गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर " मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा ---


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 17 अगस्त 2020 को साहित्यकार ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की गई। चर्चा दो दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य योगेंद्र वर्मा व्योम ने ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के प्रतिनिधि गीत पटल पर रखे।

चर्चा शुरू करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौतम जी ने पर्याप्त मात्रा में लेखन किया है और छांदस कविता के क्षेत्र में प्रचलित लगभग सभी छंद विधानों में अपनी लेखनी चलाई है। ऐसी सामर्थ्य पूर्ण प्रतिभा विरल लोगों में ही होती है ।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि अनुराग जी आयु में लगभग दो वर्ष बड़े थे मुझसे, पर घर हो या मंच, मुझे भाईसाहब कहकर ही संबोधित करते थे। ग़ज़ब की बेबाकी थी उनमें, पर विनम्र भी इतने कि यदि किसी से उनका मन आहत हुआ वर्णन करते समय आंखें गीली हो जाती थीं। गौतम जी ने जो लिखा वह विपुलता और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है। उनकी सृजन क्षमता ग़ज़ब की थी। उनके स्वयं के शब्दों में वह एक दिन में एक दर्जन से अधिक नवगीत लिख देते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि अनुराग जी की रचनाओं में जीवन का बहुआयामी चित्रण मिलता है। अपने समय में बहुत परिश्रम से समाज में अपनी पहचान बनाई थी। ग्राम्य परिवेश और नगरीय वातावरण दोनों को बारीकी से देखना उन्हें भली-भांति आता था। साहित्य में मुरादाबाद में उनका स्थान रिक्त है। रचनाकर्म के प्रति अब वैसा समर्पण अलभ्य है।
वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि अनुराग जी एक बड़े साहित्यकार थे।उनका लेखन लोकगान भी था और लोकधाम भी।उनका सृजन अपनी मिट्टी की सौंधी गंध से पूर्णतः महका हुआ है।लोक की चिंताओं के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना भी उनके साहित्य में भरी पड़ी है। असमानता, असंगति,विसंगति और समाज की समरसता को उन्होंने गाया है।समाज को उन्होंने गहराई से पढ़ कर  उसके लिए जो गढ़ा है वह कविता और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मशहूर शायरा डॉ  मीना नक़वी ने कहा कि स्मृति शेष कविता के मूर्धन्य समर्थ महाकवि अनुराग 'गौतम' जी को  अनेकानेक  गोष्ठियों में सुनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इनकी रचनाओं का आकाश बहुत विस्तृत है जो अपनी धरती को एक क्षण नहीं भूलता। समर्थ छाँदस रचनायें उन्हें साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलाती हैं।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि गीतों के सरस अनवरत निर्झर झरने की प्रकृति के कवि गौतम जी एक कोमल ह्र्दय के कवि थे। उनके गीतों में श्रंगार रस की अभिव्यक्ति अधिक रही, चाहें संयोग हो अथवा वियोग रस। जीवन की कष्ट वेदनाओं की अपरमित गाथा उनकी गजलों, उनके गीतों में भरी पड़ी है। गौतम जी ने अपने दुख को भी बहुत संवेदनशीलता के साथ उन्मुक्त भाव से व्यक्त किया।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव का दर्पण मेरे गाँव का और चाँदनी जैसी अमर कृतियों के कीर्तिशेष काव्य साधक के रचनाकर्म पर टिप्पणी के रूप में कहना था कि "बना घरौंदे नम माटी के मन की गागर भर लेने दो"और "मनमुटाव से बुझे पड़े हैं मन के सभी अलाव" जैसे सहजतह स्वीकार्य अनुभावों के साथ"दादी अम्मा की खटिया पर टूटी छप्पर छाँव, कैसे आज लौटकर आऊँ फिर पुरुखों के गाँव" लिखकर विवशता और पीड़ा अभिव्यक्ति, स्वयं प्रमाणित कर देती है,कि सत्य की कडुवाहट को पीना और उसी सत्य के साथ जीना ही, सहज, सात्विक, अनुशासनप्रिय, अनुराग गौतम जी को सदा प्रिय रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' जी के सम्पूर्ण साहित्य में ग्रामीण जीवन से लेकर महानगर की कोलाहल भरी जिंदगी तक के विभिन्न चित्र मिलते हैं। उनके गीतों में बहुआयामी प्रेम और विरह वेदना के स्वर है तो सामाजिक विषमताओं और विवशता की पीड़ा भी। जहां वह नायिका के रूप सौंदर्य का बखान करते हुए श्रंगार रस से परिपूर्ण गीत रचते हैं तो वहीं उनकी कलम आतंकवाद और राजनीति के छल प्रपंच के ऊपर भी चलती है। वह अपने आसपास होने वाली घटनाओं को भी अनदेखा नहीं करते। नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पतन पर भी चिंता व्यक्त करते हैं।
मशहूर नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनुराग जी का कृतित्व निश्चित रूप से अनूठा है, अनौखा है, विलक्षण है इसलिए उनके कृतित्व की तुलना किसी भी अन्य देशी अथवा विदेशी व्यक्तित्व के कृतित्व से करना किसी भी दृष्टि से कदापि उचित नहीं होगा। उनके समग्र सृजन का यद्यपि अभी तक उस स्तर पर मूल्यांकन भले ही न हो पाया हो जिस स्तर के मूल्यांकन का सुपात्र उनका रचनाकर्म है, किन्तु यह अकाट्य सत्य है कि ‘अनुराग’ जी का समग्र सृजन हिन्दी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर है और भावी पीढ़ियों के लिए पथ-प्रदर्शक भी।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मेरे नज़दीक अनुराग जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी जो कृतियां अभी तक अप्रकाशित हैं उन्हें प्रकाशित कराया जाए ताकि एक अनमोल धरोहर हमारे सामने आ सके। एक गुज़ारिश यह भी है कि ऐसे महान स्मृतिशेष व्यक्ति के संबंध में दो चार लेख इस तरह के आने चाहिएं जिससे नई पीढ़ी उन से भली-भांति परिचित हो जाए। जैसे उस व्यक्ति के प्रारम्भिक रचना कर्म पर लिखा जाए, जिन परिस्थितियों में जीवन गुजा़रा और साहित्य सर्जन के लिए जो परिश्रम किया उस पर लिखा जाए। तत्पश्चात कृतियों और रचनाओं पर चर्चा हो ताकि नई पीढ़ी को हौसला मिल सके और उसका मार्गदर्शन हो सके और यह मालूम हो सके कि ऐसे व्यक्ति को यहां तक पहुंचने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' अन्तस की वेदना को जीवंत कर देने वाले दुर्लभ रचनाकार थे। अपने मनमोहक गीतों के माध्यम से मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में अमर 'अनुराग' जी ऐसे गीतकार हुए हैं, जिनकी रचनाऐं हृदय को भीतर तक स्पर्श करती हैं। जो वेदना उनकी रचनाओं के केन्द्र में रही, उसे उन्होंने स्वयं भी अवश्य अनुभव किया होगा, जिया होगा।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि स्मृति शेष बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग की विलक्षण प्रतिभा होने का ही साक्ष्य है क्योंकि प्रतिस्पर्धा में कुछ पंक्तियांँ, कुछ कविताएंं तो लिखी जा सकती हैं पर अस्वस्थता के बावजूद 190 छंद के मुकाबले 218 छंद लिखना वह भी कला और भाव पक्ष की स्तरीयता के साथ, यह कार्य किसी सामान्य लेखक के बूते का नहीं है। तभी तो वह मेरे लिए कौतूहल जगाते व्यक्तित्व ही हैं। उनका समर्पण भाव और सिद्धहस्तता ही उनके लेखन कौशल की वह विशेषता है जो आमतौर पर आज के समय के लेखकों में दुर्लभ है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय अनुराग जी के गीतों को पढ़कर सहज ही उनकी उत्कृष्ट लेखनी का अंदाज़ा लग जाता है। गीतों में प्रेम में मिलन की आस है तो विरह की वेदना भी है। सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध खड़ा होने वाला प्रतिनिधि कवि है तो प्रकृति का चितेरा, पुष्प की सुगंध और कांटों की चुभन को महसूस करने वाला कोमल ह्रदयी भी। शहरी जीवन से उकता कर गांव जाकर नीम की छाँव और मिट्टी की ख़ुशबू लेने की उत्कंठा भी है। हर रचना में सुंदर शब्दों से मनभावन वाक्य संयोजन किया गया है। इनको पढ़ना काव्य की कक्षा में अच्छा समय व्यतीत करने जैसा रहा।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि अनुराग जी ने शायद समाज में आयी संबंधों की रिक्तता, स्वार्थपरता ,शहरीकरण, गाँवों का शहरों को पलायन, प्रकृति से दूरी का दर्द, सब कुछ तो समेट लिया है। दर्द के बावज़ूद कहीं न कहीं मानव मन में सहज भाव से उपजने वाले श्रृंगारिक भावों को भी बड़ी ही सुंदरता से जीवंत करता उनके  गीत बरबस ही प्रकृति व पुरूष के परस्पर आकर्षण को सजीव करते प्रतीत होते हैं। प्रकृति का सजीव चित्रण,दर्द की पीड़ा ,श्रृंगार की चमक ,समाज में अनुशासनहीनता व विद्ररुपता पर चलती पैनी कलम से सम्भवतः कहीं कुछ छुटा ही नहीं है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी मुरादाबाद के वरिष्ठ कवि हैं। जिन्होंने बहुत लिखा है। गौतम जी के यहां प्रकृति से जुड़े शब्दों और प्रकृति से संबंधित गीत और रचनाएं अधिक देखने को मिलती हैं। जिसमें उन्होंने अपने कवि को व्यक्त किया है। इसके अलावा उनके यहां कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो पुनरावृत हो कर आते हैं और खास तौर पर जिनका प्रयोग बाल साहित्य में अधिक होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि शब्दों को प्रयोग करने में उन्हें किसी तरह की झिझक नहीं थी चाहे वह साहित्यिक शब्द हो या ना हो इससे यह साबित होता है कि उनके पास शब्दों का बहुत अधिक भंडार था। यहां प्रस्तुत गीतों में बहाव भी है और भाव भी है। मुझे गौतम जी के कुछ गीत अच्छे लगे।

:::;;;:प्रस्तुति;;;;;;;;
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

बुधवार, 19 अगस्त 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 16 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों संजीव आकांक्षी, डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल, डॉ अर्चना गुप्ता, सुमित सिंह, डॉ रीता सिंह, डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, एमपी बादल जायसी, इला सागर रस्तोगी, विभांशु दुबे विदीप्त, प्रशांत मिश्र, इंदु रानी, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं ------


(1)
तुम झटकते हो
गीले गेसू
इत्र सा पानी
मुझको छू
झंकृत कर जाता है
मन वीणा के तार
देह में साँसें
बची रहतीं  हैं बस
ह्रदय धड़कता रहता है
बे बस
और कुछ क्षण के लिए
रच लेता हूँ
स्वर्ग सा सुन्दर
एक
सपनों का संसार।
(2)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
एकांत में
स्तब्ध होता हूँ
एक क्षण के
हज़ारवें हिस्से के लिए
और फिर बटोर कर
सारी हिम्मत
शौर्य से लबरेज़
खड़ा होता हूँ
तुम्हारे समक्ष
और कह देता हूँ
अपनी बातl
(3)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
किसी महफ़िल में
कुछ मिनट के लिए
स्तब्ध रह
बड़ा अपमान सह
और फिर अचानक
सजा लेता हूँ
चेहरे पर एक
बेशर्मी सी मुस्कान
पी लेता हूँ
विष सा क्रोध
पुरावृत्ति के दर से
कुछ घंटो के लिए
नहीं करता हूँ
कोई अनुरोध
फिर माफ़ कर देता हूँ
तुम्हें अपना मान
सारी बातें
तुमसे नहीं
स्वयं से कह ।

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
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आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।1

ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।2

अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।3

चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी।4

सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।5

अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की।

मन दर्पण पर जमी  हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।7

हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं उठने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।8

रंग  बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।9

 डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो

दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो

फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो

पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो

डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
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अपने भारत देश परकभी
आँच नहीं आने देंगे हम।
जान चली भी जाएगी तो
हमें नहीं होगा कोई गम।
वंदे मातरम, वंदे मातरम वंदे मातरम, वंदे मातरम

भारत की पावन नदियों का,
मीठा जल जैसे हो अमृत।
और यहाँ की माटी भी तो
नहीं महकती चंदन से कम।

दुश्मन अगर उठाता है सर
उसे कुचल देते है फौरन।
भारत को ललकार सके है,
नहीं किसी में भी इतना दम।

पूजे जाते जिस भारत में,
सूरज चाँद सितारे भी हैं।
कैसे कहीं ठहर सकता है
वहाँ कभी फिर कोई भी तम।

लोकतांत्रिक देश हमारा,
इस पर गर्व हमें होता है।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबको ही अधिकार मिले सम।

अतिथि होते देव सरीखे
सिखलाते संस्कार हमारे।
मगर सामने दुश्मन हो तो
हम भी बन जाते हैं फिर यम।

प्रत्येक क्षेत्र में हमने लोहा
 मनवाया है, मनवाएँगे।
लहराएगा सदा तिरंगा अपना
 सबसे ऊँचा परचम।

कहीं हिमालय की चोटी हैं,
कहीं बहे गंगा की धारा।
यहीं स्वर्ग कश्मीर हमारा,
छटा 'अर्चना' इसकी अनुपम।

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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पागल मन में जितनी उलझन होती है
बाहर सबसे उतनी अनबन होती है

जब-जब ग़ुस्सा, घबराहट, डर बढ़ते हैं
तब-तब सांसों में इक सिहरन होती है

जिसकी साँसें भीतर सधने लगती हैं
उससे पूछो कैसी थिरकन होती है

उस घर की दीवारें गिरने लगती हैं
जिसकी बुनियादों में सीलन होती है

रमना मतलब एक जगह घुल-मिल जाना
बेमतलब चलना तो भटकन होती है

कौन बुझा सकता है उस लौ को,बोलो
जो उसकी मर्ज़ी से रौशन होती है

यूँ डसती है उम्र फिसलकर हाथों से
जैसे इक ज़हरीली नागन होती है

चलते-चलते जब मैं थकने लगता हूँ
मेरी हिम्मत मेरा ईंधन होती है

सुमित सिंह "मीत"
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रजनी बोली , अरी बदरिया !
क्यों बाबरिया मन तेरा है
ऐसा मेरे घर में क्या है
जो दर मेरा यूँ घेरा है ।

चमके उज्जवल नभ घनेरा
जब आते चाँद सितारे हैं
टिम टिम करते मुस्काते हैं
ये लगते कितने प्यारे हैं
डाल न इन पर भीगी चूनर
ये हीरे मोती न्यारे हैं ।

चम चम चम चम चमक चाँदनी
वसुन्धरा को चमकाती है
श्वेत रजत बिखरी कण कण में
मन में उमंग उपजाती है
बिखरा नभ में बूँद कणों को
क्यों पानी सब पर फेरा है !

रजनी बोली , अरी बदरिया ......।

डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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आओ मिल कर कदम बढ़ाये।
देश की रक्षा में जुट जायें ॥

भारत के उन्नत ललाट को,
जग में ऊॅचा और उठायें ॥

प्राण दिये हैं  जिन वीरों ने ,
हम उनकी गाथाएँ गायें ॥

बुरी नजर जो डाले हम पर ,
हम उसको इक सबक सिखायें ॥

हर भारतवासी के मन में ,
देश प्रेम की अलख जगायें ॥

स्वतंत्रता के महापर्व को,
जन जन का हम पर्व बनायें ॥

डाॅ0 ममता सिंह
मुरादाबाद
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मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।

लो दुश्मन की नाक में, कसने चला नकेल।
भारत माँ का लाडला, महाबली राफ़ेल।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे  पास।।

जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी काग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल श्रृंगार।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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न आना है न जाना है
         ये हिला है बहाना है
आशिंके तशौबर में
          इ़क शहरे तमन्ना है

         ये ख्वाब कि दुनियाँ है
क्या इ़सका ठिकाना है
         मांझी के ख्यालो में
तुफा़न का आना है
     
ये उनकी अद़ायें हैं
            या दिल का जलाना है
तू लाख सितमगर है
            हम भी तो सहमसार हैं

            इक वो भी जम़ाना था
इक ये भी जम़ाना है
        हँस्ते थे कभी हम भी बादल
अब अश्क बहाना है
     
डा एम पी बादल जायसी
      आजा़द नगर मुरादाबाद
         93 193 18 919
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स्वतंत्र हुए परातंत्रता से
अंग्रेजो की हुकूमत से,
स्वतंत्रता का उद्घोष गूंजता
स्वतंत्रता दिवस के प्रत्येक जश्न संग।

लेकिन कर क्या रहें भारतवासी
अराजकता साम्प्रदायिकता रूपी विष फैलाके,
अंग्रेजों से स्वतंत्र हों
स्वार्थ की परांतत्रता में जकड़े।

हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई
नींव सभी धर्म भारत की,
जाति पांति के बंधनों में उलझ
उलझा रहे देशवासियों के सौहार्द को।

इस पावन मिट्टी को मान सम्पदा अपनी
चूर चूर कर रहे देश की अखण्डता को,
उस देश को जिसे एकता के सूत्र में बांधा
देशप्रेमी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने।

बिसरे नागरिक, नहीं सम्पदा यह माटी उनकी
यह तो है धरोहर जो देनी अगली पीढ़ी को अपनी,
धर्म सम्प्रदायों में विभाजित कर
नफरत फैला देश का बंटाधार कर रहे।

समय अभी भी शेष है,
सावधान होने को उन चालाकों से,
जो झोंक रहे भारत की स्वतंत्रता को
स्वार्थसिद्धि, स्वार्थपूर्ति की भट्टी में।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

पूछीं गौरा शिव शंकर से, ये क्या लीला श्याम रचत हैं
जरा हमको भी समझाओ नाथ कैसे ये महारास रचत हैं

भेद जानने महारास का शिव रूप गोपी का धरत हैं
पहुँच बैठे निधिवन में जहाँ श्याम महारास करत हैं

कभीबंसी बजाए कभी नाच नचाये
कभी कमर लचाये कभी लटक जाये
आगे भागे राधा रानी ,पीछे पीछे श्याम फिरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

हर गोपी को निधिवन जी में खुद के श्याम मिलत हैं
देख दृश्य अद्भुत ये शिव शम्भू अचरज में परत हैं
जाने कैसी माया ये प्रभु की , कैसी लीला रचत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

कहत मनमौजी राधा श्याम यूं निधि बन में रास करत हैं
राधा साधे मुरली हाथों में, श्याम राधा का भेस धरत हैं

पहन घाघरा डाले चुनरी,गालों पर लाली धरत हैं
कजरारे नैन, होठों पर लाली, श्याम राधा का भेस धरत हैं

निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं  ll

विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"
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हिंदुस्तान जब भी हारा है
अपने जयचन्दों से हारा है,
सीमा पर लाखों शहीद हुए
फिर भी ये कहते पाकिस्तान हमारा है

इनके नापाक इरादों की
अब तो होली जलनी होगी,
बीच चौराहा पकड़कर ठोक डालो
अब तो छाती छलनी करनी होगी

-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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पलना के ललना खेलाय रही
देखी  लाल मुस्काय रही होssssss
बीती दुखयारी रतिया के घरवा अब
 नंद के अंजोर भइले हो।

नंद बाबा मन मन गाय रहे
हियरा बढाय रहे होssssssss
देखी चाँद को टुकड़ो अँगनवा त
ब्रज को बुलाय रहे हो।

सातों दर झूमे घुमड़ घन
 झम झम बरसेला होssssssss
झीनी झीनी आए बरखा बदरवा
 त अपनो आशीष दिहले हो।

चम चम चमके बिजुरिया
लहर उठे सागर होsssssss
सिंधु उठी उठी पगवा पखारे के
केतना अधीर भइले हो।

झुकी झुकी डरिया झुकल जाए
 फूल बरसावेले होssssssss
रात की रानिया हो गम गम गमके त
गालियां महकावे ले हो।

इंदु रानी
मुरादाबाद
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देश खड़ा है रणभूमि में
दुश्मन को यह समझाना है

बस एक साथ रहकर के
अपना धर्म निभाना है

सारे विश्व में अब भारत की
जय जयकार होगी,

जब हमारी सेना शरहद के पार होगी,

बहुत हो चुकी शांति शांति,
अब क्रांति की मशाल जलानी है

अपने देश की ये ताकत
 मिलकर के हमे दिखानी है,

वीरों की कुर्बानी को हम
बेकार नही जाने देंगे,

हम भारत के सपूत हैं
खून की नदियां बहा देंगे,                 

ईशांत शर्मा "ईशु"
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सीखता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सीखता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल ( वर्तमान में नोएडा निवासी) के साहित्यकार अटल मुरादाबादी की दो रचनाएं ------


सिर पर टोपी है रखी, मन में बहुत सवाल ।
इधर उधर अब झांकते,नहीं गल रही दाल।

मोदी जी पर नित नये,लगा रहे आरोप,
झूठे अब प्रपंच रच,करते बहुत बवाल।।

 सीट गयी इज्जत गयी,छूटा है अब ताज,
बनते थे इक शेर से, है गीदड़ की खाल।

 समझाए यह कौन अब,देश काल की बात,
अब मूरख जन हैं नहीं,फॅसें किसी ना हाल।।

मुॅह में हड्डी है फॅसी,अंदर-बाहर होय,
राजनीति भी दिख रही,अब जी का जंजाल।।

कुछ तो अच्छा कीजिए,अटल कहै है आज,
वरना डूबे नाव अब,हो गति बस बेहाल।।
(2)
भावना तो कहीं मर गयी देखिये ।
चंद आँसू नयन भर गयी देखिये।

कारवाँ तो जुडा पर हवा  हो गया,
भूख उसको हज़म कर गई देखिये।

नोक पर तीर की भाग्य की रेख है,
भाग्य की रेख तो मर गयी देखिये।

फूल तो  हैं खिलें खिल के मुरझा गये ,
गंध आँगन चमन झर गयी देखिये।

वक़्त तो कट गया फ़ासला छँट गया,
बेबसी प्यार को हर गयी देखिये।

✍️ अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल फोन नम्बर 09650291108
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मंगलवार, 18 अगस्त 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन होता है । मंगलवार 4 अगस्त को आयोजित गोष्ठी में प्रस्तुत मरगूब अमरोही, प्रीति चौधरी ,डॉ पुनीत कुमार ,नृपेंद्र शर्मा सागर, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, दीपक गोस्वामी चिराग , अशोक विद्रोही, राजीव प्रखर , डॉ श्वेता पूठिया,डॉ प्रीति हुंकार और सीमा वर्मा की रचनाएं -------


गोलू मोलू थे दो भाई, पर होती उनमें हर रोज़ लड़ाई।
लड़ते रहते वो तो हर दम, करते रहते फिर हाथापाई।

मम्मी-पापा खूब समझाते,पर दोनों के समझ न आई।
ऐसे में जम करके एकदिन,जब दोनों को डांट पिलाई।

लड़ना तो गंदी आदत, उनको तो फिर समझ में आई।
ऐसे में दोनों ने मिलके, एक दिन फिर कसम ये खाई।

हम दोनों अब नहीं लड़ेंगे, ना ही होगी हमारी पिटाई।
दोनों अब मिलज़ुल कर रहते,खूब करते हंसी हंसाई।

चारों ओर तारीफें रहतीं, मिसाल बन गए दोनों भाई।
खुशी खुशी अब दोनों रहते,जमके खाते खूब मलाई।
       
मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा                        मोबाइल-9412587622
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नन्ही राधा नाचती ,देख नए उपहार
चम-चम चमके घाघरा,चुनरी जालीदार

कोकिल सी है कूकती,आए भाई द्वार
घर आंगन में डोलती,राधा इस त्योहार

 प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा
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चीनी क्यों होती मीठी
नमक क्यों होता नमकीन
नीबू खट्टा क्यों होता
कड़वी क्यों होती है नीम
सोच रहा भोला भोलू

कौआ क्यों गाता भद्दा
कोयल क्यों मीठा गाती
हिरण तेज़ दौड़ता क्यों
क्यों सबसे मोटा हाथी
सोच रहा भोला भोलू

छे के बाद क्यों आता सात
दो और दो क्यों होते चार
हिमालय इतना ऊंचा क्यों
पवित्र क्यों गंगा की धार
सोच रहा भोला भोलू

ऐसे है कुछ और प्रशन
मन ढूंढ रहा जिनके उत्तर
वो दिन जाने कब आएगा
होगी प्रभु कृपा मुझ पर
सोच रहा भोला भोलू

डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M-9837189600
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पों - पों करती  हॉर्न  बजाती,
गाड़ी आती है,
सब  बच्चों को दूर - दूर  की,
सैर कराती है।
     
गीता,  नीता,  गोलू   सब  को,     
पास बुलाती है,
अंजुम  और  शमा  दीदी  को,
घरसे  लाती है।

कच्ची-पक्की सब सड़कों पर,
दौड़ लगाती है,
बाग   बगीचों   तालाबों   की,
छटा दिखाती है।

मंदिर,  मस्ज़िद,  गुरुद्वारे  के,
दरस कराती है,
गिरजा  को  पावन  श्रद्धा  से,
सीस झुकाती है।

रामू     श्यामू     को   बैठाने,
हॉर्न बजाती है,
घर आने  पर   देखो   बच्चो,
खुद रुक जाती है।

सब बच्चों  को  सुंदर - सुंदर,
गीत सुनाती है,
बैठे - बैठे   बच्चों   को   भी,
नींद सताती है।

तभी  अचानक  गाड़ी  अपने,
ब्रेक लगाती है,
चालक  बोला  उतरो   गाड़ी,
कल फिर आती है।

  वीरेन्द्र सिंह  ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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माँ भारती के लाल हो तो मातृभूमि पर मरो।
हो ऊँची शान देश की तुम काम कुछ ऐसे करो।
मिटा दो दुश्मनों के मान डरें वो भारत नाम से।
नज़र करे तिरछी कोई तो धीर फिर तुम ना धरो।
माँ भारती के लाल हो तुम मातृभूमि पर मरो।
हो निज ध्वजा ऊँची सदा जो हिन्द की पहचान है।
खिलती जो तीन रंग में जहाँ से न्यारी शान है।
प्राणों से बढ़कर तुम सदा रक्षा तिरंगे की करो।
कभी ना इसको भूलना है कर्ज तुमपर वतन का।
जो देशहित बलि चढ़ गए उन शहीदों के कफ़न का।
मिली है आज़ादी हमें अब इसकी सुरक्षा करो।
माँ भारती के लाल हो तो मातृभूमि पर मरो।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा , मुरादाबाद
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सपना देखा,सपना देखा ।
कल मैंने एक सपना देखा ।
लिए हाथ में लाल छड़ी, मैं।
परी बन गई बहुत बड़ी, मैं।

फिर बच्चे भी, आ गए सारे।
उड़ना चाहें, नभ में प्यारे।
पल भर में, फिर छड़ी घुमाई।
उनको नभ की, सैर कराई ।
उनको कुल्फी भी खिलवाई
संग थी रबड़ी और मलाई ।

*एक बना विद्यालय न्यारा ।
सबसे सुंदर सबसे प्यारा ।
वहाँ न कोई टीचर मारे।
खेल कूद और मौज बहारें ।
कैसा भी कोई छेद नहीं था।
जाति-धर्म का भेद नहीं था।

देश बन गया इतना प्यारा।
नतमस्तक था यह जग सारा।

दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन ,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) 244410
(उ.प्र.) मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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याद मेरे बचपन की
          मुझको जब भी आती है
मेरे मन की प्यारी सी
             खिड़की खुल जाती है
 ठुमक-ठुमक कर चलना
       सबको आकर्षित करता
रोना और मचल जाना
       ‌‌   भी आनंदित करता
थपकी देदे लोरी गा
            ‌ मां मुझे सुलाती है
मेरे मन की प्यारी सी
            खिड़की खुल जाती है
झड़ी लगाना प्रश्नों की
             नित मन था जिज्ञासु
डांट पड़ी तो गालों पर
               फिर बड़े-बड़े आंसू
बड़े प्यार से घंटों
              माता मुझे मनाती है
 मेरे मन की प्यारी सी
              खिड़की खुल जाती है
नानी दादी बड़े प्यार से
              गोदी में विठलातीं
लेती खूब बलैया काला-
              टीका रोज लगातीं
किस्सों में सुंदर परियां
              हमको दिखलाती है
मेरे मन की प्यारी सी
             खिड़की खुल जाती है
कंचे , खो-खो, चोर सिपहिया
       ‌            खेल कबड्डी करते
गुल्ली डंडा, छुपी छुपैया
                  नहीं किसी से डरते
बचपन के खेलों के
                 सारे चित्र दिखाती है
मेरे मन की प्यारी सी
               खिड़की खुल जाती है
बीत रहा हर पल जीवन
           है तेज समय की धारा
गया हुआ बचपन वापस
            फिर लौटे ना दोबारा
जाने यादें क्यों मेरे
              नैना छलकाती है
मेरे मन की प्यारी सी
                खिड़की खुल जाती है
        ‌
अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

रोज़ी लायी घर से चावल,
राजा लाया चीनी।
अहमद की केसर से फैली,
खुशबू भीनी-भीनी।
पापे ने भी हँसते-हँसते,
कलछी खूब चलाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

दादी, दादा, मम्मी, पापा,
या हों नाना-नानी।
देख-देख कर मुँह में सबके,
आया डट कर पानी।
चाचा जुम्मन करें शिकायत,
हमको नहीं चटाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

ज़ात-पात के भेद भुलाकर,
जब बच्चे मुस्काये।
बड़ों-बड़ों ने भी आँखों से,
पर्दे सभी हटाए।
सबके मन में अपनेपन ने,
अपनी पैठ जमाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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 माँ तुम मुझको आज सुनाओ
 ऐसी एक कहानी।
 जिसमें न होराजा कोई
और न कोई रानी,
बस मै हूँ और तुम हो
न हो कोई परेशानी।
जहाँ हमारे सपने हो और साथ हो माँ प्यारी
दुख न हो जहां पर
भरपेट मिले खाना
न तू भूखी सोये न
मुझे पडे कम खाना
माँ.....
सुन्दर सुखद हो कल हमारा,
मै हूँ राजा बेटा और तू हैं महारानी
ये कमरा है राजमहल
बाकी दुनिया बेमानी।
मां...।।।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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करो सफाई ,रखो सफाई
सदा मलिनता है दुःखदाई
जो बच्चे न साफ रहेंगे
वे अक्सर बीमार पड़ेंगे
रोज सबेरे जल्दी उठकर
करना है सबको स्नान
निज जीवन में आगे रहना
स्वस्थ शरीर की है पहचान।

डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद
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परिश्रम का फल
अजय और राहुल बड़े पक्के दोस्त थे । एक ही कक्षा में पढ़ते थे । पर दोनों में एक बड़ा भारी अन्तर था । जहाँ राहुल एक समृद्ध परिवार से होने के कारण थोड़ा अकड़ में रहता वहीं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का अजय बेहद संयमित प्रकृति का था । राहुल हर चीज़ हासिल करना जानता था और अजय संतुष्टि से परिपूर्ण था । कभी - कभी अजय जब राहुल को किसी बात या  चीज़ के लिए ज्यादा मचलते देखता तो उसे समझाने की कोशिश करता पर राहुल उससे ही उलझ पड़ता पर अगले ही दिन दोनों एक दूसरे के गले में बाँहें डाले मिलते ।
      स्कूल में सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी घोषित होने की प्रतियोगिता थी । लड़कों में जबर्दस्त तरीके की प्रतिस्पर्धा थी । राहुल हर कोशिश कर रहा था । उसने अपने पिताजी से स्कूल फंड में भारी चंदा जमा करवाया था । साथ ही साथ निर्णायक मंडल में शामिल कई अध्यापकों के घरों में महँगे - महँगे उपहार भिजवाए थे । ऐसा  नहीं था कि कोई उसके प्रभाव में था पर वो हर तरीका अपना कर केवल खुद को आश्वस्त कर रहा था कि कोई ना कोई दाँव कामयाब रहेगा । वो मित्र मंड़ली में ये बातें खुल कर तो नहीं बताता था पर उसकी डींगों से लड़के सब समझ जाते । अजय या तो चुप रहता या राहुल से इस तरह की बातें करने को मना करता । पर राहुल उसकी सुनता ही कब था ।
      परिणाम घोषित हुआ । अजय विजेता बना । प्रधानाचार्य जी ने भाषण शुरू किया  " मैं पिछले कई वर्षों से अजय को देख रहा हूँ । वह एक निर्दोष , निडर व निष्पक्ष बालक है । निर्दोष इसलिए कि आसपास गलत होते हुए भी उसने किसी गलत आदत को नहीं अपनाया , निडर इसलिए कि अपने परिवार की स्थिति को वो निडरता से स्वीकार कर केवल परिश्रम के बलबूते पर ही इतने बड़े विद्यालय में पढ़ रहा है , निष्पक्ष इसलिए की ये जानते हुए भी कि उसके सभी साथी उस जैसे नहीं वो किसी भी बात को अपनी दोस्ती के आड़े नहीं आने देता । "
         हाल तालियों से गूँज रहा था । कुछ छात्र राहुल के चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए थे कि अब राहुल की प्रतिक्रिया क्या होगी पर अजय पुरस्कार लेकर जैसे ही राहुल के पास पहुँचा राहुल ने दौड़कर उसे गले से लगा लिया । उसकी आँखों में आँसू थे पर इस बार ये हार या ईर्ष्या के नहीं दोस्त के परिश्रम की जीत के थे ।।

सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा केे दस गीतों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा-------


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 15 व 16 अगस्त 2020 को मुरादाबाद के युवा गीतकार मयंक शर्मा  केे दस गीतों पर ऑन लाइन   साहित्यिक  चर्चा का आयोजन  किया  गया । सबसे पहले मयंक शर्मा द्वारा   निम्न दस गीत पटल पटल पर प्रस्तुत किये गए-

(1)
जन्म सार्थक हो धरा पर स्वप्न हर साकार हो,
हम चलें कर्तव्य पथ पर और जय जयकार हो।।                               
कंटकों के बीच में भी हैं सुमन रहते खिले,
हो पवन जाती सुगंधित जब कभी इनसे मिले।
अन्न उपजाती स्वयं का वक्ष धरती चीरकर,
तृप्त होता मन सदा बहती नदी के तीर पर।
काज परहित के करें अपना यही व्यवहार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........ 

दीर्घजीवन भी निरा किस काम का बिन मान के,
हम चले जाएं बिना अपनी किसी पहचान के।
कामना प्रभु से भले दो अल्प जीवन सीढ़ियां,
त्याग ऐसे कर चलें हम याद रख लें पीढ़ियां।
हों विदा संसार से तो आँसुओं की धार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........     

बेल पर संघर्ष की खिलता सदा ही फूल है,
कुछ पलों का कष्ट मानो ठोकरों की धूल है।
इस समर में सामना है द्वेष, छल, मद, स्वार्थ से,
जीतना होगा हमें यह युद्ध निज पुरुषार्थ से।
लक्ष्य का संकल्प अपनी जीत का आधार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........

(2)

राम तुम्हें आना होगा इस धरा पर अबकी बार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से, दुःखियों का उद्धार भी।

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह ने सबको ऐसा घेरा है,
राह नहीं आसान जगत पर तम ने किया बसेरा है।
प्रेम, त्याग, पुरुषार्थ, शौर्य से गुण के तुम थे अवतारी,
राम नहीं कोई तुम जैसा रावण सब पर है भारी।
जीवन पथ आलोकित करके हरो घोर अंधियार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से....

मानव होकर हमने अपनी मानवता को मार दिया,
देव समझ बैठे थे ख़ुद को असुरों सा व्यवहार किया।
पथ में बिखरे शूल हमारे, अगणित अनचाहे डर हैं,
जीवन और मरण के जाने कैसे दोराहे पर हैं।
डोल रही जीवन नौका की थाम लो तुम पतवार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से....

(3)

मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना,
दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना।                                                           
इनकी पगडण्डी से लेकर हमने महल बनाये,
 पर अपने सिर के ऊपर इक छत भी डाल न पाए।। अब रातें सदियों सी लगतीं दिन सालों से  भारी, चलना है दुश्वार मगर चलने की ज़िम्मेदारी।
कुछ दिन रहना एक जगह फिर पंछी बन उड़ जाना।  मन ले चल...                                         

लगता है अब ख़ुद पर ख़ुद का ही अधिकार नहीं है, अपने मन वाले सपनों का ये संसार नहीं है।              मज़दूरी तो मजबूरी का नाम हुआ करती है,            तन से निकले खारे जल का दाम हुआ करती है।        याद रहेगा सपनों का आँसू बनकर बह जाना।        मन ले चल...                                                       

सोचा कब था इसी तरह हर दर्द छुपाना होगा!          अब तक जो पाया है उसका कर्ज़ चुकाना होगा।        ऐसे मुश्किल पल ने हमको सबक यही सिखलाया,    माटी में ही मिल जाएगा इस माटी का जाया।।          बिखर गया इस संकट में जीवन का ताना बाना,        मन ले चल...

(4)

स्वर्ग फिर स्वर्ग बनकर रहेगा
खून सड़कों पे अब न बहेगा।
रंग से हो सजी तस्वीर,
भारती अब हुआ कश्मीर।     

जो गवारा न थी एक धारा वही,
दुश्मनों के लिये वो सहारा रही।
थे उगलते ज़हर होंठ सब सिल गए,
दूर थे जो कभी अब गले मिल गए।
तोड़ डाली हरिक ज़ंजीर।
भारती अब हुआ....             

 है न आतंक में न कोई जंग में,
पत्थरों में नहीं न ये बदरंग में।
केसरी गंध में पुष्प मकरंद में,
है रचा औ बसा डोंगरी छंद में।
प्यार इसकी अजब तासीर।
भारती अब हुआ....             

दो कदम तुम चलो दो कदम हम चलें,
वादियों में वही ख़्वाब फिर से पलें।
हों अमन के निशाँ ख़ूबसूरत समाँ,
कान में घंटियाँ गूँजती हो अजाँ।
हाथ से फेंक दें शमशीर।
भारती अब हुआ...

(5)

बोल मजूरे ज़ोर लगाकर बोल मजूरे हल्ला,              मांगें हम ख़ैरात कोई न चाहें सस्ता गल्ला।               
अपनी ताक़त के दम से हैं दुनिया की तामीरें।
हम हीरे, चाँदी, सोना हैं हमसे हैं जागीरें।           
ठोकर पर क्यूँ रक्खो सर का ताज बनाकर रखना।    रूठेंगे तो टूटेगा हर एक तुम्हारा सपना।                हम सच के हामी हैं सच बोलेंगे खुल्लम खुल्ला।      बोल मजूरे ....                                                     
हम मज़दूर भले हों पर मजबूर नहीं हो सकते,      खून पसीने के हक़ से अब दूर नहीं हो सकते।          पाप तुम्हारे ज़ुल्मों का जब सर चढ़कर बोलेगा।        इंक़लाब की बोली तब बच्चा-बच्चा बोलेगा।   
अंगारे हम मत समझो तुम, पानी का बुलबुल्ला।        बोल मजूरे हल्ला बोल.....

(6)

साँझ ढले हो घना अँधेरा छत पर आ जइयो,          श्वेत चाँदनी की चादर चहुँ ओर बिछा जइयो।            चाँद आ जइयो...                     

तेरी एक झलक में परियों जैसा सम्मोहन है,              पूनम वाले दीप्त चाँद की छवि ही मनमोहन है।
धीरे-धीरे मुख से तेरा आँचल को सरकाना,              अँधियारी काली रातों का रौशन होते जाना।
तारों की बारात साथ में लेकर आ जइयो।
चाँद आ जइयो...

तेरा मादक बिम्ब नदी के जल में जब उतराता,
गोरी का यौवन भी उसके सम्मुख शरमा जाता।
नभ से आने वाली किरणें इस जग को चमकाएं,
मोहक मुखड़े को मिलती हैं तेरी ही उपमाएं।
आकर्षक ये रूप हमें हर शाम दिखा जइयो।
चाँद आ जइयो...

आज अँधेरा औ तुझमें कल चाँदी की बरसातें
ऐसे ही होते हैं दुख-सुख ईश्वर की सौगातें।
विपदाओं से डरना जैसे तेरा काम नहीं है,                चलते रहना है जीवन रुकने का नाम नहीं है।
हमको भी जीवन का तुम ये सार बता जइयो।
चाँद आ जइयो...

(7)

देखकर अपनी उड़ानें और सुख से प्रीत,                  लाँघकर भी रेख को हम थे नहीं भयभीत।

अंध मद में दौड़ते थे त्याग कर सब धीर,                   सामने था, न दिखा प्रकृति के नयन का नीर।           वेदना होती मुखर तो गूँजता है नाद,                       संकटों में हैं घिरे तब कर्म आये याद।
हार में भी मानते थे हम स्वयं की जीत।
लाँघकर भी रेख को....       

स्वच्छ नभ में हो रही अब लालिमा सी प्रात,              हैं विचरते मग्न होकर जीव औ जलजात।                पुष्प के अधरों पर खिली मंद सी मुस्कान,              और भ्रमरा छेड़ता अब प्रीत की रसतान।                स्वस्थ हो जाए धरा गूंजे मधुर संगीत।
लाँघकर भी रेख को....

(8)

लाल हुई केसर घाटी गूँजा अलगावी नारा, कायर गीदड़ ने धोखे से फिर शेरों को मारा।                    ज़ार-ज़ार रोकर कहता है भारत देश ये सारा,          अबकी व्यर्थ न जाने देंगे हम बलिदान तुम्हारा।                           
   
चूड़ी, बिछिया, ईंगुर, बिंदिया कुछ भी लौट न पाया,     हँसी-ख़ुशी जीवन का सपना, सपना ही रह पाया।     किसके सिर को छाती पर रक्खेगी माँ तुम बोलो!       बेटे की अर्थी का बोझा तोल सको तो तोलो।            बिन बेटे फीकी हैं ख़ुशियाँ सूना है जग सारा।
अबकी व्यर्थ....           

अनुबंधों में संबंधों में आग लगा दो सब में,                 हैं पिशाच वो, ढूँढ रहे नर, हम हैं किस ग़फ़लत में।     काग नहीं समझें भाषा, मीठी कोयल की बोली,         हैं दिखावटी गले मिलन वो खेलें ख़ून की होली।        ऑंखों में भर लें शोले औ दिल में हम अंगारा।
अबकी व्यर्थ....             

बरसों की ग़लती पर हम तो आज भी हैं शर्मिंदा,      नर्क बनाया स्वर्ग को जिसने वो वहशी है ज़िंदा।        छप्पन इंची सीना भी सिकुड़ा-सिकुड़ा सा जाए,        पत्थर को भी भस्म बना दे इक विधवा की हाए।        बिलख रही केसर की धरती कोई नहीं सहारा।
अबकी व्यर्थ....

(9)

रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली,
मुँह से कुछ मीठा सा बोलें भूलके कड़वी बोली।

ओढ़ बसंती चूनर फिर से इठलाई है धरती,
छोड़ पुरातन परिधानों को सजती और सँवरती
रंगों का है अर्थ हमारे जीवन में खुशहाली,
नव कोपल से पेड़ लदे हैं झूमे डाली-डाली।
प्रेम लुटाकर सब पर हम खुशियों से भर लें झोली।
मुँह से कुछ मीठा...

शिकवे और शिकायत सारी भस्म यहीं हो जाएं,
तन से तन का मेल नहीं बस मन से मन मिल जाएं।
रंगों का ये पर्व अनोखा है सबसे ही न्यारा,
ख़त्म हुआ जो हर रिश्ता जीवन लेता दोबारा।
संबंधों के फूल खिलाकर बन जाएं हमजोली।
मुँह से कुछ मीठा...

हर फागुन में सोए दिल की आग भड़क जाती है,
लाल गुलाबी चेहरे में जब सामने वो आती है।
उसके चंचल नयन सदा ही करते हैं मनमानी,
इतराती यौवन पर अपने लगती है अभिमानी।
पिचकारी से दागे है मानो वो बम की गोली।
मुँह से कुछ मीठा...

(10)

मृत्तिका की सर्जना में तेल बाती सा जलूँ,
एक दीपक तुम बनो तो एक दीपक मैं बनूँ।

एक दीपक प्रेम का हो एक हो विश्वास का,
शुष्क रेतीली धरा पर बारिशों की आस का।
एक दीपक तुम कि जो निर्मल करे अंतःकरण,
एक मैं वह दीप जिससे ज्ञान का हो जागरण।
एक दीपक में जले हर दोष बोले मिथ्य का,
एक दीपक जो जले हर द्वार पर आतिथ्य का।
दूर तुमसे हो तिमिर तब मैं भला तम क्यों जनूँ!
एक दीपक तुम बनो....

एक दीपक से प्रकाशित धर्म का हो आचरण,
आचरण की शुद्धता व्यभिचार का कर दे क्षरण।
मैं जलाकर राख कर दूँ पापियों के पाप को,
तुम हरो करुणा, दया से दीन के संताप को।
एक दीपक मैं बनूँ संघर्ष जिसकी सम्पदा,
एक तुम जो आँधियों में भी रहे जलता सदा।
हो जहाँ तक भी अँधेरा रौशनी को ले चलूँ,
एक दीपक तुम बनो....

कर गए बलिदान ख़ुद को चाँदनी की चाह में,
दीप जगमग हों सदा उन प्रहरियों की राह में।
स्वप्न स्वर्णिम रश्मियों के वे हमें देकर गए,
है समय अब आ गया निर्माण का भारत नए।
एक दीपक भारती के पुण्य वैभव गान का,
जन्म पावन इस धरा पर ईश्वरी वरदान का।
कामना है हर जनम में दीप बनकर ही जलूँ।
एक दीपक तुम बनो....

इन गीतों पर चर्चा शुरू करते हुए मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मयंक जी को मैंने जितना सुना था उससे ज्यादा लिटरेरी क्लब के पटल पर पढ़ा। मुझे कहने दिया जाये कि उनके गीतों में जिंदगी का जो हौसला अहसास की जो सच्चाई अपनी संस्कृति का जो सम्मान मौजूद है, वह उनके शानदार साहित्यिक भविष्य का अंदाजा लगाने के लिए बहुत काफी है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि गेयता हो तो गीतात्मकता में माधुर्य और प्रभाव में वृद्धि हो जाती है। मयंक के प्रस्तुत गीतों में अध्यात्म है। परमार्थ पूर्ण जीवन की प्रेरणा है। मानव होकर मानवता विहीन होने का दु:ख है। श्रम जीवियों का अपना दर्द है। कश्मीर से संबंधित गीतों के माध्यम से देशभक्ति  का भाव उमड़ा है। सीमा के जांबाज प्रहरियों पर भरोसा है और विधेयात्मक भविष्य पर विश्वास है। संबंधों में आत्मीयता की प्रेरणा है दीपक बनकर सृजन की आकांक्षा है।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मयंक के गीतों में यद्यपि समाज की अन्य चिंताएं भी हैं पर उनका मूल स्वर राष्ट्रीय चेतना से जन्मा राष्ट्रप्रेम है। वर्तमान में कविताएं इस धारा से कटी हुई है क्योंकि यह मुश्किल है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहती हुई धारा जैसी गति और बोलचाल के शब्दों में उमड़ते मन के भावों को गीत के रूप में पिरोने काम आसान नहीं होता, लेकिन मयंक इसमें समर्थ हैं। सामयिक घटनाओं से,जीवन के और नैसर्गिक सौंदर्य के प्रति भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति और सामाजिक संदेश सब इन रचनाओं में उपस्थित है।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव ने उनके प्रस्तुत गीतों पर चर्चा करते हुए कहा कि मयंक जी से गीत काव्य को और पर्याप्त समृद्धि की बलवती सम्भावनाएँ हैं।  उन्होंने मुरादाबाद लिटरेरी
 क्लब द्वारा इस प्रकार के आयोजनों की सराहना की
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मयंक शर्मा जी का जहां लाजवाब तरन्नुम श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर लेता है वहीं उनके गीतों के उत्कृष्ट भाव लोगों के दिलों में उतरते चले जाते हैं क्योंकि वहां कल्पना की अतिशयता नहीं है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर पिछले पांच-छह साल में जो नाम तेजी से उभरे हैं उनमें एक नाम है मयंक शर्मा का। उनके गीतों की स्वर लहरियां कभी तन मन में जोश भर देती हैं तो कभी करुणा का भाव भी जगा देती हैं। उनके गीत जहां भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं वहीं वह सामाजिक विकृतियों, विद्रूपताओं को भी बखूबी उजागर करते हैं। वह जहां एक ओर शिकवे शिकायतें  भुलाकर सम्बन्धों के फूल खिलाने, प्रेम और विश्वास का दीप जलाने का  आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि प्रिय मयंक गीतकार के रूप में उभरता हुआ नाम हैं। उनके गीत सहज सरल और सारगर्भित हैं जिसमें सामाजिक सरोकार भी है और राष्ट्र प्रेम भी कई गीत मंच पर सुनने का अवसर मिला गीत जब वो गाते है तो मानो सबको सम्मोहित कर लेते है और वो गीत हृदय को भीतर तक झंकृत करते हैं। मयंक को स्नेहिल शुभकामनाएं उनकी वाणी, स्वर कलम पर माँ शारदे की कृपा यूँ ही बनी रहे और वो अपनी रचनाधर्मिता से नगर को गौर्वान्वित करें।   
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मुरादाबाद के बेहद संभावनाशील युवा कवि मयंक शर्मा के गीतों को अनेक बार सुना है विभिन्न कार्यक्रमों में, अपने मीठे स्वर में जब वह अपने गीत प्रस्तुत करते हैं तो उपस्थित सारे श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते हैं। माँ सरस्वती जी की उन पर विशेष कृपा है।
प्रसिद्ध समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मयंक शर्मा जी के गीत पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ तो उन्हें स्वत: ही गुनगुनाने लगा। मैंने यह उनके गीतों में तासीर देखी। अच्छा लगा कि उनसे मिलने से पहले उनकी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने का सुअवसर प्राप्त हो गया। तो यक़ीन हो गया कि वह एक आदर्शवादी व्यक्तित्व के धनी हैं। एक आदर्शवादी व्यक्ति जब मर्यादाओं का हनन होते हुए और काम,क्रोध,मद लोभ और मोह का साया हर तरफ़ मंडराते हुए देखता है तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को पुकारना स्वभाविक ही प्रतीत होता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि आने वाले समय में एक कामयाब और सशक्त गीतकार हो कर उभरेंगे उनमें सृजनशीलता खूब भरी हुई है वह अपनी जड़ों से जुड़े हुए आसमान छूने की सलाहियत रखते हैं।
युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि मयंक उस सुरीली परम्परा के गीतकार हैं जिसकी शुरुआत बच्चन जी से हुई। आदरणीय भारत भूषण जी और स्मृतिशेष किशन सरोज जी ने जिसे पुष्पित पल्लवित किया और श्री कुँवर बेचैन तथा विष्णु सक्सेना आज भी जिसका परचम लहराए हुए हैं। मयंक जाग्रत चेतना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में जागृति और आह्वान प्रचुरता से देखने को मिलता है।
समीक्षक डॉ रबाब अंजुम ने कहा कि मयंक जी का काव्य पढ़ा। उनके गीत बहुत कुछ कह गए। अपने सुरताल के साथ मयंक जी का होली के रंगों से शुरू हुआ गीत उर्दू के अवामी शायर नज़ीर की याद दिला गया।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि मयंक जी के  रचना पाठ में जो रस अनुभूति होती है उसमें लगता है कि संगीत भी साथ साथ बह रहा हो। मयंक जी की रचनाओं में  संस्कृति, स्वाभिमान, सामाजिकता, देश भक्ति ,संबंधों के प्रति यथा योग्य स्नेह व सम्मान  आदि मुख्यतया पाया जाता है। शृंगारिक रचना कर्म कर्म भी शालीनता को  प्रमुखता  से लिया गया है।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि भक्ति है, श्रृंगार है, वीरता है, करुणा है, फ़लसफ़ा है यानी इन गीतों में कवि मयंक शर्मा जी के कई रंग देखने को मिले। दी गयी कविताओं के हवाले से वीर रस का प्रतिनिधित्व हालाँकि इन सब में से ज़्यादा है। वीर रस के अच्छे कवि ढूँढने पर भी नहीं मिलते, यानी वीर रस के ऐसे कवि जिन की कविताएँ विशेष काल-खंड की दीवारों को पार कर जाएँ और हर दौर में प्रासंगिक बनी रहें। मयंक शर्मा जी इस लिहाज़ से एक रौशन मुस्तक़बिल की उम्मीद जगाते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि मयंक जी सर्जन करते ही नहीं अपितु उसे जीते भी हैं। मानवता को अपनाने का सार्थक व प्रेरक आह्वान, पापों से त्रस्त होकर प्रभु से प्रार्थना, शहरों के बनावटी जीवन से उपजी वेदना, विभिन्न विसंगतियों से त्रस्त धरा, स्वाभिमानी श्रमिक के हृदयोउद्गार, मनोहारी प्राकृतिक वर्णन, शत्रु पर विजय का शंखनाद, सामाजिक समरसता आदि अनेक पहलुओं को कुशलता पूर्वक छूती उनकी लेखनी इसका स्पष्ट प्रमाण है।
कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि मयंक शर्मा एक उभरते हुए गीतकार हैं। सरल भाषा व संवाद शैली में छंदबद्ध किये हुए अपने गीत जब वह अपने सुमधुर स्वर में गाते हैं तब श्रोताओ को मानो सम्मोहित कर लेते हैं। उनके गीतों का जादू सुनने वाले के मन पर गहरी छाप अंकित करता है।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यपटल पर उर्जावान  व अपनी सुरीली आवाज़ से मंत्रमुग्ध करते हुए युवा गीतकार व गायक के रूप में  तेजी से उभरे हैं। मैं और मेरा पूरा परिवार मयंक भाई का बहुत बड़ा प्रशंसक है।मैं तो  अक्सर उनके गीतों की पंक्तियां गुनगुनाती हूँ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि नौजवान गीतकार मयंक शर्मा के गीतों को पढ़कर मेरा पहला ता'सुर यही है कि ये गीत ख़ामोशी से पढ़ने वाले गीत नहीं है। इनको थोड़ी सी बुलंद आवाज़ में आप पढ़ेंगे तो आपको ज़्यादा मज़ा आएगा और आप इन गीतों के अधिक क़रीब पहुंचेंगे। इन गीतों में भरपूर ऊर्जा है, जो हमारे तन और मन को ऊर्जावान तो बनाती ही है, हमारे अन्दर सकारात्मकता भी भर देती है।

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ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
मुरादाबाद244001
मो० 7017612289