हमारे मोहल्ले के शुक्ला जी तो रूढ़िवादी हैं ही।उनकी धर्म पत्नी उनसे भी बहुत आगे बढ़कर रूढ़ियों को अपने जीवन में स्थान देने से पीछे नहीं रहतीं।उन्हें किसी का छींकना,खाँसना,दाईं- बाईं आंख फड़कना,बाँह फड़कना,कुत्ते का रोना,बिल्ली का रास्ता काटना,ईश्वर प्रदत्त विशेष जाति का राह में मिलना,या दुर्भाग्यवश विक्लांगता से ग्रसित चेहरे का सामने पड़ जाना जैसी उनकी बेढंगी सोच का किसी के पास कोई इलाज नहीं था।
उनकी यही दकियानूसी बातें कभी -कभी शुक्ला जी को भी बहुत अखरतीं।लेकिन चुप रहने के सिवाय कर भी क्या सकते थे।
एक दिन शुक्ला जी और उनकी पत्नी को कुछ समय के लिए बाहर जाना आवश्यक हो गया।उन्होंने अपने पालतू कुत्ते टॉमी की देख-रेख का ज़िम्मा अपने प्रिय पड़ौसी उपाध्याय जी को सौंप दिया।उसके खाने-पीने का खर्चा भी उपाध्याय जी को मना करते करते भी देकर सफर पर निकल गए।
कार्य पूर्ति के पश्चात घर लौटे तो उन्होंने देखा कि टॉमी की आँखों से टप टप आंसू गिर रहे हैं।कुत्ते के रोने को बुरा सगुन मानते हुए शुक्ला जी ने बिना आगा-पीछा सोचे अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से गोली मारकर उसकी जीवन लीला ही समाप्त कर दी और बोले चलो बुरी बला टली।
जब थोड़ा और अंदर जाकर देखा तो वरांडे में टॉमी को डाला गया दूध,मीट, ब्रेड,रोटी सब्ज़ी ज्यों के त्यों पड़े हैं। तभी उनके पड़ौसी उपाध्याय जी भी वहां आ गए और बोले।भैय्या जानवर हो तो ऐसा, यह तो हम आप से भी कहीं ज्यादा समझदार और वफादार मालूम पड़ा।
इसने तो आपकी याद में सारा अन्न जल ही त्याग दिया।काफी जतन करने पर भी एक निवाला तक मुँह में नहीं लिया।प्रमाण आपके सामने है।सारा खाना यूं ही खराब हो रहा है।केवल रोता ही रहता है।जब देखो तब आंखों से बस आंसू ही,,,,,,,,
इतना सुनकर शुक्ला जी और उनकी पत्नी ने अपना सर पीट लिया और दहाड़ें मार-मार कर रोने लगे।उन्होंने सारी कथा उपाध्याय जी को बताकर अपनी मूर्खता पर खेद जताया।हमसे तो यह मूक जानवर ही अच्छा निकला जो हमारी रूढ़िवादी सोच को भी अपनी जान देकर हमें आईना दिखा गया।
शुक्लाजी ने उसी दिन,उसी समय यह कसम खाई कि हम व्यर्थ प्रचलित प्रथाओं को अपने जीवन में कोई स्थान नहीं देंगे।उनकी पत्नी ने भी आंसू बहाते हुए टॉमी की समाधि बनाने का संकल्प लिया।
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र
मो0- 9719275453
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