गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी ---- भिखारी की बेटी


अक्सर मैं शाम को अपने घर के बाहर सड़क किनारे परचून की दुकान पर खड़ा हो जाता था रोज ही एक आंखों से माज़ूर भिखारी  एक दस साल की लड़की के कांधे पर हाथ धरे भीख मांगता वहां से गुजरता। वह कभी-कभी सामने की ओर सड़क किनारे थोड़ी देर के लिए बैठ भी जाया करता और  फिर कुछ देर के बाद वहां से चला जाता। मैं यह मंजर लगभग हर  रोज ही देखता ।एक दिन जब वह बैठने के लिए झुक रहा था तब उसके साथ रहती छोटी लड़की ने हल्की हंसी के साथ कुछ कहा जिसे सुनकर भिखारी काफी ज़ोर से खिलखिला उठा और फिर  कुछ कहते हुए बैठ गया। यह माजरा देखकर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसी कौन सी खुशी की बात थी जिसे सुनकर गिड़गिड़ा कर भीख मांगने वाले से बिना हंसे रहा नहीं गया। कहीं, यह हंसी व्यंगात्मक तो नहीं ?

 समीना ओ समीना भिखारी अपनी दस साल की मासूम बेटी को आवाज देते हुए बड़बड़ाया।  शाम हो गई है, इसका अभी तक पता नहींं? हर वक़्त जाने कहां  खेलती फिरती है ? भिखारी हाथ मेंं डंडा लेकर चारपाई से उठा और झोली ढूंढने की कोशिश करने लगा तब ही उलझे हुए बाल जिनमेंं छोटी-छोटी दो चोटियां बंधी थी। मैला सिलवटे पड़ा सलवार और बड़ा सा कुर्ता पहने दौड़ती हुई समीना आ गई ।आने के बाद समीना ने घिसी हुई रबड़ की दो पट्टियों वाली चप्पल चारपाई के नीचे से निकाल कर पहन ली। दिन ढल चुका था। हल्की ठंड होने लगी थी। ठंड से बचने के लिए उसने एक मैली से शॉल जो कई जगह से फटी थी। सर से इस तरह से ओढ़े कि उसका आधा शरीर ढक गया। बेटी के आने की आहट से अंधा भिखारी नाराज़ होते हुए फिर बड़बड़ाया। तुझे पता नहींं है शाम हो गई है अब हमें सवाल करने जाना होता है तू जानती है मैं देख नही सकता इसलिए तुझे साथ रखता हूँ सहमती हुई समीना ने खूंटी पर टंगी झोली उतारी और भिखारी के कंधे पर डाल दी फिर उसकी लाठी पकड़ आगे-आगे चलने लगी। भिखारी अल्लाह के नाम पर मोहताज को देते चलो बाबा ...कहता आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर निकलने के बाद तू चुप क्यों है बेटी ? कुछ नहींं अब्बा जी समीना ने हल्के से कहा। लगता है तुझे गुस्सा आ गया मैं तो बस यूं ही कह रहा था एक तो बेटी तेरे सिवा मेरा इस दुनिया मेंं है ही कौन इसलिए मुझे हर वक़्त तेरी फिक्र लगी रहती है ।और अब रात और सुबह के खाने का इंतज़ाम भी तो करना है तुझे पता है बेटी मेरे सीने मैं कई दिनों से बड़ा दर्द है । मैं सोच रहा था कुछ पैसे इकट्ठे हो जाएं तो किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा कर दवाई ले लूं । दर्द की बात सुनकर समीना से रहा नहींं गया वो बोल उठी अब्बा हम कल ही डॉक्टर को दिखाएंगे मैं जो पैसे गुड़िया खरीदने के लिए जोड़ रही हूं उन्ही पैसों से आपकी दवाई लेंगे समीना की बात सुनकर भिखारी का दिल भर आया और भर्राई आवाज़ से नहींं-नहींं बेटी इतना दर्द नहींं जो सहन न कर पाऊं कुछ दिन में पैसे जमा कर दवाई ले लेंगे।

कुछ देर की खामोशी के बाद भिखारी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा अच्छा समीना तू आजकल कई दिनों से कहां खेलने चली जाती है?जो मेरे आवाज़ देने के बाद भी देर से आती है।जब समीना ने अपने अब्बा को साधारण होते हुए देखा तो वो चहकते हुए बोली सीमा आंटी के घर चली जाती हूँ वहां ,क्यों?  वो मालदार लोग है बेटी, वहां मत जाया करो ।भिखारी ने नसीहत करते हुए कहा फिर कुछ देर के लिए दोनों खामोश हो गए । अच्छा चल बता वंहा तू क्यों जाती है ? अब्बा उनकी लड़की मेरे बराबर की है न उसके पापा इसी हफ्ते दुबई से आये हैं। वो उसके लिए एक बहुत खूबसूरत सेलो वाली गुड़िया लाये हैं, जो हंसती भी है और रोती भी है । मैं उसके साथ उस गुड़िया से खेलती रहती हूं। सेलो वाली गुड़िया ये कैसी होती है ? भिखारी ने अचरज से पूछा समीना फिर जल्दी-जल्दी गुड़िया के बारे में बताती चली गई और जब रुकी तो अरमान भारी नज़रो से अपने अब्बा को देखते हुए ऐसी ही गुड़िया खरीदने की ख्वाहिश भी ज़ाहिर कर दी । बेटी की फरमाइश सुनकर भिखारी ने ठंडी सांस ली और कहा बेटी वो तो बहुत महंगी होगी हम कैसे खरीदेंगे ? यह सुनकर समीना फिर बोली तीन सौ रुपये की है। यंहा बाजार मे भी मिल जाएगी सीमा आंटी बात रही थीं। ये तो बहुत पैसे हैं कैसे इकट्ठा होंगे भिखारी ने असमर्थता जताते हुए कहा तभी समीना कह उठी अब्बा मेरी मिट्टी की गुल्लक मैं बहुत पैसे हैं उसे तोड़ कर देखेंगे जितने काम होंगे आप दे देना ।यह सुनकर भिखारी अपनी बेबसी पर लरज़ गया और सोचने लगा काश वह अपनी बच्ची को वो गुड़िया दिला पाता वो सोचने लगा उसको क्या मालूम उसकी गुल्लक मैं कितने पैसे हैं ? और फिर जितना मिलता है उससे तो दो वक़्त की रूखी-सूखी रोटी का ही इंतेज़ाम हो पाता है । अल्लाह के नाम पर भीख मांगने वाले किसी से खिलोने की ख्वाहिश भी तो ज़ाहिर नही कर सकते और ना ही झूठ बोलकर भीख मांग सकता। ये सब बातें वो काफी देर तक सोचता रहा। कुछ ही देर मैं उसके चेहरे पर चमक लौटी और कहा ठीक है हम थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर कुछ दिनों मै गुड़िया ज़रूर खरीद लेंगे। यह बात सुनकर समीना खुश हो गई कई हफ़्तों की जद्दोजहद के बाद वो दिन आ गया जब भिखारी ने कुछ रुपयों का इंतज़ाम कर लिया लेकिन अभी भी कई रुपये की कमी थी जो पैसे पूरे करने के लिए समीना ने अपनी दो साल पुरानी गुल्लक तोड़ दी। 

गुड़िया खरीद कर समीना बहुत खुश थी लेकिन भिखारी की खुशी के साथ उसके सीने का दर्द भी बढ़ता जा रहा था किसी अनहोनी के डर से वह बेचैन था फिर भी वह खुश था । समीना अब हर वक़्त गुड़िया से खेलती रहती। रात को भी वह उसे अपने पास रखकर सोती ।समीना को उस बेजान खिलौने से इतना प्यार हो गया था कि वह उसका अपने से ज़्यादा ख्याल रखती।

जिसको पाने की तमन्ना मैं समीना दिन रात लगी रहती वो चीज़ पाने के बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही था। लेकिन अफसोस वो खुशी आज काफूर हो गई थी समीना की आंखों से बहते आँसू किसी के भी दिल को पिघलाने के लिए काफ़ी थे अन्धे भिखारी के कानों में सुनाई पड़ रही समीना की सिसकियाँ भिखारी के दिल पर नस्तर की तरह चुभ रही थीं और वह बेबस ज़ख्मी परिन्दे की मानिंद तड़प रहा था क्योंकि आज भिखारी की कोठरी की कच्ची दीवार में बने ताख से अचानक गुड़िया गिरकर टूट गई ।आज समीना बहुत रोई थी। मैं आज भी अक्सर वहीं सड़क किनारे खड़ा हो जाता हूँ लेकिन उसके बाद वह भिखारी कभी दिखाई नहींं दिया।

✍️ राशिद हुसैन, मोहल्ला बाग गुलाब राय, ढाल वाली गली झारखंडी मंदिर के पास थाना नागफनी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, मोबाइल फोन नंबर- 9105355786




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