सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के 52 गीत । ये गीत उनके प्रथम काव्य संग्रह 'सुधियों की रिमझिम' में संगृहीत हैं । यह कृति सन 1965 में आलोक प्रकाशन मंडी बांस मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित और प्रतिभा प्रेस मुरादाबाद द्वारा मुद्रित की गई थी । इस कृति की भूमिका लिखी है डॉ शिव बालक शुक्ल ने । इस कृति में उनके 64 गीत हैं -----


 





















































::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद की संस्था कला भारती के तत्वावधान में 21 फरवरी 2021 को साहित्य समागम कार्यक्रम का आयोजन-----

 मुरादाबाद की संस्था कला भारती के तत्वावधान में रविवार 21 फरवरी 2021 को साहित्य समागम कार्यक्रम का आयोजन मानसरोवर कन्या इंटर कॉलेज में किया गया जिसका विषय  ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वंदना रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाराजा  हरिश्चंद्र  डिग्री कॉलेज की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने की । मुख्य अतिथि कला भारती  के महामंत्री बाबा संजीव  आकांक्षी रहे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में हेमा तिवारी भट्ट मौजूद रही । कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष माल्यार्पण के साथ किया गया । 

इस अवसर पर मयंक शर्मा ने पढ़ा कि :-

विनयशील, सद्भाव, यश गान दो मां

 खड़े हैं विनीत शीश वरदान दो मां 

योगेंद्र वर्मा व्योम ने पढ़ा कि:-

हटा कुहासा मौन का निखरा मन का रूप 

रिश्तों मैं जब खिल उठी अपनेपन की धूप 

राजीव प्रखर ने  कहा  कि:-

ज्ञान स्त्रोत मां वीणापाणि

 तुमसे  संचालित जग सारा

 दिव्य स्वरूपों में तुमने ही

 हमको है हर तम से तारा 

डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि :-

स्वाभिमान भी रख गिरवी

 नागों के हाथ 

भेड़ियों के सम्मुख

 टिका दिया माथ

 ईशांत शर्मा ईशु ने कहा कि :-

जीवन को खुशियों से सजा दो मां शारदे मां 

 धरती से तुम अंधेरा मिटा दो हे शारदे मां 

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने  कहा कि:-

  मां शारदे मां शारदे मां शारदे 

अज्ञानता के भंवर से  मां हमें उबार  दें

अशोक विश्नोई की रचना का पाठ करते हुए आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा कि:- 

मां शारदे मां शारदे 

ज्ञान का भंडार दे 

हमको तम ने है छला

 दिव्य ज्योति तू जला

 नव पथ  संसार दे 

हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि :-

श्वेतांबरा मां करे वीणा ज्ञान का आधार हो

 मरालवाहिनी अम्ब मेरी दिव्य तुम अवतार हो 

बाबा संजीव आकांक्षी ने पढ़ा कि :

बुद्धि हो शुद्ध अंतःकरण निर्मल हो

 विचारों की नदियां में शीतल जल कल- कल हो 

डॉ मीना कौल ने पढ़ा कि: 

अनुपम वाणी अद्भुत काम प्रज्ञा दायिनी तुझे प्रणाम प्रीतम सौंदर्य नयनाभिराम श्रद्धा दायिनी तुम्हें प्रणाम

 इस अवसर पर उपस्थित सभी कवियों ने स्वर ज्ञान विद्या की देवी मां सरस्वती को नमन किया और ऐसे कार्यक्रमों को भविष्य के लिए भी उपयोगी बताया ।कार्यक्रम का संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया।

































 ::::प्रस्तुति:::::

 आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद

 

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की ग़ज़ल यात्रा पर केंद्रित योगेन्द्र वर्मा व्योम का आलेख --... ख़याल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई ...-


मुरादाबाद की मिट्टी में ही सृजनशीलता गहरे तक समाई हुई है, यही कारण है कि हिन्दी और उर्दू के साहित्य को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध करने वाले अनेक रचनाकार मुरादाबाद ने दिए हैं जिन्होंने अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर तक समृद्ध किया है। जिगर मुरादाबादी, हुल्लड़ मुरादाबादी, दुर्गादत्त त्रिपाठी, माहेश्वर तिवारी, डॉ मक्खन मुरादाबादी, मंसूर उस्मानी, डॉ कृष्ण कुमार नाज़, ज़िया ज़मीर आदि ऐसे अहम नाम हैं जिन्होंने अपने रचनाकर्म से मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को उत्तरोत्तर समृद्ध करने का महत्वपूर्ण काम किया। वर्तमान में भी अनेक नवोदित रचनाकार अपनी रचनाओं की सुगंध से जहाँ एक ओर मुरादाबाद के उजले साहित्यिक भविष्य की संभावना बन रहे हैं वहीं दूसरी ओर मुरादाबाद का नाम मुरादाबाद से बाहर भी प्रतिष्ठित कर रहे हैं। राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, मयंक शर्मा, फरहत अली सहित ऐसे रचनाकारों की फेहरिस्त में एक महत्वपूर्ण नाम मोनिका मासूम का भी है जिन्होंने बहुत ही अल्प समय में अपने ग़ज़ल-लेखन से मुरादाबाद के रचनाकारों के बीच अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने में सफलता अर्जित की है।

साहित्य में ग़ज़ल एक बहुत ही महत्वपूर्ण और मिठास भरी विधा है जिसके परंपरागत स्वर में मुहब्बत की कशिश और कसक का मखमली अहसास ज़िन्दादिली के साथ अभिव्यक्त होता रहा है लेकिन समय के साथ-साथ ग़ज़ल की कहन में भी बदलाव आता गया और आम जनजीवन से जुड़े संदर्भ भी ग़ज़ल के कथ्य का हिस्सा बनने लगे, दुष्यंत कुमार इस संदर्भ में ऐसा महत्वपूर्ण नाम हैं जिन्होंने ना केवल ग़ज़ल की दिशा को सफलतापूर्वक नया मोड़ दिया बल्कि ग़ज़ल के शिल्प में कही गई आम आदमी की पीड़ा को और समसामयिक विद्रूपताओं को भी प्रभावी ढंग से कहने में सफल रहे। हालांकि उर्दू साहित्य-जगत ग़ज़ल के इस बदले हुए स्वरूप से कभी सहमत नहीं रहा। आज के समसामयिक विषय-संदर्भ को मोनिका जी बहुत ही संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त करती हैं-

‘है सफ़र कितना पता चलता है संगे-मील से

 कोई बतलाता नहीं है रास्ता तफ़सील से

 मांगती है ज़िन्दगी हर मोड़ पर कोई सुबूत

 आप ज़िन्दा हैं ये लिखवा लीजिए तहसील से’

जबसे हम प्रगतिशील हुए और वैज्ञानिक उपलब्धियों का दुरुपयोग करने लगे तभी से मानवीय संवेदना में तेज़ी से ह्रास होने लगा और समाज में विद्रूपताएं बलवती होती गयीं। कन्या-भ्रूण हत्या भी ऐसी ही संवेदनहीन सामाजिक विद्रूपता है जो इस सृष्टि का सबसे बड़ा पाप होने के साथ-साथ जघन्य अपराध भी है। एक नारी होने के नाते और माँ होने के नाते मोनिका जी अपने मन की टीस को ग़ज़ल में अभिव्यक्त करती हैं-

'मुझको तेरा हक़ न तेरी मेहरबानी चाहिए

शान से जीने को बस इक ज़िंदगानी चाहिए

जन्म लेने से ही पहले मारने वाले मुझे

मर गया जो तेरी आँखों में वो पानी चाहिए'

सदियों से नारी को अबला और दोयम दर्ज़ा प्रदान करने वाले समाज को अपनी लेखनी के माध्यम से चुनौती देते हुए नारी स्वाभिमान की बात जब की जाती है तो मोनिका मासूम की लेखनी से स्वर गूंजता है-

       ‘फूल,फ़ाख़्ता, तितली, चाँदनी नहीं हूँ मैं

मखमली कोई गुड़िया मोम की नहीं हूँ मैं

तुमको दे दिया किसने मालिकाना हक़ मुझ पर

मिल्क़ियत किसी के भी बाप की नहीं हूँ मैं’

ग़ज़लों में आए बदलाव के इस दौर में कथ्य की विषयवस्तु तो बदली ही, भाषा भी सहज हुई क्योंकि अरबी-फारसी की इज़ाफत वाले उर्दू शब्दों और संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्दों वाली रचनाएं आम पाठक को प्रभावित करने में अब सफल नहीं होती हैं। लिहाज़ा ग़ज़लों में भी नए-नए प्रतीकों के माध्यम से शे’र कहने का प्रचलन बढ़ा, मोनिका जी भी ऐसा ही प्रयोग करती दिखती हैं-

‘हो पायल चुप तो बिछुआ बोलता है

नई दुल्हन का लहजा बोलता है

अभी बाक़ी है अपना राब्ता कुछ

अभी रिश्ता हमारा बोलता है’

साहित्य की लगभग सभी विधाओं में प्रेम की सुगंध को मिठास भरा स्वर मिला है, उर्दू साहित्य में विशेष रूप से। उर्दू के अनेकानेक रचनाकारों ने अपनी-अपनी तरह से प्रेम को ग़ज़लों में नज़्मों में प्रभावशाली रूप से अभिव्यक्त किया है। मोनिका जी भी अपने विविध-रंगी अश्’आर में प्रेम को अपनी ही तरह से बयाँ करती हैं-

‘बेचैन धड़कनों की हरारत बयां करे

 लफ़्ज़ों में कैसे कोई मुहब्बत बयां करे

 तू मेरी ज़िन्दगी से है वाबस्ता इस तरह

 जैसे क़लम सियाही से निस्बत बयां करे’

या फिर-

‘ख़याल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई

मेरे बुजूद की रंगत बदल गया है कोई

बदन सिहर उठा है लब ये थरथराए हैं

ये मुझमें ही कहीं शायद मचल गया है कोई

यह सत्य है कि आज से 10 वर्ष पहले तक मुरादाबाद की महिला रचनाकारों की सूची में 3-4 नाम यथा- डा. मीना नक़वी, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. पूनम बंसल आदि ही प्रमुखता से चर्चा में आते थे लेकिन आज के समय में यह सूची काफी समृद्ध है और इस सूची में शामिल कई नवोदित महिला रचनाकार कविता के साथ-साथ गद्य लेखन में भी महत्वपूर्ण सृजन कर रही हैं। मोनिका जी की रचनात्मक प्रतिभा को भी प्रोत्साहन और प्रखरता प्रदान करने में डॉ. मनोज रस्तोगी जी द्वारा संचालित वाट्स एप ग्रुप ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जैसाकि मोनिका जी स्वयं भी कई बार इस बात को स्वीकार करती रही हैं। विशुद्ध गृहणी मोनिका जी की ग़ज़लों को पढ़ते हुए महसूस होता है कि ये ग़ज़लें गढ़ी हुई या मढ़ी हुई नहीं हैं। इन ग़ज़लों के अधिकतर अश्’आर पाठक के मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है। 


✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’                              मुरादाबाद-244001,मोबाइल- 9412805981