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रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की रचना ----पर्वत जैसे पिता स्वयं ही होते घर की शान

 


पर्वत  जैसे  पिता   स्वयं   ही
होते      घर       की      शान
उनकी    सूझ-बूझ  से  थमते
जीवन       के          तूफान।
      

अनुशासित जीवन का दिखते
पापा                    दस्तावेज़
सतत    संस्कारों    से    रहते
हरपल         ही        लवरेज
उनके  होंठों   पर  सजती   है
नित         नूतन       मुस्कान।
पर्वत जैसे-------------------

व्यर्थ  समय  खोने  वालों   से
रहते          हरदम           दूर
कठिन  परिश्रम  ही  है  उनके
जीवन         का          दस्तूर
आलस  करने  से  मिट जाती
मानव          की       पहचान।
पर्वत जैसे ----------------------

घर  के  हालातों   से  भी वह
अनभिज्ञ       नहीं         रहते
रिश्तों   की    जिम्मेदारी    से
वे     सदा       भिज्ञ       रहते
अपने   और   पराए   का  भी
रखते           हैं        अनुमान
पर्वत जैसे-------------------

प्रातः अपने  मात - पिता  को
करते          रोज़        प्रणाम
ले   करके  आशीष   सदा  ही
करते          अपना       काम
उनकी सुख सुविधाओं का भी
रखते           पूरा         ध्यान।
पर्वत जैसे--------------------

बच्चों   में  बच्चे   बनकर   के
सबसे          करते         प्यार
इसमें   ही  तो   छुपा  हुआ  है
जीवन         का         आधार
दिल से  नमन  करें  पापा  का
करें          सतत        सम्मान।
पर्वत जैसे--------------------

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,

  मोबाइल 9719275453

शुक्रवार, 18 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी----- जैसी करनी, वैसी भरनी !

 


उस व्यक्ति को सभी ने समझाया कि तुम अपनी प्रसन्नता के लिए किसी निरीह प्राणी को मत सताया करो।तुम कभी उनका घर तोड़ देते हो,कभी उनके द्वारा संचित धन को लूटकर अपने आप को महान समझकर फूले नहीं समाते।

      किसी के कठिन परिश्रम को धूल में मिलाना तुम्हारी आदत ही बन गई है।परंतु ईश्वर सब देख रहा है।उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती है,यह भी समझ लो।यह सुनकर वह व्यक्ति आग- बबूला हो गया।और बोला मैं जो चाहे करूं तुमसे मतलब,,तुम होते कौन हो मुझे सीख देने वाले।

      एक दिन वह बाग में घूम रहा था।अचानक उसकी नज़र दूर पेड़ पर लगे एक बड़े से मधु मक्खी के छत्ते पर पड़ी।मधु मक्खियां बड़ी तल्लीनता और कठिन परिश्रम से अपने छत्ते की देखभाल करने में व्यस्त थीं।असंख्य फूलों से एकत्र  शहद के चारों ओर घेरा डालकर उसकी रखवाली कर रहीं थीं।

     शरारती व्यक्ति ने आव देखा न ताव एक पत्थर उठाकर छत्ते पर दे मारा।फिर क्या था कुछ ही पलों में गुस्साई मधु मक्खियों ने उसे चारों ओर से घेर कर ज़हरीले डंक मार-मारकर घायल कर दिया। ढोल की तरह सूजा व्यक्ति  ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा और लोगों को इकट्ठा करके, भीषण पीड़ा से छुटकारा दिलाने तथा अपने प्राण बचाने की गुहार लगाने लगा।वह बार-बार यही रट लगाए जा रहा था कि अब मैं कभी किसी को नहीं सताउंगा।

        तब कुछ लोगों ने उसे उपचार कराने ले जाते हुए कहा,,,,,देखा हमने क्या कहा था। कि ईश्वर सब देख रहा है।वह करनी का फल देने में बिल्कुल भी देर नहीं लगाता।अर्थात--

     जैसी करनी,वैसी भरनी

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी",मुरादाबाद, मोबाइल 9719275453

                  

                  

                  

                        --------

सोमवार, 7 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत -----करें प्रतिज्ञा सबको मिलकर सौ-सौ पेड़ लगाना होगा


डाली  -  डाली, पत्ती -  पत्ती

का  एहसान   चुकाना  होगा

विकसित होती  हुई जड़ोंको

मिलकर  हमें  बचाना  होगा।

          ---------------

पेड़  सभी के  लिए  धरा पर

जीवन काअनमोल  खजाना

जो भी नहीं  समझता इनको

उसका व्यर्थ  जगत में आना

अभी  समय  है  चेतो  वरना

रो-रोकर   मर  जाना   होगा।


हरियाली   आनंदित   करती

सभी दिलों में खुशियां भरती

आंखों  को  शीतलता  देकर

मन   में   नई   उमंगें   धरती

इन्हें  नष्ट  करने  का  मन  में

किंचित भाव न  लाना  होगा।


यह  पर्वत  को  जकड़े  रहते

नदियों का  तट  पकड़े  रहते

आंधी,   पानी,   सैलावों   से

टक्कर   लेने   अकड़े   रहते

हैं  जग  के  रखवाले  इनको

कभी  नहीं  बिसराना  होगा।


सांस-सांस पर इनका हकहै

इसमें भी क्या  कोई  शक है

बेरहमी  से  इन्हें   काट  कर

करी व्याधियों की आवक है

अपने  हित में  सच्चाई   को

कभी  नहीं  झुठलाना  होगा।


मौसम भी इन पर  निर्भर है

वृक्ष  बिना  धरती  बंजर  है

सूखा  झेल  रहे  मानव  की

देह   हुई   अस्थी   पंजर  है

हरियाली चहुं ओर बिछाकर

स्वर्ग  धरा  पर  लाना  होगा।


खुशहाली ही  खुशहाली  हो

नहीं  कहीं भी  बदहाली  हो

रंग   बिरंगे   गुलदस्तों   की

महक बड़ी ही  मतवाली हो

करें प्रतिज्ञा सबको मिलकर

सौ-सौ  पेड़   लगाना  होगा।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

      मुरादाबाद/उ,प्र,

       9719275453

               

शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कथा -----बच्चा चोर


अरे,अरे,,,तुम सब लोग यह क्या कर रहे हो।इस स्त्री का क्या दोष है जो तुम इस पर इतनी बेरहमी से लात-घूंसे चला रहे हो।

    साहब, आप नहीं जानते यह भोली नहीं बच्चा चोर है बच्चा चोर।  ठहरो,अभी इस महिला से ही पूछ लेते हैं,की जो बच्चा उसके हाथ से छूटकर नींचे गिरा है, वह उसका अपना है या वह कहीं से उठाकर ले आई है।

     भद्र पुरुष ने पहले तो उस स्त्री को पानी पिलाया,फिर थोड़ा शांत होने पर उससे बड़ी विनम्रता से पूछा 'बहन' तुम डरो मत, मुझे साफ-साफ बताओ कि यह उग्र भीड़ जो कह रही है वह सत्य है क्या?

    नहीं-नहीं यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है।मैने किसीका बच्चा नहीं चुराया भैया। भला एक माँ होकर में ऐसा घृणित कार्य क्यों करूंगी।

    सच तो यह है कि मेरे बच्चे को बहुत तेज़ बुखार है,मैं उसे पास के गांव में वैद्य जी को दिखाने की जल्दी में थी।चलते-चलते मेरा पांव किसी पत्थर से टकरा गया।मैं गिरते-गिरते बची मगर मेरा बच्चा छिटककर दूर जा गिरा।बच्चे को गिरते देख इन लोगों ने यह समझा 

की बच्चा मैंने इनको आते देख जानबूझकर फेंक दिया है।

    तभी इन लोगों ने चोर,चोर बच्चा चोर का शोर मचाते हुए मुझे अभद्र शब्दों के साथ बुरी तरह से मारना-पीटना शुरू कर दिया।

       मैंने इनके आगे बहुत हाथ -पंजे जोड़े और यह समझाने की हर संभव कोशिश की की यह बच्चा किसी और का नहीं मेरा ही है।पर इनके सर पर तो भूत सवार था।किसी ने मेरी एक न सुनी।वह तो आप अच्छे आ गए वर्ना तो ये मुझे जान से ही मार देते कह कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और कहने लगी मेरे बाद मेरे बच्चे का क्या होता।

     आप तो इस गांव के हर घर से बच्चा खोने की सूचना मंगालें,अगर सही हुआ तो में सभी के सामने स्वयं को दोषी मान लूंगी।अन्यथा इन सरफिरे गुंडों को भी एक माँ के साथ अभद्रता करने की न्यायोचित कार्यवाही की व्यवस्था अवश्य ही कराएं।

     आपका बहुत बड़ा उपकार होगा भाई साहब!

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                  

                 

                          -------

शनिवार, 15 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी ----देश का सम्मान!


       एक बहुत बड़े देश के राजा को अपने देश में पहलवानों की कुश्तियां कराने और जीतने पर पारितोषिक देने का बड़ा शौक था।एक बार उसने देश के नामी ग्रामी पहलवान सुंदर को बुलाया और पहलवानी के विस्तार के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण चर्चा की।

     पहलवान सुंदर ने नतमस्तक होते हुए विनम्रता पूर्वक कहा,महाराज अपने ही घर में प्रतियोगिताओं पर खर्चा करने तथा सही प्रतिभागी तक उसका लाभ न पहुचने से पहलवान प्रतियोगियों का मनोबल ही टूटता है।

    अच्छा तो यह हो कि अन्य देशों में होने वाली प्रतियोगिताओं में भी हमारा प्रतिनिधित्व हो,महाराज तभी तो असली हीरे की परख हो पाएगी।

महाराज को सुंदर की बात बहुत प्रभावित कर गई।

    भाग्य से पड़ौसी देश ईरान में ऐसी ही एक प्रतियोगिता का आयोजन रखा गया।उसमें जीतने वाले पहलवान को पांच करोड़ रु/-का इनाम देने की घोषणा भी की गई।राजा ने तुरंत सुंदर को बुलाया और इस प्रतियोगिता में भाग लेने का आदेश देते हुए ईरान के कुश्ती संघ में सुंदर का नाम लिखाते हुए उसके ठहरने की समुचित व्यवस्था कराई।

     सही समय पर प्रतियोगिता प्रारम्भ हुई।सुंदर की भिड़ंत ईरान के नामी,भारी-भरकम पहलवान से होने की घोषणा की गई।सभी दर्शक अपने-अपने देश के पहलवान की जीत का दावा करने लगे।

        सुंदर को देखकर सभी हंसने लगे। कोई  कुछ, तो 

कोई कुछ कहकर सुंदर का मनोबल गिराने का प्रयास करने लगे।तभी ईरान के भीमकाय पहलवान ने सुंदर को दबोचकर चित करना चाहा परंतु सुंदर ने ऐसा दांव चला कि देखते-देखते ईरानी लपहलवान चारों खाने चित हो गया।

   फिर क्या था ईरान के राजा ने घोषणा के अनुसार पांच करोड़ के इनाम के साथ अन्य कई मूल्यवान तोहफों के साथ सुंदर को सहर्ष विदा किया।

      अपने देश में पहुंचकर  सुंदर का जोरदार स्वागत हुआ।राजा ने उसके सम्मान में बोलते हुए सुंदर को पांच करोड़ की राशि पाने का असली हकदार बताया।तभी सुंदर उठा और राजा कर समीप जाकर बोला,महाराज मैं इतनी धन राशि का क्या करूंगा।मैं चाहता हूँ कि यह सारी धन राशि राजकोष में जमा करा दी जाए ताकि हमारा राज्य खुशहाल होऔर साथ में समस्त नागरिक भी।

        राजा ने सुंदर को गले लगा कर कहा जो अपने लिए जिए उसको जीना नहीं कहते।देश के सम्मान में ही सबका सम्मान निहित है।बोलो सुंदर पहलवान की जय।

  

✍️ वीरेन्द्र सिंह बृजवासी, 

 मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

                 

                

बुधवार, 12 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी ----- "अनोखा ताबीज"


       माँ के जाने का समय निकट आ चुका था।इसलिए बेटे को हर बला से दूर  रखने के लिए उसने एक ऐसा ताबीज तैयार किया जिसकी इबारत को केवल एक बार ही पढ़ा जा सकता था।माँ ने बेटे को वह ताबीज देते कहा बेटे जाते -जाते मेरी कुछ बात ध्यान से सुन।

       माँ बोली बेटा जब कभी तू बहुत निराश हो,तेरा दिल बहुत घबरा रहा हो,तेरे चारों ओर तुझे केवल भयभीत करने वाला सन्नाटा सता रहा हो,जीवन से स्वयं को भी डर लगने लगे,या इससे भी कठिन परिस्थितियां तेरे चारों ओर घेरा डाल रही हों।

          तब तू इस ताबीज की इबारत को पढ़ना तुझे तेरी हर परेशानी का हल मिल जाएगा।इतना कहते हुए माँ इस संसार को छोड़ कर चली गई।बेटा अकेला रोता हुआ रह गया।

          अब वह बहुत उदास, परेशान रहने लगा।किसी काम में उसका मन न लगता।हर समय खोया-खोया रहता।खाने-पीने की भी कोई सुध-बुध नहीं रह गई।कुछ हमदर्द लोगों ने भी उसे कई बार समझाया।परंतु वह तो अपने आप में ही खोया रहता।

      एक दिन अचानक उसका हाथ उस ताबीज पर पड़ा।उसने सोचा क्यों न इसकी इबारत को ही पढ़कर देखा जाए।उसका ढक्कन खोलने से पहले ही उसके शरीर में एक आनोखी शक्ति उत्पन्न हुई,उसका दिमाग बहुत हल्का सा हो गया।उसे अपने चारों ओर अजीब सा दैवीय प्रकाश नज़र आने लगा।उसने कुछ देर के लिए आँखें बंद कीं तो देखा कि उसकी माँ ताबीज से झांककर कह रही है बेटा भगवान उसी पर भरोसा करता है जो खुद पर भरोसा करना जानता है।

     बेटा उठा और उस ताबीज को प्रणाम करके माँ से कहा, माँ तू बहुत महान है।ईश्वर भी तेरे सामने नतमस्तक रहते हैं।

    अब मैं अकेला नहीं हूँ।तेरा आशीर्वाद हर समय मेरे साथ है।

✍️ वीरेन्द्र सिंह"बृजवासी"

  मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

                 

                       

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह वृजवासी की कहानी ----- आँचल


बेटा खाना खा ले, भूख नहीं है माँ,चल थोड़ी देर बाद खा लेना।लगभग एक घंटे बाद माँ ने पुनः खाना खाने को कहा बेटे ने फिर वही,भूख नहीं है माँ।ऐसा क्या खा लिया तूने जो भूख ही मिट गई तेरी,,,,

 मां तो आखिर माँ है।उसे देखकर माँ की भूख भी जाती रही।परंतु मन नहीं माना बेटे के पास जाकर कहा बेटा देख, मैने तेरी पसंद की मूली की भुज्जी,काला नमक और भुने जीरे की लस्सी तथा चना- गेहूं की रोटी बनाई है।पका पपीता भी काटकर रखा है।जल्दी आ खाना ठंडा हो रहा है।

      बेटा नाक मुंह सिकोड़ता हुआ आया और बोला यह भी कोई खाना है।मूली की भुज्जी घास-फूस,चना गेहूं की रोटी।ऐसे खाने को तो बीमार लोग ही खा सकते हैं मैं नहीं।माँ ने थोड़ा डांटते हुए कहा और तू जो खाता वह बहुत अच्छा है क्या? रोजाना

       मीट-मुर्गा,कवाब,बिरियानी,

 अंडा,मछली ही तुझे अच्छा लगता है।पर तुझे कौन समझाए कि जो बात शाक-सब्ज़ी में है वह किसी में नहीं।मुझे तो ऐसा लगता है कि इन्हें खा-खाकर तेरा लिवर ही तो खराब नहीं हो रहा कहीं।जब देखो तब यही कहता रहता है मुझे भूख नहीं है।

      चल मेरे साथ चल अभी, तुझे नुक्कड़ वाले वैद्यजी कृपा शंकर को दिखाकर लाती हूँ।बड़े नामी-ग्रामी वैद्य हैं।काफी ना नुकर का बाद माँ बेटे को वैद्य जी की दुकान पर ले गई और सारा हाल बताकर अच्छी दवा देने को कहा।वैद्य जी ने लड़के का हाथ पकड़ कर नब्ज़ देखते ही बता दिया कि इसके भूख न लगने का कारण इसका कमज़ोर होता लिवर है।अगर इसका सही उपचार न किया गया तो यह मर्ज लाइलाज भी हो सकता है।अच्छा किया जो तुम सही समय पर यहां ले आईं।

          मैं एक माह की दवा दे रहा हूँ।समय से खिलाना,इसके साथ-साथ ज्यादा मिर्च-मसाले बहुत तली-भुनी चीज तथा मीट मुर्गे से भी से दूर ही रखना ।

 इसे केवल और केवल हरी शाक-सब्ज़ी,जिनमें मूली की भुज्जी,मट्ठा,गुड़ चना-गेहूं की रोटी के साथ-साथ गन्ने का ताजा रस पपीता,अमरूद फायदा करेगा।एक बात और गौर से सुन लो किसी भी प्रकार का नशा करना तो इस बीमारी में अपने आप को ज़हर देने के बराबर है।मेरा कहना सौ प्रतिशत सही है।इस पर पूरा ध्यान देना।घबराने की कोई बात नहीं है।

      माँ ने माथे से पसीना पौंछते हुए ठंडी सांस ली और वैद्य जी को पैसे देकर घर आ गई।घर आकर बेटे से बोली। बेटा माँ कभी गलत नहीं हो सकती,तुम्हारी आदतें गलत हो सकती हैं। जिन्हें केवल माँ ही पहचान सकती है।

       बेटे ने माँ की बात मानते हुए  उचित इलाज लिया और कुछ ही दिनों में भला चंगा हो गया।अब तो वह खुद ही माँ से बोलता माँ जोरों की भूख लगी है।मां खुशी-खुशी खाना परोसा देती और बेटे को खाना खाते देख मन ही मन खुश होकर दुनियाँ की सारी खुशियां अपने आँचल में समेट लेती।

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद , मोबाइल फोन नम्बर --9719275453

                

                 08/02/2021

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ---रिश्तों को जोड़ने का हुनर जानती है ये, दो - दो घरों के साए में खुश रहतीं बेटियां


दुनियाँ के सभी फ़र्ज़ अदा करती बेटियां,

माँ-बाप  के लिए भी दुआ करतीं बेटियां,

बेटी से बड़ा  कोई  खज़ाना नहीं 

होता,

खुशियों से ख़ज़ानेको भराकरतीं बेटियां।


भाई से बहुत प्यार  किया करतीं बेटियां,

गुड़ियों का  श्रृंगार  किया  करती बेटियां

बेटी  नहीं  तो कुछ   भी  नहीं  है जहान में

दुख का कभी इज़हार नहीं करतीं बेटियां।


जग  में  किसी आफत नहीं डरतीं

बेटियां,

नफरत किसी रिश्ते से नहीं करतीं 

बेटियां

रिश्तों को जोड़ने का हुनर जानती है ये,

दो - दो घरों के साए में खुश रहतीं बेटियां


रोटी भी थालियाँ  में  रखा  करती बेटियां,

थोड़े  में भी खुश होके रहा करतीं बेटियां,

छोटी बहन या भाईसे क्षणभर को झगड़तीं

अब मानभी जाओ ये कहा करतीं बेटियां।


चिड़ियों की तरह चहकती फिरती हैं बेटियां,

फूलों की तरह महकती फिरती हैं बेटियां,

आंगन में  फुदकती  हुई  भाती  हैं सभी को,

लेकर विदाई आँखें भरा करतीं बेटियां।

दुनियाँ के सभी फ़र्ज़----------

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,  मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

                    

                        

बुधवार, 27 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी के तीस बालगीत --------

 


** 1 **

एक दिवस बिल्ली मौसी ने,

भेजा      सबको     न्योता,

मेरे जन्म  दिवसपर   भैया,

लाना      गिफ्ट    अनोखा।


खाने को पकवान  बहुत हैं,

सांभर       लिट्टी      चोखा,

हलवा, पूरी,  खीर  मखाना,

दूध     पकी    केसर    का।


नॉनवेज  भी  बना  रखा  है,

तरीदार       और       सूखा,

चूक  गए  तो  नहीं  मिलेगा,

ऐसा         सुंदर       मौका।


सबसे   पहले  आकर   घेरा,

बंदरजी         ने       सोफा,

नाच  रहे  थे सभी खुशी  से,

लगा      तिकोना       टोपा।


बिल्ली  चूहे   के  आने  का,

ताड़     रही      थी   मौका,

सोच  रही   चूहे   राजा  का,

किसने       रस्ता      रोका।


आता  चूहा  दिया  दिखाई,

खुला     खुशी का    खाता,

मेरी  इच्छा  पूरी   कर   दी,

मैनी      थेंक्स      विधाता।


बिल्ली  मौसी  को  चूहे  ने,

किया       दूर से       टाटा,

यहां रखा है गिफ्ट  तुम्हारा,

मैं    तो   घर   को    जाता।


** 2 ** 

आसमान में उड़ी  पतंगें,

लगती       तारों       सी,

रंग बिरंगे  गुलदस्तों  की,

सजी      कतारों      सी।

      

आपस  में स्पर्धा  रखती,

ऊपर        जाने       की, 

ऊंची गर्दन करके नभ में,

धाक       जमाने      की,

फर्राटे के साथ निकलती,

ध्वनि      हुंकारों      सी।


निष्ठाओं के साथ कसी हैं,

गांठें        धागों         की,

विश्वासों के साथ  बंधी  है,

डोर        इरादों         की,

हाथों की  उंगली  पर नाचे,

नए        इशारों         सी।


इसे   पतंगी  रूप  मिला है,

खप्पच       तानों          से,

नाप  तोल कर बांधी जाती,

डोर         कमानों         से,

मानव के मन पर छा जाती,

सतत        विचारों      सी।


डरती नहीं कभी जो अपने,

प्रतिद्वंद्वी         से        भी,

लातीखुशियां छीनसमयकी,

पाबंदी           से         भी,

अक्सरछतपरआकरगिरती,

वह        उपहारों         सी।


कभीजोश में होश न खोना,

सबको                 चेताती,

सावधान  रहने  वालों   को,

खुशियां         दे       जाती,

दूर गगन  में  दिखती   जैसे,

धूमिल        तारों          सी।

आसमान में उड़ी----------


** 3 ** 

आओ  दीपावली मनाएं

हम सब  मिलजुल  कर

खील-बताशे  मेवे खाएं

हम सब मिल जुल कर।

       

रंग बिरंगी लड़ियाँ  टांगें

जिनसे  दूर अंधेरे  भागें

आंगनआंगन सुंदरसुंदर

मनमोहक रंगोली  साजें

माँ लक्ष्मीकी करेंआरती

हम सब मिल जुल  कर।


रखकर दूर पटाखे  फोड़ें

चर्खी औ महताबी  छोड़ें

ऊंच नीच की बातें करके

कभी न कोई रिश्ता तोड़ें

हंसीखुशी सबकेघरजाएं

हम  सब  मिल जुल कर।


सदाबड़ोंको सीस झुकाएं

आशीषों   के  ढेर  लगाएं

प्रदूषण  को दूर भगा कर

प्राणवायु को  शुद्ध बनाएं

जीवन को जीवन पहनाएं

हम सब  मिल  जुल  कर।


सुंदर सुंदर मन  हो सबका

अतिआनंद बढ़े उत्सव का

सब हों  भागीदार  पर्व  के

पिछड़ नजाए कोई तबका

बढ़कर सबको गले लगाएं

हम  सब  मिल  जुल  कर।

 

** 4 **

गोलू आओ, मोलू आओ,

मोनीचंद  बतोलू   आओ,

प्रेम    एकता    भाईचारा,

सारी  दुनियाँ  में फैलाओ।


घर से  दूध जलेबी  लाओ,

सबके साथ बैठकर खाओ,

कम मिलने पर जोभी रूठे,

सारे  मिलकर उसे मनाओ।


रंग - बिरंगी   नाव  बनाओ,

पानी   में   उनको   तैराओ,

सिर्फ  दोस्ती रखो  सभी से,

कुट्टी करके मत दिखलाओ।


सोओ जल्द शीघ्रउठ जाओ,

नहीं समय को व्यर्थ गंवाओ,

खोया  समय  नहीं   लौटेगा,

सदा  सत्य को  गले लगाओ।



मात-पिता को सीस नवाओ,

खा पीकर  विद्यालय जाओ,

ध्यान लगाकर  करो   पढ़ाई,

नहीं  गुरु  की  हंसी उड़ाओ,


अश्वथ,फ्योना तुमभीआओ,

अन्वी, अस्मी को भी लाओ,

देखो कोयल कुहुक  रही  है,

मीठे स्वर का साथ निभाओ।

गोलू आओ-----------------


** 5 **


अम्मा  कब   स्कूल    खुलेंगे

इतना तो  हमको   बतला दो

इस अदृश्य  कोरोना को तुम

अपनी ताकतभी दिखला दो।

मोबाइल  मत   देखो   बच्चों

असर पड़ेगा  इन आंखों  पर

लेकिन ऑनलाइन शिक्षा का

असर न होगा क्याआँखों पर?

चश्मा  नहीं  लगाना   हमको

अद्यापक को भी  बतला  दो।

अम्मा कब-----------------


अंतर्मन खुश  होता  सबका

साथ -साथ  ही  बतियाने में

कितना जी लगताहै सबका

मिल  करके  शिक्षा पाने  में

करके  पूजा  तुम  ईश्वर को

हाल  हमारा भी  बतला  दो।

अम्मा कब----------------


इकिया-दुकियाआंख मिचौनी

खेलें   किलकिल   कांटी  हम

कोड़ा   छुपा   लगाएं  चक्कर

रोकें    उठती     खांसी    हम

खेल-खेल  में पढ़ना - लिखना

अम्मा हमको भी  सिखला दो।

अम्मा कब------------------


घर  में   पड़े-पड़े  हम  यूं  ही 

कब तक अपना वजन बढ़ाएं

और   पार्क   में  दौड़  लगाने

कब तक  अपना मन तरसाऐं

बाधाओं   से   मुक्ति   दिलाने

अम्मा कुछ तो चक्र  चला दो।

अम्मा कब------------------


अरे कोरोना  अंकल  तुम भी

इतना नहीं  समझते  पाते हो

हमें  समझकर  बच्चा  हमसे

आकर  स्वयं  उलझ जाते हो

हिम्मत   है तो  माँ   के  आगे

हमको  छूकर भी दिखला दो।

अम्मा कब------------------


** 6 **

मेरी   नानी   लंबी    चौड़ी

  मुझे खिलाती रोज़  कचौड़ी

  नाना  मन ही  मन  मुस्काते

  झूठ  मूठ  का  रौब  जमाते।


 आसमान  में  उड़ा   जहाज

  देखो  कितना  बड़ा जहाज

  हमको साथ  नहीं ले जाता

  है  ये  कितना सड़ा जहाज।


 अनवी आंख दिखाकर बोली

  मेरी    गुड़िया   अच्छी     है

  असमी भी चिल्लाकर बोली

  मेरी     सबसे    अच्छी   है।


  चुहिया   रानी   चुहिया  रानी

   भूल  गईं  क्या  चाय बनानी

  चुहिया   बोली    चूहे   राजा

   घर में  शक्कर दूध न पानी।


   बिल्ली मौसी  बिल्ली मौसी

   चेहरे पर  क्यों  घोर उदासी?

   चूहे  बोले  मौसी  अब  तुम

   बन  जाओ  साधू  सन्यासी।


  मम्मी    देखो   उड़ी    पतंग

  तारों   जैसी    जड़ी    पतंग

  पतले   से   धागे   पर   कैसे

  ठहरी   इतनी   बड़ी   पतंग।


  पापा  क्या  सबके  दांतों को?

  चूहे     ही     ले    जाते    हैं

  बोलो  चाचाजी   सच  कहते

  या   फिर    हमें  चिढ़ाते   हैं।


 मम्मी - पापा     ने   बतलाया

 झूठ     बोलना     पाप      है

 होना  कहीं   कहीं   बतलाना

 मोबाइल    पर     माफ्     है?


** 7 **

चिड़िया रानी  दावत खाने

मिलकर     साथ     चलेंगे

काली  कोयल   का न्योता

दिल   से  स्वीकार   करेंगे।

       

वहाँ   मिलेंगे  तोता - मैना

बत्तख      और     कबूतर 

डैक  बजेगा  डांस   करेंगे

सारे    उछल -उछल   कर

मोटी  मुर्गी   के  बतलाओ

कैसे          पैर       हिलेंगे।

चिड़िया रानी-------------


मोर सजीले  पंख खोलकर

सुंदर       डांस       करेगा

पूरे मन  से  दौड़ - दौड़कर

सबमें       जोश      भरेगा

चलो हाथ में हाथ डालकर

हम     भी    तो    मटकेंगे।

चिड़िया रानी-------------


चिड़िया बोली  नहीं जानते

कोरोना      फैला          है

दूरी   रखकर  बातें  करना

नहले     पर     दहला    है

दोनों  हाथों को  साबुन  से

मल-मल      कर    धोएंगे।

चिड़िया रानी-------------


कौए राजा  काँव-काँव कर

सबसे        ही        बोलेंगे

दूध,  जलेबी  और  मिठाई

के       ढक्कन      खोलेंगे

लेकिन  हमतो  ठंडाई  को

बाय    -    बाय     बोलेंगे।

चिड़िया रानी-------------


समय कीमती होता है यह

समझो    चिड़िया     रानी

जो भी करना है कर डालो

ओढ़ो        चूनर      धानी

समय बीतने पर दावत  में

बोलो       क्या       पाएंगे।

चिड़िया रानी-------------


** 8 **

क्यों तोते को  कैद किया है?

बोलो -  बोलो    बुआ    जी,

क्योंइसको ये सजा मिली है?

बोलो - बोलो    बुआ    जी।

          

तार  पकड़ कर ऊपर  नींचे,

गिरता   चढ़ता   रहता     है,

कब इससे  बाहर  निकलूंगा,

यही    सोचता    रहता    है,

कब  इसको आज़ाद करोगी,

बोलो  -  बोलो     बुआ  जी।


बिखर  गया  है  रोटी  दाना,

पानी     नहीं    कटोरी    में,

हरी मिर्च  भी सूख  चुकी है,

भूखा    है    मजबूरी      में,

किसने  पूछा  भूख लगी  है,

बोलो  -  बोलो   बुआ   जी।


उड़ते  सब तोतों  से कहता,

मैं   हूँ   बेबस     बंद   पड़ा,

तुम ही आकर के बतलाओ,

कैसे    काटूं     फंद    बड़ा,

बुरा नहीं लगता क्या तुमको?

बोलो  -  बोलो    बुआ   जी।


आज़ादी   सबको  भाती  है,

तुमको   भी    भाती    होगी,

क्या तोते  को  ही आजीवन,

सजा    रास   आती    होगी,

कब  इसपर उपकार करोगी,

बोलो  - बोलो     बुआ   जी।


बढ़  करके  दरवाजा   खोला,

पिंजड़े    से    आजाद   करो,

खुशी - खुशी अम्बर में  उड़ने,

जीवन   को    आबाद    करो,

फिर कब  अत्याचार   करोगी,

बोलो  -  बोलो     बुआ    जी।


** 9 **

तितली ने बच्चों को बोला 

बहुत दूर  मत  जाना  तुम

मेरे साथ -साथ  ही उड़ना

ज्यादा मत इठलाना  तुम।


माना फूलों की  बगिया है

संग - संग  कांटे   भी    हैं

वैरी  कीटों की  नीयत को

कभी नहीं झुठलाना  तुम।


प्यारे - प्यारे   पंख   हमारे

फूलों   से   भी   सुंदर   हैं

उड़ते- उड़ते आसमान  में

आपस  में  बतियाना  तुम।


चुपके - चुपके  सारे  बच्चे

कभी   पकड़ने  आएं   तो

दूर हवा में  झटपट उनको

उड़ करके दिखलाना तुम।


सुंदरता पर  मोहित  होना

जग की  रीत  निराली   है

हमअच्छे तो सब अच्छे हैं

बच्चों को  सिखलाना तुम।


फूलों सा  मुस्काना  हरपल

सबसे   अच्छा    होता   है

सुंदर- सुंदर पंख  हिलाकर

सबका दिल बहलाना  तुम।

 

** 10 **  

परेशानियां  सब  पर  आतीं

साथ समय के फुर हो जातीं

बच्चो बिल्कुल मत घबराना

यह भी सीख बड़ी दे  जातीं।


मन  में भय मत  आने  देना

सच का  साथ सदा  ही देना

झूठी  बातें   ही  जीवन  को

अक्सर दिशाहीन कर जातीं।


जो मुश्किल  से घबरा जाता

उसके हाथ नहीं  कुछ आता

सिर्फ हौसले की कड़ियाँ  ही

मानव  को  मजबूत  बनातीं।


जहां  चाह  है  राह   वहीं  है

इसमें  कुछ   संदेह   नहीं  है

अंतर्मन  की  पावन   किरणें

जीवनको जगमग कर जातीं।


आओ मिलकर कदम बढ़ाएं

हर  बाधा   को   दूर    हटाएं

केवल दृढ़ता के  सम्मुख  ही

बाधाएं  सब  सीस  झुकातीं।


प्यार  करें, करना  सिखलाऐं

 साथ-साथ रहकर  दिखलाएं

नाना -  नानी,    दादा -  दादी

सीख अनोखी  हमें  सिखातीं।

 

** 11 **

गुड़िया के कानों को यूंही,

नाम       मुम्बई     भाया,

मुम्बई जाना  है  रो रोकर,

पापा       को    बतलाया।


लोट-पोट हो गई  धरा पर,

सबने       ही    समझाया,

लेकिन जिदके आगे कोई,

सफल   नहीं   हो   पाया।


दादी  अम्मा ने समझाया,

दादू         ने     बहलाया,

चौकलेट, टॉफी,रसगुल्ला,

लाकर      उसे   दिखाया।


पापाजी  बाजा  ले   आए,

भैया       लड्डू      लाया,

चुपजा कहकरके मम्मी ने,

थोड़ा       सा    धमकाया।


चाचाजी ने तब गुड़िया को,

बाइस्कोप            दिखाया,

जुहू,  परेल,  और   चौपाटी, 

गुड़िया      को    समझाया।


घुमा- घुमाकर बाइस्कोप में,

मुम्बई     शहर      दिखाया,

शांत  हुई   गुड़िया  रानी  ने,

हंसकर      के     दिखलाया।

 

** 12 **

दाने-दाने को मीलों की सैर किया करते,

कभी  सुरक्षित  घर  लौटेंगे सोच-सोच डरते।

        

कदम-कदम पर जाल बिछाए बैठा है कोई,

यही सोचकर आज हमारी भूख- प्यास खोई,

पर बच्चों की खातिर अनगिन शंकाओं में भी,

महनत से हम कभी न कोई समझौता करते।

दाने-दाने को----------------


बारी- बारी से हम दाना चुगने को जाते,

कैसा भी मौसम हो खाना लेकर ही आते,

खुद से पहले हम बच्चों की भूख मिटाने को,

बड़े जतन से उनके मुख में हम खाना धरते।

दाने-दाने को-------------------


सिर्फ आज की चिंता रहती कल किसने देखा,

कठिन परिश्रम से बन जाती बिगड़ी हर रेखा।

डरते रहने से सपनों के महल नहीं बनते,

बिना उड़े कैसे मंज़िल का अंदाज़ा करते।

दाने-दाने को---------------------


आसमान छूने की ख़ातिर उड़ना ही होगा,

छोड़ झूठ का दामन सच से जुड़ना ही होगा,

जो होगा देखा जाएगा हिम्मत मत हारो,

डरने वाले इस दुनियां में जीते जी मरते।

दाने-दाने को---------------------


श्रद्धा,फ्योना,अन्वी,ओजस,शेरी बतलाओ,

अडिग साहसी चिड़िया जैसा बनकर दिखलाओ,

छोटाऔर बड़ा मत सोचो धरती पर ज्ञानी,

किसी रूप में भी आ करके ज्ञान दान करते।

दाने-दाने को-------------------


 ** 13 **

जान बूझकर तुम बगियासे

व्यर्थ     न    तोड़ो     फूल

अद्भुत ईश्वर की  माया को

कभी     न     जाना   भूल।

         -------------------

रंग-बिरंगे  फूल   हर  घड़ी

देते          हमें        सुगंध

वातावरण  सुहाना   करके

दूर           करें         दुर्गंध

फूल तोड़ने  से  बगिया  में

रह          जाएंगे       शूल।


टहनी पर फूलोंका खिलना

सबको        भाता         है

असमय ही मिट्टीमें मिलना

दुख        पहुंचाता        है

मौसम का  आभास कराते

तरह- तरह      के     फूल।


फूलों सी कोमलता रखना

लगता       अच्छा        है

शब्द-शब्द पंखुरियों  जैसा

लगता        सच्चा        है

फूलों सा व्यवहार सभी के

होता        है       अनुकूल।


सुंदर  फूलों  की  घाटी  सा 

चमके       अपना       देश

तन-मन  सुंदर करने  वाला

हो         नूतन       परिवेश

पाखण्डों की बढ़ोत्तरी  को 

कभी      न    देना     तूल।


आओ हम मिलकरके ऐसा

कदम         उठाते         हैं

फूल सुरक्षित करके बगिया

को         चमकाते         हैं

फूलदार पौधों की  मिलकर

चलो        बनाएं        गूल

 

** 14 **

तुगड़म तुगड़म तुगड़म करती

आई          घोड़ा          गाड़ी

हैट  लगाकर  हांक   रहा   था

बंदर          उसे        अनाड़ी।


कभी  इधर  से  उधर  भगाता

बनता       बड़ा       खिलाड़ी

मार - मार   हंटर   घोड़ों   की

सारी         चाल       बिगाड़ी।


तेज   हवा   से   बातें   करती

दौड़       रही     थी      गाड़ी

तभी  अचानक  बीच  राह  में

पड़ी        कटीली        झाड़ी।  


निकल गया गाड़ी का  पहिया

बंदर         गिरा       पिछाड़ी

ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख  कर

नोच     रहा       था      दाढ़ी। 


कभी-कभी अधिक होशियारी

बने          मुसीबत       भारी

सोच  समझकर चलने  में  ही

निर्भय         रहें         सवारी।

 

हमको  भी  सबने  सिखलाया

धीमी         रखना        गाड़ी

तभी   कहेंगे    राजा      बेटा

वरना         कहें       कबाड़ी।

 

** 15 **

अचकन पहन बांधकर पगड़ी

बंदर          मामा         आए

बैठ  गए   घोड़ी  पर   जाकर

मुख    में      पान       दबाए।


सबने मिलकर  किया भांगड़ा

खूब         ढोल       बजवाए

नाच -  नाचकर  थके  बराती

बहुत        पसीने        आए।


लेकर  जब  बारात   अनोखी

बंदर           मामा         धाए

सूंघ - सूंघकर   सारी   झालर

तोड़    -   तोड़       बिखराए।


हाथी,  घोड़ा,  ऊंट   सभी  ने

बढ़कर       हाथ       मिलाए

सजा  सजाकर  तश्तरियों  में

स्वयं          नाश्ता        लाए।


हलवा    पूड़ी    दूध   जलेबी

मिलकर       सबने       पाए

दूल्हे  राजा   ने  बढ़चढ़  कर

भांग         पकौड़े       खाए।


देख  बंदरिया  को  बन्दर जी

मन     ही      मन      हर्षाए

माला   डलवाने   गर्दन   को

बार    --   बार       उचकाए।


बंदर   मामा  तनिक  देर भी

खड़े     नहीं      रह      पाए

जयमाला   की  पावन  रस्में

पूर्ण      नहीं      कर    पाए।


** 16 **

ऊंची-ऊंची भरो  छलांगें,

आगे   बढ़ते   जाना   है,

जीवन में हर आने वाली, 

बाधाऐं    निपटाना     है।


तुम भविष्यके निर्माताहो,

दुनियाँ को  दिखलाना  है

ऊंच-नीच की दीवारों को,

तुमको  तोड़   गिराना  है।


तुम प्यारे बच्चे  हो लेकिन,

इतना   तो   समझाना   है,

अपनी ताकत  के  बलबूते,

जग  में  नाम  कमाना   है।


नहींअसंभव कुछजीवन में,

इस  पर  ध्यान  लगाना  है,

मंज़िल राह  निहारे  उनकी,

जिनको   आगे   जाना   है।


बच्चे  मन  के  सच्चे  होते,

जाने  सकल   ज़माना   है,

ईश्वर  के दर्शन से  बढ़कर,

इनको   गले    लगाना   है।


स्वयं ज्ञानका दीपक लेकर,

घर-घर  अलख  जगाना है,

बच्चो तुमको मात-पिता के,

सम्मुख  सीस  झुकाना   है।


** 17 **

तोता  भैया  मुझे छोड़कर

कहीं   दूर     मत    जाना

बिना तुम्हारे कोई न  देगा

मुझे      मौसमी    खाना।


क्याअमरूद,बेर,आमोंका

स्वाद   भरा   यह   खाना

कुतर-कुतरकर यूँही भैया

रोज़      गिराते     जाना।


दूर  हमें  ना  जाना पड़ता

कहीं        ढूंढने      खाना

पेड़ों के  नींचे  मिल जाता

सेहत      भरा    खजाना।


खरहा बोला बड़ी बात  है

तुमको     मित्र      बनाना

अच्छे कर्मों काही फल  है

मिलकर   साथ   निभाना।


तोता भी मुस्काकर  बोला

बिल्कुल    मत    घबराना

ऐसा - वैसा   नहीं   हमारा

पक्का      है        याराना।


** 18 **

है  मेरा  खरगोश   निराला,

आधा  भूरा  आधा  काला,

गोल गोल चमकीलीआंखें,

लंबे - लंबे   कानों   वाला।

है मेरा खरगोश-----------


रेशम  जैसे  बालों   वाला,

सरपट दौड़  लगाने वाला,

बना-बनाकर  स्वयं  सुरंगें

अपनी जान बचाने वाला।

है मेरा खरगोश-----------


सबका  मन हर्षाने  वाला,

सीधा सच्चा भोला-भाला,

हमको ऐसा  लगता  जैसे,

ओढ़ा हो रेशमी  दोशाला।

है मेरा खरगोश----------


अपने  पंजों  की तेजी से,

बिल्ली को धमकानेवाला,

कुत्ते पर  भी  मार झपट्टा,

नानी  याद  दिलाने वाला।

है मेरा खरगोश----------


लंबे  पतले  दो   दांतों  से,

कुतर कुतरकर खानेवाला,

गोभी, पालक के पत्तों को,

पलभर में निपटाने  वाला।

है मेरा खरगोश-----------


हम  गोदी  में  इसे  उठाएं,

प्यार करें जी भर  दुलराएँ,

हमभी इससे कभी न रूठें,

यह भी नहीं  रूठने  वाला।

है मेरा खरगोश-----------

    

** 19 **

गीदड़ को  मिल  गई बांसुरी,

लगा        छेड़ने          तानें,

मैं   ही   संगीतज्ञ   बड़ा   हूँ,

सभी       जानवर       जानें।

         

जो  संगीत   सीखना   चाहे,

पास     मेरे     आ      जाए,

ढोलक, ढपली और  मंजीरा,

दिनभर       खूब      बजाए,

पैसा  नहीं   रोज़   मुर्गा   ही,

फीस     मेरी      है     जानें।

गीदड़ को-----------------


कान खोलकर सुन लो मेरी,

फीस     नियम से      आए,

दुबला -पतला  नहीं  चलेगा,

मोटा         मुर्गा         लाए,

गद्दारी  करने   की  मन   में,

तनिक    न    कोई      ठानें।

गीदड़ को------------------


मैंने  अपने   गुरु  "गधे"   से,

कभी    न     की    मनमानी,

ढेंचू - ढेंचू   की    तानों    से,

सीखी       बीन       बजानी,

गुरु  गुरु   होता   है   उसकी,

महिमा        को      पहचानें।

गीदड़ को-------------------


सुबह  दुपहरी से  संध्या तक, 

सबको       लगा      सिखाने,

मुर्गा, बत्तख,  खरहा, कबूतर,

खुलकर       लगा       चबाने,

कहा  शेर  ने  शोर   कहाँ   से

आया    हम      भी       जानें।

गीदड़ को--------------------


पहुंच  गया  जंगल  का  राजा,

सूंघ           सूंघकर        राहें,

उड़ा   रहा   था  दावत  गीदड़,

सान          सानकर       बांहें,

देख  शेर  को  थर-थर   काँपा,

भूल      गया      सब      तानें।

गीदड़ को---------------------


** 20 **

आसमान से उतरीं परियाँ

लेकर  जादू   की  छड़ियाँ

फैल गया हरओर उजाला

चमकीं मोती की  लड़ियाँ।


सोने   सी  पोशाकें   उनमें

जड़ी  हुईं    मुक्ता-मणियां

हँसने पर  झरती फूलों की

महक   लुटातीं   पंखुरियाँ।


चांदी जैसे  पंख  हिलाकर

करतीं  नृत्य  सभी  परियाँ

बंधन मुक्त हुई स्वर लहरी

खुलने लगीं सभी कड़ियाँ।


चहुंदिस सजीं दीपमालाएं

छुटी प्यारकी फुलझड़ियां

रंग   बिरंगी   रंगोली    से 

सजा रहीं आंगन सखियां।


कोटि-कोटि आशीष देरहीं

अम्बर  से  उतरीं   परियाँ

खील-बताशे बांट-बांटकर

घर-घर भेज रहीं  खुशियां।


मैं भी परियों के  संग नाचूँ

महक उठें मन की कलियां

जाग उठे अलसाया जीवन

महकें  जीवन  की  बगियाँ। 


** 21 **

पापा जी लाए पिचकारी

सबसे सुंदर सबसे न्यारी

बना हुआ है इसपर मोर

करता नहीं ज़रा भी शोर

जो भी रंग  लगाने आता

उसपर चलती बारी-बारी।

पापा जी लाए,,,,,,,,,,,,,,,,


मम्मी  जी   लाईं  गुब्बारे

रंग   बिरंगे  प्यारे   प्यारे

भरे हुए  हैं जिनमें  सुंदर

प्यार मुहब्बत के रंग सारे

इनके आगे फीकी लगती

सोने चांदी की पिचकारी।

पापा जी लाए,,,,,,,,,,,,,,,


** 22 **

आओ  छुक -छुक रेल चलाएं

मीलों   तक   इसको   दौड़ाएं

छुन्नू    चालक    आप    बनेंगे

मुन्नू   आप   गार्ड   बन   जाएं

झंडी और  व्हिसिल  देकर  के

सबको     गाड़ी    में    बैठाएं

आओ छुक -छुक--------------


स्टेशन        स्टेशन          रोकें

लाल   हरे   सिग्नल   को   देखें

चलने  का  सिग्नल  मिलने  पर

करें      इशारा      अंदर     बैठें

फिर    सरपट   गाड़ी    दौड़ाने

चालक   को   झंडी   दिखलाएं।

आओ छुक - छुक--------------


दादी     अम्मा     बूढ़े      बाबा

दौड़  नहीं  सकते   जो   ज्यादा

उनको   डिब्बे  में  बिठला  कर   

पूर्ण    करें       इंसानी      वादा

गोलू,      मोलू,     चिंटू,    भोलू  

सबको  बिस्कुट  केक   खिलाएं

आओ छुक-छुक---------------


दिल्ली,  पटना,   अमृतसर   हो

जहाँ  कहीं  भी जिनका  घर हो

उत्तर,   दक्षिण,   पूरव,   पश्चिम

कोई     छोटा-बड़ा    शहर    हो

भटक  रहे  श्रमिक  अंकल   को

अब उनके   घर  तक    पहुंचाएँ

आओ छुक -छुक---------------


देख    सभी   का    मन   हर्षाया

उतरे     जब     स्टेशन      आया

टी टी   ने   जब    पूछा    आकर

सबने  अपना   टिकिट   दिखाया

टाटा     करते       सारे       बच्चे

अपने    अपने   घर   को    जाएँ।

आओ छुक -छुक----------------


हम    बच्चे   कमज़ोर   नहीं    हैं

बातूनी     मुंहजोर      नहीं      हैं

एक   साथ   रहते   हैं   फिर   भी

होते   बिल्कुल     बोर    नहीं   हैं

साथ - साथ  खा-पीकर  हम सब

मतभेदों       को     दूर     भगाएँ।

आओ छुक-छुक-----------------

 

** 23 **

मैंनें   तुमको  बोला  अम्मा

चंदा  के   घर   जाने    को

लेकिन तुम तैयार नहीं  हो

हाथ  पकड़  ले  जाने  को।

         

रोज़ बहाना करके मुझको

तरह-तरह   समझाती  हो

पापा की गाड़ी  खराब   है

कह  करके  बहलाती   हो

कहतीं पापा फोन  कर रहे

मैकेनिक    बुलवाने    को।


आज कह रही हो  सर्दी है

कल  कह  देना   गर्मी   है

फिर कह देना बर्फ गिरेगी

अच्छी    सर्दी    गर्मी    है

चंदा  मामा  को  ही बोलो

जल्दी  से   घर  आने  को।


छोड़ो कार वार को अम्मा

मेरी    गाड़ी    पर    बैठो

धीरे - धीरे    हम   पहुंचेंगे

चंदा  मामा   के  घर   को

फ्रूटी, चॉकलेट  रख लेना

रस्ता   सरल  बनाने   को।


समझ गया चंदा मामा भी

अम्मा   से   डर   जाते  हैं

इसीलिए  तो डर  के  मारे

बादल  में  छुप   जाते   हैं

अम्मा तुमने  बोला इनको

अनायास  छुप  जाने  को।


मुन्ना कुछ दिन चंदा मामा

तुम्हें   नज़र   ना   आएंगे

वह अपने घटने बढ़ने की

सारी    कला    दिखाएंगे

खूब  बड़े  होकर  आएंगे

अपने  घर  ले  जाने  को।

** 24 **

चिक-चिक करती पूंछ हिलाती

रोज़     गिलहरी     आती     है

खोज-खोज  खाने   की   चीजें

तुरत     उठा    ले   जाती    है।


कुतर-कुतर  कर   सारा   खाना

जल्दी - जल्दी      खाती       है

बड़े  प्यार  से  बैठ   के  भोजन

करना     हमें      सिखाती    है।


पत्तों   के   झुरमुट   में  छुपकर

आँख   मूँद     सो    जाती    है

बिल्ली,   सांप,  नेवले   से   वह

चौकन्नी        हो      जाती     है।


हरी  भरी  सब्जी   फल  खाकर

सेहत      रोज़      बनाती      है

पेड़ों  से  फल  कुतर-कुतर  कर

नीचे        खूब      गिराती     है।


गिरे    बीज   से    फूटे    अंकुर

देख - देख        हर्षाती         है

इसी  तरह   नित  पेड़   उगाकर

पर्यावरण         बचाती         है।


खाली   नहीं   बैठती   दिन   भर

श्रम    का    साथ    निभाती   है

सक्रियता   जीवन     की    पूंजी    सबको    यह     समझाती     है।


नाज़ुक   रेशों   को    ले   जाकर

घर    भी     स्वयं     बनाती    है

साथ  सुलाकर   सब  बच्चों  को

जीवन    का    सुख    पाती   है।


बिस्कुट,   रोटी,    सेव,   पपीता

आओ     सब    लेकर      आएं

सुंदर       धारीदार       गिलहरी

के      आगे     रखकर     आएं।

** 25 **

मुर्गा बोला मैं अच्छा हूँ

         बत्तख  बोली मैं अच्छी

इसका कैसे करें फैसला

          तू अच्छा या मैं अच्छी।

        

   मुर्गा बोला मेरी कलगी

          राज मुकुट सी लगती है

बत्तख बोली मेरी गर्दन

         इंद्र धनुष सी दिखती है।


मुर्गा  बोला  मेरी बोली 

         सबके मन को भाती है

बत्तख बोली मेरी बोली

          संकट  दूर  भगाती  है।


मैं  अच्छा  हूँ  मेरी  बोली

           भोर  हुई  बतलाती  है

मेरी चाल सभी को जल में

            तैराकी  सिखलाती है।


इनकी   तूतू-मैंमैं   सुनकर 

           बिल्ली मौसी आती  है

लड़ना अच्छी  बात नहीं है

            दोनों  को समझाती है।


मुर्गा   बोला   बत्तख   दीदी

             बिल्ली जो फरमाती है

उसके बहुत पास मत जाना

              यह  धोखा दे जाती है।


** 26 **

रोज़  गुटरगूँ   करे  कबूतर

घर      छप्पर      अंगनाई

बैठ हाथ  पर दाना चुगकर 

लेता         है       अंगड़ाई।

  

एक-एक  दाने  की खातिर 

सबसे       करी       लड़ाई

सारा  समय गया  लड़ने में

भूख    नहीं     मिट    पाई

बैठ गया  दड़वे  में  जाकर

भूखे        रात       बिताई।

रोज़ गुटरगूँ--------------


बेमतलब  गुस्सा  करने  में

क्या    रक्खा    है     भाई

लाख टके की बात सभीने

आकर       उसे      बताई

छीना-झपटी पागलपन  है

नहीं       कोई      चतुराई।

रोज़ गुटरगूँ--------------


लिखा हुआ  दाने -दाने पर

नाम      सभी का      भाई 

बड़े नसीबों से  मिलती  है 

ज्वार,       बाजरा,     राई

खुदखाओ खानेदो सबको

इसमें        नहीं      बुराई।

रोज़ गुटरगूँ--------------


स्वयं  कबूतर  की पत्नी ने

उसको     कसम    दिलाई

नहीं करोगे  गुस्सा सुन लो

कहती       हूँ       सच्चाई

सिर्फ एकता  में बसती  है

घर   भर    की    अच्छाई

रोज़ गुटरगूँ-------------


तुरत कबूतर को पत्नी की

बात    समझ    में    आई

सबके  साथ गुटरगूँ  करके

जी   भर    खुशी    मनाई

आसमान  में ऊंचे उड़कर

कलाबाजियां          खाईं।

रोज़ गुटरगूँ-------------


** 27 **

पहन   पैंजनी   बंदरिया  ने

ठुमका      खूब     -लगाया

दौड़-दौड़ कर मस्त हवा में

चूनर        को      लहराया

        -----------------

मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम

कुचिपुड़ी          दिखलाया

घूम-घूम   कर उसने  सुंदर

घूमर      नाच      दिखाया

पीली-पीली बांध के पगड़ी

मस्त       भांगड़ा     पाया

पहन पैंजनी---------------


गोपी का परिधान पहनकर

रास      नृत्य     दिखलाया

कभी डांडिया करके उसने

अद्भुत        रंग     जमाया

करके लुंगी डांस सभी  को

अपना      दास      बनाया।

पहन पैंजनी---------------


पश्चिम के कल्चर में ढलकर

बैले        डांस      दिखाया

भक्ति भाव में खोकर उसने

भक्ति      नृत्य     अपनाया

सच्ची श्रद्धा और लगन का

रूप       हमें     दिखलाया

पहन पैंजनी---------------


देखा    बच्चो  बंदरिया   ने

हमको    यह     सिखलाया

तन,मन,धनसे जिसनेसीखा

कभी      नहीं      पछताया

सोनू ,मोनू ,सबने मिल कर

मंत्र       अनोखा      पाया।

 पहन पैंजनी---------------


** 28 **

भालू   दादा  नेता  बनकर

जब    जंगल   को    धाए

जंगल  के  सारे  जीवों  ने

तोरण     द्वार      सजाए।

    

उतर  कार  से  भालू दादा

शीघ्र    मंच     पर    आए

कहकर जिंदाबाद सभी ने

नारे        खूब        लगाए

इतना स्वागत पाकर दादा

मन    ही    मन   मुस्काए।

भालू दादा---------------


सबकी तरफ  देख नेताजी

इतना       लगे        बताने

रखो   सब्र  थोड़ा  बदलूँगा

सारे        नियम       पुराने

साफ हवा भोजन पानी  के 

सपने      खूब       दिखाए।

भालू दादा----------------


जमकर  खाई   दूध मलाई

खाई        मीठी       रबड़ी

फल खाने को चुहिया रानी

आकर   सब  पर   अकड़ी

चुहिया  रानी  को समझाने

सभी      जानवर      आए।

भालू दादा-----------------


निर्भय होकर सब जंगल में

इधर    -   उधर        घूमेंगे

एक   दूसरे   के  हाथों  को

बढ़-चढ़       कर      चूमेंगे

साफ - सफाई रखने के भी

अद्भुत       मंत्र      सुझाए।

भालू दादा----------------


जंगल के  राजा को पर यह

बात    समझ    ना     आई

मेरे    जीतेजी    भालू   को

किसने      जीत      दिलाई

खैर  चाहता   है   तो  भालू 

तुरत         सामने      आए।

भालू दादा-----------------


देख  रंग  में  भंग   सभी  ने

सरपट      दौड़        लगाई

सर्वश्रेष्ठ   ही    बचा   रहेगा

बात    समझ     में     आई

भालू  दादा   भारी  मन   से

इस्तीफा        दे         आए

भालू दादा-----------------


** 29 **

एक   दिवस  चूहे   राजा  ने

बनवाई              बिरियानी

घी  में भूनी  प्याज़ साथ  में

नमक       मिर्च    मनमानी

उबले चावल डाल  मिलाया

पकने       लायक      पानी

करके  ढक्कन बंद  देरतक

पकने      दी       बिरियानी

खुशबू  से  अंदाज़ लगाकर

बोली              चुहियारानी 

पक जाने पर  तश्तरियों  में 

परसी       तब    बिरियानी

इसे  देख बिल्ली  मौसी  के

मुख      में     आया   पानी

चूहों  ने  आपस   में  सोचा

सही        नहीं       नादानी

इस  बिरियानी के चक्करमें

पड़े     न    जान     गवानी

उल्टे पैर  छुपे  जा  बिल  में

छोड़ी       दावत       खानी

मौका  देख स्वयं  बिल्ली  ने

चट  कर    दी     बिरियानी।


** 30 **

पों - पों करती  हॉर्न  बजाती,

गाड़ी आती है,

सब  बच्चों को दूर - दूर  की,

सैर कराती है।

       

गीता,  नीता,  गोलू   सब  को,       

पास बुलाती है,

अंजुम  और  शमा  दीदी  को,

घरसे  लाती है।


कच्ची-पक्की सब सड़कों पर,

दौड़ लगाती है,

बाग   बगीचों   तालाबों   की,

छटा दिखाती है।


मंदिर,  मस्ज़िद,  गुरुद्वारे  के,

दरस कराती है,

गिरजा  को  पावन  श्रद्धा  से,

सीस झुकाती है।


रामू     श्यामू     को   बैठाने,

हॉर्न बजाती है,

घर आने  पर   देखो   बच्चो,

खुद रुक जाती है।


सब बच्चों  को  सुंदर - सुंदर,

गीत सुनाती है,

बैठे - बैठे   बच्चों   को   भी,

नींद सताती है।


तभी  अचानक  गाड़ी  अपने,

ब्रेक लगाती है,

चालक  बोला  उतरो   गाड़ी,

कल फिर आती है।


 :::::::::प्रस्तुति:::::

 डॉ मनोज रस्तोगी

 8,जीलाल स्ट्रीट

 मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

   




          

गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी -----टॉमी की समाधि

 


हमारे मोहल्ले के शुक्ला जी तो रूढ़िवादी हैं ही।उनकी धर्म पत्नी उनसे भी बहुत आगे बढ़कर रूढ़ियों को अपने जीवन में स्थान देने से पीछे नहीं रहतीं।उन्हें किसी का छींकना,खाँसना,दाईं- बाईं आंख फड़कना,बाँह फड़कना,कुत्ते का रोना,बिल्ली का रास्ता काटना,ईश्वर प्रदत्त विशेष जाति का राह में मिलना,या दुर्भाग्यवश विक्लांगता से ग्रसित चेहरे का सामने पड़ जाना जैसी उनकी बेढंगी सोच का किसी के पास कोई इलाज नहीं था।

    उनकी यही दकियानूसी बातें कभी -कभी शुक्ला जी को भी बहुत अखरतीं।लेकिन चुप रहने के सिवाय कर भी क्या सकते थे।

    एक दिन शुक्ला जी और उनकी पत्नी को कुछ समय के लिए बाहर जाना आवश्यक हो गया।उन्होंने अपने पालतू कुत्ते टॉमी की देख-रेख का ज़िम्मा अपने प्रिय पड़ौसी उपाध्याय जी को सौंप दिया।उसके खाने-पीने का खर्चा भी उपाध्याय जी को मना करते करते भी देकर सफर पर निकल गए।

      कार्य पूर्ति के पश्चात घर लौटे तो उन्होंने देखा कि टॉमी की आँखों से टप टप आंसू गिर रहे हैं।कुत्ते के रोने को बुरा सगुन मानते हुए शुक्ला जी ने बिना आगा-पीछा सोचे अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से गोली मारकर उसकी जीवन लीला ही समाप्त कर दी और बोले चलो बुरी बला टली।

     जब थोड़ा और अंदर जाकर देखा तो वरांडे में टॉमी को डाला गया दूध,मीट, ब्रेड,रोटी सब्ज़ी ज्यों के त्यों पड़े हैं। तभी उनके पड़ौसी उपाध्याय जी भी वहां आ गए और बोले।भैय्या जानवर हो तो ऐसा, यह तो हम आप से भी कहीं ज्यादा समझदार और वफादार मालूम पड़ा।

      इसने तो आपकी याद में सारा अन्न जल ही त्याग दिया।काफी जतन करने पर भी एक निवाला तक मुँह में नहीं लिया।प्रमाण आपके सामने है।सारा खाना यूं ही खराब हो रहा है।केवल रोता ही रहता है।जब देखो तब आंखों से बस आंसू ही,,,,,,,,

          इतना सुनकर शुक्ला जी और उनकी पत्नी ने अपना सर पीट लिया और दहाड़ें मार-मार कर रोने लगे।उन्होंने सारी कथा उपाध्याय जी को बताकर अपनी मूर्खता पर खेद जताया।हमसे तो यह मूक जानवर ही अच्छा निकला जो हमारी रूढ़िवादी सोच  को भी अपनी जान देकर हमें आईना दिखा गया।

   शुक्लाजी ने उसी दिन,उसी समय यह कसम खाई कि हम व्यर्थ प्रचलित प्रथाओं को अपने जीवन में कोई स्थान नहीं देंगे।उनकी पत्नी ने भी आंसू बहाते हुए टॉमी की समाधि बनाने का संकल्प लिया।             

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र

मो0-  9719275453