शनिवार, 27 जुलाई 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हरसिंगार' की ओर से सोमवार 22 जुलाई 2024 को प्रख्यात साहित्यकार स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी की जयंती पर पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान-समारोह का आयोजन

 जुलाई माह की 22 तारीख। यह जन्मदिन है प्रख्यात साहित्यकार और नवगीत के एक आधार स्तंभ यश भारती माहेश्वर तिवारी का। वर्ष 2010 से उनका जन्मदिन साहित्यिक संस्था अक्षरा की ओर उनके आवास पर पावस काव्य गोष्ठी के रूप में अनवरत रूप से मनाया जाता रहा है। इस वर्ष भी यह आयोजन हुआ लेकिन इस बार आयोजन में दादा माहेश्वर सशरीर नहीं थे ...थीं तो बस उनकी यादें ।

       इस बार यह आयोजन उनकी स्मृति में गठित साहित्यिक संस्था हरसिंगार की ओर से उनके गौड़ ग्रेशियस काँठ रोड स्थित आवास 'हरसिंगार' में हुआ। उनकी जयंती के अवसर पर हुए इस आयोजन में उनके गजल-संग्रह का लोकार्पण किया गया, उनके गीतों और ग़ज़लों की संगीतबद्ध प्रस्तुतियां हुईं , तीन साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। उपस्थित रचनाकारों ने  उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की और काव्य पाठ किया।

   तीन सत्रों में लगभग पांच घंटे चले इस अविस्मरणीय आयोजन के प्रथम दो सत्रों की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने की जबकि तीसरे सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर जमीर दरवेश ने की। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध शायर मंसूर उस्मानी तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में प्रयागराज के वरिष्ठ नवगीतकार यश मालवीय, बेगूसराय से युवा नवगीतकार राहुल शिवाय एवं नोएडा से सुप्रसिद्ध कवयित्री भावना तिवारी उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। 

कार्यक्रम का शुभारंभ उनकी पत्नी सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं लिपिका, कशिश भारद्वाज, इशिका, प्राप्ति, सिमरन, प्रावर्शी, गौरांगी एवं तबला वादक राधेश्याम एवं विवेक द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात् उनके द्वारा स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के गीतों "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे...", "मन का वृन्दावन हो जाना कितना अच्छा है...", " डबडबाई है नदी की आँख बादल आ गए हैं..." एवं  गजलों.."इस सदी का गीत हूँ मैं गुनगुनाकर देखिए" की संगीतमय प्रस्तुति की गई। 

     कार्यक्रम के दूसरे सत्र में श्वेतवर्णा प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह धूप पर कुहरा बुना है का लोकार्पण किया गया। इस ग़ज़ल संग्रह में उनकी 91 ग़ज़लें हैं। भूमिका लिखी है उनके आत्मीय रहे उमाकांत मालवीय के सुपुत्र प्रसिद्ध नवगीतकार यश मालवीय ने। इस अवसर पर नई दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुभाष वसिष्ठ, भोपाल के नवगीतकार मनोज जैन मधुर, एवं मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर ज़मीर दरवेश को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंट कर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया ।

      अंतिम सत्र में दिल्ली से उपस्थित सम्मानित साहित्यकार डॉ. सुभाष वशिष्ठ ने कहा मैं  यहां सम्मान के लिए नहीं आया, उससे अधिक अपने बड़े भाई के लिए मुरादाबाद आया हूं ताकि उनकी अनुपस्थिति में उनकी उपस्थिति के अहसास में जी सकूं। उन्होंने नवगीत प्रस्तुत करते हुए कहा....

 हम तो बंधु निराला वंशज, 

नहीं 'फ़्रेम' में बॅंध पाये।

'बैटन' लेकर या 'मशाल' को 

आगे ही आगे धाये। 

   भोपाल से उपस्थित सम्मानित नवगीतकार मनोज जैन 'मधुर' की ये पंक्तियाॅं भी सभी को आह्लादित कर गयीं - 

सुख के दिन छोटे-छोटे से, दुख के बड़े-बड़े। 

सबके अपने-अपने सुख हैं, अपने-अपने दुखड़े। 

फीकी हॅंसी हॅंसा करते हैं, सुंदर-सुंदर मुखड़े। 

  मुरादाबाद के सम्मानित वरिष्ठ शायर जमीर दरवेश का कहना था ...  माहेश्वर तिवारी एक ऐसे महान साहित्यकार थे, जिनके अंदर के इंसान का कद उसके इतने बड़े साहित्यिक कद से भी कहीं अधिक बड़ा था। उनकी गजलों की किताब के प्रकाशन से उनका शायर भी अब हमारे सामने आएगा और सराहा जाएगा। उन्होंने ग़ज़ल सुनाई ...

हल्का हो जायेगा दिल कुछ उसे रोने भी दे

ये जो तूफान है तूफान चला जायेगा

     सुप्रसिद्ध गीतकार यश मालवीय ने कहा -माहेश्वर जी के जाने से सचमुच लग रहा है जैसे दिन अँधेरे हुए लेकिन इसी भारी समय में उनके ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन से यह भी महसूस हो रहा है कि दबे पैरों से उजाला आ रहा है और यह भी लग रहा है जैसे तीन सवा तीन महीनों की लम्बी यात्रा से जैसे वो घर लौट रहे हैं, फूल फिर कनेरों में आ रहे हैं। उन्होंने स्मृति शेष तिवारी जी के चर्चित गीत ..आसपास जंगली हवाएं हैं ..के सस्वर पाठ के साथ अपना गीत भी प्रस्तुत किया ....

तुम छत से छाए, ज़मीन से बिछे खड़े दीवारों से, 

तुम घर के ऑंगन, बादल से घिरे रहे बौछारों से। 

      नोएडा से उपस्थित युवा नवगीतकार राहुल शिवाय ने अपने भावों को अभिव्यक्ति दी - 

पीतलों के बीच मैं 

स्वर्णिम पलों की याद में हूॅं, 

मैं मुरादाबाद में हूॅं। 

     सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. भावना तिवारी की पंक्तियों ने सभी के अन्तस का इस प्रकार स्पर्श किया - 

टूटे स्वर साॅंसों का जीवन-दर्शन झूठा निकला। सालों साल रहे जिनके सॅंग बंधन झूठा निकला। 

 वरिष्ठ शायर मंसूर उस्मानी ने कहा ...

इतने चेहरे थे उसके चेहरे पर 

आइना तंग आकर टूट गया 

डॉ प्रेमवती उपाध्याय का कहना था ...

रूप यौवनमयी देह की रंजना, वस्तुत:  पंचभूतिय आधार हैं, यह हरित टहनियां

 पीत बन जाएं कब, इन बहारों का कोई भरोसा नहीं

डॉ पूनम बंसल का गीत था...

 बदरा छाए विजुरी चमके 

 बगिया मुस्काने लगी 

बरखा में यूं भीगा तन मन

 सांस सांस गाने लगी

डॉ कृष्ण कुमार नाज की गजल थी....

अश्क जब आके चहकते हैं परिंदों की तरह 

झिलमिला उठती हैं पलकें भी मुंडेरों की तरह

जहन की ऐश परस्ती की बदौलत ऐ नाज 

जिस्म फुटपाथ पर रखा है खिलौनों की तरह

ऋचा पाठक ने सुनाया.....

नव कोंपल रचनार्थ सदा ही पीत पात झड़ते आए 

नया जगत रचाने को नवल क्रांति के स्वर वे ही लाये

हेमा तिवारी भट्ट ने कहा ....

निश दिन सूखी जा रही मन धरती की आस 

कैसे उर्वर हों भला भाव कर्म विश्वास

दुष्यंत बाबा का कहना था....

पगरज भी मैं हूं नहीं तुम हो तारनहार 

गुरुवर अपने ज्ञान से कर दो भाव से पार 

 जिया जमीर ने कहा ...

जिंदगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे 

तुझको जाना था किधर और किधर आ गया है

 अभिनव चौहान ने कहा....

तुम्हारे दूर जाने की कसक दिल बताएगा

हर एक लम्हा हमारी जिंदगी मुश्किल बताएगा

मयंक शर्मा का गीत था ...

जन्म सार्थक हो धरा पर स्वप्न हर साकार हो 

हम चले कर्तव्य पथ पर और जय जयकार हो

मनोज मनु का कहना था..… 

मुझे तो खैर अपनी मुश्किलों का हल मिला न था 

उसे भी इन दिनों क्या मुझसे कोई वास्ता न था

   डॉ मनोज रस्तोगी ने रूस– यूक्रेन युद्ध का उल्लेख करते हुए कहा ...

 गोलों के बीच

तोपों के बीच

दब गई आवाज

चीखों के बीच

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे प्रस्तुत किए...

भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन ।

अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन ।।

पत्तों पर मन से लिखे, बूँदों ने जब गीत ।

दर्ज़ हुई इतिहास में, हरी दूब की जीत ।।

मीनाक्षी ठाकुर का गीत था ...

सावन -भादों ने देखी फिर, 

बूँदो की मनमानी। 

हाथ -पांँव फूले सड़कों के, 

छपक- छपक जब चलतीं । 

बढ़े बाढ़ के पानी में सब, 

आशाएँ भी गलतीं। 

सहम गए छप्पर के तिनके, 

दरकी नींव पुरानी। 

इनके अतिरिक्त राजीव प्रखर, माधुरी सिंह, शिवम वर्मा आदि स्थानीय रचनाकारों ने भी  विभिन्न सामाजिक बिंदुओं को आधार बनाकर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की। कार्यक्रम में डॉ अशोक रुस्तगी, डॉ बीना रुस्तगी, डॉ. प्रदीप शर्मा, के.के.मिश्रा, शिखा रस्तोगी, डॉ डी पी सिंह आदि साहित्य प्रेमी भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम संयोजक बाल सुंदरी तिवारी, आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई।



























































































:::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 9456687822

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

मुरादाबाद की संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी और उनकी छात्राओं द्वारा मां सरस्वती वंदना की प्रस्तुति


 

मुरादाबाद की संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से सोमवार 22 जुलाई 2024 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के प्रख्यात साहित्यकार मनोज जैन' मधुर' को श्रेष्ठ नवगीत साधक सम्मान- 2024 से विभूषित किया गया ।

मुरादाबाद मंडल के साहित्य के संरक्षण एवं प्रसार को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद  की ओर से सोमवार 22 जुलाई 2024 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के प्रख्यात  साहित्यकार मनोज जैन' मधुर' को श्रेष्ठ नवगीत साधक सम्मान- 2024 से विभूषित किया गया । सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, स्मृति चिहन और सम्मानपत्र संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी, मीनाक्षी ठाकुर और प्रो. ममता सिंह द्वारा प्रदान किया गया।

     संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने बताया कि 25 दिसम्बर 1975 को ग्राम वामौर कलां, जिला शिवपुरी मध्य प्रदेश में जन्में मनोज जैन मधुर के जहां दो नवगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं वहीं वह फेसबुक पर वागर्थ और अन्तरा शीर्षक से दो चर्चित नवगीत समूहों का संचालन भी कर रहे हैं। वागर्थ के माध्यम से उन्होंने साहित्यिक मुरादाबाद की दो सदस्यों मीनाक्षी ठाकुर और प्रो ममता सिंह के नवगीतों को प्रस्तुत कर मुरादाबाद को गौरवान्वित किया ।

मीनाक्षी ठाकुर ने उनकें सम्मान में गीत प्रस्तुत किया- 

मधुर गीत-नवगीत आपके 

शब्द अनूठे विम्ब हजार 

कभी धूपभर कर मुठ्ठी में, 

कभी बुद्ध के आदर्शों की 

कभी भाव की एक बूंद से

कसे शिल्प में बंधे छंद हैं

इस अवसर पर प्रख्यात साहित्यकार डॉ सुभाष वशिष्ठ, यश मालवीय, राहुल शिवाय, भावना तिवारी, शिखा रस्तोगी, राजीव प्रखर, दुष्यंत बाबा, मयंक शर्मा, जिया जमीर समेत अनेक स्थानीय साहित्यकार उपस्थित थे। उल्लेखनीय है यह आयोजन साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में निर्धारित था जो कतिपय कारणवश स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी के आवास पर आयोजित समारोह में हुआ।
























मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक जागरण के शुक्रवार 26 जुलाई 2024 के अंक में सबरंग पेज में प्रकाशित

 


सोमवार, 22 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल को कला भारती की ओर से 21 जुलाई 2024 को आयोजित कार्यक्रम में कलाश्री सम्मान

 मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल को उनकी साहित्यिक सेवाओं एवं उत्कृष्ट  सृजन के लिए साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से  कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मान समारोह का आयोजन रविवार 21 जुलाई 2024 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। 

 रघुराज सिंह निश्चल द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि रामदत्त द्विवेदी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया। सम्मान स्वरूप श्री शुक्ल को अंग-वस्त्र, मान-पत्र एवं स्मृति चिह्न अर्पित किए गये। सम्मानित  साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल पर आधारित आलेख का वाचन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा ... अपने उत्कृष्ट एवं प्रेरक साहित्यिक समर्पण व सक्रियता से मुरादाबाद को गौरवान्वित करने वाले वरिष्ठ रचनाकार श्रीकृष्ण शुक्ल 'कृष्ण' का जन्म भाद्रपद कृष्ण, अष्टमी संवत् 2010 तदनुसार 30 अगस्त 1953 को मुरादाबाद में कीर्तिशेष श्री पुरुषोत्तम शरण शुक्ल एवं श्रीमती सरला देवी शुक्ल के कुलदीपक के रूप में हुआ। आपने अर्थशास्त्र में परास्नातक एवं CAIIB के दोनों भागों में विशेष योग्यता प्राप्त की। बचपन से ही परिवार और परिवेश से मिले संस्कारों ने संस्कृति और साहित्य की ओर आपको आकर्षित किया। उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व के स्वामी शुक्ल जी से मेरा परिचय अब से लगभग 8 वर्ष पूर्व साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप ग्रुप के माध्यम से हुआ। उनका सरल, सहज एवं सौम्य व्यवहार मुझे आरंभ से ही भाता रहा है। मैं नि:संकोच कह सकता हूॅं कि अपनी साहित्यिक  यात्रा में मुझे जिन साथियों ने सर्वाधिक आत्मबल एवं प्रेरणा दी, श्रीकृष्ण शुक्ल जी उनमें से एक हैं। वास्तविकता तो यही है कि कोई अगर प्रेम, आत्मीयता, सरलता एवं सौम्यता से दो-चार होते हुए उसे ग्रहण करना चाहे, तो वह आदरणीय श्रीकृष्ण शुक्ल जी से मिले, बतियाए एवं अपने जीवन को निरंतर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाता रहे।  गद्य लेखन का कार्य छात्र जीवन से ही प्रारंभ हो गया था। विभिन्न स्तरों पर निबंध लेखन व वाद विवाद प्रतियोगिताओं में पुरुस्कृत हुए। आपने आगरा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित गाँधी शताब्दी वाक् प्रतियोगिता में, (जो तीन चरणों में संपन्न हुई थी), द्वितीय पुरुस्कार तथा आपके विद्यालय की टीम ने प्रथम पुरुस्कार प्राप्त किया। जीवन के विभिन्न उत्तरदायित्व को पूर्ण करते हुए सन् 1973 में आपकी भारतीय स्टेट बैंक में नियुक्ति हुई। सेवा के साथ-साथ शिक्षा भी जारी रही तथा वर्ष 1984 में अर्थशास्त्र से आपने परास्नातक उपाधि प्राप्त की। सन् 1984 में रामपुर में नियुक्ति के दौरान आकाशवाणी रामपुर से आपकी वार्ताएं प्रसारित होने लगीं। वहीं स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी जी से संपर्क हुआ तथा आपने अपनी काव्य क्षमता को और अधिक गहराई से लेना आरंभ किया। उसी दौरान डॉ कारेन्द्र देव त्यागी उर्फ मक्खन मुरादाबादी जी से संपर्क हुआ तथा उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर आपने व्यंग्य क्षेत्र में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई। उन दिनों छंदमुक्त लेखन का चलन आम था। आपकी अनेक व्यंग्य रचनाएं गोष्ठियों में सराही गयीं। इसी अनुक्रम में आपने कुछ कवि सम्मेलनों में भी प्रस्तुति दी। आकशवाणी रामपुर से भी यदा कदा कविताएं प्रसारित होती रहीं। वर्ष 1986  में रामपुर से पदोन्नत होकर आपका स्थानांतरण हो गया। नौकरी व परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ती गयीं जिस कारण सृजन यात्रा कुछ थम सी गयी। वर्ष 1993 में आपका पुनः मुरादाबाद स्थानांतरण हुआ। उन दिनों आध्यात्मिक संस्था सहजयोग का प्रभार मिला । नौकरी, परिवार और सहजयोग के साथ साहित्य पीछे छूटता रहा। वर्ष 2013 के अंत में आप स-सम्मान सेवानिवृत्त होकर मुरादाबाद आ गये तथा सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए। इस अवधि में आपके सृजन कार्य ने पुनः गति प्राप्त की। आपकी सृजन यात्रा की इस द्वितीय पारी में एक बड़ी भूमिका निभाई मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी जी के वाट्स एप ग्रुप, साहित्यिक मुरादाबाद ने। आपके निवेदन पर उन्होंने आपको इस समूह से जोड़ा। इसी के साथ आपका रचनाकर्म एवं साहित्यिक छवि निरंतर पुष्ट होते गये। आपकी रचनाएं कई साझा संकलनों में प्रकाशित हुई हैं, जिनमें प्रमुख हैं: उजास, छाँव की बयार, काव्यधारा, स्वर्णाक्षरा, प्रणाम काव्यधारा, धरा से गगन तक, गुरु कृपा ही केवलम् आदि। हाल ही में भारत के संविधान को छंदबद्ध करने के विराट कार्य को पूरे देश से 142 साहित्यकारों ने संविधान को दोहों व रोलों की रचना से छंदबद्ध रूप दिया। यह अत्यंत गर्व की बात है कि उन 142 साहित्यकारों में आप भी सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त सृष्टि सुमन, प्रेरणा अंशु, शैल सूत्र, स्पर्शी, काव्यामृत, काव्यधारा, नागरिक समाचार, उत्तराखंड करंट, ग्लोबल न्यूज, गोविषाण पाक्षिक आदि पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं।‌ साथ ही आपको विविध साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया है जिनमें ज्ञान भारती पुस्तकालय, रामपुर, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मुरादाबाद, काव्य धारा, रामपुर, हिंदू जागृति मंच संभल, साहित्यिक संस्था संकेत, मुरादाबाद आदि प्रमुख हैं। आपकी उत्कृष्ट रचनाएं जहां एक सुधी पाठक/श्रोता को सरल एवं सहज रूप से आध्यात्म से जोड़ती हैं, वहीं दैनिक जीवन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर आपके धारदार व्यंग्य भी सभी को गहन चिंतन-मनन हेतु प्रेरित कर देते हैं। 

      अर्पित मान-पत्र का वाचन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन  किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा - 

"धन यश वैभव के चक्कर में जीवन व्यर्थ गॅंवाया। 

अंतिम पल वह धन भी तेरे किंचित काम न आया। 

काया तो छूटी, माया भी साथ न ले जा पाया,

 सोच जरा क्या खोया तूने, सोच जरा क्या पाया।" 

इसके अतिरिक्त महानगर के विभिन्न रचनाकारों कमल शर्मा, राजीव प्रखर, मनोज मनु, योगेन्द्र वर्मा व्योम, विवेक निर्मल, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, चंद्रहास हर्ष, बृजेन्द्र वत्स, डॉ. मनोज रस्तोगी, ओंकार सिंह ओंकार, रघुराज सिंह निश्चल, रामदत्त द्विवेदी, बाबा संजीव आकांक्षी आदि ने भी श्रीकृष्ण शुक्ल को अपनी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए विभिन्न सामाजिक विषयों पर अपनी-अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की। बाबा संजीव आकांक्षी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।























::::::::प्रस्तुति::::::

 राजीव 'प्रखर'

महानगर अध्यक्ष 

कलाभारती 

मुरादाबाद