सोमवार, 6 जुलाई 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 30 जून 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, ओंकार सिंह, राजीव प्रखर, मनोज वर्मा मनु, डॉ प्रेमवती उपाध्याय , प्रीति चौधरी , कमाल जैदी वफा, डॉ पुनीत कुमार , डॉ श्वेता पूठिया, सीमा वर्मा, डॉ रीता सिंह, नृपेंद्र शर्मा सागर , डॉ प्रीति हुंकार, श्री कृष्ण शुक्ल, रामकिशोर वर्मा और नवल किशोर शर्मा नवल की कविताएं-----

!!      किलकारी      !!
-----------------------------
उसकी   मोहक   मुसकान  मुझे , भूमंडल  से  प्यारी है ।
कानों में मधुरस  सी घुलती , उसकी सुंदर किलकारी है ।।

उसके चेहरे की झलक देख, मैं फूलों सा खिल जाता हूँ ।
वह  जब  बाहें  फैलाती है ,   बाहों में उसको झुलाता हूँ ।।

गुनगुन  की मृदु  झंकार  लिए, मैं लोरी  उसे  सुनाता हूँ ।
निंदिया जब उसको आती है, मैं उदर पे उसे सुलाता हूँ ।।

वह  रानी  बिटिया है  मेरी, आंखों  का  एक सितारा है ।
भविष्य  मेरा  संजोए  हुए , आगत  का  एक सहारा है ।।

गीला मुझको वह करती है , मैं  तब भी वक्ष लगाता हूँ ।
अपने  कुछ खाने से पहले , मैं उसको  भोग लगाता हूँ ।।

    डा. अशोक रस्तोगी.
अफजलगढ़, बिजनौर
--------------------------
 मुर्गा बोला
-----------------
मुर्गा बोला मैं अच्छा हूँ
         बत्तख  बोली मैं अच्छी
इसका कैसे करें फैसला
          तू अच्छा या मैं अच्छी।
        --------------------
   मुर्गा बोला मेरी कलगी
          राज मुकुट सी लगती है
बत्तख बोली मेरी गर्दन
         इंद्र धनुष सी दिखती है।

मुर्गा  बोला  मेरी बोली
         सबके मन को भाती है
बत्तख बोली मेरी बोली
          संकट  दूर  भगाती  है।

मैं  अच्छा  हूँ  मेरी  बोली
           भोर  हुई  बतलाती  है
मेरी चाल सभी को जल में
            तैराकी  सिखलाती है।

इनकी   तूतू-मैंमैं   सुनकर
           बिल्ली मौसी आती  है
लड़ना अच्छी  बात नहीं है
            दोनों  को समझाती है।

मुर्गा   बोला   बत्तख   दीदी
             बिल्ली जो फरमाती है
उसके बहुत पास मत जाना
              यह  धोखा दे जाती है।

   वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद/उ,प्र,
  9719275453
  ------------------------–----

   *लोरी*
आ बिटिया ! तुझे लोरी सुनाऊं!!
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
    जी भर खेली अब सो जा तू!
    सुंदर सपनों में खो जा तू!
    सपनों में आऐंगी परियां
    खुशियों की होगी वे घड़ियां
    निंदिया रानी बड़ी सयानी
    गा गा कर मैं उसे बुलाऊं,!               
 आ बिटिया में लोरी सुनाऊं!
लोरी सुना कर तुझे सुलाऊं!!
    होके बड़ी स्कूल तू जाना !
    पढ़ लिख खूब गुणी बन जाना!
    एक दिन दूल्हे राजा आएं,
    मेरे घर में खुशियां लाएं !
    हम अंखियों से नीर बहाएं
    आशीषें तुझ पर बर्षाऊं !
आ बिटिया तुझे लोरी सुनाऊं!
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!
     जीवन है सुख-दुख की धारा
     सास ससुर का बनो सहारा
     वहां सभी पर प्यार लुटाना !
     जीवन फिर हो जाए सुहाना
     हर संकट में हमें बुलाना !
     एक खबर प‌र दौड़ी आऊं!
आ बिटिया तुझे लोरी सुलाऊं !
लोरी सुना कर तुझको सुलाऊं!!

अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
 82 188 25541
--------------------------------

यह तन एक नारियल फल हो ।
अंतर जिसका सरस-सरल हो ।!

कठिन आवरण ऊपर होता
फल रहता है भीतर सुंदर ,
हम भी तन मज़बूत बनाएँ
लेकिन कोमल मन हो अंदर,
कठिन समय के आ जाने पर
सदविवेक मन का सम्बल हो।!

विकसित करें सरलता ऐसी
वृक्ष सरल होता है जैसे,
थकन करे जो दूर सभी की
छायादार बनें हम वैसे ,
नई उमंगों से परिपूरित
मन जैसे सुंदर कोपल हो।!

नन्हे-मुन्ने बालक जैसी
नव मुस्कान करें हम संचित,
बाँटें प्रेम, मित्रता पाएँ
द्वेष-भाव से रहें न कुंठित,
मिलकर जतन करें हम ऐसा
जिससे हर जीवन उज्ज्वल हो।!

   ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244103
---------------------------------

रूठे दद्दू
----------
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।

कभी बहुत डटकर मस्ताते,
बच्चों में भी घुल-मिल जाते।
लेकिन जब चढ़ता है पारा,
अच्छों-अच्छों को रपटाते।
बहुत हुआ, अब ठोड़ी उनकी,
थोड़ी सी सहलाएं।
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।

माना अब भी गुस्साएंगे,
शायद थोड़ा चिल्लाएंगे।
पर आखिर में ठंडे होकर,
प्रीत पुरानी बरसाएंगे।
दूर हटेंगी अन्तर्मन पर,
छाई घोर घटाएं।
अपने दद्दू रूठे बैठे,
आओ उन्हें मनाएं।

  राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
-------------------------------

हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,

अलग पले दादा -दादी का
 साथ न मिल पाया,
चाचा -चाची बुआ सभी
का मेहमानी साया,
एक अकेली आया है बस
 रिश्ते नहीं रहे,,

रंग -बिरंगे फूल- तितलियां
सब मॉनिटर पर,
आभासी दुनिया में जीते
हम ऐसे अवसर,
धूप सुनहरी क्या, वह छत
वह अंगने नहीं रहे,,

भेंट चढ़ गई प्रदूषण की
 होली - दीवाली,
क्या खुशियां त्योहारी सब
 लगता खाली खाली,
वह त्योहारी रंग-बिरंगे
सपने नहीं रहे,,

लगे हमारे बचपन में अब
सुर्खाबों  के  पर,
केवल   शिष्टाचार   ओढ़
जीना होता अक्सर,
बचपन से बतियाते दो पल
सच्चे नहीं रहे,

हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,,...

   मनोज वर्मा 'मनु'
      63970 93523
------------------------------- 

मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों,
तुम भारत की शान हो ।
सूरज चन्दा तारे जैसे
 तुम अनुपम वरदान हो ।।
तुममे रूप सुभाष भगत सिंह ,
लालबहादुर का देखा ।
भारत भाल झुके न किंचित,
मिटे नही यस की रेखा ।
आओ भारत भाग्य विधाता
देश के तुम अभिमान हो ।।

छल बल से लूटा भारत को 
अब तुम मत लूटने देना ।
भारत माता के मस्तक का 
तिलक नही मिटने देना ।
राष्ट्र द्रोहियों का सर कुचलें
यह संकल्प सुजान हो ।।

वीर तपस्वी और मनीषी सभी
देश हित जीते हैं ।
जन जन को अमृत पिलवाते
 और स्वम् विष पीते हैं ।
याद रहे तुम इन्ही पूर्वजों
 की संतान महान हो ।।
मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों तुम
 भारत की शान हो ।।

   डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद
--------------------------    

 चले नयी दिशा की ओर
..............................

लेपटॉप, मोबाइल से,
पापा हो गया मैं बोर।

खेल कोई हो ऐसा,
मचाए जिसमें शोर।

मज़ा भी आये जिसमें,
पड़े न आँखो पर ज़ोर।

मम्मी ,दीदी, आप और मैं,
जिसे खेल सके हम फ़ोर।

पापा खेलें लुकाछिपी,
या फिर पुलिस चोर।

पर खेलेंगे न वो खेल,
जो करते  सेहत कमज़ोर।

पड़ चक्कर में इनके ही,
बच्चे बन जाते कामचोर।

 रखते न ध्यान पढ़ाई का,
 स्वास्थ्य पर करते न ग़ौर।

नन्हें मुख से बात ये सुन,
पापा हो गये भाव विभोर।

खेले राजू संग खेल नए,
चले नयी दिशा की ओर।
                 
   प्रीति चौधरी(शिक्षिका)
राजकीय बालिका इंटर कालेज हसनपुर
     ज़िला -अमरोहा
--------------------------------

#जंगल#               
एक बात बताओ प्यारे अंकल,                            अब हम किसको बोले जंगल?
जंगल मे होते थे पेड़,
कुत्ता बिल्ली बन्दर भेड़।
करते थे आपस मे दंगल,
जंगल मे होता था मंगल।
कौन काटकर ले गया पेड़?
नजर नही आती है भेड़।
दूर दूर तक धरती खाली,
कहाँ गई सुंदर हरियाली?
खाली पड़ी है खेत की मेड़,
मेड़ो पर होते थे पेड़।
पेड़ो से मिलती थी छांव,
जब भी हम जाते थे गांव।
बैठ के नीचे सुस्ताते थे,
मीठे मीठे फल खाते थे।
छुट्टी में जब गांव आते थे,
दादा संग जंगल जाते थे।
जाने कितना सुख पाते थे,
गीत खुशी से हम गाते थे।
बात यह सुनकर बोले अंकल,
बिन पेड़ो के काहे के जंगल,
जिसने किये जंगल वीरान,
उनको सज़ा देंगे भगवान।

     कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
94560 31926
----------------------------

सबसे प्यारा मेरा भारत
सबसे न्यारा मेरा भारत

अतिथि सेवा यहां का नारा
दीन दुखी पाते यहां सहारा
ध्यान सभी का रखने वाला
पालन हारा मेरा भारत

वचन पालन यहां की रीत
गाते  है सब इसके गीत
सत्य अहिंसा और प्रेम की
पावन धारा मेरा भारत

चित्र है इसका हरा भरा
शोभित इससे पूर्ण धरा
विश्व के विस्तृत नभ का
उज्ज्वल तारा मेरा भारत

   डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
----------------------------------------

सबसे सुन्दर फूल गुलाब
प्यारा प्यारा लाल गुलाब
खूशबू भी मनमोहक है
रंग भी कितना प्यारा है।
काले पीले  लालसफेद
कितने रंगों का है भेद
इनको कभी न तोडना,
वरना दर्द पडेगा सहना,
सुन्दर कोमल रखते भाव,
फूलोंं से तुम करना प्यार
रखना इनकोसदा संभाल
प्यारा प्यारा लाल गुलाब

    डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
---------------------------------- -

हर मन को सपना पहनाएँ
    आओ ऐसा राष्ट्र बनाएँ
सबके चेहरों पर रौनक हो
   अपनेपन की खूब दौलत हो
मेहनत और बुद्धि का मेल हो
    कामयाबी की चढ़ती बेल हो
भेदभाव की गिरें दीवारें
   प्रेम की सजें नई मिनारें
घोटाले सब घुट - मिट जाएँ
   ईमानदारी के परचम लहराएँ
वर्तमान सुन्दर हो इतना कि
  भविष्य की चिंता मिट जाए
कोई ना रोए , कोई ना चीखे
  सबमें सबको बस रब दीखे
मैं और मेरा से ऊपर उठकर
  हम की ताकत हर कोई सीखे
दुनिया से हम पहले भी आगे थे
  फिर से वही दौर ले आएँ
मेरे नन्हे दिल की है ये सोच
   इसको सबके दिल में बसाएँ
चलो ना सब फिर मिलकर बोलें
   कि एक नया इतिहास बनाएँ
आओ ऐसा राष्ट्र बनाएँ
  हर मन को सपना पहनाएँ।।।

    सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद  ।
-----------------------------------

चीं चीं चीं चीं गाती चिड़िया
तिनका तिनका लाती चिड़िया
हरी भरी डाली पर देखो
अपना नीड़ सजाती चिड़िया ।

दाना घर में नहीं मिलेगा
सबको यही सिखाती चिड़िया
दूर गगन में उड़ती उड़ती
देश पराये जाती चिड़िया ।

मेहनत से न डरती चिड़िया
काम समय पर करती चिड़िया
फुदक फुदक नन्हें चुनमुन को
उड़ना है सिखलातीं चिड़िया ।

    डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
--------------------------–

उठ जाग लक्ष्य कोई चुन लो,
निज हृदय की वाणी सुन लो।
कोई काम नहीं मुश्किल जग में।
कुछ करने का तुम बस प्रण लो।।

    कुछ ठान अगर तुम ठानोगे,
    तो हार कभी ना मानोगे।
     ना हो निराश गर हार गया।
     तेरा बस एक प्रयास गया।।

एक सबक नया तुमने पाया,
इस हार ने भी कुछ सिखलाया।
अपनी भूलें पहचान चलो।
कोई लक्ष्य नया फिर से चुन लो।।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
---------------------------------

मेरी माँ है बड़ी महान
करता हूँ उसका गुणगान
उसने हमको सदा सिखाया
करो बड़ों का तुम सम्मान ।

सदा काम में रहती रत
मेहनत उनका जीवन व्रत
उन्हें देख कर हमने सीखा
सच से होवें नहीं विरत ।

तेरी उदासी दूर करेंगे
पथ में तेरे फूल खिलेंगे
तूने माता कष्ट सहे जो
उन कष्टों हमीं हरेंगे।
 
    डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
------------------------------–
 दूध के दाँत
--------------------------

नटखट छोटू लगा बिलखने।
उसका दाँत लगा था हिलने।
दाँत कहाँ से मैं लाऊँगा।
बाबा जैसा हो जाऊँगा।
मम्मी पापा ने समझाया।
दाँत दूध के हैं बतलाया।
बारी बारी गिर जाएंगे।
फिर मजबूत दाँत आएंगे।
मिली तसल्ली तो मुस्काया।
बच्चों के सँग रौल मचाया।।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
-----------------------------------

  कांँधे पर बैठाकर उसको, छत पर बहुत घुमाता था ।
 आते-जाते पक्षी से भी, मैं उसको मिलवाता था ।।

 नीचे चलती सड़क पर उसको, छत से सब दिखलाता था ।
  खुश होती तो सिर मेरा उस, का तबला बन जाता था ।।

  झूजू मामू बहुत कराता, पैरों पर झुलवाता था ।
  पोती की मनमानी चलती, बैठे से उठ जाता था ।।

  कभी कमर पर कूदा करती, कभी पेट पर कूदी थी ।
  काठी का घोड़ा बन जाओ, अक्सर वह यह कहती थी ।।

 बॉल यदि वह पैर से मारे, कहती बाबा ले आओ ।
 टी वी पर जब बॉल मारती, कहती अब तुम चिढ़ जाओ ।।

  जानबूझ कर दीवारों पर, लिखती रंग लगाती है ।
  पुस्तक के पन्ने पलटे है, नही स्लेट मन भाती है ।।

  काठी सा घोड़ा बनता मैं, वह सवार बन जाती है ।
  जब मेरे संँग खेले है वह, दुख को दूर भगाती है ।।

 झुका हुआ था शीश नवाता, पूजा करके निबटा था ।
 कब पोती पीठ पर लद गयी, काठी-घोड़ा सिमटा था ।।

  आज चलेंगे पार्क घूमने, बाबा बहुत दिना बीते ।
   कोरोना क्या गया नहीं है, हाथ घुमाती फिर रीते ।।

  चला जायेगा करोना तब, जब हम-तुम घर में खेलें ।
  अंकल-चिप्स बनाती अम्मा, जो चाहो उनसे लेलें ।।
      राम किशोर वर्मा
रामपुर
     
---------------------------------

 दादा जी कोरोना क्या है/
मुझको भी बतलाओ ना/
दुनिया में इतनी हलचल क्यों/
मुझे अभी समझाओ ना/
पापा जी घर पर रहते हैं
काम नहीं करने जाते
घर पर बैठे रहते हरदिन
मम्मी से हैं बतियाते
कोरोना ने ठप्प कर दिया
पापा का सारा रोजगार
आमदनी बिलकुल गायब है
कैसे चले घर परिवार
पापा ने बोला था यह सब
मम्मी से रोते रोते
मैंने यह सब सुना रात था
बिस्तर पर सोते सोते
पापा बहुत दुखी रहते हैं
करते नहीं ठीक से बात
मुझको मिल जाये कोरोना
मारूंगा मैं उसमें लात
दादा जी हँसकरके बोले
बेटा कोरोना बीमारी
लील रही है जानों को
हर दिन दुनिया में अब सारी
तभी रह रहे लोग घरों में
जान बचानी है अब भारी
रोजी रोजगार सब छीने
दुनिया में आई लाचारी
जैसी करनी वैसी भरनी
बात नहीं माने है कोई
काट रहे सब फसल कर्म की
जैसी थी अब तक है बोई
धरती का दोहन है भारी
शैतानी फितरत के कारण
धरा हमारी स्वर्ग सरीखी
बनी हुई है आज अपावन
खानपान  का गिरा है स्तर
इंसानो की बस्ती में
खा जाते बिल्ली चमगादड़
ये हैवानों सी मस्ती में
तब ही झेल रहे कोरोना
आज सभी ताकतवर देश
दुर्जन की पीड़ा झेल रहे हैं
भारत जैसे सज्जन देश
 
      नवल किशोर शर्मा 'नवल'
 बिलारी मुरादाबाद

1 टिप्पणी: