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शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
बुधवार, 16 अगस्त 2023
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ....शहादत
बारिंद्र घोष
अरबिंद घोष
प्रफुल्ल कुमार चाकी उर्फ दिनेश चंद्र राय
खुदीराम बोस
(सभी क्रांतिकारी)
जार्ज किंग्सफोर्ड (सैशन जज)
हाकिंस:अंग्रेज़ आधिकारी
कुछ अंग्रेज़ सैनिक।
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(अंक 1)
स्थान मिदनापुर युगांतर संस्था का गुप्त कार्यालय।
प. बंगाल , अप्रैल 1908
(दृश्य एक) -
(एक छोटे से कक्ष में मद्धम जलती लालटेन की रोशनी में एक बड़ी सी मेज के चारों ओर कुर्सियों पर बैठे, क्रांति कारियों के चेहरों पर ओज मिश्रित रोष झलक रहा है। कक्ष के एक कोने में एक छोटे स्टूल पर पानी से भरा घड़ा और उसके समीप ही एक गिलास रखा है तथा मेज पर कुछ महत्वपूर्ण कागज़ और पत्र पत्रिकाएं भी रखी हैं)।
बारिंद्र घोष (मेज पर से एक समाचार पत्र उठाकर, रोषपूर्ण स्वर में) : आज का अख़बार देखा?अंग्रेजो ने उस दुष्ट जज किंग्सफोर्ड को क्रांतिकारियों के कोप से बचाने के लिए मुजफ्फरपुर भेज दिया है सैशन जज बनाकर।
अरबिंद घोष (रोषपूर्ण स्वर में) : वो अत्याचारी जज कहीं भी चला जाये पर हमसे नहीं बच पायेगा। निर्दोष क्रांतिकारियों पर किये अत्याचारों का बदला हम उससे लेकर रहेंगे।
सभी क्रांतिकारी एक स्वर में : हाँ-हाँ, लेकर रहेंगे। ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद . ..मुर्दाबाद...!! हिंदुस्तान ज़िंदाबाद.ज़िंदाबाद!!
बारिंद्र घोष : तो ठीक है, सारी योजना आज ही बना ली जाये, ताकि समय रहते उस किंग्सफोर्ड को उसकी करनी का फल मिल जाये। (कुछ सोचते हुए) ... मगर इस काम मे बहुत खतरा है। जान की बाज़ी लगानी है। कौन उपयुक्त रहेगा ? तुम बताओ अरबिंदो.... ?
(बात पूरी होने से पहले ही खुदीराम बोस सीना तानकर खड़े हो जाते हैं)
खुदीराम बोस (जोश भरे स्वर में ) : मैं जाऊँगा मुजफ्फरपुर, उस पापी का अंत करने!!
अरबिंदो: मगर अभी तुम बहुत छोटे हो खुदीराम, हमारे पास और भी क्रांतिकारी हैं इस पावन कार्य हेतु ! !
खुदीराम बोस:छोटा हूँ तो क्या हुआ, मेरे सीने में आक्रोश की जो ज्वाला धधक रही है उसमें उस पापी को भस्म करने की पर्याप्त क्षमता है
बारिंद्र घोष : लेकिन अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है बच्चे..! ! मात्र अट्ठारह वर्ष... ! नहीं नहीं..!!. यह कदापि उचित न होगा। और फिर अगर तुम्ह कुछ हो गया तो तुम्हारी दीदी को क्या जवाब देंगे हम??
खुदीराम (ओजपूर्ण स्वर में) : मेरी दीदी तो हिंदुस्तान की वो बहादुर बेटी है जिसने स्वयं मुझे आज़ादी के इस पावन यज्ञ में आहूति के लिए सहर्ष भेजा है....
अरबिंदो : परंतु...??
खुदीराम ( हाथ जोड़कर ) : किंतु परंतु कुछ न कीजिये बड़े भाई, मैं फैसला कर चुका हूँ। उस पापी का अंत मेरे हाथों ही होगा।
बारिंद्र घोष : ठीक है तो...। परंतु तुम अकेले नहीं जाओगे, प्रफुल्ल तुम्हारे साथ जायेगा। क्या कहते हो प्रफुल्ल??
प्रफुल्ल कुमार चाकी (गर्व से गाते हैं ) : बांधा कफ़न है सर से हमने वतन की खातिर, माँ भारती ने देखो हमको है फिर पुकारा (हँसते हैं) नेकी और पूछ पूछ। सौ जन्म कुर्बान ऐ हिंद तुझ पर ... ! !
बारिंद्र (लम्बी सांस छोड़ते हुए) : ठीक है साथियों ! तो तय हुआ प्रफुल्ल और खुदीराम इस काम को अंजाम देंगें। कल इसी वक़्त, इसी जगह पुन:मिलते हैं नारा लगाते हैं..( वंदेमातरम्)।
क्रांतिकारियों का समवेत स्वर गूंजता है - वंदेमातरम् वंदेमातरम... ।
(दृश्य 2 - समय दोपहर)
स्थान - मिदनापुर, युगांतर संस्था का कार्यालय
(सभी क्रांतिकारी कक्ष में मेज के चारों ओर बैठकर विचार विमर्श कर रहे हैं। तभी अरबिंदो घोष तेजी से कक्ष में प्रवेश करते हैं, उनके हाथ में दो काले रंग का थैले हैं)
अरबिंदो (थैले में से दो पिस्तौल निकालते हैं) : ये लो प्रफुल्ल और खुदीराम हथियार!!! (फिर थैला खुदीराम को सौंपते हैं) यह लो खुदीराम। इसमें बम है, जो तुम्हें उस दुष्ट की गाड़ी पर फेंकना है। यह बम तभी सक्रिय होगा जब तुम इसका इस्तेमाल करना चाहोगे।
खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी आगे बढ़कर हथियार थाम लेते हैं और समवेत स्वर में नारा लगाते हैं : वंदेमातरम् वंदेमातरम्.....।
खुदीराम : ज़िंदा रहे तो जल्द ही मिलेंगे। (आगे बढ़कर सबके गले मिलते हैं)।
(अंक दो - दृश्य एक)
1908, अप्रैल, समय दिन का।
स्थान - मुजफ्फरपुर जार्ज किंग्स फोर्ड का बंगला। खुदीराम व प्रफुल्ल कुमार बंगले के बाहर, पेड़ो के पीछे छुपकर बंगले की गतिविधियों पर नज़र रखते हुए, किंग्स फोर्ड के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ ही पलों में वह सफेद कपड़े पहने बाहर निकलता है)
खुदीराम बोस : लगता है यही जॉर्ज किंग्स फोर्ड है।
प्रफुल्ल कुमार : हाँ, यही है वह दुष्ट। चलो देखते हैं, कौन सी बग्गी से बैठेगा यह किंग्स फोर्ड।
(जल्दी-जल्दी सफेद घोड़े की बग्गी पर बैठता है और बग्गी चल पड़ती है।)
खुदीराम ::तो कल का दिन तय हुआ। आओ चलें।
प्रफुल्ल : जी तो करता है कि इस पापी का अभी काम तमाम कर दूँ।
खुदीराम (प्रफुल्ल का हाथ अपने दोनो हाथों से थामते हुए) : जब इतना सब्र किया तो आज और कर लेते हैं। कल इसकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा।
(दोनों अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।)
(दृश्य 2 ,)
(स्थान: मुजफ्फरनगर 30 अप्रैल उन्नीस सौ आठ। समय 8.00 बजे। घुप्प अंधेरे में मुजफ्फरपुर क्लब के बाहर प्रफुल्ल और बोस दोनो छुपकर किंग्स फोर्ड के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हैं)1
प्रफुल्ल (बड़बड़ाते हुए) : कब निकलेगा दुष्ट बाहर।
बोस : कोई घड़ी जा रही है। बस, बाहर आने ही वाला है। पिछले चार दिन से देख रहे हैं कि वह इसी समय बाहर निकलता है।
(तभी सफेद कपड़ों में दो साये क्लब से बाहर निकलते हैं और तेजी से चलते हुए सफेद घोड़े की बग्घी में बैठ जाते हैं।)
प्रफुल्ल (तेजी से फुसफुसाते हुए) : लगता है आ गया। बोस !! जल्दी करो, बचने न पाये वो।
(दोनों पेड़ से कूदकर बग्घी के पीछे नंगे पाँव ही दौड़ पड़ते हैं और बग्घी को निशाना बनाते हुए बम फेंक देते हैं। ज़ोर के धमाके के साथ बग्घी के परखच्चे उड़ जाते हैं। दोनों कुछ पल रुककर जली हुई बग्घी के पास जाकर देखते हैं तो चौंक जाते हैं। )
प्रफुल्ल : हे भगवान! गजब हो गया। ये तो कोई और लोग हैं।
खुदीराम (निराशाजनक तरीके से सर को हिलाते हैं) : वह दुष्ट बच गया, पर कब तक बचेगा। इस बम की गूंज लंदन तक जायेगी। हिंदुस्तान का हर बच्चा प्रफुल्ल, चाकी और खुदीराम बन जायेगा तुझे मारने के लिए दुष्ट किंग्स फोर्ड! (दांत पीसते हुए)
(तभी बहुत से पद चापों की आवाज़ सुनकर दोनो क्रांतिकारी भागते हुए नारा लगाते हैं) : वंदेमातरम् वंदेमातरम्।
(चारों ओर से फायरिंग की आवाज़ आने लगती है लेकिन दोनों अंग्रेज़ सिपाहियों को मात देते हुए अंधेरे में लुप्त हो जाते हैं।)
दृश्य 3 -
बोकामा रेलवे स्टेशन (बिहार)।
1 मई, 1908 सुबह के चार बजे
(रेलवे स्टेशन पर कम लोग ही हैं। प्रफुल्ल चाकी भागते हुए रेलवे स्टेशन पर आते हैं, चेहरा गमछे से आधा ढका है। खुदीराम दूसरे रास्ते से पीछे आ रहे हैं। चार-पाँच अंग्रेज़ सिपाही सतर्कता से रेलवे स्टेशन पर मुसाफिरों पर नज़र बनाये हुए हैं।)
प्रफुल्ल (एक वेंडर से हाफंते हुए) : भाई रुको ज़रा...! यहाँ कहीं पानी मिलेगा क्या???
वेंडर(धीरे से बुदबुदाता है) : मेरा नाम त्रिगुणायत है और बारिंद्र ने आप लोगों की सहायता के लिए मुझे आपके पीछे यहाँ भेजा था। यह लो कलकत्ता का टिकट, ट्रेन आती होगी। (फिर अपनी टोकरी में छुपा कर रखे बरतन से पानी पिलाता है। इतने में ही दोनो अंग्रेज़ सिपाही दौड़ते हुए आते हैं, उन्हें देख प्रफुल्ल पानी पीना छोड़ तेज कदमों से आगे बढ़ने लगते हैं)
पहला सिपाही : ऐ, रुको ज़रा।
(प्रफुल्ल अपनी चाल और भी तेज कर देते हैं, मगर बाकी सिपाही दौड़ कर प्रफुल्ल को चारों ओर से घेर लेते हैं। स्वयं को चारों ओर से घिरा देख प्रफुल्ल अपनी कमर से पिस्तौल निकाल कर सिपाहियों पर फायरिंग कर देते हैं, तीन सिपाहियों घायल होकर नीचे गिर जाते हैं, अब पिस्तौल में आखिरी गोली बची है)।
प्रफुल्ल(कनपटी से रिवाल्वर सटाकर) : तुम जैसे पापियों के हाथों मरने से अच्छा मैं स्वयं ही मृत्यु का वरण कर लूँ। वंदेमातरम्......, वंदेमातरम्...... (कहकर ट्रिगर दबा देते हैं और धाँय की आवाज़ के साथ ही वह शेर धरती पर गिर जाता है।)
दृश्य - 4 :
स्थान मुज़फ़्फ़र पुर जेल11अगस्त 1908
(खुदीराम को हथकड़ी लगाकर फांसी के तख्ते की ओर ले जाया जा रहा है, चेहरे पर अपूर्व तेज है, सफेद धोती कुरते पहने और हाथ में भगवद्गीता लिए कुछ गुनगुनाते हुए आगे बढ़ रहें हैं।)
हाकिंस: ये इंडिया का लोग भी अजीब होता है। छोटा बच्चा भी मरने के लिए कितना खुश हो रहा है। तुमको डर नहीं लगता खुदीराम ?
खुदीराम : डर ? (ज़ोर से हंसता है) डर कैसा? यह तो मेरा सौभाग्य है कि अपनी मातृभूमि पर अपने शीश का पुष्प चढ़ाने का अवसर मुझे इतनी जल्दी मिल गया। मैं धन्य हो गया। माँ भारती......( बेतहाशा हँसता है)
हाकिंस (थोड़ा भयभीत होकर सकपका जाता है) : बस-बस। फाँसी का समय निकला जा रहा है। (थूक गटकता है) तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा ?
खुदीराम: हाँ है।
हाकिंस : क्या?
खुदीराम: जब भी जन्म लूँ, हिंदुस्तान की गोद मिले। (ऊपर की ओर देखते हुए) आता हूँ प्रफुल्ल! जेल के बाहर देख रहो हो न। कितने खुदीराम और प्रफुल्ल खड़े हैं। यह शोर सुनो चाकी, हमारी शहादत व्यर्थ न होगी। देखो, देखो, बम की गूंज कितनी दूर तक गयी है, हा हा हा !वंदेमातरम्.. ..वंदेमातरम् !हिंदुस्तान ज़िंदाबाद..!!
(फांसी का फंदा चूमकर अपने गले में डाल लेते हैं। )
हाकिंस (आश्चर्य मिश्रित भाव से) : सचमुच भारत का हर बच्चा शेर है।
(नेपथ्य में खुदीराम अमर रहे, प्रफुल्ल चाकी अमर रहे... वंदेमातरम् की आवाज़ गूंजती है। परदा गिरता है।)
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'संकेत' एवं धामपुर की संस्था 'अनिल अभिव्यक्ति' द्वारा रविवार 13 अगस्त 2023 को साहित्यिक सम्मान-समारोह का आयोजन
साहित्यिक संस्थाओं 'संकेत' (मुरादाबाद) एवं 'अनिल अभिव्यक्ति' (धामपुर) की ओर से कीर्तिशेष आशा विश्नोई की स्मृति में रविवार 13 अगस्त 2023 को साहित्यिक सम्मान-समारोह, दयानंद डिग्री कॉलेज मुरादाबाद में आयोजित किया गया जिसमें महानगर एवं अन्य क्षेत्रों के विभिन्न प्रतिभाशाली रचनाकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने की। मुख्य अतिथि सरिता लाल एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. अर्चना गुप्ता एवं प्रमोद शर्मा प्रेम मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर, अशोक विश्नोई एवं दुष्यंत बाबा द्वारा किया गया। संयोजन अशोक विद्रोही का रहा।
तीन चरणों में संपन्न हुए इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में 'संकेत' की ओर से कीर्तिशेष आशा विश्नोई जी की स्मृति में डॉ. प्रमोद कुमार प्रेम, मीनाक्षी ठाकुर, प्रो. ममता सिंह एवं मयंक शर्मा को अंग-वस्त्र एवं मानपत्र से अलंकृत किया गया। द्वितीय चरण में 'संकेत' की ओर से 'गीत रत्न सम्मान -2023' के प्रतिभागियों को अंग-वस्त्र एवं मान-पत्र अर्पित किए गए। इस वर्ग के सम्मानित रचनाकारों में डॉ. पूनम चौहान, नृपेन्द्र शर्मा सागर, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, चेतन विश्नोई, डॉ. प्रीति हुंकार, कंचन खन्ना, डॉ. अनिल शर्मा अनिल, डॉ. अर्चना गुप्ता, प्रीति सौरभ अग्रवाल, इंजी. राशिद हुसैन, डॉ. रीता सिंह, दुष्यंत बाबा एवं सत्येंद्र शर्मा तरंग को सम्मानित किया गया। तत्पश्चात् 'लघुकथा रत्न सम्मान 2023' वर्ग में मीनाक्षी ठाकुर, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ. पुनीत रस्तोगी एवं 'लघुकथा शिल्पी सम्मान-2023' वर्ग से धनसिंह धनेन्द्र, सरिता लाल अशोक विद्रोही, नृपेन्द्र शर्मा सागर, प्रियंका गहलौत, इन्दु रानी, रश्मि अग्रवाल एवं डॉ. अर्चना गुप्ता को सम्मानित किया गया।
साहित्यिक संस्था 'संकेत' की यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ रचनाकार अशोक विश्नोई ने कहा कि संस्था का लक्ष्य सदैव ही उभरती हुई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना रहा है। भविष्य में भी इस प्रकार के आयोजन समय-समय पर किये जाते रहेंगे।
कार्यक्रम के तृतीय चरण में एक संक्षिप्त काव्य संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें मीनाक्षी ठाकुर, प्रो. ममता सिंह, मयंक शर्मा, डॉ. प्रमोद कुमार प्रेम, डॉ. अनिल शर्मा अनिल, सत्येंद्र शर्मा तरंग, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, पूजा राणा, चेतन विश्नोई ,चक्षिमा भारद्वाज, सरिता लाल, डॉ अर्चना गुप्ता ने रचना पाठ किया। कार्यक्रम में योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल, संजय सक्सेना, आवरण अग्रवाल, फक्कड़ मुरादाबादी, नकुल त्यागी, राम दत्त द्विवेदी, काले सिंह साल्टा आदि साहित्यकारों सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। अशोक विद्रोही द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।
सोमवार, 14 अगस्त 2023
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 अगस्त 2023 को काव्य गोष्ठी का आयोजन
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 अगस्त 2023 को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । सरस्वती वंदना राम सिंह निशंक एवं संचालन अशोक विद्रोही ने किया ।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा ....
आज प्रातः की मधुबेला में सकल मन हरषाया।
एक बरस के बाद यह शुभ 15 अगस्त आया।
मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल ने कहा ....
दुनिया भर में घूम लो सारा जग लो छान ।
सबसे अच्छा देश है अपना हिंदुस्तान।
विशिष्ठ अतिथि के पी सिंह सरल ने कहा ....
गिद्ध सर्प अरु नेवले करें अनोखा मेल।
खेल रहे मिल बैठकर तरह-तरह के खेल।।
योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा ......
हम तुलसी कबीर के जाये सिया राम मय सब जग जानी,
ढाई आखर में ही पढ़ली हमने सारी राम कहानी।
अशोक विद्रोही ने कहा-
वो जान देके भी हमें जीना सिखा गए।
रंग दे बसंती चोला अमर गीत गा गए।
सुखदेव भगत राजगुरु चूम के फंदे
मां भारती की आरती में सिर चढा गए ।
राम सिंह निशंक ने कहा
स्वर्ग से बढ़कर धरती अपनी
छवि इसकी अभिराम है ।
सष्य श्यामला धरती इसकी
कण-कण में भगवान है ।
डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा ....
हम देश के हर फैसले पर
ऐतराज जताते हैं
और तो और
अपनी ही हार पर
जश्न मनाते हैं ।
वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने पढा .....
ज्ञानी तुम हो,ज्ञाता तुम हो अपने भाग्य विधाता तुम हो।
जिसकी पूजा करते हो तुम उसके भी निर्माता तुम हो।
राजीव प्रखर ने कहा......
अम्मा ऑंसू भूलकर, करती है ऐलान।
तारा मेरी ऑंख का, माटी पर क़ुर्बान।
ओंकार सिंह ओंकार ने कहा....
तीन रंगों से है बना, दिया तिरंगा नाम ।
झंडा हिंदुस्तान का अद्भुत इसके काम।
विवेक निर्मल ने कहा....
शहरों की आपाधापी से मन ऊबा तब यह सोचा काश हमारा भी एक छोटा सा घर होता गांव में।
कृपाल सिंह धीमान ने कहा ....
सूखे में जवां होंगे लू में मुस्कुराएंगे
हम देश के गुलशन में वह फूल खिलाएंगे
नकुल त्यागी का कहना था .....
मेरा भारत महान देश जो बंटना था बंट चुका
अब और नहीं बंटेगा।
::::::प्रस्तुति:::::
अशोक विद्रोही
उपाध्यक्ष
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति