(1)
तुम झटकते हो
गीले गेसू
इत्र सा पानी
मुझको छू
झंकृत कर जाता है
मन वीणा के तार
देह में साँसें
बची रहतीं हैं बस
ह्रदय धड़कता रहता है
बे बस
और कुछ क्षण के लिए
रच लेता हूँ
स्वर्ग सा सुन्दर
एक
सपनों का संसार।
(2)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
एकांत में
स्तब्ध होता हूँ
एक क्षण के
हज़ारवें हिस्से के लिए
और फिर बटोर कर
सारी हिम्मत
शौर्य से लबरेज़
खड़ा होता हूँ
तुम्हारे समक्ष
और कह देता हूँ
अपनी बातl
(3)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
किसी महफ़िल में
कुछ मिनट के लिए
स्तब्ध रह
बड़ा अपमान सह
और फिर अचानक
सजा लेता हूँ
चेहरे पर एक
बेशर्मी सी मुस्कान
पी लेता हूँ
विष सा क्रोध
पुरावृत्ति के दर से
कुछ घंटो के लिए
नहीं करता हूँ
कोई अनुरोध
फिर माफ़ कर देता हूँ
तुम्हें अपना मान
सारी बातें
तुमसे नहीं
स्वयं से कह ।
✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
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आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।1
ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।2
अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।3
चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी।4
सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।5
अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की।
मन दर्पण पर जमी हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।7
हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं उठने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।8
रंग बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।9
डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो
दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो
फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो
पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो
डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
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अपने भारत देश परकभी
आँच नहीं आने देंगे हम।
जान चली भी जाएगी तो
हमें नहीं होगा कोई गम।
वंदे मातरम, वंदे मातरम वंदे मातरम, वंदे मातरम
भारत की पावन नदियों का,
मीठा जल जैसे हो अमृत।
और यहाँ की माटी भी तो
नहीं महकती चंदन से कम।
दुश्मन अगर उठाता है सर
उसे कुचल देते है फौरन।
भारत को ललकार सके है,
नहीं किसी में भी इतना दम।
पूजे जाते जिस भारत में,
सूरज चाँद सितारे भी हैं।
कैसे कहीं ठहर सकता है
वहाँ कभी फिर कोई भी तम।
लोकतांत्रिक देश हमारा,
इस पर गर्व हमें होता है।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबको ही अधिकार मिले सम।
अतिथि होते देव सरीखे
सिखलाते संस्कार हमारे।
मगर सामने दुश्मन हो तो
हम भी बन जाते हैं फिर यम।
प्रत्येक क्षेत्र में हमने लोहा
मनवाया है, मनवाएँगे।
लहराएगा सदा तिरंगा अपना
सबसे ऊँचा परचम।
कहीं हिमालय की चोटी हैं,
कहीं बहे गंगा की धारा।
यहीं स्वर्ग कश्मीर हमारा,
छटा 'अर्चना' इसकी अनुपम।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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बाहर सबसे उतनी अनबन होती है
जब-जब ग़ुस्सा, घबराहट, डर बढ़ते हैं
तब-तब सांसों में इक सिहरन होती है
जिसकी साँसें भीतर सधने लगती हैं
उससे पूछो कैसी थिरकन होती है
उस घर की दीवारें गिरने लगती हैं
जिसकी बुनियादों में सीलन होती है
रमना मतलब एक जगह घुल-मिल जाना
बेमतलब चलना तो भटकन होती है
कौन बुझा सकता है उस लौ को,बोलो
जो उसकी मर्ज़ी से रौशन होती है
यूँ डसती है उम्र फिसलकर हाथों से
जैसे इक ज़हरीली नागन होती है
चलते-चलते जब मैं थकने लगता हूँ
मेरी हिम्मत मेरा ईंधन होती है
सुमित सिंह "मीत"
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रजनी बोली , अरी बदरिया !
क्यों बाबरिया मन तेरा है
ऐसा मेरे घर में क्या है
जो दर मेरा यूँ घेरा है ।
चमके उज्जवल नभ घनेरा
जब आते चाँद सितारे हैं
टिम टिम करते मुस्काते हैं
ये लगते कितने प्यारे हैं
डाल न इन पर भीगी चूनर
ये हीरे मोती न्यारे हैं ।
चम चम चम चम चमक चाँदनी
वसुन्धरा को चमकाती है
श्वेत रजत बिखरी कण कण में
मन में उमंग उपजाती है
बिखरा नभ में बूँद कणों को
क्यों पानी सब पर फेरा है !
रजनी बोली , अरी बदरिया ......।
डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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देश की रक्षा में जुट जायें ॥
भारत के उन्नत ललाट को,
जग में ऊॅचा और उठायें ॥
प्राण दिये हैं जिन वीरों ने ,
हम उनकी गाथाएँ गायें ॥
बुरी नजर जो डाले हम पर ,
हम उसको इक सबक सिखायें ॥
हर भारतवासी के मन में ,
देश प्रेम की अलख जगायें ॥
स्वतंत्रता के महापर्व को,
जन जन का हम पर्व बनायें ॥
डाॅ0 ममता सिंह
मुरादाबाद
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मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।
लो दुश्मन की नाक में, कसने चला नकेल।
भारत माँ का लाडला, महाबली राफ़ेल।।
क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।
जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी काग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।
चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल श्रृंगार।।
प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।
- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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न आना है न जाना है
ये हिला है बहाना है
आशिंके तशौबर में
इ़क शहरे तमन्ना है
ये ख्वाब कि दुनियाँ है
क्या इ़सका ठिकाना है
मांझी के ख्यालो में
तुफा़न का आना है
ये उनकी अद़ायें हैं
या दिल का जलाना है
तू लाख सितमगर है
हम भी तो सहमसार हैं
इक वो भी जम़ाना था
इक ये भी जम़ाना है
हँस्ते थे कभी हम भी बादल
अब अश्क बहाना है
डा एम पी बादल जायसी
आजा़द नगर मुरादाबाद
93 193 18 919
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स्वतंत्र हुए परातंत्रता से
अंग्रेजो की हुकूमत से,
स्वतंत्रता का उद्घोष गूंजता
स्वतंत्रता दिवस के प्रत्येक जश्न संग।
लेकिन कर क्या रहें भारतवासी
अराजकता साम्प्रदायिकता रूपी विष फैलाके,
अंग्रेजों से स्वतंत्र हों
स्वार्थ की परांतत्रता में जकड़े।
हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई
नींव सभी धर्म भारत की,
जाति पांति के बंधनों में उलझ
उलझा रहे देशवासियों के सौहार्द को।
इस पावन मिट्टी को मान सम्पदा अपनी
चूर चूर कर रहे देश की अखण्डता को,
उस देश को जिसे एकता के सूत्र में बांधा
देशप्रेमी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने।
बिसरे नागरिक, नहीं सम्पदा यह माटी उनकी
यह तो है धरोहर जो देनी अगली पीढ़ी को अपनी,
धर्म सम्प्रदायों में विभाजित कर
नफरत फैला देश का बंटाधार कर रहे।
समय अभी भी शेष है,
सावधान होने को उन चालाकों से,
जो झोंक रहे भारत की स्वतंत्रता को
स्वार्थसिद्धि, स्वार्थपूर्ति की भट्टी में।
इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं
पूछीं गौरा शिव शंकर से, ये क्या लीला श्याम रचत हैं
जरा हमको भी समझाओ नाथ कैसे ये महारास रचत हैं
भेद जानने महारास का शिव रूप गोपी का धरत हैं
पहुँच बैठे निधिवन में जहाँ श्याम महारास करत हैं
कभीबंसी बजाए कभी नाच नचाये
कभी कमर लचाये कभी लटक जाये
आगे भागे राधा रानी ,पीछे पीछे श्याम फिरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं
हर गोपी को निधिवन जी में खुद के श्याम मिलत हैं
देख दृश्य अद्भुत ये शिव शम्भू अचरज में परत हैं
जाने कैसी माया ये प्रभु की , कैसी लीला रचत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं
कहत मनमौजी राधा श्याम यूं निधि बन में रास करत हैं
राधा साधे मुरली हाथों में, श्याम राधा का भेस धरत हैं
पहन घाघरा डाले चुनरी,गालों पर लाली धरत हैं
कजरारे नैन, होठों पर लाली, श्याम राधा का भेस धरत हैं
निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं ll
विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"
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हिंदुस्तान जब भी हारा है
अपने जयचन्दों से हारा है,
सीमा पर लाखों शहीद हुए
फिर भी ये कहते पाकिस्तान हमारा है
इनके नापाक इरादों की
अब तो होली जलनी होगी,
बीच चौराहा पकड़कर ठोक डालो
अब तो छाती छलनी करनी होगी
-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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पलना के ललना खेलाय रही
देखी लाल मुस्काय रही होssssss
बीती दुखयारी रतिया के घरवा अब
नंद के अंजोर भइले हो।
नंद बाबा मन मन गाय रहे
हियरा बढाय रहे होssssssss
देखी चाँद को टुकड़ो अँगनवा त
ब्रज को बुलाय रहे हो।
सातों दर झूमे घुमड़ घन
झम झम बरसेला होssssssss
झीनी झीनी आए बरखा बदरवा
त अपनो आशीष दिहले हो।
चम चम चमके बिजुरिया
लहर उठे सागर होsssssss
सिंधु उठी उठी पगवा पखारे के
केतना अधीर भइले हो।
झुकी झुकी डरिया झुकल जाए
फूल बरसावेले होssssssss
रात की रानिया हो गम गम गमके त
गालियां महकावे ले हो।
इंदु रानी
मुरादाबाद
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देश खड़ा है रणभूमि में
दुश्मन को यह समझाना है
बस एक साथ रहकर के
अपना धर्म निभाना है
सारे विश्व में अब भारत की
जय जयकार होगी,
जब हमारी सेना शरहद के पार होगी,
बहुत हो चुकी शांति शांति,
अब क्रांति की मशाल जलानी है
अपने देश की ये ताकत
मिलकर के हमे दिखानी है,
वीरों की कुर्बानी को हम
बेकार नही जाने देंगे,
हम भारत के सपूत हैं
खून की नदियां बहा देंगे,
ईशांत शर्मा "ईशु"
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
हे मनुष्य तुझे मानवीय व्यवहार सीखता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सीखता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों के घर वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में वो लहू बहाने निकल पड़े हैं
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
हार्दिक अभिनंदन
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