गुरुवार, 17 मार्च 2022

आज धरती से गगन तक है रँगा ....कह रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार

 


आज धरती से  गगन  तक है रँगा ,

वस्त्र क्या तन  और मन तक है रँगा !


रात रंगों की हुई बरसात है ,

और रंगों से रँगा हर गात है ,

रंग का उत्सव मनाने के लिए

रात ने अंतिम चरण तक है रँगा !!


पीत सरसों ने बजाई दुंद्वभी ,

खिल उठे हैं विविध रँग के फूल भी 

विविध रंगों से सकल बसुधा सजी

देखिए वातावरण तक है रँगा !!


प्रेम जीवन में सभी के हम भरें ,

प्रेममय संपूर्ण मानवता करें,

प्रेममय जग को बनाने के लिए

इस धरा ने आचरण तक है रँगा !!


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धि विहार , मझोला ,

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश ) 244103

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का मुक्तक , कुंडलियां और चुनावी दोहे


हर तरफ मस्ती भरा हर वृद्ध हो हर बाल हो

रंग से पीला-गुलाबी हर स्वजन का गाल हो

रह न जाए कोई भी माधुर्य के मधु - भाव से

हाथ में पिचकारियाँ हों , रंग और गुलाल हो

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(1)

पिचकारी  जितनी  भरी ,उतनी छोड़े रंग

धार किसी की दूर तक ,रह जाते सब दंग

रह जाते  सब  दंग , किसी  ने गाढ़ा पोता

रहता  रंग अनूप , न हल्का किंचित होता

कहते रवि कविराय ,खेल लो होली प्यारी

दो दिन का त्यौहार ,रंग दो दिन पिचकारी

(2)

राधा  जी   हैं   खेलतीं ,  होली  कान्हा  संग 

दिव्य अलौकिक दृश्य यह ,यह परिदृश्य अनंग

यह  परिदृश्य  अनंग , रंग पिचकारी वाला

दिखता पीत गुलाल ,न जाने किसने डाला

कहते रवि कविराय, हटी युग-युग की बाधा

मिले  प्राण  से प्राण , श्याम से मिलतीं राधा 

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(1)

योगी-मोदी का जमा ,ऐसा बढ़िया रंग

सभी विपक्षी रह गए ,देख-देख कर दंग

(2)

बुलडोजर बाबा हुए ,बाइस के अवतार

अगले अब सौ साल तक ,इनकी ही सरकार

 (3)

राहुल बाबा हो गए ,पूरे अंतर्ध्यान 

कांग्रेस का ढूँढ़ते ,सब जन नाम-निशान 

 (4)

हुई प्रियंका वाड्रा ,ऐसे बंटाधार 

दो की संख्या रह गई ,छोटा शुभ परिवार

 (5)

मायावती प्रसन्न हैं ,आया तो है एक 

यूपी में अच्छी मिली ,यह भी मुश्किल टेक 

  (6)

ठुकराया तुष्टीकरण ,समझो श्री अखिलेश

समझ अपर्णा ने लिया ,सही-सही परिवेश

(7)

झाड़ू है पंजाब में , नायक हैं श्री मान 

दिल्ली में अब क्या लिखा ,किसे भाग्य का ज्ञान 

(8)

जीते यूपी चल दिए , मोदी जी गुजरात

इनकी किस्मत में लिखा ,भाषण बस दिन-रात 


✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 *मोबाइल 99976 15451*

मुरादाबाद के साहित्यकार चन्द्रहास कुमार हर्ष की रचना ----अवीर गुलाल मैंने , गोरे गोरी को लगाया ,



आओ चले लौट चलें , जवानी की ओर ।

स्वस्थ रहें मस्त रहें  चलो खूब करे शोर ।।

नित नित जीवन मे ,  नई नई उमंग हो ,

खुशियों के पन्ने पर ,  नए नए रंग हो ।

चंचल है मन मेरा , देख चांदनी चकोर ,

स्वस्थ रहें मस्त रहें ,   चलो खूब करे शोर ।।

फागुन के मास में , मस्ती का रंग चढ़ा ,

साथ ले ले साजना , मेरी और हाथ बढ़ा ।

पीतांबरी अवनी पर , नाचे वासंती मोर ।।

स्वस्थ रहें मस्त रहें , चलो खूब करे शोर ।।

अवीर गुलाल मैंने , गोरे गोरी को लगाया ,

सब कुछ भूल गया, अपने को जाने कहां पाया।

मैं तो सारा हो गया , रंग से सराबोर ,

स्वस्थ रहें मस्त रहें , चलो खूब करे शोर ।।

धूमधाम से सदा , मनाओ अपनी होली ,

कड़वी ना बात करो , बोलो मीठी मीठी बोली ।

शुभ हो बधाई "हर्ष" , खुशी फैले चहुओर ,

स्वस्थ रहें मस्त रहें ,चलो खूब करे शोर ।।

           

 ✍️  चन्द्रहास कुमार "हर्ष"

       मुरादाबाद ,उ. प्र.भारत

कोई कवयित्री तुम्हारे गले नहीं पड़ेगी... सुना रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल


 

रस्ता तेरा देख रही है जाने कब से....सुनिए मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर को ....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का हास्य-व्यंग्य -- अपमान समारोह


महोदय

होली के उपलक्ष्य में एक अपमान – समारोह का आयोजन किया जा रहा है , जिसमें आप अपमान सहित आमंत्रित हैं । समारोह निर्धारित समय के कम से कम दो घंटे बाद शुरू होगा । लेकिन आपको अगर अपमानित होना है ,तो समय से कम से कम पंद्रह मिनट पहले आकर स्टूल पर बैठना पड़ेगा । जब आपका नंबर आएगा ,तब आप लाइन में लगिए और मंच पर जाकर अपना अपमान – पत्र ग्रहण कर लीजिए । अगर आने में आपने देर की या लाइन में ढंग से नहीं लगे ,तो फिर उसी समय आपका नाम अपमानित होने वाले व्यक्तियों की सूची से काट दिया जाएगा ।

फूलों की माला कम बजट के कारण छोटी रखी गई है । अगर आपके गले में आ जाए तो पहन लेना वरना ज्यादा नखरे दिखाने की जरूरत नहीं है । हाथ में लेकर काम चला लेना ।

शाल मँहगा है। चालीस रुपए में आजकल नहीं मिल रहा है। वैसे भी आपने अपमानित होने के लिए जो सुविधा- शुल्क दिया है ,वह इतना कम है कि उसमें शाल तो छोड़िए, रुमाल भी कहाँ से खरीद कर लाया जा सकता है !

आपका कोई प्रशस्ति पत्र पढ़कर नहीं सुनाया जाएगा ,क्योंकि आपके जीवन में ऐसा कुछ है ही नहीं, जिसे समाज के सामने प्रेरणा के तौर पर रखा जा सके या आपकी तारीफ की जा सके।आपको भी यह बात पता ही है तथा आप जानते हैं कि आपको अपमानित केवल जुगाड़बाजी के आधार पर किया जा रहा है ।अपमान- पत्र के साथ आपको चार सौ बीस रुपए का चेक भेंट किया जाएगा । यह चेक उसी दशा में दिया जाएगा ,जब आप आयोजकों को पहले से रुपए नगद पेमेंट कर देंगे ।

नोट : अगर मोटी धनराशि का सुविधा शुल्क देने के लिए कोई तैयार हो और पहले से पेमेंट करे तो हाथों-हाथ उसका भी अपमान- समारोह में अपमान कर दिया जाएगा।

निवेदक : अपमान समारोह समिति 

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश), भारत

*मोबाइल 999 7615 451*


सोमवार, 14 मार्च 2022

मुरादाबाद की संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति द्वारा 14 मार्च 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद द्वारा मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन जंभेश्वर धर्मशाला मुरादाबाद में सोमवार 14 मार्च 2022 को संरक्षक योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई के संयोजन में संपन्न हुआ।

 गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा --

किसी ने पाती लिख दी मौसम के नाम

 मतवारे टेसू ने घोला कैसा मतवारा रंग 

 लग रहा सारा उपवन सुलग उठा अंग अंग 

 मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी ने कहा ---

 दानवता की भोर हो गई मानवता की शाम हो गई।

मन को अधिक रुलाने वाली, मानव की पहचान हो गई।

विशिष्ट अतिथि डॉ महेश दिवाकर ने कहा ----

राजनीति का विषय काल है 

नेताओं का इंद्रजाल है। 

आजादी अब सिसक रही है 

भारत मां का झुका भाल है।

विशिष्ट अतिथि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा ---

होली के पावन पर्व पर 

आओ सब मिल गीत गाये

भेदभाव और छुआछूत भूल 

एक सूत्र में सब बंध जाए।

संचालन करते हुए अशोक विद्रोही ने कहा----

होली तो है देश के, त्योहारों की जान

रंग डालो एक रंग में, पूरा हिंदुस्तान।

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा ---

पतझड़ का पीलापन सोखें,

हरियाली की शाख बढ़ाएँ।

 दिन के उजलेपन में शामिल,

 स्याह रात के दाग़ मिटाएँ। 

 रखे रहें न केवल कर में,

 मन के तन पर रच बस जाएँ।

  रंग जो जल से कभी धुले न,

  आओ ऐसे रंग लगाएँ।

रामसिंह निशंक ने कहा --

आई है होली आई है होली

युवकों को मस्ती छाई है। 

बच्चों को होली भाई है।

बूढ़े मस्ती में नाच उठे, 

भंग की पीकर ठंडाई है।

राजीव प्रखर ने कहा -----

आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।

आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।

रघुराज सिंह निश्चल ने कहा -

बसंती वातावरण, है हर ओर हुलास। 

होली का त्यौहार है, रहना नहीं उदास।।

योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा ---

सादगी से सोचिए,हल बहुत आसान है।

जीवन हजारों जन्म के पुण्य का वरदान है।।

इन्दु  रानी ने कहा ---

होली में लिख डारे मन ने गीत नए हैं साथिया, 

आस मिलन की जगी है मन में रीत नए हैं साथिया।

गोष्ठी में रमेश चंद गुप्त भी उपस्थित रहे।
















:::::::प्रस्तुति :;;::;;

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 13 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' ने होली पर रविवार 13 मार्च 2022 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी - 'रंगों से संवाद...'

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से दयानन्द कन्या महाविद्यालय के सभागार में होली को समर्पित एक काव्य-गोष्ठी 'रंगों से संवाद...' का आयोजन रविवार 13 मार्च 2022 को किया गया। मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकान्त गुप्त रहे।

वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने फागुन गीत सुनाया ---

कैसी शोख हुई, पछुवाई फागुन में। 

दिन-दुपहर लेती, अंगड़ाई फागुन में। 

नई-नई कोंपल, मंजरियों फूलों में। 

ढूंढें सब अपनी, परछाईं फागुन में।

विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया- 

आतंकवाद का फन,सेवक कुचल रहा है। 

दुष्टों के मान ,मर्दन ,का चक्र चल रहा है। 

होली रंगों का त्यौहार। 

प्रेम रंग में रंगे सृष्टि सब बिहसे जगदाधार

 है होली रंगों का त्योहार।।  

 विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार डा. कृष्ण कुमार नाज़ ने दोहे सुनाए -

 सुबह रंगीली हो गई, मस्त हो गई शाम।

 होली के वातावरण, मेरा तुझे प्रणाम।। 

 होली के परिवेश की, भाई वाह क्या बात। 

 गुजिया देने लग गई, बिरयानी को मात।। 

  कार्यक्रम का संचालन करते हुए युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने कहा ---

  गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर। 

  चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।। 

  बदल गयी संवेदना, बदल गए सब ढंग। 

  पहले जैसे अब कहाॅ॑, होली के हुड़दंग।। 

 वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' ने सुनाया- 

 होली का हर रंग मुबारक,

 गुझिया पापड़ भंग  मुबारक। 

 संतोष रानी गुप्ता ने सुनाया- 

 सांसें भी चंदन घुली,भीतर दहकी आग।

  फागुन फिर से आ गया,हमें सुनाने फाग। 

कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने सुनाया -

फागुन का है मस्त महीना नटखट सा व्यवहार लिए।

 रूठों की हम चलो मनाएं,रंगों का उपहार लिए।

 मुस्काई गेहूं की बाली,छटा निराली सरसों की

 महक उठी सांसों की बगिया,यौवन के कचनार लिए।। 

 प्रख्यात हास्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी ने कविता सुनाई-

  वक्त के आगोश में है आदमी केवल खिलौना।

  कितनी ऊंची छोड़ दे लेकिन रहा आदत से बौना। 

  कल गली के कुत्तों में इस बात पर चर्चा छिड़ी। 

  आचरण से हो गया है आदमी कितना घिनौना।। 

  वरिष्ठ कवि डॉ. मनोज रस्तोगी ने अपनी रचना प्रस्तुत की- 

प्रेमभाव से सब खेलें होली। 

रंग अबीर गुलाल बरसायें।

आपस के सब झगड़े भूल। 

आज गले से सब लग जाएं।

  नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे प्रस्तुत किए-

   सुबह सुगंधित हो गई, खुशबू डूबी शाम।

    अमराई ने लिख दिया, खत फागुन के नाम।। 

    रंग-बिरंगे रंग से, कर सोलह श्रंगार। 

    खुशी लुटाने आ गया, रंगों का त्योहार।। 

     कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता ने होली गीत प्रस्तुत किया-

  खिले रंगों से मन होता बड़ा आह्लाद होली में। 

  पुरानी यादें हो जाती हैं फिर आबाद होली में।।

  कवयित्री डा. संगीता महेश ने सुनाया-

  ससुराल में थी मेरी पहली होली। 

  सब खुश थे की पाई है बहु भोली भोली। 

  घर में अनेक पकवान बन रहे थे। 

   शायर ज़िया ज़मीर ने होली के रंग में रंगी ग़ज़ल पेश की-

    क्या मोहब्बत का नशा रूह पे छाया हुआ है। 

    अब के होली पे हमें उसने बुलाया हुआ है। 

    वह जो खामोश सी बैठी है नई साड़ी में। 

    उसने पल्लू में बहुत रंग छुपाया हुआ है। 

  कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पढ़ा-

  पतझड़ का पीलापन सोखें,

  हरियाली की शाख बढ़ाएँ। 

  दिन के उजलेपन में शामिल,

  स्याह रात के दाग़ मिटाएँ। 

  रखे रहें न केवल कर में,

  मन के तन पर रच बस जाएँ। 

  रंग जो जल से कभी धुले न,

  आओ ऐसे रंग लगाएँ। 

   कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने घनाक्षरी प्रस्तुत की- 

   जम के रंग गुलाल उड़ेंगे ,आज ब्रज की होली में।

    गोरी तेरे गले लगेंगे ,आज ब्रज की होली में। 

    सोच समझ के आइये रे छोरे,बरसाने की गलियों को,

    दीख गया तो लट्ठ पड़ेंगे, आज ब्रज की होली में।

     मनोज मनु ने गीतिका प्रस्तुत की- 

     होली पर हुरियारों देखो, कसर न दम भर रखना

      रंगों का त्योहार है सबके तन संग मन भी रंगना,

      ..ठिठुरन भुला बसंत घोलता मन मादकता हल्की, 

      करती है किस तरह प्रकृति, रचना हर एकपल की, 

      फिर मन भावन फागुन खूब खिलाता टेसू अंगना। 

  कवि मयंक शर्मा ने सुनाया- 

  रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली, 

  मुँह से कुछ मीठा सा बोलें भूलके कड़वी बोली। 

  कवि दुष्यंत 'बाबा' ने सुनाया-

   है बहुत मजे की बात, कि आज पुरानी मिल गई। 

   बिना मिले की आस, हमें वो नजरों से ही रंग गई।। 

कवि ईशांत शर्मा ने सुनाया- 

गीत बनूँ तुम्हारे होंठों का, गुनगुना लो तुम मुझे 

अश्क बनूँ तुम्हारी आँखों का,बहा लो तुम मुझे।  

संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।


























::::प्रस्तुति:::::

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक- हस्ताक्षर

मुरादाबाद.

मोबाइल-9412805981


मंगलवार, 8 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की कविता -- जय हो मेरी


 

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना नकवी की लघु कहानी ---मां । यह उन्होंने वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' की ओर से बुधवार 6 मार्च 2019 को आयोजित लघुकथा/कहानी गोष्ठी में प्रस्तुत की थी ।


 "साहब मुझे दो सौ रूपये दे दीजिये"...

उसने बड़े दबे दबे स्वर मे कहा।

              मैने लैपटाप में काम करते हुये उसको दृष्टि उठा कर देखा। 

              हमारे घर मे काम करते हुये आठ महीने हो चुके थे।.आठ माह पहले जब वह मेरे घर काम माँगने आई थी।दीन हीन सी लगभग  पचास पचपन  की आयु । देखने मे शरीफ़ सी लगने वाली औरत। 

मैं और मेरी पत्नी दोनो नौकरी करते हैं । आठ वर्ष का एक बेटा भी है। 

         "क्यों काम करना चाहती हो ?  तुम्हारे घर कोई नहीं है क्या ? "

           मैने इन्क्वायरी सैट अप की।  मेरे पूछते ही वह उबल पड़ी ....." है एक नालायक बेटा । ईश्वर मुझे बे औलाद ही रखता तो अच्छा था। उसी के कारण तो मेरा ये हाल हुआ है । नासपीटा मर जाये तो अच्छा। "

वह फ़फ़क के रो पड़ी। फ़िर कुछ संभलते हुये बोली.....

......"मेरा एक कमरे और एक बरामदे का  घर है इस बेटे कमबख़्त की शादी की ,तो कमरा छोड़ कर बरामदे मे आ गयी। बेटा बहू मुझे रोज़ प्रताड़ित करते हैं और  वृद्धाश्रम जाने की बात करते हैं। आज तो हद हो गयी जब मेरी बेटे की पत्नी ने मुझे घर से निकल जाने को कहा और मेरी जवान मरा बेटा खड़ा देखता रहा और सुनता रहा। "

            "मैने घर छोड़ दिया और अब मै कभी उस घर नहीं जाऊँगी।" ये कह कर वह अपने बेटे को दामन फैला कर कोसने लगी। 

            .....हमें भी एक काम वाली की तलाश थी । मेरी पत्नी को भी वह ठीक सी लगी सो हमने उसे काम पर रख लिया।घर का छोटा कमरा उसे दे दिया। वह वास्तव मे अच्छी औरत निकली और उसने घर के काम काज के साथ मेरे बेटे मुदित को भी संभाल लिया । मैं और मेरी पत्नी घर की ओर से लगभग चिन्ता मुक्त हो गये । वह बहुत कम बोलती थी परन्तु वह जब भी बोलती अपने बेटे को कोसने से बाज़ न आती।

........एक महीना काम करते हुये बीता तो मैने उसे पगार देनी चाही तो उसने इन्कार कर दिया। 

...."क्या करूँगी पैसे का? आप  मेरा सारा ख़्याल रखते  तो हैं।"

       मैने उसके पैसै अलग जमा कर दिये।सोच लिया जब चाहेगी ..ले लेगी।

.......और  आज वह मुझ से दो सौ रूपये माँग रही थी। मैने सर उठा के पूछा.....राधा...!!! क्या करोगी पैसों का? "

            "साहब एक दरगाह पर मनौती का चढ़ावा चढ़ाना है हर साल  चढ़ाती हूँ "

......अरे...!!!  एेसी क्या मन्नत मान ली राधा जी? "...मैने  पर्स से पैसे निकालते हुये मज़ाक़ में पूछा। 

....अरे साहब जी क्या बताऊँ उसी अभागे बेटे के लिये मन्नत माँगी थी। हर वर्ष उसकी सलामती के लिये मन्नत का चढ़ावा चढ़ाती हूँ। कहते कहते उसकी आवाज़ भर्रा  गयी

              "भगवान न करे,  कहीं सचमुच बुरा हो गया तो........!!!!!"

........और मैं नि:शब्द .. माँ की ममता के आगे नतमस्तक हो गया

     ✍️ डॉ मीना नक़वी

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष कल्याण कुमार जैन शशि की कृति कलम शतक की रवि प्रकाश द्वारा की गई समीक्षा-----देश के इतिहास की गरिमा का गान करती है 'कलम शतक'

कई साल पहले कल्याण कुमार जैन शशि जी ने 'कलम' नामक पुस्तक लिखी थी । उसमें 69 पद थे। 'कलम शतक'  में 31 पद बढ़ गए हैं यानि नाम के अनुरूप 100 पद हो गए हैं। यह सभी पद गेय हैं और इनका सस्वर पाठ जिन लोगों को शशि जी के मुख से कवि सम्मेलनों-गोष्ठियों आदि में सुनने का शुभ अवसर मिला होगा ,वह भली भांति जानते हैं कि अपने प्रवाह से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने की इनमें अपार शक्ति है । 80 वर्ष की आयु में भी जब शशि जी साहित्य-संसार को कुछ नया देते हैं ,तो पुस्तक के 99 वें पद में प्राण आ जाते हैं :-

थाम-थाम कर कलम चला हूँ,किंतु अभी न थकान है 

 हाथ नहीं काँपेंगे मेरे ,जब तक कलम जवान है

किंतु वहीं मन में उदासी छा जाती है जब अत्यंत विरोधाभास उत्पन्न करता हुआ यह अंतिम एक सौ वाँ पद पढ़ता हूँ:-

यह कोरे कागद हैं ,मैं तो भूलों का चिर दास हूँ 

अपने उत्तरदायित्वों से ,अब लेता अवकाश हूँ

शायद कोई आँके क्षमता ,मेरी मूक उड़ान की 

अंतिम पद में निराशा है ,पलायन है , नितांत व्यक्तिगत-सा बन गया है यह । पर व्यक्तिगत क्यों ? जो कलम कभी नहीं रुकती ,जिसके शब्दकोश में अवकाश नामक शब्द नहीं है, वही तो शशि जी की कलम का नाम है । कलम पर सबसे बड़ा अत्याचार है उससे रुक जाने को कहना ।

     'कलम शतक' मूलतः लेखनी की शक्ति को आधार मानकर लिखा गया है। पर इसकी दृष्टि विराट है। इसकी कलम किसान का हल भी है :-

हल में भूमि चीरती कीली ,सच्ची कलम किसान की

 अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की 

वस्तुतः कवि सत्य और न्याय की पक्षधरता का विराट मूल्य कलम के माध्यम से पाठकों को देना चाहता है । उसकी कामना है कि कलम असत्य ,अन्याय और अनाचार के विरुद्ध संघर्ष करे । भारत के गौरव और संस्कृति के श्रेष्ठ मूल्यों की वंदना करे , राष्ट्रभक्ति का जयघोष करे और विश्व शांति के पक्ष में अपना मत दे। कलम महज तुकबंदी नहीं है । इसमें कवि का वह आदर्श गूँजता है ,जो किसी भी कवि का होना चाहिए । कलम में एक समग्र जीवन दर्शन है। कलम में चिंतन का बाहुल्य है । कलम में कलम का धर्म है । कलम में कलमकार का आदर्श है । कलम मानवता का महामंत्र है। कलम राष्ट्र की ओजस्वी वाणी है । कलम इस देश के इतिहास की गरिमा का गान करती है । कलम विचार की श्रेष्ठतम ऊँचाई को हमारे सामने रखती है । 

            शशि जी की कलम सूर और तुलसी की कलम को नमन करती है ( पद 10 )

रघुवंश ,महाभारत और चंद्रगुप्त युग के महान भारतीय वैभव का स्मरण करती है ।

वेदव्यास की प्रतिभा का स्मरण करती है( पद 18 )

कालिदास की ज्ञान-रश्मि का बोध कराती है (पद 19)

तुलसी को बारंबार प्रणाम करती है (पद 20)

मीरा के कृष्ण-प्रेम की गाथा गाती है( पद 21)

कबीर की निर्भयता की प्रशंसा करती है (पद 32)

सावित्री के पतिव्रत-धर्म के कौशल की कथा कहती है (पद 24)

नालंदा आदि के वैभव को याद करती है (पद 25)

नेत्रहीन कलमकार मिल्टन की लिखी कृति _पैराडाइज लास्ट_ के कमाल को सराहती है( पद 26)

जार-सरकार की क्रूरता की निंदा करती है और उसके विरुद्ध लड़ने वाले कलाकारों की वंदना करती है (पद 27)

कम्युनिस्ट माओ की व्यक्ति पूजा को अस्वीकार करती है (पद 28)

कविवर भूषण द्वारा औरंगजेब को निर्भीकता पूर्वक दी गई चुनौती की ओजपूर्ण चर्चा करती है (पद 29)

गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों के महान बलिदान के प्रति अपना शीश झुकाती है (पद 30)

स्वतंत्रता संग्राम के नायक बहादुर शाह जफर के क्रांति कर्म को नमन करती है( पद 31) 

लक्ष्मीबाई के स्वातंत्र्य संघर्ष की महानता की यशोगाथा कहती है( पद 32 )

ईसा की करुणा मुक्त कंठ से कहती है (पद 34) 

प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान को सराहती है (पद 37)

स्मरणीय कृतियों के अंतर्गत गीतांजलि, साकेत

उर्वशी ,प्रियप्रवास ,कामायनी ,हल्दीघाटी और मधुशाला की श्रेष्ठता 

की चर्चा करती है( पद 38 )

रसखान के कृष्ण-भक्ति काव्य की मधुरता पर मोहित होती है (पद 41) 

ट्राटस्की और खलील जिब्रान की ओजस्वी पुस्तकों की चर्चा करती है (पद 45)

 कविवर चंद और चौहान के स्वर्ण युग का स्मरण कराती है ,जब लेखनी ने युग बदला था ।(पद 61)

ऊदल और मलखान के आल्हा  के आह्लाद में डूब जाती है (पद 62)

राजस्थान के जौहर ,जो वस्तुतः सती प्रथा का समर्थन नहीं करती ,की अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में स्मृति दिलाती है (पद 63)

वीर महाराणा प्रताप की देशभक्ति की गाथा गाती है (पद 64)

पंडित नेहरु की जनप्रियता का बोध कराती है (पद 66)

कवि फिरदौस की सत्य-प्रियता का यश गाती है( पद 67 )

गालिब को एक कवि के रूप में श्रद्धा से स्मरण करती है (पद 68)

खजुराहो की कामुक कृति की अशिष्टता को मानव-गरिमा और मर्यादा के विरुद्ध मानती है (पद 72)

हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने को ऐतिहासिक रूप से असभ्य एवं अमानुषिक घटना के रूप में याद करती है (पद 73)

शीरी-फरहाद के प्यार को भी याद करती है (पद 81)

 गाँधी के नमक-सत्याग्रह का स्मरण (पद 88) 

लुकमान हकीम की विद्वत्ता (पद 95)

वाल्मीकि ,अरविंद ,दयानंद ,विवेकानंद की दार्शनिक ज्ञान वृष्टि का पवित्रता पूर्वक स्मरण करती है(पद 96)

और कह रही है कि अहिंसावादी बुद्ध-महावीर के अनुयाई होने के बावजूद पाकिस्तान की चुनौती हम स्वीकारेंगे (पद 97)

            पाठक महसूस करेंगे कि उपरोक्त पदों में कलम अथवा कलम की सीधी-सीधी महत्ता कम ही कही गई है । वस्तुतः कलम को माध्यम मानकर कवि ने चिंतन पक्ष को प्रस्तुत किया है और इतिहास ,धर्म ,संस्कृति, प्रखर राष्ट्रीयता और विश्व प्रेम आदि विषयों पर हमें हमारी विरासत के मूल्यवान तत्वों से परिचित कराया है । कलम भारतीय इतिहास के यशस्वी महापुरुषों के चित्र पाठक के सामने रख पाई है, यह एक बड़ी उपलब्धि है।

             'कलम' में कलम का धर्म कवि की कलम से कागज पर कितने सुंदर रूप से उतारा गया है:-

कलम व्यष्टि है ,कलम सृष्टि है ,निर्गुण है, निष्काम है 

जिसमें सत्यम शिवम सुंदरम ,कलम उसी का नाम है  ( पद 5 )

कलम की निर्भयता और प्रखरता को प्रकट करने वाली कवि की यह पंक्तियाँ कितनी प्रेरणादाई हैं :-

 यों तो जिसके पास कलम है कुछ लिखता ही दिखता है

 लिखना उसका है जो सिर से कफन बाँध कर लिखता है

 हुई कहाँ परवाह कलम को तख्त-ताज-सुल्तान की 

 अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की (पद 16)

        वास्तव में देखा जाए तो हर पद में दोहराई जाने वाली अंतिम पंक्ति अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की जिन पदों में बहुत प्राणवान हो उठी है ,पद 16 उसमें से एक है। यद्यपि यह सच है कि हर जगह अंतिम पंक्ति जो कि आक्रोश पूर्ण और संघर्ष की मुद्रा में है , अनेक कोमल अभिव्यक्तियों के साथ तालमेल भी बिठा पाती है । बहरहाल आगे चलते हैं और पाते हैं कि कितनी सादगी से कवि सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता के लेखकीय आदर्श को कह देता है । इसका एक अच्छा नमूना देखिए :-

 समदर्शी है कलम ,कलम का अंदर-बाहर एक है 

 कोई मजहब नहीं कलम का, मंदिर-मस्जिद एक है

 इसके लिए बराबर ही है बात राम-रहमान की 

 अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की

           कुल मिलाकर कलम शशि जी की कलम से जन्मी वह रचना है जिसे पढ़कर मन को काव्य का आनंद ही नहीं मिलता अपितु विचार जगत को भी पर्याप्त खुराक मिलती है । अतीत से कटे ,संस्कृति को विस्मृत किए हुए और सांप्रदायिकता के विष में डूबे देश को शशि जी की कलम पढ़ना जरूरी लगता है । कलम में कलमकार का धर्म और रचनाकार का जो आदर्श प्रस्तुत किया गया है ,वह विशेष रूप से अभिनंदनीय है । कलम का चलना, जोरदार चलना, जहाँ चाहिए वैसे चलना ,परिणामों के प्रति बेपरवाह हुए चलना , निर्भय-निर्भीक और निष्पक्ष होकर कलम का चलना , यही कलम शतक का संदेश है।



कृति : कलम शतक (काव्य)

कवि : कल्याण कुमार जैन शशि 

 संस्करण : प्रथम 1987

 प्रकाशक : जय तोष प्रकाशन, गुइन रोड, अमीनाबाद, लखनऊ

 मूल्य : ₹5 , पृष्ठ : 46

समीक्षक : रवि प्रकाश, 

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