मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन सोमवार 14 नवंबर 2022 को लाइनपार स्थित विश्नोई धर्मशाला में किया गया।
रामसिंह निशंक द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा...
समस्या अब कैसे हो हल।
सोचकर बीते जाते पल।
जहाॅं ठहरा डर लगता है,
बिछी बारूद संभल कर चल।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी ने कहा ....
तू न मेरी बात कर, औ' न मेरी बात सुन।
सोच अपने फायदे की, बस वही तू पाथ चुन।
विशिष्ट अतिथि के रुप में ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -
समय मिले तो खेलो खेल।
खेल-खेल में कर लो मेल।
बात पते की तुम्हें बताऊं,
छोड़ दुश्मनी कर लो मेल।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय की इन पंक्तियों ने सभी के हृदय को स्पर्श किया-
नीम बोकर तो निबोली से भरा ऑंगन रहा।
फल मधुर जिस पर लगें, वह बेल तो बोई नहीं।
एचपी शर्मा की इन पंक्तियों ने भी सभी को सोचने पर विवश किया -
भूत के जनक
वर्तमान के अनुज
भाग्य की पीठ सहलाकर
अपने धैर्य का मूल्यांकन कर रहा हूॅं।
रामसिंह निशंक का कहना था -
चकाचौंध ने इक दूजे का, अपनापन छीन लिया।
मोबाइल ने बच्चों से उनका, बचपन छीन लिया।
डॉ मनोज रस्तोगी ने वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों का चित्र उकेरा -
उड़ रही गंध ताज़े खून की,
बरसा रहा ज़हर मानसून भी।
योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था-
रामचरितमानस जैसा हो,
घर-ऑंगन का अर्थ।
मात-पिता, पति-पत्नी,
भाई, गुरू-शिष्य संबंध।
पनपें बनकर अपनेपन के,
अभिनव ललित निबंध।
अहम-वहम रिश्ते-नातों
का करते सदा अनर्थ।
संचालन करते हुए राजीव प्रखर कहा -
मन की ऑंखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो रच रहा, कर्मों के अभिलेख।
पंछी ने की प्रेम से, जब जगने की बात।
बोले मेंढक कूप के, अभी बहुत है रात।
इसके अतिरिक्त रामेश्वर वशिष्ठ, योगेंद्र पाल विश्नोई, रमेश गुप्ता, चिंतामणि शर्मा आदि ने भी रचनाएं प्रस्तुत की। अंत में उपस्थित रचनाकारों ने रंगमंच कलाकार, साहित्यकार एवं संगीतकार अमितोष शर्मा के निधन पर दो मिनट का मौन रखते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें