गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 अप्रैल 2021 को ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की रचनाएं -----

          (  एक )
वोट देने हेतु
आस्तीन से पसीना
पोंछता कतार में लगा
भारतीय नागरिक
अपने अधिकारों की लड़ाई
हर बार हारा है ।
वह कल भी
असहाय बेचारा था,
वह आज भी,
असहाय बेचारा है ।।

            ( दो )

तीन चौके पन्द्रह
का हिसाब बैठा कर ,
गुणा भाग कर।
कच्चा- पक्का
हिसाब आ गया।
मेरी गली का गुंडा
सत्ता पा गया ।।

           ( तीन )

जो मेरे पास है
वह तुम्हारे पास नहीं
फिर
हम एक क्यों नहीं हो जाते
जो तुम्हें चाहिए मैं दूंगा
जो मुझे चाहिए तुम दोगे
फिर बाद में
मैं करूँगा तुम्हारी भावनाओं
पर चोट ।
पहले मुझे चाहिए तुम्हारा
कीमती वोट ।।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
         मो ० 9411809222
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तेरी बीती उम्र अब जात रे ,
तू क्यों करता उत्पात रे,।।
दैवयोग से मिली देह यह
जो अनमोल रत्न है ।
मानेगा ईश्वर अनुशासन
गर्भ में दिया वचन है ।
धन का लोभी अहंकार वश ,
करता अब क्यों घात रे ।।1 ।।
ओ अज्ञानी न कर नादानी
समय बहुत है थोड़ा
संयम के चाबुक से अब तो
रोक ले मन का घोड़ा ।
रहा दौड़ता यदि निरंकुश
बिगड़े, बनी यह बात रे ।। 2 ।।
मिली भाग्यवश मानव योनि
विगत पुण्य था तेरा ।
कलुष प्रमादी दुश्चिंतन ने
आकर तुझको घेरा ।
इस उर्वरा मनो भूमि पर
उगने दे जलजात रे ।।3 ।।
तू क्यों करता उत्पात रे ....

✍️डॉ प्रेमवती उपाध्याय, मुरादाबाद
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बाबा ने जग में दिया भारत को सम्मान
संबिधान रच कर किया जन-जन का कल्याण।

आगे बढ़ने की रही केवल मन में चाह
दुनियाँ को दिखला दिया कठिन न कोई राह।

हर-पल चुभता ही रहा छुआ-छूत का डंक
धरती से कैसे मिटे यह वीभत्स कलंक।

गहन सोच अध्य्यन किया तोड़ा कलुषित तंत्र
शिक्षा संग संघर्ष का दिया अनूठा मंत्र।

बिना परिश्रम के नहीं बन सकती कुछ बात
सारी दुनियां चलेगी तभी तुम्हारे साथ।

पहले करना सीख लो नारी का सम्मान
वरना संभव ही नहीं मानव का उत्थान।

नहीं असंभव कुछ यहाँ करलो तनिक विचार।
जो कठिनाई से डरा निष्चित उसकी हार।

सिर्फ साल में एक दिन आते बाबा याद
इसके पहले कुछ नहीं और न इसके बाद।

भेद-भाव को त्यागकर धरें सभी का ध्यान
ढोंग तपस्या त्याग कर जपें बुद्ध का नाम।

✍️वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ, प्र,
मोबाइल फोन नम्बर 09719275453
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मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो

दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो

फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो

पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो

✍️डॉ पूनम बंसल, मुरादाबाद
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अफसरशाही मस्त है, आम आदमी त्रस्त।
लेकिन तारणहार हैं, बस चुनाव में व्यस्त।।

कोरोना का देखिए, अजब गजब ये खेल।
रैली मेलों से सदा, ये रखता है मेल।।
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बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ।
जाओ भी अब हठधर्मी मत दिखलाओ।।

कुछ दिन के मेहमान सरीखे आ जाते।
खाते पीते कुछ दिन और चले जाते।
लेकिन तुम तो तम्बू गाढ़े  बैठे हो।
पता नहीं तुम किस गुमान में ऐंठे हो।
सारे हैं हल्कान,  तरस कुछ तो खाओ।
बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ ।

डेंगू और चिकनगुनिया भी आते हैं।
किंतु शराफत वह भरपूर दिखाते हैं।
थोड़े दिन मेहमाननवाजी करके वह।
फिर चुपचाप विदाई लेकर जाते हैं।
शिष्टाचार उन्हीं से आप सीख आओ।
बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ

राजी से यदि नहीं गये, पछताओगे।
वैक्सीन से आप खदेड़े जाओगे।।
भारतवासी जिसके पीछे पड़ते हैं।
उसकी जड़ तक जाकर मट्ठा भरते हैं।
बुरे फँस गये भारत में अब पछताओ।
बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ ।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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हम देश के हर फैसले पर                                  एतराज जताते हैं
और तो और
अपनी ही हार पर
जश्न मनाते हैं
चोला हमने भले ही
पहन रखा है रंग बिरंगा
पर मन में हमारे
हमेशा रहता है हरापन
भूल जाते हैं सारे एहसान
खत्म करते रहते हैं अपनापन                            राह में कभी सीधा चलना नहीं भाता है
हमेशा उल्टा चलना ही सुहाता है
खाकर यहां का अन्न
गीत औरों का गाना आता है                                            

नहीं लिखते हम                                                   
भविष्य की सुनहरी इबारत
इतिहास के काले पन्नों  को ही

 हम दोहराते हैं 

वैसे हमें देश से बहुत प्यार है      

 अपने को ही देशभक्त कहलाते हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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लोकतंत्र में लोग

सुना आपने!
लोग बोल रहे हैं
एक-एक कर
परतें खोल रहे हैं
अखबार सभी
और चैनल भी
देश में फिर से
कोरोना बढ़ रहा है
डर का एक नया
अध्याय गढ़ रहा है
अस्पताल मरीजों से भर रहे हैं
और आमलोग मर रहे हैं
कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है
हर कोई बस
अपने आप से जूझ रहा है
भयंकर तनाव हैं
लेकिन हम व्यस्त हैं
मस्त हैं
क्योंकि
कहीं विधानसभा के
तो कहीं पंचायत के
चुनाव हैं
बेशक
हर दिन हर पल
कम हो रही है
ज़िन्दगी और मौत के
बीच की दूरी
लेकिन आप ही बताओ
क्या और कुछ भी है
इस समय
चुनाव से ज़्यादा ज़रूरी
लोग जियें या मरें
हम क्या करें
हमारी नीयत में
कहाँ कोई खोट है
लेकिन यह भी तो सत्य है कि
लोकतंत्र में लोग
लोग नहीं
सिर्फ वोट हैं

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम',मुरादाबाद
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सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है
इसका पावन इतिहास बड़ा गर्वीला है

हर कंकड़ कंकड़ में शंकर ,
डमरू ध्वनि जिनकी प्रलयंकर!
गल सजती सर्पों की माला,
तन पर लिपटी है मृगछाला ।
बिष पीकर  जिनका कंठ हो गया नीला है
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है।।

अरुणोदय सर्वप्रथम होता !
पश्चिम दिश रवि निशदिन सोता।
उत्तर हिमपर्वत वर विशाल
भारत माता का सजा भाल।।
दक्षिण  सागर उत्ताल लहर नखरीला है
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है

कबिरा, रहीम के दोहों में।
कवि सूरदास आरोहों में।
तुलसी  मानस में रचा बसा,
मीरा के पद में प्रेम पगा !
दिनकर शोलों सम  प्रखर ओज भड़कीला है
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है।।

रक्तिम दरिया तूफानी है।
लक्ष्मी बाई मर्दानी  है।
सुखदेव, भगतसिंह,राजगुरु
आजाद खौलता यहां लहू।।
मंगलपांडे सा यौद्धा छैल छबीला है।
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है।।

✍️ अशोक विद्रोही,412प्रकाशनगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन 8218825541
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सुनो!
ओ मेरे जन्मों के साथी
मैं कभी साध न सकी
षडज
ऋषभ
गांधार
मध्यम
पंचम
धैवत
निषाद
आदि सात सुरों को
अपने स्वर में,
नहीं कर पायी इनकी साधना।
लयभंग इस जीवन में,
लय से हीन ही रही मेरी वाणी।
मेरे इस अतुकान्त जीवन को
न मिल सकी कभी कोई तुक
#साहित्य_संगीत_कला_विहीन मुझे,
केवल तुम्हारे प्रेम की मर्यादाओं ने,
#पुच्छ_विषाण_हीन
होते हुए भी,
पशु होने से बचाये रखा
हां बचाये रखा है
मुझे पशु होने से.....।

✍️रचना शास्त्री, मुरादाबाद
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अरे चीं-चीं यहाँ आकर, पुनः हमको जगा देना।
निराशा दूर अन्तस से, सभी के फिर भगा देना।
चला है काटने को जो, भवन का मोकला सूना,
उसी में नीड़ अपना तुम, मनोहारी लगा देना।
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चली सुनामी पाप की, ऐसी आज प्रचण्ड।
कब गरजेगा राम जी, पुनः धनुष कोदण्ड।।
(भगवान श्रीराम का धनुष 'कोदण्ड' नाम से जाना जाता है।

रैन बसेरा जग भया, जीवन ढालती शाम।
नटखट पंछी प्राण के, चल कर ले विश्राम।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

पंछी दरबे में पड़ा, हुआ बहुत हैरान।
भीतर से ही सुन रहा, आज़ादी का गान।।

वहशी-चोर-बिचौलिये, गुण्डे-झोला छाप।
कुर्सी तेरी गोद में, हुए सभी निष्पाप।।

✍️राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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बहाना ढूँढ लिया तुमको रँग लगाने का,
मिला नसीब से मौक़ा क़रीब आने का

चले भी आओ कि होली भी पास आयी है,
खुला  है दर  सदा  मेरे  ग़रीबखाने का

ज़रा सी बात पे यूँ रूठना नहीं अच्छा
हसीन प्यार का मौसम है मुस्कुराने का,

भुला दो रंजिशे तक़रार में क्या रक्खा है
मिलाओ दिल, यही है वक़्त मान जाने का

दिखा है चाँद भी पूनम का बाद मुद्दत के
तेरा भी आज का वादा था छत पे आने का।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
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ग़म के बाज़ार में खड़ा शायर
बेचे खुशियों की हर अदा शायर

आईना वक्त का हुआ शायर
मीर ओ गालिब सा हर बड़ा शायर

अपने लफ़्ज़ों में घोलकर मरहम
ग़म के मारों को दे शिफा शायर

दर्दो- गम देखकर ज़माने के
अपने अश्कों को पी गया शायर

स्वाद इसने  भी चख लिया ग़म का
दिल यह अपना भी हो गया शायर

मंच पर चुटकुले सुनाता है
दौर ए हाजिर का सिरफिरा शायर

ग़म की मुश्किल रदीफ़ से "मासूम"
क़्वाफ़ी ए दिल लगा रहा शायर

✍️ मोनिका मासूम,मुरादाबाद
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कब तक घर में कैद रहेंगे ,काम जरूरी करने होंगे।
लड़ते लड़ते इस वायरस से  विजय शिखर छूने होंगे।
सच्चा मित्र वही है जो आरसी रास्ता सही दिखाए।
विपदा के आते ही जो उससे हमें बचाए ।
कठिन घड़ी में हमने अपने मित्र दो बनाए।
जंग है नन्हे से वायरस से इसने बहुत सताए।
इसके भय से हमको अपने प्राण नहीं  खोने होंगे।
लड़ते- लड़ते इस वायरस से विजय शिखर छूने होंगे।
आज कोरो ना का संकट सारी दुनिया में गहराया।
देखो छोटे से वायरस ने कैसा कोहराम मचाया।
भारत अक्सर अपने दम पर विश्व गुरु है कहलाया।
कठिन रास्तों पर चलकर ही परचम फहराया।
आत्मसुरक्षा की खातिर कुछ ठोस कदम रखने होंगे।
कब तक घर में कैद रहेंगे ,काम जरूरी करने होंगे।
  लड़ते -लड़ते इस वायरस से विजय शिखर छूने होंगे।
  मास्क ,ग्लब्स से पहले हमको मीत साथ दो रखने होंगे।
अपने -अपने मोबाइल में कैद हमें यह करने होंगे।
   आरोग्य सेतु और भैया आयुष कवच  मनोहर होंगे।
    जब हम घर से बाहर होंगे।
    सच्चे पहरेदार ये  होंगे।
    जैसे ही संक्रमित व्यक्ति आसपास मंडराएगा ।
    मित्र आरोग्य सेतू हमारा चौकन्ना हो जाएगा।
    साथ हो ऐसा मित्र हमारे तो क्यों हम घबराए ।
    विपदा के आते ही जो उससे हमें बचाए।
    आयुष भैया कवच बनेंगे और हमको सिखलाएंगे।
    कैसी होगी दिनचर्या आहार-विहार समझाएंगे।
    योगा -प्राणायाम ,आहार कैसा कब कब खाएंगे।  प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ा हम विश्व गुरु कहलाएंगे।।
  कोरोना की जंग में एक दिन निश्चित ही विजयी होंगे।       कब तक घर में कैद रहेंगे,काम जरूरी करने होंगे।
  आज अभी संकल्पित हों सब, 
  घर से बाहर रखेंगे तब पग।          
  अपने -अपने मोबाइल में डाउनलोड करना होगा।   आरोग्य और आयुष कवच साथ रोज रखना होगा।           रेखा देखना भारत एक दिन सिरमौर अपना होगा।   
   कब तक घर में कैद रहेंगे , ख्वाब पूर्ण करने होंगे ।
  
✍️ रेखा रानी , विजयनगर गजरौला
जनपद अमरोहा।
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बात इस दिल की बताने हम भला जाते कहाँ।
जो रखे पिन्हा गमों को हमसफ़र पाते कहाँ  ll1ll

दिल सुनें दिन रात जब तन्हा सदाएं प्यार की।
शोर रूखी महफ़िलों के यार तब भाते कहाँ ll2ll

अन्जुमन उज़डा हुआ था शाख हर  ग़मगीन थी।
गीत उस माहौल में हम प्रीत के गाते कहाँ   ll3ll

वक़्त कुछ देना मुनासिब भी नहीं समझा मुझे
फिर भला नज़दीक दिल के वह कभी आते कहाँ ll4ll

  बेवज़ह ही सोचकर यह मुस्कुराते हम रहे।
  ज़र्ब दिल के भीड में हम यार सहलाते कहाँ ll5ll
                       
✍️  प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
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जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

रिफ़अतें जो जहाँ में अता थी मुझे।
रेत सी हाथ से वो फिसलती रही।

क्या कहूँ दोस्तों दास्ताँ बस मिरी।
शायरी बनके दिल से निकलती रही।।

जो खिली रौशनी हर सुबह जाने क्यों।
शाम की आस में वो मचलती रही।।

क्या बचा अब है 'आनंद' इस दौर में।
लुट गया सब कलम फिर भी चलती रही।।

✍️अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (यू०पी०)
8979216691
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कोरोना फिर से लौट आया
सब के दिलों में फिर डर बैठाया।

स्कूल बंद करवा दिये
परिक्षा को टलवा दिया।

शादी समारोह कम होगें
भीड़ भाड़ से सभी बचेंगे।

मास्क पहनना जरूरी
वर्ना चालान कटने की मजबूरी।

साफ़ सफाई रखिये सब
घर बाहर आस पास।

सैनेटाजर का इस्तेमाल करना साथ
तभी मिलना किसी से हाथ।

मत दान भी करना जरूरी
पंक्तियों में रहे दो गज दूरी।

माता से करो सभी प्रार्थना
कोरोना का मिटा दो नाम निशा मां।।

✍️ चन्द्र कला भागीरथी धामपुर जिला बिजनौर
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आओ लौट चलें हम  निज
सभ्यता संस्कृति की  ओर ।

दोनों  हाथ  जोड़कर   ही
अभिवादन  सत्कार   करें,
छोड़  बहिर्मुखता  अपनी
अंतर्मुखता  से प्यार  करें,
हाथ  गले  न  मिलें  मिले
दिल  बंधे   प्रेम  की  डोर ।

आया है बस एक अकेला
जाना   भी   है ‌   अकेला,
बंद करें महफिल बाजारी
बंद   माल   और    मेला,
संयम  और  सहयोग   से
कट जायेगा संकट घनघोर ।

हो   आशा    का    संचार
नकारी   ऊर्जा   होवे  दूर,
नित  प्रति   यज्ञ   आहुति
घर में  समिधा और कपूर,
तुलसी और  गिलोय   का
सेवन जीवन स्वस्थ विभोर ।

क्रोध  दंड  संकेत  प्रकृति
का  रुप  है   ये  महामारी,
जीव   हिंसा  रस   विषय
बंद बनो  शुद्ध शाकाहारी,
क्षमा  मांगने  मां   प्रकृति
के आंचल का पकड़ो छोर ।

आओ लौट चलें हम निज ,
सभ्यता संस्कृति की ओर ।।

✍️शुचि शर्मा, शेरकोट
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आओ ! सिंहनाद करें
जन-गण-मन का भाव लिए
शुद्र-निर्बल साथ लिए,
मानवता का व्रत ह्रदय में
“वंदेमातरम्” कहकर
देशप्रेमियों का सत्कार करें,
आओ.....! सिंहनाद करें ।।२।।
खुलेद्वार “गिद्ध” न झाँके
विश्वासघात की रूह काँपे
स्वपन में न दर्पण ताकें,
शत्रु ह्रदय प्रति-साँस
“भारत माता” की जय-जय कार करें
आओ...! सिंहनाद करें ।।३।।   

✍️ प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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दोपहर में दिन, सुनहरा हो जाता है
बरसात में खेत, हरा भरा हो जाता है
पति कितना भी, बड़ा पहलवान हो
बीवी के सामने, अधमरा हो जाता है

✍️नजीब सुल्ताना
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
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मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी की रचना----मैं भुलाती रही , वो बुलाता रहा .....


 

मुरादाबाद मंडल के हसनपुर (जनपद अमरोहा ) निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की रचना---- दिल के दर्द दबाते रहिए , जख्मों को सहलाते रहिए.....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता ------दीपक की लौ


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की कविता -----हां, मैंने तब देखा है .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कविता ---मच्छर और पुलिसकर्मी .......


 

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर )की साहित्यकार चंद्रकला भागीरथी की रचना ---कलियुग में ऐसा समय आएगा किसी ने यह सोच न था ........


 

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्सएप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 9 व 10 अप्रैल 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनकी रचनाएं, चित्र तथा उनसे सम्बंधित सामग्री प्रस्तुत की गई। उल्लेखनीय है मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत प्रत्येक माह के द्वितीय शुक्रवार - शनिवार को यह आयोजन किया जाता है। फरवरी में दुर्गादत्त त्रिपाठी जी और मार्च में कैलाश चन्द्र अग्रवाल पर यह आयोजन हो चुका है ।


कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने पंडित मदन मोहन व्यास के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुरादाबाद के मोहल्ला जीलाल के प्रतिष्ठित व्यास परिवार में 5 दिसंबर 1919 को  जन्में पंडित मदन मोहन व्यास को साहित्य और संगीत विरासत में मिला था ।उनकी मात्र दो काव्य कृतियां ही प्रकाशित हो सकीं। प्रथम काव्य कृति 'भाव तेरे शब्द मेरे' सन 1959 में प्रकाशित हुई जबकि 'हमारा घर' का प्रकाशन सन् 1978 में हुआ। आपके चार काव्य ग्रंथ 'त्रेता के अंतिम वीर', 'तुम्हारे गीत तुम्हीं को', मुक्त छन्दा, कुंडलिया शतक और निबंध संग्रह समेत अनेक रचनाएं अप्रकाशित हैं।  वह मुरादाबाद की विभिन्न साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं के संस्थापक सदस्य रहे हैं ।आप का निधन 23 मई 1983 को हुआ। उनसे सम्बंधित एक संस्मरण भी उन्होंने प्रस्तुत  किया -----

       जब दादा प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप फफक फफक कर रो पड़े ........

लगभग 32 साल  से ज्यादा समय गुजर गया । बात सन 1988 की है। उस समय मैंने 'तरुण शिखा' नाम से संस्था बना रखी थी। इसके माध्यम से मैं साहित्यकारों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी का आयोजन करता था । 5 दिसंबर को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार, संगीतज्ञ, कलाप्रेमी पंडित मदन मोहन व्यास जी की जयंती होती है। व्यास जी के निधन के बाद पांच साल तक किसी भी संस्था ने कोई आयोजन करने की जरूरत नहीं महसूस की थी। विचार आया कि इस दिन कोई आयोजन किया जाए। इसे  विजय आलम जी के साथ साझा किया । युगबन्धु के सम्पादक कमलेश कुमार जी, रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र जी से विचार -विमर्श हुआ और तरुण शिखा, चेतना केंद्र और प्रयास नाट्य संस्था के संयुक्त तत्वावधान में संगीत, विचार व काव्य गोष्ठी का आयोजन निर्धारित हो गया। यह आयोजन हिंदू महाविद्यालय के अर्थशास्त्र व्याख्यान कक्ष में हुआ। आयोजन में स्मृतिशेष व्यास जी के लगभग सभी परिजन, अनेक मित्र, साहित्यकार, संगीतज्ञ और रंगकर्मी उपस्थित थे। दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे और विशिष्ट अतिथि आदरणीय माहेश्वर तिवारी थे। संचालन का दायित्व मेरे कंधों पर था । आयोजन उन्हीं की लोकप्रिय मां सरस्वती वंदना से आरंभ हुआ। उनके गीतों - भजनों की संगीत बद्ध प्रस्तुतियां हुईं। स्मृति शेष व्यास जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विचार व्यक्त किए गए और रचनाकारों ने काव्य पाठ भी किया । कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी का नाम उद्बोधन के लिए पुकारा गया । बोलने के लिए खड़े होते ही वह फफक फफक कर रोने लगे , आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । यह देख कर उपस्थित सभी लोग भाव विह्वल हो गए और उनकी भी आंखे नम हो गई।  काफी देर बाद स्थिति सामान्य हुई।  भर्राए कण्ठ से दादा अधिक नहीं बोल सके। आज भी जब इस आयोजन का स्मरण होता है तो मेरी आंखें भी नम हो जाती हैं और मन विचलित । मेरा तो उनसे संपर्क /संबंध  महज औपचारिक ही रहा ।  राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति और साहित्यकारों के आवास पर होने वाली कवि गोष्ठियों में ही उन्हें देखा और सुना था। अंतिम बार उन्हें 14 सितंबर 1982 को राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के तत्वावधान में आयोजित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जन्मशती समारोह में हुए कवि सम्मेलन में अध्यक्ष के रूप में सुना था। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने रचना सुनाई थी -----

    हूं अपेक्षित पर उपेक्षित ही रहूंगा

    परिचितों से भी अपरिचित ही रहूंगा 

    कौन से अति पुण्य का फल यह मिला 

     उपकृतों से  भी अनुपकृत ही रहूंगा

     खेल ये कैसा ! जिसे मैं -

     जीत कर भी हाय! हारा !!


उनके धेवते अभय शर्मा ( सुपुत्र शशिबाला शर्मा ) ने पंडित मदन मोहन व्यास  द्वारा रचित सरस्वती वंदना उन्हीं की हस्तलिपि में प्रस्तुत की ------

उनके पुत्र मनोज व्यास ने यही सरस्वती वंदना अपने स्वर में प्रस्तुत की -----


 उनके अनुज बृज गोपाल व्यास ने उनकी कंठस्थ रचनाएं और कुंडलियां प्रस्तुत कीं -----



 उनके प्रपौत्र कार्तिकेय व्यास (पुत्र मुकुल व्यास पुत्र रमाकांत व्यास) ने पंडित मदन मोहन व्यास की रचनाएं प्रस्तुत कीं -----



     


प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक जगत की अल्पज्ञात या विस्मृत प्रतिभाओं की सूची बहुत बड़ी है ।फिर वे पंडित दुर्गादत्त त्रिपाठी हों ,बहोरीलाल लाल शर्मा हों या प्रवासी जैसे कई अन्य लोग  स्मृति शेष पंडित मदन मोहन व्यास एक ऐसे ही गीत -गंधर्व रहे हैं जो अपने समय में साहित्य तथा काव्य मंच के क्षितिज पर चमकते नक्षत्र रहे ।निजी जीवन के संघर्ष ने उनके रचनाकार को कुछ ऊर्जा दी तो तोड़ने ,हताश और लगभग पराजय की हद तक खींच कर ले जाने की कोशिश भी की ।समकालीन हिंदी के विश्रुत कवि /गीतकार वीरेंद्र मिश्र ने अपनी एक रचना में लिखा है -जब जब कंठावरोध होता है /और अधिक सृजन बोध होता है ,यह बीजमंत्र व्यास जी का भी था और इससे प्रेरित लेखन के फलस्वरूप अपने समकालीनों में ,देवराज दिनेश ,मधुर शास्त्री ,क्षेमचंद सुमन आदि की आत्मीय अंतरंगता के सदस्य भी रहे ।इसकी जानकारी मुझे स्वयं दिनेश जी  ने दी।लेकिन संकोची स्वभाव के कारण अपने ही रचे नंदन कानन के वे सीज़र बन गये और स्थानीय ब्रूटसों की साजिश के शिकार हो गये।उनकी अतिशय विनम्रता ने भी उनकी प्रतिभा को दबोचे रखा ।।अब भोलेपन और विनम्रता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि अपने ही अभिनंदन समारोह के लिए चंदा दिलवाने के लिए अति उत्साही युवकों के आग्रह पर वे रात के दस बजे चौमुखा पुल पर मुझे मिले और मेरे हठपूर्ण आग्रह पर वहाँ युवकों को छोड़कर कटघर पचपेड़ा के लिए वापस गए । एक सफल अध्यापक, अभिनेता , संगीतज्ञ , संपादक,व्यासजी की प्रतिभा श्रद्धेय दुर्गा दत्त त्रिपाठी जी को छोड़कर  अन्य अपने किसी समकालीन से कम नहीं थी लेकिन जितना लिख सकते थे उतना लिख नहीं पाये और जितना लिखा वह सब प्रकाशित नहीं हो पाया। स्थानीयता की सीमा में ही संतुष्ट रह जाने के कारण भी उनकी प्रतिभा को पूर्णतः प्रस्फुटन का अवसर नहीं मिल पाया   फिर भी जितना कुछ उपलब्ध है उसका ईमानदार मूल्यांकन हो सके तो उनकी प्रतिभा और कृतित्व को एक सार्थक पहचान मिल सकेगी ।
केजीके महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि कवि  व्यास जी का कोमल हृदय जीवन के झंझावातों से टकराता है तो उसके हृदय में दुःख ,पीड़ा ,टीस ,वेदना भावाभिव्यक्ति के रूप में कविता बनकर स्वतः ही फूट पड़ती हैं ,वह  भाव कहीं प्रकृति के सुकुमार रूप में दिखाई देती है तो कहीं व्यथित समाज के प्रति संवेदनशील रूप धर कविता में अवतरित होती है ।
मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ राजीव सक्सेना ने कहा कि उनका संगीतकार व्यक्तित्व उनके कवि व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता था। उनका संगीत स्वत: उनकी कविताओं व गीतों में समाविष्ट हो जाता था। यही कारण है कि उनके सम्पूर्ण काव्य में संगीत तत्व की प्रधानता है जो संगीतात्मकता और गेयता उनकी रचनाओं में है वह अब दुर्लभ है।
ग्रेटर नोएडा के साहित्यकार मदन लाल वर्मा क्रांत ने कहा कि व्यास जी छन्द शस्त्र, भाषा शास्त्र, दर्शन आदि अनेकानेक साहित्यिक अंगो उपांगों के मर्मज्ञ कवि के साथ-साथ भारतीय-संगीत के ज्ञाता हार- मोनियम, तबला, सितार, मृदंग आदि न जाने कितने ही वाद्य यन्त्रों में दक्ष थे । यही नहीं वह कुशल अभिनेता भी थे । उन्होंने व्यास जी से अंतिम भेंट और उनकी अंतिम रचना भी प्रस्तुत की ।
साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि व्यासजी में अभिनय क्षमता भी जबरदस्त थी। करुणा और वात्सल्य भी उनमें कूट कूट कर भरा था। मेरे अंतस में उमड़ रही काव्य घटाओं को, व्यासजी के मार्ग दर्शन और प्रेरणा से ही बरसने का मौका मिला।एक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा ----पार्कर कॉलेज में उन दिनों,हर वर्ष,फर्स्ट डिविजनर्स डे मनाया जाता था,जिसमे ईसाई समुदाय के, बरेली मंडल के प्रमुख,जिनको बिशप कहा जाता था, मुख्य अतिथि होते थे। कई दिन पहले से इस कार्यक्रम की तैयारी की जाती थी। यह शायद 1972 या 73 की घटना है।बिशप महोदय के स्वागत में,एक स्वागत गीत,आदरणीय व्यासजी के निर्देशन में,तैयार किया जा रहा था। उसके मुख्य बोल थे " खुश है धरती गगन ,आपके स्वागत में" मैंने उस गीत की एक पैरोडी बना डाली,जिसकी दो पंक्तियां मुझे आज भी याद हैं "स्कूल का पुता भवन,आपके स्वागत में, पढ़ना ,लिखना दफन,आपके स्वागत में" आस पास बैठे साथियों को इसका पता चल गया और उन्होंने आदरणीय व्यासजी तक,ये बात पहुंचा दी।अगले दिन उन्होंने,मुझे स्टाफ रूम में बुलाया। मैं डरते डरते उनके पास गया।," ये तुमने लिखा है"उन्होंने कड़क आवाज में पूछा।मैंने कांपते हुए,स्वीकृति में सिर हिलाया।"लिखते हो तो डरते क्यों हो।जो चाहते हो,उसे हिम्मत के साथ करोगे,तभी आगे बढ़ पाओगे।"इतना कहकर उन्होंने,मेरी पीठ थपथपाई।मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।आज,लगभग 50 साल बाद भी,जब परिस्थिति जन्य व्यथाओं से मन विचलित होता है,उनके ये शब्द,मुझे संतुलन प्रदान करते हैं।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि व्यास जी में हास्य का रस बिखेरने की प्रभावशाली क्षमता थी ।श्रोताओं और पाठकों को मनोविनोद के साथ-साथ कुछ चुभती हुई सीख दे जाना यह आपकी कुंडलियों की विशेषता रही। सामाजिक विसंगतियों पर उनकी कलम बहुत अच्छी तरह से चली है।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा प्रेम के सहज पुजारी के रूप में उनके गीत उनका बिम्ब खीचते हैं। अध्यात्म के स्वर सामयिक बिडम्बनाओं को भी उद्घोषित करते गीत अपनी सांस्कृतिक आस्थाओं के स्वरूप का मोहक चित्र उकेरती परिलक्षित होते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कीर्तिशेष पंडित मदन मोहन व्यास   मानवीय संवेदनाओं को स्वर देने वाले कवि व संगीतज्ञ थे। उनकी विभिन्न रचनाओं को पढ़कर यही कहा जा सकता है कि उन्हें साहित्यिक जगत में वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके वह अधिकारी थे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा मदन मोहन व्यास कला, संगीत, साहित्य के अद्भुत मर्मज्ञ, अपूर्व अध्यापक,अपने जीवन काल में साहित्यिक समाज और समारोहों के अनिवार्य अतिथि थे। यही नहीं वे मुरादाबाद में संगीत , साहित्य एवं शिक्षा-संस्कृति की प्रभावशाली परम्प
राओं के संस्थापकों में एक थे ।

जनवादी रचनाकार
शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि उनकी हर कविता में सामाजिक  विद्रूपताओं , समस्याओं और अपसंस्कृति के प्रति चिंता के दर्शन होते हैं। समाज में फैले भृष्टाचार के प्रति भी व्यास जी खासे चिंतित दिखाई देते हैं । उन्होंने हास्य के माध्यम से भी अपने विचारों को अभिव्यक्त किया है परंतु वहाँ भी समाज की किसी न किसी समस्या को उकेरा है। 
दिल्ली के साहित्यकार
आमोद कुमार ने कहा कि मुरादाबाद के कटघर पचपेड़ा निवासी स्मृतिशेष पं मदन मोहन व्यास विलक्षण प्रतिभाशाली गीतकार थे। साधारण कुर्ता धोती धारण कर साईकिल पर चलने वाले सरल और हँसमुख व्यक्तित्व के स्वामी पं मदन मोहन व्यास स्थानीय पारकर इंटर कालेज मे शिक्षक थे। कालेज से लौटते समय घर जाने से पहले वह प्रायः अमरोहा गेट पर स्थित गोविन्द जी की चाय की दुकान पर कुछ देर के लिए रुकते थे जहाँ उनका सानिध्य प्राप्त करने का अवसर हमें मिलता था।उनके कालजयी मधुर अलंकृत गीत हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं, उनके प्रसिद्ध गीत " भाव तेरे, शब्द मेरे ,गीत बनते जा रहे हैं ' को सुनकर सुप्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज ने उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी, मैने ये गीत व्यास जी के श्रीमुख से प्रथम बार जी.जी हिन्दु इंटर कालेज के हाल मे हुए एक कवि सम्मेलन में सुना था। व्यास जी का एक अन्य गीत काव्य शिल्प का सुन्दरतम उदाहरण है जिसे वह अक्सर सुनाया करते थे, जिसकी प्रथम पंक्ति है--- खिले रसभरे नीरजों को "निरख कर मधुप झूम झुक उठ रहे,मिल रहे हैं"।नए शब्दों को गढ़ना और समान्य बोलचाल के शब्दों मे हास्य भर देना उनके हँसमुख स्वभाव का परिचायक था। कीर्तिशेष दादा प्रो. महेन्द्र प्रताप ब्यास जी को शब्द शिल्पी कहते थे। पं मदन मोहन ब्यास जी के संगीतमय मधुर गीत और उनके पढ़ने के अंदाज़ की याद आते ही उनका चेहरा सामने आ जाता है, मुरादाबाद मे मेरे निवास पर हुई काव्य गोष्ठी मे उनकी उपस्थिति की यादें भी ताज़ा हो जातु हैं, हिन्दी साहित्य आकाश मे मुरादाबाद के गौरव पं मदन मोहन ब्यास सदैव दीप्तिमान नक्षत्र सम अपनी अप्रतिम छटा बिखेरते रहेंगे।

कवयित्री
डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृतियों के झरोखे से जब मैं अतीत में झाँकती हूँ तब आदरणीय व्यास जी से संबंधित अनेक प्रसंग चलचित्र की भाँति मेरे चक्षु पटल के समक्ष साकार हो उठते हैं. मेरे अग्रज आदरणीय आमोद कुमार जी साहित्य जगत से जुड़े रहे हैं. उनके प्रयासों से हमारे निवास पर अनेक कवि गोष्ठियां, संगीत गोष्ठियां आयोजित होती रहती थीं. व्यास जी को सुनने का अवसर मिला. हमारा परिवार व्यास जी से बहुत प्रभावित हुआ. व्यास जी का शुभ आगमन चौमुखl पुल स्थित हमारे निवास पर अनेक बार हुआ. जब भी व्यास जी आते, हम सब उनके श्रीमुख से मधुर गीत सुनते. भाव तेरे शब्द मेरे, खिले रस भरे नीरज, नर को तकती नर्तकी आदि अनेक गीत और कुंडलियां हमें कंठस्थ हो गई थीं, जिनका प्रयोग हम अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में करते थे और पुरस्कृत होते थे. महाकवि निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना 'वर दे वीणा वादिनी वर दे' और महा कवि जय शंकर प्रसाद के गीत 'बीती विभावरी जाग री' बहुत ही मधुर कंठ से व्यास जी सुनाते थे. कालान्तर में अंतरा में व्यास जी को सुनने का अवसर मिलता रहा. सन 1980 या 81 में जब मेरे पति डी. ए. वी. कॉलेज, अमृतसर में चित्रकला विभाग में प्रवक्ता थे, एक दिन अचानक व्यास जी हमारे घर आए. उन दिनों फोन की सुविधा नहीं थी. व्यास जी को अमृतसर में कोई काम था. उनका आना एक सुखद आश्चर्य था. उन्होंने सुझाव दिया कि व्यास जी के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित कराया जाय. साहित्य प्रेमियों को उनका साहित्य पढ़ने का अवसर मिलेगा. शोधार्थी उन पर शोध कर सकेंगे।
चर्चित साहित्यकार
डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा श्रद्धेय पंडित मदनमोहन व्यास जी से मेरी भेंट तो नहीं है, क्योंकि मैं उस समय गांव में रहता था। आज साहित्यिक मुरादाबाद पर उनका साहित्य पढ़ा तो बहुत अच्छा लगा। व्यास जी ने जहां सुंदर बाल रचनाएं लिखी हैं, वहीं उनकी रचनाओं में देशप्रेम, समाजप्रेम और प्रेम की संवेदनशील वैयक्तिकता, इन सभी पहलुओं के दर्शन होते हैं। सामाजिक सरोकार पग-पग पर उनकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होते हैं।उनकी रचनाएं युवा साहित्यकारों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में नज़र आती हैं।
युवा रचनाकार
राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष मदनमोहन व्यास जी आम व्यक्ति की वेदना को शिष्ट, सौम्य व गंभीर व्यंग्य के माध्यम से साकार करने में सफल रहे हैं। उनके व्यंग्य में विद्यमान यह शालीनता, सौम्यता व गंभीरता वर्तमान समय के तथाकथित मंचों पर परोसे जा रहे तथाकथित व्यंग्य को सही दिशा दिखाने में पूर्णतया सक्षम  है।
उनके पुत्र
रमाकान्त व्यास ने कहा कि पंडित मदन मोहन व्यास के गीत एवं कविताएं मुरादाबाद तक ही सीमित नहीं थीं, वह भारत के श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित कवियों में गिने जाते थे। भारत के प्रसिद्ध गीतकार कवि उनका आदर करते थे ।
धामपुर के साहित्यकार
डॉ अनिल शर्मा अनिल ने कहा व्यास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से बाल साहित्य में भी अपूर्व योगदान दिया है ।
हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था।  साहित्य के प्रति,उत्साहित और प्रेरित करने वाले उन जैसे व्यक्तित्व बहुत मुश्किल से मिल पाते है।
वरिष्ठ साहित्यकार
अशोक विश्नोई ने कहा  स्मृति शेष मदन मोहन व्यास जी एक उच्च स्तरीय कवि थे,उनके गीत आज भी तरोताजा हैंं। संस्मरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा ---बात सन 1967 की है मैं एक मासिक पत्रिका" ह्रदय उदगार" का प्रकाशन करने जा रहा था, जिसका सम्पादक मैं स्वयं था।तब मैंने पत्रिका के संरक्षक हेतु स्मृति शेष मदन मोहन व्यास जी से आग्रह किया , मुझे यह कहने में कोई दुराव नहीं कि एक बार कहने पर ही उन्होंने सहर्ष मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया वह कितने विनम्र थे यह इस बात से ज्ञात हो जाता है।मैं धन्य हो गया।और वह मेरे निवास स्थान पर कार्यालय के उद्घाटन में बरसात होने के बाद भी मेरे यहाँ पधारे और पत्रिका की रुप रेखा पर चर्चा की।वह अनमोल क्षण मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थे मैं आज भी उन क्षणों  को याद करता हूं तो आनंद की अनुभूति होती है।
कवयित्री
हेमा तिवारी भट्ट ने कहा इस कार्यक्रम में प्रस्तुत स्मृतिशेष पण्डित मदन मोहन व्यास जी और उनके अन्य परिवारीजनों की भी वीडियो व अन्य प्रस्तुतियों को देखकर यह आभास हो रहा है कि संगीत और साहित्य की प्रतिभा व्यास परिवार को आनुवांशिक प्राप्त है और इस आनुवांशिक प्रतिभा को सबने अपने पुरूषार्थ और अभ्यास से और पोषित किया है।पण्डित मदन मोहन व्यास जी को समर्पित इस आयोजन के माध्यम से हम ऐसे व्यास परिवार के बारे में जान पाये,जो विलक्षण प्रतिभाओं से युक्त है।हमने एक ऐसे साहित्यकार की रचनाओं की यात्रा की जिसने हास्य, व्यंग्य, विमर्श के ताने बाने में विभिन्न विषयों पर छंद और शब्द चातुर्य के साथ लिखा,लेकिन केवल लिखने के लिए नहीं लिखा बल्कि जीने के लिए लिखा।काश आज की फेसबुकी नयी पीढ़ी  स्मृति शेष श्री व्यास जी के इस संदेश को आत्मसात कर पाये और जीवन के लिए गीत गाने के पथ पर आगे बढ़े।

वयोवृद्ध संगीतज्ञ रामावतार रस्तोगी ने भावुक होकर उनसे सम्बंधित संस्मरण सुनाए ----


 

युवा रचनाकार दुष्यन्त बाबा ने उनके पुत्र मनोज व्यास द्वारा सुनाए संस्मरण प्रस्तुत किये।तत्कालीन समय में मुरादाबाद स्थित पार्कर कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अग्रणी नाम हुआ करता था। जिले के लगभग समस्त वरिष्ठ अधिकारियों के बच्चे अक्सर इसी विद्यालय में पढ़ते थे। उस समय में अनुशासन के लिए विद्यार्थियों की पिटाई एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। श्रद्धेय व्यास जी ने एक बच्चे को (जिसके पिता मुरादाबाद के जिलाधिकारी थे) पीट दिया। इससे क्रुद्ध होकर जिलाधिकारी महोदय सीधे विद्यालय में आ गए। सारा वृतांत प्राचार्य को सुनाया। प्राचार्य जी ने व्यास जी को अपने कक्ष में बुलाया। और पूछा कि "आपने इनके बेटे को मारा...ये यहां के जिलाधिकारी हैं" व्यास जी मे आत्मबल से भरपूर जबाब दिया। कि " मैंने इनके बेटे को नही मारा..विद्यालय के सभी विद्यार्थी मेरे बेटे है। और यदि ये इनका बेटा है तो विद्यालय से ले जाएं"। ऐसा प्रतिउत्तर पाकर जिलाधिकारी महोदय बहुत लज्जित हुए और उन्होंने स्वयं की गलती के लिए खेद प्रकट किया। ऐसे थे! परम् श्रद्धेय मदन मोहन व्यास जी।
पंडित मदन मोहन व्यास की बहन साहित्यकार एवं संगीतज्ञ बाल सुंदरी व्यास (विशाखा तिवारी) ने कहा  मैं सबसे छोटी और भाई सबसे बड़े थे बहुत दुलार करते थे शिक्षक बहुत  अच्छे थे। मैं बारहवीं कक्षा में थी तब मैंने भाई से संस्कृत पढी ,जो भी उनसे एक बार पढ़ लेता उसे तुरंत याद हो जाता था। उनके पढ़ाये हुए बच्चे बहुत आगे ....बहुत आगे बढ़े। वह मुझे बहुत प्यार करते थे, गोदी में चढ़ाते थे मुझे। हम दोनों मिलकर खूब कीर्तन किया करते थे। बहुत सुरीले कंठ वाले थे । "पूजा का सामान संजोले सखी, प्रिय घर आने वाले हैं "बहुत सुंदर गीत था उनका। मुझे बहुत पसंद था ।  साहित्यिक रचनाओं के द्वारा भाई को याद करके बहुत अच्छा लगता है ।
साहित्यकार सीमा वर्मा ने कहा कि मेरा विवाह स्वर्गीय श्री पूरन लाल वर्मा जी के सबसे बड़े सुपुत्र आशीष कुमार के साथ सन 1996 में हुआ था  ।  परिवार का वातावरण संगीतमय व साहित्यिक था और अपने पितातुल्य ससुर जी के साथ जो भी सुअवसर मुझे प्राप्त होता था वह अपने जीवन से जुड़े संगीत प्रेमियों के विषय में मुझे बताते थे ।  व्यास परिवार के साथ हमारे परिवार का संबंध बेहद गहरा है यह बात विवाह के अगले दिन ही मुझे पता चल गई थी ।  कटघर वाले ताऊजी का जिक्र पिताजी उठते बैठते करते थे ।  हम फरीदाबाद में रहते हैं पर जब भी मुरादाबाद जाते तो  पिताजी फौरन कटघर फोन करके ताऊ जी को बताते कि आशीष और उसकी बहू आए हैं और कभी-कभी ताऊ जी से मिलने का अवसर भी मुझे प्राप्त होता । मुंबई वाले ताऊ जी के यहाँ भी अपने सास ससुर के साथ मैंने प्रवास किया ।  पिताजी की अपनी कोई बहन नहीं थी । इस क्षति की पूर्ति परम श्रद्धेय बुआजी ( बालसुंदरी तिवारी ) ने की । वे मेरे श्वसुरजी को राखी बाँधती रहीं हैं । इस प्रकार मेरे पिताजी ( श्वसुरजी ) स्वर्गीय पूरनलाल वर्मा जी व्यास परिवार में सदैव सबसे छोटे भाई के रूप में प्रतिष्ठित रहे और स्नेह पाते रहे ।  समूह में  मदन मोहन व्यास जी के विषय में जब मैंने  पढ़ना शुरू किया तो मन एक सुखद अनुभूति से भर गया कि इस महान  व्यक्तित्व के  साथ तो मेरा परिवार भी जुड़ा हुआ है ।
साहित्यकार मुजाहिद चौधरी ने कहा कि   स्वर्गीय पंडित मदन मोहन व्यास जी के व्यक्तित्व की जानकारी,उनके जीवन परिचय और कृतियों पर सुंदर लेखों को पढ़ कर मुझे भी गौरवपूर्ण एहसास हुआ । इस सब के लिए निश्चित तौर पर साहित्यिक  मुरादाबाद और उसके सभी सम्मानित साहित्यकार/सदस्य बधाई के पात्र हैं ।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि मेरी याद बार बार मुझे झकझोर रही है। श्री मदनमोहन व्यास जी आठवें दशक में  दयानंद आर्य कन्या डिग्री कालेज मुरादाबाद के प्रांगण में वार्षिक कार्यक्रम का संगीत का कार्य क्रम का निर्देशन किया था। मुरादाबाद के ही नहीं  वे पूरे जनपद व प्रदेश के रत्न थे। उन्हे मेरा श्रद्धापूर्वक नमन ।
गजरौला से रेखा रानी ने कहा कि श्रद्धेय व्यास जी से मेरा कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं रहा  इस सम्मनित मंच पर आदरणीय मनोज  रस्तौगी जी द्वारा सांझा की गई सामग्री के माध्यम से वास्तव में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं । अति सुन्दर वन्दना पढ़ी, ज्यों रवि की प्रथम किरण अद्भुत रचना आजा तुझसे होली खेलूं , वास्तव में  सराहनीय हैं ।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा आयोजन में शामिल सभी साहित्यकारों के विचार पढ़कर बहुत जानकारी मिली ।साहित्यिक मुरादाबाद बधाई का पात्र हैं जिसके माध्यम से हम लोगों को भी प्राचीन धरोहरों के दिव्य दर्शन होते हैं।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि  व्यास जी की रचनाओं में  देश प्रेम , तत्कालीन समाज का यथार्थ,और प्रेम की संवेदनशीलता के दर्शन मििलता है ।

जनपद बिजनौर की साहित्यकार चंद्र कला भागीरथी ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद में प्रस्तुत उनके सन्दर्भ में बहुत कुछ जानकारी मिली । इसके लिए मैं साहित्यिक मुरादाबाद की आभारी हूँ । उनकी रचनायें मानवीय  संवेदनशीलता से ओतप्रोत हैं।

अंत में आभार व्यक्त करते हुए पंडित मदन मोहन व्यास के सुपुत्र मनोज व्यास ने कहा कि  मुरादाबाद  समूह द्वारा पिताश्री स्मृतिशेष श्री मदन मोहन व्यास  द्वारा रचित कृतियों भाव तेरे शब्द मेरे , हमारा घर तथा अप्रकाशित रचनाओं तथा दुर्लभ चित्र प्रस्तुत करके उनका पुनः स्मरण कराया गया साथ ही व्यास जी के साहित्य और संगीत के क्षेत्र में योगदान पर साहित्य जगत और उनके संपर्क में आए महान विभूतियों के द्वारा उनके साथ बिताए पल और उनके साहित्य पर चर्चा करके जो प्रकाशित होने से रह गया है वह प्रकाशित होकर सबके बीच में पहुंचे ऐसा कार्य करने की प्रेरणा मिली है। अति शीघ्र समस्त साहित्य आपके बीच मैं लाने का प्रयास करूंगा ।

कार्यक्रम में डॉ प्रीति हुंकार, प्रदीप गुप्ता (मुम्बई), अटल मुरादाबादी(नोएडा), कंचन खन्ना,  अतुल कुमार शर्मा, श्रुति शर्मा,  सीमा रानी,  ने भी हिस्सा लिया।