पर्वत जैसे पिता स्वयं ही
होते घर की शान
उनकी सूझ-बूझ से थमते
जीवन के तूफान।
अनुशासित जीवन का दिखते
पापा दस्तावेज़
सतत संस्कारों से रहते
हरपल ही लवरेज
उनके होंठों पर सजती है
नित नूतन मुस्कान।
पर्वत जैसे-------------------
व्यर्थ समय खोने वालों से
रहते हरदम दूर
कठिन परिश्रम ही है उनके
जीवन का दस्तूर
आलस करने से मिट जाती
मानव की पहचान।
पर्वत जैसे ----------------------
घर के हालातों से भी वह
अनभिज्ञ नहीं रहते
रिश्तों की जिम्मेदारी से
वे सदा भिज्ञ रहते
अपने और पराए का भी
रखते हैं अनुमान
पर्वत जैसे-------------------
प्रातः अपने मात - पिता को
करते रोज़ प्रणाम
ले करके आशीष सदा ही
करते अपना काम
उनकी सुख सुविधाओं का भी
रखते पूरा ध्यान।
पर्वत जैसे--------------------
बच्चों में बच्चे बनकर के
सबसे करते प्यार
इसमें ही तो छुपा हुआ है
जीवन का आधार
दिल से नमन करें पापा का
करें सतत सम्मान।
पर्वत जैसे--------------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,
मोबाइल 9719275453
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें