बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से छह अक्टूबर 2024 को साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' पर चर्चा-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार छह अक्टूबर 2024 को  साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' पर  चर्चा-गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा इंटर कॉलेज में हुआ।

    मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अजय अनुपम ने कहा- "व्योमजी का दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' हमें नए स्वस्थ वैचारिक समाज का सशक्त घटक बनाने का पौष्टिक च्यवनप्राश है। उज्ज्वल भविष्य के प्रेरक दोहे समाज को सही दिशा दिखाने में पूर्णतया सक्षम हैं।" 

मुख्य अतिथि राजीव सक्सेना का कहना था - "दोहा जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण छंद को आम व्यक्ति की समस्याओं से जोड़ने में 'उगें हरे संवाद' एक दस्तावेज़ सिद्ध होगी। आने वाले समय में वह इस छंद को और भी अधिक ऊंचाई तक ले जायेंगे।" 

  विशिष्ट अतिथि के रूप में अशोक विश्नोई ने कहा  "व्योम  जी के दोहे वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण करते हैं।" विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने भी दोहा संग्रह को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर  का कहना था - "समस्या मूलक इन सभी दोहों की यह विशेषता है कि ये समस्या के मात्र तात्कालिक स्वरुप को ही इंगित नहीं करते अपितु कालांतर में वह समस्या क्या एवं कितना विस्तार ले सकती है, इस ओर भी संकेत कर जाते हैं। यही कारण है कि उच्च-स्तरीय बिंबों में गुॅंथा यह दोहा-संग्रह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की हलचल को भी पाठकों के सम्मुख रख देता है।" 

  ज़िया ज़मीर ने कहा- "व्योमजी के यहां नवगीतों की अपेक्षा दोहों में मुखरता और कटाक्ष अधिक दिखाई देता है और विषयों की विविधता भी। यहां उनका लहजा तीखा भी है और धारदार भी। कहीं-कहीं भाषा शैली क्लिष्ट होने के बावजूद ये दोहे अपना अर्थ स्पष्ट कर जाते हैं।"  

मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "व्योम जी इन दोहों में समाज को आईना भी दिखाते हैं और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ पारिवारिक रिश्तों में मिठास और सामाजिक-संबंधो में उल्लास बनाये रखने की पैरवी भी करते हैं, यही उनके दोहों की आत्मा है।" 

    मनोज मनु ने कहा - "इंटरनेट के इस त्वरित युग में, जहाँ सभी को शीघ्र ही बात के सार तक पहुंचने की तत्परता रहती है, ऐसे समय में व्योम जी का नवगीत के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित होते हुए भी 'गागर में सागर' भरती विधा "दोहा" द्वारा अपनी सारगर्भित बात को नई पीढ़ी तक कम शब्दों में पहुंचाने का माध्यम बनाना उनके दूरदर्शी नज़रिए से भी साक्षात्कार करवाता है।"    

     अंकित गुप्ता अंक ने कहा - "व्योम जी अपनी रचनाओं में सदैव ही दुरूह और भारी-भरकम शब्दों के प्रयोग से बचते रहे हैं और उनकी यह विशेषता पुस्तक में सर्वत्र परिलक्षित होती है‌"।        

    हेमा तिवारी भट्ट द्वारा लिखित समीक्षा का पाठ करते हुए मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "प्रस्तुत दोहा संग्रह में लगभग सभी समकालीन विषयों यथा भ्रष्टाचार, राजनैतिक पतन, गरीबी, मातृभाषा हिन्दी की स्थिति, मंचीय लफ्फाजी, कविता की स्थिति, पारिवारिक विघटन, आभासी सोशल मीडिया युग, चाटुकारिता और स्वार्थपरता जैसे विविध विषयों पर कवि द्वारा अपने उद्गार अपनी विशिष्ट दृष्टि के पैरहन पहनाकर प्रस्तुत किये गये हैं।" 

     विवेक निर्मल ने उक्त कृति पर आधारित सुंदर दोहों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की‌। उपरोक्त वक्ताओं के अतिरिक्त जितेन्द्र जौली, राहुल शर्मा, पदम बेचैन, फक्कड़ मुरादाबादी, नकुल त्यागी, डॉ. पूनम गुप्ता, योगेन्द्र पाल विश्नोई, रामदत्त द्विवेदी आदि ने भी संग्रह की उपयोगिता तथा श्री व्योम के दोहा-सृजन पर प्रकाश डाला।       

      कार्यक्रम  में दोहा-पाठ करते हुए चर्चित कृति के रचनाकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा - 

मिल-जुलकर हम-तुम चलो, ऐसा करें उपाय। 

अपनेपन की लघुकथा, उपन्यास बन जाय।। 

धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर। 

जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।। 

कथनी तो कुछ और पर, करनी है कुछ और। 

इस युग का सिरमौर है, दुहरेपन का दौर।। 

बदल रामलीला गई, बदल गये अहसास।

 राम आजकल दे रहे, दशरथ को वनवास।। 

जितेन्द्र जौली ने आभार अभिव्यक्त किया। 

































सोमवार, 30 सितंबर 2024

मुरादाबाद की संस्था उर्दू साहित्य शोध केंद्र की ओर से 26 सितंबर 2024 को आयोजित मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन द्वारा संपादित पुस्तक दीवाने काफी का लोकार्पण समारोह

मुरादाबाद की संस्था उर्दू साहित्य शोध केंद्र की ओर से 26 सितंबर 2024 गुरुवार को हैविट मुस्लिम इंटर कॉलेज में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन द्वारा संपादित पुस्तक दीवाने काफी का लोकार्पण किया गया। यह कृति 1857 के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी किफ़ायत अली काफ़ी मुरादाबादी की नातों का संग्रह है जो प्रथम बार प्रकाशित हुआ है। इस अवसर पर राहत मौलाई मेमोरियल कमेटी की ओर से असद मौलाई ने डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन को सम्मानित भी किया गया। 

 फरहान राशिद द्वारा प्रस्तुत काफी मुरादाबादी की नात से शुरू हुए इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मुरादाबाद के स्वतंत्रता सेनानियों के साहित्य को संरक्षित रखने के क्रम में यह डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन का दूसरा प्रयास है। इससे पूर्व वह भगवत शरण अग्रवाल मुमताज के ग़ज़ल संग्रह जज्बाते मुमताज़ संपादित कर चुके हैं।      मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन का यह प्रयास सराहनीय है, स्वतंत्रता सेनानियों के साहित्यिक कार्यों और उनसे जुड़ी चीजों को संरक्षित रखना हम सब की ज़िम्मेदारी है। 

     मासूम मुरादाबादी ने कहा कि किफायत अली काफी मुरादाबाद का एक बड़ा नाम है जिनके सम्बन्ध में अक्सर लोग जानना चाहते थे, डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन मुबारकबाद के पात्र हैं कि उन्होंने ऐसे व्यक्तित्व पर शोध कार्य किया। 

      जामिया मिल्लिया के पूर्व सब रजिस्टार अफ़ज़ालुर रहमान ने कहा कि खुशी की बात है कि  ताज़ा प्रकाशित होने वाले डिविज़नल गजेटियर में भी किफायत अली काफी मुरादाबादी का उल्लेख किया गया है। ऐसे प्रसिद्ध क्रांतिकारी की यादों को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी था और यह काम डॉक्टर मोहम्मद आसिफ हुसैन ने बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया है। 

     इंजीनियर हयात उल नबी खान ने कहा कि मुरादाबाद वासियों की स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका रही है, लेकिन आज उन सेनानियों की निशानियां भी मौजूद नहीं है। ऐसी स्थिति में ढूंढ ढूंढ कर उनकी निशानियां और कार्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाना हम सब की जिम्मेदारी है और यह काम डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन बड़ी दिलचस्पी के साथ कर रहे हैं। 

  डॉ अब्दुल रब उर्दू विभाग अध्यक्ष एम एच कॉलेज मुरादाबाद ने कहा कि काफी मुरादाबादी सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि मुरादाबाद में गजल की परंपरा का एक स्तंभ भी हैं । 

      डॉ आबिद हैदरी उर्दू विभाग अध्यक्ष एमजीएम कॉलेज संभल ने कहा कि काफी मुरादाबाद के साथ-साथ उन लोगों पर भी शोध करने की आवश्यकता है जो स्वतंत्रता संग्राम में उनके साथ रहे। 

     अमरोहा से आए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मिस्बाह अहमद सिद्दीकी ने कहा कि इस नाव प्रकाशित पुस्तक को देखकर मालूम होता है कि डॉक्टर मोहम्मद आसिफ हुसैन उर्दू भाषा के साथ-साथ अरबी और फारसी भाषा का भी अच्छा ज्ञान रखते हैं।

    इंजीनियर फरहत अली खान ने लोकार्पित पुस्तक की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि पुस्तक का प्रकाशन करके डॉ आसिफ ने एक महत्वपूर्ण और दस्तावेजी कार्य किया है।

    कार्यक्रम में  मुफ्ती मुइज़ आलम, मुफ्ती फैज आलम, मुफ्ती दानिश कादरी,  तनवीर जमाल उस्मानी, डॉ मुजाहिद फ़राज़, डॉ मनोज रस्तोगी, जिया जमीर आदि उपस्थित रहे। संचालन सैयद मोहम्मद हाशिम ने किया ।