मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम द्वारा हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार 13 सितम्बर 2025 को सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार श्रीकृष्ण शुक्ल को संस्था की ओर से 'हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान' से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप श्री शुक्ल को अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिह्न एवं श्रीफल प्रदान किए गए।प्रदत्त मानपत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।
दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि राजीव सक्सेना एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. चन्द्रभान सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन जितेन्द्र जौली द्वारा किया गया।
सम्मानित रचनाकार श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन करते हुए राजीव 'प्रखर' ने कहा कि पुरुषोत्तम शरण शुक्ल एवं सरला देवी शुक्ल के कुल दीपक के रूप में 30 अगस्त 1953 को मुरादाबाद में जन्में श्री कृष्ण शुक्ल ने अपने उत्कृष्ट रचनाकर्म एवं साहित्यिक अवदान से मुरादाबाद को गौरवान्वित किया है। बचपन से ही परिवार एवं परिवेश से मिले संस्कारों ने आपको संस्कृति एवं साहित्य की ओर आकर्षित किया। आपका गद्य-लेखन कार्य छात्र जीवन से ही आरम्भ हो गया था । आपकी गिनती निसंदेह आध्यात्म एवं शिष्ट व्यंग्य के श्रेष्ठ रचनाकारों में की जा सकती है। व्यक्तिगत रूप से मेरा आदरणीय शुक्ल जी से परिचय लगभग 10 वर्ष पूर्व डॉ. मनोज रस्तोगी द्वारा स्थापित एवं संचालित प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' के माध्यम से हुआ।
समारोह में रचना पाठ करते हुए श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा -
सोच जरा क्या खोया तूने, सोच जरा क्या पाया। धन वैभव के ही चक्कर में, जीवन व्यर्थ गंवाया। अंतिम पल भी यह धन तेरे किंचित काम न आया।"
कार्यक्रम में वर्तमान में हिन्दी की स्थिति को लेकर विचार मंथन भी हुआ हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेश 'दिवाकर' का कहना था कि आज हिन्दी की स्थिति पिछले वर्षों में निश्चित रूप से बेहतर हुई है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के उत्थान हेतु सतत प्रयास जारी हैं। आशा की जाती है कि हिन्दी शीघ्र ही राष्ट्रभाषा घोषित होकर संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा अनुसूची में स्थान बनायेगी।"
ओंकार सिंह ओंकार के अनुसार "हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर श्रीकृष्ण शुक्ल जी का सम्मान अत्यंत हर्ष का विषय है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।"
योगेन्द्र वर्मा व्योम के अनुसार -"श्री शुक्ल जी का सम्मान हर उस व्यक्ति का सम्मान है जो संस्था के संस्थापक एवं हिन्दी के प्रति समर्पित रहे स्मृति शेष राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' जी के पदचिन्हों पर चलता है एवं उनके द्वारा स्थापित साहित्यिक मूल्यों में आस्था रखता है।"
कार्यक्रम में राजीव 'प्रखर', हरि प्रकाश शर्मा, दुष्यंत बाबा, नकुल त्यागी, योगेन्द्र वर्मा व्योम, कमल शर्मा, समीर तिवारी, डॉ महेश 'दिवाकर', डॉ. मनोज रस्तोगी, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, रघुराज सिंह निश्चल, ओंकार सिंह ओंकार, आवरण अग्रवाल, रवि चतुर्वेदी, विवेक निर्मल आदि साहित्यकारों ने भी श्रीकृष्ण शुक्ल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार व्यक्त किये। नकुल त्यागी ने आभार अभिव्यक्त किया।
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