गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉक्टर पुनीत कुमार का व्यंग्य....विकास मिल गया है


काफी खोजबीन करने के बाद विकास का पता मिला। ये खोजबीन हमारी अपनी थी। इसमें गूगल बाबा का कोई रोल नहीं था। गूगल ने विकास के एक लाख से अधिक परिणाम दिखाकर, हमको भ्रमित ही कर दिया था।अपनी सफलता पर हम फूले नहीं समा रहे थे। हमारा सीना तीस इंच से बत्तीस इंच हो गया था और हमको तसल्ली दे रहा था कि बहुत जल्द ये छप्पन इंच के जादुई स्तर को छू लेगा। हमारी स्थिति उस पॉकेटमार की तरह थी,जिसे प्लास्टिक मनी के युग में, नोटों से भरी पॉकेट मिल गई हो।हमने बिना समय गवांए,अपना कैमरा उठाया और विकास से मिलने चल दिए लेकिन हमको निराशा हाथ लगी। घर के बाहर ताला लटका था। 

       पड़ोसियों ने बताया - विकास काफी समय से बीमार था। डॉक्टर की सलाह पर, आजकल स्विट्जरलैंड में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहा है। "हमारे पास लौट के बुद्धू घर को आए के अलावा कोई ऑप्शन नही था।हमने पड़ोसियों से कहा,"जब विकास वापस आ जाए,सूचित कर देना। उससे मिलने की तीव्र इच्छा है।अभी तक उसका, बस नाम सुना है, देखा नहीं है।हम मरने से पहले, ये इच्छा पूरी करना चाहते हैं।"

      पांच महीने बाद, एक पड़ोसी ने हमें फोन पर बताया ," विकास आ गया है लेकिन अब इस जगह को छोड़, नेताओं की बस्ती में रहने लगा है। "हम फौरन उससे मिलने जा पहुंचे। एक बूढ़े व्यक्ति,जिसको चलने में परेशानी हो रही थी, ने दरवाजा खोला। पता चला वही विकास है। हमने उसको अपनी छड़ी पकड़ाई। उसने हमें घूर कर देखा,"पहले मेरे पास भी ऐसी ही एक ईमानदारी की छड़ी थी‌ लेकिन वह बहुत कमजोर निकली। मैं कई बार चलते चलते गिरा। कहीं से बेईमानी की छड़ी मिल जाए तो लाना, सुना है वो बहुत मजबूत होती है।"

       हमने कहा,"पूरे देश को तुम्हारी जरूरत है,और तुम यहां छुपे बैठे हो।" विकास हंसा," मैं भी सबसे मिलना चाहता हूं ।मैने कुछ समय पहले पदयात्रा शुरू की थी लेकिन चलने की आदत ना होने के कारण, थक जाता था।एक दिन में केवल आठ दस घरों तक पहुंच पाता था। मैं इतने में भी खुश था। धीरे धीरे ही सही,एक दिन हर घर में मेरी पहुंच होगी लेकिन मेरी किस्मत खराब थी, जो नेताओं की नजर मुझ पर पड़ गई।उन्होंने सोचा, सबके घर अगर आसानी से विकास पहुंच गया, तो हमें कौन पूछेगा। हम किसके नाम पर वोट मांगेंगे। उन्होंने मुझे पकड़कर बंधक बना लिया। बस तभी से मैं इस बस्ती में,सख्त पहरे के बीच रह रहा हूं।क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो।"

      हमारे पास कोई जवाब नहीं था।हमें लगा, अब तो सारी जनता मिलकर ही विकास को, नेताओं के चंगुल से छुड़ा सकती है लेकिन पता नहीं,वो दिन कब आएगा।


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें