रविवार, 16 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से दो दिवसीय ऑनलाइन चर्चा


वाट्स एप पर संचालित समूह  'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14 व 15 मई 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में श्री प्रवासी जी की प्रकाशित - अप्रकाशित अनेक रचनाएं, उनसे सम्बंधित चित्र प्रस्तुत किये गए।


मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ
के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  सम्भल के कस्बे सिरसी में आश्विन शुक्ल नवमी सम्वत 1979 को   जन्मे प्रवासी जी की काव्य रचनाओं में न केवल अध्यात्म व श्रृंगार रस का पुट है वरन देश में व्याप्त सामाजिक विद्रूपताओं, विषमताओं, शोषण तथा वर्तमान समस्याओं आदि का भी पुट मिलता है। 'प्रवासी पंच सई', 'मंगला' और 'सीपज' उनकी उल्लेखनीय काव्य कृतियाँ हैं। आपका निधन वर्ष 2004 में दीपावली के दिन 12 नवम्बर को हुआ   

प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा  कि कविश्रेष्ठ बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी ने विभिन्न छंदों ,रूपों में लेखन किया है । अपने बेटे के निधन के बाद उन्होंने कुछ गीत लिखे जो वेदना नामक संग्रह में हैं ।इस दृष्टि से उन्हें मुरादाबाद के शोकांतिका लेखन का प्रथम रचनाकार होने का गौरव दिया जा सकता है । वे जिस पीढ़ी के थे उस कालखंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनके कृतित्व का सही मूल्यांकन होना अभी शेष है  । मनोज रस्तोगी ने उन्हें विस्मृति के गर्भग्रह से बाहर निकाला है इसके लिए उन्हें साधुवाद। अब शोध अध्ययन में लगे लोगों का दायित्व है कि उनके सम्यक विश्लेषण से अपना दायित्वपूर्ण कर्तव्य का निर्वहन करें ।    

केजीके महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी ' ने मानवीय जीवन की विभिन्न सम्वेदनाओं को सहज -सरल रूप में जन - जन तक अपनी कविताओं के माध्यम से पहुंचाने का प्रयास किया है ।श्रृंगार की अनूठी अभिव्यंजना ,राष्ट्र के प्रति समर्पित क्रांतिकारी विचारधारा एवं पारिवारिक मूल्यों के साथ ही परम्पराओं को सहेजने का सफल प्रयास उनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता है । तत्कालीन मूल्यों को बचाये रखने के साथ ही कवि अपने समय के साथ तमाम वैचारिक क्रांति को अपने साहित्य में समाहित करके चलते दिखते हैं

वयोवृद्ध साहित्यकार सुरेश दत्त शर्मा पथिक ने कहा प्रवासी जी ने सीधी सादी सरल भाषा रुपी धागे में मधुर भावों के रंग बिरंगे सीपजों को यत्नपूर्वक पिरोकर जो माला प्रस्तुत की है वह श्रोता तथा पाठकों के मन को मोहित किये बिना नहीं रह सकती।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि  श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जन जन के कवि थे ।उन्होंने विभिन्न सामाजिक विसंगतियों, असमानता, मानवीय मूल्यों के क्षरण, देशभक्ति के साथ साथ जीवन दर्शन और अध्यात्म पर भी अपनी कलम चलायी । इसके अतिरिक्त उन्होंने कहीं कहीं अपनी गज़लों में प्रेम को भी अत्यंत सहजता से परिभाषित किया।
    
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि प्रवासी जी सम्वेदना, सरलता, सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उनका साहित्य अध्यात्म के मर्म से भरा पड़ा है । उनका लेखन पीड़ा के अथाह सागर तरंगों जैसा है कहीं वियोग के दर्शन होते है तो कही मिलन की तीव्र आकांक्षा ।
बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा कि जीवन के अभावों और विश्वासघातों ने कवि को शायद इतनी पीड़ा दी है कि दुख या अवसाद उनका स्थायी 'मूड' बन गया है।
     
जनवादी रचनाकार शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि प्रवासी जी ने अपनी रचनाओं में समाज में गिरते मानवीय व सांस्कृतिक मूल्यों,घटती जाती भाईचारे की भावना, मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण, विभिन्न तरह की विसंगतियों तथा भ्र्ष्टाचार को उजागर किया है।   वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज  ने कहा कि प्रवासी जी ने हास्य-व्यंग्य को छोड़कर लगभग सभी विधाओं पर लेखनी चलायी है। उन्होंने गीत भी लिखे हैं और नवगीत भी, बाल-कविताएँ भी लिखी हैं और भक्तिपूर्ण कविताएँ भी। लेकिन वह सोच के धरातल पर कभी डगमगाये नहीं। उनकी रचनाएँ शिष्ट भी हैं और विशिष्ट भी। समाज में फैली विसंगतियों और भ्रष्टाचार को भी उन्होंने निशाना बनाया है।         

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा यह वर्ष उनका जन्म शताब्दी वर्ष (संवत 1979 - 2079) है। उनका मूल स्वर वेदना से भरा हुआ है ।  उनकी वेदना निजी नहीं थी ,वह सहस्त्रों हृदयों की भावनाएं थीं।  ऐसे कवि कम ही होते हैं जो संसार के राग और लोभों के प्रति अनासक्त रहकर लगातार ऐसी काव्य रचना कर सकें , जिसमें एक सन्यासी की भांति समय आगे बढ़ता जा रहा है और कवि उस यात्रा को ही मंगलमय मानते हुए प्रसन्नता से बढ़ता चला जा रहा है । श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी एक ऐसी ही अमृत से भरी मुस्कान के धनी कवि हैं। 

फ़िल्म निर्देशक,निर्माता एवं साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि प्रवासी" जी हिन्दी साहित्य जगत के अनमोल रत्न थे। उन्होंने हिन्दी गज़ल को एक नया मुकाम दिया। उनके साहित्य में समाज के विभिन्न रूपों के दर्शन हो जाते हैं।
         
युवा साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि प्रवासी जी का प्रकाशित साहित्य भले ही विपुल मात्रा में न हो,पर उसका स्तर मानक व प्रेरक है।उन्होंने राष्ट्रप्रेम,नीति,श्रृंगार,भक्ति आदि विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलायी है।उनका मुख्य स्वर प्रेम का ही है।उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों को अपनी कला से अलंकृत किया है। रीतिकालीन कवियों की भांति उनके श्रृंगारिक (संयोग) दोहे भी खासे ध्यानाकर्षित करते हैं।रूपक,उपमा और विशेषतः उत्प्रेक्षा अलंकार से सजे ये श्रृंगारिक दोहे नायिका का अद्भुत चित्रण करते हैं और सर्वथा हटकर बिम्ब प्रस्तुत करते हैं।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी' जी  मानवीय जीवन की विभिन्न संवेदनाओं को सरल व सहज रूप में पाठकों तक पहुँचाने में वह सफल रहे हैं। प्रकृति को आधार बनाते हुए श्रृंगार की अनूठी अभिव्यक्ति, राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने का क्रांतिकारी आह्वान अथवा पारिवारिक मूल्यों को सफलता के साथ उभारने व उनके प्रति सचेत करने की उनकी मनोहारी ललक, सभी कुछ उनके एक महान रचनाकार होने का स्पष्ट समर्थन करता है।  
      
युवा साहित्यकार फरहत अली खान ने कहा कि उन की रचनाओं में श्रृंगार, भक्ति और कुछ हद तक वीर रस के साफ़ निशानात मौजूद हैं। विषयों की विविधता के पैमाने पर प्रवासी जी ग़ज़लकार से ज़्यादा दोहाकार और गीतकार थे।
 

रामपुर के साहित्यकार शिवकुमार चंदन ने कहा कि स्मृति  शेष  श्रद्धेय कवि श्रेष्ठ श्री  बहोरन सिंह  वर्मा  प्रवासी, आदरणीय  साहित्य पुरोधा कवि श्री पुष्पेन्द्र वर्णवाल सहित  अनेक  साहित्यिक क्षेत्रों के  मूर्धन्य साहित्यकार रामपुर के  साहित्यिक आयोजन में  आया करते थे और मुझे भी ऐसे  महान व्यक्तित्व के  धनी  कवि  साहित्यिक  व्याख्यान सुनने  एवं  उनके  सामीप्य का  लाभ  प्राप्त हुआ था ।
 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम  ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा - एक सरल व्यक्तित्व। कमीज़ पायजामा ,सिरपर सफेद टोपी, आंखों पर चश्मा,हाथ में बेंत,और कपड़े का एक थैला,पांव में चप्पल/जूता।एक श्रेष्ठ कवि, सशक्त हिन्दी ग़ज़ल कार। इस सम्पूर्ण छवि का नाम था बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी।
     
वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने उनसे सम्बंधित संस्मरण प्रस्तुत किये।  उन्होंने कहा कि राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से हिंदी दिवस(14 सितंबर) को लाइनपार स्थित प्रज्ञा पीठ मंदिर में उनका सम्मान किया गया था। कार्यक्रम समयानुसार प्रारंभ हुआ।शहर के गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी भव्यता प्रदान की।सम्मान प्रदान करने का शुभ समय आया।मैंने और आदरणीय दया शंकर पांडे के साथ-साथ श्री अनजाना जी,ने शॉल ओढ़ाकर तथा श्री अशोक विश्नोई ,डॉ प्रेमवती उपाध्याय जी ने श्री फल देकर बहुत हर्ष व्यक्त किया।आपके जीवन परिचय पढ़ने का कार्य आदरणीय व्योम जी द्वारा सम्पन्न किया गया।
     
गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि  प्रवासी जी का व्यक्तित्व नए रचनाकारों के लिए एक आदर्श है। उनके गीत ग़ज़ल सभी से एक बात परिलक्षित होती है कि वह प्रतिपलवेदना में डूबे हुए  ही प्रतीत होते हैं।साहित्य जगत के जगमगाते सूरज,  एकदम सरल व्यक्तित्व के धनी" सादा जीवन उच्च विचार" उक्ति को चरितार्थ करते शत शत नमन ।
अंत में प्रवासी जी के पौत्र राहुल वर्मा ने  कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से डॉ मनोज रस्तोगी के संयोजन में आयोजित इस कार्यक्रम से हम सभी परिजन प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं । उन्होंने कार्यक्रम में शामिल सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया।
   
   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें