गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार शिव कुमार चंदन की काव्य कृति शारदे-स्तवन की रवि प्रकाश द्वारा की गई समीक्षा .... सरल हृदय से लिखी गई सरस्वती-वंदनाऍं

सहस्त्रों वर्षों से सरस्वती-वंदना साहित्य के विद्यार्थियों के लिए आस्था का विषय रहा है । भारतीय सनातन परंपरा में देवी सरस्वती को ज्ञान का भंडार माना गया है । वह विद्या की देवी हैं । सब प्रकार की कला, संगीत और लेखन की आधारशिला हैं।  उनके हाथों में सुशोभित वीणा जहॉं एक ओर सृष्टि में संगीत की विद्यमानता के महत्व को उन के माध्यम से दर्शाती है, वहीं एक हाथ में पुस्तक मानो इस बात का उद्घोष कर रही है कि संपूर्ण विश्व को शिक्षित बनाना ही दैवी शक्तियों का उद्देश्य है । केवल इतना ही नहीं, एक हाथ में पूजन के लिए प्रयुक्त होने वाली माला भी है जो व्यक्ति को देवत्व की ओर अग्रसर करने के लिए एक प्रेरणादायक प्रस्थान बिंदु कहा जा सकता है । 

       हजारों वर्षों से सरस्वती पूजा के इसी क्रम में रामपुर निवासी कवि शिवकुमार चंदन ने एक-एक करके 92 सरस्वती-वंदना लिख डालीं और उनका संग्रह 2022 ईस्वी को शारदा-स्तवन नाम से जो प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में आया तो यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है । सामान्यतः कवियों ने एक-दो सरस्वती वंदना लिखी होती हैं, लेकिन 92 सरस्वती वंदनाऍं लिख देना इस बात का प्रमाण है कि कवि के हृदय में मॉं सरस्वती की वंदना का भाव न केवल प्रबल हो चुका है, अपितु जीवन में भक्ति का प्रादुर्भाव शीर्ष पर पहुॅंचने के लिए आकुल हो उठा है । इन वंदनाओं में एक अबोध और निश्छल बालक का हृदय प्रतिबिंबित हो रहा है । कवि ने अपने हृदय की पुकार पर यह वंदनाऍं लिखी हैं और एक भक्त की भॉंति इन्हें मॉं के श्री चरणों में समर्पित कर दिया है।

   प्रायः यह वंदनाऍं गीत-शैली में लिखी गई हैं । कुछ वंदना घनाक्षरी छंद में भी हैं, जो कम आकर्षक नहीं है । एक घनाक्षरी वंदना इस प्रकार है :-

शारदे मॉं चरणों में चंदन प्रणाम करे 

अंतस में ज्ञान की मॉं ज्योति को जगाइए

रचना विधान काव्य शिल्प छंद जानूॅं नहीं 

चंदन को छंद के विधान को सिखाइए

विवश अबोध मातु आयके उबारो आज 

जगत की सभी नीति रीति को निभाइए 

प्रकृति की प्रीति रीत पावस बसंत शीत

चंदन के गीत छंद स्वर में गुॅंजाइए (पृष्ठ 127)

एक गीत में कवि जन्म-जन्मों तक भटकने के बाद मॉं की शरण में आता है और जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य "ध्यान" की उपलब्धता को प्राप्त हो जाता है । गीत के प्रारंभिक अंश इस प्रकार हैं :-

जन्म-जन्मों का चंदन पथिक हो गया

मोह अज्ञान तम में कहॉं खो गया

थाम ले बॉंह को टेर सुन आज मॉं 

कर कृपा शारदे,पूर्ण कर काज मॉं

छोड़कर पंथ चंदन शरण आ गया 

मॉं तुम्हारा सहज ध्यान गहरा गया (पृष्ठ 25) 

     जीवन में वैराग्य भाव की प्रधानता अनेक गीतों में प्रस्फुटित होती हुई दिखाई पड़ रही है । यह सहज ही उचित है कि कवि अनेक जन्मों की अपनी दुर्भाग्य भरी कहानी को अब मंजिल की ओर ले जाना चाहता है । ऐसे में वह मॉं सरस्वती से मार्गदर्शन भी चाहता है । एक गीत कुछ ऐसा ही भाव लिए हुए है । देखिए :-

जब इस जग में आए हैं मॉं

निश्चित इक दिन जाना है

अनगिन जन्म लिए हैं हमने

अपना कहॉं ठिकाना है 

यह सॉंसें अनमोल मिली हैं 

ज्यों निर्झर का झरना है 

करूॅं नित्य ही सुमिरन हे मॉं 

मुझे बता क्या करना है ?(पृष्ठ 104) 

        वंदना में मुख्य बात लोक-जीवन में प्रेम की उपलब्धता हो जाना मानी गई है । सरस्वती-वंदना में कवि ने इस बात को ही शब्दों में आकार देने में सफलता प्राप्त की है । एक वंदना गीत में कवि ने लिखा है :-

ज्ञान की ज्योति दे दो हमें शारदे 

नेह मनुहार से मॉं हमें तार दे

अर्चना में हमारी यही आस हो 

मन में भक्ति जगे श्रद्धा विश्वास हो

भाव के सिंधु में प्रीति पतवार दे 

ज्ञान की ज्योति दे दो हमें शारदे (पृष्ठ 34)

         अति सुंदर शुद्ध हिंदी के शब्दों से अलंकृत यह सरस्वती-वंदनाऍं सदैव एक नतमस्तक भक्त के मनोभावों को अभिव्यक्त करती रहेंगी । सामान्य पाठक इनमें अपने हृदयोद्गारों को प्रकट होता हुआ देखेंगे तथा भीतर से परिष्कार की दिशा में प्रवृत्त हो सकेंगे।

     पुस्तक की भूमिका में डॉक्टर शिवशंकर यजुर्वेदी (बरेली), हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष (बरेली) तथा डॉक्टर अरुण कुमार (रामपुर) की भूमिकाऍं वंदना-संग्रह की गुणवत्ता को प्रमाणित कर रही हैं । डॉ शिव शंकर यजुर्वेदी ने ठीक ही लिखा है कि इस वंदना-संग्रह का जनमानस में स्वागत होगा तथा यह पूजा-घरों की शोभा बढ़ाएगी, मेरा विश्वास है । ऐसा ही इस समीक्षक का भी विश्वास है। कृतिकार को ढेरों बधाई।





कृति : शारदे-स्तवन ( मां सरस्वती वंदना-संग्रह)

कवि : शिव कुमार चंदन, सीआरपीएफ बाउंड्री वॉल, निकट पानी की बड़ी टंकी, ज्वालानगर, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 6397 33 8850 

प्रकाशक : काव्य संध्या प्रकाशन, बरेली 

मूल्य : ₹200 

प्रथम संस्करण : 2022

समीक्षक : रवि प्रकाश,

बाजार सर्राफा

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉक्टर पुनीत कुमार का व्यंग्य....विकास मिल गया है


काफी खोजबीन करने के बाद विकास का पता मिला। ये खोजबीन हमारी अपनी थी। इसमें गूगल बाबा का कोई रोल नहीं था। गूगल ने विकास के एक लाख से अधिक परिणाम दिखाकर, हमको भ्रमित ही कर दिया था।अपनी सफलता पर हम फूले नहीं समा रहे थे। हमारा सीना तीस इंच से बत्तीस इंच हो गया था और हमको तसल्ली दे रहा था कि बहुत जल्द ये छप्पन इंच के जादुई स्तर को छू लेगा। हमारी स्थिति उस पॉकेटमार की तरह थी,जिसे प्लास्टिक मनी के युग में, नोटों से भरी पॉकेट मिल गई हो।हमने बिना समय गवांए,अपना कैमरा उठाया और विकास से मिलने चल दिए लेकिन हमको निराशा हाथ लगी। घर के बाहर ताला लटका था। 

       पड़ोसियों ने बताया - विकास काफी समय से बीमार था। डॉक्टर की सलाह पर, आजकल स्विट्जरलैंड में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहा है। "हमारे पास लौट के बुद्धू घर को आए के अलावा कोई ऑप्शन नही था।हमने पड़ोसियों से कहा,"जब विकास वापस आ जाए,सूचित कर देना। उससे मिलने की तीव्र इच्छा है।अभी तक उसका, बस नाम सुना है, देखा नहीं है।हम मरने से पहले, ये इच्छा पूरी करना चाहते हैं।"

      पांच महीने बाद, एक पड़ोसी ने हमें फोन पर बताया ," विकास आ गया है लेकिन अब इस जगह को छोड़, नेताओं की बस्ती में रहने लगा है। "हम फौरन उससे मिलने जा पहुंचे। एक बूढ़े व्यक्ति,जिसको चलने में परेशानी हो रही थी, ने दरवाजा खोला। पता चला वही विकास है। हमने उसको अपनी छड़ी पकड़ाई। उसने हमें घूर कर देखा,"पहले मेरे पास भी ऐसी ही एक ईमानदारी की छड़ी थी‌ लेकिन वह बहुत कमजोर निकली। मैं कई बार चलते चलते गिरा। कहीं से बेईमानी की छड़ी मिल जाए तो लाना, सुना है वो बहुत मजबूत होती है।"

       हमने कहा,"पूरे देश को तुम्हारी जरूरत है,और तुम यहां छुपे बैठे हो।" विकास हंसा," मैं भी सबसे मिलना चाहता हूं ।मैने कुछ समय पहले पदयात्रा शुरू की थी लेकिन चलने की आदत ना होने के कारण, थक जाता था।एक दिन में केवल आठ दस घरों तक पहुंच पाता था। मैं इतने में भी खुश था। धीरे धीरे ही सही,एक दिन हर घर में मेरी पहुंच होगी लेकिन मेरी किस्मत खराब थी, जो नेताओं की नजर मुझ पर पड़ गई।उन्होंने सोचा, सबके घर अगर आसानी से विकास पहुंच गया, तो हमें कौन पूछेगा। हम किसके नाम पर वोट मांगेंगे। उन्होंने मुझे पकड़कर बंधक बना लिया। बस तभी से मैं इस बस्ती में,सख्त पहरे के बीच रह रहा हूं।क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो।"

      हमारे पास कोई जवाब नहीं था।हमें लगा, अब तो सारी जनता मिलकर ही विकास को, नेताओं के चंगुल से छुड़ा सकती है लेकिन पता नहीं,वो दिन कब आएगा।


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ....महंगाई


महंगाई के दौर में डीजल ,पैट्रोल, खाद्य सामग्री सभी कुछ गरीब जनता,अल्प वेतन भोगियों से दूर होता जा रहा है जिसके चलते कई दिनों से रामलीला मैदान में बहुत बड़ा धरना प्रदर्शन चल रहा था!        

          मुख्यमंत्री जी ने स्वयं  धरना स्थल पर उपस्थित होकर देश की अर्थ व्यवस्था पिछली  सरकार द्वारा खराब करने का हवाला देते हुए कार्यवाही करने में असमर्थता जताई परन्तु  भविष्य में इस पर कार्यवाही करने का पूर्ण आश्वासन देते हुए किसी प्रकार धरना समाप्त करवाया! 

    विधानसभा में कार्य के दौरान टेबल पर विधायकों का 20,000 रुपए वेतन बढा़ने से सम्बन्धित फाइल जैसे ही टेबल पर आयी, मुख्यमंत्री महोदय ने सारी फाइल हटाते हुए सबसे पहले उस पर यह कहते हुए साइन किए......कि वास्तव में महंगाई बहुत बढ़ गई है    इसलिए    यह बहुत जरूरी है!........ 

✍️ अशोक विद्रोही विश्नोई 

412 प्रकाश नगर

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 188 2 5 541

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा .....प्रेम


"क्या आप अब मुझे बिल्कुल प्रेम नहीं करते बाबू? कितने दिन से आपने मुझे एक भी गिफ्ट नहीं दिया है।" लड़की ने अदा से इठलाते हुए लड़के की आँखों में देखते हुए पूछा।

 "प्रेम!!! मुझे लगता है मैं इतना महंगा प्रेम अफोर्ड करने की  हैसियत ही नहीं रखता बेबी। अगर हमेशा महंगे गिफ्ट देना ही प्रेम है तो सच में मैं तुमसे प्रेम नहीं करता क्योंकि मैं व्यापारी नहीं हूँ।" लड़के ने लड़की को खुद से अलग करते हुए कहा और सिर उठाकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़िया ज़मीर के ग़ज़ल संग्रह....‘ये सब फूल तुम्हारे नाम' की अंकित गुप्ता "अंक" द्वारा की गई समीक्षा.. महकती है भारतीयता की भीनी-भीनी ख़ुशबू

ग़ज़ल का अपना एक सुदीर्घ इतिहास रहा है । अमीर ख़ुसरो,  कबीर, वली दक्किनी, मीर तक़ी 'मीर', मिर्ज़ा मज़हर, सौदा, मीर दर्द, ज़ौक़, मोमिन, ग़ालिब, दाग़, इक़बाल, जिगर मुरादाबादी जैसे सुख़नवरों से होती हुई यह फ़िराक़ गोरखपुरी, फ़ैज़, अहमद फ़राज़, दुष्यंत कुमार के हाथों से सजी और सँवरी । ग़ज़ल को पारंपरिक तौर पर इश्क़ो- मोहब्बत की चाशनी में पगी सिन्फ़ समझा जाता था और एक हद तक यह धारणा गलत भी नहीं थी । धीरे-धीरे ग़ज़ल बादशाहों के दरबार से नज़र बचाकर समाज की ओर जा पहुँची । तल्ख़ हक़ीक़तों की खुरदुरी ज़मीन से इसका पाला पड़ा, तो ज़िंदगी की कशमकश के नुकीले काँटों ने भी इसके कोमल हाथों को लहूलुहान किया । इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि इसने अपने पैकर में रहते हुए भी अपनी आत्मा को परिमार्जित और परिष्कृत किया तथा यह शोषित-पीड़ित मन की आवाज़ बनने लगी ।

मोहम्मद अल्वी का कहना था—

"क्यूँ सर खफा रहे हो मज़ामीं की खोज में

 कर लो जदीद शायरी लफ़्ज़ों को जोड़ कर"

    ज़िया ज़मीर जदीद शायरी की इस मशाल को आगे बढ़ाने वाले शोअ'रा में से एक है़ं । उनका ग़ज़ल-संग्रह 'ये सब फूल तुम्हारे नाम'  इस कथन पर मुहर लगाने के लिए काफ़ी है । संग्रह में 92 ग़ज़लें, 9 नज़्में, 16 दोहे और 6 माहिये संकलित हैं । ज़िया साहब को शायरी का फ़न विरासत में मिला । वालिदे-मुहतरम जनाब ज़मीर दरवेश के मार्गदर्शन में उनकी शायरी क्लासिकी और आधुनिकता दोनों का कॉकटेल बन गई । ज़िया ज़मीर अपनी हर ग़ज़ल में ग़ज़ल के स्वाभाविक और 'क्विंटनसेंशियल' हिस्से मोहब्बत और इश्क़ को नहीं भूलते । इस पतवार का सहारा लेकर वे आधुनिक जीवन की हक़ीक़त और सच्चाइयों और बुराइयों के पहलुओं को छूते हैं और एक नए दृष्टिकोण की स्थापना करते हैं । 

 "उस मोड़ पे रिश्ता है हमारा कि अगर हम

  बैठेंगे    कभी    साथ    तो  तन्हाई बनेगी"

उपरोक्त शे'र के ज़रिए वे आज की एकांत और बेहिस ज़िंदगी की तस्वीर खींचते हैं, तो वहीं

 " जो एक तुझको जां से प्यारा था 

 अब भी आता है तेरे ध्यान में क्या"

 शे'र में तेज़ी से बदलते रिश्तों के प्रतिमान की पड़ताल कराते हैं कि कैसे इस सो कॉल्ड 'आधुनिक' समाज में रिश्ते और संबंध पानी पर उठे बुलबुले जैसे क्षणभंगुर हैं ।

बाहुबलियों के हाथों दीन-हीनों पर अत्याचार कोई नई बात नहीं रही है;  नई बात तो उनका हृदय-परिवर्तन होना है । ज़िया साहब का एक शे'र देखें—

 " लहर ख़ुद पर है पशेमान के उसकी ज़द में

  नन्हे हाथों से बना रेत का घर आ गया है "

बालपन किसी घटना को पहले से सोचकर क्रियान्वित नहीं करता । वह तो गाहे-बगाहे वे कार्य कर डालता है जिसे बड़े चाह कर भी नहीं कर पाते । ज़िया ज़मीर कुछ यूँ फ़रमाते हैं— 

"किसी बच्चे से पिंजरा खुल गया है

 परिंदों   की   रिहाई   हो  रही  है"

फ़िराक़ गोरखपुरी के अनुसार, "ग़ज़ल वह बाँसुरी है; जिसे ज़िंदगी की हलचल में हमने कहीं खो दिया था और जिसे ग़ज़ल का शायर फिर कहीं से ढूँढ लाता है और जिसकी लय सुनकर भगवान की आँखों में भी इंसान के लिए मोहब्बत के आँसू आ जाते हैं ।" प्रेम की प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं हो सकती । बाइबिल में अन्यत्र वर्णित है— "यदि मैं मनुष्य और स्वर्ग दूतों की बोलियाँ बोलूँ और प्रेम न रखूँ; तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल और झनझनाती हुई झांझ हूँ ।"  ज़िया ज़मीर की शायरी इसी प्रेम का ख़ाक़ा खींचती है और वे कहते हैं—

 "देख कर तुमको खिलने लगते हैं

  तुम गुलों से भी बोलती हो क्या "

.............

"इश्क़ में सोच समझ कर नहीं चलते साईं

जिस तरफ़ उसने बुलाया था, उधर जाना था"

हालांकि उन्होंने मोहब्बत में हदें क़तई पार नहीं कीं और स्वीकार किया—

"हमने जुनूने- इश्क़ में कुफ़्र ज़रा नहीं किया

 उससे मोहब्बतें तो कीं, उसको ख़ुदा नहीं किया"

आज हालांकि मानवीय संवेदना में कहीं न कहीं एक अनपेक्षित कमी आई है ।  हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं । एक शायर भी इससे अछूता नहीं रह सकता । उसकी शायरी हालात का आईना बन जाती है । इस बाबत मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद का शे'र मुलाहिज़ा करें—

 "कुुछ ग़मे-जानां, कुछ ग़मे-दौरां दोनों मेरी ज़ात के नाम 

 एक ग़ज़ल मंसूब है उससे एक ग़ज़ल हालात के नाम"

ज़िया का मन भी आहत होकर कहता है—

“कुछ दुश्मनों की आँख में आँसू भी हैं; 

मगर कुछ दोस्त सिर्फ लाश दबा देने आए हैं“

..........

"पत्थर मार के चौराहे पर एक औरत को मार दिया

 सबने मिलकर फिर ये सोचा उसने गलती क्या की थी"

...........

"दानाओं ने की दानाई, मूंद ली आँखें 

चौराहे पर क़त्ल हुआ पागल ने देखा"

आले अहमद सुरूर ग़ज़ल को 'इबादत, इशारत और अदा की कला' कहते हैं । ज़िया ज़मीर इस रवायत को बड़े सलीक़े से निभाते चलते हैं ।  अपने भोले माशूक़ से ज़िया साहब की मीठी शिकायत है—

 "तुमने जो किताबों के हवाले किए जानां

वे फूल तो बालों में सजाने के लिए थे"

ख़्यालात की नाज़ुकी  उनके यहाँ कहीं-कहीं इतनी 'सटल' हो जाती है कि क़ारी के मुँह से सिर्फ़ "वाह" निकलता है—

  "मेरे हाथों की ख़राशों  से न ज़ख़्मी हो जाए

   मोर के पंख से इस बार छुआ है उसको"

शायरी का फ़न ऐसा है कि उसमें सोच की नूतनता, शिल्प की कसावट और 'अरूज़  का पालन सभी तत्वों का समावेश होना अत्यावश्यक है अन्यथा कोई भी तख़्लीक़ सतही लगेगी । जिया ज़मीर फ़रमाते हैं—

"शौक यारों को बहुत क़ाफ़िया पैमाई का है

 मस'अला है तो फ़क़त शे'र में गहराई का है"

विचारों के सतहीपन को वे सिरे से नकारते हैं— 

"शे'र जिसमें लहू दिल का शामिल ना हो

वो लिखूँ भी नहीं, वो पढ़ूँ  भी नहीं "

...............

  “चौंकाने की ख़ातिर ही अगर शे'र कहूँगा

 तख़्लीक़ फ़क़त क़ाफ़िया पैमाई बनेगी"

प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी का इस संबंध में एक शे'र कितना प्रासंगिक है—

 " कभी लफ़्ज़ों से ग़द्दारी न करना

   ग़ज़ल पढ़ना अदाकारी न करना"

आज जब रिश्तो को बनाए रखने की जद्दोजहद में हम सभी लगे हैं।  ऐसे में अना का पर्दा हर बार हमारे संबंधों की चमक पर पड़कर उसे फीका कर देना चाहता है; जबकि रिश्तों को बचाए, बनाए और सजाए रखना उतना कठिन भी नहीं है। बक़ौल ज़िया—

"बस एक बात से शिकवे तमाम होते हैं

बस एक बार गले से लगाना होता है"

ग़ज़लों के बाद यदि नज़्मों पर दृष्टि डालें तो वे भी बेहद असरदार और अर्थपूर्ण बन पड़ी हैं । क्योंकि नज़्मों में अपने विचारों से पाठक को अवगत कराने के लिए अपेक्षाकृत अधिक फैलाव मिल जाता है; इसलिए इस विधा का भी अपना अलग रंग है । 'बिटिया' शीर्षक नज़्म में कन्या भ्रूण हत्या की त्रासदी को बड़ी असरपज़ीरी से उन्होंने हमारे सामने रखा है । 'राष्ट्रपिता' नज़्म महात्मा गांधी के योगदान व बलिदान पर सवालिया और मज़ाक़िया निशान लगाने वाली भेड़चाल को बड़ी संजीदगी से व्यक्त करती है । मेट्रोपॉलिटन, कॉस्मोपॉलिटन, मेगा सिटी, स्मार्ट सिटी इत्यादि विशेषणों से सुसज्जित आधुनिक शह्रों में गुम हुई भारतीयता की असली पहचान हमारी भूल-भुलैया नुमा, टेढ़ी-मेढ़ी पतली गलियों और उनमें बसने वाले मासूम भारत का सजीव अंकन करती है नज़्म 'गलियाँ' ।  'चेन पुलिंग' बतकही शैली में रची गई एक और नज़्म है जो सुखांत पर समाप्त होती है; तो 'कॉफ़ी' शीर्षक नज़्म नाकाम और बेमंज़िल प्यार की ट्रेजेडी को बयान करती है । 'माँ का होना' नज़्म में ज़िया ज़मीर दुनिया की हर माँ के प्रति श्रद्धावनत होते हुए उसके संघर्षों और आपबीती को ख़ूबसूरत ढंग से व्यक्त करते हैं ।

   ग़ज़लों, नज़्मों की भांति ज़िया साहब के दोहों में भी एक गहरी प्रभावशीलता है । निदा फ़ाज़ली, मंसूर उस्मानी, वसीम बरेलवी, शहरयार, बेकल उत्साही आदि मॉडर्न शो'अरा ने भी दोहों में बख़ूबी जौहर आज़माए हैं और ज़िया भी इन सुख़नवरों की राह पर पूरी तन्मयता से बढ़ते नज़र आते हैं— 

"इतनी वहशत इश्क़ में होती है ऐ यार

 कच्ची मिट्टी के घड़े से हो दरिया पार"


 "उसकी आँखों में दिखा सात झील का आब

  चेह्रा पढ़ कर यह लगा पढ़ ली एक किताब"


"जाने कब किस याद का करना हो नुक़सान

जलता रखता हूँ सदा दिल का आतिशदान"


 एक माहिये में कितनी सरलता से वे इतनी भावपूर्ण बात कह जाते हैं—

   "आँसू जैसा बहना

     कितना मुश्किल है

    उन आँखों में रहना"

ज़िया ज़मीर ने भाषायी दुरूहता को अपने शिल्प के आड़े नहीं आने दिया । इन सभी 'फूलों' को हमारे नाम करते हुए उन्होंने यह बख़ूबी ध्यान रखा है कि इनकी गंध हमें भरमा न दे । बल्कि इनमें भारतीयता और उसकी सादगी की भीनी-भीनी ख़ुशबू महकती रहे । आशय यह है कि भाषा छिटपुट जगहों को छोड़कर आमफ़हम ही रखी गई है ।प्रचलित अंग्रेज़ी  शब्दों इंसुलिन, इंटेलिजेंसी,  सॉरी,  मैसेज,  लैम्प-पोस्ट, रिंग,  सिंगल, जाम, टेडी आदि के स्वाभाविक प्रयोग से उन्होंने परहेज़ नहीं किया । वहीं चाबी, पर्ची, चर्ख़ी, काई, टापू, चांदना जैसे ग़ज़ल के लिए 'स्ट्रेंजर' माने जाने वाले शब्दों का इस्तेमाल भी सुनियोजित ढंग से वे कर गए हैं । तत्सम शब्दों गर्जन, नयन, संस्कृति, पुण्य आदि भी सहजता से निभाए गए हैं ।  ज़िया ज़मीर के यहाँ मुहावरों /लोकोक्तियों का प्रयोग भी कहीं-कहीं मिल जाता है । कान पर जूं न रेंगना, डूबते को तिनके का सहारा, जान पर बन आना आदि का इस्तेमाल प्रशंसनीय है।

संक्षेप में, कहा जा सकता है कि ज़िया ज़मीर ने जो ये फूल अपने संग्रह में सजाए हैं; उनकी ख़ुशबू पाठक के ज़ह्न और दिल में कब इतनी गहराई तक उतर जाती है उसे ख़ुद पता नहीं चलता । संग्रहणीय संग्रह के लिए वे निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं और 'ये सब फूल हमारे नाम' करने के लिए भी ।



कृति-
‘ये सब फूल तुम्हारे नाम’ (ग़ज़ल-संग्रह)  ग़ज़लकार - ज़िया ज़मीर                                        प्रकाशक - गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद। मोबाइल-9927376877

प्रकाशन वर्ष - 2022  

मूल्य - 200₹

समीक्षक -अंकित गुप्ता 'अंक'

सूर्यनगर, निकट कृष्णा पब्लिक इंटर कॉलिज, 

लाइनपार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नंबर- 9759526650



वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। प्रस्तुत हैं 31 जनवरी 2023 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की बाल कविताएं ....


अम्मा जी ने छत पर कपड़े

जाकर ढेर सुखाए ,
तभी वहॉं पर छह- छह बंदर
खों – खों करते आए।

डर के मारे अम्मा जी ने
तब आवाज लगाई ,
सुनकर पोती रिया
दौड़कर लाठी लेकर आई।

लाठी जब देखी तो बंदर
उछल-उछल कर भागे,
पीछे-पीछे लाठीवाली
बंदर आगे-आगे ।

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451

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भरा हुआ जो शरबत से
मैं हूं ऐसा एक कुआं
एक बार जो खा लेता है
देता है बारंबार दुआ
छोटे बड़े,अमीर गरीब
सबके मन को भाता हूं
शोभा हूं हर उत्सव की
नाम है मेरा मालपुआ

✍️डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9837189600

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हम भारत के लाल,
कहाते हिन्दुस्तानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
     नहीं किसी से बैर,
     प्यार सबसे करते हैं!
     किन्तु सभी लें जान,
     नहीं किंचित डरते हैं!
न  समझो   मासूम,
हैं हम दरिया तूफानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
    सिहों के संग खेल खेल,
    कर युवा हुए हम!
    माँ जीजा के चरण छुए,
    तब शिवा हुए हम!
माँ पन्ना के अमर पुत्र,
से हम बलिदानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
   शरणागत की लाज,
   सदा ही हम रखते हैं!
   किन्तु कपट की सजा,
   धूर्त शत्रु चखते हैं!
अखिल विश्व में हार '
कभी न हमने मानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!

✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8218825541

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एक बार की बात है बच्चों
गर्मी प्रचंड थी खूब
पानी ढूंढ रहा था कौवा
सिर पर पड़ रही थी धूप
उड़ता फिरता गांव गांव वह
नहीं दिखी जल की एक बूंद
उड़ता उड़ता दूर जा पहुंचा
दिखा घड़ा एक बहुत ही दूर
कौवा घट पर झट से पहुंचा
पर पीने को हुआ मजबूर 
चौंच झट से डाली अंदर 
पानी पर नीचे था दूर
इधर उधर नजर दौड़ाई
आयी युक्ति एक सूझ
कंकड़ पत्थर बीन बीन कर
डाले घड़े में कौवे ने खूब
पानी फिर जब ऊपर आया
कौवे ने बुझाई प्यास जरूर
ना वह हारा ना घबराया
विपत्ति में बुद्धि का लिया सहारा
प्यारे बच्चों, तुम भी समझो
विषम स्थिति में ना घबराओ
सूझ बूझ प्रज्ञा से निशदिन
आगे बढ़ते ही तुम जाओ

✍️मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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पानी पीकर उड़ा जो कौआ,
मन में अति हरषाया।
नील गगन में उड़-उड़ कर वह,
मस्त हुआ मुस्काया।।
बैठ पेड़ पर काॅंव-काॅंव वह,
जोरों से चिल्लाया।
अपने प्यारे बच्चों को फिर,
उसने पास बुलाया।।
प्यासे कौए ने प्यास का,
अनुभव उन्हें बताया।
पानी पीने के परिश्रम को,
विस्तार से समझाया।।
कठिन समय में धीरज धरकर,
काम करो यदि अपना।
सही मिलेगा परिणाम,
और सुखद बनेगा सपना।।
हम जो थककर बैठ गये,
तो होगी नहीं भलाई।
परिश्रम करना व्यर्थ न जाता,
मेहनत का फल है सुखदाई।।

✍️डाॅ सुधा सिरोही
बुद्धि विहार फेज-2
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

............................


छुक छुक छुक छुक करती रेल
बड़ी तेज है चलती रेल
नदी पर्वत खेत चीर कर
इनके ऊपर चढ़ती रेल ।

नानी मामी बुआ मौसी
सबके घर पहुँचाती रेल
दादा दादी चाचा चाची
सबसे है मिलवाती रेल ।

सड़क सुरंग मैदानोंं में
सरपट दौड़ी जाती रेल
चिंटू - मिंटू - राजू- रामू
मन सभी के भाती रेल ।

✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

.............................



अगर बरसते रसगुल्ले तो
कितनी होती अपनी मौज
रसगुल्लों से भरी ही रहती
अपनी आंगन वाली हौज।
सुबह शाम जी भरकर फिर
रसगुल्ले ही हम खाते
मीठे मीठे रसगुल्ले खा
मीठा सा गाना गाते।

✍️डॉ अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर, बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत

...............................



एक सेठ जी थे कंजूस,
पीते थे लौकी का जूस I
लगी जोर से एक दिन प्यास,
जूस मंगाया चार गिलास I
फिर भी प्यास न बुझने पाई,
पानी की बोतल मंगवाई I
उसको पीकर मिला आराम, 
मुंह से निकला जय जय राम!
हो गया उनको यह आभास,
पानी से ही  बुझती  प्यास I

✍️नकुल त्यागी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

................................



मुन्ना बोला मम्मी से मुझको तुम बहलाओ ना।
चंदा मामा दूर के , मुझको तुम दिखलाओ ना।

पूछे मम्मी मुन्ने से क्यूं इतना मुझे सताते हो।
चंदा मामा कल आयेंगे, अब मान नहीं क्यूं जाते हो।
मेरा वादा पक्का है,अब मुझको और सताओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से ........................।।

परियों वाले सपने देखो, और तारों की सैर करो।
सुबह सबेरे जल्दी उठना, ना सोने में देर करो।
लोरी सुनके सो जाओ, अब निदियां दूर भगाओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से.....................।।

चंदा मामा जब आयेंगे,तुमको मैं मिलवाऊंगी।
खोल के खिडकी कमरे की, अंदर उन्हें बुलाऊंगी।
मन भर कर तुम बातें करना, अब सोने में देर लगाओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से....................।।

चंदा मामा कितने सुंदर , मैं उनसे हाथ मिलाऊंगा।
चुन्नू मुन्नु और राजु को, उनकी बातें बतलाऊंगा।
मुझे सुलाकर प्यारी मम्मी, तुम भी तो सो जाओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से ..................।।

✍️डॉ पूनम चौहान
एस बी डी महिला महाविद्यालय
धामपुर बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत

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मंगलवार, 31 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र कुमार की कविता.... शाश्वत लौह । उनकी यह कविता मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक विधान केसरी के 8 जुलाई 2013 के अंक में प्रकाशित हुई है ।


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार की ग़ज़ल.....बेझिझक हंसी वो, बोलती आंखें भी, सम्हाल कर रखो इन्हें, प्यार के सरमाए हैं.


ये शऊर, ये  सादगी आप जो लेकर आए हैं, 

किस जगह मिलते हैं ये, कहाँ से आप पाए हैं.


अभी अभी एक कारवां चांद की रहनुमाई मे, 

बादलों मे छुप गया, आप से शरमाए हैं.


बेपनाह हुस्न ये, गज़ब का खुलूस भी, 

दिल खुश तो हो गया मगर आंसू निकल आए हैं.


बेझिझक हंसी वो, बोलती आंखें भी, 

सम्हाल कर रखो इन्हें, प्यार के सरमाए हैं.


आंसुओं से जो लिखा, एक गीत तुमने गा दिया, 

मुद्दत के बाद किसी के लव आज मुस्कुराए हैं.


"आमोद" प्यार से यहाँ, महरूम जो रह गए

मुश्किल से सांस जिस्म से अपनी जोड़ पाए हैं.

✍️ आमोद कुमार

दिल्ली

मुरादाबाद मंडल के हसनपुर (जनपद अमरोहा ) के साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल ..मैं अपने मुल्क पर कुर्बान हो जाऊं ये ख्वाहिश है


मैं अपने मुल्क पर कुर्बान हो जाऊं ये ख्वाहिश है ।

मैं सच की राह पर कुर्बान हो जाऊं ये ख्वाहिश है ।।

यहां हर सिम्त हर सू झूठ का ही बोल बाला है ।

जमाने को मैं इतना सच बता जाऊं ये ख्वाहिश है ।।

तुम्हारी जिंदगी अंधेरी राहों का समंदर है ।

मैं जुगनू बन के जगमगा जाऊं ये ख्वाहिश है ।।

हटा दूं राह के पत्थर मैं चुन लूं राह के कांटे ।

तुझे मंजिल दिला जाऊं फकत मेरी ये ख्वाहिश है ।।

हमारी जिंदगी में और इस दुनिया के रहने तक ।

तिरंगा बनके लहराऊं फकत मेरी ये ख्वाहिश है ।।

सभी मिलकर करें मजबूत रिश्ता फिर मोहब्बत का ।

मैं नफरत को मिटा जाऊं फकत मेरी ये ख्वाहिश है ।।

खत्म हो जाएं मुजाहिद आपसी झगड़े ।

खुशी बनके मैं छा जाऊं फकत मेरी ये ख्वाहिश है ।।


✍️ मुजाहिद चौधरी 

हसनपुर, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 29 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ....दिल्ली की सैर


मैंने एक दिन

अपने पालतू कुत्ते

के सर पर हाथ 

फेर कर कहा,

चल तुझे दिल्ली की

सैर कराता हूँ ।

देख,

यह है पुरानी दिल्ली

और

यह लालकिला

यहां से 15 अगस्त को

प्रधानमंत्री जी देश

को सम्बोधित करते हैं,

कुछ पुरानी बातें

करते हैं तो

कुछ नई घड़ते हैं।

कितनी लागू होती हैं

यह बात अलग है।

चल आगे चल

देख यह है

जंतर - मंतर

जहां धरना प्रदर्शन

होता है-

आंदोलन का स्थान है

माँगे माँगी जाती हैं

और 

लाठी भी भांजी जाती है।

और देख यह

समाधि स्थल है

यहां अनेक राजनीतिज्ञों

की समाधियां हैं

कोई फूल चढ़ाता है

तो कोई किसी न किसी

को कोसता है

अपनी अपनी

सोच है प्यारे।

और यह है कुतुबमीनार

इसकी ऊँचाई देख

यहां से कूदकर

कई प्रेमियों ने

आत्महत्या तक कर ली

और बता क्या दिखाऊँ,

यह यहां का प्रसिद्ध

चिड़ियाघर है-,

यहां हर प्रकार के 

जानवर हैं,

कुछ शेर हैं तो

कुछ गीदड़ हैं।

वैसे भी दिल्ली में

शेर गीदड़ बहुत हैं।

और यह

इंडिया गेट है

यहां शहीद की मशाल 

जल रही है

तभी मैनें देखा

मेरा कुत्ता

दोनों पैरों पर खड़ा 

होकर शहीद को नमन

करने लगा-

मन प्रसन्न हुआ

कि अभी इंसान से ज्यादा

मेरे बफादार कुत्ते में

इंसानियत है।

फिर मैंने

उसे बताया कि देख

यहां देश के चुने हुए

प्रतिनिधि आकर बैठते हैं,

यह जरूरी नहीं कि

सभी ईमानदार हों

कुछ अच्छे कुछ बुरे हैं।

ईमानदार कम

बेईमान अधिक हैं,

ईमानदारी की संख्या

40  परसेंट है ।

बेटा

यह पार्लियामेंट है।।

अन्दर बहस होती है

तू -तू मैं - मैं होती है

एक दूसरे पर

भौंकते हैं--

बस मेरा इतना कहना था

मेरा कुत्ता

ज़ोर -ज़ोर से भौंकने लगा।

मैनें माथे पर

हाथ मारा,

मन ही मन कोसने लगा ।

तुझे कहाँ ले आया,

बड़ी गलती हो गई।

शायद तुझे भी

यहां की हवा लग गई।।


✍️ अशोक विश्नोई 

मुरादाबाद

शनिवार, 28 जनवरी 2023

मुरादाबाद की संस्था "संकेत" की ओर से शनिवार 28 जनवरी 2023 को माॅं सरस्वती की वंदना पर आधारित वाट्स एप काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता - डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने की। मुख्य अतिथि - डॉ. पूनम बंसल और विशिष्ट अतिथि - सरिता लाल, डॉ. अर्चना गुप्ता और डॉ. संगीता महेश रहीं। संचालन राजीव प्रखर ने किया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना ....



मातु शारदे ज्ञान सुधा का भरदे जीवन में मधुरस ।

रोम रोम में जन जीवन के भरो प्रेम का सुखद सुरस।

✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हम करते तर्पण तुझको अर्पण
माँ तेरा बस ध्यान रहे
हे धवला वसना जीवन रसना
तेरा गौरव गान रहे

वीणा का वंदन करें अभिनंदन
भक्ति का अभिमान रहे
भव सागर तारक विघ्न विदारक
खुशियों का वरदान रहे

हे परहितकारी नैया तारी
मातृ भूमि की शान रहे
ये शंख बजा दो  शौर्य सजा दो
प्रगति का प्रतिमान रहे

है चपल दामिनी मधुर रागनी
छंदों का सम्मान रहे
अभिलाष जगा दो तिमिर भगा दो
राह कठिन आसान रहे

विनती चरणों में करें,आज करो स्वीकार।
खुल जाएं मां शारदे,ज्ञान हृदय के द्वार।।

✍️डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हाथ जोड़ करती मैं वंदना
दिल से करती हूं मैं अर्चना
मुझे दृष्टि में ले आओ मां
मुझे पर कृपा बरसाओ मां,

चहुं ओर कोहरा है बरपाया
मोह माया का पर्दा है छाया
ज्ञान पथ सजग बनाओ मां
सब पर कृपा बरसाओ मां,

राहें धूमिल -अन्त‌स है सूना
हर प्राणी आज हुआ है बौना
उसका स्वाभिमान बढ़ाओ मां
हम सब पर कृपा बरसाओ मां,

स्वार्थों से लिप्त ये तन मन है
अबला सा अब हर जीवन है
चक्रव्यूह से बाहर निकालो मां
हम सब पर कृपा बरसाओ मां ,

स्वर्ग इसी धरती पर बनता है
अन्तर की ज्योति जगाओ मां
कैसी होती है प्यारी सी जन्नत
जरा‌ हमको भी दिखलाओ मां,

महासरस्वती महालक्ष्मी महाकाली
तुम ही सभी स्वरूपों में बसती हो
कलयुग के हम नादान हैं बालक
हमें भक्ति के कणों से तार दो मां
शुद्ध सशक्त‌ आचरण भर दो मां
कृपा बरसा दो मां,कृपा बरसा दो मां.......

✍️सरिता लाल
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।
ज्ञान के भंडार भरना शारदे माँ शारदे।

कंठ में माँ तुम सजा दो सात सुर की लहरियाँ।
भाव की दिल मे बजा दो तुम मधुर सी घण्टियाँ।
तुम बहाना प्रेम झरना शारदे माँ शारदे।
वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।

कर्म मन से और वचन से शुद्ध हर व्यवहार हो।
मन नहीं भटके हमें इंसानियत से प्यार हो।
दुख हमारे सर्व हरना शारदे मां शारदे।
वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।

मोह माया में जगत की फँस नहीं जायें कहीं।
पग पतन की राह में ही धँस नहीं जायें कहीं।
हाथ अपना सिर पे धरना शारदे माँ शारदे।
वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ शारदे --माँ शारदे,
ज्ञान  का  भंडार  दे
        
हमको तम ने है छला
दिव्य ज्योति तू जला,
नव  पथ  संचार  दे।
माँ शारदे ।।

बुद्धि गम्य ज्ञान दे,
विद्या  का  दान दे ,
संकट  निस्तार दे ।
माँ शारदे ।।
           
मार्ग  अंधकार   को,
मात  तुम प्रकाश दो,
ज्योति भर उभार दे ।
माँ शारदे ।

दीप सम हम जलें                        
स्नेह भाव में पलें,
पावन संस्कार दे ।
माँ शारदे। माँ शारदे ।।

✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मो.9458149223

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माँ वीणापाणि गा रही
अंतर के पट खोले
लट   खोले   बालों  की,
लेकर कर  में  वीणा
बैठ कमल आसन पर,
स्वरसप्त है बजा रही
जिसमें विश्व चेतन का,
राग   है   सजा   रही
जड़   मानव  हृदय  में,
दिव्य दीपक जला रही।
माँ वीणापाणि गा रही

हर तार से निकल रही,
तरंग  ज्ञान   से  भरी
जो मूढ़ता को हर रही,
है ज्ञान दान कर रही
जो अंतर्तम  को स्वयं,
प्रकाशवान  कर  रही
जो  क्रुद्ध हलाहल को,
शांतअमिय में बदलरही
जो बुद्धि में सुकर्म का,
अनूप  भाव  भर   रही।
माँ वीणापाणि गा रही

सुकर्म शुभारम्भ काआलम्ब,
आलम्ब  तू स्वयं रही
विद्या    की    खान    और, 
शान   तू   स्वयं   रही
तेरे   आशीष   से   अनेक,
खल    चमक    रहे
तेरे  निज   शाप   से   हैं,
दर - दर  भटक  रहे
हर  तान  तू  सुना   रही,
है सृष्टि को जगा रही
माँ वीणापाणि गा रही

जब  से  माँ  तेरा  निज,
हाथ  विश्व   पर   रहा
विश्व का हर  एक  पल,
बन कीर्ति है चमक रहा
वैसे    ही   शारदे    तू ,
ध्यान   विश्व  का   रखना
किसी  भी  संकट   से,
दूर    विश्व    को   रखना
भक्तों    के    मन   से,
यही   पुकार   आ  रही।
माँ वीणापाणि गा रही

साथ    टूटे   शब्दों  के,
पृष्ठ   बंद   करता   हूँ
तेरे  चरण  कमलों  में,
कोटि नमन करता हूँ।
       
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।

वाणी में मधुरस-सा टपके, जनहित में हर बोल ।
ज्ञान के चक्षु सदा खुले हों, सोच बने अनमोल ।।
बुद्धि ज्ञान विवेक की दाता, करता तुम्हें प्रणाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।।

दीप जला आह्वाहन करता, ऊँचा रह मम भाल ।
सुर-लहरी दो मुझको ऐसी, सुन हों सभी निहाल ।।
उत्तम बने शब्द-संयोजन, मिले सुखद परिणाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।।

पुष्प चढ़ाकर वर यह माँगूं, सिर पर रखना हाथ ।
घर-समाज या देश सभी में, हो मेरा भी साथ ।।
ऐसी वाणी सबको देना, भजे शारदा नाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ स्वर-अक्षर धाम ।।

मातु शारदे सारे मुझसे, दुर्गुण रखना दूर ।
छल-कपटी बैरी-दुश्मन मम, प्रेम करें भरपूर ।।
मुझमें इतनी क्षमता भर दो, बाधाएं दूँ थाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।।

✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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O Maa Saraswati sitting on lotus,
The Goddess of dawn!
My heart is shrouded with dusk of despair.
Let the light of hope fall on me, my mother!
Let blooming buds and flowers inspire me,
To  compose the poems  of faith, hope and pleasure.

O Maa Bhagwati, with Veena adorned in your hands,
The Goddess of art and music!
When the tune and rhythm in my life is missing,
Fill it with sweet music of love.
O Maa, bless me with melodious songs
Of  joy, laughter and benevolence

O Maa Gayatri, Wearing rosary in your rear right hand,
the mother of prayer and meditation!
Bless me with serenity of mind and soul.
When my cup of ego is full to the brim,
Come my mother to empty it and refill
With humility and humanity.

O Maa Vageshwari, mounted on swan,
the creator of all fine arts!
You added shapes, colours and music
To the world of Lord Brahma.
O Maa, give me the insight to feel this art and music,
The empathy to feel the sufferings of the world.
Give that strength and ability to my voice and my pen,
That I can share my feelings with others
Through my poems and songs,
Which are as simple, soothing and powerful
As you are.

O Maa Bhuvneshwari,wearing white apparel,
The Goddess of wisdom and knowledge!
O Maa,give me that power,
That I can swim in the ocean of human feelings
And pick the pearls of human emotions
And embellish them in my songs,
Which get mingled with the tune of your Veena,
And I too may be in union with you.

Composed by Dr. Sangeeta Mahesh

(उपरोक्त वंदना का हिंदी अनुवाद)
हे मां सरस्वती, पद्मासनी,
भोर की देवी!
मेरा हृदय निराशा की संध्या से आच्छादित है।
आशा का प्रकाश मुझ पर पड़ने दो, मेरी माँ!
खिलती हुई कलियाँ और फूल मुझे प्रेरणा दें,
विश्वास, आशा और आनंद के गीतों को रचने के लिए।

हे माँ भगवती! वीणा धारिणी
कला और संगीत की देवी!
जब भी सुर और लय मेरे जीवन से दूर जाए,
उसे प्यार के मधुर संगीत से भर दें।
हे मां, मुझे खुशी, संतोष और परोपकार के
मधुर गीतों का आशीर्वाद दें

हे मां गायत्री, कर में मनका धारण करने वाली !
साधना और ध्यान की देवी,
मुझे मन और आत्मा की शांति का आशीर्वाद दें।
जब भी कभी मेरे अहंकार का प्याला भरने लगे,
इसे अहम के भावों से खाली कर,
विनम्रता और मानवता के भावों से भर दें।

हे माँ वागीश्वरी, हंस वाहिनी!
सभी ललित कलाओं की जननी,
भगवान ब्रह्मा की दुनिया को सुंदर बनाने के लिए
आपने उसमें रंग और भाव भरे, शब्द और संगीत दिया,
हे मां, मुझे अंतर्दृष्टि दें और योग्यता दें,
कि मैं महसूस कर सकूं, इस कला और संगीत को,
मैं महसूस कर सकूं लोगों की पीड़ा को,
मेरी कलम को, मेरी आवाज को, इतनी शक्ति दो मां,
कि मैं अपने भावों को साझा कर सकूं,
इस  दुनिया के साथ,
अपने गीतों और कविताओं से
जो हों आपका ही रूप,
सौम्य, सरल, शक्तिशाली और सुखदायी।

हे मां भुवनेश्वरी, श्वेतांबरी !
प्रज्ञा और ज्ञान की देवी,
हे माँ मुझे वह शक्ति दो,
मैं तैर सकूं मानवीय संवेदनाओं समुंदर में,
और बीन सकूं भावनाओं के मोती,
और उन्हें सजा सकूं अपने गीतों में,
जो आपकी वीणा के सुर में समा जाएं,
और मैं भी आपमें ही समाहित हो जाऊं।

✍️ डॉ. संगीता महेश
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हो   मेरा   चिंतन   प्रखर , बढ़े  निरंतर  ज्ञान।
हे   माँ   वीणावादिनी   ,  दो   ऐसा  वरदान।

मातु   शारदे  आपका ,  रहे   कंठ   में   वास।
वाणी  में   मेरी   सदा , घुलती  रहे  मिठास।।

यदि  मिल जाए आपकी,दया-दृष्टि  का  दान।
माता   मेरी   लेखनी , पाए  जग   में   मान।।

किया  आपने  शारदे ,  जब  आशीष  प्रदान।
रामचरित  रचकर  हुए , तुलसीदास  महान।।

हाथ जोड़कर  बस यही, विनती करे 'विवेक'।
नैतिक बल दो माँ मुझे,काम करूँ नित नेक।।

✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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विमल वीणा पाणि निर्मल,
धवल वसना शारदे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ, ज्योति का आधार दे माँ।

मैं रहूँ तेरी कृपा का,पात्र ऐसी युक्ति दे माँ।
भावना को छंद,कविता,गीत की अभिव्यक्ति दे माँ।
काव्य हो मेरा अलंकृत,सरस लय शृंगार दे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ, ज्योति का आधार दे माँ।

मैं तुम्हारी अर्चना में,रत् रहूँ सद् चित्त दे माँ।
साधना को भक्ति
का,वातावरण उपयुक्त दे माँ।
फँस न जाऊँ भँवर में,निज नेह की पतवार दे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ,
ज्योति का आधार दे माँ।

हंस वाहिनि भारती, ममता मयी वरदायिनी माँ।
बहे अविरल ज्ञान-सरिता,हृदय में स्वर दायिनी माँ।
ध्वंस कर दुर्भावना,सद्भावना- उपहार दे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ, ज्योति का आधार दे माँ।

✍️ डॉ महेश मधुकर
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वीणापाणि शारदे!
तुमको नमन, तुमको नमन ।
नित गाऊं मातु वंदना,
अर्पित करूं शब्द सुमन ।।
मां ज्ञान दे, विज्ञान दे।
भावों को ऊंची उड़ान दे।‌
कलुषित विचार जहां भी हों
हो जाएं वह सारे दहन।।
मां...........
लेखनी, वाणी में शक्ति हो।
भाव सरस अभिव्यक्ति हो।।
मुख खोल जब भी बोलूं मैं,
निकले सदा मीठे वचन।
मां..........
मन स्वच्छ साफ विचार हो।
हृदय में प्यार ही प्यार हो।।
एकात्मता के भाव से,
सुरभित हो यह सारा चमन।
मां ................

✍️डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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हे माॅं वाणी दीजिए, हमें यही वरदान।
जनहित में लगता रहे, सदा हमारा ज्ञान।।
राग-द्वेष की भावना, कभी न फटके पास।
अन्तस का तम दूर हो, पाएं नया उजास।।
श्रेष्ठ कर्म कर रख सकें, मानवता का मान।
हे माॅं वाणी दीजिए, हमें यही वरदान।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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शारदे मां ज्ञान दे,
तत्व की पहचान दे।

काल की मुट्ठी खुली है,
पल मलिन हो गिर रहे हैं।
छा गया अंधियार सा है,
मोह के घन घिर रहें हैं।
दूर कर अज्ञान तम को,
मात नवल विहान दे।
शारदे मां ज्ञान दे,
तत्व की पहचान दे।

लिख रहे सब लेख जय का,
कब समर्पण को पढ़ा है।
है विहीन विनय से बुद्धि,
मद असुर सा सिर चढ़ा है।
दुर्मति के नाश को मां!
शर कलम संधान दे।
शारदे मां ज्ञान दे,
तत्व की पहचान दे।

मूढ़मति मैं जानती क्या,
विस्मयी बस देखती हूं।
माथ छोटा कल्पना का,
मात के दर टेकती हूं।
मां,मुझे अपने चरण में,
आसरे का दान दे।
शारदे मां ज्ञान दे ,
तत्व की पहचान दे।

✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हम सब बालक शरण तुम्हारी आन पडे़ माँ सरस्वती,
दो हमको  वरदान  हमारा  ज्ञान  बढ़े  माँ  सरस्वती,,

वरद हस्त हो शीश हमारे, क्षमाशील जन-जन मे हों,
आलौकिक छवि दिव्य आपकी, मात हमारे मन  में हो ,,
आपस मे सद्‌भाव प्रेम का  दान बढ़े माँ सरस्वती,,,
हम सब  बालक....

वीणा घरी, और स्वरवरदा बुद्धि दायिनी हो तुम ही,
श्वेत कमल घर, भाषा, वाणी, हंस वाहिनी हो तुम ही,
धवल कीर्तिमय सद्‌गुण का संधान बढ़े माँ सरस्वती,
हम सब बालक......

बाधाऐं हर पार करें, शिक्षित हो  सफल करे जीवन,
तृष्णा,छल,झूठ,अमानुषता  विसरा कर सरल करें जीवन,
गरिमा  हमसे हम से बढ़े, राष्ट्र का मान बढ़े माँ सरस्वती"
हम सब  बालक......

✍️मनोज मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ शारदे मुझको वरदान दो ।
'ममता'को चरणों मे स्थान दो ।।

तिमिर कूप से माँ निकालो मुझे,
मुझे  दो  सहारा  सँभालो  मुझे ।
मुझे बुद्धि विद्या औ सम्मान दो ।।
'ममता'को चरणों में ...........।।

भ्रमित है मनुज और विचलित है मन,
लिए  घूमता  है  हृदय  में  चुभन,
मिटा अब जगत से ये अज्ञान दो।
'ममता'को चरणों में............।।

मेरी लेखनी भक्ति रत हो सदा ।
मनुजता का पूजन करे सर्वदा।।
मुझे काव्य का मात अब ज्ञान दो।
'ममता'को चरणों में ............।।

माँ शारदे मुझको वरदान दो ।
'ममता'को चरणों में स्थान दो।।

✍️  प्रो ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ शारदे वरदान दो
बल बुद्धि अरु सम्मान दो
सत पथ पर चलूँ सदा ही
मन में यही अरमान दो ।

सद्भावों की महके क्यारी
विद्या ही हो पूँजी हमारी
लोभ मोह से मुक्त हृदय हो
संतोषी हो सब नर नारी ।
सेवा से पग डिगें कभी न
कुछ ऐसे भाव दान दो ।।
माँ शारदे वरदान दो ....

सुख समृद्धि हर आँगन आये
दीन दुखी कोई रह न जाये
खुशियों पर अधिकार सभी का
जन जन बात समझ यह पाये ।
मान पराया भी मेरा हो
ऐसा मुझे संज्ञान दो ।।
माँ शारदे वरदान दो .....

चहुँदिशि फैला हो उजियारा
दिखे न साथी तम से हारा
शिक्षा की नयी ज्योति जलाकर
कर दो उजला यह जग सारा ।
अज्ञान का सब हर अंधेरा
घट घट में भर ज्ञान दो ।।
माँ शारदे वरदान दो.....

✍️डॉ. रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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सुरवंदिते!, महाभुजे! ,शुभदा! हे शारदे!
अज्ञानता के दंश से हमको  उबार दे

हे श्वेतवर्णि अम्बुजे!, तू हंसवाहिनी!
हे शक्तिदायिनी!, महाविद्या प्रदायिनी!
गोदी में लेके अम्बिके ममता दुलार दे
अज्ञानता के दंश से हमको उबार दे

हे वीणावादिनी , जया, शब्दा, स्वरागिनी
तू ही पुराण वेद की गंगा प्रवाहिनी
मरुथल में मन के अमृते सावन उतार दे
अज्ञानता के दंश से हमको उबार दे

वागेश्वरी, वरारुहा, वसुधा विराजनी
करुनामयी, कलावती ,कमला ,कृपालनी
"मासूम" को तू ज्ञान की ज्योती अपार दे
अज्ञानता के दंश से हमको उबार दे

✍️मोनिका "मासूम"
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वीणा  पाणी शारदे मां,लोक दुःख तारिणी मां,
राष्ट्रहित सोचने का ,हमको विचार दे।
जब तक जिए मात,देश हित करें नित ,
ऐसी पूत भावना तू,मन में उतार दे ।
कण कण कर वास करो,जग के संत्रास हरो,
प्रेम भक्ति भाव भर ,जन को सुधार दे।
रोम रोम गाए मैया ,तेरा गान प्रतिपल ।
निज भक्ति भाव मम,अंक में उतार दे ।1

नाश होवे बैर द्वेष, नेह होवे विकसित।                            सब सुखी होवे ऐसे ,भाव का प्रसार  कर ।
तेरा गुणगान करें ,नारी का सम्मान करें।
जग को सुधारे कोई ,ऐसा अवतार कर।             
मन के हैं जो विकार ,फैला हुआ अनाचार ।
काल रूप धारि मैया ,इन्हें तार -तार कर।
वीणा छोड़े मल्हार ,गूंजे राग हुंकार ,
वीर रस जागे ऐसे ,नाद का संचार कर ।

✍️डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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काव्य की पीर उठती रहे शारदे।
काव्य रस-धार बहती रहे शारद।

लेखनी मेरी माता रुके न कभी,
यह लगातार चलती रहे शारदे।

छंद लय युक्त को ,माँ कविता मेरी,
यह सरसती महकती रहे शारदे।

काव्य में जो कहूँ ,वह बिना भय कहूँ,
भावना यह उमड़ती रहे शारदे।

सत्य पथ पर चालूं, साथ सच का गहूँ,
बात मन मे घुमड़ती रहे शारदे।

द्वेष होने न पाए किसी से मुझे
धारणा यह पनपती रहे शारदे।

ज्ञान का डीप बुझने न पाए कभी,
ज्ञान की ज्योति जलती रहे शारदे।

✍️  इन्दु रानी
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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हे! ,श्वेताम्बर  वीणा  पाणिनी
अज्ञान तमस  से हमें तारिणी
ऐसा जग में  प्रकाश भरो  ना
मझदार में नैया, पार करो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

प्रकृति से नित प्यार  करें हम
जीवों पर सदा दया करें  हम
प्राणी मात्र से  प्रीत करे  हम
ऐसा  कुछ नवाचार  भरो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

धरा  बचे  और  बचे  हरियाली
वृक्ष कटे न, कोई कटे न डाली
मानव  क्षरण  से ये  बच जाएं
ऐसा कोई अविष्कार  करो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

वेदों  से  हम  शोध  करें  नित
सत्य  सनातन  करें  परिष्कृत
फिर से  कचरा मुक्त हो धरती
ऐसी युक्ति का संचार करो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

✍️  दुष्यत 'बाबा'
पुलिस लाईन, मुरादाबाद।
मो0-9758000057

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श्वेत कमल है श्वेत वसन है, 
सिर पर मुकुट भाल चंदन है I
कर में  वीणा सुर है लय है,
मां की मूरत ममतामय है I
मातृ रूप का अभिनंदन है!
सरस्वती मां का वंदन  है !

मां ऊंची तुम हिमालय सी हो, 
पूजित तुम शिवालय सी हो I
विद्या के विद्यालय सी हो ,
विद्या ही जीवन में धन है !
विद्यादायिनी का  वंदन है!
सरस्वती मां का वंदन है !

माता भाग्य  हैं मेरे जागे ,
शीश झुकाए खड़ा हूं आगे I
दिल मेरा बस यह वर मांगे,
शुभ शब्दों का ज्ञान करा दे I
प्रभु का जिनमें भजन कथन है
सरस्वती मां का  वंदन है !

मुंह से निकले शीतल वाणी,
जिसको सुन हर्षित हो प्राणी I
ज्ञान दायिनी ज्ञान करा दो ,
मैं तो हूं बालक अज्ञानी I
अर्पण मेरा तन है मन है!
सरस्वती मां का वंदन है !

✍️नकुल त्यागी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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मात सरस्वती को हम सुमिरें सारे काम सफल हो जाएं।
जोड़ें हाथ झुककर मस्तक माता तुमको रहे मनाएं।
हमको ज्ञान सदा तुम देना अंधकार सब देओ मिटाय।
सर पर हाथ तुम्हारा माता अब डर हमें किसी का नाय।
सारे काम सफल हों मैया सबकी करना सदा सहाय।
श्वेत हंस पर मात विराजे वीणा रक्खी हाथ उठाय।
जो भी ध्यान करे मैया का उसके देती काम बनाय।
जब मेरी माता कंठ विराजे वाणी में स्वर देय सजाय।
सबसे पहले सुमिरुं शारदा पीछे हाथ कलम लूँ ठाय।
शब्दों को मेरे सच्चा करना माता अरज करूँ सिर नाय।
शब्द शब्द जुड़ बने कविता शब्दों में दो भाव जगाय।
जो भी रचना सुने हमारी माता मन्त्र मुग्ध हो जाय।
ऐसा वर दे दो मेरी मैया अब कलम रुके कभी नाय।
शब्द कोष का ज्ञान हमें दो नित नए ग्रन्थ लिखें हर्षाय।
हर दम ध्यान रहे माता का चाहे दिन कैसे भी आय।
मात शरद शीश विराजे करती जाय सदा सहाय।
विनती सुनलो वीणा वाली तुमसे बात बड़ी ये नाय।
अर्ज हमारी पूरी कर दो हाथ जोड़ रहे तुम्हें मनाय।
ब्राह्मणी तुम जन्मदात्री सारे जग को मात कहाय।
बिन तेरी कृपा बिना दया के काम किसी का होना नाय।
हम भी माता तेरे बालक तुझको याद रहे दिलवाय।
माता रुष्ट कभी ना होना चाहे भूल बड़ी हो जाय।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

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जय जय माँ, जय जय माँ -2
माँ के चरणों की हम करें  आराधना
तेरे दर्शन को हम सब खड़े हैं  I
तेरी करुणा की सीमा नहीं हैं
दे दो विद्या हम जिद्द पर अड़े हैं l

शारदे हमें ज्ञान दो, विद्या का वरदान दो
कर दे मन में रोशनी, माँ सबका कल्याण हो
हर समय हर जगह बस मिलें तू,
सत्य के पथ पे अब हम चलें हैं I
तेरी करुणा की सीमा नहीं हैं
दे दो विद्या हम जिद्द पर अड़े हैं l

तुमसे मन की हर ख़ुशी,
तुम हो मेरी जिंदगी l
तेरी दिव्य ज्योति से, होती जग में रोशनी
कर दे रोशन मेरी जिंदगी अब
कब से अंधकार में हम पड़े हैं l
तेरी करुणा की सीमा नहीं हैं
दे दो विद्या हम जिद्द पर अड़े हैं l

✍️ पूजा राणा
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश
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