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बुधवार, 25 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के कृतित्व पर केंद्रित डॉ कंचन प्रभाती का आलेख -- कैलाश जी के गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव



"प्रीति है आराधना भगवान् की, 
प्रीति का प्रत्येक क्षण अनमोल है !"

यह हैं  साहित्य-मर्मज्ञ, उद्भट विद्वान् और हिन्दी के प्राणवन्त गीतिकार श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल की पंक्तियां। प्रीति-जैसा सुकोमल, भाव जैसा गम्भीर, मदुभाषी किन्तु स्वाभिमान का धनी, गेहुँआ रंग, अनुभव एवं आयु की प्रगाढ़ता को साफ दर्शाता झुरियों पड़ा चेहरा, ऊँची नाक, चौड़ा ललाट, एवं सिर के सफेद बाल ......व्यवहार, स्वभाव में सादगी किन्तु गाम्भीर्य की साक्षात् प्रति मूर्ति, बंद गले का कोट और पेंट, सिर पर टोपी, गले में मफलर, एक साधारण सभ्य नागरिक की छाप । यह था  गीतिकार श्री कैलाश जी का व्यक्तित्व, जो हिन्दी-काव्य में अपनी अद्भुत विशेषता एवं महत्ता रखता है। वे मानव-हृदय- मर्मज्ञ, रससिद्ध, मधुर गायक, भावधनी एवं युग-प्रबुद्ध सन्देश-वाहक थे।

कैलाश जी का व्यक्तित्व 'प्रीति' के बिना कुछ भी नहीं है। यही प्रीति' उनके गीतों में व्यथा, दुःख, पीडा, दर्द, वेदना विकलता, टीस, छटपटाहट आदि विविध रूप
धारण कर आयी है,जिस प्रकार से पतित पावनी गंगा में आकर विविध नाले नालियां आत्मसात् हो जाते हैं और दृष्टिगोचर होती है केवल गंगा की पवित्रता, उसका मोहिनी रूप तथा कल-कल निनादिनी गंगा का छल-छल करता बहता निरन्तर निर्मल जल..... ठीक उसी प्रकार उनके गीतों में बहती प्रीति की गंगा, जो व्यथा दुःख, पीडा, दर्द, वेदना, विकलता, टीस, छटपटाहट आदि मानवीय अहसासों को स्वयं में आत्मसात् कर निरन्तर अपने पाठकों एवं श्रोताओं को स्वस्थ एवं पवित्र मनोरंजन-जल ही नही प्रदान करती है, अपितु उनके हृदय-पक्ष को भी प्रभावित करती है। पाठक हो, अथवा श्रोता उनके गीतों का रसास्वादन कर सब-कुछ भूल जाता है, और प्रेम-प्रेममय हो जाता है। उसे कुछ अन्य चाहना भी नहीं रहती है। उसके अन्दर का कल्याण कहीं दूर भागने लगता है। कैलाश जी के गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव है। 'कविता' सीधे उनके जीवन से फूटकर आयी है। यह उनके जीवन की अनिवार्यता थी, विवशता थी, यानी उनके जीने की शर्त, जो प्रीति का रूप धारण करके विविध रूपों में फूट पड़ी। वे स्वयं कहते हैं-

मैं ये गीत नहीं लिख पाता, 
अगर न मिलता प्यार तुम्हारा !"

श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल का व्यक्तित्व और कृतित्व परस्पर असंपृक्त नहीं हैं । उनका व्यक्तित्व निष्कपट और निश्छल है । वे क्या सोचते हैं ? उनकी भावना क्या है? यह उनके गीतों से तो स्पष्ट है ही, साथ ही उनके चेहरे से भी स्पष्ट है । उनके पास किसी प्रकार का कोई आवरण भी नहीं है, इसीलिए वे लोकप्रिय न बन सके । उनके 'जीवन-परिचय' से यह बात स्पष्ट है । उन्होंने जो पथ चुना है, वह स्वतंत्र है, स्वाधीन है, किसी की क्षणिक चाटुकारिता से भी बहुत-बहुत दूर स्वाभिमान से आपूरित । इसी कारण उनका व्यक्तित्व अजेय बना हुआ है।

दुनिया चाहे जिधर जाये, चाहे कोई कुछ करे, पर कैलाश जी के कवि ने तो जैसे जीवन का सार ही प्राप्त कर लिया है

"युग-युगों से इस धरा पर प्यार जैसा, 
सत्य, शिव, सुन्दर न कोई दूसरा है।"

कैलाश जी का कवि प्यार का कवि है । वह अपने कर्तव्य के प्रति निरन्तर सचेत और दूसरों से भी कहता है

"कर्म से अपने विमुख होना नहीं अच्छा ।
 व्यर्थ ही अपना समय खोना नहीं अच्छा । 

व्यक्ति निज पुरुषार्थ से फूला- फला करता,
श्रम बिना जीवन सदा निस्सार होता है !"

इसी गीत में वे मानव से कहते हैं-

"लोक-सेवा-भावना का मूल्य है अपना । 
साधना की अग्नि में अनिवार्य है तपना ।
हर दुखी का दुख निवारण हो सके जिससे, 
चाहिए वह मन्त्र ही निशिदिन हमें जपना ।

वास्तव में कैलाश चन्द्र जी का कवि-व्यक्तित्व अपने जीवन की सार्थकता उस में समझता है, जो लोक सेवा-भावना से अनुप्रेरित हो । "कर्म ही पूजा है, साध ईश्वर है-इसका साक्षात् प्रतीक है कवि कैलाश का व्यक्तित्व ।

वास्तव में वे जन-मन को सुरभित करने वाले तथा जीवन-संघर्ष में आस्था वाले कवि थे। उन्होंने स्पष्ट कहा है

"मेरी पूजा के ये बोल अकिंचन,
 सम्भव है बन जायें मीत तुम्हारे । " 

 कैलाश चन्द्र अग्रवाल के व्यक्तित्व में निरन्तर संघर्षशील अदम्य साहस था, जो भी उनके जीवन-परिचय को पढ़ेगा, वह उनकी इस विशेषता को सराहेगा स्वाभिमान, निश्छलता, कर्मठता, परोपकार एवं सहृदयता की साक्षात् प्रतिमा मानवीय मूल्यों में उनकी गहरी निष्ठा थी । वे आत्मप्रशंसा से परे, अहंकारशून्य परोपकारी व्यक्ति थे । यही नहीं, मितभाषी और मितव्ययी थे । सब-कुछ होते हुए स्वयं को अकिंचन-सा मानने वाले और आत्मसन्तोषी थे । वे इशोपासक थे और भारतीय संस्कृति के आदर्श मूल्यों, परम्पराओं एवं मर्यादाओं में उनकी अखण्ड आस्था थी । व्यर्थ की मिथ्या, निराधार और अर्थहीन रूढ़ियों  एवं कुरीतियों में उनका बिलकुल विश्वास नहीं था। कला की साधना और आराधना में उनका अटूट विश्वास था । 
मैं स्वयं को परम सौभाग्यशालिनी मानती हूँ कि हिन्दी साहित्य के एक सफल हस्ताक्षर व साहित्य जगत के सशक्त पुरोधा के साहित्य पर शोध करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उस कवि हृदय के मुझे साक्षात दर्शन हुए हैं। उन पर लघु -शोध प्रबन्ध व शोध प्रबन्ध पर कार्य करने वाली मैं प्रथम शोध कर्त्री रही । शोधकार्य के दौरान मुझे उनसे समय समय पर साक्षात्कार का अनुभव हुआ है। अक्सर वे कहा करते थे- कहते हैं लक्ष्मी व सरस्वती जी एक साथ  कृपा नहीं करतीं पर मुझ पर तो दोनों ही की कृपा है।
                                                                 

✍️ डॉ कंचन प्रभाती  प्राध्यापिका              आर्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय       पानीपत

  

सोमवार, 2 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का आलेख ---- प्रेम और श्रृंगार के कवि : कैलाश चन्द्र अग्रवाल


मुरादाबाद मंडल के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल जी अपनी कालजयी रचनाओं के साथ, प्रेम और श्रृंगार के आदर्श रूप को अपने सृजन का आधार बनाते हैं, साथ ही यथार्थ का चित्रण उनके गीतों व मुक्तकों में देखने को मिलता है ,जो आने वाले समय में नयी पीढ़ी के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है ।उन पर छायावादी प्रेम की अभिव्यक्ति और  कवि हरिवंशराय बच्चन जी के मधुशाला या हालावाद का प्रभाव  भी  झलकता है ।

 कैलाश जी के साहित्य में प्रिय का अनुपम सौंदर्य देखने को मिलता है, उनके गीतों में प्रेम की अनुभूति के साथ ही ,वियोग की पीड़ा ,दुःख, दर्द ,वेदना की विकलता टीस और छटपटाहट है - मौन प्राणों पर व्यथा / भार पल- पल ढो चुका हूँ/ मैं तुम्हारी वंदना के गीत गा -गा सो चुका हूँ/ मैं तुम्हारा हो चुका हूँ ।

गीत काव्य का प्राण है मानव के सरल हृदय में प्रेम के अतिरेक में भाव गीत बन स्वतः ही फूट पड़ता है, तो वियोग में भी कवि का घायल मन विरह गीत गाता दिखता है, कवि कैलाश चन्द्र जी का हृदय उतना ही पावन है, जितना उनका प्रेम ,इस प्रकार प्रणय का चितेरा कवि अपनी सम्पूर्ण रागात्मकता, और भाव प्रवणता में हृदय की गहन अनुभूति से प्रेममय हो चुका है ,सब कुछ भूल कर प्रेम की धारा में अवगाहन करता रहता है, कैलाश जी के गीतों में प्रेमानुभूति की विशद और विविध रंग देखने को मिलता है - प्राण तुम्हारी ही सुधियों में निस -दिन खोया रहता हूँ। उनके प्रेम में वासना का लेश मात्र भी नहीं है, बल्कि उसमें आत्मनियंत्रण व औदात्य रूप देखने को मिलता है - "सरिता के तट पर आकर भी जिसने जल की ओर न देखा/क्योंकि पपीहे से सीखा है मैंने अब तक आत्म नियंत्रण ।" उनके यहाँ प्रेम सुखद ही नहीं अलौकिक भी है   - देख तुम्हारा रूप अछूता पूनम का शशि भी शरमाया ।प्रणय जब जीवन का आस बनता है, तब मानों जीवन को अमूल्य निधि मिल जाता है ,प्रिय के रूप और लावण्य के आगे सब कुछ फीका लगता है -चाँद भी पलकें झुकाये देखता है/आज तो रूपसि करो श्रृंगार ऐसा ।

कैलाश जी कवि हृदय सिर्फ प्रेम का ही चितेरा नहीं है बल्कि उनके साहित्य में जन चेतना व लोक कल्याण की भावना भी देखने को मिलता है - लोक सेवा भावना का मूल्य है अपना /साधना की अग्नि में अनिवार्य है तपना /हर दुःखी का दुःख निवारण हो सके जिससे/चाहिये वह मंत्र ही निशि- दिन हमें अपना  ।

वास्तव में कैलाश जी का कवि व्यक्तित्व अपने जीवन की सार्थकता लोक सेवा में मानता है ,कर्म उनके लिये पूजा है।जन मन को सुरभित करने वाले जीवन संघर्ष के प्रति आस्था रखने वाले कवि हैं - प्रीति का पाखण्ड से परिचय नहीं/प्रीति में कोई कहीं शंसय नहीं / वास्तविकता ही इसे स्वीकार है /प्रीति करना जानती अभिनय नहीं  / उनका मानना है कि ईश्वर की सत्ता कण -कण में व्याप्त है ,समस्त प्राणी जगत उसी का प्राणाधार है -  तुमसे ही मानव जीवन का सम्भव है उद्धार /तुमसा कोई नहीं दूसरा निश्छल और पुनीत /तुम सचमुच अपने भक्तों के सदा रहे हो मीत /

कवि के लिये प्रेम मुक्ति का मार्ग है, भक्ति है, श्रद्धा है ।प्रेम का दीपक ईश तक जाने का मार्ग प्रशस्त करता है, अतएव उनकी कविता में -आँसू की वेदना है ,पीड़ा है , कामायनी का आनन्द है तो पंत जी की ग्रन्थि का अनुनय ग्रन्थिबन्धन है ,निराला जी की तरह शक्ति पाने  का मार्ग है। प्रेम जन- जन तक पहुंचाने का कार्य करता है, इसलिये उनका प्रिय अनन्य है -देख कर तुमको प्रथम बार ही /रह गयी दृष्टि मेरी ठगी /......चारुता वह अलौकिक तुम्हारी / अंत तक क्षीण होने न पायी / उस तुम्हारे मधुर राग में ही / बाँसुरी की प्रीति मैं बजाता /

✍️ डॉ मीरा कश्यप, अध्यक्ष ,हिंदी -विभाग ,के .जी. के. महाविद्यालय ,मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत

रविवार, 14 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत 12 व 13 मार्च 2021 को दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन

 



प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनकी रचनाएं, चित्र तथा उनसे सम्बंधित सामग्री प्रस्तुत की गई। इन पर चर्चा के दौरान साहित्यकारों ने कहा कि कैलाश जी प्रणय के उन्मुक्त गायक थे।उनके सृजन का आधार प्रेम और श्रृंगार का आदर्श रूप था । उनके गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव मिलता है। उनकी रचनाओं में प्रेम का मर्यादित रूप देखने को मिलता है ।


कार्यक्रम संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कैलाश चन्द्र अग्रवाल के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 8 दिसम्बर 1927 को मुरादाबाद में जन्में कैलाश चन्द्र अग्रवाल के प्रारम्भिक गीतों का प्रतिनिधि संकलन वर्ष 1965 में "सुधियों की रिमझिम में" स्थानीय आलोक प्रकाशन मंडी बांस के माध्यम से पाठकों को प्राप्त हुआ, जिसमें उनकी 1947 ई. से 1965 ई. तक की काव्य यात्रा के विभिन्न पड़ाव समाहित है। चौसठ गीतों  के इस संकलन के पश्चात कवि की यात्रा वर्ष 1981 में 'प्यार की देहरी' पर पहुंची। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनके सन 1965 के पश्चात रचे गए 81 गीत संगृहीत हैं । वर्ष 1982 में उनका मुक्तक संग्रह 'अनुभूति' प्रकाशित हुआ, जिसमें वर्ष 1971 से 1981 तक लिखे गए 351 मुक्तक संगृहीत हैं। यह यात्रा आगे बढ़ी और वर्ष 1984 में 'आस्था के झरोखों' से होती हुई वर्ष 1985 में "तुम्हारे गीत -तुम्ही को" गीत संग्रह के माध्यम से हिन्दी साहित्य की गीत विधा के भंडार को भरने तथा छन्दोबद्ध काव्य रचना करने की प्रेरणा देती रही ।वर्ष 1989 में गीत संग्रह "तुम्हारी पूजा के स्वर" पाठकों के सम्मुख प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा आया । इसमें आपके जनवरी 1986 से फरवरी 1988 तक रचे गये 71 गीत संगृहीत है। अंतिम सातवीं कृति के रूप उनका गीत संग्रह 'मैं तुम्हारा ही रहूंगा' पाठकों के समक्ष आया। इसका प्रकाशन सन 1993 में हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ।इसमें उनके अप्रैल सन 1989 से मार्च 1992 के मध्य रचे 71 गीत संगृहीत हैं। कुल मिलाकर 441 गीतों और 351 मुक्तको के माध्यम से हिन्दी काव्य के भंडार में अपना योगदान दिया है । इसके अतिरिक्त डॉ रामानन्द शर्मा और डॉ महेश दिवाकर के सम्पादन में  रीति शोधपीठ द्वारा 'कैलाश चन्द्र अग्रवाल : जीवन और काव्यसृष्टि' पुस्तक प्रकाशित हुई । उन्होंने बताया कि कैलाश चंद अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य भी हो चुके हैं। वर्ष 1992 में कंचन प्रभाती ने कैलाश चंद अग्रवाल के काव्य में प्रणय तत्व शीर्षक से डॉ सरोज मार्कंडेय के निर्देशन में लघु शोध कार्य किया ।तत्पश्चात वर्ष 1995 में उन्होंने डॉ रामानंद शर्मा के निर्देशन में रुहेलखंड के प्रमुख छायावादोत्तर गीतिकार एवं श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीति काव्य का अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण कर पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2002 में गरिमा शर्मा ने डॉ मीना कौल के निर्देशन में स्वर्गीय कैलाश चंद अग्रवाल (जीवन सृजन और मूल्यांकन )शीर्षक से लघु शोध कार्य किया। वर्ष 2008 में श्रीमती मीनाक्षी वर्मा ने डॉ मीना कौल के ही निर्देशन में स्वर्गीय श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीतों का समीक्षात्मक अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण किया। उनका निधन 31 जनवरी 1996 को हुआ ।।

  महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि 



प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रणय की अभिव्यक्ति के अपने ढंग के अनूठे रचनाकार हैं ,उनके गीतों की रचनाभूमि उनकी निजी और मौलिक भूमि है ठीक उसी तरह जैसे उनके मुक्तकों की रचना दृष्टि और भावभूमि अपनी है किसी ख़य्याम की रूबाइयों की छाया से मुक्त हिंदी के मात्रा या छान्दस विधान में बंधी रची । उनके गीत लक्षणा या व्यंजना की जगह अभिधामूलक हैं ।सहज संप्रेषणीय ।

हिन्दू महाविद्यालय, मुरादाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानन्द शर्मा ने कहा कि  कैलाश चंद्र अग्रवाल जी ने अपनी गीतों की रचना में अपने अनुभूत सुख दुख को ही वाणी दी है यद्यपि इनमें प्रणयानुभूति प्रमुख है, जो जीवन और परिस्थितियों के अनुरूप निरंतर और भव्य स्वरूप प्राप्त करती रही है। उनके गीत उदात्त और मंगलमय हैं।
प्रख्यात साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा -  कैलाश जी प्रणय के उन्मुक्त गायक हैं।उनकी प्रणय-भावना मार्मिक और विशुद्ध अनुभूति पर आधारित है। प्रणय-भावना के साक्षात्कार उन्होंने अपने जीवन से बटोरे हैं। वस्तुतः उनकी प्रणय-भावना उनके मानस-मन्थन की उपज है उनकी प्रणय-भावना प्रणय की साहसिक अभिव्यक्ति है, उसमें पौरुष का सशक्त स्वर है तथा वह निराडम्बर और सपाट-बयानी में विश्वास रखती है ।
केजीके महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप  ने कहा मुरादाबाद मंडल के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार कैलाश चन्द्र अग्रवाल अपनी कालजयी रचनाओं के साथ, प्रेम और श्रृंगार के आदर्श रूप को अपने सृजन का आधार बनाते हैं, साथ ही यथार्थ का चित्रण उनके गीतों व मुक्तकों में देखने को मिलता है । उनका कवि हृदय सिर्फ प्रेम का ही चितेरा नहीं है बल्कि उनके साहित्य में जन चेतना व लोक कल्याण की भावना भी देखने को मिलता है । वह जन मन को सुरभित करने वाले जीवन संघर्ष के प्रति आस्था रखने वाले कवि हैं । उनकी कविता में -आँसू की वेदना है ,पीड़ा है , कामायनी का आनन्द है तो पंत जी की ग्रन्थि का अनुनय ग्रन्थिबन्धन है ,निराला जी की तरह शक्ति पाने  का मार्ग भी है।
आर्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,पानीपत में हिन्दी प्राध्यापिका डॉ कंचन प्रभाती ने कहा कि  कैलाश जी के गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव है। 'कविता' सीधे उनके जीवन से फूटकर आयी है। यह उनके जीवन की अनिवार्यता थी, विवशता थी, यानी उनके जीने की शर्त, जो प्रीति का रूप धारण करके विविध रूपों में फूट पड़ी। वे वास्तव में वे जन-मन को सुरभित करने वाले तथा जीवन-संघर्ष में आस्था वाले कवि थे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि कैलाश जी के मुक्तक परिवार, व्यक्ति और समाज की मर्यादा के लिए मानक है। छन्द, भाषा, भाव, गति, यति, का दोष कैलाश जी की रचनाओं में नहीं है।
भाषा की प्रांजलता आकर्षण भरी है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि प्रेम को स्वर देने वाले कवि थे श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल।  उनकी अधिकांश रचनाएं विभिन्न परिस्थितियों में प्रेम की व्याख्या करती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। उनका प्रेम वासना से बिल्कुल अलग है। वह कोई प्रतिदान नहीं मांगता है। उन्होंने प्रेम के शाश्वत स्वरूप को भी उद्धृ‍त करते हुए प्रेम को भक्ति के साथ जोड़ते हुए प्रेम के आध्यात्मिक पक्ष को भी दर्शाया है। उनकी रचनाओं में कथ्य बिल्कुल स्पष्ट है, भाषा अत्यंत सरल व सुग्राह्य है, शब्दों का चयन, शिल्प व छंदबद्धता के दृष्टिकोण से परिपूर्ण हैं।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि   कीर्तिशेष  कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रेम और समर्पण के शाश्वत स्वर थे। जितना अच्छा उनका छंद प्रबन्ध है उतना मधुर कंठ के स्वामी भी थे  भाषा का प्रयोग सहज सुगमबोधजन्य था । वे प्रणय पुजारी के रूप में एकनिष्ठ व्यक्तित्व थे उनकी रचनाएं मानवीय प्रेम से ईश्वरीय प्रेम की अलौकिक भाव सम्वेदनाओं का मर्म आभासित  कराती हैं ।गीतों में करुण वेदना की रागात्मकता का अक्षुण्य दर्शन सर्वत्र व्याप्त है।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि  कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रणय गीतों के संवाहक थे ।वह बहुत ही मृदुभाषी सादगी पसन्द रचनाकार थे।मेरा उनसे परिचय स्मृति शेष श्री दिग्गज मुरादाबादी के माध्यम से हुआ था।फिर कटघर में उनकी अध्यक्षता में मुझे रचना पाठ करने का अवसर मिला , तब मैनें जाना कि अधीर जी के गीतों का कितना बड़ा फ़लक है ।
वरिष्ठ कवि आमोद कुमार अग्रवाल ने कहा कि  कैलाश चन्द्र अग्रवाल के गीतों मे जो घनीभूत वेदना परिलक्षित होती है वह वैसी ही है जैसी मीरा के मन में श्रीकृष्ण के प्रेम की थी। उनकी रचनाओं से स्पष्ट है कि उनके लिए प्रेम वही है जो सामान्य जन के दुख की चिन्ता करता हो।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि उनकी  काव्य साधना में वियोग की पीड़ा और कर्तव्य की अभिलाषा के संवेदनशील स्वर हैं। श्रंगार का वियोग पक्ष आपने जिस मार्मिकता के साथ लिखा है ,वह हृदय की वास्तविक वेदना को प्रकट करता है । प्रेम के संबंध में आपका एक-एक मुक्तक सचमुच प्रेम को समर्पण की ऊँचाइयों तक ले जाता है । उनके गीतों में सामाजिक चेतना का स्वर भी मिलता है । 
 चर्चित साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा - कीर्तिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल  प्रेम और भक्ति के गीतों के समृद्ध रचनाकार थे। कविता को केवल लिखना और कविता को अपने भीतर जीकर लिखना, दो अलग-अलग बातें हैं। उनके  गीतों और मुक्तकों से गुज़रते हुए यह कहा जा सकता है कि कैलाश जी कविता को अपने भीतर जीकर लिखने वाले बड़े रचनाकार थे।
अफजलगढ़ (बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी ने कैलाश चंद अग्रवाल की कृति 'प्यार की देहरी पर ' के संदर्भ में कहा कि प्यार एक रुमानी, पवित्र. कोमल. करुण भावना है, ..इन्हीं भावों को दृष्टिगत करते हुए यह गीत संग्रह रचा गया है । उन्होंने प्यार को साधना से युग्म करते हुए भक्ति मार्ग का उत्प्रेरक प्रदर्शित किया है। प्यार एक ऐसी भावना है जिसे मौन रहकर ही महसूस किया जा सकता है।प्यार परवशता का पर्याय है। उनकी प्यार जनित काव्य रचनाएँ हृदय तल को स्पर्श करती चलती हैं, मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती चलती हैं, और जीवन के प्रीत पूर्ण अनेक आयामों का दिग्दर्शन कराती चलती हैं।
साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट  ने कहा कि कीर्ति शेष श्री अग्रवाल जी विशुद्ध प्रेम के कवि हैं,वह प्रेम प्रेयसी के प्रति हो,देश के प्रति हो अथवा ईश्वर के प्रति।उनके गीतों में समर्पण,निष्ठा व पवित्रता का भाव है। उनके गीत प्रणय गीतों में एक अलग छाप पाठक के मन में छोड़ते है और एक दृश्यचित्र सा आंँखों के सामने उत्पन्न होता है।
रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि उनके गीतों और मुक्तकों में मर्यादापूर्ण प्रेम की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति नई पीढ़ी के रचनाकारों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करती है ।अपने कालजयी गीतों और मुक्तकों के द्वारा स्मृतिशेष कैलाश चंद्र जी युगों- युगों तक हम सबके प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष कैलाश चंद्र अग्रवाल जी,  प्रेम को साकार, मनोहारी व बहुकोणीय अभिव्यक्ति देने वाले  सशक्त रचनाकार हैं।  उनका प्रेम मात्र प्रेमी-प्रेमिका के चारों ओर विचरने वाला तत्व नहीं अपितु, इस शाश्वत सत्य को जीवन की अन्य संवेदनाओं से भी सीधे-सीधे जोड़ता है। उसमें प्रेम का श्रंगारिक स्वरूप मुखर है तो आध्यात्म, देशभक्ति, सामाजिक चेतना जैसे विषय भी इस केन्द्र के विभिन्न कोणों से मुखरित हुए हैं।
युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि यहाँ पेश किए गए गीतों को पढ़ कर लगता है कि कैलाश जी ने अपने गीतों में श्रृंगार रस को ख़ास जगह दी है और ये काम उन्हों ने बा-ख़ूबी अंजाम दिया है। प्रेम के अलावा इन गीतों में करुणा, भक्ति, देश-प्रेम के फ़लसफ़े का भी अच्छा-ख़ासा दख़्ल है। कई जगह फ़लसफ़े में बहुत गहराई है, कहीं-कहीं कुछ कम भी। भाषा में रवानी है, भाषा-धन की कहीं भी कमी नज़र नहीं आती, लफ़्ज़ कहीं अटकते नहीं। इस तरह पाठक इन गीतों की धारा में बहता चला जाता है। इस बिना पर ये कहा जा सकता है कि कैलाश जी मुरादाबाद के गीतकारों की जमात में पहली सफ़ के गीतकार हैं।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि उनकी रचनाओं में प्रेम का मर्यादित रूप देखने को मिलता है । भावनाओं को जिस कुशलता के साथ अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है ,वह आने वाली पीढ़ियों के लिये मार्गदर्शक सिद्ध होगीं ।उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम के श्रगांर एवं विरह पक्ष का सामंजस्य जिस अलौकिक रूप से प्रस्तुत किया है ,वह पाठक के ह्रदय तल को स्पर्श करने में समर्थ है ।
युवा रचनाकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि उन्होंने साहित्य का केवल सृजन ही नही किया अपितु अपनी रचनाओं को जीवन में आत्मार्पित और अंगीकृत किया है। वह विशुद्ध प्रेम के पुजारी रहे है जिनके गीत और कविताओं को श्लेष मात्र की वासना छू तक नही पायी है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सभी अलंकारों का प्रयोग बहुत ही कुशलता पूर्वक किया है ।
डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृति शेष आदरणीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जी से मेरा परिचय कीर्ति शेष श्रद्धेय महेंद्र प्रताप जी के निवास पर आयोजित होने वाली 'अंतरा' काव्य गोष्ठी में हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि उनके श्रीमुख से उनके मधुर गीत सुनने का अवसर अनेक बार मिला. श्री मदन मोहन व्यास जी के साहित्यिक हास्य से पूर्ण संवाद, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी के ठहाकों और प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी की सारगर्भित टिप्पणियों से वातावरण अति सुन्दर और ज्ञानवर्धक बन जाता था. सौभाग्य से उस गोष्ठी में मुझे भी काव्य पाठ करने का अनेक बार अवसर मिला. अब यादें ही शेष हैं.
नजीब सुल्ताना ने कहा कि  आदरणीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जैसी महान हस्ती  का परिचय इस साहित्यिक पटल के माध्यम से हम नए रचनाकारों को कराने के लिए बहुत-बहुत आभार। यह हमारा सौभाग्य है कि हम मुरादाबाद की महान विभूतियों के बारे में इस मंच के जरिए जान रहे हैं।
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि मुरादाबाद की सांस्कृतिक साहित्यिक धरोहर के बारे में हम जान पा रहें हैं साहित्यिक मुरादाबाद का यह सर्वोत्तम प्रयास शत प्रतिशत सार्थक और सराहनीय है। इस माध्यम से हम इस वैचारिक गोष्ठी के सहभागीदार और साक्षी बने हुए हैं । 
जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा कि 'साहित्यिक मुरादाबाद' अथाह ज्ञान और प्रेम का सागर है। मेरी जन्मभूमि, जिसके बारे में मैं खुद अनजान थी .. इतने बड़े-बड़े रचनाकार वहाँ हुए हैं, उनसे अवगत कराया जा रहा है। बहुत आभार। जितना मैंने पढ़ा और जाना उससे इस विषय पर यही कह सकती हूँ कि स्मृति शेष कविवर कैलाश चंद्र अग्रवाल  जी  बहुत उच्चतम कोटि के कवि ,रचनाकार, साहित्यकार थे।
कवि अशोक विद्रोही ने कहा कि उनका रचनाकर्म  हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है। उनका प्रत्येक गीत मन को स्पर्श करता है।
मनोज अग्रवाल ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद द्वारा स्मृति शेष श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल (जो कि मेरे ताऊ जी थे)के विषय में दो दिवसीय परिचर्चा का सफल आयोजन किया गया।उनकी रचनाओं एवम् व्यक्तित्व के विषय में अनेक साहित्यकारों के विचार जानने का अवसर मिला!इस आयोजन की सफलता का श्रेय डॉ मनोज रस्तौगी के अथक परिश्रम एवम् प्रयास को ही जाता है,इसके लिए उन्हें साधुवाद।
अंत में स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के सुपुत्र अतुल चन्द्र अग्रवाल द्वारा आभार अभिव्यक्ति से कार्यक्रम का समापन हुआ ।

 

मंगलवार, 9 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के 64 गीत । ये गीत लिए गए हैं उनके गीत संग्रह ' प्यार की देहरी पर' से । 'सुधियों की रिमझिम में 'के बाद यह उनका दूसरा गीत संग्रह है । इस कृति का प्रकाशन वर्ष 1981 में प्रभात प्रकाशन दिल्ली से हुआ था। इस कृति में उनके सन 1965 के बाद रचे 81 गीत संगृहीत हैं । गीत संग्रह की भूमिका प्रो महेंद्र प्रताप ने लिखी है ।












































































पूरी कृति पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिये 

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https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2021/03/1981-1965-81.html


मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के 52 गीत । ये गीत उनके प्रथम काव्य संग्रह 'सुधियों की रिमझिम' में संगृहीत हैं । 
क्लिक कीजिए और आप भी पढ़िये उनके गीत --
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https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2021/02/52-1965-64.html
 
क्लिक कीजिए और पढ़िये पूरी कृति 'सुधियों की रिमझिम में'
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:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822