मैंने एक दिन
अपने पालतू कुत्ते
के सर पर हाथ
फेर कर कहा,
चल तुझे दिल्ली की
सैर कराता हूँ ।
देख,
यह है पुरानी दिल्ली
और
यह लालकिला
यहां से 15 अगस्त को
प्रधानमंत्री जी देश
को सम्बोधित करते हैं,
कुछ पुरानी बातें
करते हैं तो
कुछ नई घड़ते हैं।
कितनी लागू होती हैं
यह बात अलग है।
चल आगे चल
देख यह है
जंतर - मंतर
जहां धरना प्रदर्शन
होता है-
आंदोलन का स्थान है
माँगे माँगी जाती हैं
और
लाठी भी भांजी जाती है।
और देख यह
समाधि स्थल है
यहां अनेक राजनीतिज्ञों
की समाधियां हैं
कोई फूल चढ़ाता है
तो कोई किसी न किसी
को कोसता है
अपनी अपनी
सोच है प्यारे।
और यह है कुतुबमीनार
इसकी ऊँचाई देख
यहां से कूदकर
कई प्रेमियों ने
आत्महत्या तक कर ली
और बता क्या दिखाऊँ,
यह यहां का प्रसिद्ध
चिड़ियाघर है-,
यहां हर प्रकार के
जानवर हैं,
कुछ शेर हैं तो
कुछ गीदड़ हैं।
वैसे भी दिल्ली में
शेर गीदड़ बहुत हैं।
और यह
इंडिया गेट है
यहां शहीद की मशाल
जल रही है
तभी मैनें देखा
मेरा कुत्ता
दोनों पैरों पर खड़ा
होकर शहीद को नमन
करने लगा-
मन प्रसन्न हुआ
कि अभी इंसान से ज्यादा
मेरे बफादार कुत्ते में
इंसानियत है।
फिर मैंने
उसे बताया कि देख
यहां देश के चुने हुए
प्रतिनिधि आकर बैठते हैं,
यह जरूरी नहीं कि
सभी ईमानदार हों
कुछ अच्छे कुछ बुरे हैं।
ईमानदार कम
बेईमान अधिक हैं,
ईमानदारी की संख्या
40 परसेंट है ।
बेटा
यह पार्लियामेंट है।।
अन्दर बहस होती है
तू -तू मैं - मैं होती है
एक दूसरे पर
भौंकते हैं--
बस मेरा इतना कहना था
मेरा कुत्ता
ज़ोर -ज़ोर से भौंकने लगा।
मैनें माथे पर
हाथ मारा,
मन ही मन कोसने लगा ।
तुझे कहाँ ले आया,
बड़ी गलती हो गई।
शायद तुझे भी
यहां की हवा लग गई।।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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