मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल को उनकी साहित्यिक सेवाओं एवं उत्कृष्ट सृजन के लिए साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मान समारोह का आयोजन रविवार 21 जुलाई 2024 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ।
रघुराज सिंह निश्चल द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि रामदत्त द्विवेदी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया। सम्मान स्वरूप श्री शुक्ल को अंग-वस्त्र, मान-पत्र एवं स्मृति चिह्न अर्पित किए गये। सम्मानित साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल पर आधारित आलेख का वाचन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा ... अपने उत्कृष्ट एवं प्रेरक साहित्यिक समर्पण व सक्रियता से मुरादाबाद को गौरवान्वित करने वाले वरिष्ठ रचनाकार श्रीकृष्ण शुक्ल 'कृष्ण' का जन्म भाद्रपद कृष्ण, अष्टमी संवत् 2010 तदनुसार 30 अगस्त 1953 को मुरादाबाद में कीर्तिशेष श्री पुरुषोत्तम शरण शुक्ल एवं श्रीमती सरला देवी शुक्ल के कुलदीपक के रूप में हुआ। आपने अर्थशास्त्र में परास्नातक एवं CAIIB के दोनों भागों में विशेष योग्यता प्राप्त की। बचपन से ही परिवार और परिवेश से मिले संस्कारों ने संस्कृति और साहित्य की ओर आपको आकर्षित किया। उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व के स्वामी शुक्ल जी से मेरा परिचय अब से लगभग 8 वर्ष पूर्व साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप ग्रुप के माध्यम से हुआ। उनका सरल, सहज एवं सौम्य व्यवहार मुझे आरंभ से ही भाता रहा है। मैं नि:संकोच कह सकता हूॅं कि अपनी साहित्यिक यात्रा में मुझे जिन साथियों ने सर्वाधिक आत्मबल एवं प्रेरणा दी, श्रीकृष्ण शुक्ल जी उनमें से एक हैं। वास्तविकता तो यही है कि कोई अगर प्रेम, आत्मीयता, सरलता एवं सौम्यता से दो-चार होते हुए उसे ग्रहण करना चाहे, तो वह आदरणीय श्रीकृष्ण शुक्ल जी से मिले, बतियाए एवं अपने जीवन को निरंतर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाता रहे। गद्य लेखन का कार्य छात्र जीवन से ही प्रारंभ हो गया था। विभिन्न स्तरों पर निबंध लेखन व वाद विवाद प्रतियोगिताओं में पुरुस्कृत हुए। आपने आगरा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित गाँधी शताब्दी वाक् प्रतियोगिता में, (जो तीन चरणों में संपन्न हुई थी), द्वितीय पुरुस्कार तथा आपके विद्यालय की टीम ने प्रथम पुरुस्कार प्राप्त किया। जीवन के विभिन्न उत्तरदायित्व को पूर्ण करते हुए सन् 1973 में आपकी भारतीय स्टेट बैंक में नियुक्ति हुई। सेवा के साथ-साथ शिक्षा भी जारी रही तथा वर्ष 1984 में अर्थशास्त्र से आपने परास्नातक उपाधि प्राप्त की। सन् 1984 में रामपुर में नियुक्ति के दौरान आकाशवाणी रामपुर से आपकी वार्ताएं प्रसारित होने लगीं। वहीं स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी जी से संपर्क हुआ तथा आपने अपनी काव्य क्षमता को और अधिक गहराई से लेना आरंभ किया। उसी दौरान डॉ कारेन्द्र देव त्यागी उर्फ मक्खन मुरादाबादी जी से संपर्क हुआ तथा उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर आपने व्यंग्य क्षेत्र में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई। उन दिनों छंदमुक्त लेखन का चलन आम था। आपकी अनेक व्यंग्य रचनाएं गोष्ठियों में सराही गयीं। इसी अनुक्रम में आपने कुछ कवि सम्मेलनों में भी प्रस्तुति दी। आकशवाणी रामपुर से भी यदा कदा कविताएं प्रसारित होती रहीं। वर्ष 1986 में रामपुर से पदोन्नत होकर आपका स्थानांतरण हो गया। नौकरी व परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ती गयीं जिस कारण सृजन यात्रा कुछ थम सी गयी। वर्ष 1993 में आपका पुनः मुरादाबाद स्थानांतरण हुआ। उन दिनों आध्यात्मिक संस्था सहजयोग का प्रभार मिला । नौकरी, परिवार और सहजयोग के साथ साहित्य पीछे छूटता रहा। वर्ष 2013 के अंत में आप स-सम्मान सेवानिवृत्त होकर मुरादाबाद आ गये तथा सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए। इस अवधि में आपके सृजन कार्य ने पुनः गति प्राप्त की। आपकी सृजन यात्रा की इस द्वितीय पारी में एक बड़ी भूमिका निभाई मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी जी के वाट्स एप ग्रुप, साहित्यिक मुरादाबाद ने। आपके निवेदन पर उन्होंने आपको इस समूह से जोड़ा। इसी के साथ आपका रचनाकर्म एवं साहित्यिक छवि निरंतर पुष्ट होते गये। आपकी रचनाएं कई साझा संकलनों में प्रकाशित हुई हैं, जिनमें प्रमुख हैं: उजास, छाँव की बयार, काव्यधारा, स्वर्णाक्षरा, प्रणाम काव्यधारा, धरा से गगन तक, गुरु कृपा ही केवलम् आदि। हाल ही में भारत के संविधान को छंदबद्ध करने के विराट कार्य को पूरे देश से 142 साहित्यकारों ने संविधान को दोहों व रोलों की रचना से छंदबद्ध रूप दिया। यह अत्यंत गर्व की बात है कि उन 142 साहित्यकारों में आप भी सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त सृष्टि सुमन, प्रेरणा अंशु, शैल सूत्र, स्पर्शी, काव्यामृत, काव्यधारा, नागरिक समाचार, उत्तराखंड करंट, ग्लोबल न्यूज, गोविषाण पाक्षिक आदि पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। साथ ही आपको विविध साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया है जिनमें ज्ञान भारती पुस्तकालय, रामपुर, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मुरादाबाद, काव्य धारा, रामपुर, हिंदू जागृति मंच संभल, साहित्यिक संस्था संकेत, मुरादाबाद आदि प्रमुख हैं। आपकी उत्कृष्ट रचनाएं जहां एक सुधी पाठक/श्रोता को सरल एवं सहज रूप से आध्यात्म से जोड़ती हैं, वहीं दैनिक जीवन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर आपके धारदार व्यंग्य भी सभी को गहन चिंतन-मनन हेतु प्रेरित कर देते हैं।
अर्पित मान-पत्र का वाचन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा -
"धन यश वैभव के चक्कर में जीवन व्यर्थ गॅंवाया।
अंतिम पल वह धन भी तेरे किंचित काम न आया।
काया तो छूटी, माया भी साथ न ले जा पाया,
सोच जरा क्या खोया तूने, सोच जरा क्या पाया।"
इसके अतिरिक्त महानगर के विभिन्न रचनाकारों कमल शर्मा, राजीव प्रखर, मनोज मनु, योगेन्द्र वर्मा व्योम, विवेक निर्मल, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, चंद्रहास हर्ष, बृजेन्द्र वत्स, डॉ. मनोज रस्तोगी, ओंकार सिंह ओंकार, रघुराज सिंह निश्चल, रामदत्त द्विवेदी, बाबा संजीव आकांक्षी आदि ने भी श्रीकृष्ण शुक्ल को अपनी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए विभिन्न सामाजिक विषयों पर अपनी-अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की। बाबा संजीव आकांक्षी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।
::::::::प्रस्तुति::::::
राजीव 'प्रखर'
महानगर अध्यक्ष
कलाभारती
मुरादाबाद
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