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रविवार, 25 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के 18 दोहे


 विजयादशमी का बड़ा, पावन है त्यौहार।                            रावण रूपी दम्भ का,करता है संहार।।1

बन्धु विभीषण ने किया, गूढ़ बात जब आम।
रावण का तब हो गया , पूरा काम तमाम।।2

नाभि में था भरा अमिय, मगर न आया काम ।
बुरे काम का फल बुरा, बात बड़ी ये आम।।3

सौतेली माँ केकयी, पुत्र मोह में चूर।
किया तभी श्री राम को, राजमहल से दूर ।।4

रावण ने जब भूल का, किया न पश्चाताप।
उसके कुल ने इसलिये, सहा बड़ा संताप।।5

राम भेष में आजकल , रावण की भरमार।
देखना में सज्जन लगें, अंदर कपटाचार।।6

पुतला रावण का जला, मगर हुआ बेकार
मन के रावण का अगर, किया नहीं उपचार ।।7

अच्छाई के मार्ग पर, चलना हुआ मुहाल।
चले बुराई नित नई , बदल बदल कर चाल ।।8

खड़ा राम के सामने ,हार गया लंकेश।
अच्छाई की जीत का,मिला हमें सन्देश ।।9

गले दशहरे पर मिले,दुश्मन हों या मीत।
नफरत यूँ दिल से मिटा, आगे बढ़ती प्रीत।।10

सोने की लंका जली, रावण था हैरान।
उसे हुआ हनुमान की, तब ताकत का ज्ञान ।।11

हुआ राम लंकेश में, बड़ा घोर संग्राम।
पर रावण की हार का,तो तय था परिणाम।।12

हार बुराई की हुई, अच्छाई की जीत।
रावण जलने की तभी,चली आ रही रीत।।13

सदा सत्य की हो विजय, और झूठ की हार।
पर्व दशहरा शुभ रहे, बढ़े आपसी प्यार ।।14

जीवन मे इक बार बस, बनकर देखो राम।
निंदा तो आसान है, मुश्किल करना काम ।।15

भवसागर गहरा बहुत, भँवर भरी हर धार।
राम नाम की नाव ही, तुझे करेगी पार।।16

सीताओं का अपहरण , गली गली में आज।
कलयुग में फिर हो गया, है असुरों का राज।।17

ज्ञान समर्पण साधना, सब रावण के पास
बस इक अवगुण ने किया, उसका सत्यानाश।।18


✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 27 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की कृति ''अर्चना की कुंडलियां ( भाग-दो)" की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा

     कहते हैं कि स्वर्ण जब अग्नि में तप जाए तो कुंदन  बन जाता है।ऐसा ही एक कुंदन का  आभूषण हैं, हिंदी साहित्य जगत मुरादाबाद में डॉ अर्चना गुप्ता जी का चमकता हुआ नाम ।माता पिता की प्रतिभाशाली संतान डा. अर्चना गुप्ता जी के माता पिता ने सोचा भी न होगा कि गणितीय सूत्रों को पल में हल करने वाले हाथ  साहित्यिक मोती  भी बिखेर सकते हैं।एक नीरस  विषय में स्वर्ण पदक प्राप्त तरुणी के हृदय से भावों का  मीठा झरना फूटना निश्चित ही विस्मित करता है!!
डा. अर्चना गुप्ता जी  की कुंडलियां भाग दो को पढ़कर मैं   हतप्रभ हो यह सोचने लगी कि क्या एक ही छंद में इतने सारे विषयों को समाहित करना संभव है!!

     आपने जीवन,पर्यावरण,हास्य,करूणा, परिवार ,देश,व्यंग्य और व्यक्तित्व कोई भी मूर्त -अमूर्त भाव रूपी सुंदर रत्न  कुंडलियों के आभूषण में सजाने से नहीं छोड़े।
      डा. अर्चना गुप्ता जी  की कुंडलिया यात्रा  मुझे किसी नदी की यात्रा सी प्रतीत  होती है।जो अपने प्रादुर्भाव काल में जब पहाड़ों से नीचे उतरती है तब प्रचंड वेग से बहती हुई  वह नदी, पथ में पड़ने वाले सभी जड़-चेतन को बहा ले जाना चाहती है।
उसी प्रकार डा. अर्चना गुप्ता जी की कुंडलियां जब हम पढ़ना प्रारम्भ करते हैं तभी आभास हो जाता है कि वो समस्त भावों को समेटती हुई आगे बढ़ रहीं हैं।जिस प्रकार  ,मार्ग की दुर्गम यात्रा  पार करने के पश्चात भी नदी के  जल की मिठास कम नहीं होती ,उसी प्रकार  शिल्प के कठोर विधान के पश्चात भी आपने भाव पक्ष की मिठास तनिक भी कम नहीं होने दी है ।हास -परिहास लिखते समय शालीनता  की सीमा रेखा कहीं भी पार होती नहीं दिखती ।व्यंग्य की तीव्रता देखते ही बनती है।फिर चाहे होली की मस्ती हो या बढ़ती आयु में  रूप रंग के खत्म होने का भय,सभी रचनाओं में एक स्वतः हास उत्पन्न होता है।
जब जीवन के विभिन्न पहलुओं को आप अपनी कुंडलियों में दर्शाती हैं तब लगता है मानो गंगा अपने मैदानी पड़ाव में शांत व विस्तृत भाव से बहते हुऐ  विशाल गर्जना करते हुए ,भावों से भरे मैदान  के सभी तटों को अपनी साहित्यिक उर्वरकता से पोषित कर रही है।
        डा. अर्चना गुप्ता जी की एक और विशेषता मुझे आकर्षित करती  है वो यह कि वो जितनी सहज व सरल हैं उतनी ही सरलता से गंभीर बातों को भी पाठकों तक  सहजतापूर्वक पहुँचा भी देती हैं।महान व्यक्तित्व की बात करें तो लगता हैं कि "अर्चना की  कुंडलियां  भाग दो "का अंतिम पड़ाव उतना ही शांत,धीर गंभीर है जितना किसी नदी का अंतिम पड़ाव  सागर तक की यात्रा पूर्ण होने पर  प्रतीत होता है।सम्भवतः यह यात्रा कुंडलियों के सागर में एक नदी के भाव मिलने जैसी है जिससे उसका शीतल जल मेघ बनकर पुनः आकाश में जाकर धरती पर बरस सके ।अर्चना दी जितनी शीघ्रता से कुंडलियां व ग़ज़ल लिखती हैं उसे देखकर यही लगता है ,मानो उनके हृदय रूपी गगन में विचरता  कोई साहित्यिक मेघ पुनः पाठकों के मन मरुस्थल पर बरसने को तैयार है।
        यहाँ कुछ कुंडलियों की पंक्तियां अवश्य उद्धृत करना चाहूँगी जो मुझे अत्यधिक पसंद आयीं।यथा...
 माँ शारदा से अत्यंत विनीत भाव से विनती करती हुई लगभग हर रचनाकार के मन की ही बात कहती हैं...
  चरणों में देना जगह ,मुझे समझकर धूल
माँ मैं तो नादान हूँ ,करती रहती भूल।
करती रहती भूल ,बहुत हूँ मैं अज्ञानी
खुद पर करके गर्व, न बन जाऊँ अभिमानी ।
कहे 'अर्चना' प्राण,भरो ऐसे भावों में,
गाऊँ मैं गुणगान बैठ तेरे चरणों में।

इसके अतिरिक्त पृष्ठ सं.26पर कुंडलिया न. 16
रिश्तों को ही जोड़ती सदा प्रीत की डोर
मगर तोड़ देता इन्हें मन के शक का चोर
मन के शक का चोर,न हल्के में ये लेना
लेगा सबकुछ लूट,जगह मत इसको देना
करके सोच विचार, बनाना सम्बंधो को
रखना खूब सहेज,अर्चना सब रिश्तों को

पर्यावरण पर आधारित पृष्ठ सं. 36पर कुं. संख्या 30,
"गौरैया दिखती नहीं, लगे गई है रूठ
पेड़ काट डाले हरे,बचे रह गये ठूठ
बचे रह गये ठूठ,देख दुखता उसका मन
कहाँ बनाये नीड़,नहीं अब दिखता आँगन
कहीं अर्चना शुद्ध, नहीं पुरवाई मिलती
तभी चहकती आज,नहीं गौरैया दिखती

पृष्ठ सं.38पर कुं. सं. 35,
"भाये कुदरत को नहीं, जब मानव के ढंग
तब उसने हो कर कुपित,दिखलाया निज रंग
दिखलाया निज रंग,तबाही खूब मचाई
बाढ़ कहीं भूकंप,कहीं पर सूखा लाई
आओ करें उपाय,अर्चना ये समझाये
खूब लगायें वृक्ष ,यही कुदरत को भाये


हालाँकि  कुं सं. 35 बहुत पहले लिखी गयी है मगर आज के हालात पर ही लिखी गयी सी प्रतीत होती है।यह एक संवेदनशील कवियत्री के हृदय की  संवेदना को ही दर्शाती है।कवि हृदय तो यों भी त्रिकालदर्शी होता है।
जीवन के विविध रंगों को दर्शाती उनकीपृष्ठ संख्या 45पर कुंडलियां सं.45 भी मुझे बहुत अधिक आकर्षित करती है जब वो कहती हैं..

"रावण का भी कर दिया अहंकार ने नाश
धरती पर रख पाँव ही,छुओ सदा आकाश
छुओ सदा आकाश ,उठो जीवन में इतना
लेकिन नम्र स्वभाव, साथ में सबके रखना
कहे अर्चना बात ,ज़िंदगी भी है इक रण
अपने ही है हाथ,राम बनना या रावण"

इतने बड़े मुकाम पर पहुँचकर भी डा.अर्चना गुप्ता जी को अभिमान तनिक भी नहीं छू गया है।अपितु उनके साहित्यिक व्यक्तित्व रूपी वृक्ष पर साहित्यिक समृद्धि रूपी फल आने पर वह वृक्ष झुक गया है।ऐसी बहुत सी सुंदर कुंडलिया हैं जो हमें अन्दर तक स्पर्श कर जाती हैं।




 * कृति--अर्चना की कुंडलियां ,भाग -2(कुण्डलिया संग्रह)
* रचनाकार : डा अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद
* प्रकाशक: साहित्यपीडिया पब्लिकेशन
* प्रथम संस्करण : वर्ष :2019
* पृष्ठ संख्या:105
* मूल्यः ₹150
*समीक्षक : मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
मोबाइल: 8218467932

सोमवार, 22 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के गजल संग्रह "ये अश्क होते मोती" की जितेंद्र कमल आनन्द द्वारा की गई समीक्षा

 डॉ अर्चना गुप्ता जी का ग़ज़ल-संग्रह "ये अश्क होते मोती' मेरे हाथों में है, पृष्ठ संख्या: 99 खुलता है --
    "नज़र के पार पढ़ लेना
      हमारा प्यार पढ़  लेना
      नहीं होता सुनो काफ़ी
      कथा का सार पढ़ लेना"

    पढ़ने का प्रयास कर रहा हूँ । अपनी बात को अश्आर ( शेरों) में पिरोने का यह हुनर , उनकी शायरी में सफलता है । भाव और शब्द संयोजन के धरातल पर मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने में भी आप कामयाब हैं ; जैसा कि उनको और भी पढ़ा और पाया कि आपका यह सम्पूर्ण सृजन ही काव्य- शिल्प एवं भाव संबंधी दोनों पक्षों का सामंजस्य पूर्ण है । आपकी लेखनी कह रही है कि डा अर्चना जी एक परिपक्व सृजनकार हैं, एक अच्छी शायरा भी। यही कारण है कि आप बहुत ही सरलता से अपने जज़्बातों को व्यक्त करने में पीछे नहीं रहीं हैं ----
        " शब्द आयात निर्यात करते रहे
         यूं बयां अपने जज़्बात करते रहे

          जब मिले वो हमें, हाल पूछा नहीं
          बस सवालों की बरसात करते रहे "( पृष्ठ: 75 )

        जहाँ नि:स्वार्थ सच्चा प्रेम है,  वहाँ जंगल में भी मंगल का अनुभव होने लगता है। अभावों से उत्पन्न होने वाली दु:अनुभूतियों का स्पर्श भी नहीं हो पाता ---
       " प्यार जब से मिला, खिल कमल हो गये
          नैन तुमसे मिले फिर सजल हो गये  "
         "साथ रहकर तुम्हारे सजन आज तो
           फूस के घर भी हमको महल हो गये "( पृष्ठ संख्या: 51)

          अब न पहले वाला वह प्यार की सुगंध से सुवासित परिवेश रहा और न ही संयुक्त परिवार रहे । विघटित होकर संयुक्त परिवार एकल परिवार के रूप में आ पहुंचे हैं । इस बदलते समाज और आत्मीयता से परे परिवेश के दर्द को अनुभव किया है डा अर्चना गुप्ता जी ने और जिया है इस वेदना को ---
   " कहानी है न नानी की,नसीहत भी न दादी की
    हुए हैं आजकल एकल यहाँ परिवार जाने क्यों"(पृष्ठ  )

     यही कारण है कि लाडली बेटी को अपने पापा बहुत याद आते हैं । खो जाना चाहती है वह  उन यादों में जहाँ उसे आत्मीयता,  स्नेह, परवरिश, संस्कार मिले थे और मिली थी आत्मनिर्भर स्वाभिमानी ज़िंदगी जीने के लिए----
      "तुम्हें ही ढ़ूढ़ती रहती तुम्हारी लाडली पापा
      तुम्हारे बिन हुई सुनी बहुत ये ज़िंदगी पापा
      सिखाया था जहाँ चलना पकड़ कर उँगलियाँ मेरी
     गुजरती हूँ वहाँ से जब बुलाती वो गली पापा "( पृष्ठ:3 )

        आशावादी दृष्टिकोण लिये--
   " देखिये नफ़रतें भी मिटेंगी यहाँ
     प्यार का एक दीपक जला  लीजिये ( पृष्ठ:36)
   
      मनचाहा प्यार पाने का अहसास किसी खज़ाने से कम नहीं---
     " अर्चना" उनकी मुहब्बत क्या मिली
      हाथ में जैसे खज़ाना आ गया "( पृष्ठ:39)

      यथार्थ के धरातल का स्पर्श करती यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है---
     " लाख ख़ामोश लब रहें लेकिन
       आँसुओं से वो भीग जाते हैं "( पृष्ठ 45)

     जो दूसरे के दिल में हुए गहरे जख़्म अहसास कर उसे शब्दों में पिरो दे , वह सच्चा फ़नकार है --
     " झाँक कर दिल में जो देखा जख़्म इक गहरा मिला
       आँख में पर आँसुओं का सूखता दरिया मिला "( पृष्ठ: 52 )

    डा अर्चना गुप्ता जी  एक शायरा के रूप में कहीं अकथ कथा के दर्द को जीतीं हैं तो कहीं दूसरे में वो व्यथा- सरिता को चरम पीड़ा से सूखती देखतीं हैं ; कहीं आप ग़ज़लों में श्रंगार के संयोग- वियोग भावों को शब्दायित करतीं हैं तो कहीं आपकी कलम अपने अहसासों को तल्ख़ी के साथ उकेरती भी है। आपकी सभी ग़ज़लें सरल, सहज, बोध-गम्य, और साफ- सुथरीं हैं ।ऐसे ग़ज़ल संग्रह:" ये अश्क होते मोती " का हृदय से स्वागत है । डा अर्चना गुप्ता जी को हार्दिक शुभकामनाएं और लिखें, कृतियाँ प्रकाशित हों और उनका स्वागत हो । आप स्वस्थ और दीर्घायु हों । वह फिर  प्यार के सागर में डूब कर यूं कहें ---
   " हम जो डूबे प्यार में तो शायरी तक आ गये "
   शुक्रिया


*कृति: ये अश्क होते मोती (ग़ज़ल संग्रह )
*रचनाकार:  डा अर्चना गुप्ता
*प्रकाशक: साहित्यपीडिया पब्लिकेशन
*प्रथम संस्करण : वर्ष 2017
*मूल्य: 199₹
**समीक्षक : जितेन्द्र कमल आनंद
राष्ट्रीय महासचिव एवं संस्थापक
आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा,  रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल: 7300635812
      

बुधवार, 3 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की कहानी------त्रासदी


     सुबोध और सीमा ,उम्र  75 से 80 के बीच, दोनों नोएडा में एक सोसाइटी में रहते थे। बच्चे बंगलौर और मुम्बई में थे ।
लॉकडाउन  की वजह से दोनों डरे हुए थे। सोसाइटी वालों ने उनकी प्रॉब्लम देखते हुए उनकी बाई का आना बंद नहीं किया था।
 सुबोध सेना से रिटायर हुए थे ।बहुत समझदार और परिपक्व सोच के थे। उसके बाद नोएडा ही बस गए थे। बच्चों के पास उनका मन नहीं लगता था। सबकी अपनी अपनी ज़िंदगी थी उसमें तारतम्य बैठाना आसान काम नहीं था। सम्बन्धों में प्रेम और अपनापन बना रहे इसलिये उन्होंने अलग रहने का फैसला लिया था। बीच बीच मे या तो वो बच्चों के पास चले जाते या कभी  1-2 दिन को बच्चे आ जाते। ज़िन्दगी आराम से चल रही थी।
सुबोध कभी कभी बस ये   सोचकर परेशान हो जाते थे 'अगर मैं  नहीं रहा तो सीमा का क्या होगा' ...फिर वह सोच लेते जो होना है होगा ही...सोचकर क्यों परेशान होना। ज़िन्दगी ऐसे ही चल रही थी कि कोरोना ने मुश्किल में डाल दिया। सीमा से तो कुछ नहीं कहते पर सुबोध अंदर ही अंदर परेशान रहने लगे। अब वो किसी से मिल भी नहीं पाते थे । बस दोस्तों से फोन पर बात करते रहते थे। बच्चों के फोन भी कभी कभी आ जाते थे । नीचे जाकर वह दूध सब्जी फल ले आते थे।
 दो महीने बीत गए थे। कोरोना की स्थिति बिगड़ती ही जा रही थी। उनका मन का डर भी बढ़ता जा रहा था। और वही हुआ जिसका डर था। एक दिन उन्हें खुद को फीवर सा लगा। गले मे दर्द भी था। उन्हें समझ में आ गया कि वह कोरोना की चपेट में आ चुके हैं और सीमा को भी अवश्य कोरोना होगा। बाहर किसी से कहने का मतलब था उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ता । फिर  सीमा का क्या होगा । यही सोचकर वह परेशान थे।
   अचानक उन्होंने एक फैसला किया। यह कहकर कामवाली को आने से मना कर दिया कि वह बच्चों के पास जा रहे हैं। पैसे वह कोरोना की वजह से उसे काफी एडवांस दे चुके थे। सीमा को भी बुखार आ गया था । उसे सांस लेने में बहुत परेशानी हो रही थी । वह उसे गर्म पानी पिलाते , भाप देते। पर बूढ़ी हड्डियां इतना कष्ट नहीं झेल सकीं उसने पति की बाहों में ही प्राण त्याग दिए। सुबोध ने आँखें मूंद ली। उनमें से आँसू टपक रहे थे । उन्होंने बेटे को फोन लगाया। सब हाल चाल लिया। फिर बेटी को फोन किया। किसी को कुछ नहीं बताया। वह जानते थे सुनने के पश्चात सब बेहद परेशान हो जाएंगे और उनका यहां आ पाना सम्भव नहीं है। वे सब ठीक हैं ये जानकर उन्हें  संतोष हुआ। फिर अपने सबसे प्रिय मित्र को फोन लगाया। और फूट -फूट कर रो पड़े। उन्हें सीमा की मृत्यु का समाचार दिया। वह और बात नहीं कर सके। उन्होंने  फोन काट दिया।
मित्र घर से बाहर नहीं जा सकता था उसने  घबराकर सबको फोन कर दिया । बच्चों ने सोसाइटी में फोन किया। फौरन गार्ड ने आकर उनकी  बेल  बजाई।कोई आवाज न आने पर दरवाजा तोड़ा गया। अंदर सीमा के चेहरे पर चेहरा रखे सुबोध भी  गहरी निंद्रा में सो रहे थे  उनके प्राण भी छूट चुके थे ....सबकी आँखे उन दोनों को देखकर नम थी। बच्चे भी नहीं आ पाए। ट्रैन फ्लाइट सब बन्द थीं। कार से इतनी जल्दी आना सम्भव नहीं था। पुलिस द्वारा ही उनका दाह संस्कार कर दिया गया। कोरोना का ये कहर पता नहीं कब तक चलेगा ...ये कितनी ज़िन्दगी और लीलेगा....

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001

मंगलवार, 19 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की तीन ग़ज़लें -----



(1)

वक़्त के साथ बदलते हैं ज़माने वाले 
फेर लेते हैं नज़र नाज़ उठाने वाले

कल तलक सर पे बिठाया था जिन्होंने हमको 
अब हमारे हैं वही ऐब गिनाने वाले 

मरने के बाद कहाँ याद कोई करता है 
रहते पर मर के अमर नाम कमाने वाले

जख्म भी मिलते हमें रहते यहाँ अपनों से 
होते हैं गैर नहीं दिल को दुखाने वाले

पढ़ते पढ़ते ही इन्हें गुनगुना उठते हैं लब 
गीत  होते हैं मधुर गा के सुनाने वाले

लोगों के कहने की परवाह नहीं करना तुम 
कुछ तो होते ही हैं बस बातें बनाने वाले 

है ये विश्वास कि डूबेंगे यहाँ हम भी नहीं 
आयेंगे 'अर्चना' हमको भी बचाने वाले


(2)

 मीलों की ये दूरियाँ, करते पैदल पार 
ये गरीब मजदूर भी, कितने हैं लाचार 

ऊँची बड़ी इमारतें, जो गढ़ते मजदूर 
वे ही बेघर हो गये,हैं कितने मजबूर 

बच्चा ट्रॉली पर लदा, बना हुआ भी बैल
कैसे कैसे दृश्य से, भरा हुआ है गैल

आती ही है आपदा, लेकर कष्ट अपार 
वक़्त बीत ये जाएगा, थोड़ा धीरज धार 


(3)

 सारा अनुमान गलत मेरा सरासर निकला 
हीरा अनमोल जिसे समझा वो पत्थर निकला 

मुस्कुराहट पे फिदा जिसकी ज़माना भर था 
आँखों में उसके भी लहराता समंदर निकला 

चीर कर रख दिया दिल उसकी जफ़ाओं ने ही 
प्यार समझे थे जिसे तेज़ वो खंजर निकला

मुझको रहने न दिया तन्हा कभी जीवन में 
रोज तन्हाइयों में यादों का लश्कर निकला 

कर्म की दौड़ में आगे रही फिर भी हारी 
और दुश्मन भी मेरा अपना मुकद्दर निकला

बाग फूलों का लगाया बड़े दिल से मैंने 
ऐसा उजड़ा कि न आँखों से वो मंजर निकला

'अर्चना' आपदा आई थी चली भी वो गई 
अब तलक भी न मेरे दिल से मगर डर निकला 


✍️  डॉ अर्चना गुप्ता 
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल --- खोल लो मन में कुछ ज्ञान की खिड़कियाँ धर्म के नाम पर जलजला मत करो


अपने घर में रहो, ज़िद किया मत करो
बेवजह मुश्किलों को बड़ा मत करो

खोल लो मन में कुछ ज्ञान की खिड़कियाँ
धर्म के नाम पर जलजला मत करो

दिल से दिल का मिलाना ही देखो बहुत
अब किसी से गले तुम मिला मत करो

जान भी अपनी तो अपने ही हाथ अब
मैले होने इन्हें तुम दिया मत करो

फैल जाती हैं अफवाह इनसे बड़ी
बात कोई बढ़ाकर कहा मत करो

रूठ तुमसे न जाए तुम्हारा ही दिल
खुद से यूँ गुमशुदा तुम रहा मत करो

‘अर्चना’ दौर मुश्किल गुज़र जाएगा
बस गलत राह पर तुम चला मत करो


डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456032268

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल --बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे, हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें


छुपाती मीडिया भी है बहुत सरकार की बातें
बहुत घूमी हुई होती हैं अब अखबार की बातें

कभी प्रॉमिस कभी टेडी कभी तो रोज डे मनते
जुबां पर आजकल सबके ही देखो प्यार की बातें

ये नेता खुद तो चलते हैं सदा विपरीत धारा के
मगर जनता से करते हैं नदी की धार की बातें

किसी को याद अपने फ़र्ज़  तो रहते नहीं देखो
यहाँ सब चीखकर करते मगर अधिकार की बातें

बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे
हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें

नहीं पथ छोड़ना सच का यहाँ डरकर विरोधों से
जहाँ पर फूल हैं होंगी वही पर खार की बातें

जगाना 'अर्चना' है जोश लोगों के दिलों में अब
कलम से हो रही हैं इसलिये ललकार की बातें

***डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 28 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल -- करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार


कोरोना का है कहर, जूझ रहा संसार
बढ़ते ही अब जा रहे, इसके हुये शिकार

घर की सीमा में रहो, करो एक ये काम
कोरोना का बस यही, देखो है उपचार

जल को भी करना नहीं है हमको बर्बाद
हाथों को ये ध्यान रख, धोना बारंबार

हाथ जोड़ कर ही करो, सबको यहाँ प्रणाम
हाथ मिलाने के नहीं, अपने हैं संस्कार

खड़ी सामने मौत है, इसका रखना ध्यान
खतरनाक देखो बड़ा , कोरोना का वार

करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान
आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार

इक दूजे से दूर रह, टूटेगी जब चेन
हो जाएगी पूर्णतः, कोरोना की हार

कोरोना की मार ने, दिया ‘अर्चना’ वक़्त
चिंताओं को छोड़कर, खुद से कर लो प्यार


डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 24 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत --बन्द घरों में रहने को अब होना है तैयार हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार



हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
गले मिलेगा इक दूजे से पूरा ये संसार


आज बनाता हम सबका ही आने वाला कल है
मानव को मिलता उसकी ही हर करनी का फल है
मांसाहार छोड़कर खाना है बस शाकाहार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार

बार बार अपने हाथों को रगड़ रगड़ कर धोना
जिम्मेदारी खूब निभाना लापरवाह मत होना
ऐसे ही इस महा असुर का करना है संहार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार

जनता कर्फ्यू का पालन हम सबको ही करना है
आगामी दुष्परिणामों से चेतन मन रहना है
बन्द घरों में रहने को अब होना है तैयार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार

सोच समझ कर देखभाल कर बस निर्णय लेना है
फैल रही इन अफवाहों पर कान नहीं  देना है
कोरोना के हर प्रहार पर करो पलट कर वार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार


*************** गजल******************

मुफ्त में मिल गया है कोरोना
जान लेवा बना है कोरोना

विश्व का युद्ध अब छिड़ा कैसा
वार बम से बड़ा है कोरोना

जान ले लीं हज़ारों की इसने
दर्द ही दे रहा है कोरोना

ध्यान चेतावनी पे दो लोगो
छूने से फैलता है कोरोना

चलती साँसों का है बड़ा दुश्मन
लगता यमराज सा है कोरोना

'अर्चना' हो सभी अलग जाओ
अब इसी पर टिका है कोरोना


 ************कुंडली ************

घर की सीमा से नहीं, अपने कदम निकाल
कोरोना बन जाएगा, वरना तेरा काल
वरना तेरा काल,फैलता ये जायेगा
फिर इस पर कंट्रोल, न कोई कर पायेगा
लड़ें  'अर्चना' वीर, हमारे ज्यूँ  सीमा पर
करना है वो काम, हमारी सीमा है घर


**डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत 

शनिवार, 21 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की बाल कविता – क से कविता हो रही कोरोना पर आज ....


क से कविता हो रही कोरोना पर आज
ख से खत्म करना हमें कोरोना का राज
ग से गमन न कीजिये रखना इसका ध्यान
घ से घर पर बैठिये कहना लीजे मान
च से जमा न होइये कहीं लोग भी चार
छ से छुपाना  भी नहीं इसको देखो यार
ज से मुश्किल में पड़ी हम सबकी है जान
झ से झांक बालकनी से इतना कहना मान
ट के टकराना नहीं रखना बस अलगाव
ठ से कैसा आ गया दुनिया में ठहराव
ड से डरना भी नहीं बात रहे ये याद
ढ़ से ढकने से इसे होंगे हम बर्बाद
त से ताकतवर नहीं वैसे ये कमजोर
थ से थामना हमें इसका बढ़ता जोर
द से दवा से नहीं इसका चलता काम
ध से धर्म हमारा करनी इसकी  रोकथाम
न से नियमों को सभी देखो अब  लो मान
प से पाओगे बचा कोरोना से जान
फ से फल मीठा पाने का भी  सुन लो ये राज
ब से बरतो सावधानियां कुछ सब मिलकर  आज
भ से भूल न जाना धोना अपने अपने  हाथ
म से मलना भी सब उनको साबुन के साथ
य से यारों से अपने रहना होगा दूर
र से रोने के लिए हमें नहीं होना  मजबूर
ल से लानी नई क्रांति है  लोगों में आज
व से  वजह ढूंढकर करना हमें इलाज
स से सफाई का होगा रखना हमको ध्यान
ज्ञ से हमें बढाना होगा अपना अपना ज्ञान
श से मांसाहार छोड़ खाओ बस शाकाहार
ह से हाथ नहीं मिलाना करना  सिर्फ नमस्कार

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 19 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की बाल कविता --- कोरोना पर निबंध



टीचर ने  निबंध लिखवाया कक्षा में  कोरोना पर
नया नया त्योहार इसे बच्चों ने बतलाया हँसकर
होली के ही आसपास ये तो आता है
छुट्टी भी लंबी लंबी ये करवाता है
पास बिना एग्जाम दिए ही करवा देता
हमको ये त्योहार बड़ा ही अच्छा लगता
बस थोड़ी सी बात यही न अच्छी लगती
कोई पार्टी पिकनिक नही  करने को मिलती
बार बार ही हाथ धुलाती मम्मी रहती
बाहर मत जाना बस ये ही हमसे कहती
चाट पकौड़ी पिज़्ज़ा बर्गर छुट्टी सबकी
बात बात पर कोरोना की मिलती धमकी
लेकिन ये कोरोना अपने मन भाया है
छुट्टी का आनन्द इसी ने दिलवाया है
आज़ाद किया इसने बच्चों को टेंशन से
उतार पढ़ाई का बोझ दिया बिल्कुल  मन से
पढ़कर इसको टीचर जी का सर चकराया
भूल गए वो अपना सारा पढ़ा पढ़ाया

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 10 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता दे रही है साहित्यकारों को उपाधियां ....


हम सबकी मीना दीदी तो, अपने ग्रुप की शान
हिंदी उर्दू इंग्लिश सबमें, कितना इनका ज्ञान
 जोगीरा सा रा रा रा रा

अपने भाई मनोज जी ग्रुपों में, खूब मारते फ्लिक
लिंक डाल डाल कर बस कहें, करो इसे सब क्लिक
जोगीरा सा रा रा रा रा

नृपेंद्र कहानी यूँ लिखते है, डर से उड़ते रंग
लेकिन भाता है हम सबको, उनको प्यारा संग
जोगीरा सा रा रा रा रा


शशि कमलेश इला सीमा, अब घूंघट दो खोल
आओ बोलो अब प्यार भरे, मीठे बस दो बोल
जोगीरा सा रा रा रा रा

रीता संगीता मीनाक्षी, खेल रही  हैं फाग
अलग  स्वरों  में सुना रहीं हैं ,तीनों  मीठे राग
जोगीरा सा रा रा रा रा

राजीव प्रखर श्री कृष्ण शुक्ल जी भाई सूर्यकांत
तरकस में इनके तीर बहुत हैं, दिखें भले ही शांत
जोगीरा सा रा रा रा रा

मोनिका अखिलेश जी फेंक रहे, हैं गज़लों के रंग
पिये हुये अशआर सभी हैं,ताज़ी ताज़ी भंग
जोगीरा सा रा रा रा रा


ममता खड़ी तेजस्विनी  का, लिये बड़ा सा ताज
इससे लेनी भैया पक्की , पार्टी हमको  आज
 जोगीरा सा रा रा रा रा

कर भी लो अब राहत जी, गुंझिया जैसी बात
वाह वाह की पिचकारी से, कर दो अब बरसात
जोगीरा सा रा रा रा रा


चढ़ा मयंक का नशा खूब है, फीकी सारी भंग
सुन मीठे  उसके गीतों को , जमा हुआ  है रंग
जोगीरा सा रा रा रा रा

करते अशोक विश्नोई जी, खरी खरी हर बात
अगर गलत कोई बात कही, तो खड़ी करेंगे खाट
जोगीरा सा रा रा रा रा

रवि प्रकाश जी के कितने सारे, कुंडलियों के रंग
राम किशोर जी के छंद भी , नाचे उनके संग
जोगीरा सा रा रा रा रा

**डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत