नव संवत की बेला आई
वसुधा ने पाई तरुणाई
वीथि वीथि मंन्त्रों का गुंजन
मन मंदिर में माँ का वंदन
प्रतिपल प्रकृति पुलकित मुखरित
महक उठा खुशियों का चंदन ।
पुण्य धरा पर आर्यवर्त की
गूँज उठी पावन शहनाई ।
नव संवत की बेला आई ।
गेहूं और सरसों की फसलें
घर आँगन में पटी हुईं है ।
खेत और खलिहान महकते
जन की भीड़ें डटी हुई है ।
आम्रमंजरी झुकी धरा पर
आलिंगन करने को आई ।
नव संवत की बेला आई ।.
मंद सुगंधित अनिल बही है
भौरों का दल आया है ।
कुसुमाकर ने निज प्रभाव से
मन सबका बहकाया है ।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की
सबको है शत बार बधाई ।
नव संवत की बेला आई ।
✍️ डॉक्टर प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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