सोमवार, 14 नवंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति ने 14 नवम्बर 2022 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन सोमवार 14 नवंबर 2022 को लाइनपार स्थित विश्नोई धर्मशाला में किया गया। 

रामसिंह निशंक द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा...

समस्या अब कैसे हो हल। 

सोचकर बीते जाते पल। 

जहाॅं ठहरा डर लगता है, 

बिछी बारूद संभल कर चल। 

 मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी ने कहा ....

तू न मेरी बात कर, औ' न मेरी बात सुन। 

सोच अपने फायदे की, बस वही तू पाथ चुन।

 विशिष्ट अतिथि के रुप में ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

समय मिले तो खेलो खेल। 

खेल-खेल में कर लो मेल। 

बात पते की तुम्हें बताऊं, 

छोड़ दुश्मनी कर लो मेल। 

     वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय की इन पंक्तियों ने सभी के हृदय को स्पर्श किया- 

नीम बोकर तो निबोली से भरा ऑंगन रहा। 

फल मधुर जिस पर लगें, वह बेल तो बोई नहीं। 

एचपी शर्मा की इन पंक्तियों ने भी सभी को सोचने पर विवश किया - 

भूत के जनक

वर्तमान के अनुज

भाग्य की पीठ सहलाकर

अपने धैर्य का मूल्यांकन कर रहा हूॅं।

रामसिंह निशंक का कहना था - 

चकाचौंध ने इक दूजे का, अपनापन छीन लिया।

 मोबाइल ने बच्चों से उनका, बचपन छीन लिया। 

डॉ मनोज रस्तोगी ने वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों का चित्र उकेरा - 

उड़ रही गंध ताज़े खून की, 

बरसा रहा ज़हर मानसून भी। 

  योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था-  

रामचरितमानस जैसा हो, 

घर-ऑंगन का अर्थ। 

मात-पिता, पति-पत्नी,

भाई, गुरू-शिष्य संबंध। 

पनपें बनकर अपनेपन के, 

अभिनव ललित निबंध। 

अहम-वहम रिश्ते-नातों

 का करते सदा अनर्थ। 

 संचालन  करते हुए राजीव प्रखर कहा - 

मन की ऑंखें खोल कर, देख सके तो देख। 

कोई है जो रच रहा, कर्मों के अभिलेख।

 पंछी ने की प्रेम से, जब जगने की बात। 

बोले मेंढक कूप के, अभी बहुत है रात। 

इसके अतिरिक्त रामेश्वर वशिष्ठ, योगेंद्र पाल विश्नोई, रमेश गुप्ता, चिंतामणि शर्मा आदि ने भी रचनाएं प्रस्तुत की। अंत में उपस्थित रचनाकारों ने रंगमंच कलाकार, साहित्यकार एवं संगीतकार अमितोष शर्मा के  निधन पर दो मिनट का मौन रखते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। 












मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा की ओर से 13 नवंबर 2022 को कवि सम्मेलन, लोकार्पण एवं सम्मान समारोह का आयोजन

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा  की ओर से रविवार 13 नवंबर 2022 को  महादेवी वर्मा की स्मृति में कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया । यह आयोजन आनंद कॉवेंट स्कूल , ज्वाला नगर, रामपुर में संस्थापक जितेन्द्र कमल आनंद की अध्यक्षता में हुआ ।

  मुख्य अतिथि प्रो मीना श्रीवास्तव 'पुष्पांशी ' (ग्वालियर -मप्र), विशिष्ट अतिथि द्वय प्रमेश लता पाण्डेय (कासगंज) व डॉ  गीता मिश्रा 'गीत' (हल्द्वानी) , अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद, महासचिव राम किशोर वर्मा (रामपुर), संरक्षक पीयूष प्रकाश सक्सेना, रोहित राकेश द्वारा मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन और अनमोल रागिनी (रामपुर) द्वारा सरस्वती वंदना से आयोजन का शुभारंभ हुआ ।

   जितेन्द्र कमल आनंद ने अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। नजीबाबाद से पधारीं डॉ  मंजू जौहरी 'मधुर' ने महादेवी वर्मा की कृतियों- "नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत' आदि का उल्लेख किया तो रुद्रपुर (उत्तराखंड) से पधारी कवयित्री शारदा नरूला ने उनके गीतांश को सस्वर प्रस्तुत किया ।

   इस अवसर पर ग्वालियर से पधारी  प्रो मीना श्रीवास्तव पुष्पांशी का संग्रह "मीना की गज़लें" का लोकार्पण संस्था अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ,  प्रमेश लता पाण्डेय, डॉ गीता मिश्रा 'गीत' तथा राम किशोर वर्मा द्वारा किया गया । 

   इस अवसर पर प्रो मीना श्रीवास्तव पुष्पांशी, प्रमेश लता पाण्डेय, डॉ  गीता मिश्रा 'गीत', राम किशोर वर्मा, चंद्रभूषण तिवारी 'चंद्र' ( प्रयागराज), बरेली के पूनम शुक्ला, डॉ  निशा शर्मा, रोहित राकेश, डॉ  रीता सिंह (चंदोसी), डॉ  अरविंद धवल (बदायूं), अमरोहा से शशि त्यागी , इंदु रानी, मुरादाबाद से राजीव प्रखर, उदय प्रकाश 'उदय', डॉ  प्रीति हुंकार , सत्यपाल सिंह 'सजग' (लालकुआं), राम रतन यादव (खटीमा), सुश्री पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' (सितारगंज- उ०खं०), रामपुर से राजवीर राज, सुरेन्द्र अश्क, अनमोल रागिनी, रवि प्रकाश, राम सागर शर्मा, जितेन्द्र नंदा , अमित रामपुरी, रश्मि चौधरी, झांसी से सांध्य निगम  सहित लगभग ३५ काव्यकारो ने काव्यपाठ किया और इन सभी को शाल ओढ़ाकर , प्रतीक चिन्ह देकर व "महादेवी वर्मा स्मृति काव्य धारा " सम्मान से संस्था द्वारा सम्मानित किया गया ।

    रोहित राकेश (बरेली) और राम किशोर वर्मा ( रामपुर) ने संचालन किया।अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ने आभार व्यक्त किया ।

























::::::: प्रस्तुति:::::     

राम किशोर वर्मा

राष्ट्रीय महासचिव

अखिल भारतीय काव्यधारा,

 रामपुर (उ०प्र०) भारत ।


शनिवार, 12 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल...


पग-पग पर पीडा़यें  भोगी, 

सपने  चकनाचूर  हुए  हैं! 

कैसे  अपना  दर्द  छुपाएँ, 

क्यों अपनों से दूर हुए हैं? 


साथ-साथ आंगन में खेले, 

प्रातराश-भोजन भी पाया! 

तारे गिनते - गिनते सोये, 

कभी नहीं मजबूर हुए हैं!! 


खेल-खेल में गिरे अचानक, 

चोट लगी कितना मन रोया! 

हाथ पकड़ कर सहलाते थे, 

कितने दिन काफ़ूर हुए हैं!! 


बड़े  हुए  घर  गया  छूटता, 

शिक्षा-परहित रहे अकेले! 

लेकिन,घर को भूल न पाये, 

मिलन दिवस अति क्रूर हुए हैं!! 


समय बदलते देर न लगती, 

मात-पिता भी स्वर्ग सिधारें! 

अपनों का संकट हरने को, 

अनचाहे  ज्यों  घूर  हुए  हैं!! 


तन-मन कब नीलाम हो गया, 

वैभव - साहुकार  के  द्वारा! 

यौवन उसका दास बन गया, 

मित्र  कहें  मशहूर  हुए  हैं!! 


श्रम ने भाग्य बदल डाला है, 

बदला घर का मानचित्र भी! 

अपने  भूले  अहंकार  में, 

हम  खट्टे  अंगूर  हुए  हैं!! 


अपना कौन पराया जग में,

इसका बोध नहीं हो पाता ? 

महाकष्ट में साथ खड़े जो, 

वे  ही  सच्चे  शूर  हुए  हैं!! 

✍️ डॉ. महेश 'दिवाकर' 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की पंद्रह रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में


 















शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा.....टारगेट



 "कल जिले में कितने नए पौधे लगाए गए थे"

" दो हजार"

" पौधे लगाते हुए फोटो खींच लिए थे"

" जी हां"

"अब ऐसा करो, उन सबको उखाड़ लो और किसी नई जगह लगाकर फोटो खींच लो"

"लेकिन ऐसे तो बहुत से पौधे खराब हो जायेंगे"

" हो जाने दो। हमें प्रदेश का टारगेट पूरा करना हैं।"


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघु कथा ....आर या पार

 


सावित्री का चेहरा सूजा हुआ था। जगह-जगह लाल- नीले निशान पड़े हुए थे ,जो बता रहे थे कि कुछ देर पहले क्या हुआ होगा।

    मायके से सावित्री का भाई आया था और अपनी बहन के चेहरे पर यह निशान देखकर भौचक्का रह गया। बहुत गुस्सा आया। पूछा" यह क्या है ? कैसे हुआ ? किसने किया?"

    सावित्री ने कोई जवाब नहीं दिया। पानी का गिलास भाई की तरफ बढ़ाया ।

       कहा" पानी पियो "

भाई बोला "मेरी बात का जवाब दो !"

    सावित्री बोली "बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं । कल तुम्हारे जीजा जी जब खाने बैठे तो उन्हें खाने में नमक कुछ ज्यादा लगा । बस इसी बात पर मार- पिटाई शुरू कर दी ।"

     भाई भड़क गया "आजकल के जमाने में क्या कोई औरतों से ऐसे सलूक करता है?"

      बहन बोली "आजकल के जमाने में ही यह सब हो रहा है। मर्दों का कहना है  कि औरतें पिटाई की भाषा ही समझती हैं। ऐसे ही ठीक रहती हैं ।"

     "तुम विद्रोह क्यों नहीं करती ?"

             "क्या होगा इससे ?-"सावित्री का जवाब था।

    "तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं करती?"

          " परिवार टूट जाएगा ?"

"और अब क्या बिखरा हुआ नहीं है ?अब क्या कम टूटा हुआ है ? अपने चेहरे के निशान देखो ! क्या जिंदगी भर इन्हीं को लिए हुए रोती रहोगी ?"

     सावित्री ने कोई जवाब नहीं दिया। रसोई में चली गई ।भाई गुस्से में तमतमाता रहा। जीजा आए तो सीधा सवाल दाग दिया-" मेरी बहन को अगर हाथ भी लगाया तो ठीक नहीं होगा।"

      सुनते ही जीजा भड़क गए "ओह !अब बहन के भाई के पर निकलने लगे ! क्या कर लोगे मेरा ! जाओ बहन को उठाकर ले जाओ ।"

     "जीजा आपने सही नहीं समझा। मेरी बहन कहीं नहीं जाएंगी। वह इसी घर में रहेंगी, क्योंकि वह घर की मालकिन हैं।  हां ! आपको जरूर जेल जाना पड़ेगा ।सोच लीजिए ! आप तो समझदार हैं । पढ़े लिखे हैं। सरकारी नौकरी करते हैं।"

      " मुझे धमका रहे हो ।"

              "बिल्कुल धमका रहा हूँ। आपकी सरकारी नौकरी चली जाएगी ।"

        जीजा समझदार था ।थोड़ी ही देर में उसने हथियार डाल दिए। बोला "अपनी बहन को समझाओ । घर गृहस्थी में ध्यान दे। मैं जानबूझकर थोड़े ही मारता हूँ।"

            "चाहे जानबूझकर मारो ,चाहे बगैर जानबूझकर  मारो ,लेकिन अब आज से हाथ नहीं उठना चाहिए । वादा करते हो तो मैं जाऊँ, वरना यहीं रह कर आगे की कार्यवाही करूँ।"

       जीजा डर गया ।बोला "अब हाथ नहीं उठाऊँगा ।"

            रसोई के दरवाजे की आड़ में खड़ी सावित्री ने जब यह सुना, तो खुशी से उसकी आँखों में आँसू आ गए ।लेकिन थोड़ी सी धुकर-पुकर भी मन में बढ़ रही थी कि देखो आगे क्या होता है । फिर सोचने लगी, चलो ठीक ही हो रहा है। जो होगा,अच्छा ही रहेगा। या तो आर या फिर पार। इस रोज-रोज की मार- पिटाई वाली जिंदगी से तो बेहतर रहेगा ।

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा,

रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा--सभ्यता

   


चौराहे पर गाड़ी और मोटरसाइकिल में टक्कर होते -होते रह गई।तभी मोटरसाइकिल सवार ने गाड़ी चला रहे 75 वर्षीय वृद्ध से कहा

 देख कर नहीं चल सकता जब चलानी नहीं आती तो चलते क्यों हो ? वृद्ध ने विनम्रता से कहा ," बेटा गलती हो गई आइंदा ध्यान रखूंगा।" हाँ हाँ----- इतना ही कह पाया था कि उधर से मोटसाइकिल चालक के

पिता श्री ने उसके पास आकर गाड़ी रोक कर पूछा क्या हुआ बेटा ? ," कुछ नहीं पिता जी बस इसे बता रहा था कि गाड़ी देख कर चलाया कर ।" पिता रामसेवक ने गाड़ी में बैठे महाशय को देख गाड़ी से उतर कर उनके पैर छुये और लड़के के चपत लगाते हुए कहा," मालूम है यह कौन हैं?"ये गाड़ी ये मोटसाइकिल सब इनकी कृपा से है ,माफ़ी मांग इनसे।

    कोई बात नहीं राम सेवक," जाने दो बच्चा है कहा सेठ जी ने " और यह कह कर अपनी गाड़ी बढ़ा दी," ईश्वर का दिया तुम पर सब कुछ है  राम सेवक बस थोड़ी सी सभ्यता की कमी है-- सिखाना जरुर -----"।।

✍️ अशोक विश्नोई


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉक्टर प्रीति हुंकार की लघु कथा ..... आखिर वह क्या करे....



"ये बच्चे तुम्हारे भी तो हैं अमन,मैं नौकरी न कर रही होती तो भी तो तुम इन बच्चों की जिम्मेदारी उठाते कि नहीं ।"बच्चों की पढ़ाई ,मकान लोन दवाई गोली ,अतिथि सत्कार घर की छोटी से छोटी जरूरत तुम मेरे जिम्मे करके स्वयं चिंता मुक्त हो ,कभी तो सोचो कि मैं अकेले कैसे मैनेज करती हूं कहते कहते अवनि के नेत्रों से अश्रु धारा वह निकली......।"अगर मुझे जिम्मेदारी उठानी होती तो तेरी जैसी काली कल्लो से शादी क्यों कर लेता । खैर कर ,की भगवान ने तुझे नौकरी दी है वरना तेरी जैसी बदसूरत औरत से रिश्ता करने की क्या पड़ी थी मुझे । हर लड़के ने नापसंद किया था तुझे बस मैं ही अभागा था जो तू मेरे ......अमन ने  अवनि की आवाज़ दबाते हुए गुर्राते हुए व्यंग्य किया । 

जीवन के बीस वर्षों में जब भी अवनि ने अपने नौकरीपेशा पति अमन को उसकी जिम्मेदारी बतानी चाही ,कभी वह मोबाइल में शेयर देखने लगता, कभी उससे अलग हो जाने की कहता कभी चरित्र पर ऊंगली उठाता और कभी बदसूरती की दोहाई देता ,पर अपने समस्त कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करके भी अवनि स्वयं से प्रश्न करती  रह जाती कि आखिर वह क्या करे ..........? पर उत्तर शायद ही उसे मिल पाता।


✍️ डॉ प्रीति हुंकार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा.....ईमानदार


 "आज पाँच तारीख हो गई शर्मा जी । अभी तक आपके स्टेटमेंट नहीं आये? तीन तक आ जाने चाहिए थे!" -- बड़े बाबू बाबू जी पर बिगड़ रहे थे --"हमें सात को हाई कोर्ट भेजने हैं। हम कब तैयार करेंगे ? आपसे एक अपनी कोर्ट के नक्शे नहीं बन पा रहे?"

   शर्मा जी बोले -- "मैं तीन दिन से छुट्टी पर था । कल ही ऑफिस आया हूँ । मेरे पीछे काम बहुत फैल गया था । उसे समेटा है । रात को घर पर स्टेटमेंट की तैयारी भी कर ली है। कल सुबह ही स्टेटमेंट आपकी टेबिल पर होंगे ।"

   "काम का तो बहाना है । आपको इधर-उधर जुगाड़ भिड़ाने से फुर्सत मिले न!" -- कहते हुए बड़े बाबू कुर्सी से उठे --"मेरी नमाज़ का टाइम हो गया है। मैं मस्जिद में जा रहा हूँ । आज शाम तक हर हाल में स्टेटमेंट मेरे पास आ जाने चाहिए।"

   शर्मा जी ने बड़े बाबू को याद दिलाया --"आप भी बाबू रह चुके हो । अभी तो आपने इधर-उधर झांकना बंद कर दिया है। नौ सौ चूहे खाये बिल्ली हज़ को चली । आज आप ईमानदारी का ढोंग रच रहे हैं तो आपकी नज़र में सब बेईमान हो गये ।"

   बड़े बाबू सब सुनते हुए नमाज पढ़ने के लिए कमरे से तेज कदमों से  बाहर  निकल गये ।

   ✍️ राम किशोर वर्मा 

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत


मंगलवार, 8 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविता ....चंद्रग्रहण


शिक्षक जी बच्चों से पूछे,

फिर से एक सवाल। 

चंद्रग्रहण कैसे-क्यों पड़ता, 

बतलाओ तत्काल। 


गप्पू जी ने हिम्मत करके, 

सर जी को बतलाया ।

चाँद चमकता है,सूरज से,

तुमने हमें बताया ।


सर जी बोले सही पकड़े हो,

पर आगे बतलाओ ।

चंद्रग्रहण की सारी घटना,

जल्दी से समझाओ।

 

सूर्य-चंद्रमा में भी तो सर!,

झगड़ा होता होगा। 

सूरज न देता प्रकाश, तब,

चंदा रोता होगा। 


उस दिन सर जी हमें रात में,

चाँद न जब दिख पाता।

समझो सर जी उसी रात में,

चंद्रग्रहण पड़ जाता। 


सारी कक्षा ही-ही करके,

गप्पू पर थी हँसती। 

शिक्षक जी ने डाँटा सबको,

करो न इतनी मस्ती। 


कुछ तो कोशिश करता गप्पू ,

कुछ तो हमें बताता।

सूर्यप्रकाश से चाँद चमकता,

गप्पू सही फरमाता। 


सुनो ध्यान से पूरी कक्षा, 

देखो मैं समझाऊं। 

चंद्रग्रहण की पूरी घटना, 

मे तुमको बतलाऊं।


जब पृथ्वी सूरज-चंदा के,

ठीक मध्य में आती। 

तब सारी किरणें सूरज की, 

भू तक पहुंच न पाती।


अरु पृथ्वी की छाया बच्चो!

चंदा पर पड़ जाती। 

यह खगोलिय घटना गप्पू !,

चन्द्रग्रहण कहलाती।

 

पूर्णिमा है वो तिथि बच्चो!,

जब ऐसा होता है। 

न सूरज लड़ता चंदा से, 

न चंदा रोता है।


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग' 

शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज,

बहजोई-244410 (संभल) 

उत्तर प्रदेश, भारत

मो. 9548812618 

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

सोमवार, 7 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी)के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी के चार गीत .....


(1)

मेरे सपने, तेरे सपने  

घर पर ही कुर्बान हुए  

संतानों ने चढ ली सीढी, 

सपने तब संधान हुए 


सोचा क्या, पाया फिर हमने 

इतनी फुरसत मिली कहां 

अंगारों पर चले मुसाफिर 

क्या अपने-अरमान हुए


बच्चों ने भी गुल्लक फोड़ी 

मां ने गहने बेच दिए 

कर्जा कर्जा लदे पिताजी

तब जाकर भगवान हुए।


कुछ बनने की खातिर यूं तो

करते हैं सब, जतन यहां 

रखी दिवाली मन के अंदर

बल-बलकर बलिदान हुए।।  

(2)

टूटी सड़कें, पसरे गड्ढे, 

अपना सफर तो जारी है

आसमान में छेद किया है,

 दिल अपना त्योहारी है।


सुबह सवेरे निकले घर से

क्या पूरब कहाँ पश्चिम है

दगा दे रहे सूरज को सब

दिल अपना सरकारी है। 


आओ आकर देख लो तुम भी

कदमों से नापी दुनिया 

उठते गिरते बढ़ गये आगे

छालों से भी यारी है।। 


अभी अभी तो यहीं कहीं पर

फ़ाइल देखी किस्मत की

फेंका पैसा, खुल गई यारो

क्या अपनी लाचारी है।। 


घर से दफ्तर,दफ्तर से घर

हर दिन का रूटीन यही 

मुँह चुराता घर का चूल्हा

महँगी सब तरकारी है।।

(3)

प्रेम की संकल्पना

प्रेम की वर्जनाएं

है मेरे पास ही

तुम्हारी कल्पनाएं


एक दिया हाथ पर

रोशनी मुझमें कैद

प्रकाश का वह घेरा

और तुम्हारी अर्चनाएं


दीप्त प्रदीप्त सी तुम

समक्ष जो मेरे खड़ीं

उच्छवास था गहरा मगर

गूंजती मंगल कामनाएं


दर पर प्रतीक्षित चांद सा

मैं नभ दृष्टिपात करता

लाने उसको आँगन यहां

करता नित अभ्यर्थनाएं..


है परस्पर प्रीत का पर्व

आलिंगन में विश्वास बेला

तैरते नैनों ने देखी फिर

सदा यूँ ही  ज्योत्स्नाएं..

(4)

जब जब ढलके शाम, गूंजता मन का क्रंदन

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।


आई पीर कहने लगी, सागर बूंदों का 

डरना क्या तूफानों से, तन तो नींदों का  

बन अगस्त्य हैं पी जाते, लहरें सागर की 

बादल बनते हैं हमसे,  आशा गागर की 

ठहरो-ठहरो चली वेग है, खिलता उपवन।।  

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।


हर मौसम की नई फसल, इन खलिहानों की 

जब जब फूटती बालियां, कह बलिदानों की 

रह रहकर फिर आ जाती, कथा सावन की

आसमां पर टिकी निगाहें, व्यथा आंगन की

नागफनी सम ख्वाब हमारे,  तन-मन चंदन।

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।


आओ करते गुणा-भाग, अपनी बदरी का 

छाता ओढे खड़े हुए जन, अपनी नगरी का

बीत गई लो उम्र अपनी, किस्सा पानी सा

नापतोल कर लिखा हमने, हिस्सा रानी का

ज्यूं कर रही कोई अप्सरा, छम-छम नर्तन।।

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।

✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ