मंगलवार, 8 सितंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह ''साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 18 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह, अशोक विद्रोही, श्री कृष्ण शुक्ल, अटल मुरादाबादी, डॉ श्वेता पूठिया, दीपक गोस्वामी चिराग ,डॉ रीता सिंह, आयुषि अग्रवाल, स्वदेश सिंह, नजीब जहां, रवि प्रकाश, नृपेन्द्र शर्मा सागर ,कंचनलता पांडेय , कमाल जैदी वफ़ा, रामकिशोर वर्मा, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा वर्मा , राजीव प्रखर जी कविताएं और विवेक आहूजा की कहानी-----


मेरा प्यारा मिट्ठू तोता,
मन से मिर्ची खाता है।
राम नाम का जाप उसे तो,
हर दिन देखो भाता है।

जब भी चाहूँ उसे पकड़ना,
झट से वह उड़ जाता है।
इधर उधर है छिपता फिरता,
हाथ नहीं वह आता है।।

देख डांस शो टीवी पर वह ,
ठुमके खूब लगाता है।
साथ साथ उन ठुमकों के ही,
गाना हमें सुनाता है।।

घर में हर बच्चे बूढ़े का,
लेकर नाम बुलाता है।
मुझको तो ऐसा लगता है,
गहरा उससे नाता है।।

 ✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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इन्द्र धनुष का रंग निराला
इसका रूप बड़ा मतवाला
वर्षा रुकी बदरिया छाई
जब सूरज ने झलक दिखाई
सूरज की विपरीत दिशा में
यह न दिखेगा कभी निशा में
अद्भुत दृश्य नजर एक आया
सात रंगो ने जिसे बनाया
जादू जैसा कोई चलाएं
कैसे इंद्रधनुष बन जाए ?
इंद्रदेव वर्षा करते हैं
इस जग की पीड़ा हरते हैं
मेघों से जल बूंदे झड़तीं
सूर्य किरण उन पर जब पड़तीं
सातों रंग उभर तब आते
मिलकर इंद्रधनुष बन जाते
दौड़ दौड़ बच्चों की टोली
इसे निहारे करे ठिठोली
बैंगनी, नीला फिर आसमानी
देखो अम्मा ! देखो नानी !
हरा,पीला,नारंगी ,लाल
सात रंगों ने किया कमाल
सब मिल अद्भुत छटा दिखाते
सब बच्चों के मन को भाते
बच्चों बात हमारी मानो !
इसमें छुपा रहस्य पहिचानो !
मिलजुल  कर जब रहते सारे
रंग निखरते कितने प्यारे
तुम सब भी मिल जुल कर रहना !
इंद्रधनुष सम जग से कहना !
अगणित जन जन भिन्न प्रकार
मिलकर बनता है संसार
अलग अलग हम भले अनेक
सब मिल कर बन जायें एक !
इससे कितना सुख पाओगे !
सबके प्यारे बन जाओगे !

✍️अशोक विद्रोही
 8218825541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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आओ थोड़े वृक्ष लगायें
हरी भरी ये धरा बनायें।

ये धरती को बाँधे रखते।
भूजल का संरक्षण करते।
स्वयं धूप में तपते हैं पर
प्राणवायु ये हमको देते।
फर्ज हमारा भी है बच्चो,
हम भी मिलकर इन्हें बचायें।
आओ थोड़े वृक्ष  लगायें।

पत्थर खाकर फल देते हैं।
पथ पर ये छाया देते हैं।
गिर जाते हैं पर मिट कर भी,
खुद जल कर ईंधन देते हैं।
इनके उपकारों का सोचो,
कैसे हम सब मूल्य चुकायें।
आओ थोड़े वृक्ष लगायें।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद
मोबाइल  9456641400
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अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।
मुझको चंदा से मिलवा दो।।
मैं अब  रोटी नहीं खाउँगा-
मैं अब स्कूल नहीं जाऊँगा।
          पूरी   मेरी   मांग  करा   दो।
          अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।

भैया बहुत चिढ़ाते हैं अब।
मुझको बहुत रुलाते हैं सब।
गुड़िया गुड्डे हुए बिछोने ,
टूटे सारे खेल -खिलौने।
              अब तो कोई नया दिला दो।
             अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।

अम्मा मैं मेला जाऊंगा  ,
मैं तो चाऊमीन खाउँगा ।
पूरी कर दो मेरी यह विश,
दिलवा दो जीभचटोरी डिश।
           मुझको तुम अब ही मॅगवा दो।
             अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।

वरना मेरी कुट्टी तुमसे ,
बोलूंगा अब  ना ही तुमसे।
प्यार दिखाओ चाहे जितना ,
लाड़ लड़ाओ चाहे कितना।

            चाहे पूड़ी -खीर खिला दो।
             अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।
                   
 ✍️ अटल मुरादाबादी
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माँ मेरी है सबसे प्यारी
इसकी हर बात निराली
हमको सारी रोटी देकर
खुद पानी पी सो जाती।
जब हम माँगे नर्म सा बिस्तर,
अपनी गोद मे हमे  सुलाती,
लोरी गाकर मन हर्षाती।
अपने सारे दर्द छुपाकर
हमारे संग मुस्काती
दर्द हमारे, आँसू उसके,
सच कहती हूँ
माँ मेरी है सबसे प्यारी।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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मैं हूं राष्ट्रीय पक्षी मोर।
पीउँ-पीउँ का करता शोर।
जब भी हो वर्षा घनघोर।
नाचूँ-झूमूँ मैं चहुँ ओर।
 देख पंख मेरे अति सुंदर,
 भाल सजाए *माखनचोर*।

सांँप देख सब ही डर जाते।
 उसको झट हम चट कर जाते।
 'मंगल भवन अमंगलहारी'।
 शिव का बेटा करे सवारी।
कौन है उसका नाम बताओ।
फिर भाई ज्ञानी कहलाओ।

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) पिन-244410
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com*
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आलू राजा सदाबहार
खाने में यह सबका प्यार ।

चाँट पकौड़ी अरु कचौड़ी
ये सब इसके ही उपहार ।

टिक्की हो या फिर समोसा
आलू इनका पक्का यार ।

हर सब्जी का साथ निभाये
ऐसा इसका है व्यवहार ।

लगा रोग मंहगाई जब
लगता सूना है बाजार ।

✍️ डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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एक दिन चूहा बन गया शेर,
करने निकला जंगल की सैर।

धमा-चौकड़ी खूब मचाता,
रौब से था सबको धमकाता।

सारे जानवर मिलकर संग,
देख रहे सब उसे हो दंग।

छुपी बैठी थी बिल्ली रानी,
चुप देखे उसकी मनमानी।

जब बिल्ली को गुस्सा आया,
गुस्से से माथा ठनकाया।

बिल्ली ने फिर डाँट लगाई,
ची-ची कर भागे चूहे भाई।

✍️ आयुषी अग्रवाल
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास
कुन्दरकी (मुरादाबाद)
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आओ बच्चों पेड़ लगायें
धरा को हरा-भरा बनायें

           जीवन का है यह आधार
             धरती का करते सिंगार

मोनू यह लो पेड़ नीम का
करता यह काम हकीम का

            दीपा तुम लगाओं पीपल
           देता ये ऑक्सीजन हर पल

लगाओं तुम सब क्यारी- क्यारी
देना खाद,पानी सब बारी-बारी

          करना सब इनकी रखवाली
        पेड़ जीवन में लाते खुशहाली

✍️ स्वदेश सिंह
 सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद
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पेड़ों ने हमको जीवन दिया
सब कुछ अपना अर्पण किया।
फल दिए लकड़ी और दी छाया
फिर क्यों इंसान समझे पराया।
काटो नहीं वृक्ष नए-नए लगाओ
जीवन को स्वस्थ, स्वच्छ बनाओ।
एक वृक्ष सदियों  साथ निभाता
इंसान यह क्यों समझ नहीं पाता।
दुनिया के इंसान को बात समझनी है
प्रकृति भी हमारी जीवन जननी है।

✍️ नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724
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गुड़िया  को  ले मेला जाते
चक्की  चूल्हा  बेलन लाते
चकले पर थी रोटी बिलती
दो-दो रोटी सबको मिलती
मिट्टी  की  थी  सभी रसोई
टूटी  तो  फिर  गुड़िया रोई
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अब  हैं  खेल- खिलौने न्यारे
प्लास्टिक के दिखते हैं प्यारे
अब  है  गैस - सिलेंडर भारी
बिजली  की  चीजें   हैं सारी
मिक्सी   से   सिलबट्टा  हारा
गया    पुराना    युग   बेचारा

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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क्या है ये गड़बड़ घोटाला
चूहे🐀 ने हाथी🐘 धो डाला।
मोटा ताज़ा एक परिंदा 🦅
 मच्छर सिंह🦟 का बना निबाला।।
शेर सिंह 🦁 ने पूँछ दबाई
 जब लोमड़ 🦊को आते देखा।
देख मगर 🐊को पेड़ पर चढ़ते।
बन्दर जी🐒 ने जिगर उछाला।
क्या है ये गड़बड़ घोटाला,
जँगल में दंगल कर डाला।
चिंटू चूहे 🐁 से सब डरकर,
ओढ़ रहे अज्ञात दुशाला।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद
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पेड़ आपनें लगाये बहुत हैं
कुछ हमें भी सिखाओ ना मैडम
कैसे मिट्टी बनाते हैं पहले
फिर पौधे लगाये कैसे मैडम
कौन सी पौध रोपें किस मौसम
विस्तार पूर्वक बताओ न मैडम
कितना खाद व कब कितना पानी
हम सबको समझा देना मैडम

✍️ कंचन लता पाण्डेय
आगरा
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अम्मा मुझको अच्छा लगता तेरे हाथ का खाना,
पापा से कह दूंगा अब बाजार से कुछ न लाना।

आलू साग की सब्जी भी तू बढ़िया बहुत बनाती,
अपने हाथ से देके निवाला स्वाद को और बढ़ाती।

आलू भरे परांठे तेरे सबको खूब है भांते,
बड़े चाव से सब घर वाले बैठ के संग में खाते।

तेरे हाथ की खीर के घर मे सब ही है दीवाने,
तेरे जैसे बना न पाये कोई भी घर मे खाने।

मैगी पिज्जा बर्गर  वर्गर अब न कुछ खाऊंगा,
तेरे प्यारे हाथों का यह स्वाद कहा पाऊंगा।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,
अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)9456031926
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घर की एक न मानें बच्चे
जितनी अध्यापक की ।
बहुत गुणी उनके सम्मुख हैं
उनके अध्यापक जी ।
अध्यापक ने जब पेड़ लगाया
बच्चों को वह बहुत ही भाया।
सब बच्चे पेड़ एक लाये
विद्यालय प्रांगण रोपाये ।
किसी ने गड्ढ़ा खोद दिया
तो खाद किसी ने डाल दिया ।
पेड़ लगाकर तरह-तरह के
पर्यावरण संदेश दिया ।
घर पर अब कहते हैं बच्चे
पौधे अवश्य लगाने हैं ।
शुद्ध हवा भी मिलेगी इनसे
सुमन बहुत मन भाने हैं ।
     
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
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क्यों तोते को  कैद किया  है?
बोलो तनिक  बुआ  जी तुम,
क्योंइसको ये सजा मिली है?
बोलो तनिक बुआ जी  तुम।
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तार पकड़ कर  ऊपर  नींचे,
गिरता   चढ़ता    रहता    है,
कब इससे  बाहर  निकलूंगा,
यही    सोचता    रहता    है,
कब  इसको आज़ाद करोगी,
बोलो तनिक बुआ  जी  तुम।

बिखर  गया  है  रोटी  दाना,
पानी     नहीं    कटोरी    में,
हरी मिर्च भी सूख  चुकी  है,
भूखा    है     मजबूरी     में,
किसने  पूछा  भूख लगी  है,
बोलो तनिक  बुआ जी तुम।

उड़ते  सब तोतों  से कहता,
मैं   हूँ   बेबस     बंद   पड़ा,
तुम ही आकर के बतलाओ,
कैसे    काटूं     फंद    बड़ा,
बुरा नहीं लगता क्या तुमको?
बोलो तनिक  बुआ जी तुम।

आज़ादी   सबको  भाती  है,
तुमको   भी    भाती    होगी,
क्या तोते  को  ही आजीवन,
सजा    रास   आती    होगी,
कब  इसपर उपकार करोगी,
बोलो तनिक  बुआ जी  तुम।

बढ़  करके  दरवाजा   खोलो,
पिंजड़े    से    आजाद   करो,
खुशी - खुशी अम्बर में उड़ने,
जीवन   को    आबाद    करो,
फिर कब  अत्याचार  करोगी,
बोलो तनिक  बुआ  जी  तुम।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-9719275453
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       छोटा सा आलू बड़े काम का
               मोटा सा आलू बड़े काम का
     छोटा सा आलू बड़े काम का
               मोटा सा आलू बड़े काम का 
   
     गोभी मटर के साथ
                  इतना बड़ा रिश्ता है   
     गाजर और पालक के साथ भी
                            यह दिखता है
      छोटा सा आलू बड़े काम का
               मोटा सा आलू बड़े काम का
   
     मुन्नी जब रूठे तो
                         आलू खाती है
             मुन्ना जिद कर बैठे जब
                            आलू भाता है
     छोटा सा आलू बड़े काम का
                मोटा सा आलू बड़े काम का     
 
      भिंडी टमाटर भी भी
                              इसके यार हैं
      हर एक की सब्जी को
                              इससे प्यार है
      छोटा सा आलू बड़े काम का
                मोटा सा आलू बड़े काम का

      आलू का हलवा
                      आलू की चाट
      सब्जियों का राजा है
                      इसके बड़े ठाट
      छोटा सा आलू बड़े काम का
                मोटा सा आलू बड़े काम का ।।
✍️  सीमा वर्मा
मुरादाबाद
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        जंगल के राजा शेर ने आपसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए सभी जीव जंतुओं की जंगल में एक सभा का आयोजन किया।  जंतुओं को संबोधित करते हुए सभा में पधारने का धन्यवाद दिया व सभी से अपनी अपनी समस्याएं रखने का प्रस्ताव रखा। सर्वप्रथम गधा कुमार जी ने खड़े होकर अपनी समस्या रखने के लिए महाराज से गुजारिश की जो कि तुरंत स्वीकार कर ली गई ।तत्पश्चात गधे कुमार जी ने कहना शुरू किया "महाराज मुझे अपने जीव जंतु समुदाय से कोई शिकायत नहीं है परंतु मानव जाति ने मेरा जीना मुश्किल करा हुआ है" आगे बताते हुए गधा कुमार जी बोले "मानव दिन रात मुझे सामान ढोने पर लगाए रहता है और एक पल भी मुझे आराम करने नहीं देता" गधे ने रूआंसु होकर कहा सरकार इतनी मेहनत करने के बाद भी मानव समाज में मेरी कोई इज्जत नहीं है।गधे  की बात समाप्त होते ही तोता श्री फुदक कर सभा के मध्य आ गए और तीखी आवाज में बोले "महाराज मानव ने हमें तो बिल्कुल गुलाम ही बना रखा है और हमारा जीवन सालों साल पिंजरे में कैद होकर रह जाता और पिंजरे में ही हम लोग मर जाते हैं, महाराज हमें पिंजरे की गुलामी से आजादी दिलाई जाए"  तोता श्री बोले    मानव तो अब उनका भक्षण भी कर रहे हैं ।  भक्षण की बात सुन मुर्गा और बकरे ने शोर मचा दिया जोर से सभा में दहाड़े मार-मार कर रोने लगे शेर महाराज ने उन्हें बमुश्किल चुप कराया और उनसे रोने का कारण पूछा तो वह रोते हुए बोले "महाराज मानव से हमारी रक्षा करें इन लोगों ने तो हमारा जीवन दूभर कर दिया है इनकी कोई दावत होती है वह हमारी जान लेकर ही जाती है" और तो और हम लोग तो अपनी पूरी जिंदगी भी नहीं कर पाते इससे पहले ही मानव हमारा भक्षण कर लेता है सब की समस्याएं सुन महाराज शेर ने लंबी सांस लेते हुए कहा आप सब की समस्याएं काफी गंभीर हैं  और इन सब के निस्तारण की भी अति आवश्यकता है। सभी छोटे-बड़े जीव-जंतुओं ने एक सुर में महाराज से कहा "अब बात समझाने से आगे निकल चुकी है" अतः अब मानव को सबक सिखाने का वक्त आ गया और सभी जीव जंतु समुदाय ने सर्वसम्मति से मानव जाति के विरुद्ध जंग का प्रस्ताव पास कर दिया। महाराज ने सभी को समझाया की जंग से कोई फायदा नहीं आपस में ही बैठ कर सुलाह कर लेते हैं। परंतु कोई भी जीव मानने को तैयार नहीं हुआ । सभी ने महाराज से आग्रह किया कि मानव को एक बार सबक सिखाना अत्यंत आवश्यक है । महाराज जी ने कहा मैंने मानव को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई है। और इस योजना में "कोरोना विषाणु" बेटा हमारी मदद करेगा सभी जीव जंतुओं ने महाराज से पूछा यह कैसे संभव है ।कोरोना तो बहुत छोटा है और नंगी आंखों से हम इसे देख भी नहीं सकते फिर यह हमारी मदद किस प्रकार कर सकेगा ।महाराज ने कहा कोरोना ही हमारी मदद कर सकता है और मानव को अच्छी तरह सबक सिखा सकता है ।उन्होंने करोना  को बुलाया और उसे आदेश दिया कि पृथ्वी के पूर्वी हिस्से में किसी खाद पदार्थ में मिलकर अपना दुष्प्रभाव दिखाना शुरू करो वह एक से दूसरे दूसरे से तीसरे फिर हजारों लाखों करोड़ों लोगों में अपना दुष्प्रभाव पृथ्वी के सभी देशों में फैला दो। महाराज से आज्ञा लेकर कोरोना विषाणु ने पूर्व से पश्चिम तक पूरी पृथ्वी पर अपना दुष्प्रभाव चलाना शुरु कर दिया। लाखों की संख्या में मानव मरने लगे। सभी जीव जंतुओं को मानव द्वारा अपने ऊपर किए गए अत्याचार का बदला मिल गया था और सब एकत्र होकर महाराज के पास आए व बोले "महाराज मानव जाति को अब काफी सबक मिल चुका है ,अब आप कोरोना को वापसी का आदेश दें" महाराज शेर ने तुरंत कोरोना को बुलवाया और उससे मानव जाति पर उसके प्रभाव की रिपोर्ट मांगी। कोरोना विषाणु ने सीना चौड़ा कर महाराज से कहा कि "मै आपको अभी अपने प्रभाव की छमाही रिपोर्ट देता हूं" यह कहकर करोना ने बताना शुरू किया "मानव मेरे प्रभाव से मुंह पर कपड़ा बांधकर घूमता है ,  इसके अलावा सबसे मजेदार बात यह है कि मानव एक दूसरे से दूर दूर होकर बैठता है " यह कहकर कोरोना ने एक जबरदस्त ठहाका लगाया सभी जीव जंतु छमाही रिपोर्ट सुनकर अति प्रसन्न हुए ,तत्पश्चात सभी जीव जंतुओं ने महाराज से कहा अब बहुत हुआ मानव को सबक मिल चुका है आप कोरोना से कहे कि वह अपने प्रभाव को खत्म करें और शांत हो जाए । महाराज ने कोरोना को तुरंत आदेश दिया कि वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर पूरे विश्व से रवाना हो जाए । किंतु करोना तो घमंड में चूर हो चुका था उसने महाराज का आदेश  मानने से साफ इंकार कर दिया । यह सुन सभी जीव जंतु बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने कोरोना को सभा से धक्के मार कर अपनी जमात से बाहर कर दिया। कोरोना की इस हरकत पर सभी जीव जंतु बहुत दुखी थे ।महाराज ने कहा  "पृथ्वी पर भारतवर्ष के पीएम बहुत अच्छे व्यक्ति हैं मैं उन्हें अपने पत्रवाहक कबूतर को भेजकर खबर करता हूं" कि कैसे जीव-जंतुओं की नासमझी के कारण यह समस्या खड़ी हो गई है व करोना बागी हो गया है।  उन्होंने कबूतर जी को पत्र देकर रवाना किया ।
तत्पश्चात भारतवर्ष के पीएम नेअपने वैज्ञानिकों, डॉक्टरों की पूरी टीम को करोना पर कार्यवाही के लिए लगा दिया और जल्द ही पूरा विश्व कोरोना के प्रभाव से मुक्त हो गया। इस प्रकार सभी जीव जंतुओं ने महाराज शेर के सम्मुख अपनी गलती स्वीकारी , अब उन्हे अच्छे से समझ आ चुका था कि दुनिया को प्यार से ही जीता जा सकता है ना कि बदले से, और सभी ने महाराज शेर के समक्ष प्रण किया कि अब वह मानव जाति के साथ प्रेम से ही जीवन व्यतीत करेंगे ।

 ✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

सोमवार, 7 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु की दस ग़ज़लों पर ''मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा


    वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 5 व 6 सितंबर 2020 को मुरादाबाद के युवा शायर मनोज वर्मा मनु 
की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले मनोज वर्मा मनु द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं-

(1)

खाक़ दिल की दवा करे कोई
जब न मरहम शिफा करे  कोई

कोई तो हो कि ग़म की बात करे
ज़ख्म दिल का हरा  करे  कोई

इश्क़ में क्या सुकूँ  मिला  हमको
काश ये  मशवरा   करे   कोई

आप  की  रहमतें  ही  इतनी  हैं
किस  तरह  हक़  अदा करे कोई

लाख कोशिश करें भुलाने की
फिर तेरा तज़किरा करे कोई

क़ौल पर मुस्तनद रहे अपने
और वादा  वफ़ा  करे  कोई

बुत-परस्त अब नहीं रहे हैं हम
अब न हमसे गिला  करे  कोई

(2)

खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल
हम पतंगे हर तरफ़ झूठा उजाला आजकल

हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी
किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल

कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी
कौन रोता है बज़ाहिर बात वाला आजकल

हादसों में जिंदगी घुटनों तलक तो आ गई
और इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल

झूठ बिक जाता है हाथों हाथ अच्छे दाम में
और सच्चाई का मुंह होता है काला आजकल

हाँ मुझे अहसास होता है  कि तू नज़दीक है
दें रही हैं खुशबुएँ तेरा हवाला  आजकल

(3)

कभी जो हक़ किसी का काटता है
जमीरो-ज़र्फ़ खुद का काटता है

सियासी अस्लियत में हो गया वो
जो अस्ली  है वो  मुद्दा  काटता है

बज़ाहिर जो हिमायत में खड़ा था
गला अब खुद हमारा काटता ह

दिले-हस्सास भी नादाँ है कितना
वफ़ा करता है ख़दशा काटता है

कभी जज़्बात की रौ में न बहना
गरम लोहे को ठंडा काटता है

नज़र का फेर है या फिर हक़ीक़त
बिकाऊ वक़्त अच्छा काटता है

ज़मीरो-ज़र्फ़ का तो ये है साहिब
जो रखता है वो घाटा काटता है

अदालत किस क़दर अंधी हुई है,
कि पैसा हक़ का क़िस्सा काटता है

(4)

हमारी क़ुव्वतों से भी सिवा हैरान रखता है
कि अपने फैसले से वो हमें अनजान रखता है

हज़ारों किस्म के दुनिया मे भरता रंग भी है वो
हज़ारों बार दुनिया भी वही  वीरान रखता है

जिन्हें हम सुन नहीं सकते जिन्हें छू भी नहीं सकते
उसी की दस्तरस में है वो सब में जान रखता है

अज़ीज़ों में नहीं कोई रक़ीबों  में  नहीं कोई
मगर वो रहमतों में रहम दिल  इंसान रखता है

मिरे रब शुक्रिया सद शुक्रिया सद शुक्रिया तेरा
तू ही दोनों जहां मेरे लिए आसान  रखता है

उसे जितने भी सजदे हों 'मनु' कम है इबादत में
हमारे वास्ते क्या ख़ूब वो मीज़ान  रखता है

(5)

चाह में उसकी न जाने क्या मुक़द्दर हो गया
मंजिलों का एक मुसाफिर एक पत्थर हो गया

दर्द जो लेकर किसी का बाँटता खुशियां रहा
एक दरिया से वही इंसाँ समंदर  हो गया

जीतने को सरहदें जीती सिकंदर ने मगर
जो दिलों को जीत पाया वह कलंदर हो गया

मुद्दतों पहलू में पाला चार दिन का यह असर
दिल हमारी जान का खुद ही सितमगर हो गया

एक सराय बन गई संसद हमारे मुल्क की
मकतबे-रिश्वत यहां हर एक दफ्तर हो गया

मैं बज़ाहिर तो बहुत ही नर्मो - नाज़ुक था मगर
किस तरह टेढ़ा मेरे क़ातिल का खंजर हो गया

हौसला जिसने नहीं हारा है अपना वो 'मनु'
आग में तापे गए कुंदन से  बेहतर  हो गया

(6)

ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे
मियाँ बुज़ुर्गों की ये भी सलाह याद रहे

अगर हो ग़ैर से तक़रार बात दीग़र है
मगर हो भाई से तो बस निबाह याद रहे

करें जो नेकियाँ उनको भुला भी सकते हैं
मगर गुनाह से तौबा गुनाह याद रहे

नवाज़ता है वही मत गुमान में डूबो
कि कर वो देगा कभी भी तबाह  याद रहे

रहम पसन्द बनो ये पसन्द है उसको
मुआफ़ियों में है रब की पनाह  याद रहे

हमेशा मनु रहे दिल में ख़्याल मालिक का
कभी बिगड़ने न देगा ये राह याद रहे

(7)

उसे खोने का ग़म ही उसको बतलाने नहीं देता
ये ख़दशा क्यों मेरे दिल से खुदा जाने नहीं देता

हमें अपनी तरक्की पर बशर्ते नाज़  हो कितना
मगर जो उसका रुतबा है वो  इतराने नहीं देता

उसे हक़ है कि मुझको आज़माए अपनी शर्तों पर
मुझे इतना यकीं है मुंह की वो  खाने नहीं देता

ये क़ुदरत है फकत उसकी कि हर जा सब्ज़ बिखरा है
वगराना ज़िन्दगी क्या गर वो अफ़साने नहीं देता

ग़ुरूर इतना है तुझको शम्म: अपने नूर पे लेकिन
ये जज़्बे जां निसारी गर वो परवाने नहीं देता?

ये ख़ुद मुख्तारियत उलझा रही है पर निज़ाम उसका
किसी शय को किसी पर भी सितम ढाने नहीं देता

(8)

हां न पैरहन जाए
और न ही कफ़न जाए

नेकियों बताओ तो
क्या किया जतन जाए

आ गया है दुनिया में
अब कहां हिरन जाए?

तू खुदा नहीं लेकिन
तू खुदा न बन जाए

है अदब शनासा जो
गंगा-ओ-जमन जाए

देर तक ख़ुशी फैले
दूर तक अमन जाए

अब  वही  ठिकाना है
जिस गली सजन जाए

रूह में बसा जब से
अब न बांकपन जाए

(9)

तेरे ख़याल में बैठे हुए हैं मुद्दत से,
हम अपने आप में उलझे हुए हैं मुद्दत से,

अना की ख़ैर हो, सूरत कोई निकल आए
कि इस हिसार में जकड़े हुए हैं मुद्दत से

बिखर न जाएं ये तस्वीरे-आरज़ू के सदफ़
बड़ी संभाल के रख्खे हुए हैं मुद्दत से

खुदा के वास्ते कोई समेट ले हमको
कि हम ज़मीन पे बिखरे हुए हैं मुद्दत से

खुदा बराए करम रास्ता दिखा उनको
ये राहबर ही जो भटके हुए हैं मुद्दत से

चले भी आओ कि फिर से बहार आ जाए
चमन निगाह के उजड़े हुए हैं मुद्दत से

तेरे ही नूर की सहबा में मस्त है यह नज़र
गिलास मेज़ पे रक्खे हुए हैं मुद्दत से

(10)

काश ऐसा कमाल हो जाता
वो मेरा हम ख्याल हो जाता

देख लेता निगाह भर के अगर
दिन मेरा बेमिसाल हो जाता

हाथ उठते ही बस दुआ के लिए
और पूरा सवाल हो जाता

छेड़ता मैं कभी शरारत से
उसका चेहरा गुलाल हो जाता

दूर रख कर किसे परखता मैं
मेरा जीना मुहाल हो जाता

आपकी बात टालता कैसे
चाहतों में न बाल हो जाता

कौन आता मुझे मनाने को
मैं अगर बद-ख्याल हो जाता

आंख में अक्स तैरता तेरा
आईना-ए-जमाल हो जाता
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात  नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मनोज मनु एक निष्कलुष मन के सीधे सच्चे इंसान हैं उनका यही अक्स उनकी शायरी ,गीतों दोहों में झलकता है।
एक अच्छा कवि या शायर बनने के लिए जो प्राथमिक शर्त है एक अच्छा इंसान होना ,वह गुण उनके व्यक्तित्व की पहचान में शामिल है। बाकी प्रतिभा, निपुणताऔर अभ्यास में भी प्रतिभा उनके पास है, निपुणता हासिल करनी है अभ्यास की निरंतरता से किसी हद उसे भी हासिल किया जा सकता है, बस उसके साथ आवश्यक है किसी उस्ताद या गुरु की वात्सल्य पूर्ण अशीषवती छाया। अधिक से अधिक साहित्य का अध्ययन। वे अभी वनफूल हैं। उनमें सुगंध भी है अपनी लेकिन उस सुगंध से शायद अभी वे स्वयं परिचित नहीं हैं।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि कोई शक नहीं कि मनोज मनु के अंदर आने वाले वक़्तों का एक होनहार शायर मौजूद है। मनोज के पास ये सलाहियत मौजूद है। उनके बहतरीन विवेक के रूप में पटल पर प्रस्तुत उनकी ग़ज़लों में पाठक का दामन थामने लायक शक्ति महसूस की जा सकती है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि मनोज 'मनु' अपने बड़ों के प्रति अत्यधिक विनयशील शायर और कवि है जो अपनी ग़ज़लों, गीतों और दोहों में परिपक्वता की ओर अग्रसर होता प्रतीत होता है। जहाँ तहाँ उर्दू शब्दों को अपनी रचनाओं में निस्संकोच प्रयोग करने वाला यह रचनाकार हिन्दी भाषा पर भी  सशक्त पकड़ रखता है। प्रेम या रोमांस की शायरी से हट कर रचनाकार सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक अाकर्षित है। जिसके दर्शन प्राय: सभी रचनाओं में परिलक्षित होते हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मनोज मनु हमारे शहर के होनहार शायर हैं। उनकी शायरी परंपरा और आधुनिकता का संगम है। वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं। वह चूंकि व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं, इसलिए उनकी शायरी में भी व्यवहार की वही सादगी छिपी हुई है। अपनी शायरी के कैनवास पर वह ख़ुद भी हैं, समाज भी है, राजनीति भी है, घर परिवार भी हैं और वर्तमान हालात का चित्रण भी है। सामाजिक चिंतन की ड्योढ़ी पर मनु कहीं-कहीं शिक्षक की भूमिका में भी आ जाते हैं और समस्याओं के साथ-साथ निदान का रास्ता भी सुझाते हैं। वह अपनी शायरी के प्रारंभिक दौर से गुज़र रहे हैं, लेकिन उनका यह प्रारंभिक दौर भी बेहद ख़ूबसूरत है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु जी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं सराहनीय हैं । वह अपनी रचनाओं के माध्यम  से समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करते हैं ।भूमंडलीकरण के दौर में लुप्त होती जा रही सम्वेदनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हैं वहीं अपनी संस्कृति और परंपराओं से भी जुड़े रहने का आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मनोज मनु जी की ग़ज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए हैं, इसलिए ग़ज़ल के मूल भाव श्रंगार की चहलकदमी उनके अश'आर में यहाँ-वहाँ स्वभाविक रूप से दिखाई दे ही जाती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ श्रंगार या प्रेम की प्रचुरता हो, उनकी शायरी में जीवन जगत के अनुभव संपन्न यथार्थ भी उपस्थित हैं। उनकी ग़ज़लों में कहीं कहीं सूफ़ियाना रंग भी अपनी एक अलग ही खुशबू लिए उपस्थित नज़र आता है।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मनु जी की शायरी का उजला पहलू उर्दू शब्दों का इस्तेमाल है जिसके लिए वह खूब कोशिश करते हैं, जो सराहनीय है। समय के साथ साथ इसमें और परिपक्वता आएगी और शब्दों के इस्तेमाल पर पकड़ मज़बूत होती जाएगी। मनु जी अपनी बात कहने में खूब सक्षम है। उनका कहन स्पष्ट है। उनके नज़दीक शायरी सिर्फ दिल लगी और वक्त गुजारी का साधन नहीं बल्कि समाज को सही राह दिखाने का माध्यम भी है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि मनु जी की तहरीरें उर्दू की चाशनी में डूबी होती हैं और एक ख़ास रवानी रखती हैं। मनु जी समाज का अक्स अदब के आइने में देख कर उस से शायरी बर-आमद करते हैं। सब से अच्छी बात ये कि शेर जैसे उतरते हैं, वैसे ही तशकील पाते हैं। यानी ख़्याल से बे-ज़रूरत छेड़खानी नहीं दिखती। फ़िक्र नैचुरल रहती है, आर्टिफिशल नहीं लगती। यानी ख़्याल को शक्ल देने के लिए लफ़्ज़ों के इन्तेख़ाब और उन के प्लेसमेंट पर काम करने की गुंजाइश नज़र आती है। कई जगह मिसरे अपने ख़्याल को अपनी पूरी क़ुव्वत के साथ भी अच्छी तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते, यानी ख़्याल तो वज़्नी होता है, मगर मिसरा हल्का रह जाता है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि महानगर मुरादाबाद की गौरवशाली ग़ज़ल परम्परा के सशक्त प्रतिनिधि, भाई मनोज 'मनु' जी ऐसे उत्कृष्ट रचनाकारों में से हैं, जिनकी लेखनी संवेदना के प्रत्येक स्वरूप को भीतर तक स्पर्श करने की शक्ति रखती है। भाई मनोज 'मनु' जी की ग़ज़लें व अन्य रचनाएं बोलती हैं तथा बोलते-बोलते कब अन्तस को स्पर्श कर जायें, श्रोताओं/पाठकों को पता ही नहीं चलता।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि ग़ज़ल का क्षेत्र मनु जी का अपनी रुचि के आधार पर है। आम तौर पर बातचीत में भी वह उर्दू के अल्फ़ाज़ का प्रयोग करते हैं। यही उनकी प्रस्तुत की गई ग़ज़लों में भी दिखाई देता है। उर्दू के थोड़े से मुश्किल शब्दों का प्रयोग हुआ है। कुछ ग़ज़लों की ज़मीन बहुत अच्छी है। मनु जी की हिंदी रचनाएँ भी गोष्ठियों में सुनी हैं। इसका अर्थ है कि वह भाषा के हर मैदान पर खेलते हैं।
युवा शायर  नूर उज्जमा ने कहा कि मनोज मनु साहिब के कलाम को पढ़ते हुए महसूस होता है कि उन्हें शाइरी से दिली मुहब्बत है। शायद ग़ज़ल में उन्होंने अपने सफ़र का आगाज़ हाल ही में किया है। एक ऐसे सफ़र का जो न सिर्फ तवील है बल्कि पुरख़ार भी है। ऐसे में एहतियात लाज़िमी है जिसकी और बुज़ुर्गों और दोस्तों ने इशारा भी किया है। मुझे लगता है कि छोटी बहरों में कहे गये उनके ज़्यादातर मिसरे ख़ूबसूरत हैं, या यूँ कहे काफ़ी आसानी से कहे गये मालूम होते है। हालांकि बड़ी बहरों में कहे गये अशआर में शायद उन्हें ये आसानी नहीं रही होगी। वहाँ मेहनत ज़्यादा दिखाई देती है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि मनु की ग़ज़ल का लहजा इस्लाही है यानी वह ग़ज़ल में अपने साथ के लोगों और अपने बाद के लोगों की तरबियत करते हुए नज़र आते हैं। उनकी शायरी में इश्क लगभग न के बराबर है और अगर है तो अभी बहुत कम है। अभी यह हल्के से छूकर गुज़र गया है। इसके पीछे वज्ह शायद यह हो कि मनु शायरी को इश्क़ का इज़हार न मानते हों और उनके नज़दीक शायरी सिर्फ इस्लाह का ज़रिया हो। ज़माने को अपने अंदाज़ से देखने की ललक ज़रूर है मगर अपना नज़रिया दूसरों पर ज़ाहिर करने का एतमाद भी कम दिखाई देता है। अभी उनकी शायरी शुरुआती मरहलों में है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक़्त में उनकी शायरी में मज़बूती आएगी और यह शायरी अपनी तरफ खींचने की ताक़त रखेगी।

:::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 7017612289

हिंदी साहित्य संगम, मुरादाबाद द्वारा गूगल मीट पर 6 सितंबर 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी



मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम द्वारा रविवार 6 सितंबर 2020 को गूगल मीट एप के माध्यम से एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया । राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ ग़ज़लकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' ने की। मुख्य अतिथि डॉ० प्रेमवती उपाध्याय एवं विशिष्ट अतिथि श्रीमती सरिता लाल रहीं। संचालन जितेन्द्र कुमार 'जौली' ने किया।

काव्य-गोष्ठी में ओंकार सिंह 'ओंकार ' ने कहा -
मैं गीत में वो सुखद भावनाएँ भर जाऊँ ,
कि छंद- छंद में बनकर खु़शी उतर जाऊँ !!

शिशुपाल "मधुकर" ने कहा -
सौ में दस की खातिर ही अब  होते सभी उपाय।
बोलो बाकी लोगों कब तक सहोगे यह अन्याय।

डाॅ० मीना कौल ने कहा -
वीरों को नमन करो
वीरों को नमन करो
संकट में साथ निभाते
वीरों को नमन करो

डॉ० मनोज रस्तोगी ने कहा-
उड़ रही गन्ध, ताजे खून की
बरसा रहा जहर,मानसून भी
घुटता है दम अब बारूदी झोंकों के बीच

जितेन्द्र कुमार जौली ने कहा -
गाड़ी में बैठा कर ले गए हमको
हथकड़ियों में जकड़ा गया
बिना लाइसेंस कविताएं सुनाता था
इसलिए पकड़ा गया

राजीव 'प्रखर' का कहना था-
किया तिरंगा ओढ़ कर, वीरों ने ऐलान।
क़तरा-क़तरा खून का, माटी पर क़ुर्बान।।

पीछे सारे रह गये, मज़हब-फ़िरके-ज़ात।
जब लोगों ने प्यार से, की हिंदी में बात।।

इन्दु रानी ने कहा -
सता कर के गरीबों को कहां फिर चैन पाओगे
जलन रखते हो साँसों मे थकन कैसे मिटाओगे

प्रशान्त मिश्र का कहना था -
जब अपना ही घर लूट लिया,
देश के ग़द्दारों ने
जनता खड़ी देखती रही,
सिमटी अपने किरदारों में..

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद" ने कहा -
जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।
शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

विकास मुरादाबादी का कहना था -
आओ मिलकर बात करें हम, स्वयं नेक बनाने की !
बात करें भारत समाज को , आओ एक बनाने की !!
इस अवसर पर डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ सरिता लाल, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने भी काव्य पाठ किया । जितेन्द्र कुमार 'जौली' द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।

::::::: प्रस्तुति::::::
राजीव प्रखर
मुरादाबाद