रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा की ग़ज़ल --- जीवन संघर्षों को लेकर हम जब भी कमज़ोर पड़ें, ताक़त बनकर साथ हमारे रहते चारों ओर पिता


मां है नदिया की गहराई तो नदिया का छोर पिता,

कभी न रुकने वाले जैसे सागर का हैं शोर पिता।


सबके अपने-अपने मन हैं सबके अपने सपने हैं,

घर की हर ज़िम्मेदारी को रखते अपनी ओर पिता।


माँ के मुख की रौनक तन का हर आभूषण उनसे है,

ईंगुर, बिंदी, काजल वाली आंखों की हैं कोर पिता।


आँसू के इक क़तरे को भी आने का अधिकार न था

पर जब विदा हुई बहना तो बरसे थे घनघोर पिता।


अपनेपन की ख़ुशबू पाकर महक रही उस माला में,

रिश्तों को फूलों सा गूँथे रखने वाली डोर पिता।


ज़ख्म मिले जीवनपथ में जो ख़ुद में उनको दफ़्न किया,

मुश्किल से मुश्किल पल में भी नहीं दिखे कमज़ोर पिता।


संकट की काली अँधियारी छाया जब भी छा जाती,

एक नई स्वर्णिम आभा की लेकर आते भोर पिता।


जीवन संघर्षों को लेकर हम जब भी कमज़ोर पड़ें,

ताक़त बनकर साथ हमारे रहते चारों ओर पिता।

✍️मयंक शर्मा, मुरादाबाद

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