रविवार, 14 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख ....जीवन के सत्य और ज्ञान के साधक ....। यह प्रकाशित हुआ है डॉ महेश दिवाकर द्वारा संपादित कृति ...साहित्यकार योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई अमृत महोत्सव ग्रंथ में । इस कृति का लोकार्पण रविवार 14 जुलाई 2024 को पंचायत भवन में आयोजित भव्य समारोह में हुआ ।


शांति और सद्भाव के पक्षधर, सत्य के दर्शन के अभिलाषी, कर्मयोगी, साहित्य साधना में रत श्री योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई का सम्पूर्ण काव्य सृजन सत्य और ज्ञान की साधना है जिसमें जीवन के विविध रंगों के दर्शन होते हैं। उनके गीतों में जीवन के सुख-दुख, हर्ष विषाद आशा निराशा की सहज अभिव्यक्ति है । उनकी रचनाओं में जहां जीवन का कटु यथार्थ है वहीं सामाजिक विषमताओं विसंगतियों को भी उन्होंने काव्य के माध्यम से उजागर किया है। राष्ट्रवाद भी उनकी अनेक रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है तो कहीं-कहीं वह जनवादी मूल्यों को भी उजागर करते हैं।

     जीवन की समस्याओं, दुख और पीड़ाओं को वह अभिव्यक्त तो करते हैं लेकिन निराश नहीं होते वह आशाओं के दीप जलाते हुए ईश्वर की परम सत्ता को स्वीकारते हैं और अध्यात्म की ओर उन्मुख हो जाते हैं। वह मन का संबल जुटाते हुए, जीवन में चुभने वाले प्रश्नों का हल खोजते हैं। वह कहते हैं दुख हमें इस नश्वर जग का सत्य स्वरूप दिखाता है। वह हमें बताता हैं कौन अपना है और कौन पराया है। वह आह्वान करते हैं पुण्य को संवारने का, अपने कर्म को सुधारने का, सेवा– भाव– समर्पण से मन के निर्मल भावों को जगाने का । उनका मानना है कि इस क्षणभंगुर जीवन का एक पल भी हमें बेकार न करते हुए खुश होकर जीना चाहिए। वह कहते हैं मनुष्य का जन्म तभी सार्थक है जब वह अपने मन का मैल धोकर सत्कर्मों की ओर प्रेरित हो और सद् व्यवहार से समरसता की पावन रसधार बहाता रहे क्योंकि सेवा, समर्पण और सद्भावना से परिपूर्ण जीवन जीना ही उसकी पहचान है। अपने काव्य सृजन के संबंध में वह स्वयं कहते हैं..... अपने काव्य सृजन के संबंध में श्री विश्नोई जी स्वयं कहते हैं

 

गीत नहीं ये समाधान है, 

 जन-जीवन की उलझन के। 

 ध्यान पूर्वक पढ़ो तो समझो,

 मानस मूल्य समर्थन के ।।


शब्द-शब्द में उस विराट की, 

भावभीनी है गंध भरी। 

जिसकी दया दृष्टि पाने को, 

भजते योगी, जपी- तपी ।।


उसी ज्योति की शुभ्र किरण

 पंक्ति-पंक्ति में बिखरी है। 

 अन्तर मन का तम हरने को 

 भावलोक से उतरी है ।।


भाव प्रसूनों की माला है, 

ज्ञान ध्यान से, जपी गई।

सहज पार करने भव सागर, को 

मोक्ष द्वार से लगी हुई ।।




✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें