क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
https://acrobat.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:934002a9-8b02-3508-a8ad-fd47dc907207
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
https://acrobat.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:934002a9-8b02-3508-a8ad-fd47dc907207
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की पन्द्रहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रामावतार त्यागी के शुरुआती जीवन, उनके जीवन संघर्षों और साहित्यिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया और उनकी प्रतिनिधि रचनाएं पटल पर रखीं। बताया कि 8 जुलाई 1925 को जनपद सम्भल के कुरकावली नामक ग्राम के त्यागी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पहला काव्य संग्रह वर्ष 1953 में 'नया खून' नाम से प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात 'आठवां स्वर' , 'मैं दिल्ली हूं', 'सपने महक उठे', 'गुलाब और बबूल', ' गाता हुआ दर्द', ' लहू के चंद कतरे', 'गीत बोलते हैं' काव्य संग्रह और उपन्यास 'समाधान' प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में उनकी कृति 'चरित्रहीन के पत्र' पाठकों के समक्ष आई । उनका निधन 12 अप्रैल 1985 को हुआ। स्मृतिशेष त्यागी जी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने उनके दुर्लभ चित्र प्रस्तुत किए।
प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि रामावतार त्यागी पीड़ा के अमर गायक थे । वह उस उदधि के जैसे हैं जिसकी लहर-लहर में पीड़ा ही पीड़ा व्याप्त है।इन पीड़ाओं के ताप से समुद्र वाष्पीकृत होकर बादल बनके जब बरसता है तो पीड़ाओं की बाढ़ ले आता है। पीड़ाओं की इस बाढ़ से उन्होंने दो-दो हाथ भी किये हैं। उनका गीत संसार पीड़ाओं की मूसलधार बरसात से कमाई गई खेती है। सम्भल के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा कि रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा -उनकी रचनाओं को पढ़कर आभास हो जाता है कि वह सामाजिक परिदृश्य, जिंदगी की विषमताओं, व्यवस्था की विसंगतियों, सामाजिक ताने बाने और मानवीय स्वभाव पर बड़ी पैनी नजर रखते थे, और अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से इन्हें उजागर करते थे I उनकी रचनाओं में उनकी खुद्दारी और स्वाभिमान की स्पष्ट झलक मिलती है, स्वाभिमान के आगे व्यवस्था से समझौता करना उन्का स्वभाव नहीं है, और उनके स्वभाव की यही विशेषता उनकी रचनाधर्मिता में मिलती है I साथ ही एक खुद्दार आदमी की अहमियत जताते हुए वह व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं। उनकी रचनाओं में विरोध के साथ साथ दर्द और पीड़ा को भी बड़ी सहजता से व्यक्त किया गया है। वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा जो स्वयं गीत बन गए ,निर्झर की भांति अनवरत बहते रहे , साहित्यिक परम्परा में आज भी अपनी उपस्थित का भान करा रहे स्मृति शेष रामावतार त्यागी वास्तव में एक अवतार थे , राम की तरह कंटकों में असहज जीवन को सहज जिया और हमें दे गए अमूल्य निधि अपने गीतो की एक बृहत, बोध ,समर्पण भरी जीवन को जीने की विधा। उनके गीत वेदनाग्रस्त ह्र्दय को साहस से लबालब करने की सामर्थ्य प्रदान करते है ।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि रामावतार त्यागी ने जो गीत लिखे ,वह उनकी जुझारू फौलादी मानसिकता को प्रकट करने वाले हैं। प्रत्येक गीत में विपरीत परिस्थितियों से जूझने का आवाहन है और टूटते रहने के बाद भी न टूटने का संकल्प है । आत्मबल से भरपूर तथा अकेलेपन के बाद भी संसार को परिवर्तित कर सकने की दृढ़ इच्छाशक्ति उनकी रचनाओं में मुखरित हुई है । मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा- आज मेरी जो कुछ लिखने पढ़ने में रुचि है उसका बड़ा कारण रामावतार त्यागी के लिखे शब्दों का तिलिस्म था । एक बार उन्हें संभवतः 1976 में एक कवि सम्मेलन में सुनने का अवसर मिला . उन्होंने जैसे ही कोई कविता पढ़नी शुरू की श्रोताओं की ओर से ज़बरदस्त शोर हुआ “एक हसरत थी “। यह वो गाना था जो उन्होंने फ़िल्म ज़िंदगी और तूफ़ान के लिए लिखा था और उन दिनों रेडियो पर काफ़ी बज रहा था । उन्होंने गाना फ़िल्मी तरीक़े नहीं अपने अन्दाज़ में पढ़ा।
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा - "मनुष्य से मनुष्यत्व तक की यात्रा के यायावर श्री रामावतार त्यागी जी कवि का जिद्दी और बेबाक मन , रूढ़िवादिता को तोड़ देने का विद्रोह, मनमाना स्वभाव उनकी रचनाओं के विभिन्न परिवेश ही हैं ।विविध आयामों में विचरण करती उनकी कविताएँ कभी अपने अस्तित्व के झंडे गाड़ती हैं तो कभी सामाजिक सरोकारों में झूलती नज़र आती है। उनके तेवर दुष्यंत कुमार और श्री सहादत हसन मंटो के तेवर लगते हैं और अपने समय के सर्वाधिक मुखर ,बीमार,जीर्णशीर्ण रूढ़िगत परम्पराओं का विरोध करते हुए एक नयी पंक्ति खींच कर अपने आप को नई उर्जा से सींचते हुए ,नई ठसक के साथ अपने आप को सिद्ध करते हुए दृष्टिगोचर होतें हैं। कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा - श्री त्यागी जी ने अपने गीतों में जिस तरह से दर्द को जिया है और वह जिस तरह से दर्द को पालते हैं,पुचकारते हैं,साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं।क्योंकि जो व्यक्ति अपनी 'तप की सफलता के परिणाम में चुभन की कामना' करे,वह साधारण हो भी नहीं सकता। उनका अंतर ज्योतिमान था,इसीलिए बाहर का घना तम भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया।उनकी जवाबदेही स्वयं के प्रति रही,उनकी लड़ाई स्वयं से रही।इसी कारण बाहर का लोभ, दुःख,भय और रुकावटें उनका मार्ग अवरुद्ध ही नहीं कर पाये और स्वयं से उन्होंने हर समर सावधानी पूर्वक लड़ा,क्योंकि वह जानते थे स्वयं से हारे हुए को ईश्वर भी संबल नहीं दे सकता। वह आत्मजयी थे, अतः वह हर नकारात्मकता में भी सकारात्मकता खोजने में सफल होते और इस सकारात्मकता को कमजोर,संकटग्रस्त और दु:खी मानव समाज को अपने गीतों के माध्यम से अग्रसारित करते। उन्होंने स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी को अर्पित करते हुए कहा --
पंक्ति पंक्ति चरितार्थ हुई सी, शब्द शब्द में कौशल बोले।
अर्थ निहित ज्यों अक्षर अक्षर,उच्च भाव हृदय के खोले।
घटना घटना पैनी दृष्टि,रखकर कलम चलाने वाले,
अभिनंदन है कठिन आपका,हमने सारे शब्द टटोले।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी का महान रचनाकर्म आपाधापी से भरे इस युग में भी मनुष्य को निरंतर जीवन के सत्य का भान कराता रहता है। चाहे वह समाज में व्याप्त विद्रूपताओं की ओर संकेत करते हुए उनका हल हो अथवा मानवीय संवेदना को झिंझोड़ते हुए उसे उत्कर्ष की ओर ले जाने का अभियान, प्रत्येक स्तर पर उनका रचनाकर्म जहाॅं जीवन के सत्य को ही पाठकों के सम्मुख रखता है यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता के मानकों पर पूर्णतया खरी सिद्ध हुई हैं। कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है"जैसै कालजयी गीत की रचना करने वाले निश्चय ही अपने गीतों के माध्यम से साहस की नयी परिभाषा गढ़कर अमर हो गये..ज़िंदगी से दो टूक प्रश्न पूछकर आगे बढ़ो का सिद्धांत बनाना और नित आगे बढ़ते चले जाना, यह विरले ही देखने को मिलता है.. जीवन के दार्शनिक रूप को सहज भावों में ढालना कवि की बड़ी चुनौती और उपलब्धि दोनो होती है और कीर्ति शेष रामावतार त्यागी जी ने इस तथ्य को बड़ी ही कुशलता से अपने गीत ग़ज़लों में ढाला है.. व्यंग्यात्मक शैली में प्रश्न और जवाब दोनो उनके गीतों में मिलते हैं.. और पाठकों को लाजवाब कर देते हैं। उनकी रचनाओं में विद्रोही तेवर,राष्ट्रवाद की भावना, जनजागरण, दार्शनिकता व कहीं कहीं कल्पनाओं का समावेश भी मिलता है।वह पूर्वाग्रहों की बेड़ियों को भी तोड़ते नज़र आते हैं।दर्द से रिश्ता निभाती उनकी रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी हैं।
सम्भल के साहित्यकार राजीव कुमार भृगु ने कहा -उनकी रचनाएं आज भी लोगों के मन पर उतना ही प्रभाव छोड़ती है जितना उनके समय में छोड़ती थी। उन्हें पीड़ा का गायक माना जाता है लेकिन देशभक्ति की भावना उनके मन में हमेशा रही। उनके कुछ गीत मुझे बहुत प्रभावित करते हैं। उन्होंने गजलें और गद्य लेखन भी किया लेकिन उनका मनपसंद लेखन केवल गीत ही रहा । रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा किउनके गीतों में शिल्प और भाव की जो श्रेष्ठता विद्यमान है वैसा ही मेयार बह्र ,तग़ज़्ज़ुल् और कहन के स्तर पर मुझे उनकी ग़ज़लों में भी दिखाई दिया।उनकी एक ग़ज़ल, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया, के कुछ अशआर का ख़ास तौर से उल्लेख करना चाहूँगा--
आँखों का काम कान से लेने लगे हैं लोग,
फिर पूरे इत्मिनान से लेने लगे हैं लोग।
रामपुर के साहित्यकार शिव कुमार चंदन ने कहा - जीवन के अनेक संघर्षों को सहते हुए श्री त्यागी जी ने अपनी रचनाओं में प्रकृति चित्रण ,मानवीय सम्वेदनाएँ ,जन सरोकारों एवं राष्ट्र भक्ति के भाव पिरोए हैं । अनेक काव्य मंचों ,अनेक कवि सम्मेलनों पर मनोहारी काव्य पाठ की प्रस्तुति के प्रभाव से काव्य साहित्य के सर्वोच्च शिखर पर आसीन हो कर साहित्य जगत में अविस्मरणीय हो गये । गजरौला की कवयित्री रेखा रानी ने कहा - रामावतार त्यागी गीत की दुनिया का चमकते हुए सितारे थे। एक एक कर क्रमशः इतने विरले व्यक्तित्व की गूढ़ रहस्य जानकारियां इस महान पटल से प्राप्त होती हैं इसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूं आदरणीय डॉ मनोज कुमार रस्तोगी जी का। उनकी यह पंक्तियां बार बार गुनगुनाने का दिल चाहता है -
मुझको भी प्यार मिला दो दिन
कोमल भुज हार मिला दो दिन
उन आंखों में रहने का भी
मुझको अधिकार मिला दो दिन।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा-- त्यागी जी का हिंदी साहित्य जगत युगों - युगों तक ऋणी रहेगा ।उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा देश के गांवों से लेकर महानगरों तक का सजीव चित्रण इस प्रकार चित्रित किया है ,कि उसको पढ़ते हुए मन अनायास ही यथार्थ के धरातल पर उतर जाता है ।उनके गीत और कविताएं मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ती हैं । उनका व्यक्तित्व एक खुली किताब की तरह था ,जो सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों दूर था ,जो उनके चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता थी । सम्भल के युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने कहा - उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कई प्रकार के रंग-रूपों से साहित्य का श्रंगार किया है। उनकी एक-एक पंक्ति के गंभीर अर्थ को समझने हेतु,मनन-चिन्तन करने की आवश्यकता होती है। त्यागी जी के संपूर्ण जीवन में, सुख से कम और परेशानियों से ज्यादा नाता रहा है, उनका यह दर्द उनकी रचनाओं में उभरता भी है ।
साहित्यकार नकुल त्यागी ने कहा --देश के महान गीतकार स्मृति शेष श्री रामावतार त्यागी मुख्य रूप से पीड़ा और देश प्रेम की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। वे मंच पर कवि सम्मेलनों में बहुत बड़े-बड़े कवि श्री धर्मवीर भारती, श्री शेरजंग गर्ग, डॉ हरिवंश राय बच्चन, श्री श्याम नारायण पांडे, श्री कमलेश्वर आदि के समकालीन हैं। उन्होंने उनसे भेंट का संस्मरण भी प्रस्तुत किया । जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा कि त्यागी जी के गीत पूरे भारत में ही नहीं,विश्व भर में भारतीयों द्वारा गुनगुनाएं जातें है। उनके गीत की ये दो पंक्तियां ही बहुत कुछ कह जाती हैं----
" एक घटना से नही बनती कहानी
हर कहानी में कई इतिहास होते हैं"
कार्यक्रम में स्मृतिशेष त्यागी के अनुज रामनिवास त्यागी के सुपुत्र राहुल त्यागी, शोधादर्श पत्रिका के सम्पादक अमन कुमार त्यागी, शशि त्यागी ने भी हिस्सा लिया ।
अंत में आभार व्यक्त करते हुए स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने कहा -जैसे कि एक सफेद चादर पर कोई एक रंग दूर से ही नजर आता है और अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता है, उसी प्रकार समाज में कवि होते है| ऐसा मेरा मानना है| मैं आप सब का प्यार अपनी पिताश्री के लिए पाकर धन्य महसूस करता हूँ। डॉक्टर मनोज रस्तोगी को दिल से सादर प्रणाम करता हूं। आपने मुझे अपना समय दिया, और मुझे लगता है, कि आप सभी का सबसे मूल्यवान उपहार है। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।:::::: प्रस्तुति ::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
स्थान : भारत का कोई भी साधारण-सा शहर
पात्र
वृद्धा : आयु लगभग 70 वर्ष
पड़ोसन :आयु लगभग 70 वर्ष
दो युवक :आयु लगभग 25 वर्ष
राम अवतार :आयु लगभग 25 वर्ष
कुछ अन्य पात्र : आयु कुछ भी हो सकती है
【 दृश्य एक 】
दो नवयुवक एक मोहल्ले में जाकर किसी घर की कुंडी खटखटाते हैं । अंदर से महिला की आवाज आती है : कौन है ?
एक युवक : अम्मा जी ! हम आई बैंक से आए हैं । दरवाजा खोलिए ।
(एक वृद्धा घर का दरवाजा खोलती है।) वृद्धा : भैया ! कहाँ से आए हो ? क्या काम है?
दूसरा युवक : हम आई बैंक अर्थात नेत्र संग्रहालय से आए हैं । आपके शहर के आँखों के अस्पताल में अब आई बैंक खुल गया है । हम आपको नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने आए हैं ।
वृद्धा : (चौंककर पीछे हटते हुए) हाय राम ! क्या तुम मेरी आँखें निकालने आए हो ? क्या तुम लोग मुझे अंधा करोगे ? अरे कोई है ? बचाओ ! बचाओ !
एक युवक : (वृद्धा को निकट जाकर समझाने का प्रयास करता हुआ ) मैया ! आप गलत समझ रही हो । हम जिंदा लोगों की आँखें नहीं निकालते हैं । हम तो यह कहना चाहते हैं कि आप मरणोपरांत अपनी आँखें दान करने का संकल्प-पत्र भरकर हमें दे दें । (अपने बैग में से एक कागज निकालता है ) देखिए अम्मा ! यह रहा संकल्प-पत्र ! आप नेत्रदान की घोषणा कर दीजिए ।
वृद्धा : मुझ बुढ़िया को मूर्ख बनाने आए हो। मेरी आँखें लेकर कोई क्या करेगा ? अब मुझे ही कौन-सा अच्छा दिखता है ?
(तभी वृद्धा की पड़ोसन जो कि स्वयं भी वृद्धा है ,आ जाती है )
वृद्धा अरी पड़ोसन ! अच्छा हुआ ,तू आ गई। देख तो ,यह लोग मेरी आँखें निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।
पड़ोसन : हाय रे हाय बहना ! ऐसा अत्याचार !
वृद्धा : हाँ ! यह कहते हैं कि नेत्रदान कर दो।
पड़ोसन : (हाथ नचा कर ) बिल्कुल नहीं ! तुम अपनी आँखें कभी दान मत करना। मुझे सब मालूम है। यह लिखा-पढ़ी करके तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी आँखें निकाल कर ले जाएँगे और तुम्हारा चेहरा राक्षसों की तरह दिखने लगेगा। तुम बिल्कुल भूतनी नजर आओगी ।
एक युवक : नहीं अम्माजी ! यह गलत धारणा है । मरने के बाद आँखें निकालने के बाद भी चेहरे में कोई खराबी नहीं आती है। यह पता भी नहीं चलता कि किसी की आँखें निकाली गई थीं।
वृद्धा : क्या शरीर की चीर-फाड़ से कष्ट नहीं होगा ? आत्मा को अशांति नहीं होगी ?
दूसरा युवक : बिल्कुल नहीं । जो व्यक्ति मर गया है ,उसे कष्ट कैसा ? कष्ट तो जीवित रहने पर ही होता है । जहाँ तक मृतक की आत्मा की शांति का सवाल है ,तो मृतक को तो परम प्रसन्न होना चाहिए कि उसकी आँखें किसी के काम आ रही हैं ।
पड़ोसन : बेटा रे ! मुझे तो डायबिटीज रहती है । मेरी आँखें किसी के क्या काम आएँगी ?
पहला युवक : डायबिटीज का रोग होने के कारण आँखें बेकार नहीं हो जातीं। चश्मा लगाने वाला व्यक्ति भी अपनी आँखें दान कर सकता है ।
पड़ोसन : क्या बूढ़े-बुढ़िया भी ?
एक युवक : हाँ ! किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी आँखें दान कर सकता है ।
पड़ोसन : क्या आँखें आदमी के मरने के बाद सड़ती नहीं हैं ?
दूसरा युवक : अम्माजी ! मृत्यु के छह घंटे के भीतर अगर शरीर से आँखें निकाल ली जाएँ तो उन्हें नेत्रहीन व्यक्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।
वृद्धा : (गुस्से में चीख कर ) अरे मरे नासपीटो ! तुम्हें इतनी देर से मरने की बातें ही सूझ रही हैं । क्या मैं मर गई हूँ ? भाग जाओ मेरे घर से । निकलो !
(वृद्धा जमीन पर पड़ी झाड़ू उठा कर दोनों युवकों को मारने के लिए दौड़ती है । दोनों युवक तेजी से घर से बाहर निकल जाते हैं।)
【दृश्य दो】
(रामअवतार जिसकी आयु लगभग 25 वर्ष है ,उसको कुछ लोग हाथों से सहारा देकर वृद्धा के घर में लाते हैं । रामअवतार की आँखों पर पट्टी बँधी है।)
वृद्धा : (चौंक कर) मेरे बेटे ! मेरे राम अवतार ! तुझे क्या हुआ ? तेरी आँखों पर यह चोट कैसी है ?
एक आगंतुक : अम्मा ! यह कार्यालय की सीढ़ियों से गिर गए थे । आँखों में चोट आई है । अब यह ...
वृद्धा : अब यह ...तुम क्या कहना चाहते हो ?
एक आगंतुक : अब यह देख नहीं सकते। इनकी आँखों की रोशनी चली गई है।
वृद्धा : (रोकर) हाय ! मेरा बेटा अंधा हो गया । हाय राम ! इसकी आँखें चली गई ं।
राम अवतार : (टटोलते हुए वृद्धा के निकट पहुँचता है तथा उसके सीने से लग जाता है) माँ ! बड़ी भयंकर चोट थी । किस्मत से ही मैं बच पाया ।
पड़ोसन : क्या बेटा राम अवतार ! तुम्हारी आँखें अब कभी ठीक नहीं होंगी ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?
राम अवतार : मौसी ! मेरी आँखें ठीक हो सकती हैं। मैंने शहर के आँखों के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया था । उनका कहना है कि कोई अपनी आँखें दान कर दे ,तो मुझे आँखों की रोशनी मिल सकती है ।
वृद्धा और पड़ोसन : (एक साथ चीख कर कहती हैं ) नेत्रदान ! यह तुम क्या कह रहे हो ?
राम अवतार : हाँ माँ !अब तो हमारे शहर में भी आई बैंक खुल गया है । काश लोगों में इतनी चेतना आ जाए कि सब लोग नेत्रदान के संकल्प-पत्र को भरकर अपनी आँखें खुशी से दान करने लगें, तब मुझ जैसे अंधे को शायद आँखें मिल सकें।
पड़ोसन :( वृद्धा से कहती है ) बहना ! यह हमने क्या कर डाला ?
वृद्धा : (पड़ोसन से) हमने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार ली ।
राम अवतार : मैं कुछ समझा नहीं ..
वृद्धा : मगर मैं सब कुछ समझ गई हूँ। मैं नेत्रदान जरूर करूँगी ,ताकि किसी अंधे को आँखों की रोशनी मिल सके ।
पड़ोसन : (कान पकड़कर) मैं भी अपनी गलती की माफी चाहती हूँ। मैं भी नेत्रदान करूँगी।
वृद्धा तथा पड़ोसन : ( मिलकर कहती हैं) चलो ! हम अभी आँखों के अस्पताल के आई बैंक में जाकर नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरते हैं । सुन लो मोहल्ले वालों ! सुन लो शहर वालों ! सुन लो हमारे घर वालों ! हमने आँखें दान करने का फैसला किया है । जब हम मर जाएँ तो आई बैंक वालों को बुलाकर हमारी आँखें दान जरूर करना । इसी से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ।
(पर्दा गिर जाता है।)
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:4b5f9a30-dbed-392b-bb82-ddd9d8292113
::::::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
"नहीं,बुला लो।"
"अरे छोड़ो न, एक दिन रेस्ट कर लेगा।"
"उसने कौनसा पहाड़ खोदना है?आराम ही तो है,बैठ कर गाड़ी ही तो चलानी है।"
"फिर भी, मुझे ठीक नहीं लग रहा कल बुलाना।कल मुझे कॉलेज जाना नहीं है और हम सब लोग मूवी देखने जा रहै हैं।वहाँ के लिए तो आप ही ड्राइव कर लोगे।"
"जब मैं कह रहा हूँ तो कह रहा हूँ।बस तू कह दे उसे।भले ही कल 2 बजे बुला ले क्योंकि तीन बजे का शो है"
"ठीक है..." रमा ने बेमन से कहा।उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि वह नये साल के दिन खुद तो परिवार के साथ एंजॉय करे और अपने ड्राइवर को बेवजह थोड़ी दूरी की ड्राइव करने के लिए भी बुला ले।उसने सोचा था कि वह कमल को कल की छुट्टी देकर उसे नये साल का जश्न मनाने को कहेगी तो उस गरीब के चेहरे पर भी एक छोटी सी मुस्कान आ जायेगी।
'हम बड़ी चीजें न कर सकें पर अपने स्तर की छोटी छोटी खुशियां तो बाँट ही सकते हैं' रमा ने मन में बुदबदाया।उसे राघव पर झुंझलाहट आ रही थी,पर अपने पति की बात भी वह नहीं टाल सकती थी।
कमल गैराज में गाड़ी पार्क कर चुका था और अंदर लॉबी में की-स्टेंड पर गाड़ी की चाभी टाँगने आया था।उसने रोज की तरह रमा से पूछा,
"मैंने गाड़ी पार्क कर दी है,मैम।अब मैं जाऊँ....?और वो ...कल की तो छुट्टी रहेगी न मैम।आप कह रहे थे न कि कल कॉलेज नहीं जाना है।"
"हाँ,कल कॉलेज तो नहीं जाना है पर सर बुला रहे हैं कल किसी काम से।तुम कल दो बजे आ जाना।" रमा ने सेन्टर टेबल पर फैली पड़ी मैग्जीन्स समेटने का उपक्रम करते हुए कहा।वह असहज महसूस कर रही थी क्योंकि उसने जो सोचा था वह हो नहीं पाया था।उसने चोर निगाह से कमल की ओर देखा।
"ठीक है,मैम" कहकर कमल रोज की तरह गम्भीरता ओढ़े गर्दन झुका कर मेन गेट के पास खड़ी अपनी टीवीएस तरफ बढ़ गया।रमा के सिर पर उस उदास चेहरे का बोझ चढ़ गया था,वह जाकर अपने कमरे में लेट गयी।
अगले दिन ठीक दो बजे कमल अपनी ड्यूटी पर था।
"नमस्ते मैम,नमस्ते सर।आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद।"
"नमस्ते कमल,तुमको भी नया साल मुबारक।" राघव ने गर्मजोशी से कहा।
रमा ने फीकी मुस्कान फैंकी।उसे राघव का कमल को छुट्टी के दिन भी काम पर बुलाना गलत लग रहा था।हालांकि महीने में चार-पाँच छुट्टियाँ कमल को आराम से मिल जाती थी क्योंकि सन्डे को तो रमा कॉलेज नहीं जाती थी।पर आज नया साल था और यही बात उसे खटक रही थी।
रमा के दो बेटे थे जो युवा कमल से कुछ ही वर्ष छोटे किशोर वय के थे।वे दोनों भी तैयार होकर बाहर आ गये थे।कमल ने गैराज से गाड़ी बाहर निकाली और उसे साफ किया।राघव ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठा और रमा दोनों बेटों सहित पीछे की सीट पर।
गाड़ी शहर के सबसे शानदार मॉल कम मल्टीप्लेक्स के मेन गेट पर पहुँच चुकी थी।
कार पार्किंग में ले जाने से पहले कमल ने मालिक के परिवार को कार से उतारते हुए मालिक से पूछा," सर,कितनी देर की मूवी है?मैं सोच रहा था कार पार्क कर के मैं भी थोड़ी देर पास में ही अपने रिश्तेदार के घर हो आता।जब मूवी ख़त्म हो आप मुझे कॉल कर देना,मैं तुरन्त आ जाऊँगा।"
"नहीं,तुम कहीं नहीं जाओगे।कार पार्क कर के सीधे यहाँ आओ।"
कमल चुपचाप कार पार्किंग की ओर बढ़ गया।अब तो रमा को बहुत ही गुस्सा आया पर सार्वजनिक स्थान पर और वह भी जवान बेटों के सामने वह अपने पति से क्या कहे।उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राघव ऐसा क्यों कर रहे हैं?राघव ने मुस्कुराकर रमा की ओर देखा लेकिन उसने गुस्से से मुंह फेर लिया।
थोड़ी देर में कमल कार पार्क कर के लौटा तो राघव ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और पूछा, "मूवी वगैरह देख लेते हो या नहीं।आज तुम्हें हमारे साथ मूवी देखना है,ठीक है।" कमल का चेहरा कमल की तरह खिल गया।रमा के दोनों बेटे भी पापा को देखकर मुस्कुराने लगे और रमा.... वह तो हक्की बक्की रह गयी थी।राघव ने प्यार से जब रमा की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा उठी।रमा के बेटों ने कमल का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ आगे बढ़ाया तो राघव ने रमा का हाथ पकड़ा।पाँच टिकट ऑनलाइन बुक कराये गये थे,थ्री डी मूवी थी जो रेटिंग्स में धूम मचाये हुए थी।ढाई घण्टे की मूवी देखकर हंसते खिलखिलाते सब हॉल से बाहर निकले।
राघव पिज्जा कॉर्नर की तरफ बढ़ा और सबके लिए पिज्जा आर्डर किया।कमल के चेहरे पर संकोच मिश्रित प्रसन्नता के भाव थे।पाँच जगह पिज्जा सर्व हुए।सबने खाना शुरू किया।लेकिन ये क्या कमल की आँखों में आंसू थे।राघव ने मज़ाक करते हुए पूछा,"क्या बात मूवी अच्छी नहीं लगी, कमल।"
"नहीं,सर नहीं,ऐसी बात नहीं है।बहुत अच्छी मूवी थी।पर.... मैंने अपने जीवन में आज तक कभी मल्टीप्लेक्स में मूवी नहीं देखी और थ्री डी मूवी भी पहली बार देखी।एक बात बताऊं ,सर।दो साल पहले मैंने इस पिज्जा कॉर्नर पर काम किया है।लेकिन मैंने कभी पिज्जा नहीं खाया।मैं बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुश हूँ।आप सचमुच बहुत बड़े दिल वाले हैं।वरना एक ड्राइवर को अपने साथ कौन बैठाता है,एक ड्राइवर के लिए इतना कौन सोचता है?" राघव ने कमल को गले से लगा लिया।
रमा खुद पर शर्मिन्दा थी कि वह अपने ही पति की भलमनसाहत को आखिर क्यों नहीं पहचान पायी।पर उसे हल्का गुस्सा भी आया कि आखिर राघव ने उसे ये सब पहले क्यों नहीं बताया।? पर अगले ही पल उसने मन ही मन ढेर सारा प्यार राघव पर उड़ेला।दोनों बेटे बहुत खुश थे कि वे अपने व्यस्ततम माता पिता के साथ नये साल पर मूवी देखने आए।लौटते समय गाड़ी में बैठी सवारियों के भाव बिल्कुल बदले हुए थे।इस नये साल पर सबकी छोटी छोटी आशाएं जो पूरी हुई थीं।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
👇🏼👇👇🏼👇👇🏼👇👇🏼👇👇🏼👇👇🏼👇
https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:82a13d5d-0d55-35bd-9826-fc99f6cd6ad8
:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
👇🏼👇🏼👇🏼👇👇👇🏼👇👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:bf9bfaf5-5f9e-354e-89be-26cf40b31366
:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
कितने दर-दर में भटकी हूँ।
छोड़ा है जबसे दर तेरा,
बीच भँवर में मैं अटकी हूँ।
पाया नहीं किनारा मैंने,
जीवन में इतनी भटकन है।
पा न सकी फिर द्वार तुम्हारा,
विषयों की इतनी अटकन है।
देता कौन सहारा मुझको,
जग की आंखों में खटकी हूँ।
जब से मुझ पर यौवन आया,
जग के वैरी मुझे खींचते।
फैला जाल वासनाओं का,
मोह पाश में मुझे भींचते ।
जब से छूटा साथ तुम्हारा,
रोज़ अधर में मैं लटकी हूँ ।
तेरे घर से आकर मैंने,
ठौर नहीं जग में पाया है ।
नित्य बिकी हूँ बाजारों में,
नहीं किसी ने अपनाया है ।
स्वारथ के अंधों ने जग के,
बाँध डोर में मैं झटकी हूँ ।
अब तो एक चाह है मन की,
तेरे दर को फिर पा जाऊँ ।
इस भटकन को छोड़ जगत की,
तेरे चरणों में आ जाऊँ ।
क्या तुम मुझको अपना लोगे,
यही सोच कर मैं अटकी हूँ ।
✍️ राजीव कुमार भृगु
सम्भल, उ.प्र.,भारत
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिंदी साहित्य संगम' की मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार 3 अप्रैल 2022 को मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया।
कवयित्री इंदु रानी द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा -
किस्मत से अपनी ऐसे हम मजबूर हो गये।
अब खेत में अपने ही हम मजदूर हो गये।।
मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इस प्रकार की -
अरुण को सवेरे नमन कर रहा हूँ,
मैं उर्जित स्वयं अपना तन कर रहा हूँ।।
सभी को खुशी का उजाला जो बांटे,
उसे जमाने का जतन कर रहा हूँ।।
विशिष्ट अतिथि के रूप में विकास मुरादाबादी ने कहा -
जिससे हो वैमनस्य वो जज्बात छोड़ दो।
बहुत हुआ अब नफरतों की बात छोड़ दो।।
डॉ. मनोज रस्तोगी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -
राह में कभी सीधा चलना
हमें नहीं भाता है।
हमेशा उल्टा चलना ही
सुहाता है।
नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने वर्तमान सामाजिक परिस्थिति का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा -
जनता-हित के नाम पर, दिखावटी परमार्थ।
राजनीति गढ़ती रही, कैसे-कैसे स्वार्थ ।।
इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद्व।
उधर नये रचती रही, राजनीति छल-छंद ।।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा --
बहुत व्यस्त है जन-सेवा में, हर फरमाबरदार।
बाहर बोझा ढोती मुनिया, भीतर है त्योहार।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने अपनी अभिव्यक्ति करते हुए कहा -
कल सपने में आई अम्मा, पूछ रही थी हाल।
जबसे दुनिया गई छोड़कर,
बदले घर के ढंग।
दीवारों को भी भाया अब,
बँटवारे का रंग।
सांझी छत की धूप बँट गयी, बैठक पड़ी निढाल।
इंदु रानी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -
मिले न बगुला भक्ति से, व्यर्थ करे अभिमान।
जे मन चंगा राखिए, ह्रदय प्रभु विद्यमान।।
जितेंद्र जौली ने हास्य-व्यंग की फुहार छोड़ी -
हम पर सारी रात ये, करते अत्याचार।
लगता है अब चल रही, मच्छर की सरकार।।
राशिद मुरादाबादी ने अपने भावों को अपने अशआर में ढाला -
नये झगड़े नई रंजिशें ईजाद करते हैं,
अब कहाँ इन्सां मुहब्बत की बात करते हैं।
रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुॅंचा।
::::::प्रस्तुति:::::
जितेंद्र जौली
महासचिव
हिन्दी साहित्य संगम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
वसुधा ने पाई तरुणाई
वीथि वीथि मंन्त्रों का गुंजन
मन मंदिर में माँ का वंदन
प्रतिपल प्रकृति पुलकित मुखरित
महक उठा खुशियों का चंदन ।
पुण्य धरा पर आर्यवर्त की
गूँज उठी पावन शहनाई ।
नव संवत की बेला आई ।
गेहूं और सरसों की फसलें
घर आँगन में पटी हुईं है ।
खेत और खलिहान महकते
जन की भीड़ें डटी हुई है ।
आम्रमंजरी झुकी धरा पर
आलिंगन करने को आई ।
नव संवत की बेला आई ।.
मंद सुगंधित अनिल बही है
भौरों का दल आया है ।
कुसुमाकर ने निज प्रभाव से
मन सबका बहकाया है ।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की
सबको है शत बार बधाई ।
नव संवत की बेला आई ।
✍️ डॉक्टर प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
और विगत की करें विदाई।
नव संवत की बेला आई ।
नवल विचार - नवल कल्पना,
नवल रंगोली - नवल अल्पना,
नवल योजना - नव आशाएं
नवल वर्ष मिल सभी मनाएं
चेहरों पर आई अरुणाई ।
नव संवत की बेला आई ।।
नव उत्साह - नवल उमंगें
नवल नवल - नवीन तरंगे
नव उत्साह - नवल आयोजन
नवल मंच - नवल संयोजन
झूम उठे जिसमें तरुणाई।
नव संवत की बेला आई।
नव आगत का स्वागत प्यारे
नव आशाएं भविष्य संवारे
कोई कार्य रहे न असंभव
मंगलकारी हो यह वर्ष नव
पल-पल हो इसका सुखदाई।
नव संवत की बेला आई।।
✍️डॉ. अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर, बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
चैत्र सुदी पड़वा को, खुश होते दिक् दिगन्त।।
एक जनवरी को,अंग्रेजी वर्ष आता।
जब जोरदार जाड़ा, सभी को सताता।।
ठिठुरन होती इतनी, बजने लगते दन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
गर्मी बहुत तेज नहीं, नहीं तेज सर्दी।
सभी ने उठाकर रख दी, जाड़ों की वर्दी।।
अब ना ज्यादा सी गर्मी,और है जाड़े का अन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगंत।।
इसी दिन ब्रह्मा जी ने, डाली निज दृष्टि।
देख कर सूना-सूना,रच डाली सृष्टि।।
जीव-जंतु सभी बनाए, गृहस्थी एवं संत।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
राम का राजतिलक,हुआ इसी रोज था।
जनहित में जोश,और वाणी में ओज था।।
न्याय दिया प्रजा को,अपने जीवन पर्यन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
नवरात्रि की पूजा,इसी दिन से होती।
तप व्रत से दुर्गा, मैया खुश होती।।
मंदिर सजा धजा कर,पूजा करें महन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगंत।।
कोई भी जन अन्न बिन, न रह सकता।
गेहूं चना सरसों मटर,इसी समय पकता।।
लहलहाती लखकर खेती,कृषक को खुशी अनंत।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
✍️ सुभाष चन्द्र शर्मा
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9761451031
वैसे तो मोहल्ले में पच्चीस-तीस घर होंगे। सभी घरों में एक-दो बच्चे जरूर हैं। लेकिन उनका आपस में मिलना सिवाय गली से निकलते समय हाय-हेलो करके हो जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। एक दूसरे के घरों में जाकर बैठने का रिवाज कम ही था । खेलने के लिए जगह भला अब किसके घर में बची थी ? पुराने समय के बड़े-बड़े आँगन अब लिंटर पड़ने के बाद छोटे-छोटे कमरों में बदल चुके थे ।
इसी बीच एक घटना हुई । एक सज्जन मोहल्ला छोड़कर महानगर में शिफ्ट हो गए । उनका मकान गिराऊ हालत में था। वह जिसको बेच कर गए ,उसने तुड़वा कर बनवाने का विचार बनाया । लेकिन मकान टूटने के बाद जब मलवा उठा तो उसके बाद न जाने क्या परिस्थितियाँ आ गईं कि आगे का काम रुक गया । वह जगह पूरे मोहल्ले में एकमात्र खाली मैदान बनकर बच्चों को उपलब्ध हो गयी । उसी का नामकरण बच्चों ने "कच्चा-हाउस" कर दिया ।
कच्चे-हाउस में अब रोजाना सुबह से देर रात तक बैडमिंटन और क्रिकेट खेला जाने लगा । जिस समय भी कच्चे-हाउस के पास चले जाओ ,दस-बारह बच्चे खेलते हुए नजर आ जाएँगे । बच्चों में एक दूसरे से आत्मीयता बढ़ने लगी । रोजाना मुलाकात से उनमें अंतरंगता उत्पन्न हो गई । चार तरह की बातें भी बच्चे आपस में करने लगे । बस यूँ कहिए कि कच्चे-हाउस के कारण महफिल जुड़ने का एक बहाना मिल गया । दोस्ती पक्की होने लगी । पहले शायद ही कभी कोई बच्चा किसी दूसरे बच्चे से बात करता हो ,लेकिन अब तो सब एक दूसरे के गले में बाहें डाल कर कच्चे-हाउस के आसपास घूमते नजर आने लगे ।
बच्चों में बैडमिंटन और क्रिकेट का शौक शुरू हुआ ,तो हर घर में रैकेट खरीदा जाने लगा । मोहल्ले की स्त्रियाँ जिनको कभी किसी ने बैडमिंटन खेलते नहीं देखा था ,वह अब नियमित रूप से बैडमिंटन का अभ्यास करने लगीं। यूँ समझिए कि कच्चा-हाउस महिलाओं की "किटी-पार्टी" का भी केंद्र बन गया । सारी गपशप इसी कच्चे-हाउस में आकर होती थी ।
अकस्मात एक दिन खुशी के इस मौसम में एक व्यवधान आ गया । कुछ लोग बाहर से कच्चे-हाउस का निरीक्षण करने आए थे । उनकी बातचीत से पता चला कि वह कच्चा-हाउस खरीदने में रुचि ले रहे हैं। बच्चों ने उनकी बात सुन ली थी और उसके बाद से पूरे मोहल्ले में एक उदासी छाई हुई थी। सब बच्चे यह सोच कर परेशान थे कि अगर कच्चा-हाउस बिक गया और यहाँ पर नए खरीदार ने अपना भवन बना लिया तो फिर यह जो खेल और दोस्ती का केंद्र पहली बार मोहल्ले को नसीब हुआ है ,वह हाथ से निकल जाएगा ।
बच्चों की उदासी देखकर उनके घरों के बड़े लोग भी चिंतित हो उठे । बच्चों के मम्मी-पापा विशेष रूप से इस बारे में चर्चा करने लगे । सब को लग रहा था कि सचमुच कच्चे-हाउस ने मोहल्ले में जो सक्रिय उत्साह उत्पन्न किया है ,वह कहीं समाप्त न हो जाए !
फिर क्या था ,सब बच्चों के मम्मी-पापा एक जगह बैठे और सबने एक निर्णय लिया। उसके बाद सारे मम्मी-पापा मिलकर कच्चे-हाउस के मालिक के पास गए । बातचीत की और लौटकर साथ में मिठाई का डिब्बा लेकर मोहल्ले में प्रविष्ट हुए ।
बच्चों ने पूछा "पापा ! क्या समाचार लाए हैं ,जो मिठाई का डिब्बा भी हाथ में है ?"
सब बच्चों के पापा ने सामूहिक स्वर में कहा "हमने कच्चा-हाउस मोहल्ले के बच्चों के लिए खरीद लिया है । अब यहाँ पर पार्क बनेगा और उसकी देखभाल सब परिवारों की एक सोसाइटी बनाकर की जाएगी ।"
सुनते ही बच्चे खुशी से झूम उठे । कच्चे-हाउस में उस दिन खूब जमकर होली खेली गई । नृत्य हुए तथा तबले-बाजे और ढोलक के स्वर देर रात तक गूँजते रहे ।
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451