सम्वत् अब नयी आयी, विगत का हो गया अन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को, खुश होते दिक् दिगन्त।।
एक जनवरी को,अंग्रेजी वर्ष आता।
जब जोरदार जाड़ा, सभी को सताता।।
ठिठुरन होती इतनी, बजने लगते दन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
गर्मी बहुत तेज नहीं, नहीं तेज सर्दी।
सभी ने उठाकर रख दी, जाड़ों की वर्दी।।
अब ना ज्यादा सी गर्मी,और है जाड़े का अन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगंत।।
इसी दिन ब्रह्मा जी ने, डाली निज दृष्टि।
देख कर सूना-सूना,रच डाली सृष्टि।।
जीव-जंतु सभी बनाए, गृहस्थी एवं संत।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
राम का राजतिलक,हुआ इसी रोज था।
जनहित में जोश,और वाणी में ओज था।।
न्याय दिया प्रजा को,अपने जीवन पर्यन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
नवरात्रि की पूजा,इसी दिन से होती।
तप व्रत से दुर्गा, मैया खुश होती।।
मंदिर सजा धजा कर,पूजा करें महन्त।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगंत।।
कोई भी जन अन्न बिन, न रह सकता।
गेहूं चना सरसों मटर,इसी समय पकता।।
लहलहाती लखकर खेती,कृषक को खुशी अनंत।
चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।
✍️ सुभाष चन्द्र शर्मा
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9761451031
सुन्दर वर्णन
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