(1)
वक़्त के साथ बदलते हैं ज़माने वाले
फेर लेते हैं नज़र नाज़ उठाने वाले
कल तलक सर पे बिठाया था जिन्होंने हमको
अब हमारे हैं वही ऐब गिनाने वाले
मरने के बाद कहाँ याद कोई करता है
रहते पर मर के अमर नाम कमाने वाले
जख्म भी मिलते हमें रहते यहाँ अपनों से
होते हैं गैर नहीं दिल को दुखाने वाले
पढ़ते पढ़ते ही इन्हें गुनगुना उठते हैं लब
गीत होते हैं मधुर गा के सुनाने वाले
लोगों के कहने की परवाह नहीं करना तुम
कुछ तो होते ही हैं बस बातें बनाने वाले
है ये विश्वास कि डूबेंगे यहाँ हम भी नहीं
आयेंगे 'अर्चना' हमको भी बचाने वाले
(2)
मीलों की ये दूरियाँ, करते पैदल पार
ये गरीब मजदूर भी, कितने हैं लाचार
ऊँची बड़ी इमारतें, जो गढ़ते मजदूर
वे ही बेघर हो गये,हैं कितने मजबूर
बच्चा ट्रॉली पर लदा, बना हुआ भी बैल
कैसे कैसे दृश्य से, भरा हुआ है गैल
आती ही है आपदा, लेकर कष्ट अपार
वक़्त बीत ये जाएगा, थोड़ा धीरज धार
(3)
सारा अनुमान गलत मेरा सरासर निकला
हीरा अनमोल जिसे समझा वो पत्थर निकला
मुस्कुराहट पे फिदा जिसकी ज़माना भर था
आँखों में उसके भी लहराता समंदर निकला
चीर कर रख दिया दिल उसकी जफ़ाओं ने ही
प्यार समझे थे जिसे तेज़ वो खंजर निकला
मुझको रहने न दिया तन्हा कभी जीवन में
रोज तन्हाइयों में यादों का लश्कर निकला
कर्म की दौड़ में आगे रही फिर भी हारी
और दुश्मन भी मेरा अपना मुकद्दर निकला
बाग फूलों का लगाया बड़े दिल से मैंने
ऐसा उजड़ा कि न आँखों से वो मंजर निकला
'अर्चना' आपदा आई थी चली भी वो गई
अब तलक भी न मेरे दिल से मगर डर निकला
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश
वाह,वाह,वाह ।
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