में मुरादाबाद का नाम रोशन किया । अपने ही जिले में जन्मे ऐसे महान कवि से आज समूह के माध्यम से परिचित होकर हमें गर्व की अनूभूति हो रही है।"
युवा शायरा मोनिका मासूम ने कहा कि "श्री रामावतार त्यागी जी के गीत सुप्त ह्रदय में प्राण फूंकने की क्षमता रखते हैं।"
मुरादाबाद लिट्रेरी ग्रुप के एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "रामावतार त्यागी जी के गीतों की भाषा, गीतों की पंक्तियों की तकरार और गीतों के जो भाव हैं उन्हें पहली सफ़ के गीतकारों में शामिल करने के लिए काफ़ी हैं।"
:::::::::प्रस्तुति:::::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225
मुरादाबाद की साहित्यकार प्रीति हुंकार की लघुकथा ------सड़क ने कहा
अमन एक बहुत ही अनुशासन प्रिय युवक था । लॉक डाउन खुलने के कुछ ही दिन के बाद अमन को फिर घर में ऊब सी लगी ।मां से मार्केट जाने की बात कहकर ,उसने कानों में मोबाइल की म्यूजिक लीड लगाई और बाइक से निकला ।अम्मा ने किचिन से आवाज दी कि जरा धीरे चलाना बाबू । सड़कें खाली है ,लोग सर्राटे से चला रहे हैं वाहन।" वह आज किसी और ही धुन में रमा हुआ था। हैलमेट भी नही पहन सका ।आगे चौराहा था ।दो चार ही वाहन कभी कभी दिख जाते थे । दो माह से बाइक को हाथ नही लगाया था ।आज वह उस कमी को पूरा करना चाहता था । अचानक अपनी शर्ट के बटन खोलकर ,उसने बाइक को तेज स्पीड में हवा में लहराया ,फिर तेज स्पीड में किया और चौराहे की और नब्बे डिग्री पर घुमाया लेकिन यह क्या .........सामने से आती कार उसको सड़क के किनारे फेंक कर वहां कब गायब हो गई ,वह देख भी न सका ।नाक ,माथा दो हाथ सड़क से रगड़ गए और खून बहने लगा । आसपास कोई नही दिखा तो अमन खुद ही सरक कर एक पेड़ की छाया में बैठ गया ।आंखें नही खुल रही थी ।मूर्छा उसे घेरने लगी । अचानक उसे लगा ,"किसी ने उसके सिर पर हाथ रखकर सहलाया । फिर कुछ मंद स्वर उसके कर्ण विवर में प्रवेश पाने लगा ।तुम मानव !कब अनुशासन में रहना सीखोगे ?कब नियमों को मानोगे ? तुम्हारी अनुशासन हीनता और पाशविक प्रवृति के कारण ही हजारों दुर्घटनाओं को मैं अपने छाती पर सहती हूँ । कभी खून से सनती हूँ, तो कभी चीखों और कराहट से बेसुध होती हूँ।बेजुबान पशु दुर्घटना के शिकार होते हैं । कुछ ही मनुष्यों के कुकृत्यों का परिणाम पूरे मानव समुदाय को भोगना पड़ रहा है । " फिर जब आँखें खुलीं तो वह घर में बिस्तर पर था । बेसुध अवस्था में उसे कौन लाया वह नही जानता था पर बेसुध अवस्था में उसके कान में जो सड़क ने कहा ,वह अब भी उसके कान में गूंज रहा था ।
डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी के दो गीत ----- ये लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।
बुधवार, 8 जुलाई 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ------जैसी आशंका थी वैसे ही दिन आए हैं......
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001
सोमवार, 6 जुलाई 2020
वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 30 जून 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, ओंकार सिंह, राजीव प्रखर, मनोज वर्मा मनु, डॉ प्रेमवती उपाध्याय , प्रीति चौधरी , कमाल जैदी वफा, डॉ पुनीत कुमार , डॉ श्वेता पूठिया, सीमा वर्मा, डॉ रीता सिंह, नृपेंद्र शर्मा सागर , डॉ प्रीति हुंकार, श्री कृष्ण शुक्ल, रामकिशोर वर्मा और नवल किशोर शर्मा नवल की कविताएं-----
!! किलकारी !!
-----------------------------
उसकी मोहक मुसकान मुझे , भूमंडल से प्यारी है ।
कानों में मधुरस सी घुलती , उसकी सुंदर किलकारी है ।।
उसके चेहरे की झलक देख, मैं फूलों सा खिल जाता हूँ ।
वह जब बाहें फैलाती है , बाहों में उसको झुलाता हूँ ।।
गुनगुन की मृदु झंकार लिए, मैं लोरी उसे सुनाता हूँ ।
निंदिया जब उसको आती है, मैं उदर पे उसे सुलाता हूँ ।।
वह रानी बिटिया है मेरी, आंखों का एक सितारा है ।
भविष्य मेरा संजोए हुए , आगत का एक सहारा है ।।
गीला मुझको वह करती है , मैं तब भी वक्ष लगाता हूँ ।
अपने कुछ खाने से पहले , मैं उसको भोग लगाता हूँ ।।
डा. अशोक रस्तोगी.
अफजलगढ़, बिजनौर
--------------------------
मुर्गा बोला
-----------------
मुर्गा बोला मैं अच्छा हूँ
बत्तख बोली मैं अच्छी
इसका कैसे करें फैसला
तू अच्छा या मैं अच्छी।
--------------------
मुर्गा बोला मेरी कलगी
राज मुकुट सी लगती है
बत्तख बोली मेरी गर्दन
इंद्र धनुष सी दिखती है।
मुर्गा बोला मेरी बोली
सबके मन को भाती है
बत्तख बोली मेरी बोली
संकट दूर भगाती है।
मैं अच्छा हूँ मेरी बोली
भोर हुई बतलाती है
मेरी चाल सभी को जल में
तैराकी सिखलाती है।
इनकी तूतू-मैंमैं सुनकर
बिल्ली मौसी आती है
लड़ना अच्छी बात नहीं है
दोनों को समझाती है।
मुर्गा बोला बत्तख दीदी
बिल्ली जो फरमाती है
उसके बहुत पास मत जाना
यह धोखा दे जाती है।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
------------------------–----
*लोरी*
आ बिटिया ! तुझे लोरी सुनाऊं!!
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
जी भर खेली अब सो जा तू!
सुंदर सपनों में खो जा तू!
सपनों में आऐंगी परियां
खुशियों की होगी वे घड़ियां
निंदिया रानी बड़ी सयानी
गा गा कर मैं उसे बुलाऊं,!
-----------------------------
उसकी मोहक मुसकान मुझे , भूमंडल से प्यारी है ।
कानों में मधुरस सी घुलती , उसकी सुंदर किलकारी है ।।
उसके चेहरे की झलक देख, मैं फूलों सा खिल जाता हूँ ।
वह जब बाहें फैलाती है , बाहों में उसको झुलाता हूँ ।।
गुनगुन की मृदु झंकार लिए, मैं लोरी उसे सुनाता हूँ ।
निंदिया जब उसको आती है, मैं उदर पे उसे सुलाता हूँ ।।
वह रानी बिटिया है मेरी, आंखों का एक सितारा है ।
भविष्य मेरा संजोए हुए , आगत का एक सहारा है ।।
गीला मुझको वह करती है , मैं तब भी वक्ष लगाता हूँ ।
अपने कुछ खाने से पहले , मैं उसको भोग लगाता हूँ ।।
डा. अशोक रस्तोगी.
अफजलगढ़, बिजनौर
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मुर्गा बोला
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मुर्गा बोला मैं अच्छा हूँ
बत्तख बोली मैं अच्छी
इसका कैसे करें फैसला
तू अच्छा या मैं अच्छी।
--------------------
मुर्गा बोला मेरी कलगी
राज मुकुट सी लगती है
बत्तख बोली मेरी गर्दन
इंद्र धनुष सी दिखती है।
मुर्गा बोला मेरी बोली
सबके मन को भाती है
बत्तख बोली मेरी बोली
संकट दूर भगाती है।
मैं अच्छा हूँ मेरी बोली
भोर हुई बतलाती है
मेरी चाल सभी को जल में
तैराकी सिखलाती है।
इनकी तूतू-मैंमैं सुनकर
बिल्ली मौसी आती है
लड़ना अच्छी बात नहीं है
दोनों को समझाती है।
मुर्गा बोला बत्तख दीदी
बिल्ली जो फरमाती है
उसके बहुत पास मत जाना
यह धोखा दे जाती है।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
------------------------–----
आ बिटिया ! तुझे लोरी सुनाऊं!!
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
जी भर खेली अब सो जा तू!
सुंदर सपनों में खो जा तू!
सपनों में आऐंगी परियां
खुशियों की होगी वे घड़ियां
निंदिया रानी बड़ी सयानी
गा गा कर मैं उसे बुलाऊं,!
आ बिटिया में लोरी सुनाऊं!
लोरी सुना कर तुझे सुलाऊं!!
होके बड़ी स्कूल तू जाना !
पढ़ लिख खूब गुणी बन जाना!
एक दिन दूल्हे राजा आएं,
मेरे घर में खुशियां लाएं !
हम अंखियों से नीर बहाएं
आशीषें तुझ पर बर्षाऊं !
आ बिटिया तुझे लोरी सुनाऊं!
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
जीवन है सुख-दुख की धारा
सास ससुर का बनो सहारा
वहां सभी पर प्यार लुटाना !
जीवन फिर हो जाए सुहाना
हर संकट में हमें बुलाना !
एक खबर पर दौड़ी आऊं!
आ बिटिया तुझे लोरी सुलाऊं !
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
लोरी सुना कर तुझे सुलाऊं!!
होके बड़ी स्कूल तू जाना !
पढ़ लिख खूब गुणी बन जाना!
एक दिन दूल्हे राजा आएं,
मेरे घर में खुशियां लाएं !
हम अंखियों से नीर बहाएं
आशीषें तुझ पर बर्षाऊं !
आ बिटिया तुझे लोरी सुनाऊं!
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
जीवन है सुख-दुख की धारा
सास ससुर का बनो सहारा
वहां सभी पर प्यार लुटाना !
जीवन फिर हो जाए सुहाना
हर संकट में हमें बुलाना !
एक खबर पर दौड़ी आऊं!
आ बिटिया तुझे लोरी सुलाऊं !
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद
82 188 25541
--------------------------------
यह तन एक नारियल फल हो ।
अंतर जिसका सरस-सरल हो ।!
कठिन आवरण ऊपर होता
फल रहता है भीतर सुंदर ,
हम भी तन मज़बूत बनाएँ
लेकिन कोमल मन हो अंदर,
कठिन समय के आ जाने पर
सदविवेक मन का सम्बल हो।!
विकसित करें सरलता ऐसी
वृक्ष सरल होता है जैसे,
थकन करे जो दूर सभी की
छायादार बनें हम वैसे ,
नई उमंगों से परिपूरित
मन जैसे सुंदर कोपल हो।!
नन्हे-मुन्ने बालक जैसी
नव मुस्कान करें हम संचित,
बाँटें प्रेम, मित्रता पाएँ
द्वेष-भाव से रहें न कुंठित,
मिलकर जतन करें हम ऐसा
जिससे हर जीवन उज्ज्वल हो।!
ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244103
---------------------------------
रूठे दद्दू
----------
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।
कभी बहुत डटकर मस्ताते,
बच्चों में भी घुल-मिल जाते।
लेकिन जब चढ़ता है पारा,
अच्छों-अच्छों को रपटाते।
बहुत हुआ, अब ठोड़ी उनकी,
थोड़ी सी सहलाएं।
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।
माना अब भी गुस्साएंगे,
शायद थोड़ा चिल्लाएंगे।
पर आखिर में ठंडे होकर,
प्रीत पुरानी बरसाएंगे।
दूर हटेंगी अन्तर्मन पर,
छाई घोर घटाएं।
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।
राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
-------------------------------
हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,
अलग पले दादा -दादी का
साथ न मिल पाया,
चाचा -चाची बुआ सभी
का मेहमानी साया,
एक अकेली आया है बस
रिश्ते नहीं रहे,,
रंग -बिरंगे फूल- तितलियां
सब मॉनिटर पर,
आभासी दुनिया में जीते
हम ऐसे अवसर,
धूप सुनहरी क्या, वह छत
वह अंगने नहीं रहे,,
भेंट चढ़ गई प्रदूषण की
होली - दीवाली,
क्या खुशियां त्योहारी सब
लगता खाली खाली,
वह त्योहारी रंग-बिरंगे
सपने नहीं रहे,,
लगे हमारे बचपन में अब
सुर्खाबों के पर,
केवल शिष्टाचार ओढ़
जीना होता अक्सर,
बचपन से बतियाते दो पल
सच्चे नहीं रहे,
हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,,...
मनोज वर्मा 'मनु'
63970 93523
-------------------------------
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अंतर जिसका सरस-सरल हो ।!
कठिन आवरण ऊपर होता
फल रहता है भीतर सुंदर ,
हम भी तन मज़बूत बनाएँ
लेकिन कोमल मन हो अंदर,
कठिन समय के आ जाने पर
सदविवेक मन का सम्बल हो।!
विकसित करें सरलता ऐसी
वृक्ष सरल होता है जैसे,
थकन करे जो दूर सभी की
छायादार बनें हम वैसे ,
नई उमंगों से परिपूरित
मन जैसे सुंदर कोपल हो।!
नन्हे-मुन्ने बालक जैसी
नव मुस्कान करें हम संचित,
बाँटें प्रेम, मित्रता पाएँ
द्वेष-भाव से रहें न कुंठित,
मिलकर जतन करें हम ऐसा
जिससे हर जीवन उज्ज्वल हो।!
ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244103
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अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।
कभी बहुत डटकर मस्ताते,
बच्चों में भी घुल-मिल जाते।
लेकिन जब चढ़ता है पारा,
अच्छों-अच्छों को रपटाते।
बहुत हुआ, अब ठोड़ी उनकी,
थोड़ी सी सहलाएं।
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।
माना अब भी गुस्साएंगे,
शायद थोड़ा चिल्लाएंगे।
पर आखिर में ठंडे होकर,
प्रीत पुरानी बरसाएंगे।
दूर हटेंगी अन्तर्मन पर,
छाई घोर घटाएं।
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।
राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,
अलग पले दादा -दादी का
साथ न मिल पाया,
चाचा -चाची बुआ सभी
का मेहमानी साया,
एक अकेली आया है बस
रिश्ते नहीं रहे,,
रंग -बिरंगे फूल- तितलियां
सब मॉनिटर पर,
आभासी दुनिया में जीते
हम ऐसे अवसर,
धूप सुनहरी क्या, वह छत
वह अंगने नहीं रहे,,
भेंट चढ़ गई प्रदूषण की
होली - दीवाली,
क्या खुशियां त्योहारी सब
लगता खाली खाली,
वह त्योहारी रंग-बिरंगे
सपने नहीं रहे,,
लगे हमारे बचपन में अब
सुर्खाबों के पर,
केवल शिष्टाचार ओढ़
जीना होता अक्सर,
बचपन से बतियाते दो पल
सच्चे नहीं रहे,
हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,,...
मनोज वर्मा 'मनु'
63970 93523
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मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों,
तुम भारत की शान हो ।
सूरज चन्दा तारे जैसे
सूरज चन्दा तारे जैसे
तुम अनुपम वरदान हो ।।
तुममे रूप सुभाष भगत सिंह ,
लालबहादुर का देखा ।
भारत भाल झुके न किंचित,
मिटे नही यस की रेखा ।
आओ भारत भाग्य विधाता
देश के तुम अभिमान हो ।।
छल बल से लूटा भारत को
तुममे रूप सुभाष भगत सिंह ,
लालबहादुर का देखा ।
भारत भाल झुके न किंचित,
मिटे नही यस की रेखा ।
आओ भारत भाग्य विधाता
देश के तुम अभिमान हो ।।
छल बल से लूटा भारत को
अब तुम मत लूटने देना ।
भारत माता के मस्तक का
भारत माता के मस्तक का
तिलक नही मिटने देना ।
राष्ट्र द्रोहियों का सर कुचलें
यह संकल्प सुजान हो ।।
वीर तपस्वी और मनीषी सभी
देश हित जीते हैं ।
जन जन को अमृत पिलवाते
राष्ट्र द्रोहियों का सर कुचलें
यह संकल्प सुजान हो ।।
वीर तपस्वी और मनीषी सभी
देश हित जीते हैं ।
जन जन को अमृत पिलवाते
और स्वम् विष पीते हैं ।
याद रहे तुम इन्ही पूर्वजों
याद रहे तुम इन्ही पूर्वजों
की संतान महान हो ।।
मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों तुम
मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों तुम
भारत की शान हो ।।
डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद
--------------------------
डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद
--------------------------
चले नयी दिशा की ओर
..............................
लेपटॉप, मोबाइल से,
पापा हो गया मैं बोर।
..............................
लेपटॉप, मोबाइल से,
पापा हो गया मैं बोर।
खेल कोई हो ऐसा,
मचाए जिसमें शोर।
मज़ा भी आये जिसमें,
पड़े न आँखो पर ज़ोर।
मम्मी ,दीदी, आप और मैं,
जिसे खेल सके हम फ़ोर।
पापा खेलें लुकाछिपी,
या फिर पुलिस चोर।
पर खेलेंगे न वो खेल,
जो करते सेहत कमज़ोर।
पड़ चक्कर में इनके ही,
बच्चे बन जाते कामचोर।
रखते न ध्यान पढ़ाई का,
स्वास्थ्य पर करते न ग़ौर।
नन्हें मुख से बात ये सुन,
पापा हो गये भाव विभोर।
खेले राजू संग खेल नए,
चले नयी दिशा की ओर।
मचाए जिसमें शोर।
मज़ा भी आये जिसमें,
पड़े न आँखो पर ज़ोर।
मम्मी ,दीदी, आप और मैं,
जिसे खेल सके हम फ़ोर।
पापा खेलें लुकाछिपी,
या फिर पुलिस चोर।
पर खेलेंगे न वो खेल,
जो करते सेहत कमज़ोर।
पड़ चक्कर में इनके ही,
बच्चे बन जाते कामचोर।
रखते न ध्यान पढ़ाई का,
स्वास्थ्य पर करते न ग़ौर।
नन्हें मुख से बात ये सुन,
पापा हो गये भाव विभोर।
खेले राजू संग खेल नए,
चले नयी दिशा की ओर।
प्रीति चौधरी(शिक्षिका)
राजकीय बालिका इंटर कालेज हसनपुर
ज़िला -अमरोहा
ज़िला -अमरोहा
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#जंगल#
एक बात बताओ प्यारे अंकल, अब हम किसको बोले जंगल?
जंगल मे होते थे पेड़,
कुत्ता बिल्ली बन्दर भेड़।
करते थे आपस मे दंगल,
जंगल मे होता था मंगल।
कौन काटकर ले गया पेड़?
नजर नही आती है भेड़।
दूर दूर तक धरती खाली,
कहाँ गई सुंदर हरियाली?
खाली पड़ी है खेत की मेड़,
मेड़ो पर होते थे पेड़।
पेड़ो से मिलती थी छांव,
जब भी हम जाते थे गांव।
बैठ के नीचे सुस्ताते थे,
मीठे मीठे फल खाते थे।
छुट्टी में जब गांव आते थे,
दादा संग जंगल जाते थे।
जाने कितना सुख पाते थे,
गीत खुशी से हम गाते थे।
बात यह सुनकर बोले अंकल,
बिन पेड़ो के काहे के जंगल,
जिसने किये जंगल वीरान,
उनको सज़ा देंगे भगवान।
कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
94560 31926
----------------------------
सबसे प्यारा मेरा भारत
सबसे न्यारा मेरा भारत
अतिथि सेवा यहां का नारा
दीन दुखी पाते यहां सहारा
ध्यान सभी का रखने वाला
पालन हारा मेरा भारत
वचन पालन यहां की रीत
गाते है सब इसके गीत
सत्य अहिंसा और प्रेम की
पावन धारा मेरा भारत
चित्र है इसका हरा भरा
शोभित इससे पूर्ण धरा
विश्व के विस्तृत नभ का
उज्ज्वल तारा मेरा भारत
डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
एक बात बताओ प्यारे अंकल, अब हम किसको बोले जंगल?
जंगल मे होते थे पेड़,
कुत्ता बिल्ली बन्दर भेड़।
करते थे आपस मे दंगल,
जंगल मे होता था मंगल।
कौन काटकर ले गया पेड़?
नजर नही आती है भेड़।
दूर दूर तक धरती खाली,
कहाँ गई सुंदर हरियाली?
खाली पड़ी है खेत की मेड़,
मेड़ो पर होते थे पेड़।
पेड़ो से मिलती थी छांव,
जब भी हम जाते थे गांव।
बैठ के नीचे सुस्ताते थे,
मीठे मीठे फल खाते थे।
छुट्टी में जब गांव आते थे,
दादा संग जंगल जाते थे।
जाने कितना सुख पाते थे,
गीत खुशी से हम गाते थे।
बात यह सुनकर बोले अंकल,
बिन पेड़ो के काहे के जंगल,
जिसने किये जंगल वीरान,
उनको सज़ा देंगे भगवान।
कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
94560 31926
----------------------------
सबसे प्यारा मेरा भारत
सबसे न्यारा मेरा भारत
अतिथि सेवा यहां का नारा
दीन दुखी पाते यहां सहारा
ध्यान सभी का रखने वाला
पालन हारा मेरा भारत
वचन पालन यहां की रीत
गाते है सब इसके गीत
सत्य अहिंसा और प्रेम की
पावन धारा मेरा भारत
चित्र है इसका हरा भरा
शोभित इससे पूर्ण धरा
विश्व के विस्तृत नभ का
उज्ज्वल तारा मेरा भारत
डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
सबसे सुन्दर फूल गुलाब
प्यारा प्यारा लाल गुलाब
खूशबू भी मनमोहक है
रंग भी कितना प्यारा है।
काले पीले लालसफेद
कितने रंगों का है भेद
इनको कभी न तोडना,
वरना दर्द पडेगा सहना,
सुन्दर कोमल रखते भाव,
फूलोंं से तुम करना प्यार
रखना इनकोसदा संभाल
प्यारा प्यारा लाल गुलाब
खूशबू भी मनमोहक है
रंग भी कितना प्यारा है।
काले पीले लालसफेद
कितने रंगों का है भेद
इनको कभी न तोडना,
वरना दर्द पडेगा सहना,
सुन्दर कोमल रखते भाव,
फूलोंं से तुम करना प्यार
रखना इनकोसदा संभाल
प्यारा प्यारा लाल गुलाब
डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
---------------------------------- -
हर मन को सपना पहनाएँ
आओ ऐसा राष्ट्र बनाएँ
सबके चेहरों पर रौनक हो
अपनेपन की खूब दौलत हो
मेहनत और बुद्धि का मेल हो
कामयाबी की चढ़ती बेल हो
भेदभाव की गिरें दीवारें
प्रेम की सजें नई मिनारें
घोटाले सब घुट - मिट जाएँ
ईमानदारी के परचम लहराएँ
वर्तमान सुन्दर हो इतना कि
भविष्य की चिंता मिट जाए
कोई ना रोए , कोई ना चीखे
सबमें सबको बस रब दीखे
मैं और मेरा से ऊपर उठकर
हम की ताकत हर कोई सीखे
दुनिया से हम पहले भी आगे थे
फिर से वही दौर ले आएँ
मेरे नन्हे दिल की है ये सोच
इसको सबके दिल में बसाएँ
चलो ना सब फिर मिलकर बोलें
कि एक नया इतिहास बनाएँ
आओ ऐसा राष्ट्र बनाएँ
हर मन को सपना पहनाएँ।।।
सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद ।
-----------------------------------
चीं चीं चीं चीं गाती चिड़िया
तिनका तिनका लाती चिड़िया
हरी भरी डाली पर देखो
अपना नीड़ सजाती चिड़िया ।
दाना घर में नहीं मिलेगा
सबको यही सिखाती चिड़िया
दूर गगन में उड़ती उड़ती
देश पराये जाती चिड़िया ।
मेहनत से न डरती चिड़िया
काम समय पर करती चिड़िया
फुदक फुदक नन्हें चुनमुन को
उड़ना है सिखलातीं चिड़िया ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
--------------------------–
उठ जाग लक्ष्य कोई चुन लो,
निज हृदय की वाणी सुन लो।
कोई काम नहीं मुश्किल जग में।
कुछ करने का तुम बस प्रण लो।।
कुछ ठान अगर तुम ठानोगे,
तो हार कभी ना मानोगे।
ना हो निराश गर हार गया।
तेरा बस एक प्रयास गया।।
एक सबक नया तुमने पाया,
इस हार ने भी कुछ सिखलाया।
अपनी भूलें पहचान चलो।
कोई लक्ष्य नया फिर से चुन लो।।
नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
---------------------------------
मेरी माँ है बड़ी महान
करता हूँ उसका गुणगान
उसने हमको सदा सिखाया
करो बड़ों का तुम सम्मान ।
सदा काम में रहती रत
मेहनत उनका जीवन व्रत
उन्हें देख कर हमने सीखा
सच से होवें नहीं विरत ।
तेरी उदासी दूर करेंगे
पथ में तेरे फूल खिलेंगे
तूने माता कष्ट सहे जो
उन कष्टों हमीं हरेंगे।
डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
------------------------------–
दूध के दाँत
--------------------------
नटखट छोटू लगा बिलखने।
उसका दाँत लगा था हिलने।
दाँत कहाँ से मैं लाऊँगा।
बाबा जैसा हो जाऊँगा।
मम्मी पापा ने समझाया।
दाँत दूध के हैं बतलाया।
बारी बारी गिर जाएंगे।
फिर मजबूत दाँत आएंगे।
मिली तसल्ली तो मुस्काया।
बच्चों के सँग रौल मचाया।।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
-----------------------------------
कांँधे पर बैठाकर उसको, छत पर बहुत घुमाता था ।
आते-जाते पक्षी से भी, मैं उसको मिलवाता था ।।
नीचे चलती सड़क पर उसको, छत से सब दिखलाता था ।
खुश होती तो सिर मेरा उस, का तबला बन जाता था ।।
झूजू मामू बहुत कराता, पैरों पर झुलवाता था ।
पोती की मनमानी चलती, बैठे से उठ जाता था ।।
कभी कमर पर कूदा करती, कभी पेट पर कूदी थी ।
काठी का घोड़ा बन जाओ, अक्सर वह यह कहती थी ।।
बॉल यदि वह पैर से मारे, कहती बाबा ले आओ ।
टी वी पर जब बॉल मारती, कहती अब तुम चिढ़ जाओ ।।
जानबूझ कर दीवारों पर, लिखती रंग लगाती है ।
पुस्तक के पन्ने पलटे है, नही स्लेट मन भाती है ।।
काठी सा घोड़ा बनता मैं, वह सवार बन जाती है ।
जब मेरे संँग खेले है वह, दुख को दूर भगाती है ।।
झुका हुआ था शीश नवाता, पूजा करके निबटा था ।
कब पोती पीठ पर लद गयी, काठी-घोड़ा सिमटा था ।।
आज चलेंगे पार्क घूमने, बाबा बहुत दिना बीते ।
कोरोना क्या गया नहीं है, हाथ घुमाती फिर रीते ।।
चला जायेगा करोना तब, जब हम-तुम घर में खेलें ।
अंकल-चिप्स बनाती अम्मा, जो चाहो उनसे लेलें ।।
राम किशोर वर्मा
रामपुर
---------------------------------
दादा जी कोरोना क्या है/
मुझको भी बतलाओ ना/
दुनिया में इतनी हलचल क्यों/
मुझे अभी समझाओ ना/
पापा जी घर पर रहते हैं
काम नहीं करने जाते
घर पर बैठे रहते हरदिन
मम्मी से हैं बतियाते
कोरोना ने ठप्प कर दिया
पापा का सारा रोजगार
आमदनी बिलकुल गायब है
कैसे चले घर परिवार
पापा ने बोला था यह सब
मम्मी से रोते रोते
मैंने यह सब सुना रात था
बिस्तर पर सोते सोते
पापा बहुत दुखी रहते हैं
करते नहीं ठीक से बात
मुझको मिल जाये कोरोना
मारूंगा मैं उसमें लात
दादा जी हँसकरके बोले
बेटा कोरोना बीमारी
लील रही है जानों को
हर दिन दुनिया में अब सारी
तभी रह रहे लोग घरों में
जान बचानी है अब भारी
रोजी रोजगार सब छीने
दुनिया में आई लाचारी
जैसी करनी वैसी भरनी
बात नहीं माने है कोई
काट रहे सब फसल कर्म की
जैसी थी अब तक है बोई
धरती का दोहन है भारी
शैतानी फितरत के कारण
धरा हमारी स्वर्ग सरीखी
बनी हुई है आज अपावन
खानपान का गिरा है स्तर
इंसानो की बस्ती में
खा जाते बिल्ली चमगादड़
ये हैवानों सी मस्ती में
तब ही झेल रहे कोरोना
आज सभी ताकतवर देश
दुर्जन की पीड़ा झेल रहे हैं
भारत जैसे सज्जन देश
नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी मुरादाबाद
आओ ऐसा राष्ट्र बनाएँ
सबके चेहरों पर रौनक हो
अपनेपन की खूब दौलत हो
मेहनत और बुद्धि का मेल हो
कामयाबी की चढ़ती बेल हो
भेदभाव की गिरें दीवारें
प्रेम की सजें नई मिनारें
घोटाले सब घुट - मिट जाएँ
ईमानदारी के परचम लहराएँ
वर्तमान सुन्दर हो इतना कि
भविष्य की चिंता मिट जाए
कोई ना रोए , कोई ना चीखे
सबमें सबको बस रब दीखे
मैं और मेरा से ऊपर उठकर
हम की ताकत हर कोई सीखे
दुनिया से हम पहले भी आगे थे
फिर से वही दौर ले आएँ
मेरे नन्हे दिल की है ये सोच
इसको सबके दिल में बसाएँ
चलो ना सब फिर मिलकर बोलें
कि एक नया इतिहास बनाएँ
आओ ऐसा राष्ट्र बनाएँ
हर मन को सपना पहनाएँ।।।
सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद ।
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चीं चीं चीं चीं गाती चिड़िया
तिनका तिनका लाती चिड़िया
हरी भरी डाली पर देखो
अपना नीड़ सजाती चिड़िया ।
दाना घर में नहीं मिलेगा
सबको यही सिखाती चिड़िया
दूर गगन में उड़ती उड़ती
देश पराये जाती चिड़िया ।
मेहनत से न डरती चिड़िया
काम समय पर करती चिड़िया
फुदक फुदक नन्हें चुनमुन को
उड़ना है सिखलातीं चिड़िया ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
--------------------------–
उठ जाग लक्ष्य कोई चुन लो,
निज हृदय की वाणी सुन लो।
कोई काम नहीं मुश्किल जग में।
कुछ करने का तुम बस प्रण लो।।
कुछ ठान अगर तुम ठानोगे,
तो हार कभी ना मानोगे।
ना हो निराश गर हार गया।
तेरा बस एक प्रयास गया।।
एक सबक नया तुमने पाया,
इस हार ने भी कुछ सिखलाया।
अपनी भूलें पहचान चलो।
कोई लक्ष्य नया फिर से चुन लो।।
नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
---------------------------------
मेरी माँ है बड़ी महान
करता हूँ उसका गुणगान
उसने हमको सदा सिखाया
करो बड़ों का तुम सम्मान ।
सदा काम में रहती रत
मेहनत उनका जीवन व्रत
उन्हें देख कर हमने सीखा
सच से होवें नहीं विरत ।
तेरी उदासी दूर करेंगे
पथ में तेरे फूल खिलेंगे
तूने माता कष्ट सहे जो
उन कष्टों हमीं हरेंगे।
डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
------------------------------–
दूध के दाँत
--------------------------
नटखट छोटू लगा बिलखने।
उसका दाँत लगा था हिलने।
दाँत कहाँ से मैं लाऊँगा।
बाबा जैसा हो जाऊँगा।
मम्मी पापा ने समझाया।
दाँत दूध के हैं बतलाया।
बारी बारी गिर जाएंगे।
फिर मजबूत दाँत आएंगे।
मिली तसल्ली तो मुस्काया।
बच्चों के सँग रौल मचाया।।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
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कांँधे पर बैठाकर उसको, छत पर बहुत घुमाता था ।
आते-जाते पक्षी से भी, मैं उसको मिलवाता था ।।
नीचे चलती सड़क पर उसको, छत से सब दिखलाता था ।
खुश होती तो सिर मेरा उस, का तबला बन जाता था ।।
झूजू मामू बहुत कराता, पैरों पर झुलवाता था ।
पोती की मनमानी चलती, बैठे से उठ जाता था ।।
कभी कमर पर कूदा करती, कभी पेट पर कूदी थी ।
काठी का घोड़ा बन जाओ, अक्सर वह यह कहती थी ।।
बॉल यदि वह पैर से मारे, कहती बाबा ले आओ ।
टी वी पर जब बॉल मारती, कहती अब तुम चिढ़ जाओ ।।
जानबूझ कर दीवारों पर, लिखती रंग लगाती है ।
पुस्तक के पन्ने पलटे है, नही स्लेट मन भाती है ।।
काठी सा घोड़ा बनता मैं, वह सवार बन जाती है ।
जब मेरे संँग खेले है वह, दुख को दूर भगाती है ।।
झुका हुआ था शीश नवाता, पूजा करके निबटा था ।
कब पोती पीठ पर लद गयी, काठी-घोड़ा सिमटा था ।।
आज चलेंगे पार्क घूमने, बाबा बहुत दिना बीते ।
कोरोना क्या गया नहीं है, हाथ घुमाती फिर रीते ।।
चला जायेगा करोना तब, जब हम-तुम घर में खेलें ।
अंकल-चिप्स बनाती अम्मा, जो चाहो उनसे लेलें ।।
राम किशोर वर्मा
रामपुर
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दादा जी कोरोना क्या है/
मुझको भी बतलाओ ना/
दुनिया में इतनी हलचल क्यों/
मुझे अभी समझाओ ना/
पापा जी घर पर रहते हैं
काम नहीं करने जाते
घर पर बैठे रहते हरदिन
मम्मी से हैं बतियाते
कोरोना ने ठप्प कर दिया
पापा का सारा रोजगार
आमदनी बिलकुल गायब है
कैसे चले घर परिवार
पापा ने बोला था यह सब
मम्मी से रोते रोते
मैंने यह सब सुना रात था
बिस्तर पर सोते सोते
पापा बहुत दुखी रहते हैं
करते नहीं ठीक से बात
मुझको मिल जाये कोरोना
मारूंगा मैं उसमें लात
दादा जी हँसकरके बोले
बेटा कोरोना बीमारी
लील रही है जानों को
हर दिन दुनिया में अब सारी
तभी रह रहे लोग घरों में
जान बचानी है अब भारी
रोजी रोजगार सब छीने
दुनिया में आई लाचारी
जैसी करनी वैसी भरनी
बात नहीं माने है कोई
काट रहे सब फसल कर्म की
जैसी थी अब तक है बोई
धरती का दोहन है भारी
शैतानी फितरत के कारण
धरा हमारी स्वर्ग सरीखी
बनी हुई है आज अपावन
खानपान का गिरा है स्तर
इंसानो की बस्ती में
खा जाते बिल्ली चमगादड़
ये हैवानों सी मस्ती में
तब ही झेल रहे कोरोना
आज सभी ताकतवर देश
दुर्जन की पीड़ा झेल रहे हैं
भारत जैसे सज्जन देश
नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी मुरादाबाद
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