मंगलवार, 8 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना नकवी की लघु कहानी ---मां । यह उन्होंने वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' की ओर से बुधवार 6 मार्च 2019 को आयोजित लघुकथा/कहानी गोष्ठी में प्रस्तुत की थी ।


 "साहब मुझे दो सौ रूपये दे दीजिये"...

उसने बड़े दबे दबे स्वर मे कहा।

              मैने लैपटाप में काम करते हुये उसको दृष्टि उठा कर देखा। 

              हमारे घर मे काम करते हुये आठ महीने हो चुके थे।.आठ माह पहले जब वह मेरे घर काम माँगने आई थी।दीन हीन सी लगभग  पचास पचपन  की आयु । देखने मे शरीफ़ सी लगने वाली औरत। 

मैं और मेरी पत्नी दोनो नौकरी करते हैं । आठ वर्ष का एक बेटा भी है। 

         "क्यों काम करना चाहती हो ?  तुम्हारे घर कोई नहीं है क्या ? "

           मैने इन्क्वायरी सैट अप की।  मेरे पूछते ही वह उबल पड़ी ....." है एक नालायक बेटा । ईश्वर मुझे बे औलाद ही रखता तो अच्छा था। उसी के कारण तो मेरा ये हाल हुआ है । नासपीटा मर जाये तो अच्छा। "

वह फ़फ़क के रो पड़ी। फ़िर कुछ संभलते हुये बोली.....

......"मेरा एक कमरे और एक बरामदे का  घर है इस बेटे कमबख़्त की शादी की ,तो कमरा छोड़ कर बरामदे मे आ गयी। बेटा बहू मुझे रोज़ प्रताड़ित करते हैं और  वृद्धाश्रम जाने की बात करते हैं। आज तो हद हो गयी जब मेरी बेटे की पत्नी ने मुझे घर से निकल जाने को कहा और मेरी जवान मरा बेटा खड़ा देखता रहा और सुनता रहा। "

            "मैने घर छोड़ दिया और अब मै कभी उस घर नहीं जाऊँगी।" ये कह कर वह अपने बेटे को दामन फैला कर कोसने लगी। 

            .....हमें भी एक काम वाली की तलाश थी । मेरी पत्नी को भी वह ठीक सी लगी सो हमने उसे काम पर रख लिया।घर का छोटा कमरा उसे दे दिया। वह वास्तव मे अच्छी औरत निकली और उसने घर के काम काज के साथ मेरे बेटे मुदित को भी संभाल लिया । मैं और मेरी पत्नी घर की ओर से लगभग चिन्ता मुक्त हो गये । वह बहुत कम बोलती थी परन्तु वह जब भी बोलती अपने बेटे को कोसने से बाज़ न आती।

........एक महीना काम करते हुये बीता तो मैने उसे पगार देनी चाही तो उसने इन्कार कर दिया। 

...."क्या करूँगी पैसे का? आप  मेरा सारा ख़्याल रखते  तो हैं।"

       मैने उसके पैसै अलग जमा कर दिये।सोच लिया जब चाहेगी ..ले लेगी।

.......और  आज वह मुझ से दो सौ रूपये माँग रही थी। मैने सर उठा के पूछा.....राधा...!!! क्या करोगी पैसों का? "

            "साहब एक दरगाह पर मनौती का चढ़ावा चढ़ाना है हर साल  चढ़ाती हूँ "

......अरे...!!!  एेसी क्या मन्नत मान ली राधा जी? "...मैने  पर्स से पैसे निकालते हुये मज़ाक़ में पूछा। 

....अरे साहब जी क्या बताऊँ उसी अभागे बेटे के लिये मन्नत माँगी थी। हर वर्ष उसकी सलामती के लिये मन्नत का चढ़ावा चढ़ाती हूँ। कहते कहते उसकी आवाज़ भर्रा  गयी

              "भगवान न करे,  कहीं सचमुच बुरा हो गया तो........!!!!!"

........और मैं नि:शब्द .. माँ की ममता के आगे नतमस्तक हो गया

     ✍️ डॉ मीना नक़वी

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक कहानी.. माँ तो माँ ही होती है। डॉ मीना नकवी जी की सशक्त लेखनी को प्रणाम ।
    रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
    मोबाइल 99976 15451

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