गोलू मोलू थे दो भाई, पर होती उनमें हर रोज़ लड़ाई।
लड़ते रहते वो तो हर दम, करते रहते फिर हाथापाई।
मम्मी-पापा खूब समझाते,पर दोनों के समझ न आई।
ऐसे में जम करके एकदिन,जब दोनों को डांट पिलाई।
लड़ना तो गंदी आदत, उनको तो फिर समझ में आई।
ऐसे में दोनों ने मिलके, एक दिन फिर कसम ये खाई।
हम दोनों अब नहीं लड़ेंगे, ना ही होगी हमारी पिटाई।
दोनों अब मिलज़ुल कर रहते,खूब करते हंसी हंसाई।
चारों ओर तारीफें रहतीं, मिसाल बन गए दोनों भाई।
खुशी खुशी अब दोनों रहते,जमके खाते खूब मलाई।
मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा मोबाइल-9412587622
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नन्ही राधा नाचती ,देख नए उपहार
चम-चम चमके घाघरा,चुनरी जालीदार
कोकिल सी है कूकती,आए भाई द्वार
घर आंगन में डोलती,राधा इस त्योहार
प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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चीनी क्यों होती मीठी
नमक क्यों होता नमकीन
नीबू खट्टा क्यों होता
कड़वी क्यों होती है नीम
सोच रहा भोला भोलू
कौआ क्यों गाता भद्दा
कोयल क्यों मीठा गाती
हिरण तेज़ दौड़ता क्यों
क्यों सबसे मोटा हाथी
सोच रहा भोला भोलू
छे के बाद क्यों आता सात
दो और दो क्यों होते चार
हिमालय इतना ऊंचा क्यों
पवित्र क्यों गंगा की धार
सोच रहा भोला भोलू
ऐसे है कुछ और प्रशन
मन ढूंढ रहा जिनके उत्तर
वो दिन जाने कब आएगा
होगी प्रभु कृपा मुझ पर
सोच रहा भोला भोलू
डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M-9837189600
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पों - पों करती हॉर्न बजाती,
गाड़ी आती है,
सब बच्चों को दूर - दूर की,
सैर कराती है।
गीता, नीता, गोलू सब को,
पास बुलाती है,
अंजुम और शमा दीदी को,
घरसे लाती है।
कच्ची-पक्की सब सड़कों पर,
दौड़ लगाती है,
बाग बगीचों तालाबों की,
छटा दिखाती है।
मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे के,
दरस कराती है,
गिरजा को पावन श्रद्धा से,
सीस झुकाती है।
रामू श्यामू को बैठाने,
हॉर्न बजाती है,
घर आने पर देखो बच्चो,
खुद रुक जाती है।
सब बच्चों को सुंदर - सुंदर,
गीत सुनाती है,
बैठे - बैठे बच्चों को भी,
नींद सताती है।
तभी अचानक गाड़ी अपने,
ब्रेक लगाती है,
चालक बोला उतरो गाड़ी,
कल फिर आती है।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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माँ भारती के लाल हो तो मातृभूमि पर मरो।
हो ऊँची शान देश की तुम काम कुछ ऐसे करो।
मिटा दो दुश्मनों के मान डरें वो भारत नाम से।
नज़र करे तिरछी कोई तो धीर फिर तुम ना धरो।
माँ भारती के लाल हो तुम मातृभूमि पर मरो।
हो निज ध्वजा ऊँची सदा जो हिन्द की पहचान है।
खिलती जो तीन रंग में जहाँ से न्यारी शान है।
प्राणों से बढ़कर तुम सदा रक्षा तिरंगे की करो।
कभी ना इसको भूलना है कर्ज तुमपर वतन का।
जो देशहित बलि चढ़ गए उन शहीदों के कफ़न का।
मिली है आज़ादी हमें अब इसकी सुरक्षा करो।
माँ भारती के लाल हो तो मातृभूमि पर मरो।।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा , मुरादाबाद
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सपना देखा,सपना देखा ।
कल मैंने एक सपना देखा ।
लिए हाथ में लाल छड़ी, मैं।
परी बन गई बहुत बड़ी, मैं।
फिर बच्चे भी, आ गए सारे।
उड़ना चाहें, नभ में प्यारे।
पल भर में, फिर छड़ी घुमाई।
उनको नभ की, सैर कराई ।
उनको कुल्फी भी खिलवाई
संग थी रबड़ी और मलाई ।
*एक बना विद्यालय न्यारा ।
सबसे सुंदर सबसे प्यारा ।
वहाँ न कोई टीचर मारे।
खेल कूद और मौज बहारें ।
कैसा भी कोई छेद नहीं था।
जाति-धर्म का भेद नहीं था।
देश बन गया इतना प्यारा।
नतमस्तक था यह जग सारा।
दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन ,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) 244410
(उ.प्र.) मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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याद मेरे बचपन की
मुझको जब भी आती है
मेरे मन की प्यारी सी
खिड़की खुल जाती है
ठुमक-ठुमक कर चलना
सबको आकर्षित करता
रोना और मचल जाना
भी आनंदित करता
थपकी देदे लोरी गा
मां मुझे सुलाती है
मेरे मन की प्यारी सी
खिड़की खुल जाती है
झड़ी लगाना प्रश्नों की
नित मन था जिज्ञासु
डांट पड़ी तो गालों पर
फिर बड़े-बड़े आंसू
बड़े प्यार से घंटों
माता मुझे मनाती है
मेरे मन की प्यारी सी
खिड़की खुल जाती है
नानी दादी बड़े प्यार से
गोदी में विठलातीं
लेती खूब बलैया काला-
टीका रोज लगातीं
किस्सों में सुंदर परियां
हमको दिखलाती है
मेरे मन की प्यारी सी
खिड़की खुल जाती है
कंचे , खो-खो, चोर सिपहिया
खेल कबड्डी करते
गुल्ली डंडा, छुपी छुपैया
नहीं किसी से डरते
बचपन के खेलों के
सारे चित्र दिखाती है
मेरे मन की प्यारी सी
खिड़की खुल जाती है
बीत रहा हर पल जीवन
है तेज समय की धारा
गया हुआ बचपन वापस
फिर लौटे ना दोबारा
जाने यादें क्यों मेरे
नैना छलकाती है
मेरे मन की प्यारी सी
खिड़की खुल जाती है
अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।
रोज़ी लायी घर से चावल,
राजा लाया चीनी।
अहमद की केसर से फैली,
खुशबू भीनी-भीनी।
पापे ने भी हँसते-हँसते,
कलछी खूब चलाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।
दादी, दादा, मम्मी, पापा,
या हों नाना-नानी।
देख-देख कर मुँह में सबके,
आया डट कर पानी।
चाचा जुम्मन करें शिकायत,
हमको नहीं चटाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।
ज़ात-पात के भेद भुलाकर,
जब बच्चे मुस्काये।
बड़ों-बड़ों ने भी आँखों से,
पर्दे सभी हटाए।
सबके मन में अपनेपन ने,
अपनी पैठ जमाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।
- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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माँ तुम मुझको आज सुनाओ
ऐसी एक कहानी।
जिसमें न होराजा कोई
और न कोई रानी,
बस मै हूँ और तुम हो
न हो कोई परेशानी।
जहाँ हमारे सपने हो और साथ हो माँ प्यारी
दुख न हो जहां पर
भरपेट मिले खाना
न तू भूखी सोये न
मुझे पडे कम खाना
माँ.....
सुन्दर सुखद हो कल हमारा,
मै हूँ राजा बेटा और तू हैं महारानी
ये कमरा है राजमहल
बाकी दुनिया बेमानी।
मां...।।।
डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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करो सफाई ,रखो सफाई
सदा मलिनता है दुःखदाई
जो बच्चे न साफ रहेंगे
वे अक्सर बीमार पड़ेंगे
रोज सबेरे जल्दी उठकर
करना है सबको स्नान
निज जीवन में आगे रहना
स्वस्थ शरीर की है पहचान।
डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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परिश्रम का फल
अजय और राहुल बड़े पक्के दोस्त थे । एक ही कक्षा में पढ़ते थे । पर दोनों में एक बड़ा भारी अन्तर था । जहाँ राहुल एक समृद्ध परिवार से होने के कारण थोड़ा अकड़ में रहता वहीं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का अजय बेहद संयमित प्रकृति का था । राहुल हर चीज़ हासिल करना जानता था और अजय संतुष्टि से परिपूर्ण था । कभी - कभी अजय जब राहुल को किसी बात या चीज़ के लिए ज्यादा मचलते देखता तो उसे समझाने की कोशिश करता पर राहुल उससे ही उलझ पड़ता पर अगले ही दिन दोनों एक दूसरे के गले में बाँहें डाले मिलते ।
स्कूल में सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी घोषित होने की प्रतियोगिता थी । लड़कों में जबर्दस्त तरीके की प्रतिस्पर्धा थी । राहुल हर कोशिश कर रहा था । उसने अपने पिताजी से स्कूल फंड में भारी चंदा जमा करवाया था । साथ ही साथ निर्णायक मंडल में शामिल कई अध्यापकों के घरों में महँगे - महँगे उपहार भिजवाए थे । ऐसा नहीं था कि कोई उसके प्रभाव में था पर वो हर तरीका अपना कर केवल खुद को आश्वस्त कर रहा था कि कोई ना कोई दाँव कामयाब रहेगा । वो मित्र मंड़ली में ये बातें खुल कर तो नहीं बताता था पर उसकी डींगों से लड़के सब समझ जाते । अजय या तो चुप रहता या राहुल से इस तरह की बातें करने को मना करता । पर राहुल उसकी सुनता ही कब था ।
परिणाम घोषित हुआ । अजय विजेता बना । प्रधानाचार्य जी ने भाषण शुरू किया " मैं पिछले कई वर्षों से अजय को देख रहा हूँ । वह एक निर्दोष , निडर व निष्पक्ष बालक है । निर्दोष इसलिए कि आसपास गलत होते हुए भी उसने किसी गलत आदत को नहीं अपनाया , निडर इसलिए कि अपने परिवार की स्थिति को वो निडरता से स्वीकार कर केवल परिश्रम के बलबूते पर ही इतने बड़े विद्यालय में पढ़ रहा है , निष्पक्ष इसलिए की ये जानते हुए भी कि उसके सभी साथी उस जैसे नहीं वो किसी भी बात को अपनी दोस्ती के आड़े नहीं आने देता । "
हाल तालियों से गूँज रहा था । कुछ छात्र राहुल के चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए थे कि अब राहुल की प्रतिक्रिया क्या होगी पर अजय पुरस्कार लेकर जैसे ही राहुल के पास पहुँचा राहुल ने दौड़कर उसे गले से लगा लिया । उसकी आँखों में आँसू थे पर इस बार ये हार या ईर्ष्या के नहीं दोस्त के परिश्रम की जीत के थे ।।
सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
हार्दिक अभिनंदन
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