आज धरती से गगन तक है रँगा ,
वस्त्र क्या तन और मन तक है रँगा !
रात रंगों की हुई बरसात है ,
और रंगों से रँगा हर गात है ,
रंग का उत्सव मनाने के लिए
रात ने अंतिम चरण तक है रँगा !!
पीत सरसों ने बजाई दुंद्वभी ,
खिल उठे हैं विविध रँग के फूल भी
विविध रंगों से सकल बसुधा सजी
देखिए वातावरण तक है रँगा !!
प्रेम जीवन में सभी के हम भरें ,
प्रेममय संपूर्ण मानवता करें,
प्रेममय जग को बनाने के लिए
इस धरा ने आचरण तक है रँगा !!
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार , मझोला ,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश ) 244103
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