बुधवार, 6 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी ---छोटी सी आशा.......


"सुनो ! कल कमल को छुट्टी कह दूँ क्या"

"नहीं,बुला लो।"

"अरे छोड़ो न, एक दिन रेस्ट कर लेगा।"

"उसने कौनसा पहाड़ खोदना है?आराम ही तो है,बैठ कर गाड़ी ही तो चलानी है।"

"फिर भी, मुझे ठीक नहीं लग रहा कल बुलाना।कल मुझे कॉलेज जाना नहीं है और हम सब लोग मूवी देखने जा रहै हैं।वहाँ के लिए तो आप ही ड्राइव कर लोगे।"

"जब मैं कह रहा हूँ तो कह रहा हूँ।बस तू कह दे उसे।भले ही कल 2 बजे बुला ले क्योंकि तीन बजे का शो है" 

"ठीक है..." रमा ने बेमन से कहा।उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि वह नये साल के दिन खुद तो परिवार के साथ एंजॉय करे और अपने ड्राइवर को बेवजह थोड़ी दूरी की ड्राइव करने के लिए भी बुला ले।उसने सोचा था कि वह कमल को कल की छुट्टी देकर उसे नये साल का जश्न मनाने को कहेगी तो उस गरीब के चेहरे पर भी एक छोटी सी मुस्कान आ जायेगी।

     'हम बड़ी चीजें न कर सकें पर अपने स्तर की छोटी छोटी खुशियां तो बाँट ही सकते हैं' रमा ने मन में बुदबदाया।उसे राघव पर झुंझलाहट आ रही थी,पर अपने पति की बात भी वह नहीं टाल सकती थी।

     कमल गैराज में गाड़ी पार्क कर चुका था और अंदर लॉबी में की-स्टेंड पर गाड़ी की चाभी टाँगने आया था।उसने रोज की तरह रमा से पूछा,

     "मैंने गाड़ी पार्क कर दी है,मैम।अब मैं जाऊँ....?और वो ...कल की तो छुट्टी रहेगी न मैम।आप कह रहे थे न कि कल कॉलेज नहीं जाना है।"

     "हाँ,कल कॉलेज तो नहीं जाना है पर सर बुला रहे हैं कल किसी काम से।तुम कल दो बजे आ जाना।" रमा ने सेन्टर टेबल पर फैली पड़ी मैग्जीन्स समेटने का उपक्रम करते हुए कहा।वह असहज महसूस कर रही थी क्योंकि उसने जो सोचा था वह हो नहीं पाया था।उसने चोर निगाह से कमल की ओर देखा।

     "ठीक है,मैम" कहकर कमल रोज की तरह गम्भीरता ओढ़े गर्दन झुका कर मेन गेट के पास खड़ी अपनी टीवीएस तरफ बढ़ गया।रमा के सिर पर उस उदास चेहरे का बोझ चढ़ गया था,वह जाकर अपने कमरे में लेट गयी।

        अगले दिन ठीक दो बजे कमल अपनी ड्यूटी पर था।

        "नमस्ते मैम,नमस्ते सर।आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद।"

        "नमस्ते कमल,तुमको भी नया साल मुबारक।" राघव ने गर्मजोशी से कहा।

        रमा ने फीकी मुस्कान फैंकी।उसे राघव का कमल को छुट्टी के दिन भी काम पर बुलाना गलत लग रहा था।हालांकि महीने में चार-पाँच छुट्टियाँ कमल को आराम से मिल जाती थी क्योंकि सन्डे को तो रमा कॉलेज नहीं जाती थी।पर आज नया साल था और यही बात उसे खटक रही थी।

        रमा के दो बेटे थे जो युवा कमल से कुछ ही वर्ष छोटे किशोर वय के थे।वे दोनों भी तैयार होकर बाहर आ गये थे।कमल ने गैराज से गाड़ी बाहर निकाली और उसे साफ किया।राघव ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठा और रमा दोनों बेटों सहित पीछे की सीट पर।

        गाड़ी शहर के सबसे शानदार मॉल कम मल्टीप्लेक्स के मेन गेट पर पहुँच चुकी थी।

        कार पार्किंग में ले जाने से पहले कमल ने मालिक के परिवार को कार से उतारते हुए मालिक से पूछा," सर,कितनी देर की मूवी है?मैं सोच रहा था कार पार्क कर के मैं भी थोड़ी देर पास में ही अपने रिश्तेदार के घर हो आता।जब मूवी ख़त्म हो आप मुझे कॉल कर देना,मैं तुरन्त आ जाऊँगा।"

        "नहीं,तुम कहीं नहीं जाओगे।कार पार्क कर के सीधे यहाँ आओ।"

        कमल चुपचाप कार पार्किंग की ओर बढ़ गया।अब तो रमा को बहुत ही गुस्सा आया पर सार्वजनिक स्थान पर और वह भी जवान बेटों के सामने वह अपने पति से क्या कहे।उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राघव ऐसा क्यों कर रहे हैं?राघव ने मुस्कुराकर रमा की ओर देखा लेकिन उसने गुस्से से मुंह फेर लिया।

        थोड़ी देर में कमल कार पार्क कर के लौटा तो राघव ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और पूछा, "मूवी वगैरह देख लेते हो या नहीं।आज तुम्हें हमारे साथ मूवी देखना है,ठीक है।" कमल का चेहरा कमल की तरह खिल गया।रमा के दोनों बेटे भी पापा को देखकर मुस्कुराने लगे और रमा.... वह तो हक्की बक्की रह गयी थी।राघव ने प्यार से जब रमा की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा उठी।रमा के बेटों ने कमल का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ आगे बढ़ाया तो राघव ने रमा का हाथ पकड़ा।पाँच टिकट ऑनलाइन बुक कराये गये थे,थ्री डी मूवी थी जो रेटिंग्स में धूम मचाये हुए थी।ढाई घण्टे की मूवी देखकर हंसते खिलखिलाते सब हॉल से बाहर निकले।

        राघव पिज्जा कॉर्नर की तरफ बढ़ा और सबके लिए पिज्जा आर्डर किया।कमल के चेहरे पर संकोच मिश्रित प्रसन्नता के भाव थे।पाँच जगह पिज्जा सर्व  हुए।सबने खाना शुरू किया।लेकिन ये क्या कमल की आँखों में आंसू थे।राघव ने मज़ाक करते हुए पूछा,"क्या बात मूवी अच्छी नहीं लगी, कमल।"

"नहीं,सर नहीं,ऐसी बात नहीं है।बहुत अच्छी मूवी थी।पर.... मैंने अपने जीवन में आज तक कभी मल्टीप्लेक्स में मूवी नहीं देखी और थ्री डी मूवी भी पहली बार देखी।एक बात बताऊं ,सर।दो साल पहले मैंने इस पिज्जा कॉर्नर पर काम किया है।लेकिन मैंने कभी पिज्जा नहीं खाया।मैं बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुश हूँ।आप सचमुच बहुत बड़े दिल वाले हैं।वरना एक ड्राइवर को अपने साथ कौन बैठाता है,एक ड्राइवर के लिए इतना कौन सोचता है?" राघव ने कमल को गले से लगा लिया।

       रमा खुद पर शर्मिन्दा थी कि वह अपने ही पति की भलमनसाहत को आखिर क्यों नहीं पहचान पायी।पर उसे हल्का गुस्सा भी आया कि आखिर राघव ने उसे ये सब पहले क्यों नहीं बताया।? पर अगले ही पल उसने मन ही मन ढेर सारा प्यार राघव पर उड़ेला।दोनों बेटे बहुत खुश थे कि वे अपने व्यस्ततम माता पिता के साथ नये साल पर मूवी देखने आए।लौटते समय गाड़ी में बैठी सवारियों के भाव बिल्कुल बदले हुए थे।इस नये साल पर सबकी छोटी छोटी आशाएं जो पूरी हुई थीं।

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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