गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 अप्रैल 2021 को ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की रचनाएं -----

          (  एक )
वोट देने हेतु
आस्तीन से पसीना
पोंछता कतार में लगा
भारतीय नागरिक
अपने अधिकारों की लड़ाई
हर बार हारा है ।
वह कल भी
असहाय बेचारा था,
वह आज भी,
असहाय बेचारा है ।।

            ( दो )

तीन चौके पन्द्रह
का हिसाब बैठा कर ,
गुणा भाग कर।
कच्चा- पक्का
हिसाब आ गया।
मेरी गली का गुंडा
सत्ता पा गया ।।

           ( तीन )

जो मेरे पास है
वह तुम्हारे पास नहीं
फिर
हम एक क्यों नहीं हो जाते
जो तुम्हें चाहिए मैं दूंगा
जो मुझे चाहिए तुम दोगे
फिर बाद में
मैं करूँगा तुम्हारी भावनाओं
पर चोट ।
पहले मुझे चाहिए तुम्हारा
कीमती वोट ।।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
         मो ० 9411809222
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तेरी बीती उम्र अब जात रे ,
तू क्यों करता उत्पात रे,।।
दैवयोग से मिली देह यह
जो अनमोल रत्न है ।
मानेगा ईश्वर अनुशासन
गर्भ में दिया वचन है ।
धन का लोभी अहंकार वश ,
करता अब क्यों घात रे ।।1 ।।
ओ अज्ञानी न कर नादानी
समय बहुत है थोड़ा
संयम के चाबुक से अब तो
रोक ले मन का घोड़ा ।
रहा दौड़ता यदि निरंकुश
बिगड़े, बनी यह बात रे ।। 2 ।।
मिली भाग्यवश मानव योनि
विगत पुण्य था तेरा ।
कलुष प्रमादी दुश्चिंतन ने
आकर तुझको घेरा ।
इस उर्वरा मनो भूमि पर
उगने दे जलजात रे ।।3 ।।
तू क्यों करता उत्पात रे ....

✍️डॉ प्रेमवती उपाध्याय, मुरादाबाद
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बाबा ने जग में दिया भारत को सम्मान
संबिधान रच कर किया जन-जन का कल्याण।

आगे बढ़ने की रही केवल मन में चाह
दुनियाँ को दिखला दिया कठिन न कोई राह।

हर-पल चुभता ही रहा छुआ-छूत का डंक
धरती से कैसे मिटे यह वीभत्स कलंक।

गहन सोच अध्य्यन किया तोड़ा कलुषित तंत्र
शिक्षा संग संघर्ष का दिया अनूठा मंत्र।

बिना परिश्रम के नहीं बन सकती कुछ बात
सारी दुनियां चलेगी तभी तुम्हारे साथ।

पहले करना सीख लो नारी का सम्मान
वरना संभव ही नहीं मानव का उत्थान।

नहीं असंभव कुछ यहाँ करलो तनिक विचार।
जो कठिनाई से डरा निष्चित उसकी हार।

सिर्फ साल में एक दिन आते बाबा याद
इसके पहले कुछ नहीं और न इसके बाद।

भेद-भाव को त्यागकर धरें सभी का ध्यान
ढोंग तपस्या त्याग कर जपें बुद्ध का नाम।

✍️वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ, प्र,
मोबाइल फोन नम्बर 09719275453
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मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो

दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो

फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो

पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो

✍️डॉ पूनम बंसल, मुरादाबाद
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अफसरशाही मस्त है, आम आदमी त्रस्त।
लेकिन तारणहार हैं, बस चुनाव में व्यस्त।।

कोरोना का देखिए, अजब गजब ये खेल।
रैली मेलों से सदा, ये रखता है मेल।।
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बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ।
जाओ भी अब हठधर्मी मत दिखलाओ।।

कुछ दिन के मेहमान सरीखे आ जाते।
खाते पीते कुछ दिन और चले जाते।
लेकिन तुम तो तम्बू गाढ़े  बैठे हो।
पता नहीं तुम किस गुमान में ऐंठे हो।
सारे हैं हल्कान,  तरस कुछ तो खाओ।
बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ ।

डेंगू और चिकनगुनिया भी आते हैं।
किंतु शराफत वह भरपूर दिखाते हैं।
थोड़े दिन मेहमाननवाजी करके वह।
फिर चुपचाप विदाई लेकर जाते हैं।
शिष्टाचार उन्हीं से आप सीख आओ।
बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ

राजी से यदि नहीं गये, पछताओगे।
वैक्सीन से आप खदेड़े जाओगे।।
भारतवासी जिसके पीछे पड़ते हैं।
उसकी जड़ तक जाकर मट्ठा भरते हैं।
बुरे फँस गये भारत में अब पछताओ।
बहुत हो गया कोविड जी अब तो जाओ ।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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हम देश के हर फैसले पर                                  एतराज जताते हैं
और तो और
अपनी ही हार पर
जश्न मनाते हैं
चोला हमने भले ही
पहन रखा है रंग बिरंगा
पर मन में हमारे
हमेशा रहता है हरापन
भूल जाते हैं सारे एहसान
खत्म करते रहते हैं अपनापन                            राह में कभी सीधा चलना नहीं भाता है
हमेशा उल्टा चलना ही सुहाता है
खाकर यहां का अन्न
गीत औरों का गाना आता है                                            

नहीं लिखते हम                                                   
भविष्य की सुनहरी इबारत
इतिहास के काले पन्नों  को ही

 हम दोहराते हैं 

वैसे हमें देश से बहुत प्यार है      

 अपने को ही देशभक्त कहलाते हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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लोकतंत्र में लोग

सुना आपने!
लोग बोल रहे हैं
एक-एक कर
परतें खोल रहे हैं
अखबार सभी
और चैनल भी
देश में फिर से
कोरोना बढ़ रहा है
डर का एक नया
अध्याय गढ़ रहा है
अस्पताल मरीजों से भर रहे हैं
और आमलोग मर रहे हैं
कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है
हर कोई बस
अपने आप से जूझ रहा है
भयंकर तनाव हैं
लेकिन हम व्यस्त हैं
मस्त हैं
क्योंकि
कहीं विधानसभा के
तो कहीं पंचायत के
चुनाव हैं
बेशक
हर दिन हर पल
कम हो रही है
ज़िन्दगी और मौत के
बीच की दूरी
लेकिन आप ही बताओ
क्या और कुछ भी है
इस समय
चुनाव से ज़्यादा ज़रूरी
लोग जियें या मरें
हम क्या करें
हमारी नीयत में
कहाँ कोई खोट है
लेकिन यह भी तो सत्य है कि
लोकतंत्र में लोग
लोग नहीं
सिर्फ वोट हैं

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम',मुरादाबाद
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सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है
इसका पावन इतिहास बड़ा गर्वीला है

हर कंकड़ कंकड़ में शंकर ,
डमरू ध्वनि जिनकी प्रलयंकर!
गल सजती सर्पों की माला,
तन पर लिपटी है मृगछाला ।
बिष पीकर  जिनका कंठ हो गया नीला है
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है।।

अरुणोदय सर्वप्रथम होता !
पश्चिम दिश रवि निशदिन सोता।
उत्तर हिमपर्वत वर विशाल
भारत माता का सजा भाल।।
दक्षिण  सागर उत्ताल लहर नखरीला है
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है

कबिरा, रहीम के दोहों में।
कवि सूरदास आरोहों में।
तुलसी  मानस में रचा बसा,
मीरा के पद में प्रेम पगा !
दिनकर शोलों सम  प्रखर ओज भड़कीला है
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है।।

रक्तिम दरिया तूफानी है।
लक्ष्मी बाई मर्दानी  है।
सुखदेव, भगतसिंह,राजगुरु
आजाद खौलता यहां लहू।।
मंगलपांडे सा यौद्धा छैल छबीला है।
सारी दुनिया में देश मेरा रंगीला है।।

✍️ अशोक विद्रोही,412प्रकाशनगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन 8218825541
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सुनो!
ओ मेरे जन्मों के साथी
मैं कभी साध न सकी
षडज
ऋषभ
गांधार
मध्यम
पंचम
धैवत
निषाद
आदि सात सुरों को
अपने स्वर में,
नहीं कर पायी इनकी साधना।
लयभंग इस जीवन में,
लय से हीन ही रही मेरी वाणी।
मेरे इस अतुकान्त जीवन को
न मिल सकी कभी कोई तुक
#साहित्य_संगीत_कला_विहीन मुझे,
केवल तुम्हारे प्रेम की मर्यादाओं ने,
#पुच्छ_विषाण_हीन
होते हुए भी,
पशु होने से बचाये रखा
हां बचाये रखा है
मुझे पशु होने से.....।

✍️रचना शास्त्री, मुरादाबाद
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अरे चीं-चीं यहाँ आकर, पुनः हमको जगा देना।
निराशा दूर अन्तस से, सभी के फिर भगा देना।
चला है काटने को जो, भवन का मोकला सूना,
उसी में नीड़ अपना तुम, मनोहारी लगा देना।
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चली सुनामी पाप की, ऐसी आज प्रचण्ड।
कब गरजेगा राम जी, पुनः धनुष कोदण्ड।।
(भगवान श्रीराम का धनुष 'कोदण्ड' नाम से जाना जाता है।

रैन बसेरा जग भया, जीवन ढालती शाम।
नटखट पंछी प्राण के, चल कर ले विश्राम।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

पंछी दरबे में पड़ा, हुआ बहुत हैरान।
भीतर से ही सुन रहा, आज़ादी का गान।।

वहशी-चोर-बिचौलिये, गुण्डे-झोला छाप।
कुर्सी तेरी गोद में, हुए सभी निष्पाप।।

✍️राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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बहाना ढूँढ लिया तुमको रँग लगाने का,
मिला नसीब से मौक़ा क़रीब आने का

चले भी आओ कि होली भी पास आयी है,
खुला  है दर  सदा  मेरे  ग़रीबखाने का

ज़रा सी बात पे यूँ रूठना नहीं अच्छा
हसीन प्यार का मौसम है मुस्कुराने का,

भुला दो रंजिशे तक़रार में क्या रक्खा है
मिलाओ दिल, यही है वक़्त मान जाने का

दिखा है चाँद भी पूनम का बाद मुद्दत के
तेरा भी आज का वादा था छत पे आने का।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
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ग़म के बाज़ार में खड़ा शायर
बेचे खुशियों की हर अदा शायर

आईना वक्त का हुआ शायर
मीर ओ गालिब सा हर बड़ा शायर

अपने लफ़्ज़ों में घोलकर मरहम
ग़म के मारों को दे शिफा शायर

दर्दो- गम देखकर ज़माने के
अपने अश्कों को पी गया शायर

स्वाद इसने  भी चख लिया ग़म का
दिल यह अपना भी हो गया शायर

मंच पर चुटकुले सुनाता है
दौर ए हाजिर का सिरफिरा शायर

ग़म की मुश्किल रदीफ़ से "मासूम"
क़्वाफ़ी ए दिल लगा रहा शायर

✍️ मोनिका मासूम,मुरादाबाद
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कब तक घर में कैद रहेंगे ,काम जरूरी करने होंगे।
लड़ते लड़ते इस वायरस से  विजय शिखर छूने होंगे।
सच्चा मित्र वही है जो आरसी रास्ता सही दिखाए।
विपदा के आते ही जो उससे हमें बचाए ।
कठिन घड़ी में हमने अपने मित्र दो बनाए।
जंग है नन्हे से वायरस से इसने बहुत सताए।
इसके भय से हमको अपने प्राण नहीं  खोने होंगे।
लड़ते- लड़ते इस वायरस से विजय शिखर छूने होंगे।
आज कोरो ना का संकट सारी दुनिया में गहराया।
देखो छोटे से वायरस ने कैसा कोहराम मचाया।
भारत अक्सर अपने दम पर विश्व गुरु है कहलाया।
कठिन रास्तों पर चलकर ही परचम फहराया।
आत्मसुरक्षा की खातिर कुछ ठोस कदम रखने होंगे।
कब तक घर में कैद रहेंगे ,काम जरूरी करने होंगे।
  लड़ते -लड़ते इस वायरस से विजय शिखर छूने होंगे।
  मास्क ,ग्लब्स से पहले हमको मीत साथ दो रखने होंगे।
अपने -अपने मोबाइल में कैद हमें यह करने होंगे।
   आरोग्य सेतु और भैया आयुष कवच  मनोहर होंगे।
    जब हम घर से बाहर होंगे।
    सच्चे पहरेदार ये  होंगे।
    जैसे ही संक्रमित व्यक्ति आसपास मंडराएगा ।
    मित्र आरोग्य सेतू हमारा चौकन्ना हो जाएगा।
    साथ हो ऐसा मित्र हमारे तो क्यों हम घबराए ।
    विपदा के आते ही जो उससे हमें बचाए।
    आयुष भैया कवच बनेंगे और हमको सिखलाएंगे।
    कैसी होगी दिनचर्या आहार-विहार समझाएंगे।
    योगा -प्राणायाम ,आहार कैसा कब कब खाएंगे।  प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ा हम विश्व गुरु कहलाएंगे।।
  कोरोना की जंग में एक दिन निश्चित ही विजयी होंगे।       कब तक घर में कैद रहेंगे,काम जरूरी करने होंगे।
  आज अभी संकल्पित हों सब, 
  घर से बाहर रखेंगे तब पग।          
  अपने -अपने मोबाइल में डाउनलोड करना होगा।   आरोग्य और आयुष कवच साथ रोज रखना होगा।           रेखा देखना भारत एक दिन सिरमौर अपना होगा।   
   कब तक घर में कैद रहेंगे , ख्वाब पूर्ण करने होंगे ।
  
✍️ रेखा रानी , विजयनगर गजरौला
जनपद अमरोहा।
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बात इस दिल की बताने हम भला जाते कहाँ।
जो रखे पिन्हा गमों को हमसफ़र पाते कहाँ  ll1ll

दिल सुनें दिन रात जब तन्हा सदाएं प्यार की।
शोर रूखी महफ़िलों के यार तब भाते कहाँ ll2ll

अन्जुमन उज़डा हुआ था शाख हर  ग़मगीन थी।
गीत उस माहौल में हम प्रीत के गाते कहाँ   ll3ll

वक़्त कुछ देना मुनासिब भी नहीं समझा मुझे
फिर भला नज़दीक दिल के वह कभी आते कहाँ ll4ll

  बेवज़ह ही सोचकर यह मुस्कुराते हम रहे।
  ज़र्ब दिल के भीड में हम यार सहलाते कहाँ ll5ll
                       
✍️  प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
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जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

रिफ़अतें जो जहाँ में अता थी मुझे।
रेत सी हाथ से वो फिसलती रही।

क्या कहूँ दोस्तों दास्ताँ बस मिरी।
शायरी बनके दिल से निकलती रही।।

जो खिली रौशनी हर सुबह जाने क्यों।
शाम की आस में वो मचलती रही।।

क्या बचा अब है 'आनंद' इस दौर में।
लुट गया सब कलम फिर भी चलती रही।।

✍️अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (यू०पी०)
8979216691
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कोरोना फिर से लौट आया
सब के दिलों में फिर डर बैठाया।

स्कूल बंद करवा दिये
परिक्षा को टलवा दिया।

शादी समारोह कम होगें
भीड़ भाड़ से सभी बचेंगे।

मास्क पहनना जरूरी
वर्ना चालान कटने की मजबूरी।

साफ़ सफाई रखिये सब
घर बाहर आस पास।

सैनेटाजर का इस्तेमाल करना साथ
तभी मिलना किसी से हाथ।

मत दान भी करना जरूरी
पंक्तियों में रहे दो गज दूरी।

माता से करो सभी प्रार्थना
कोरोना का मिटा दो नाम निशा मां।।

✍️ चन्द्र कला भागीरथी धामपुर जिला बिजनौर
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आओ लौट चलें हम  निज
सभ्यता संस्कृति की  ओर ।

दोनों  हाथ  जोड़कर   ही
अभिवादन  सत्कार   करें,
छोड़  बहिर्मुखता  अपनी
अंतर्मुखता  से प्यार  करें,
हाथ  गले  न  मिलें  मिले
दिल  बंधे   प्रेम  की  डोर ।

आया है बस एक अकेला
जाना   भी   है ‌   अकेला,
बंद करें महफिल बाजारी
बंद   माल   और    मेला,
संयम  और  सहयोग   से
कट जायेगा संकट घनघोर ।

हो   आशा    का    संचार
नकारी   ऊर्जा   होवे  दूर,
नित  प्रति   यज्ञ   आहुति
घर में  समिधा और कपूर,
तुलसी और  गिलोय   का
सेवन जीवन स्वस्थ विभोर ।

क्रोध  दंड  संकेत  प्रकृति
का  रुप  है   ये  महामारी,
जीव   हिंसा  रस   विषय
बंद बनो  शुद्ध शाकाहारी,
क्षमा  मांगने  मां   प्रकृति
के आंचल का पकड़ो छोर ।

आओ लौट चलें हम निज ,
सभ्यता संस्कृति की ओर ।।

✍️शुचि शर्मा, शेरकोट
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आओ ! सिंहनाद करें
जन-गण-मन का भाव लिए
शुद्र-निर्बल साथ लिए,
मानवता का व्रत ह्रदय में
“वंदेमातरम्” कहकर
देशप्रेमियों का सत्कार करें,
आओ.....! सिंहनाद करें ।।२।।
खुलेद्वार “गिद्ध” न झाँके
विश्वासघात की रूह काँपे
स्वपन में न दर्पण ताकें,
शत्रु ह्रदय प्रति-साँस
“भारत माता” की जय-जय कार करें
आओ...! सिंहनाद करें ।।३।।   

✍️ प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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दोपहर में दिन, सुनहरा हो जाता है
बरसात में खेत, हरा भरा हो जाता है
पति कितना भी, बड़ा पहलवान हो
बीवी के सामने, अधमरा हो जाता है

✍️नजीब सुल्ताना
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
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