शुक्रवार, 7 जून 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से राजीव प्रखर के आवास पर बुधवार 5 जून 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से  साहित्यकार राजीव प्रखर के मुहल्ला डिप्टी गंज स्थित अवध निवास में बुधवार 5 जून 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।      मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अजय अनुपम की अभिव्यक्ति थी - 

फल के पीछे कर्म हुआ करते हैं। 

दिल के छाले नर्म हुआ करते हैं। 

जलता दिया प्यार का भीतर जिससे, 

सबके आंसू गर्म हुआ करते हैं। 

 मुख्य अतिथि उमाकांत गुप्ता एडवोकेट की ये पंक्तियां भी सभी के नेत्र नम कर गईं - 

अरे मैं मुसाफिर बहुत दूर का हूॅं, 

पल भर बैठा लो चला जाऊंगा। 

रोकोगे गर मुझको रुक न सकूंगा, 

चलना है नियति,चलता रहूंगा। 

 विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. संगीता महेश ने मातृ-प्रेम का सुंदर चित्र कुछ इस प्रकार खींचा - 

माँ,आप मेरी प्रेरणा, आप ही आराधना। 

आप ही वाणी मेरी आप ही हो भावना। 

मैं आप की ही वाटिका की हूॅं पुष्पित प्रसून, 

हो सुरभित यह सुमन सदा,दो यही  शुभकामना। 

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर अपने मनभावन दोहों से सभी के हृदय जीतते हुए इस प्रकार मुखर हुए - 

फाॅंसे बैठा है मुझे, यह माया का जाल।

चावल मुझसे छीन लो, आकर अब गोपाल।। 

पावक-बाती-तेल का, पाकर रण में साथ। 

झिलमिल दीपक कर रहा, तम से दो-दो हाथ।।

      श्रीकृष्ण शुक्ल ने बिगाड़े पर्यावरण के प्रति चिंता व्यक्त की - 

इस उपवन में थे कभी, विविध रंग के फूल। 

फूल हो गये गुमशुदा, शेष रह गयी धूल।।

डॉ. अर्चना गुप्ता ने अपनी इन पंक्तियों के साथ माॅं की महिमा को साकार किया - 

आशीष के दीप है जलाती, दुखों के तम से बचाती है माँ। 

नज़र का टीका लगा लगा कर, बुरी बलायें भगाती है माँ। 

सृजन करे सृष्टि का जगत में नहीं कोई भी है माँ के जैसा, 

बिना बताये ही बात दिल की  हमारी सब जान जाती है माँ।। 

डॉ. मनोज रस्तोगी ने अपने व्यंग्य में समाज से कुछ प्रश्न किये - 

बीत गए कितने ही वर्ष, 

हाथों में लिए डिग्रियां

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां

आवेदन पत्र अब लगते 

तेज कटारों से। 

योगेन्द्र वर्मा व्योम की अभिव्यक्ति थी - 

तब तक ही अपनत्व की, घुलती रही मिठास। 

जब तक रिश्तों में रहा, स्वार्थ रहित विश्वास।। 

हवा, धूप में भी हमें, जीने का अधिकार। 

हरी दूब करती रही, वृक्षों से मनुहार।। 

मनोज मनु ने सामाजिक व्यवस्था पर कड़ा व्यंग्य किया - 

अभी रखेंगे ये राय अपनी, गरीब का जो सवाल साहिब, 

नहीं है रोटी तो फ्रूट खाओ , बताएगें हल ये लाल साहिब,

कि तंग दस्ती  में मुश्किलें हैं, हुआ है जीना मुहाल साहिब, 

पुछेंगें कैसे हमारे आँसू, कहेंगे रख्खो रुमाल साहिब। 

डॉ. ममता सिंह ने  वेदना का सुंदर चित्र खींचा  - 

करते हमारे प्यार की वो कुछ क़दरू नहीं।

फिर भी हमारी आँख है अश्कों से तर नहीं।। 

कैसे लगा दें हम कोई इल्ज़ाम आप पर, 

मजबूरियों से आप की हम बेख़बर नहीं।। 

 मीनाक्षी ठाकुर ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को इस प्रकार प्रदर्शित किया -  

कड़वी  ककड़ियों सा योग का संदेशा लाये, 

उद्वव ये बात  कुछ  ठीक  न तुम्हारी है, 

छलिया ने छल कर, रंगा हमें प्रीत रंग, 

अब बना खुद बड़ा, ज्ञान का पुजारी है। 

उनको सिखाओ ज्ञान, ज्ञान जिनको चाहिए, 

अपने तो मन बसा, मुकुट बिहारी है। 

मयंक शर्मा अपनी इन पंक्तियों से मुखर हुए - 

चलो चलें घनघोर तमस को प्रात करेंगे हम दोनों, 

अधरों पर मुस्कानों को आयात करेंगे हम दोनों। 

जीवन की आपाधापी ने हमको हमसे छीन लिया, 

छूट गई जो अपने मन की बात करेंगे हम दोनों।

 राशिद हुसैन ने अपनी इन पंक्तियों से पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की - 

वो इक दरख़्त जो चिड़ियों का आशियाना था। 

हर एक सिम्त बहारें थीं क्या ज़माना था।। 

हवाएं कैसे न करतीं मुख़ालिफ़त साहब। 

दरख़्त काट के तुमको मकां बनाना था।।

रचना पाठ करते हुए कमल शर्मा ने कहा - 

जब भी मिलता हूं किसी से खुल के मिलता हूं, 

मै ज़माने की हवा के साथ चलता हूं। 

वैसे मुझे पाबंदगी अच्छी नही लगती, 

बस ढक के चेहरा आज कल घर से निकलता हूं।

   अमर सक्सेना ने अपनी इन पंक्तियों से समाज को चेताने का प्रयास किया - 

सत्ता का है लोभ यहाँ पर जनता कौन जाने है। 

बैठकर देखो कुर्सी पर कोई किसी को ना पहचाने है। 

शुभम कश्यप ने संदेश दिया - 

आओ पग पग लगाएं पौधे हम, 

लहलहाते चमन से उल्फत है।  

कार्यक्रम में ऋतु सक्सेना, अंश सहाय, देव सक्सेना, वकुल आदि ने श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहकर सभी रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया। मनोज मनु ने आभार-अभिव्यक्त किया।






























































सोमवार, 3 जून 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार दो जून को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम द्वारा आकांक्षा इण्टर कॉलेज, मिलन विहार में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। मनोज मनु द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ओंकार सिंह ओंकार ने कहा......

सुख रहता कभी धन के समन्दर में नहीं है। 

बिन प्यार के सुख चैन किसी घर में नहीं है। 

मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचा - 

देख रही है जनता सारी। 

एक अकेला सब पर भारी।

 विशिष्ट अतिथि के रूप में पदम सिंह बेचैन कर उद्गार थे - 

तन की सुधि भूल हिय लरजे, 

मन को कछु और सुहाता नहीं। 

कार्यक्रम  के संचालक राजीव प्रखर ने कहा -

बन जाये बन्धन ममता का, ऐसी मनभावन डोरी हो। 

सद्भक्ति सुधारस से पूरित, निर्मल-निश्छल कर-जोरी हो। 

जागो-जागो हे मनमोहन, विनती है कर दो आज कृपा। 

पापातुर इस कलियुग में भी, माखन की पावन चोरी हो। 

रामदत्त द्विवेदी की अभिव्यक्ति थी - 

तुम अपने आप पर इतरा रहे हो। 

कृपा प्रभु जी की क्यों बिसरा रहे हो। 

के. पी. सिंह सरल ने रिश्तों की संवेदना को साकार किया - 

समझ न पाये आज तक, बन्धन की यह गांठ। 

किसी को दे दुशवारियां, किसी के घर में ठाठ।। 

 नकुल त्यागी ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचते हुए कहा - 

भाग भाग कर भागता, भगने को मजबूर। 

रोटी बस दो जून की फिर भी कितनी दूर। 

योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था - 

पिछला सब कुछ भूल जा, मत कर गीली कोर। 

क़दम बढ़ा फिर जोश से, नई सुबह की ओर।। 

आँखों से बहने लगी, मूक-बधिर सी धार। 

जब यादों की चिट्ठियांँ, पहुँचीं मन के द्वार।। 

कवि मनोज मनु ने माॅं गंगा के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की - 

त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे, हर-हर गङ्गे.. हर हर गङ्गे.. 

पाप विनाशिनी शुभ्र विहंगे.. हर-हर गङ्गे -हर-हर गङ्गे। 

बालकवि  अनंत मनु ने रामचरितमानस की चौपाइयां प्रस्तुत कीं। राजीव प्रखर द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।

























बुधवार, 22 मई 2024

मुरादाबाद के प्रख्यात इतिहासकार,पुरातत्ववेत्ता और साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की जयंती 22 मई 2024 को उन पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का विशेष आलेख जो मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक परिवर्तन का दौर , दैनिक उत्तर केसरी, संभल से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय सिद्धांत, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक जनसंदेश और अमरोहा से प्रकाशित दैनिक आर्यावर्त केसरी में प्रकाशित हुआ है ......

 






अतीत में दबे साहित्य को खोजा सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
     मैं सरस्वती का पुत्र हूँ, लक्ष्मी के आगे सिर नहीं नवाऊंगा । कह कर दीपावली की रात्रि को पूजा- गृह से बाहर निकल जाने वाले सुरेंद्र मोहन मिश्र ने न केवल साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त की बल्कि इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता के रूप में भी विख्यात हुए । 
     साहित्य, इतिहास और पुरातत्व को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले सुरेन्द्र मोहन मिश्र की बचपन से ही साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने में रुचि थी। पं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, डॉ हरिवंश राय बच्चन जैसे अनेक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों का साहित्य आपने पन्द्रह-सोलह वर्ष की अवस्था में ही पढ़ लिया था ।साहित्य अनुराग के कारण ही आप कविता लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। उधर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में गाये जाने वाले कोरसों का भी मन पर पूरी तरह प्रभाव पड़ा। 
     आपकी प्रथम कविता दिल्ली से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग में वर्ष 1948 में प्रकाशित हुई । उस समय आपकी अवस्था मात्र सोलह वर्ष की थी। इसके पश्चात् आपकी पूरी रुचि साहित्य लेखन की ओर हो गयी लेकिन आपके पिता को यह सहन न था। वह चाहते थे कि उनका पुत्र अपने अध्ययन में मन लगाये व वैद्यक व्यवसाय में उनका सहयोग करें।  
    प्रारम्भ में आपने छायावादी और रहस्यवादी कवितायें लिखी। वर्ष 1951 में जब वह मात्र 19 वर्ष के थे उनकी प्रथम काव्य कृति मधुगान प्रकाशित हुई। इस कृति में उनके 37 गीत हैं। इस गीत संग्रह की भूमिका में साहित्यकार शील लिखते है– मधुसूदन भगवान की असीम कृपा से प्रस्तुत मधुगान में ऐसे मधुर गीतों का संकलन हुआ है जिनके मधुमय निनाद से एवं जिनकी मधुमयतान से प्रत्येक सहृदय मानव का मानस मधुमय हो जाता है। जिस मधुर काल में यौवन का विकास आरम्भ होता है, उसमें समस्त सृष्टि इसी प्रकार दृष्टिगोचर होती है। प्रस्तुत गीतों के लेखक सुरेन्द्र मोहन मिश्र अपने जीवन की ऐसी हो मधुमयी घड़ियों में से होकर अग्रसर हो रहे हैं। उनके लिए वेदनामयी कसक भी मधुमयी है और माधुर्य तो माधुर्य है ही।
    दूसरी कृति वर्ष 1955 में 'कल्पना कामिनी शीर्षक से पाठकों के सन्मुख आई। इस श्रृंगारिक गीतिकाव्य में उनके वर्ष 1951-52 में रचे 51 गीत हैं। लगभग 27 वर्ष के अंतराल के पश्चात उनकी तीसरी काव्य कृति कविता नियोजन का प्रकाशन वर्ष 1982 में हुआ। प्रज्ञा प्रकाशन मंदिर चन्दौसी द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनकी वर्ष 1972 से 1974 के मध्य रची 26 हास्य-व्यंग्य की कविताएं हैं। इस कृति के संदर्भ में काका हाथरसी की काव्य पंक्तियां दृष्टव्य हैं- करते कविता नियोजन कविवर मिश्र सुरेन्द्र / प्रियदर्शी, सुंदर-सरस, हास्य व्यंग्य रस केन्द्र / हास्य व्यंग्य रस केन्द्र, कला में गहरी निष्ठा/काव्य जगत में दिन- दूनी बढ़ रही प्रतिष्ठा/ तुलना किससे करें, कहो कविराज तुम्हारी/ स्वीकारो प्रिय मंगलमय कामना हमारी ।
       वर्ष 1993 में उनकी चौथी कृति 'बदायूं के रणबांकुरे राजपूत' का प्रकाशन हुआ। प्रतिमा प्रकाशन चन्दौसी द्वारा प्रकाशित इस कृति में बदायूँ जनपद के राजपूतों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया गया है। पाँचवीं कृति इतिहास के झरोखे से संभल का प्रकाशन वर्ष 1997 में प्रतिमा प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा हुआ। इसका दूसरा संस्करण वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ ।
      वर्ष 1999 में उनकी छठी कृति कवयित्री सम्मेलन का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ। इस कृति में उनको 42 हास्य-व्यंग्य कविताएं हैं। वर्ष 2001 मैं सातवीं कृति के रूप में ऐतिहासिक उपन्यास 'शहीद
मोती सिंह' का प्रकाशन प्रतिमा प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा हुआ।
     वर्ष 2003 में उनकी तीन काव्य कृतियों- पवित्र पंवासा, मुरादाबाद जनपद का स्वतन्त्रता संग्राम तथा मुरादाबाद और अमरोहा के स्वतन्त्रता सेनानी का प्रकाशन हुआ । इसी वर्ष उसकी एक कृति मीरापुर के नवोपलब्ध कवि' का प्रकाशन हुआ। उनके देहावसान के पश्चात उनकी बारहवीं कृति आजादी से पहले की दुर्लभ हास्य कविताएं का प्रकाशन उनके सुपुत्र अतुल मिश्र द्वारा वर्ष 2009 में किया गया।
     उनकी अप्रकाशित कृतियों में महाभारत और पुरातत्व, मुरादाबाद जनपद की समस्या पूर्ति, स्वतंत्रता संग्रामः पत्रकारिता के साक्ष्य, चंदौसी का इतिहास, भोजपुरी कजरियां, राधेश्याम रामायण पूर्ववर्ती लोक राम काव्य, बृज के लोक रचनाकार, चंदौसी इतिहास दोहावली, बरन से बुलन्दशहर, हरियाणा की प्राचीन साहित्यधारा, स्वतंत्रता संग्राम का एक वर्ष, दिल्ली लोक साहित्य और शिला यंत्रालय, रूहेलखण्ड की हिन्दी सेवायें, भूले-बिसरे साहित्य प्रसँग, रसिक कवि तुलसी दास, हिन्दी पत्रों की कार्टून- कला के दस वर्ष उल्लेखनीय हैं।
   वर्ष 1955 में ही उनकी रुचि पुरातत्व महत्व की वस्तुएं एकत्र करने में हो गयी। इसी वर्ष उन्होंने चंदौसी पुरातत्व संग्रहालय' की नींव डाल दी जो बाद में कई वर्ष तक मुरादाबाद के दीनद‌याल नगर में हिन्दी संस्कृत शोध संस्थान, पुरातत्व संग्रहालय के रूप में संचलित होता रहा। पुरातत्व वस्तुओं की खोज के दौरान उन्होंने प्राचीन युग के अनेक अज्ञात कवियों प्रीतम, ब्रह्म, ज्ञानेन्द्र मधुसूदन दास, संत कवि लक्ष्मण, बालक राम आदि की पाण्डुलिपियाँ खोजी । हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इनमें से अनेक ग्रंथ दुर्लभ थे।
   उनकी समस्त पुरातात्विक धरोहर वर्तमान में उनके सुपुत्र अतुल मिश्र के अलावा बरेली के पांचाल संग्रहालय, स्वामी शुकदेवानन्द महाविद्यालय, शाहजहांपुर में 'पं. सुरेन्द्र मोहन मिश्र संग्रहालय'  तथा रजा लाइब्रेरी में संरक्षित है। 
उनके साहित्य सृजन के संदर्भ में यश भारती माहेश्वर तिवारी का कहना है- कीर्तिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने साहित्य के क्षेत्र में एक गीतकार से अलग एक विशुद्ध हास्य कवि के रूप में भी अपनी पहचान बनाई है।
    केजीके महाविद्यालय मुरादाबाद में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप कहती हैं- "उनमें इतिहासकार की भांति खरा यथार्थ है तो कल्पनाशीलता भी । इतिहास की वीथिका में विचरते हुए उनका कवि मन कभी भी थकता नहीं है, ऐसा एक विराटमना व्यक्ति अपने जीवन में निरंतर कालजयी रचनाओं के साथ हमारे बीच अपनी उपस्थिति बनाने में सफल हो सका है तो वे हैं - सुरेन्द्र मोहन मिश्र
 विज्ञान कथा लेखक राजीव सक्सेना का कहना है अपने सुदीर्घ रचना काल में मिश्र जी ने केवल हास्य रस की कविताएं ही नहीं रची हैं, काव्य की दूसरी विधाओं विशेषकर गीत को भी उन्होंने पर्याप्त समृद्ध किया है। काव्य रचना के अलावा मिश्र जी ने नाटक भी लिखे हैं। पुरातत्व और इतिहास पर भी उन्होंने काफी लिखा है। वे निरे कवि नहीं है बल्कि गद्य लेखन में भी खासे निष्णात हैं। सही बात तो यह है कि साहित्यकार के रूप में मिश्र जी के विविध रूप हैं।
   मिश्र जी का जन्म 22 मई 1932 को चंदौसी के लब्ध प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता पंडित रामस्वरूप वैद्यशास्त्री रामपुर जनपद की शाहबाद तहसील के अनबे ग्राम से चंदौसी आकर बसे थे।उनकी आयुर्वेद जगत में अच्छी ख्याति थी। उनके द्वारा स्थापित धन्वतरि फार्मसी द्वारा निर्मित औषधियाँ देश भर में प्रसिद्ध है । आपके पितामह पंडित बिहारी लाल शास्त्री थे।
   आपकी प्रारम्भिक शिक्षा चंदौसी में पंडित गोकुलचन्द्र के विद्यालय में हुई। तदुपरान्त आपने एसएम इंटर कालेज में कक्षा तीन में प्रवेश ले लिया। वर्ष 1953 में आपने इसी विद्यालय से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1955 में आपने शिक्षाध्ययन त्याग दिया और साहित्य सेवा को पूर्ण रूप से समर्पित हो गये ।
   15 अप्रैल 1955 को उनका विवाह सोरों के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी पं दामोदर शर्मा की पुत्री और जिला सूचना अधिकारी ‘प्रियदर्शिनी’ महाकाव्य के अमर प्रणेता पंडित राजेंद्र पाठक की छोटी बहन विमला के साथ सम्पन्न हुआ | उनके दो सुपुत्र अतुल मिश्र व विप्र वत्स मिश्र तथा दो सुपुत्रियाँ प्रज्ञा शर्मा व प्रतिमा शर्मा हैं।
     उनका निधन 22 मार्च 2008 को मुरादाबाद में अपने दीनदयाल नगर स्थित आवास पर हुआ ।

संपर्क : संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद  244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822