सोमवार, 22 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के गजल संग्रह "ये अश्क होते मोती" की जितेंद्र कमल आनन्द द्वारा की गई समीक्षा

 डॉ अर्चना गुप्ता जी का ग़ज़ल-संग्रह "ये अश्क होते मोती' मेरे हाथों में है, पृष्ठ संख्या: 99 खुलता है --
    "नज़र के पार पढ़ लेना
      हमारा प्यार पढ़  लेना
      नहीं होता सुनो काफ़ी
      कथा का सार पढ़ लेना"

    पढ़ने का प्रयास कर रहा हूँ । अपनी बात को अश्आर ( शेरों) में पिरोने का यह हुनर , उनकी शायरी में सफलता है । भाव और शब्द संयोजन के धरातल पर मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने में भी आप कामयाब हैं ; जैसा कि उनको और भी पढ़ा और पाया कि आपका यह सम्पूर्ण सृजन ही काव्य- शिल्प एवं भाव संबंधी दोनों पक्षों का सामंजस्य पूर्ण है । आपकी लेखनी कह रही है कि डा अर्चना जी एक परिपक्व सृजनकार हैं, एक अच्छी शायरा भी। यही कारण है कि आप बहुत ही सरलता से अपने जज़्बातों को व्यक्त करने में पीछे नहीं रहीं हैं ----
        " शब्द आयात निर्यात करते रहे
         यूं बयां अपने जज़्बात करते रहे

          जब मिले वो हमें, हाल पूछा नहीं
          बस सवालों की बरसात करते रहे "( पृष्ठ: 75 )

        जहाँ नि:स्वार्थ सच्चा प्रेम है,  वहाँ जंगल में भी मंगल का अनुभव होने लगता है। अभावों से उत्पन्न होने वाली दु:अनुभूतियों का स्पर्श भी नहीं हो पाता ---
       " प्यार जब से मिला, खिल कमल हो गये
          नैन तुमसे मिले फिर सजल हो गये  "
         "साथ रहकर तुम्हारे सजन आज तो
           फूस के घर भी हमको महल हो गये "( पृष्ठ संख्या: 51)

          अब न पहले वाला वह प्यार की सुगंध से सुवासित परिवेश रहा और न ही संयुक्त परिवार रहे । विघटित होकर संयुक्त परिवार एकल परिवार के रूप में आ पहुंचे हैं । इस बदलते समाज और आत्मीयता से परे परिवेश के दर्द को अनुभव किया है डा अर्चना गुप्ता जी ने और जिया है इस वेदना को ---
   " कहानी है न नानी की,नसीहत भी न दादी की
    हुए हैं आजकल एकल यहाँ परिवार जाने क्यों"(पृष्ठ  )

     यही कारण है कि लाडली बेटी को अपने पापा बहुत याद आते हैं । खो जाना चाहती है वह  उन यादों में जहाँ उसे आत्मीयता,  स्नेह, परवरिश, संस्कार मिले थे और मिली थी आत्मनिर्भर स्वाभिमानी ज़िंदगी जीने के लिए----
      "तुम्हें ही ढ़ूढ़ती रहती तुम्हारी लाडली पापा
      तुम्हारे बिन हुई सुनी बहुत ये ज़िंदगी पापा
      सिखाया था जहाँ चलना पकड़ कर उँगलियाँ मेरी
     गुजरती हूँ वहाँ से जब बुलाती वो गली पापा "( पृष्ठ:3 )

        आशावादी दृष्टिकोण लिये--
   " देखिये नफ़रतें भी मिटेंगी यहाँ
     प्यार का एक दीपक जला  लीजिये ( पृष्ठ:36)
   
      मनचाहा प्यार पाने का अहसास किसी खज़ाने से कम नहीं---
     " अर्चना" उनकी मुहब्बत क्या मिली
      हाथ में जैसे खज़ाना आ गया "( पृष्ठ:39)

      यथार्थ के धरातल का स्पर्श करती यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है---
     " लाख ख़ामोश लब रहें लेकिन
       आँसुओं से वो भीग जाते हैं "( पृष्ठ 45)

     जो दूसरे के दिल में हुए गहरे जख़्म अहसास कर उसे शब्दों में पिरो दे , वह सच्चा फ़नकार है --
     " झाँक कर दिल में जो देखा जख़्म इक गहरा मिला
       आँख में पर आँसुओं का सूखता दरिया मिला "( पृष्ठ: 52 )

    डा अर्चना गुप्ता जी  एक शायरा के रूप में कहीं अकथ कथा के दर्द को जीतीं हैं तो कहीं दूसरे में वो व्यथा- सरिता को चरम पीड़ा से सूखती देखतीं हैं ; कहीं आप ग़ज़लों में श्रंगार के संयोग- वियोग भावों को शब्दायित करतीं हैं तो कहीं आपकी कलम अपने अहसासों को तल्ख़ी के साथ उकेरती भी है। आपकी सभी ग़ज़लें सरल, सहज, बोध-गम्य, और साफ- सुथरीं हैं ।ऐसे ग़ज़ल संग्रह:" ये अश्क होते मोती " का हृदय से स्वागत है । डा अर्चना गुप्ता जी को हार्दिक शुभकामनाएं और लिखें, कृतियाँ प्रकाशित हों और उनका स्वागत हो । आप स्वस्थ और दीर्घायु हों । वह फिर  प्यार के सागर में डूब कर यूं कहें ---
   " हम जो डूबे प्यार में तो शायरी तक आ गये "
   शुक्रिया


*कृति: ये अश्क होते मोती (ग़ज़ल संग्रह )
*रचनाकार:  डा अर्चना गुप्ता
*प्रकाशक: साहित्यपीडिया पब्लिकेशन
*प्रथम संस्करण : वर्ष 2017
*मूल्य: 199₹
**समीक्षक : जितेन्द्र कमल आनंद
राष्ट्रीय महासचिव एवं संस्थापक
आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा,  रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल: 7300635812
      

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