रविवार, 14 जुलाई 2024

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का रेखाचित्र ....गौरेया


नन्ही हल्की भूरे रंग वाली काली चित्ती दार गोरैयौं ने एक अरसे से मेरे छोटे से मकान में घोंसले बना रखे हैं..शुरुआत में गौरैया का एक ही जोड़ा छत में पंखा टाँगने के लिए बने फैन बाक्स के सुराख में रहता था। शहरों मे खुले आंगन न रखने का रिवाज या बाध्यता कह लो मुझे कभी अच्छा न लगा,परंत जगह की मजबूरी कह लो या बजट , मेरे घर में भी इसी क्रम में छोटा सा मकान, जिसमें सुविधानुसार कमरे, बैठक, लाबी और प्रवेश द्वार के समीप ही थोड़ी सी जगह है, जहाँ बच्चे अपनी साइकिलें और स्कूटी आदि खड़ी करते हैं। मकान के इसी हिस्से में गौरैयों ने अपना डेरा जमा रखा है..कुछ वर्ष पूर्व मैं दीपावली पर  दो प्लास्टिक वाले हैंगिंग फूलदान ले आयी थीं,और उन्हें प्रवेश द्वार के समीप छत में लगे लोहे के कुंडो में टाँग दिया था उन फ़ूलदानों पर प्लास्टिक के  बने अनार,आम आदि फल व बेल लटक रहे हैं, जो बिल्कुल असली फलों जैसे दिखते हैं, संभवतः उन्हीं से आकर्षित होकर गौरैया के दो अन्य जोडो़ ने  भी  उन्हीं फूलदानों में अपना ठिकाना बना कर हमारे घर को और हमें अनुग्रहीत किया होगा। मकान में अंदर  आने के लिए गौरैयों ने मकान के गेट के ऊपरी हिस्से में बने क्रासनुमा लोहे के जाली दार डिजाइन को अपना आवागमन का साधन बना रखा है.मुझे बड़ा आश्चर्य होता है जब गौरैये उन छोटे- छोटे क्रास में से  होकर फुर्र से आती जाती रहती हैं,अब धीरे- धीरे  गौरैया के नौ दस जोड़े मेरे छोटे से घर की शोभा बढ़ाये हुए हैं, गौरैयों के मूक आग्रह को देखकर मैनै अपने बच्चों से गत्ते के कुछ डिब्बे बनवा कर दीवार पर टँगवा दिए जिसमें  गौरैया रहने लगीं हैं। मैने उसी जगह उनके खाने-दाने के लिए कच्चे चावल व पानी की व्यवस्था कर रखी है जिसे खाने उनकी बाहरी सहेलियाँ जो कालोनी के खाली प्लाटों मे उगी झाड़ियों में रहती हैं, वे भी आती रहती हैं।

           इतने अरसे से गौरैयों को अपने घर में चहकता देखना वास्तव में बहुत ही सुखद व आनंददायक है। प्रातःकाल चार बजे से ही इन नन्ही -नन्ही चिड़ियों की चहचहाहट शहर में बने मेरे घर को प्राकृतिक वातावरण प्रदान करने के साथ साथ, भोर के आगमन की सहज सूचना भी दे देती है। इतने वर्षों में साथ रहते -रहते, ये नन्ही चिड़ियाँ  कभी मुझे मेरी सखी- सहेली  लगती हैं तो कभी लगता है कि ये मेरे छोटे -छोटे बच्चे हैं जो भगवान ने मुझसे प्रसन्न होकर मेरे घर रहने भेज दिये, वैसे भी मुझे छोटे बच्चों से इतना प्रेम है कि मैं उस प्रेम को शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकतीं।

      इनके साथ रहते हुए मैंने अनुभव किया  कि इनकी सामाजिक रचना काफी  कुछ हम इंसानों जैसी ही होती है। नर चिड़ा, मादा चिड़िया से थोड़ा बड़ा और सुंदर होता है।उसके पंख काली चित्तियों वाले होते हैं तथा सिर से गले तक काली कंठी बनी होती है।चिड़ा थोड़ा अकड़ू व आलसी किस्म का होता है। यहाँ भी पुरुष प्रधान समाज जान पड़ता है। चिड़े को संभवतः अपनी सुंदरता  और शक्ति का घमंड होता है ,और वह चिड़िया पर हुक्म चलाना कदाचित अपना जन्मसिद्ध अधिकार  समझता है,  वह घोंसला बनाने में  मादा चिड़िया का ज्यादा सहयोग नहीं करता,और यदि कभी कोई बड़ी सी घास का तिनका या धागा अपनी चोंच में पकड़ कर कहीं से ले भी आता है तो बड़े गर्व से  चिडिया को अपने पंख फड़फड़ा कर दिखाता है मानो कह रहा हो ..देखा! तू इतने तिनके दिन भर में लायेगी जितने मैं दो बार में ही ले आया, फिर मुँह फुला कर अपना सिर पंखों में रखकर ऐसे बैठ जाता है जैसे कितने अहसान बेचारी चिड़िया पर कर दिये हों। अरे भाई! तेरा भी तो घर है,अगर तू दो तिनके ले भी आया तो कौन से पहाड़ के पत्थर ढो लिए..पर नहीं..साहब..वह तो चिड़ा है। शायद, चिड़चिड़ा भी है, खैर.!!.चिड़िया अंडे देने से कुछ दिन पहले  ही साइकिल के पास रखी मेरे घर की झाड़ू की सींक तोड़- तोड़ कर अपने घोंसले का निर्माण प्रारंभ कर देती है, साथ ही छत पर फैले हुए कपड़े  जो मैं धोकर उल्टे अर्थात सिलाई की ओर से फैलाती हूँ,उन कपड़ों के धागे अपनी चोंच से खींचने का प्रयास करती है और अक्सर वह इस कार्य में सफल भी हो जाती है । कभी- कभी घर के बाहर या छत पर पड़ा पतंग के मांझे का टुकड़ा भी उसके काम का होता है जिसे उठाकर वह बड़े यत्न से अपने सपनों का घर बनाती है। गौरैयों की इतनी मेहनत देखकर मुझे उनपर बहुत तरस आता है। एक बार  गौरैया के एक नव जोड़े को दीवार पर टँगे गत्ते के नये डिब्बे में घोंसला बनाता देख मैनै सोचा कि चलो आज मैं इनका घोंसला स्वयं बना देती हूँ.यह पिछली सर्दियों की बात है . तब मैने एक घोंसले में थोड़ी रुई व घास  व सूखे तिनके गत्ते के डिब्बे में बिछाकर सुंदर घोंसला बना दिया और  यह सोचकर मन ही मन प्रसन्न होने लगी कि  चलो आज नन्ही गौरैया भी प्रसन्न हो जायेगी।आखिर उसका भी तो मन है! जीवन में कभी तो आराम  मिले , परंतु यह क्या?? उस दिन उस घोंसले का हक़दार गौरैया का वह जोड़ा पूरा दिन और पूरी रात घोंसले में नहीं आया। बस डिब्बे के आसपास पंख फड़फड़ा कर घूमते रहे। शायद वे इंसानी गंध से भयभीत हो गए थे या फिर स्वाभिमान  था! बिना परिश्रम किए किसी और के द्वारा बनाया घर उनका अपना घर कैसे हो सकता है..!! शायद घोंसला बुनते वक़्त उन धागों में ये नन्हें पक्षी हम इंसानो की तरह सपने भी बुनते हैं.. फिर किसी और के हाथों का स्पर्श क्यों स्वीकार किया जाए..? उस दिन उन्हें घोंसले से बाहर बैठा देख मुझे बहुत दुख हुआ और निर्णय किया कि आज के बाद इनकी गृहस्थी में मैं कोई हस्तक्षेप नहीं करूँगी. मन ही मन कहा.."तुम स्वछंद ही रहो, नन्हीं चिड़ियों"और उस डिब्बे को हटाकर नया डिब्बा दीवार पर टाँग दिया।      इतने सारे घोंसलों में प्रायः  किसी न किसी घोंसले में  छोटे-छोटे गुलाबी अंडों से  चूजे बाहर निकलते ही रहते हैं तब मेरे घर में उस दिन गौरैयों का कलरव बढ़ जाता है, लगता है मानो वे आज कोई उत्सव मनाने  जा रही हों.  उस दिन उनकी बाहरी मित्र उनके बच्चों को देखने आती हैं, पूरा झुंड आकर उस घोसलें के अंदर -बाहर सब जगह बाकायदा मुआयना करता है और बहुत ज्यादा शोर मचाता  है. फिर शुरू होती है चिड़ियों की दावत। हमारी गौरैये बड़े गर्व से अपनी सहेलियों को  प्लेट  में रखे चावल खिलवाती हैं जो मैंने उनके घोंसले के नीचे रखी  एक अलमारी पर  रखी है, लेकिन उस झुंड में  से कुछ शैतान चिड़ियाँ प्लेट को अपनी चोंच से  नीचे फर्श पर गिरा देती हैं और फिर दाना  चुगती हैं, संभवतः  वे घर से बाहर रहकर बिलकुल घर के कायदे कानून न जानती हों और उन्हें प्लेट में रखे चावलों की औपचारिकता पसंद नहीं आती हो और प्राकृतिक तरीके से ही दाना चुगती हैं, यह भी हो सकता है कि  प्लेट में उनकी चोंच सहज  रूप से चावल न चुग पाती हो।

चार पाँच दिन उन बाहरी गौरैयों का बहुत आना जाना लगा रहता है, और इतना कलरव होता है कि कई बार तो बाहर सड़क पर आते -जाते लोग भी कौतूहल वश हमारे घर के आगे एक दो पल ठहर से जाते हैं।

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    जून का उमस भरा  महीना है, तकरीबन सुबह के  आठ  बजे हैं और सूर्य की किरणें गेट के ऊपरी  हिस्से से होती हुई हरे रंग  के कागज़ वाले गत्ते के बने हैंगिंग घोंसले पर तिरछी पड़ रही हैं  । आज  चिड़ा और चिड़िया की गहमागहमी बढ़ गयी है चिड़िया बहुत बोल रही है, शायद चिडे़ को कुछ निर्देश दे रही है. मुझे गौरैया का यह जोड़ा कुछ परेशान जान पड़ता है, चिड़िया बार बार घोंसले में अंदर -बाहर जा रही है. शायद गुलाबी अंडों से चूज़े बाहर निकलने वाले हैं या निकल गये हैं यह चिड़ा अन्य चिड़ों के मुकाबले मुझे ज्यादा भावुक, मेहनती और समझदार लग रहा है.कुछ चिड़े तो अंडे फूटने पर घोंसले में जाते ही नहीं, बस घोंसले के बाहर चौधरी बने बैठे रहते हैं , या चिड़िया जब बच्चों के लिए दाना चुगने जाती है तो चिड़ा घोंसले में झाँककर,चूजों पर एक नज़र डालकर अपनी कर्तव्य की इति श्री  कर लेता है, परंतु यह अपवाद  भी यहाँ  देखने को मिल रहा है। इस हरे रंग के डिब्बे वाले घोंसले का युगल आधुनिक दंपत्तियों जैसा लग रहा है।दोनों मिलजुल कर बच्चों की देखभाल में व्यस्त हो गये हैं। यह चिड़ा एक ज़िम्मेदार बाप का पूरा दायित्व अपने कंधों पर उठाये मादा गौरैया की मदद कर रहा है घोंसले में से नवजात बच्चों की महीन घुंघरू जैसी  छन- छन -छन -छन की आवाज़ आने लगी है। मैं उत्सुकता वश उचक- उचक कर बच्चों को नीचे से ही देखने का भरसक प्रयत्न कर रही हूँ, यह जानते हुए भी कि मैं इतने नीचे से इन्हें नहीं देख पाऊँगी।अचानक चिड़ा अपने पंख फड़फड़ाता हुआ घोंसले से बाहर अपनी चोंच में कुछ लेकर निकला है, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह घोंसले में कुछ लाने के बजाय घोंसलें से बाहर क्या लाया है ?मेरी आँखे उसका पीछा करने लगीं । उसने  गेट के ऊपरी किनारे पर बाहर की ओर मुँह करके बैठे- बैठे , इधर उधर देखते हुए  अपनी चोंच से वह वस्तु नीचे गिरा दी. मुझे फिर से कौतूहल हुआ, बाहर जाकर देखा तो वह कुछ- कुछ फूटे हुए अंडे के अवशेष जैसा था.मैं हतप्रभ रह गयीं... यह तो बिलकुल हम इंसानो जैसा बर्ताव करते हैं। नवजात चूजों के नीचे सफाई कार्य इतनी कुशलता से करते हुए, प्रथम बार किसी पक्षी को देखा था। वह चिड़ा कुछ देर इसी प्रकार घोंसलें से सूखी हुई बीट व अन्य कचरा उठा -उठा कर बाहर फेंक रहा था.बच्चे भूखे हो चले थे, अत: चिड़ा और चिड़ी दोनो उनके भोजन की व्यवस्था में जुट गये.मुझे  अभी तक यह पता था कि हमारी गौरैया.. हमारे द्वारा रखे चावलों को ही बस पानी में भिगो कर  नवजात चूजों को खिलाती है. कीड़े अभी उनके लिए नहीं हैं, लेकिन अभी इस घोसलें से और रहस्य बाहर आने थे.. सो आने लगे.. 

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  आज चूजों को निकले  छठा दिन हो गया था, घुंघरूओं  की महीन  आवाज़  अब थोड़े मोटे घुंघरू जैसी होने लगी है .चिड़ा उड़कर गया और कुछ ही पल में एक छोटा सा कीड़ा अपनी चोंच में पकड़ लाया था, यह चिड़ा  चिड़िया की अपेक्षा ज्यादा मेहनत क्यों कर रहा है? मेरा जिज्ञासु मन विचलित होता जा रहा था.. !अचानक घर की किचन में गैस पर रखे कूकर की सीटी ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया पर बावला मन तो गौरैया के घोसलें में अटक गया था.उसे भी तो उस घोंसलें से नीचे उतारना था, अतः मैने गैस का चूल्हा सिम करके अपने बड़े लड़के को आवाज़ दी और कहा कि लोहे की स्टैंड वाली सीढ़ी  तुरंत घोसलें के पास ले आये। लड़का सीढ़ी  तो  ले आया, पर अब प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी ओर देखने लगा कि इसका क्या करोगी?मैनै उसकी शंका भाँपते हुए कहा, "सुन! तू सीढ़ी पर चढ़कर ज़रा मेरे फोन से घोंसले के अंदर की फोटो और वीडियो बना दे! " वाक्य में आदेश कम और मनुहार ज्यादा देख वह आलस में भरकर उपदेश देता हुआ कहने लगा, "अरे मम्मी! क्या हो गया आपको, पता नहीं क्या कि गौरैये डर जायेंगीं और भाग जायेंगीं...!अपने बच्चों को छोड़कर .....फिर ज़रूरी नहीं कि वापस आये या नहीं.... बच्चों को कौन देखेगा फिर? और बच्चे ...!वे भी  तो डर जायेंगे" उसकी बात सुनकर मुझे सुखद अनुभूति हुई कि यह लड़का बाहर से ही कट्टर दिखता है.. लेकिन  भीतर से पक्षियों से बहुत प्रेम करता है. मगर फिर लगा कि यह काम करने में अक्सर ही टालमटोल करता रहता है अत: मैने कहा, "तू ज्यादा लीडर मत बन।अगर नहीं चढ़ना तो रहने दे...! मैं खुद  ही सीढ़ी पर चढ़ जाती हूँ, बस तू पकड़े रहना।"

 अब उसके चेहरे पर क्रोध मिश्रित हैरानगी थी।मानो कहना चाह  रहा हो, कि अपने वज़न का तो ख़याल करो पर शायद इसलिए नहीं बोला कि बोलता तो खुद सीढ़ी पर चढ़ना पड़ता। मैं भी ढीठ की तरह सीढ़ी पर ,अपने हाथ -पैर टूटने की चिंता किये बिना  लड़के को खरी खोटी सुनाते हुए, एक हाथ में फोन  और दूसरे हाथ से सीढ़ी पकड़ चढ़ती चली गयी..... 

     गौरैया का जोड़ा मुझे सीढ़ी पर चढ़ता देख भयभीत होकर घर के बाहर बिजली के  तार पर जा बैठा था ।मुझे भी भीतर से भय लग रहा था कि अगर लड़के की बात सही साबित हुई और गौरैये वापस न लौटीं तो इन  छ: दिन के चूजों का क्या होगा? मैं खुद को कभी माफ न कर पाऊँगी...! पर मेरे स्वार्थी मन ने चूज़ों को नज़दीक से देखने के लालच में मेरी एक न सुनी और कहा,"कुछ नहीं होगा...!ये गौरैये मेरी गंध से भली- भाँति परिचित हैं  और फिर  ये अपने चूज़ों को यूँ कभी अकेला नहीं  छोड़ सकतीं" .  अतः मै सीढ़ी के अंतिम छोर से तीसरी पायदान पर पहुँच  कर ही रुकी, वहाँ से हल्का सा उचकने  पर ही घोंसले के भीतर का  दृश्य  साफ दिख रहा था.भीतर  का नज़ारा बड़ा ही अद्भुत व चौंकाने वाला निकला,घोंसले मे एक बच्चा कुछ तंदरुस्त सा हल्के भूरे रंग में चिड़िया की आकृति वाला था और अपनी छोटी सी चोंच खोलकर हतप्रभ सा शून्य में देख रहा था । वह घोंसलें की पिछली दीवार से सटकर सहमा हुआ बैठा था, जबकि दूसरा चूजा गहरा गुलाबी रंग लिए, गत्ते के उस आयताकार घोंसले के  आयताकार आकार  के प्रवेश द्वार की बगल वाली दीवार से सटकर निढाल  सा पड़ा था.।उसकी आँखे अधखुली थीं और , शरीर पर सिर्फ गुलाबी खाल  ही दिख रही थी, मेरे लिए यकीन कर पाना मुश्किल था कि चिड़ियों के अंडो में से भी प्री मैच्योर बेबी(  चूजा) निकल सकता है..मुझे सीढ़ी पर चढ़े हुए आधा मिनट हो चुका था,बाहर तार पर  बैठी गौरैयों  के सब्र का बाँध टूट रहा था और..अब वे आक्रामक अंदाज में शोर  मचाने लगीं, मैने जल्दी- जल्दी वीडियो  बनानी शुरू ही की थी कि गौरेये अंदर आ गयीं और शोर मचाती हुई मेरे और लड़के के पास गोल -गोल चक्कर  काटने लगीं

चिड़िया घोंसले में जाकर शोर मचाने लगी  और चूजों की चोंच से अपनी चोंच मिलाकर पुचकारने लगी परंतु चिड़ा अब भी गोल चक्कर काट रहा था. संकट के समय गौरैयों की एकता और शक्ति देखते ही बनती है और ये अक्सर भय और संकट की स्थिति में अपने पंखों को तेजी से फड़फड़ाते हुए गोल- गोल  चक्कर काटने लगती हैं, खासतौर पर उस वक़्त जब मामला इनकी संतति से जुड़ा हो 

इसी क्रम में  चिड़ियों की सूझबूझ और बहादुरी  से जुड़ा एक मजेदार  किस्सा मुझे याद आ गया,पिछली गर्मियों में हमारे  गेट के ठीक बगल की दीवार पर अंदर की ओर गेट से सटे  एक लकड़ी के  बाॅक्स वाले घोंसले में गौरैया ने अंडे दिये लेकिन उनमें से एक अंडा मैने अपने घर की बाहर वाली पैड़ी पर फूटा हुआ देखा.अब मुझे बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि ये अंडा बाहर कैसे पड़ा हुआ है, बच्चों की पहुँच से  तो घोंसला दूर था और दूर न भी होता तो वे कदापि ऐसा न करते क्योंकि वे जानते हैं कि इन गौरैयों में मेरे प्राण बसते हैं, चिड़िया अपना अंडा खुद फोड़ेगी नहीं और अंडा यहाँ बंद गेट से उड़कर बाहर जायेगा नहीं। अत:जासूसी के सारे प्रपंच शुरू  हुए, मैं और मेरे बच्चे लगातार घोसलों पर निगरानी बनाए हुए थे, परंतु हाथ कुछ न लग रहा था, अगले दिन  फिर  एक अंडा घर के बाहर फूटा हुआ मिला.उधर गौरैयों ने भी पूरा दिन करूण क्रंदन  किया  तो अंडे चोर का  पता  लगाना  तो  अब जीवन -मरण का प्रश्न बन चुका था, धैर्य अपनी सीमाएँ लांघ चुका था,लिहाज़ा मैनै अपनी दोपहर की प्रिय निद्रा का त्याग किया और अंडे चोर का पता लगाने में जी जान लगा दी,अगले तीन घंटे में ही वह अनोखा  चोर हाथ आ चुका था, जो लगातार रंग बदल -बदल कर चोरी कर रहा था।

  यह एक शातिर गिरगिट था, जो मेन गेट पर किये गये  काले और सुनहरे रंग जैसा दोरंगा  होकर चुपके  से गेट के ऊपरी किनारे से   होता हुआ घोंसले में घुसकर अंडे चुरा रहा था. उसने अपना मुख काला और पूँछ सुनहरी कर रखी थी.खैर बड़ी मुश्किल से चोर पकड़ा गया....   बच्चों ने हल्के ढेलों और एक डंडे से की सहायता से उसे हटाकर दूर भगा दिया मगर उसके  मुँह अंडे लग चुके थे.अत: दो दिन बाद फिर आ धमका. परंतु  हमारे द्वारा उसे भगाने की चेष्टा में अब गौरैये भी उसका भेद जान चुकी थीं, इस बार उन्होंने खुद ही चोर को सबक सिखाने का निश्चय किया और एक साथ पाँच छ गौरैयों ने मिलकर जो उसके शरीर पर ठूंँगें मारी तो गिरगिट  सिर पर पैर रखकर ऐसा भागा कि फिर दोबारा नहीं लौटा।

 अत: मुझे लगा कि गौरैयों ने अगर  अपनी चोंच से ठूँग  मारनी शुरू कर दी तो यह लड़का  तो सीढ़ी छोड़कर भाग जायेगा और फिर न सोचेगा कौन माँ और कैसा बेटा? ,हालांकि सीढ़ी स्टैंड वाली थी, फिर भी संतुलन  बिगड़ने का डर था, लिहाज़ा मैं भी फुर्ती से नीचे उतर गयीं.

   खैर...उस प्री मैचयोर  चूजे को देखकर चिड़े का इतना कठिन परिश्रम करने का रहस्य समझ आने लगा था, साथ ही घोर आश्चर्य भी हो रहा था कि इनके पास कौन सा डाक्टर है जिसने इन्हें बताया होगा कि इस अपरिपक्व चूजे को  जन्म के तुरंत बाद प्रोटीन की  सख्त़  ज़रूरत है.   हालाँकि  गौरैये भी अन्य पक्षियों की तरह सर्व हारी जीव हैं, परंतु बिगड़ते पर्यावरण में प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने से कीड़े- मकौड़े अब इन्हें सर्वसुलभ नहीं रह गये हैं.

अमूनन मेरे घर की  गौरैये बच्चों को जन्म के तुरंत बाद  घर में उपलब्ध कच्चे चावल पानी में भिगो कर या पके हुए चावल ही खिलाती हैं, और कीड़े लाने में अधिक परिश्रम नहीं करती है ,परंतु  गौरैया का ये वाला जोड़ा  प्री मैच्योर बच्चे को अधिक शक्ति शाली बनाने हेतु जन्म के तुरंत बाद अथक  परिश्रम से कीड़े ला -लाकर खिला रहा था।

इन पंद्रह वर्षों के अनुभव में मैनै पाया कि हर घोंसले के जोड़े का व्यवहार परिस्थितियों के अनुरूप भिन्न था.परंतु अंडे फूटने पर प्रत्येक गौरैया माँ का कठोर परिश्रम एक समान ही होता है। वह अपनी छोटी सी चोंच में एक साथ बहुत सारे दाने लाती है और पानी भी अपनी चोंच में एक साथ भर लेती है, फिर अपने बच्चों को खिलाती है.वह नन्ही सी जान पूरा दिन अनवरत यही उपक्रम करती रहती है।

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      चिड़िया के ये चूजे बड़े ही शैतान और नखरे बाज़ हो चले हैं,  शाम हो चुकी है, मानसूनी हवा चल रही है.आसमान में डूबते सूरज की लाली उतरने में अभी समय है. गौरैया  घर में रखे अनाज के दानों को छोड़कर,  घर से बाहर कुछ लेने गयी है, कदाचित रात्रि के भोजन की व्यवस्था करने गयी है और चिड़ा  अपने घोंसले के ठीक सामने की दीवार पर टँगे  दूसरे  ( गत्ते के )घोंसले की छत पर बैठा बच्चों की निगरानी कर रहा है. लगभग दो -तीन मिनट बाद चिड़िया अपनी चोंच मे एक  बड़ा सा हल्के लाल रंग का कीड़ा पकड़े हुए आयी और  कीड़े को  चोंच में दबाये हुए ही  चींचीं  की विचित्र आवाज़ निकालते हुए घोंसले में घुस गयी,उसे देखते ही बच्चे एक दूसरे को धकियाते हुए अपना छोटा सा मुँह चिड़िया के आगे खोल कर *छन छन छन छन छन*का शोर मचाने लगे हैं, मानो कह रहे हैं *पहले मुझे... पहले मुझे*..! चूज़ों की यह आपाधापी  कई बार उनके लिए जानलेवा सिद्ध हो जाती है.अक्सर एकाध चूजा नीचे गिरकर मर जाता है या घायल हो जाता है। वह स्थिति मेरे लिए बहुत ही कष्टकारी हो जाती है। बहरहाल.. चिड़िया ने जब पहले वाले चूजे के मुँह में कीड़ा दिया तो या तो  ज्यादा बड़ा होने के कारण उससे खाया नही गया या उसका स्वाद उसे पसंद नहीं आया  लिहाज़ा चिड़िया ने दूसरे चूजे को वह कीड़ा ऑफर किया तो उसने भी मुँह फेर लिया है, इस बार मैं कुर्सी पर खड़े होकर दूर से ही यह अद्भुत नज़ारा  देख रही हूँ..और भावविभोर हो रही हूंँ.

लेकिन  चिड़िया को  अपने बच्चों का यह नखरा ज़रा भी अच्छा नहीं लग रहा है, वह कीड़ा लिए- लिए ही चिड़े की बगल में जा बैठी है और ज़ल्दी जल्दी  कुछ कह रही है,"चिंचिंचि चिंचिंचिं चिंचिंचिं... देख लो भई...और क्या खिलाऊँ इन्हें मैं..?"चिड़े ने चिड़चिड़ाते  हुए हल्का सा चींचीं  किया .मानो कह रहा हो, ""नहीं खा रहे हैं तो मैं क्या करूँ... ?कुछ और ले आ फिर...!! " मगर चिड़िया बहुत गुस्से में  है और बड़बड़ाती हुई फिर से घोंसले मे घुस गयी... बच्चों ने फिर इंकार कर दिया... " इस बार चिड़िया  गुस्से में चिल्लायी "*चींssssssss*" आज यही मिला है.!चुपचाप खा लो!" लेकिन बच्चे शायद बहुत मुँह ज़ोर हो गये हैं, और शोर मचाते हुए कह रहे हैं, "छनछनछनछनछनछन.... नहीं खाना... !नहीं खाना..!. "  पर चिड़िया भी कीड़े को छोड़ना नहीं चाह रही है संभवतः सोच रही है कि इतनी मुश्किल से तो आज यह तगड़ा शिकार मिला है... और इनके नखरे तो देखो..! ".मैनै इस अद्भुत नज़ारे को भी अपने फोन के कैमरे में कैद कर लिया है..

   मुझे कुरसी पर खड़े लगभग आधा घंटा हो चुका है... चिड़िया अब तक कीड़ा चोंच में दबाए घोंसले के तीन चक्कर काट चुकी है...इस बीच मेरे तीनो लड़के मेरे पीछे खड़े हुए धीरे धीरे आपस में कह रहे हैं " "लग रहा है मम्मी   चिड़ियों के पीछे पागल हो गयी हैं ...! परसों  सीढ़ी पर चढ़ गयी थीं और अब कुरसी पर खड़ी हो गयीं हैं जब  नीचे गिरेंगीं  तब पता चलेगा... !"तभी छोटा  ज़ोर से चिल्लाया "अरे मम्मी!अब उतर भी जाओ..!..गिरोगी क्या?" उसकी यह बात सुनकर इस बार मैने उसे  डाँटा नहीं,बस धीरे से मुस्कुराते हुए, कुर्सी से उतर गयी और हौले से बुदबुदायी,"हम्म... !"और सोचने लगी सही तो कह रहा हैं शायद! पागलपन और अति भावुकता में बहुत थोड़ा सा ही  तो अंतर होता है। घोंसले से आती छनछनछन की तीव्र आवाज़ से पूरे घर में गूँजने लगी है... 

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

 मिलन विहार

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना है दीदी
    ऐसी ही एक रेखा चित्र पिछले वर्ष मैने लिखा था

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