1. आदर्श चरित्र शुभ सदाचार
धर्म अर्थ काम मोक्ष पुरुषार्थ
प्रत्येक सद्कर्म करना निस्वार्थ
उदारता अपनाना मानवता
साधनवान कृपण प्रवंचना
परस्पर प्रेम करुणा साधना
आपस में सहयोग उपासना
सत्य असत्य समझना विवेक
वर्जनीय पथ सदैव निषेध
यम नियम निर्वहन उत्कृष्ट
इन्द्रिय संयम विहीन निकृष्ट
कम कामना वाला शीघ्र सन्तुष्ट
अतृप्त इच्छाएँ करती रुष्ट
जीवन निर्वहन विधि अनुसार
काम क्रोध लोभ मोह अन्तर्विकार
निन्दनीय बना देते व्यवहार
आदर्श चरित्र शुभ सदाचार
विकार विहीन पुरुष उत्तम
कुसंगी व्यसनी दंभी अधम
चिन्तन मनन एंकात अभ्यास
स्वयं के परिमार्जन का प्रयास
आत्मावलोकन से क्षीण स्व -दोष
निर्मल साधक प्रिय आशुतोष
निज को सुधारना जीवन ध्येय
गोविन्द स्मरण दिव्यानंद पेय
2. सनातन धर्म के मूल सिद्धांत
सनातन धर्म के मूल सिद्धान्त
दृढ़तम आस्था विश्वास अभ्रान्त
परमपिता परमेश्वर महान
उत्तमोत्तम विज्ञान आत्म -ज्ञान
वेद शास्त्र परमेश्वर की वाणी
द्वैत में अद्वैत देखता आत्म -ज्ञानी
सत्य प्रेम दया मय व्यवहार
सदा सात्विक संयमित आहार
शम - दम से इन्द्रियाँ नियंत्रित
मन आत्म कल्याण पर केंद्रित
मन-बुद्धि चित्त पूर्णतः पवित्र
सर्वोत्तम धन केवल चरित्र
मानव जीवन कर्तव्य प्रधान
पूर्व जन्म कृत कर्म परिणाम
सुख -दुख सब विधि अनुसार
संसार दुखालय, न बिसार
परिमार्जित रखना वर्तमान
निरन्तर कर्म -साक्षी भगवान
परहित कर्म कारक कल्याण
पर पीडा़ पाप मानते धीमान
सेवा सहायता करना धर्म
सदैव देखना चेतन ,न चर्म
काम -क्रोध-लोभ मोह दानवीय
गोविन्द ,चलाना पथ मानवीय
3. मन मन्दिर के सुदृढ स्तम्भ
परिवार की शोभा आज्ञाकारिता
आदर स्नेह मिश्रित मधुरता
सनातन वैदिक सामाजिकता
शोभित नैतिकता आध्यात्मिकता
आदर्श अनुसरणीय परम्परा
आनंदमय व्यवस्था इस धरा
वंदनीय अवध के चारों भाई
त्रेता में आज्ञाकारिता अपनाई
मुदित हर्ष विषाद में तरस्थ
वैदिक सिद्धांत पालन अभ्यस्त
राम लखन भरत शत्रुघ्न
उनके चरित्र का अभिवादन
निज भवन स्थापित रघुराई
सर्वत्र दिव्यानंद लहर छाई
आनंदित सब सनातनी भाई
नवीन युग की आशा गहराई
भारत भर में बाल युवा वृद्ध
अब अपने सौभाग्य पर मुग्ध
गोविंद अनुकंपा से घड़ी आई
वक्षु विग्रह दर्शन को ललचाई
राम भक्तों का सपन हुआ सच्चा
प्रमुदित भारत का बच्चा- बच्चा
हो गया नवीन युग का प्रारम्भ
राम मन मंदिर के सुदृढ स्तम्भ
4.श्रद्धा से श्रम, उपलब्ध प्राप्तव्य
केवल उदर भरना न ध्येय
भोग संलिप्तता निदंनीय हेय
पशुन्सा जीवन उपेक्षणीय
मानवीय सद्गुण आदरणीय
बिन दिव्यानन्द जीवन निस्सार
आनन्द स्रोत जीव- जीव से प्यार
मुदिता पथ प्रसन्नता प्रसार
अपना चितंन अवश्य सुधार
परमात्मा अनवरत उदार
सतत मानना उसका आभार
प्रार्थना आध्यात्मिकता का आधार
विनम्रता उपजाती नमस्कार
अवगत हो कर्मठता का महत्व
प्रमाद विहीन करना कर्तव्य
निगम शास्त्र समझाते ज्ञातव्य
श्रद्धा से श्रम, उपलब्ध प्राप्तव्य
सहज उपाय कल्याण करण
अविस्मृत रहे गोविन्द स्मरण
रहना आदर्श पुरुष शरण
स्वाभाविक होगा सदाचरण
आत्मोन्नति हेतु नियम - संयम
अवश्यमेव हेतु एकांत मे मनन
मनुज जीवन हेतु ईश - नमन
आनंद सागर मे अवगाहन
5. आनन्द हेतु जीवन उपलब्ध
मृग रेणु को समझना सरिता
दूर पर्यंत निरर्थक दौड़ता
आशा की आशा में मिलती निराशा
व्यर्थ परिश्रम रहता प्यासा
दुखद करना कामना असीम
स्मरण रहे प्राप्त आयु ससीम
कैलास पर बिराजे आशुतोष
बतावें सर्वोत्तम धन संतोष
प्रारब्ध से समझौता हितकर
अत्यंत अभिलाषाएँ मतकर
आनंद हेतु जीवन उपलब्ध
विमूढ़ न उचित रहना क्षुब्ध
ईश वश सफलता -असफलता
परिश्रम करना ही प्रसन्नता
परिस्थितियाँ उपजाता विधाता
यथावत को स्वीकारना सिखाता
सकल जीवन एक पाठशाला
अनुभव पाने हेतु कर्मशाला
अवश्य खोजना सद्गुरु वरिष्ठ
अवधेश को उपलब्ध वशिष्ठ
सदैव सत्संग प्रदाता सद्ज्ञान
सर्वेश्वर परमेश्वर महान
विनम्रता पूर्वक करना कर्म
गोविंद स्मरण उपकारी धर्म
6. देखना जगत लीला नत माथ
बैठना प्रशांत चर्म -चक्षु -बंद
होगा आभास आनंद अविलंब
अन्तर्मन उपस्थित उपवन
जहाँ प्रफुल्लित विविध सुमन
प्रवाहित सुहानी मंद पवन
व्याप्त चहुँ ओर अद्भुत सुगंध
मन पशु बंधा संयम की डोर
अनुपम कृपा अवध किशोर
चंचल इन्द्रियाँ अब न स्वतंत्र
अब परतन्त्र एकाग्रता मंत्र
संसारी हल -चल अब समाप्त
अन्तर्भवन परमानंद व्याप्त
जगत नहीं जगदीश दर्शन
भाव विभोर नित्यानंद नर्तन
अच्युत चलाते अर्जुन का रथ
रथी अविचलित स्वस्थ तटस्थ
जन्म -मृत्यु लाभ हानि ईश हाथ
देखना जगत लीला नत माथ
गोविंद प्रदत्त सब उपहार
निस्वार्थ प्रयोग सहित आभार
सकल संसार स्वामी अंतर्यामी
एकमात्र विमूढ ही अभिमानी
शाश्वत सिद्धांत पालक सद्ज्ञानी
विषय भोगी निरंतर अज्ञानी
7. विवेकी साधक स्वयं को सुधारता
नियम पूर्वक बैठना एकांत
मन बुद्धि चित रखना प्रशांत
हितकर सदा अपनाना मौन
कभी न पूछना कहाँ, कैसे,कौन
चिंतन मनन का करना अभ्यास
अवश्य होगा दिव्यता का आभास
एक इष्ट पर हो ध्यान केंद्रित
पाओगे स्वयं को अति आनंदित
कर्म सत्य प्रेम न्याय आधारित
रखता सबको सदैव मुदित
सदाचार व्यवहार का आधार
स्वार्थ वशीभूत न बने व्यापार
शरीर उपलब्ध उद्यम हेतु
परस्पर सद्कर्म कल्याण सेतु
सर्व साक्षी निरंतर निहारता
विवेकी साधक निज को सुधारता
गंभीरता से आत्म -अवलोकन
आनंद सागर में अवगाहन
सद्गुण सद्विचार का आवाहन
निंगम शास्त्र सिद्धांत निर्वहन
सोचना स्वामी ने क्यों भेजा इस देश
सेवक दृष्टि मे रखना उद्देश्य
अकल्याणकारी भोग संलिप्तता
कल्याणी गोविंद स्मरण सात्विकता
8. कर्म संपादन पूजन चेतन
सांसारिक कर्म बने आध्यात्मिक
तामसिक राजसिक बने सात्विक
देवालय समान हो कर्म - क्षेत्र
चिंतन मनन से चुनना श्रेष्ठ
कर्म का प्रेरक मन -विचार
सत्संग से मन - विचार सुधार
कर्म को समझना देवों उपासना
श्रद्धापूर्वक कर्म ही आराधना
कर्म साधना, साध्य परोपकार
प्राप्त साधन गोविंद उपहार
निज श्रम पर व्यर्थ अंहकार
परिणाम छिपा गर्त अंधकार
कृषक बोता बीज पाता उत्पाद
आशा में करता सर्वेश्वर याद
अनवरत रहना सावधान
कर्म में स्मरण रहे भगवान
अर्जित संपत्ति नहीं जाती साथ
पदार्थ विसर्जन हो नत -माथ
कर्म ही पूजा अर्चना जगन्नाथ
कर्म फल न मिलता हाथों हाथ
प्रत्येक कर्म को समझना पूजा
सनातन धर्म सिद्धांत अनूठा
आत्मा का वास शरीर निकेतन
कर्म संपादन पूजन चेतन
9. आसन - प्राणायाम दैनिक कर्तव्य
मुदित - मन मनाना योग -दिवस
सदा विलुप्त प्रमाद अमावस
अंग - प्रत्यंग चेतन प्रफुल्लित
नित्यानंद प्रदायक उल्लसित
अष्ट प्रहर प्रकाशित पूर्णिमा
विलुप्त सकल विकार कालिमा
अपनाया संतुलित अल्पाहार
हो गया अन्त : करण निर्विकार
स्वागत करती भास्कर रश्मियाँ
खिलती मन उपवन की कलियाँ
हितकर गुरुदेव उपदेश
सहज सात्विक वेष -परिवेष
अरुचिकर संसारी आडंबर
नीचे वसुंधरा ऊपर अंबर
पल-पल अनुभव प्रसन्नता
अनुपम अनुकंपा जग - पिता
अब अवगत जीवन महत्व
आसान प्राणायाम दैनिक कर्तव्य
समक्ष प्रकट अपना गन्तव्य
दिव्य प्रकाश ने दर्शाया मनुष्यत्व
तन - मन स्वस्थ कल्याण कारक
दंभ अज्ञान अंधकार मारक
गोविन्द, आभार प्रति गुरुदेव
हृदय देवालय में महादेव
10. जग -हित हेतु सत्य न बिसार
जग - हित हेतु शुभ्र हिमालय
जग - हित हेतु दिव्य देवालय
जग - हित हेतु कविता सरिता
जग - हित हेतु मयंक सविता
जग - हित हेतु सिंधु सरोवर
जग -हित हेतु हरित तरुवर
जग - हित हेतु पावन पवन
जग - हित हेतु वसुधा गगन
जग -हित हेतु वेद उपनिषद
जग -हित हेतु साहित्य विशद
जग -हित हेतु ब्रह्मा, विष्णु ,महेश
जग -हित हेतु सरस्वति गणेश
जग - हित हेतु साधक संतन
जग - हित हेतु जीवात्मा वंदन
जग हित हेतु चिंतन - मनन
जग - हित हेतु आनंद स्पन्दन
जग हित हेतु कल्याण कामना
जग -हित हेतु मंगल प्रार्थना
जग -हित हेतु दिवस - रजनी
जग -हित हेतु जनक - जननी
जग - हित हेतु स्वयं को सुधार
जग - हित हेतु सत्य न बिसार
जग -हित हेतु संसार निस्सार
जग - हित हेतु गोविंद ही सार
11. स्वयं ही जनक स्वयं ही जननी
ईश्वर ने देखा अद्भुत सपना
साकार हो गई उसकी कल्पना
स्वयं खेलने वाला स्वयं खिलौना
चेतन निर्मित आत्मज सलोना
निराकार के लिऐ विविध आकार
सकल संसार का वही आधार
स्वयं ही जनक स्वयं ही जननी
स्वयं ही मित्र बंधु भाई भगिनी
स्वयं ही आराध्या आराधना
स्वयं ही साध्य साधक साधना
स्वयं ही करते सतत उद्यम
स्वयं ही धरातल पर उत्तम
स्वयं रंगमंच स्वयं अभिनेता
स्वयं सामग्री के क्रेता विक्रेता
स्वयं ही भोज्य पदार्थ स्वयं भोक्ता
स्वयं ही भाषा भाषण श्रोता वक्ता
स्वयं ही संसार के दृश्य पदार्थ
स्वयं ही प्रत्येक कर्म परमार्थ
स्वयं का कोष संसार की संपदा
स्वयं ही हरत जगत विपदा
स्वयं का न कोई आकर स्वरूप
स्वयं स्त्री -पुरुष सुंदर कुरूप
ईश्वर स्मरण आत्म जागरण
गोविंद विस्मरण सदा मरण
✍️ कृष्ण दयाल शर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9756589980
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें