"ये बच्चे तुम्हारे भी तो हैं अमन,मैं नौकरी न कर रही होती तो भी तो तुम इन बच्चों की जिम्मेदारी उठाते कि नहीं ।"बच्चों की पढ़ाई ,मकान लोन दवाई गोली ,अतिथि सत्कार घर की छोटी से छोटी जरूरत तुम मेरे जिम्मे करके स्वयं चिंता मुक्त हो ,कभी तो सोचो कि मैं अकेले कैसे मैनेज करती हूं कहते कहते अवनि के नेत्रों से अश्रु धारा वह निकली......।"अगर मुझे जिम्मेदारी उठानी होती तो तेरी जैसी काली कल्लो से शादी क्यों कर लेता । खैर कर ,की भगवान ने तुझे नौकरी दी है वरना तेरी जैसी बदसूरत औरत से रिश्ता करने की क्या पड़ी थी मुझे । हर लड़के ने नापसंद किया था तुझे बस मैं ही अभागा था जो तू मेरे ......अमन ने अवनि की आवाज़ दबाते हुए गुर्राते हुए व्यंग्य किया ।
जीवन के बीस वर्षों में जब भी अवनि ने अपने नौकरीपेशा पति अमन को उसकी जिम्मेदारी बतानी चाही ,कभी वह मोबाइल में शेयर देखने लगता, कभी उससे अलग हो जाने की कहता कभी चरित्र पर ऊंगली उठाता और कभी बदसूरती की दोहाई देता ,पर अपने समस्त कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करके भी अवनि स्वयं से प्रश्न करती रह जाती कि आखिर वह क्या करे ..........? पर उत्तर शायद ही उसे मिल पाता।
✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
इस कहानी के पात्र में यही तकलीफ कई जगह पतियों को भी है
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छी और सच्ची कहानी है
एक कहानी परेशान पतियों पर भी लिखे
पत्नी दुखी होकर रो लेती है
पति कहाँ जाए?